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मध्य प्रदेश में कबीर के प्रेम और श्रम का सन्देश

मध्य प्रदेश में कबीर के प्रेम और श्रम का सन्देश

(‘ढाई आखर प्रेम’ राष्ट्रीय सांस्कृतिक यात्रा आंध्र प्रदेश के बाद मध्य प्रदेश के इंदौर से 22 दिसंबर 2023 को आरम्भ हुई, जो 27 दिसंबर 2023 तक जारी रहेगी। यात्रा के राष्ट्रीय कर्टेन रेज़र के रूप में जिस तरह हथकरघा और खादी को बढ़ावा देने, कला और श्रम के अन्तर्सम्बन्धों को जोड़ने के लिए ‘गमछा शो’ आयोजित किया गया था, उसी तरह समूची यात्रा के मध्य में इंदौर में ‘ताना बाना’ शीर्षक से एक फैशन शो किया गया, साथ ही चर्चा का आयोजन भी किया गया। मध्य प्रदेश के पहले दो दिनों की रिपोर्ट फोटो व वीडियो सहित यहाँ साझा की जा रही है, जिसे लिखा है वरिष्ठ पत्रकार साथी हरनाम सिंह ने। फोटो तथा वीडियो साझा किये हैं दिनेश बासेर, निसार अली, शिवेंद्र शुक्ला, विनीत तिवारी तथा सीमा राजोरिया ने।)

22 दिसंबर 2023 शुक्रवार :

अनेक संगठनों द्वारा आयोजित “ढाई आखर प्रेम” यात्रा के मध्य प्रदेश में हुए शुभारंभ में जन संस्कृति का अनूठा स्वरूप सामने आया। इंदौर के गांधी हाल प्रांगण में 22 दिसंबर 2023 को नाटक, नृत्य, व्याख्यान, पोस्टर, पुस्तक, खादी वस्त्रों की प्रदर्शनी के साथ श्रम के सम्मान की अभूतपूर्व प्रस्तुति हुई। इंदौर के अलावा देवास, मंदसौर, अशोक नगर, छतरपुर, सेंधवा से आए कलाकारों, लेखकों से भरे सभागृह में देश में खादी की दुर्दशा पर चर्चा हुई। कबीर के प्रेम और भाईचारे के संदेश को सुनाया गया। आम जन द्वारा प्रस्तुत फैशन परेड ने सौंदर्य की नई परिभाषा बताई।

खादी की दुर्दशा पर प्रोफेसर कीर्ति त्रिवेदी ने खोजपरक व्याख्यान में सरकार द्वारा किस तरह से खादी के स्वरूप को बदला गया है, उसकी जानकारी दी। उन्होंने बताया कि खादी के नाम पर बिकने वाले वस्त्रों को उद्योगपतियों के हवाले कर दिया गया है।

आजादी के अमृत काल में देश के खादी भंडारों में अब खादी मिलना बंद हो गई है। मिलों में पॉलिएस्टर खादी के नाम पर बने वस्त्रों को बेचा जा रहा है। इन कपड़ों में 67 प्रतिशत पॉलिएस्टर धागे का उपयोग होता है। खादी हाथ से बने वस्त्रों को कहा जाता है, जिससे किसानों, कारीगरों को रोजगार मिलता था।

सरकार ने एक अधिनियम के माध्यम से खादी ग्रामोद्योग संस्था को यह अधिकार दे दिया है कि वह जिस कपड़े को खादी कहे, उसे ही खादी के नाम पर बेचा जा सकता है। गांधी जी ने खादी को गरीबों के साथ जोड़ा था। सरकार ने इसे पूंजीपतियों के साथ जोड़ दिया है। पहले शासकीय विभागों में तृतीय एवं चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों के लिए खादी पहनना अनिवार्य था, जिसे अब समाप्त कर दिया गया है। राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा खादी से ही बनता था। भारत सरकार ने आजादी के अमृत काल में चीन से पॉलिएस्टर के झंडे मंगाने की अनुमति देकर खादी पर निर्मम प्रहार किया है।

श्री त्रिवेदी ने बताया कि देश में खादी समाप्त होने के कगार पर है, जिसके चलते किसान ही नहीं, कताई, बुनाई, रंगाई करने वाले लाखों लोग बेरोजगार हो गए हैं। मध्य प्रदेश में 90 प्रतिशत करघे बंद हैं। बड़ी कंपनियां रेमंड, रिलायंस पॉलिएस्टर युक्त कपड़े को खादी के वस्त्र प्रचारित कर बेच रहे हैं। खादी के प्रमाणीकरण हेतु सरकार भारी भरकम शुल्क वसूलती हैं जिसके चलते आम ग्रामीण खादी के वस्त्र बनाकर बेचने के अधिकार से वंचित कर दिया गया है। श्री त्रिवेदी ने देश में नकली खादी के खिलाफ सत्याग्रह का आव्हान किया।

