(स्वतंत्रता-पूर्व के भारत के साम्राज्यवादविरोधी सांस्कृतिक-राजनीतिक आंदोलन को एक नई और मज़बूत दिशा देने वाले पी सी जोशी 1935 में मात्र 28 साल की उम्र में कम्युनिस्ट पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव बनाए गए। “जोशी ऐसे साम्यवादी थे, जिन्हें कलाकारों, लेखकों, वैज्ञानिकों, बौद्धिक संपदा की जानकारी थी। वे अपने दल को देश के प्रमुख बुद्धिजीवियों से जोड़ने लगे। इंडियन पीपल्स थिएटर एसोसिएशन (इप्टा) के गठन में वे अग्रदूत थे। बिखरे हुए कलाकारों, गायकों, नर्तकों, कवियों एवं नाट्यकारों को समेटकर उन्होंने एक ऐसा संगठन बनाया, जैसा पहले नहीं था और बाद में भी नहीं हुआ।” (पी सी जोशी : एक जीवनी, लेखिका : गार्गी चक्रवर्ती, हिन्दी अनुवाद – नवीन चौधरी के प्राक्कथन से उद्धृत।)
पी सी जोशी ने शहरी बुद्धिजीवियों, संस्कृतिकर्मियों को ग्रामीण जनता से जोड़ने, उन्हें लोक-जीवन के नज़दीक लाने के लिए कई प्रकार की योजनाएँ बनाईं तथा उन पर काम भी किया। लोकगीतों का संग्रह करना उनके इसी तरह के काम का एक महत्वपूर्ण हिस्सा था। वामपंथी लेखक रमेशचन्द्र पाटकर द्वारा लिखित एवं संपादित मराठी पुस्तक ‘इप्टा : एक सांस्कृतिक चळवळ’ (इप्टा : एक सांस्कृतिक आंदोलन) में संकलित पी सी जोशी का पत्र एवं उससे संलग्न प्रपत्र लोकसंस्कृति के प्रति उनके विचारों और कार्यों का अक्स प्रस्तुत करता है। इप्टा के दस्तावेज़ीकरण की परियोजना के तहत इसका हिन्दी अनुवाद किया है उषा वैरागकर आठले ने। सभी फोटो गूगल से साभार।)

26 फ़रवरी 1954
कम्युनिस्ट पार्टी , 4, हसन बिल्डिंग, लखनऊ
प्रिय सुधि प्रधान,
मैं लोकसंगीत विषयक जिस परियोजना पर काम कर रहा हूँ, उससे संबंधित प्रपत्र इस पत्र के साथ संलग्न कर रहा हूँ। मुझे आशा है कि इस विषय और काम में आपकी भी दिलचस्पी होगी और आप इस काम में उत्सुकता और तत्परता के साथ मुझे सहयोग देंगे।
लोकगीतों के चयन की ज़िम्मेदारी मैं आप पर सौंप रहा हूँ। इस परियोजना के लिए आपको उचित लगने वाले परंपरागत तथा आधुनिक बंगाली लोकगीत चुनकर आप कल्पना (पी सी जोशी की जीवनसाथी) के पास भेजें। उनकी एक प्रति वह अनुवादक को और दूसरी प्रति मुझे भेज देगी। हरेक गीत के साथ आवश्यक जानकारी भी दीजियेगा।
कृपया मुझे सूचित करें कि आप इस संदर्भ में क्या कर सकेंगे और इस काम को कितनी जल्दी पूरा कर पाएँगे। अगर आपको चयन करने में कोई दिक़्क़त हो तो राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय या फिर बंगाल के अकाल अथवा बंग-विभाजन संबंधी कोई भी आधुनिक गीत लेकर उसका अनुवाद किया जा सकता है। आप मुझे इस तरह की मदद भी कर सकते हैं।
आशा करता हूँ कि आप जल्दी ही इस बाबत मुझे सूचित करेंगे।
अभिवादन सहित
हस्ताक्षर/पी सी जोशी
(भारत की कम्युनिस्ट पार्टी के पूर्व महासचिव)

भारतीय लोकगीत एकत्र करने संबंधी
(1) मुंबई के ‘पीपल्स पब्लिशिंग हाउस’ के लिए भारतीय लोकगीतों पर एक खंड के प्रकाशन के लिए मैं लोकगीत एकत्रित कर रहा हूँ। उनका संपादन और अंग्रेज़ी अनुवाद भी कर रहा हूँ। यह काम मैंने निम्नलिखित बिन्दुओं पर विचार करने के लिए शुरू किया है :
