(इप्टा के मुखपत्र ‘यूनिटी’ के फ़रवरी 1953 के अंक में महाराष्ट्र के अलावा उत्तर प्रदेश का राज्य सम्मेलन तथा गुजरात में इप्टा के गठन संबंधी रिपोर्ट्स प्रकाशित हुईं। रमेशचन्द्र पाटकर ने अपनी पुस्तक ‘इप्टा : एक सांस्कृतिक चळवळ’ में दो संक्षिप्त रिपोर्ट्स पृथक-पृथक सम्मिलित कीं, जिनमें से एक का उद्देश्य महाराष्ट्र में उस समय काम करने वाले सभी तरह के कलाकारों, नाट्य-दलों तथा कला-पथकों को एक सम्मेलन के मंच पर एकजुट करना था। इसकी रिपोर्ट पिछली कड़ी में प्रस्तुत की गई है। दूसरी रिपोर्ट में मुंबई में आयोजित उपरोक्त सम्मेलन में इप्टा के कलाकारों की भूमिका तथा उसके बाद मुंबई इप्टा के साथ एक बैठक की रिपोर्ट के साथ-साथ उत्तर प्रदेश इप्टा के उन्हीं दिनों में संपन्न राज्य सम्मेलन तथा गुजरात में संगठन की शुरुआत करने संबंधी रिपोर्ट्स भी जोड़ दी गईं हैं। मराठी में अनूदित इन संक्षिप्त रिपोर्ट्स का हिन्दी अनुवाद इप्टा के दस्तावेज़ीकरण के अन्तर्गत यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है।
(सभी फोटो गूगल से साभार)
मुंबई में स्थित महाराष्ट्र इप्टा राज्य इकाई द्वारा प्रदेश के ज़िलों के विभिन्न प्रकार के कला-पथकों को एकजुट करने के लिए महाराष्ट्र राज्य सम्मेलन आयोजित किया गया था। व्यावसायिक और शौक़िया नाट्य-मंडलियों ने सम्मेलन में बहुत दिलचस्पी ली। जनता और कला के प्रति समर्पित भिन्न-भिन्न मत रखने वाले कलाकारों तथा बुद्धिजीवियों ने इस सम्मेलन में एक साथ काम करने का निर्णय लिया।
हालाँकि यह एक स्वतंत्र सम्मेलन था, फिर भी इसमें इप्टा द्वारा बनाई गई नीतियों के मार्गदर्शन के अनुसार चर्चा की गई। इसमें इप्टा के सदस्यों ने सक्रिय भागीदारी निभाई थी। सम्मेलन के आयोजन से पहले पूर्वतैयारी हेतु एक समिति गठित की गई थी। इसी समिति का आगे चलकर स्वागत समिति में विस्तार किया गया। उन्हीं दिनों चीन का दौरा कर लौटे हुए प्रसिद्ध इतिहासकार प्रो. न. र. फाटक तथा अमर शेख़ को इस समिति में शामिल किया गया था। महाराष्ट्र के प्रसिद्ध इतिहासकार महामहोपाध्याय दत्तो वामन पोतदार इस सम्मेलन के अध्यक्ष थे। वरिष्ठ अभिनेता नाट्याचार्य केशवराव दाते ने सम्मेलन का औपचारिक उद्घाटन किया था। काफ़ी वर्षों बाद महाराष्ट्र के कलाकार और इतिहासकार बड़ी संख्या में इस तरह के सम्मेलन में इकट्ठा हुए थे। इस सम्मेलन में शरीक़ हुए 300 प्रतिनिधियों में किसान और मज़दूर वर्ग के कलाकारों के साथ शौक़िया नाट्य-मंडलियों और मुंबई के व्यावसायिक नाट्य-दलों के प्रतिनिधि भी उपस्थित थे। नटवर्य चिन्तामणराव कोल्हटकर, संगीतकार वसंत देसाई, नृत्यगुरु पार्वती कुमार, नाटककार मामा वरेरकर के अलावा अन्य कई प्रसिद्ध व्यक्तियों ने इस सम्मेलन में भाग लिया था। महाराष्ट्र संयुक्त नाट्य आंदोलन की स्थापना के लिए यह एक बहुत बड़ा कदम था। देश में भाषा-आधारित राज्य-गठन की महत्त्वपूर्ण माँग सम्मेलन द्वारा की गई थी। पाँच दिनों तक चलने वाला सांस्कृतिक महोत्सव भी एक महत्त्वपूर्ण घटना थी। तमाशा और पोवाड़ा मंडलियों के गायक-वादकों के साथ-साथ ख़ानदानी शास्त्रीय गायकों और आधुनिक संगीतकारों ने भी इस महोत्सव में भाग लिया था।