तत्पश्चात विख्यात भजन गायक पद्मश्री प्रहलाद टिपानिया और उनके साथियों ने कबीर के भजनों की मनमोहक प्रस्तुति और व्याख्या से श्रोताओं का मन मोह लिया। श्री टिपानिया ने कहा कि देश में आपसी दूरियां मिटाने और भाईचारे को बढ़ाने की जरूरत है। “ढाई आखर प्रेम” यात्रा, प्रेम का अलख जगाने का कारवां है। कबीर और संत परंपरा में सदैव श्रम को ही महत्व दिया गया है।

19वीं सदी में मशीनीकरण के दुष्प्रभावों से किस तरह ग्रामीण परिवार प्रभावित हुए थे, उसकी भावुक प्रस्तुति “शांति की कहानी” के माध्यम से फ्लोरा बोस, उजान बनर्जी, सुमेर राजू और गुलरेज ने की।

इंदौर में चरखे से सूत कातने का प्रशिक्षण देने वाली कस्तूरबा गांधी आश्रम की पदमा ताई एवं 30 हजार महिलाओं को खादी से जोड़ने वाली बाड़मेर राजस्थान की रूमा देवी का सम्मान किया गया।

आयोजन का अंतिम कार्यक्रम फैशन शो था जिसमें महेश्वर में निर्मित साड़ियों का प्रदर्शन उन्हीं महिलाओं द्वारा किया गया जो स्वयं साडियां बनाती हैं ।

इसके अलावा गांधी जी के प्रिय “भजन वैष्णव जन ते तेने कहिए” की पृष्ठभूमि में ट्रांसजेंडर, घरेलू महिलाओं और हर वर्ग, हर आयु के आम लोगों ने इस परेड में भाग लेकर सौंदर्य की परिभाषा को नया रूप दिया।

अपने संबोधन में शो के निर्देशक फैशन डिजाइनर प्रसाद बिडपा ने इंदौर की जनता के सौंदर्य बोध की सराहना करते हुए लोगों से अनुरोध किया कि वह आंशिक रूप से ही सही, खादी और हाथ से बने वस्त्रों को अवश्य खरीदें।

कार्यक्रम में शोभा गुर्टू के गीत “रंगी सारी गुलाबी चुनरिया, मोह मारे नजरिया सांवरिया” पर अदिति मेहता ने तथा “कांटों से खींच के ये आंचल” पर पिंकल ने मनमोहक नृत्य प्रस्तुत किया।

इंदौर इप्टा की अध्यक्ष जया मेहता ने बताया कि इस आयोजन से खूबसूरती को देखने और समझने का नया नज़रिया सामने आया है। इसमें प्रसाद बिडपा की बड़ी भूमिका रही है। आयोजन में प्रगतिशील लेखक संघ मंदसौर इकाई द्वारा प्रकाशित पुस्तिका “ताकि, जागें लोग” का विमोचन श्री प्रहलाद टिपानिया द्वारा किया गया।

कार्यक्रम का संचालन करते हुए प्रगतिशील लेखक संघ के राष्ट्रीय सचिव विनीत तिवारी ने ‘ढाई आखर प्रेम’ यात्रा के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि इस यात्रा में मजदूरों, किसानों, कारीगरों से चर्चा कर हम उनसे सीखने का प्रयास करेंगे। उन्होंने आयोजन के सहयोगी अनेक संगठनों, सहयोगकर्ताओं का आभार माना। आयोजन स्थल पर अशोक नगर के पंकज और इंदौर की रूपांकन संस्था द्वारा पोस्टर प्रदर्शनी लगाई गई थी। परिसर में पुस्तकों और खादी, हैंडलूम वस्त्रों के स्टॉल भी लगाए गए थे।

23 दिसंबर 2023 शनिवार :

अनेक जन संगठनों द्वारा आयोजित “ढाई आखर प्रेम” यात्रा 23 दिसंबर को औद्योगिक क्षेत्र पीथमपुर से होती हुई संघर्ष की भूमि ठीकरी, पिपलोद एवं बड़वानी पहुंची। नर्मदा परियोजना से विस्थापित, सेंचुरी मिल बंद होने से बेरोजगार श्रमिकों के इस क्षेत्र में दर्द, पीड़ा, संत्रास और संघर्ष की अनेक कहानियां हैं ।

