(अस्वस्थता के कारण लंबी चुप्पी के बाद फिर एक बार अपने कलात्मक अनुभवों को साझा करने की शुरुआत कर रही हूँ। कुछ फोटो गूगल से साभार लिए गये हैं। कुछ फोटो और वीडियो कार्यक्रम के दौरान मेरे मोबाइल कैमरे से लिए गए हैं।)
नेस्को मुंबई में THESIA Enterprise और ब्लैक टाई द्वारा लियोनार्डों दा विंची (1452-1519) की पेंटिंग्स और उनके ज्ञान-विज्ञान संबंधी कार्यों पर आधारित एक ‘इंटरैक्टिव इमर्सिव एक्सपीरियंस’ की डेढ़ घंटे की प्रस्तुति देखी। यह ‘अवार्ड-विनिंग आर्ट शो’ लियोनार्डों दा विंची के व्यक्तित्व-कृतित्व एवं उनकी वैज्ञानिक खोजों और विचारों पर केंद्रित है। सबसे पहले लगभग 10 मिनट की एक डाक्यूमेंट्री दिखाई जाती है, जिसमें विंची के न केवल चित्रों के बारे में, बल्कि प्रकृति और उसके नियमों के बारे में उनकी जिज्ञासाओं और उनके द्वारा लिए गए नोट्स की नोटबुक्स-छवियाँ भी दिखाई गई हैं।
इस कार्यक्रम में इतिहास, कला, विज्ञान और टेक्नोलॉजी की मदद से पैरों के नीचे की ज़मीन से लेकर छत तक लाइट, साउंड और निरंतर गतिमान जादुई आकृतियों के बीच एक ‘स्पेस’ में ख़ुद को विचरते देखना-महसूस करना अनोखा अनुभव था। डिजिटल टेक्नोलॉजी और AI के विस्मयकारी कारनामों के बीच उस बड़े कमरेनुमा स्पेस में ख़ुद को उस जादुई दुनिया का हिस्सा मानने का अनुभव काफ़ी दिलचस्प रहा। उस हॉल की चार दीवारों, केंद्र में एक छोटे केबिन की चारों ओर की दीवारों, ऊपर की छत, नीचे की ज़मीन पर लियोनार्डों दा विंची के प्रसिद्ध चित्र ‘मोनालिसा’, ‘द लास्ट सपर’ के साथ लगभग 50 मास्टरपीस चित्रों और रेखांकनों की विशाल फोटोग्राफिक छवियाँ, उसके डिटेल्स अलग-अलग कोणों से देखना रोमांचित करता है।
डिजिटल टेक्नोलॉजी और AI की सहायता से एक जादुई एहसास इस शो की विशेषता है कि कुछ ख़ास पलों में दीवारों पर प्रदर्शित चित्रों को हाथ से छूने पर, जिस तरह किसी रंगोली को छूने पर वह बिखरने लगती है, वैसे ही वे चित्र कणों में बिखरने लगते हैं।
अनेक मशीनी क्रियाओं को छूकर देखना, अनेक गतियों के साथ थिरकना, हरेक विशालकाय ‘विज़ुअल’ के अर्थ-संदर्भों को समझने की कोशिश करना, रेखाओं-आकृतियों को मानव-जीवन से ‘रिलेट’ करना काफ़ी मज़ेदार था। बस, एक चीज़ की कमी महसूस हुई कि सभी दृश्यों की गति इतनी ज़्यादा थी कि ठहरकर सोचने या गहराई से महसूस करने का अवकाश नहीं था।
इस कलात्मक अनुभव से मेरी जिज्ञासा एकदम जागृत हो उठी। लियोनार्डो दा विंची को मैं अब तक सिर्फ़ उनके ‘मोनालिसा’ या ‘द लास्ट सपर’ के लिए एक चित्रकार के रूप में जानती थी, मगर उनके द्वारा बनाए गए चित्रों के अलावा वैज्ञानिक दृष्टि से की गई गहन शोधों के दौरान बनाए गए उनके ‘इलस्ट्रेशन्स’ ध्यान आकर्षित कर रहे थे। उनका यह बहुआयामी व्यक्तित्व और कार्य मेरे लिए एकदम नई बात थी।
अद्यतन सुविधा का लाभ लेते हुए मैं गूगल बाबा की शरण में गई और अनेक लेखों, शोधपत्रों के माध्यम से लियोनार्डो दा विंची के तमाम प्रकार के चित्रों के पीछे छिपे हुए उनके जिज्ञासाभरे श्रम को जानने का प्रयत्न किया।
