(मूल मराठी लेखक प्रकाश बाळ का यह लेख मराठी पत्रिका ‘साप्ताहिक सकाळ’ में दि. 04 मई 2002 को प्रकाशित हुआ था, जिसका हिंदी अनुवाद अजय आठले ने किया और यह 19 मई 2002 को हिंदी साप्ताहिक बयार में प्रकाशित किया गया था।)
प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को उनकी पार्टी ने ही झूठा साबित कर दिया। गुजरात के शिक्षामंत्री का कथन यही सिद्ध कर रहा है। गोवा की आम सभा में वाजपेयी जी ने कहा था कि, ‘यदि गोधरा की घटना नहीं होती तो गुजरात इसतरह दंगों की आग में नहीं जलता।’
परंतु अब गुजरात की उच्चतर माध्यमिक परीक्षा में अंग्रेज़ी के प्रश्नपत्र में पूछे गए एक सवाल पर नई बहस छिड़ गई है। इस संदर्भ में गुजरात की शिक्षा मंत्री आनंदी पटेल ने जो जानकारी पटल पर रखी, उससे प्रधानमंत्री के उक्त कथन की व्यर्थता साबित हो रही है। बात इस प्रकार है – उच्चतर माध्यमिक परीक्षा में अंग्रेज़ी के प्रश्नपत्र में एक प्रश्न था – ‘‘निम्नलिखित वाक्यों को जोड़कर एक वाक्य बनाओ। अंग्रेज़ी में वाक्य थे – There are two solutions, one of them is Nazi solution – if you don’t like people, kill them, segregate them, then strut up and down, proclaim that you are salt of the earth. (आप लोगों को पसंद नहीं करते, तो उन्हें या तो मार डालो, या फिर अलग-थलग कर दो और उसके बाद गर्व से सिर ऊँचा उठाकर घोषणा करो कि हम पृथ्वी का नमक (सर्वश्रेष्ठ) है ।) इसके अलावा एक अन्य प्रश्न था – निम्नलिखित वाक्य सूचनानुसार बदलिये। इस प्रश्न में आठ विकल्प थे। इनमें एक विकल्प था – ‘If you don’t like people, kill them.’ इस वाक्य में ‘इफ’ शब्द हटाकर वाक्य को व्याकरणसम्मत ढंग से लिखने को कहा गया था।
मुसलमान विद्यार्थियों के परीक्षा में बैठने के बारे में विवाद चल ही रहा था कि यह बात सामने आई और शोर मच गया। इस परिप्रेक्ष्य में गुजरात की शिक्षामंत्री आनंदी पटेल ने जो जानकारी दी, वह इस प्रकार है – ‘इस प्रश्नपत्र के पाँच सेट अगस्त में ही तैयार किये जाते हैं। इन पाँचों में से एक सेट ही परीक्षा के लिए चुना जाता है। अतः दंगों के बाद यह प्रश्न प्रश्नपत्र में शामिल किया गया, यह आरोप बेमानी है। आनंदी पटेल शायद समझ नहीं पाईं कि उनकी प्रदान की गई जानकारी से क्या अर्थ ध्वनित हो रहा है!
इस तरह के सवाल यदि अगस्त में ही प्रश्नपत्र में शामिल किये गये थे तो यही मानना पड़ेगा कि आर.एस.एस. भाजपा के माध्यम से संघी विचारधारा के बीज युवा विद्यार्थियों के दिलोदिमाग में बोना चाहती है। अर्थात, मानव संसाधन विकास मंत्री मुरली मनोहर जोशी पाठ्यक्रम परिवर्तन के लिए जो हाथ धोकर पड़े हैं, उच्चतर माध्यमिक परीक्षा में पूछा गया यह प्रश्न इस परिप्रेक्ष्य की कड़ी कहा जा सकता है।
गुजरात के दंगे पूर्वनियोजित थे। बल्कि गोधरा इसका एक निमित्त बन गया। इस परिप्रेक्ष्य में देखा जाए तो ‘गोधरा-कांड न होता तो गुजरात में दंगे न होते’ – वाजपेयी का यह तर्क बहुत कमज़ोर है। इसी तरह का दूसरा बेमानी वक्तव्य वाजपेयी जी ने तत्कालीन प्रधानमंत्री चंद्रशेखर की पचहत्तरवीं वर्षगाँठ के अवसर पर दिया था – ‘गोधरा-कांड के तुरंत बाद यदि संसद में इसके खिलाफ आवाज़ उठाई जाती तो गुजरात में विस्फोट न होता।’ इस वक्तव्य के बारे में वस्तुस्थिति से अवगत हो लें।
गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस के डिब्बे 27 फरवरी को जलाए गए। इसके दूसरे दिन 28 फरवरी को इस वर्ष का केन्द्रीय बजट प्रस्तुत होने वाला था। गोधरा-कांड के कारण संसद में हंगामा होगा और बजट प्रस्तुत करना मुश्किल हो जाएगा, वाजपेयी सरकार को इस बात का डर था। फलस्वरूप 28 फरवरी को इस कांड की सदन में चर्चा ही न हो, इसके लिए वाजपेयी सरकार ने विशेष प्रयास किये थे। इस संदर्भ में विपक्षी पार्टियों से भी अनौपचारिक चर्चा की गई थी। इसके बावजूद भाजपा के ही सांसद विनय कटियार ने संसद में हंगामा मचा दिया। उन्हें मनाने के लिए गृहमंत्री लालकृष्ण आडवानी एवं संसदीय मामलों के मंत्री प्रमोद महाजन ने उनके सामने हाथ जोड़ते हुए कहा – ‘आज बजट प्रस्तुत होने वाला है। सभी देशों की नज़रें हमारे बजट पर टिकी हुई हैं, इसलिए अपनी भावनाओं पर नियंत्रण रखें और सदन का कामकाज शांति से चलने दें।’ इन शब्दों में आडवानी और महाजन ने कटियार को समझाया।
यदि भाजपा को गोधरा-कांड के विरोध की इतनी ही तीव्र इच्छा थी तो बजट प्रस्तुत करने से पूर्व इस विषय का एक प्रस्ताव बनाकर सदन में पास करवाने की कोशिश भाजपा कर सकती थी। उस समय विरोधी पार्टियाँ भी इसका समर्थन ही करतीं। परंतु ऐसा कोई कदम वाजपेयी जी ने नहीं उठाया और अब नरेन्द्र मोदी और विनय कटियार जैसी भाषा प्रधानमंत्री बोल रहे हैं – क्या यह सिर्फ संयोग की बात है?
बेचारे गोविंदाचार्य!
वाजपेयी संघ-परिवार का मुखौटा हैं – यह सच बताने पर, राम के नाम पर चुनी गई भाजपा सरकार ने उन्हें राजनीतिक बनवास के लिए भेज दिया। वे वापस लौटे और गोवा में चल रही राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में उपस्थित हुए और यहीं वाजपेयी जी ने लंबी मारी। यह भी संयोग की बात नहीं है। मुखौटे के रूप में वाजपेयी जी की आवश्यकता जब थी, उसी समय गोविंदाचार्य ने सच बताने का अपराध कर डाला। उसके बाद वाजपेयी जी के मुखौटे का उपयोग बेमानी महसूस कर उनके असली चेहरे को दिखाकर ही आतंक पैदा करना चाहिए, इस निष्कर्ष तक संघ-परिवार जा पहुँचा। इसीलिए वाजपेयी जी ने भी पलटी मारी और गोविंदाचार्य भाजपा की कार्यकारिणी की बैठक में गोवा आ पहुँचे।
भाजपा के मुँह पर वाजपेयी जी का मुखौटा उनकी सहमति से ही पहनाया गया था। वाजपेयी जी सही अर्थों में संघी ही हैं, परंतु एक दाँव-पेंच के रूप में उनकी ‘उदारमतवादी’ प्रतिमा गढ़ी गई थी। इसके लिए वाजपेयी जी की सहमति थी। इसीलिए वाजपेयी जी ने ‘पीछे मुड़’ की मुद्रा अपनाने पर जिनको आश्चर्य हुआ, वे राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के असली स्वरूप से अपरिचित रहे होंगे। संघ-परिवार का असली स्वरूप कैसा है, विश्व हिंदू परिषद के अंतर्गत सचिव डॉ. प्रवीण तोगड़िया द्वारा दिल्ली के अंग्रेज़ी अखबार ‘हिंदुस्तान टाइम्स’ को दिये गये साक्षात्कार से यह बात साफ हो जाती है।