प्रतिनिधियों और आमंत्रित अतिथियों के स्वागत-गीत से 14 जनवरी 1953 को सम्मेलन की शुरुआत हुई। यह स्वागत-गीत अण्णा भाऊ साठे ने लिखा था तथा उसे संगीत दिया था कनु घोष ने। अध्यक्ष द्वारा सम्मेलन में आए हुए प्रतिनिधि मण्डल तथा अन्य दर्शकों का स्वागत करते हुए औपचारिक उद्घाटन किया गया। चर्चाओं में मार्गदर्शन के लिए तथा अंतिम सत्र में मुख्य प्रस्ताव प्रस्तुत करने के लिए एक मसौदा समिति (Drafting Committee) चुनी गई। संगठन और नीतियों पर पहले तीन दिनों तक चर्चा की गई। देश के अनेक क्षेत्रों में अकाल जैसी परिस्थिति के विरोध में सरकार का निषेध करने वाले और इस परिस्थिति का दुष्परिणाम भुगत रही जनता की जीवन-स्थितियों को सुधारने के लिए सरकार द्वारा जल्द से जल्द कदम उठाए जाएँ – इस तरह की माँग करने वाले प्रस्ताव सम्मेलन में प्रस्तुत किए गए। इसके साथ ही उस समय लागू सेन्सरशिप को समाप्त करने तथा मनोरंजन कर कम करने की माँग करने वाले प्रस्ताव भी सम्मेलन में रखे गए।
एक संगठन समिति की स्थापना की गई, जिसमें प्रो. न. र. फाटक को अध्यक्ष तथा अमर शेख़ को सचिव बनाया गया। तय किया गया कि यह समिति एक केंद्रीय संयुक्त समिति की तरह काम करेगी, जो सभी कला-संगठनों और व्यक्तियों का प्रतिनिधित्व करेगी। इसे ‘संयुक्त महाराष्ट्र लोक-नाट्य संघ’ नाम दिया गया।

इप्टा से घनिष्ठ रूप से जुड़े हुए प्रतिनिधि इस सम्मेलन में शामिल हुए थे। न केवल मुंबई से, वरन् महाराष्ट्र के लगभग तेरह ज़िलों के इप्टा से जुड़े विभिन्न प्रतिनिधियों ने शिरकत की थी। इन्हें सम्मिलित कर एक संगठनात्मक समिति गठित की गई। अमर शेख़ इसके अध्यक्ष और पुष्पा कोठारे सचिव थीं। प्रतिनिधियों की सहमति से इप्टा का नीतिगत प्रस्ताव मंज़ूर किया गया।
सम्मेलन के अंतिम दो दिनों में आलेख पढ़े गए। ‘तमाशा’ पर अण्णा भाऊ साठे, ‘रंगमंच की समस्याएँ’ पर मामा वरेरकर, ‘फ़िल्म-उद्योग में संगीत’ पर वसंत देसाई, ‘नृत्य-कला’ पर पार्वती कुमार, ‘नाटक में राजनीति’ विषय पर चिन्तामणराव कोल्हटकर एवं अन्य आलेख पढ़े गए। इन आलेखों में महाराष्ट्र की समस्याओं पर केंद्रित विषयों का विवेचन किया गया था।
मुंबई (परेल) के ‘कामगार मैदान’ पर सम्मेलन का खुला अधिवेशन आयोजित किया गया। सम्मेलन तथा सांस्कृतिक महोत्सव के अंतिम दो दिनों में लगभग पंद्रह हज़ार लोग शामिल हुए। महाराष्ट्र के विभिन्न स्थानों से लगभग पाँच सौ कलाकार और पचास सांस्कृतिक संस्थाओं ने इस सांस्कृतिक महोत्सव में भाग लिया था।
प्रसिद्ध पार्श्वगायिका गीता रॉय (गीता दत्त) द्वारा गाए गए गीत, अमर शेख़ द्वारा प्रस्तुत की गई नई नृत्य-रचना, मामा वरेरकर के नाटक का एक दृश्य और अण्णा भाऊ साठे द्वारा लिखा गया एक नया तमाशा इस महोत्सव के उल्लेखनीय कार्यक्रमों में दर्ज़ किए जा सकते हैं।
मुंबई शहर :

