(इप्टा के दस्तावेज़ीकरण के अभियान के अंतर्गत रमेशचन्द्र पाटकर द्वारा मराठी भाषा में लिखी एवं संपादित किताब ‘इप्टा : एक सांस्कृतिक चळवळ’ में संग्रहित लेखों और रिपोर्ट्स के हिन्दी अनुवाद की शृंखला की इस कड़ी में प्रस्तुत है भारतीय डाक विभाग द्वारा इप्टा के स्वर्ण-जयंती वर्ष पर आयोजित समारोह की रिपोर्ट।
फोटो गूगल तथा इप्टा मुंबई की वेबसाइट से साभार)

इप्टा की स्थापना के 50 साल पूरे होने पर 25 मई 1994 को सुबह 11 बजे मुंबई के वरली स्थित ‘नेहरू सेंटर’ में तत्कालीन मानव संसाधन विकास मंत्री (Union Minister for Human Resource Development) माननीय अर्जुन सिंह के हाथों भारतीय डाक विभाग द्वारा इप्टा के टिकट का प्रकाशन किया गया। इस अवसर पर जनसंपर्क विभाग के केंद्रीय राज्यमंत्री माननीय सुखराम बतौर मुख्य अतिथि उपस्थित थे।


इस अवसर पर पिछले पचास सालों में इप्टा द्वारा निर्मित कुछ महत्त्वपूर्ण नाटकों के चुनिंदा दृश्य प्रस्तुत किए गए। इसमें ‘अफ़्रीका जवान परेशान’ (शौक़त क़ैफ़ी और सुरेंद्र गुप्ता), ‘भगतसिंह’ (सुलभा आर्य तथा सुदेश बेरी), ‘आख़री शमा’ (कुलदीप सिंह और भरत कपूर), ‘जुलवा’ (अदिति देशपांडे तथा शुभांगी केलकर, निर्देशक वामन केन्द्रे), ‘शतरंज के मोहरे’ (ए. के. हंगल तथा अन्य), ‘एक और द्रोणाचार्य’ (मुश्ताक ख़ान, अखिलेन्द्र मिश्रा, प्रभा मिश्रा व सुलभा आर्य, निर्देशक सुभाष डांगाइच) प्रमुख थे। कुछ नाटकों के दृश्यों का दृश्य-श्रव्य (Audio-visual) प्रस्तुतीकरण भी किया गया।


इस कार्यक्रम का आलेखन किया था जावेद सिद्दीक़ी ने, निर्माण किया था एम. एस. सत्थ्यु ने, संगीत था कुलदीप सिंह का तथा निर्देशन था रमेश तलवार का।
इस अवसर पर मुंबई इप्टा द्वारा एक विशेष स्मारिका प्रकाशित की गई थी, जिसमें जवाहरलाल नेहरू द्वारा भेजा गया संदेश पुनर्प्रकाशित किया गया था। यह शुभकामना संदेश 25 मई 1943 को मुंबई के मारवाड़ी विद्यालय हॉल में आयोजित इप्टा के पहले सम्मेलन के लिए जवाहरलाल नेहरू द्वारा प्रेषित किया गया था, जो इस प्रकार है,
“भारत के जन-नाट्य के विकास में मेरी विशेष रुचि है। मेरा मत है कि अगर लोक और उसकी संस्कृति पर जन-नाट्य आधारित होगा तो उसके विकास की भरपूर संभावना है। अगर ऐसा नहीं हुआ तो वह महज़ लफ़्फ़ाज़ी बनकर रह जाएगा। आपके द्वारा भेजे गए प्रपत्र में मैंने पढ़ा कि आप जनता के विचारों और कल्पनाओं को केंद्र में रखकर काम करने वाले हैं, तो मुझे बेहद ख़ुशी हुई। चीन और स्पेन में इस तरह का काम हो रहा है। हालाँकि भारत में अभी इस बात का अभाव है। इसके बावजूद मेरा मानना है कि उस दिशा में कोशिश करने में कोई हर्ज़ नहीं है। आपके संगठन द्वारा इस दिशा में किए गए कार्यों को सफलता मिले, मेरी यही शुभकामना है।”

इप्टा के स्वर्ण-जयंती वर्ष के अवसर पर जमशेदजी जे. टाटा ने निम्नलिखित संदेश भेजा था,
“मुझे इस बात की ख़ुशी हो रही है कि इंडियन पीपल्स थिएटर एसोसिएशन ने महत्त्वपूर्ण सेवा-कार्य किया है, जिसे भारत सरकार द्वारा इप्टा की स्वर्ण जयंती के मौक़े पर डाक विभाग द्वारा विशेष टिकट जारी कर मान्यता प्रदान की गई है। इस माह में विशेष टिकट जारी करने के मौक़े पर आपको, आपके सभी सहयोगियों को, इप्टा के लिए पहले काम करने वाले और वर्तमान में काम कर रहे सभी को हार्दिक शुभकामनाएँ! भारत के आधुनिक नाट्य-आंदोलन में, ख़ासकर शुरुआती दौर में, जिन्होंने अग्रिम पंक्ति में रहकर योगदान दिया है, उन सभी के लिए गर्व महसूस करने का यह प्रसंग है।”
मोहन सहगल तथा विजया मेहता ने भी इस अवसर पर शुभकामना संदेश भेजे थे, जिन्हें स्मारिका में प्रकाशित किया गया।

इप्टा के प्रथम सम्मेलन की रिपोर्ट, जो इप्टा की पहली बुलेटिन में जुलाई 1943 के अंक में प्रकाशित हुई थी, उसका इस स्मारिका में पुनर्प्रकाशन किया गया है। उक्त बुलेटिन का मूल्य सिर्फ़ 8 आना (50 पैसे, उस समय भारतीय मुद्रा के रूप में रुपये, पैसे के अलावा ‘आना’ भी प्रचलित था, यह एक रुपये का सोलहवाँ भाग होता था। एक आना = 6.25 पैसे) था। स्मारिका के मुखपृष्ठ पर “PEOPLES THEATRE STARS THE PEOPLE” (जन-नाट्य रंगमंच की नायक जनता है) सूत्र-वाक्य छपा था।