उस साक्षात्कार में तोगड़िया कहते हैं – ‘हिंदू-मुस्लिम समस्या का अंतिम समाधान हम गुजरात में निकालने वाले हैं। इस देश में हिंदुओं का ही शासन रहेगा, मुसलमानों की दादागिरी हम नहीं चलने देंगे। हम मुसलमानों को जो सबक सिखा रहे हैं, उसे वे इस जनम में कभी नहीं भूल पाएंगे। इस देश में यदि रहना है, तो हम चाहेंगे, उसी तरह रहना होगा।’ इस अंतिम समाधान को लागू करने के लिए अहमदाबाद के पालड़ी भाग में स्थित विश्व हिंदू परिषद के कार्यालय में रोज़ शाम को तोगड़िया की अध्यक्षता में नए-नए दाँवपेंच ईजाद किये जाते हैं। दिन भर में अहमदाबाद और गुजरात के अन्य स्थानों पर मुसलमानों को क्या-क्या सबक सिखाया गया, इसकी समीक्षा की जाती है। किस जगह पर कितने मुसलमान हैं, उनमें से किन्हें ‘टारगेट’ बनाना है, इसके बारे में योजना बनाई जाती है। गोधरा-कांड की वीडियो फिल्म एवं अन्य मुसलमान विरोधी प्रचार-सामग्री देश भर में किस तरह भेजी जाए, इस पर विचार-विमर्श होता है।
गुजरात अभी भी जल रहा है क्योंकि इस अंतिम समाधान पर अमल करना जारी है। जैसे ही यह अंतिम समाधान पूर्णता की ओर बढ़ेगा, गुजरात शांत हो जाएगा।
हिंदुओं की सद्भावना के बल पर ही मुसलमान भारत में रह सकते हैं, बल्कि इस देश में रहने वाले सभी नागरिक स्वयं को हिंदू ही कहें – संघ का यही मानना है। गोवा में आयोजित आमसभा में प्रधानमंत्री द्वारा दिया गया वक्तव्य कि, मुसलमानों को नमाज़ अदा करने और ईसाइयों को चर्च जाने से क्या हमने रोका है?’ और उच्चतर माध्यमिक परीक्षा में अंग्रेज़ी प्रश्नपत्र का यह प्रश्न संघ के इच्छित अंतिम समाधान की दिशा दिखाने संबंधी घटना एवं वक्तव्य है।
यदि यह अंतिम समाधान पूरी तरह से अमल में आ गया तो स्वतंत्रता आंदोलन और उसके बाद की अर्द्धशती में हमने जो कुछ हासिल किया है, वह सब कुछ मिट्टी में मिल जाएगा। इसीलिए अंतिम समाधान के अमल का विरोध करना ज़रूरी है।
इसे दुर्भाग्य ही कहा जाए कि समाज के अधिकतर क्षेत्रों के बुद्धिजीवी मुँह सिलकर बैठे हुए हैं। बुद्धि की सार्थकता सर्जनात्मकता में ही होती है और सर्जनात्मकता के लिए मानवीय आधार आवश्यक है। चाहे वह संगीत हो या चित्रकला, नाटक हो या चलचित्र, साहित्य हो या विज्ञान – इनमें से किसी भी क्षेत्र का बुद्धिजीवी यदि मानवीयता को भूल जाए तो वह सच्चे अर्थों में अपने जीवन में भी उच्च स्थान प्राप्त नहीं कर सकता।
आज गुजरात में मानवीयता को ही ग्रहण लग गया है। ऐसे समय में कोई लता मंगेशकर, कोई भीमसेन जोशी या बिस्मिल्ला खाँ, किशोरी आमोणकर या शोभा गुर्टू, रविशंकर या जाकिर हुसैन, कोई अनंतमूर्ति या गिरीश कर्नाड या कमलेश्वर, कोई रतन टाटा या कुमारमंगलम या बिरला को सक्रिय होना चाहिए। सच कहा जाए तो, जो कुछ घट रहा है, उसका तीव्र स्वर में निषेध होना चाहिए था, परंतु सब उल्टा ही हो रहा है! चारों ओर सन्नाटा है। किसी दीपक पारेख को छोड़ दें तो कोई उद्योगपति तक बोलने को तैयार नहीं है। इसीलिए गुजरात में संघ द्वारा अंतिम समाधान पर अमल करने के लिए हिंसा का तांडव नृत्य चल रहा है और मानवीयता जार-जार रो रही है।
जर्मनी में सत्तर वर्ष पूर्व यही घटा था। ‘हमें क्या लेना-देना है’ बुद्धिजीवियों की इसी प्रवृत्ति का फायदा हिटलर ने उठाया था।
भयानक सच! इस लेख को मैंने अब तक पढ़ा ही नहीं था.
बहुत विश्लेषित करता हुआ संघ के चेहरे को नंगा किया गया है.
लोगों को पता चलना चाहिए कि कब से और कैसे देश को बर्बाद होने की कगार पर लेकिन जा रहा है संघ
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