इप्टा की महाराष्ट्र राज्य इकाई की स्थापना के कारण मुंबई इप्टा इकाई भी उसका एक हिस्सा बन गई थी। इसलिए विभिन्न भाषाओं की इकाइयों के पुनर्गठन के लिए सदस्यों की एक सामान्य सभा 21 जनवरी 1953 को अण्णा भाऊ साठे की अध्यक्षता में आयोजित की गई। इप्टा के राष्ट्रीय महासचिव निरंजन सेन ने पूर्व में संपन्न अखिल भारतीय सम्मेलन की रिपोर्ट सभा में प्रस्तुत की; तथा ‘संयुक्त लोक-नाट्य सम्मेलन’ की रिपोर्ट द. ना. गवाणकर ने प्रस्तुत की। अगला अखिल भारतीय सम्मेलन आयोजित होने तक अखिल भारतीय समिति की ओर से सभी इकाइयों के कार्यों में संबंध स्थापित करने के लिए एक समन्वय समिति का गठन किया गया।
गुजरात :
अहमदाबाद और बड़ौदा से सम्मेलन में भाग लेने आए हुए समानविचारी प्रतिनिधि पृथक रूप से मिले। अन्य सदस्यों के साथ आयोजित इस बैठक में जसवंत ठक्कर उपस्थित थे।
बैठक में निर्णय लिया गया कि गुजरात में इप्टा का राष्ट्रीय आंदोलन न होने के कारण महाराष्ट्र, उर्दू भाषा विभाग तथा गुजरात के कला-पथकों के साथ-साथ तेलुगू कला-पथक के कार्यों का विस्तार बड़ौदा तक किया जाए; इसके अलावा सूरत के सांस्कृतिक कला-पथक को भी उसमें सम्मिलित किया जाए।
इप्टा के अखिल भारतीय सम्मेलन (राष्ट्रीय सम्मेलन) में सभी कला-पथकों को भेजा जाए और तदनुसार तैयारी की जाए। गुजरात के प्रतिनिधि राष्ट्रीय सम्मेलन के दौरान पृथक रूप से मिलकर एक केंद्रीय समिति का गठन करें, यह भी निर्णय लिया गया।
उत्तर प्रदेश :
उपर्युक्त सम्मेलन की तारीख़ों (17-18 जनवरी 1953) पर ही उत्तर प्रदेश इप्टा का राज्य सम्मेलन लखनऊ के गंगाधर मेमोरियल हॉल में राज्य प्रतिनिधियों तथा अतिथियों की उपस्थिति में आयोजित किया गया था। इस सम्मेलन की अध्यक्षता की थी – अमृतलाल नागर, उस्ताद उमर खाँ, लखनऊ शासकीय कला महाविद्यालय के तत्कालीन प्राचार्य अशित हालदार और विधायक गोविंद सहाय ने।

इस सम्मेलन की शुरुआत प्रतिनिधि-सत्र से हुई। उत्तर प्रदेश के तत्कालीन संगठन सचिव ने प्रदेश में इप्टा की पिछले एक वर्ष की गतिविधियों की संक्षिप्त रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिसमें जन-नाट्य आंदोलन के निरंतर विकास को रेखांकित किया गया था। पिछले वर्षों में नाटक, संगीत, नृत्य एवं लोककला के अनेक नए कलाकारों के आंदोलन में जुड़ने का ज़िक्र किया गया था, जिसके कारण 1949 से सरकारी दमन की शुरुआत होने के बावजूद प्रदेश में स्वतःस्फूर्त सांस्कृतिक लहर का फैलना तथा आंदोलन को एकजुट करने में इप्टा काफ़ी हद तक सफल रही। उसके बाद ज़िलेवार गतिविधियों की रिपोर्ट प्रस्तुत की गईं।
अध्यक्ष-मण्डल के सदस्यों ने जन-नाट्य आंदोलन के विभिन्न आयामों पर चर्चा करते हुए उपस्थित प्रतिनिधियों के बीच जनता के लिए सुविधायुक्त नाट्यगृहों के निर्माण पर ज़ोर दिया तथा कहा कि, जनता की शिक्षा और जन-जागृति पैदा करने तथा साहित्य और कलाओं का विकास करने की ज़िम्मेदारी इप्टा के सदस्यों और जन-संस्कृति के पक्षधर लोगों के कंधों पर है।

