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कर्नाटक में ‘ढाई आखर प्रेम’ यात्रा : दूसरी और अंतिम कड़ी

कर्नाटक में ‘ढाई आखर प्रेम’ यात्रा : दूसरी और अंतिम कड़ी

(‘ढाई आखर प्रेम’ राष्ट्रीय सांस्कृतिक यात्रा के तहत विभिन्न राज्यों में उस-उस राज्य के सामाजिक-सांस्कृतिक ताने-बाने को जानने-समझने के लिए एक से सात दिनों की यात्रा की जा रही है। 28 सितम्बर से 02 अक्टूबर 2023 तक राजस्थान में, 03, 04, 05 व 06 अक्टूबर को क्रमशः छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, झारखण्ड और उत्तर प्रदेश में एक-एक दिन, 07 अक्टूबर से 14 अक्टूबर तक बिहार, 27 अक्टूबर से 01 नवम्बर तक पंजाब, 31 अक्टूबर से 03 नवम्बर तक उत्तराखंड, 04 नवम्बर ओडिशा, 18 नवम्बर से 23 नवम्बर तक उत्तर प्रदेश की यात्राओं के बाद 01 से 07 दिसंबर 2023 तक कर्नाटक में यात्रा संपन्न हुई।

कर्नाटक में यात्रा दो हिस्सों में की गयी – पहले हिस्से में बंगलुरु के समुदाय और रागी काना समूहों ने 01 से 03 दिसंबर तक बंगलुरु के विभिन्न हिस्सों में पदयात्रा की, तो दूसरे हिस्से में इप्टा ने अन्य संस्थाओं के साथ मिलकर 02 से 07 दिसंबर 2023 तक दक्षिण कन्नड़ क्षेत्र में सांस्कृतिक यात्रा संपन्न की। दक्षिण कन्नड़ क्षेत्र की इस यात्रा की विशेषता यह रही कि समाज के अनेक वर्गों, समूहों – मछुआरों, किसानों, आदिवासियों, मज़दूरों, महिलाओं, विद्यार्थियों, सहकारी समिति एवं ग्रामीण उद्योग चलाने वाले छोटे व्यवसायियों, साहित्यकारों, कलाकारों, धार्मिक समुदायों आदि के साथ संवाद किया गया। इसी तरह धुर ग्रामीण क्षेत्रों के साथ शहरों और मंगलुरु जैसे बड़े शहरों में भी जन-संस्कृति के विभिन्न पहलुओं का निरीक्षण किया गया। पिछली कड़ी में आपने पढ़ा इस क्षेत्र की प्रथम दो दिनों की पहली रिपोर्ट और इस कड़ी में अन्य चार दिनों की रिपोर्ट की दूसरी एवं अंतिम कड़ी प्रस्तुत है, जिसे अंग्रेज़ी में उपलब्ध कराया है मंगलुरु कर्नाटक के साथी डॉ बी श्रीनिवास कक्किलाया ने। फोटो और वीडियो भी उन्होंने ही भेजे हैं। हिंदी अनुवाद किया है उषा वैरागकर आठले ने।)

तीसरा दिन 4 दिसंबर 2023, सोमवार
सुबह 9.30 बजे – नाटेकल में छात्रों के साथ बातचीत :

दिन की शुरुआत नाटेकल में हाई स्कूल के 500 से अधिक छात्रों के साथ बातचीत से हुई। प्रसन्ना ने वैश्विक परस्पर संबंधों के बारे में बात की और बताया कि वर्षों से चले आ रहे ये रिश्ते किस तरह बदल रहे हैं। उन्होंने छात्रों से ज़मीनी स्तर पर जुड़े रहने, दयालु होने, अपने सपनों को साकार करने और आधुनिक मशीनों की बजाय आसपास की वास्तविकता से जुड़ने का आग्रह किया। डॉ. सिद्दानगौड़ा पाटिल और अन्य लोगों ने भी बातचीत में भाग लिया और इप्टा के यात्रियों ने प्रेम और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के गीत गाए।

सुबह 11 बजे – मंगलागंगोत्री – मैंगलोर विश्वविद्यालय :

मैंगलोर विश्वविद्यालय के एसवीपी कणंद अध्ययन केंद्र द्वारा भारतीय संत परंपराओं पर प्रसन्ना का एक व्याख्यान-सह-संवाद आयोजित किया गया था।