(आ) अपने विचारधारात्मक संघर्ष में लोकतांत्रिक तत्वों को मज़बूत करने के लिए लोकसंस्कृति को पुनर्जीवित करना तथा उसे लोकप्रिय बनाने का काम बहुत ज़रूरी है। लोकसंस्कृति का अध्ययन करने और उसमें एकसूत्रता स्थापित करने के काम में हम बुद्धिजीवी वर्ग को जितना सक्रिय कर सकेंगे, उतनी ही उनकी लोकतांत्रिक चेतना भी मज़बूत होगी। वे अपने लोगों के बारे में अधिक सीख और जान-समझ पाएँगे और बहुरंगी-बहुढंगी (cosmopolitan) पुनरुज्जीवनवादी प्रवृत्तियों के विरुद्ध अपनी भूमिका के निर्वाह के लिए अधिक सक्षम होंगे।
(आ) भारत की किसी भी भाषाभाषी जनता द्वारा अगर अन्य भाषिक समूहों के लोकसाहित्य को ग्रहण किया जाएगा तो उससे सभी भाषाभाषी समूहों की जनता में वृथा अभिमान का जो पूर्वाग्रह है, उसे कमज़ोर करने में मदद मिलेगी। जिससे हरेक भाषाभाषी समूह की जनता द्वारा हासिल की गई उपलब्धियों को जानकर प्रत्येक भाषिक समूह परस्पर एकदूसरे को समझ सकेगा।
(इ) पाश्चात्य और समाजवादी दुनिया के पाठकों को ये लोकगीत (तथा लोकनृत्य भी) भारतीय लोकसंस्कृति के बारे में ज़्यादा जानकारी प्रदान करेंगे। भारत के विषय में दुनिया भर में ज़बर्दस्त जिज्ञासा जागृत हुई है। ऐसे समय में भारतीय लोकगीतों के संग्रह का विदेश में गर्मजोशी के साथ स्वागत किया जाएगा।
मैं उम्मीद करता हूँ कि, आप मेरे मतों से सहमत होंगे तथा अपने-अपने प्रदेश के लोकसंगीत का बेहतरीन और प्रतिनिधि संग्रह तैयार करने के काम में आप मेरी मदद करेंगे। आप जानते हैं कि इस तरह का बड़ा काम कोई भी व्यक्ति अकेला नहीं कर सकता। आप जैसे दोस्तों और कामरेड्स के स्वतःस्फूर्त सहयोग की क्षमता पर विश्वास करते हुए मैंने यह वृहद् काम हाथ में लिया है।
हिन्दी और अंग्रेज़ी की पुरानी पत्र-पत्रिकाओं के ख़ज़ाने में उपलब्ध लोकगीतों का और उनसे संबंधित जानकारी का मैं अध्ययन कर रहा हूँ। साथ ही इस विषय के जानकार और विभिन्न भाषाओं के जानकार व्यक्तियों की भी मदद ले रहा हूँ।

पारंपरिक और आधुनिक
(2) मैं पारंपरिक और आधुनिक लोकगीत इकट्ठा कर रहा हूँ। हालाँकि यह स्वाभाविक है कि आधुनिक लोकगीतों की अपेक्षा पारंपरिक लोकगीत को प्राथमिकता दे रहा हूँ। कुछ लोगों का मानना है कि पारंपरिक लोकगीत दरअसल पारंपरिक काव्य ही है। मैं उनसे सहमत हूँ।
लोकगीतों की भाषा और लोक-जीवन संबंधी अपने अनुभवों को कोई अगर लोकगीतों के रूप में आधुनिक विचार की तरह व्यक्त करता है, तो उसे भी मैं अपने संग्रह में सम्मिलित करना चाहूँगा। जिन्हें प्रगतिशील कविता कहा जाए, ऐसे गीत बहुत कम मिलते हैं। कई गीतों में राजनीतिक घोषणाओं का महज़ पद्यात्मक रूप ही मिलता है। यह बात सच होने के बावजूद अगर ये गीत अच्छा काव्य होंगे और उनकी भाषा और लोकगीत का स्वरूप खाँटी होगा, तो उन्हें भी मैं अपने संग्रह में सम्मिलित करना चाहूँगा।
विषय
(3) प्रत्येक भाषा में निम्नलिखित विषयों पर कम से कम एक लोकगीत (और वह भी जाना-पहचाना हो तो बेहतर होगा) और संभव हो तो ज़्यादा से ज़्यादा लोकगीतों की मुझे ज़रूरत है :
(अ) लोकसंस्कृति पर केंद्रित, अर्थात् जैसे ‘ढोल’ संबंधी लोगों की क्या कल्पना है या ‘बिहु गीत’ पर असम के लोग या फिर ‘बिरहा’ पर ओड़िशा के लोग क्या महसूस करते हैं – इस जानकारी की ज़रूरत होगी।