दर्शकों से खचाखच भरे हॉल में तालियों की गड़गड़ाहट के बीच 17 जनवरी 1953 को सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किए गए। आगरा के सारंगीवादक उस्ताद इस्माइल ख़ान और सरोदवादक उस्ताद उमर खाँ ने अपना कार्यक्रम प्रस्तुत किया। कानपुर से आए मज़दूरों के कला-पथक ने ‘बिरहा’ की प्रस्तुति दी। आगरा इप्टा ने एकांकी ‘पहेली’, नृत्यनाटिका ‘सौदागर’ का प्रदर्शन किया। लखनऊ इप्टा ने फसल-नृत्य तथा रज़िया सज्जाद ज़हीर द्वारा लिखित एकांकी का मंचन सांस्कृतिक महोत्सव में किया।(1953 में ही रिहाफ़-ए-आम क्लब लखनऊ में प्रेमचंद की प्रसिद्ध कहानी ‘ईदगाह’ के रज़िया सज्जाद ज़हीर द्वारा किए गए नाट्य रूपांतरण का जब मंचन किया गया था, जिसके निर्देशक अमृतलाल नागर थे, इसे ‘ड्रामेटिक परफॉरमेंस एक्ट’ के तहत लखनऊ ज़िला प्रशासन द्वारा नाटक के प्रदर्शन के वक़्त रोकने का फ़रमान जारी किया था, बावजूद इसके दर्शकों के समर्थन से नाट्य प्रस्तुति की गई थी। – अनुवादक)

18 जनवरी 1953 के प्रतिनिधि-सत्र में उत्तर प्रदेश तथा शेष भारत की कला, संस्कृति और कलाकारों की अवस्था के साथ-साथ जन-कलाकारों के सामने उपस्थित आवश्यक कार्यों संबंधी नीतिगत प्रस्ताव पारित किए गए। उसी तरह तत्कालीन परिस्थितियों के अनुसार प्रदेश में कार्यरत इप्टा की इकाइयों के भावी संभावित संगठनात्मक ज़िम्मेदारियों पर प्रस्ताव भी मंज़ूर किया गया। लोककला के संरक्षण के लिए अपनी जान गँवाने वाले शहीदों को तथा डॉ. रशीद जहाँ की स्मृति को श्रद्धांजलि अर्पित की गई।
शांति बनाए रखने की कोशिश तेज़ करने, सेन्सरशिप तथा 1876 के नाट्य-प्रस्तुति प्रतिबंधक क़ानून का विरोध करने, गैरलाभकारी संगठनों के लिए मनोरंजन कर माफ़ करने, जनता को गुमराह करने वाली स्तरहीन फ़िल्मों पर रोक लगाने जैसे अमल किए जाने वाले प्रस्ताव मंज़ूर किए गए।


अंत में उत्तर प्रदेश इप्टा की नई राज्य कार्यकारिणी समिति का चुनाव हुआ। अमृतलाल नागर (अध्यक्ष), रज़िया सज्जाद ज़हीर तथा गोकुलचन्द्र रस्तोगी (उपाध्यक्ष), राजेंद्र रघुवंशी(महासचिव), साहेब सिंह मेहरा, बाबूलाल वर्मा और मोहन उपरेती (संयुक्त सचिव) पदाधिकारी निर्वाचित हुए। स्थानीय बंगाली क्लब तथा लोकायतन कला केंद्र ने उक्त सम्मेलन की सफलता में योगदान दिया। राज्य समिति का समूचा काम आगरा से संचालित किया गया था।