प्रभारी कुलपति प्रो जयराज अमीन ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की। एसवीपी कणंद अध्ययन केंद्र के अध्यक्ष सोमन्ना, प्रोफेसर सबिहा भूमिगौड़ा, प्रोफेसर शिवराम शेट्टी के अलावा अन्य कर्मचारी और छात्र भी कार्यक्रम में शामिल हुए।

दोपहर 12.30 बजे – असाइगोली : सहकारी आंदोलन के बारे में बातचीत :

जत्था असाईगोली पहुँचा, जहाँ कोनाजे ग्राम पंचायत के पूर्व अध्यक्ष शौकत अली ने कोनाजे उपभोक्ता सहकारी समिति और दूध उत्पादक महिला सहकारी समिति के सदस्यों और पदाधिकारियों के साथ-साथ कोनाजे की आशा कार्यकर्ताओं के साथ बातचीत आयोजित की थी। डॉ. सिद्दानगौड़ा पाटिल, अमजद, शनमुखस्वामी और अन्य ने बातचीत में भाग लिया।

शाम 4.00 बजे कोनाजे युवक मंडल :

जिले के प्रमुख सामाजिक कार्यकर्ता श्री इब्राहिम कोडिजल द्वारा कोनाजे युवक मंडल के तत्वावधान में युवाओं के साथ एक बातचीत का आयोजन किया गया था। डॉ. सिद्दानगौड़ा पाटिल, अमजद, शण्मुखस्वामी और अन्य ने बातचीत में भाग लिया।

चौथा दिन – 5 दिसंबर 2023, मंगलवार
सुबह 9.30 बजे से दोपहर 1 बजे तक – मुदिपु जन शिक्षण ट्रस्ट :

जन शिक्षण ट्रस्ट, मुदिपु वर्षों से ग्रामीण जनता, विशेषकर सबसे पिछड़े कोरगा आदिवासी समुदाय और महिला सशक्तिकरण के लिए ज़बर्दस्त काम कर रहा है। ‘ढाई आखर प्रेम’ जत्था का स्वागत अबूबकर जल्ली और सुधीर बालेपुनी के नेतृत्व में नालिके (लोक नृत्य) मंडली ने ढोल और डूडी के साथ किया। जन शिक्षण ट्रस्ट की समन्वयक शीना शेट्टी ने यात्रियों का औपचारिक स्वागत किया और ट्रस्ट की गतिविधियों का परिचय प्रदान किया। सदस्यों और लाभार्थियों ने अपनी गतिविधियों का विवरण प्रस्तुत किया, अपने कौशल का प्रदर्शन किया और गीत भी प्रस्तुत किये। प्रसन्ना, डॉ. सिद्धनागौड़ा पाटिल और अन्य यात्रियों ने बातचीत में भाग लिया। जन शिक्षण ट्रस्ट के समन्वयक कृष्ण मूल्या ने कार्यक्रम का संचालन किया।

चित्तारा बलागा के चंद्रशेखर पथूर, सतीश इरा और नागेश कल्लूर ने जलपान की व्यवस्था की और दोपहर के भोजन की मेजबानी जनजीवन, बालेपुनी के रमेश शेनावा ने की थी। इस कार्यक्रम के समन्वय में शिवप्रसाद अल्वा, इब्राहिम तपस्या और हैदर कैरांगला ने मदद की।

शाम 4 बजे – बंगारागुड्डे – भैरा समुदाय के साथ बातचीत :

भैरा समुदाय के निवास स्थान बंगारागुड्डे तक पहुंचने के लिए जत्था दूरवर्ती ग्रामीण इलाके से गुजरा। डॉ. सिद्दानगौड़ा पाटिल, शनमुखस्वामी, समुदाय कर्नाटक के सीएन गुंडन्ना और अन्य प्रतिभागियों ने आदिवासियों के साथ बातचीत की।

शाम 5.30 बजे – कुलाला संघ, कुर्नाड, मुदिपु :

कुर्नाड के कुलाला भवन में स्वतंत्रता सेनानी, गांधीवादी और सामाजिक कार्यकर्ता स्वर्गीय डॉ. अम्मेम्बल बलप्पा के शताब्दी स्मारक पर श्रद्धांजलि अर्पित की गई।

डॉ. बलप्पा के रिश्तेदार श्री रवींद्रनाथ और डॉ. बलप्पा के पोते तेजस्वी राज ने डॉ. बलप्पा के जीवन और कार्य के बारे में जानकारी दी। अध्यक्षता कुलाला संघ के अध्यक्ष पुण्डरीकाक्ष मूल्या ने की।