(आ) ज़मीन/भूमि और प्रकृति : भूमि और प्राकृतिक दृश्यों के प्रति प्रेम। ये गीत दो प्रकार के हैं : राष्ट्रीय चेतना की जागृति से पूर्व के गीत और राष्ट्रीय चेतना जागृत होने के बाद के गीत। प्रकृति के प्रति प्रेम व्यक्त करने वाले और स्थानीय जन-जीवन को प्रभावित करने वाले तत्वों का वर्णन करने वाले गीत।
(इ) लोक और सामाजिक व्यवस्था : अपनी पीड़ा और महत्वाकांक्षाओं को व्यक्त करने वाले तथा सामाजिक व्यवस्था में बदलाव लाने के लिए कटिबद्ध गीत, जिन्हें लोग गाते रहे हैं। उदाहरण के लिए, विविध जातियों के गीत, सामाजिक संबंधों को अभिव्यक्त करने वाले गीत, पारिवारिक जीवन के विविध पहलुओं और अंगों पर आधारित गीत, विवाह, जन्म आदि अवसरों पर गाए जाने वाले गीत।
(ई) प्रेम और सौंदर्य
(उ) श्रमगीत : विभिन्न प्रकार का श्रम करते हुए गाए जाने वाले गीत। उदाहरण के लिए, खेतों को जोतते हुए, बुआई करते हुए, रोपते हुए तथा कटाई करते हुए गाए जाने वाले गीत, चरवाहा गीत, सिर पर बोझा ढोने वाले तथा सामान एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने वाले हमालों के गीत, नाविकों के गीतों के अलावा श्रम-प्रक्रिया और मेहनतकशों के जीवन-अनुभवों और उनकी इच्छा-आकांक्षाओं का वर्णन करने वाले गीत।
(ऊ) राष्ट्रीय गीत : राष्ट्रीय भावना व्यक्त करने वाले गीत :
- 1920 के आंदोलन से पूर्व अत्यंत लोकप्रिय ब्रिटिश विरोधी गीत।
- 1920 से 1930 के आंदोलनों के बारे में लोकप्रिय हुए गीत।
- विशेष गीत – जैसे – पुलिस का ज़ुल्म या लगान अधिकारियों के कर-वसूली संबंधी जुल्मों के गीत।
- राष्ट्र-निर्माण करने वाली उल्लेखनीय घटनाओं के विभिन्न प्रदेशों के गीत।
- 15 अगस्त 1947 के बाद कांग्रेसविरोधी प्रभावशाली गीत।
(ए) अंतरराष्ट्रीय गीत : वैश्विक संघर्ष के प्रभाव को व्यक्त करने वाले गीत, उदाहरण के लिए – युद्ध या सेना में भर्ती संबंधी गीत, सोवियत संघ, चीन, कोरिया, औपनिवेशिक संघर्ष में एकजुटता दर्शाने वाले गीत आदि आदि।
अनुवाद तथा पाद टिप्पणियाँ : मूल गीत के साथ हिन्दी या अंग्रेज़ी में लगभग शब्दशः अनुवाद भेजें। बाद में मैं उनका पद्य या गद्य में रूपांतरण करूँगा। स्थानीय नाम, भाषा एवं बोली, रीतिरिवाज़ संबंधी पाद टिप्पणियाँ अवश्य दें।
हरेक गीत के साथ निम्नलिखित जानकारी देवें –
- पारंपरिक है या आधुनिक
- परिचित है या अपरिचित
- जिस लोकगीत का प्रकार हो, उसका नाम तथा उसका महत्व
- गीत की लोकप्रियता और उसका सामाजिक कार्यों पर प्रभाव
- अन्य आवश्यक जानकारी
(4) इन कमियों को दूर करना होगा :
उपलब्ध और प्रकाशित लोकगीतों के संग्रहों के अधिकांश गीत प्रकृति और सौंदर्य पर केंद्रित हैं। इनमें श्रमगीत और राजनीतिक गीत काफ़ी कम पाए जाते हैं। जो हैं भी, वे काफ़ी कमज़ोर हैं। मेरा अनुरोध है कि अन्य विषयों के साथ-साथ आप लोग श्रम, सामाजिक तथा राजनीतिक गीतों पर ज़्यादा ध्यान दें।
(5) कुछ ही गीत क्यों न हों, मगर जल्दी भेजें :
एकसाथ सब गीत इकट्ठा कर भेजने का कृपया न सोचें। जो और जितने भी गीत मिलते जाएँगे, आप मुझे भेजते जाइएगा। इससे मुझे बड़ी सहायता मिलेगी।


समूची सामग्री जल्दी से जल्दी, मार्च महीने के पहले तक मुझे भेज दें, ताकि मैं प्रकाशक को मई महीने के आरंभ में भेज दूँ। आप जितना जल्दी भेज सकेंगे, उतना बेहतर होगा।