यात्रा के पहले पड़ाव में पीथमपुर के गुरु तेग बहादुर उद्यान में श्रमिकों के बीच छतरपुर इप्टा के शिवेंद्र और उनके सहयोगी लखन अहिरवार, अभिदीप सुहाने, अनमोल चतुर्वेदी ने राजेश जोशी की कविता “मारे जाएंगे”, तद्पश्चात कबीर की रचना “काया का क्यों कर गुमान, काया तेरी माटी की” का गायन किया।

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उसके बाद प्रगतिशील लेखक संघ मंदसौर इकाई के निखिलेश शर्मा असअद अंसारी, हूरबानो सैफी, दिनेश बसेर ने दुष्यंत कुमार की गजल ” हो गई है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए…” का गायन किया गया। नाट्य प्रस्तुति में छत्तीसगढ़ी नाचा-गम्मत के विख्यात कलाकार निसार अली ने लोक भाषा में “कृपा बरसेगी” एकल नाटक के माध्यम से दर्शकों को गुदगुदाया।

इंदौर इप्टा इकाई द्वारा गुलरेज खान के निर्देशन में हरिशंकर परसाई की कहानी “सदाचार का ताबीज” की नाट्य प्रस्तुति भी हुई। जिसमें तौफीक, अथर्व, विवेक, नितिन, समर, उजान ने भाग लिया।

पीथमपुर से यात्रा ग्राम ठीकरी पहुंचीं। बिड़ला के उद्योग सेंचुरी रेयान के बंद होने से बेरोजगार श्रमिकों में से एक राजेश खेते परिवार के होटल में यात्रियों ने दाल-बाटी का भोजन किया। आंदोलन कार्यकर्ताओं द्वारा निर्धारित आयोजन स्थल पर बड़ी तादाद में महिलाओं की उपस्थिति में प्रलेसं के राष्ट्रीय सचिव विनीत तिवारी ने कहा कि यहां की जनता ने अपना रोजगार बचाने के अधिकार के लिए संघर्ष किया है। अब प्रेम को बचाने के संघर्ष की जरूरत है। मोहब्बत के दुश्मन बहुत हैं।

यात्रा के उद्देश्य की जानकारी देते हुए उन्होंने कहा कि सांस्कृतिक गतिविधियों के माध्यम से भी अधिकारों के लिए संघर्ष करने की जरूरत बनी हुई है। दुनिया को बेहतर बनाने के प्रयासों और अपने बच्चों को बेहतर भविष्य देने के लिए जरूरी है कि सत्ता मेहनतकश लोगों के हाथ में हो।

यहां सांस्कृतिक प्रस्तुति में शिवेंद्र और उनके साथियों ने राजेश जोशी की रचना “जो इस पागलपन में शामिल नहीं होंगे मारे जाएंगे” तथा पीयूष मिश्रा के गीत “कौन हैं हम और हम आए कहां से, क्या है हमारा ठिकाना” तथा कबीर की वाणी “काया का क्यों रे गुमान, काया तेरी माटी की” के अलावा बिस्मिल के विख्यात गीत “सरफरोशी की तमन्ना” का गायन भी किया। निसार अली की नाटक प्रस्तुति “एकता में ताकत” एवं “सदाचार का ताबीज” का मंचन भी हुआ। आभार आंदोलन के प्रमुख मुकेश भाई ने माना।

रात्रि में यात्रा ग्राम पिपलूद पहुंची, यात्रा का मंदिर परिसर में स्वागत हुआ। यहां अशोक नगर इप्टा के कलाकार सीमा राजोरिया, कबीर, रतनलाल पटेल ने हरिओम राजोरिया के निर्देशन में संत कबीर की रचना “साधु देखो जग बौराना”, ”पानी बीच मीन प्यासी” तथा ”मोको कहां ढूंढे रे बंदे” की संगीतमय प्रस्तुति दी।

आंदोलन के कलाकार कैलाश ठाकुर, प्रणेश यादव ने “कहानी राम की…” के साथ आंदोलन के प्रमुख गीत “सवाल लेके आए हैं, जवाब लेके जाएंगे” गाकर श्रोताओं में जोश भर दिया। उन्होंने श्रोताओं की मांग पर “मां रेवा तेरा पानी अमृत.. गीत प्रस्तुत किया। निसार भाई ने “चालाक शिकारी” की नाट्य प्रस्तुति की। यात्रा यहां से ग्राम बड़वानी पहुंची जहां गुरुद्वारा परिसर में भोजन का इंतजाम था। रात्री विश्राम यहीं पर था।

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