इसके बाद कुम्हार सहकारी समिति पुत्तूर के सदस्यों ने मिट्टी के बर्तनों के निर्माण का प्रात्यक्षिक प्रस्तुत किया। दक्षिण कन्नड़ कुलाल एसोसिएशन के अध्यक्ष मयूर उल्लाल, कुम्हार सहकारी समिति, पुत्तूर के क्रमशः अध्यक्ष और ईसीओ भास्कर एम पेरूवई और जनार्धा ने बर्तन बनाने की चुनौतियों और अवसरों पर एक इंटरैक्टिव सत्र आयोजित किया। प्रसन्ना, डॉ. सिद्दानगौड़ा पाटिल और अन्य ने भाग लिया। इसके बाद जाने-माने गायक-कलाकार नाडा मनिनालकूर द्वारा कट्टाला हादुगालु (रात के गीत) का प्रदर्शन किया गया।

पांचवाँ दिन – 6 दिसंबर 2023, बुधवार
सुबह 10 बजे हुहाकुवा कल्लू :

मुदिपु के पास हुहाकुवा कल्लू में फूल फेंकने वाले मंदिर के दर्शन करके जत्थे के पाँचवें दिन की शुरूआत हुई। किंवदंती है कि कननथूर में दैव (देवता) ऊपर की पहाड़ियों से तटीय क्षेत्र कननथूर में बसने से पहले इसी पत्थर पर बैठे थे।

सुबह 11.30 बजे कनन्थूर श्री थोडुकुक्किनार दैवस्थान :

जत्था कननथूर श्री थोडुकुक्किनार दैवस्थान की ओर रवाना हुआ। किंवदंतियों के अनुसार, ये दैव (देवता) महिलाओं के संघर्ष और विजय के प्रतीक हैं।

जत्थे का स्वागत क्षेत्र के प्रबंध ट्रस्टी श्री देवीप्रसाद पोय्याथाबैल ने किया। दैवस्थान के ‘कंठ’ ने दैवस्थान के देवताओं की कहानी बताते हुए पद-दान या लोककथा प्रस्तुत की। चंद्रहास कननथूर ने किंवदंती के साथ-साथ इसके आसपास के अनुष्ठानों को भी समझाया। परिसर में 800 वर्ष से अधिक पुराना एक आम का पेड़, जो लंबा खड़ा है, श्री देवीप्रसाद पोयथाबैल ने दिखाया। उन्होंने बताया कि उस पेड़ से अब तक एक पत्ता भी नहीं तोड़ा गया है। इसे इसके प्राकृतिक रूप में छोड़ दिया गया है।

बातचीत ग्रामीण मुद्दों, विश्वासों और सतत विकास पर केंद्रित थी। प्रबंध न्यासी एवं प्रबंध समिति की ओर से सभी प्रतिभागियों के लिए दोपहर के भोजन का प्रबंध किया गया।

शाम 4.00 बजे पोय्याथाबेल जुमा मस्जिद और मानवती बीवी दरगा :

यात्री धान के खेतों से होते हुए पोय्याथाबेल जुमा मस्जिद और मानवती बीवी दरगाह पहुंचे। ये बहुत पुराने धर्मस्थान सभी धर्मों के लोगों को आकर्षित करते हैं। मानवती बीवी को सभी गरीबों और वंचितों के उद्धारकर्ता के रूप में माना जाता है। मस्जिद प्रबंधन समिति और स्थानीय लोगों की ओर से इस्माइल टी ने यात्रियों का स्वागत किया। मानवती बीबी दरगाह पर छात्रों द्वारा प्रस्तुत गीत :

छात्रों ने यात्रियों का भव्य स्वागत किया। डॉ. इस्माइल ने इन तीर्थस्थलों की सदियों पुरानी परंपराओं के बारे में बताया, जो क्षेत्र की समन्वित संस्कृतियों को दर्शाती हैं तथा शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व और सद्भाव को भी प्रदर्शित करती हैं। प्रसन्ना ने कर्नाटक और केरल के बीच इस सीमा क्षेत्र में विभिन्न धर्मों, भाषाओं और संस्कृतियों के लोगों के सामंजस्यपूर्ण और शांतिपूर्ण जीवन की सराहना की और कहा कि संतों और सूफियों ने गरीबों और जरूरतमंदों की मदद करने के लिए धर्मों और संप्रदायों से ऊपर उठकर काम किया था। कार्यक्रम का संचालन डॉ इस्माइल एन ने किया।