लियोनार्डों दा विंची का मानना था कि चित्रकला के लिए गणितीय ज्ञान आवश्यक है। उन्होंने नदी के प्रवाह और समुद्र की लहरों की गतियों और ध्वनियों का गहरा अध्ययन किया था, उससे संबंधित विस्तृत नोट्स लिए थे। उनके कुछ चित्रों और उनके नोट्स से पता चलता है कि पन्द्रहवीं सदी के इस कलाकार ने अनायास ही कुछ वैज्ञानिक आविष्कारों की कल्पना की थी। उनकी इन कल्पनाओं में पैराशूट, हैलीकाप्टर, बख्तरबंद लड़ाकू वाहन, केंद्रीय सौर ऊर्जा का उपयोग जैसे कई चित्र और आकृतियाँ दिखाई देती हैं।
इस एक्ज़ीबिशन में उनके अनेक जिज्ञासापूर्ण शोधों की त्रिआयामी (Three dimensional) झलक भी मिलती है। विभिन्न प्रकार के वृत्त और चौकोर, त्रिकोण और अन्य ज्यामितीय रंगीन प्रकाशीय आकृतियाँ पूरे स्पेस में अपनी विभिन्न गतियों के साथ चलती हैं, तो कभी ब्रह्माण्ड और सौरमंडल के बीच ले जाती हैं; तो कभी लियोनार्डों दा विंची के तमाम पेंटिंग्स, रेखांकन और उनके नोट्स सभी दिशाओं में दिखाई देते हैं, तो कभी उनमें से रंग और रेखाएँ लयात्मक तरीक़े से झड़ते हुए विलीन होकर कणों में बदलकर बिखर जाते हैं। हिन्दी के प्रसिद्ध कवि गजानन माधव मुक्तिबोध के कविताओं की फैंटेसी के बिंब मुझे बार-बार याद आ रहे थे।
ब्रिटानिका से जानकारी मिलती है कि लियोनार्डो दा विंची चित्रकारों से ऐसी मानव-आकृति का निर्माण करने का आग्रह करते थे, जैसी वह अपनी प्रकृति में मौजूद है। अर्थात् मनुष्य का शरीर मांसपेशियों, कंकाल और अनेक प्रकार के अंगों से मिलकर बना है। इन सबके ऊपर त्वचा लिपटी होती है। अपनी जिज्ञासा के चलते विंची ने शरीर-रचना-विज्ञान का अध्ययन किया। उन्होंने डॉक्टरों के साथ शव-विच्छेदनों में भाग लिया, गर्भस्थ शिशु का अध्ययन किया, यहाँ तक कि, सभी पशुओं की संरचना और उनकी गतिविधियों का अध्ययन कर उसके स्केचेस बनाए और अपने निरीक्षण दर्ज़ किए।
पहले उन्होंने स्थिर शरीर का अध्ययन किया, उसके बाद उन्होंने विभिन्न गतिविधियों में शरीर के अलग-अलग हिस्सों की भूमिका का अध्ययन किया। इन अध्ययनों को उन्होंने बहुत बारीकी के साथ रेखाचित्रों और बिंदीदार रेखाओं में उकेरा है। साथ ही विंची ने मानव-शरीर की संरचना पर ज्यामिति (Geography) के सिद्धांतों को लागू करते हुए बताया कि मानव-आकृति की संरचना का आदर्श अनुपात वृत्त (Circle) और वर्ग (Square) के अनुरूप है। अपने चित्र ‘विट्रूवियन मैन’ में उन्होंने दिखाया कि जब कोई आदमी अपने पैरों को ज़मीन पर मज़बूती के साथ रखकर खड़ा होता है और बाँहें फैलाता है, तो वह एक वर्ग की चार पंक्तियों के भीतर समा सकता है।
उन्हें जीवन भर शरीरशास्त्र (Anatomy), प्रकाशिकी (Optics), प्राणिविज्ञान (Zoology), भूविज्ञान (Geology), वायुगतिकी (Aerodynamics), जलगतिकी (hydrodynamics), इंजीनियरिंग और उड़ने के सिद्धांतों के प्रति गहरी जिज्ञासा और रुचि रही। वे लगातार वैज्ञानिक अध्ययन करते हुए मनुष्य के सौंदर्य और उसकी भावनाओं को अपने चित्रों में बारीकी से चित्रित करते रहे। कहा जाता है कि उन्होंने वैज्ञानिक अध्ययन करते हुए अपनी कल्पना और रेखांकनों के माध्यम से विज्ञान की चारदीवारी का अतिक्रमण किया था।
लियोनार्डो दा विंची वास्तुशिल्पी और इंजीनियर होने के कारण उन्होंने चमगादड़ के आधार पर उड़ने वाली अनेक प्रकार की मशीनों का काल्पनिक आरेखन किया और हरेक चित्र के नीचे संबंधित जानकारी भी लिखी है। आसमान में उड़ने का ख़्वाब उनके दिल-दिमाग़ पर सवार रहता था इसीलिए उन्होंने पक्षियों की उड़ान के आधार पर अनेक उड़ने वाले उपकरणों के रेखांकन बनाए और उससे संबंधित सिद्धांतों को चित्र के नीचे नोट कर दिया। उनकी अनेक नोटबुक्स इस तरह के रेखांकनों और नोट्स से भरी हुई हैं। इन चित्रों में हवाई पेंच (Aerial Screw), पैराशूट, हैलीकाप्टर के लिए शुरुआती मॉडल की तरह दिखने वाली ऑर्निथ्रॉप्टर फ्लाइंग मशीन प्रमुख हैं।
वे प्रकृति के गहरे निरीक्षक थे। उनकी जिज्ञासा और ज्ञान की प्यास कभी शांत नहीं हुई। वे निरंतर निरीक्षण करते, प्रयोग करते और जो कुछ देखते-सोचते, उसे चित्रों और टिप्पणियों में दर्ज करते जाते थे। पानी और वायु की गति और धारा के नियमों, पौधों और पेड़ों के विकास के नियम, प्रकाश और छाया के प्राकृतिक परंतु जादुई प्रभाव, सूर्य, तारों तथा पूरे सौरमंडल से लेकर जीवाश्मों का निर्माण आदि विषयों का उन्होंने लगातार अध्ययन किया और प्राप्त ज्ञान का उपयोग अपने चित्रों में भी किया।
लियोनार्डो दा विंची ने महिलाओं के विभिन्न मुद्राओं के साथ चित्र बनाए, इनमें सबसे प्रसिद्ध ‘मोनालिसा’ है। इसके अलावा वर्जिन मदर मेरी को प्रतिष्ठा प्रदान करने के लिए ‘द वर्जिन ऑफ़ द रॉक्स’ बनाने से पहले उन्होंने माँ और बच्चे की विभिन्न मुख-मुद्राएँ और हाव-भावों को अनेक चित्रों में चित्रित किया। ‘द लेडी विथ ऐन एर्मिन’, ‘मैडोना एंड द चाइल्ड’, ‘द मैडोना ऑफ़ द कार्नेशन’ इसी तरह की अनेक कलाकृतियों में उन्होंने मनुष्य की युवावस्था तथा वृद्धावस्था, सौंदर्य और कुरूपता के फ़र्क़ को वैज्ञानिक दृष्टि से चित्रित करने की कोशिश की। उनका मानना था कि बारीकी से निरीक्षण, उसका बार-बार परीक्षण तथा विषय-वस्तु या घटना का सूक्ष्म विवरण दर्ज़ करने से चित्र ज़्यादा जीवंत बनता है। इन चित्रों में प्रकाशिकी के प्रभावों का उन्होंने काफ़ी कुशलपूर्वक प्रयोग किया है।
लियोनार्डो दा विंची की प्रसिद्ध पेंटिंग ‘द लास्ट सपर’, मिलान के सांता मारिया डेले ग्रेज़ी के भोजन-कक्ष की दीवार पर 1995-1998 के बीच बनायी गई थी। इसमें सीधे दीवार पर पेंट की सतहें रंगने का उनका प्रयास असफल हुआ था। इसके बावजूद इस पेंटिंग को दुनिया की सबसे महत्वपूर्ण, सुंदर और अद्भुत भित्ति चित्र माना जाता है। इस चित्र में ईसा मसीह को अपने बारह प्रेषितों के साथ चित्रित किया गया है। इसमें अंतिम भोज के दौरान ईसा मसीह उन्हें बताते हैं कि उनमें से ही एक विश्वासघात करेगा। उनके इस वक्तव्य से ईसा मसीह के दोनों ओर बैठे तीन-तीन लोगों के चार समूहों में प्रत्येक के चेहरे के सूक्ष्म मनोभाव चित्रित किए गए हैं। विंची ने इस चित्र में प्रत्येक प्रेषित के ‘मन की हलचलें’ नाटकीय तरीक़े से उनके चेहरे के भावों और शारीरिक मुद्राओं से व्यक्त की हैं।
लियोनार्डो दा विंची के बारे में यह सब पढ़ते-देखते हुए उत्सुकता बढ़ रही है कि उनकी नोटबुक्स में दर्ज़ तमाम विवरणों का भी अध्ययन किया जाए! यह ‘इंटरैक्टिव इमर्सिव एक्सपीरियंस’ भले ही बौद्धिक स्तर पर बहुत संपन्न नहीं करता, बल्कि आम लोगों, ख़ासकर युवा पीढ़ी के मनोरंजन को केंद्र में रखकर तैयार किया गया है, मगर मुझ जैसे सामान्य दर्शक की ज्ञानात्मक संवेदना को इसने झकझोर दिया, यह निश्चित है।