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छठवाँ दिन – 7 दिसंबर 2023, गुरुवार
सुबह 10ः30 – अरसु मंजिश्नार मंदिर माडा और हजार जमात मस्जिद, उदयवारा :

अरसु मंजिश्नार मंदिर माडा और थाउज़ेंड जमात मस्जिद, उदयवारा सामंजस्यपूर्ण सह-अस्तित्व और साझा विरासत और प्रथाओं के लिए लगभग 900 वर्षों के गवाह रहे हैं। इन तीर्थस्थलों पर वार्षिक अनुष्ठानों में दोनों तीर्थस्थलों के बुजुर्ग शामिल होते हैं। यह अनुष्ठान एक दूसरे की उपस्थिति के बिना सम्पन्न नहीं होता है।

मंदिर में वार्षिक अनुष्ठान के लिए अनुष्ठान का प्रमुख दैव पात्री, दैवस्थान के प्रमुखों और दस समुदाय के नेताओं के साथ एक जुलूस की शक्ल में मस्जिद के सदस्यों को आमंत्रित करने जाता है। वहाँ मस्जिद समिति द्वारा उनका गर्मजोशी से और अत्यंत सम्मान के साथ स्वागत किया जाता है। मस्जिद में त्योहारों के अवसर पर मंदिर के अधिकारियों द्वारा अनाज और अन्य सामग्री भेजी जाती है।

जब यात्रा अरसु मंजिश्ना मंदिर पहुंची, तो मंदिर के ट्रस्टियों, बुजुर्गों और स्वागत समिति की ओर से बीवी राजन ने यात्रियों का स्वागत किया। मंदिर के अनुष्ठानों को मंदिर के पुजारियों के साथ-साथ मस्जिद के बुजुर्गों द्वारा समझाया गया। यात्रियों को जलपान उपलब्ध कराया गया।

सुबह 11.30 बजे सुरेंद्र कोट्यान की लाइब्रेरी :

पुस्तक प्रेमी सुरेंद्र कोट्यान ने अपने खर्च पर 10 लाख रुपये से अधिक मूल्य की 10,000 से अधिक किताबें एकत्र की हैं और इस गांव में एक पुस्तकालय विकसित किया है। यात्रियों ने पुस्तकालय का दौरा किया और अपने लोगों तक ज्ञान फैलाने के उनके इन प्रयासों की सराहना की।

दोपहर 12.00 बजे :

इसके बाद यात्रा उदयवारा थाउजेंड जमात मस्जिद पहुंची। मस्जिद के पूर्व सचिव मोइउद्दीन, जिन्होंने मंदिर और मस्जिद दोनों में कार्यक्रमों के आयोजन में बहुत गहरी रुचि ली थी, ने मस्जिद की कार्यप्रणाली और दोनों तीर्थस्थलों की समन्वित संस्कृतियों और साझा अनुष्ठानों के बारे में बताया। उन्होंने मस्जिद द्वारा, विशेष रूप से लड़कियों के लिए संचालित शैक्षिक गतिविधियों के बारे में भी बताया। मस्जिद समिति ने यात्रियों के लिए भोजन और जलपान उपलब्ध कराया।

दोपहर 2ः30 बजे :

‘ढाई आखर प्रेम’ जत्था अपने अंतिम गंतव्य गिलिविंदु तक पहुंच गया। यह राष्ट्रकवि एम. गोविंदा पई की स्मृति में केरल के कासरगोड में मंजेश्वरम के पास उनके तत्कालीन निवास पर स्थापित सांस्कृतिक केंद्र है। श्री गोविंद पई एक विख्यात लेखक और बहुभाषाविद् थे, जिन्हें 1949 में कन्नड़ के पहले राष्ट्रकवि के रूप में सम्मानित किया गया था। यात्रियों का स्वागत स्वागत समिति के अध्यक्ष जयानदा, स्वागत समिति के संयोजक बीवी राजन और गिलिविंदू के सचिव उमेश सालियान ने किया। दोपहर के भोजन के बाद, शाम 4.00 बजे, 6 दिवसीय जत्था का समापन कार्यक्रम एम गोविंदा पई की प्रतिमा के सामने आयोजित किया गया।

कार्यक्रम की अध्यक्षता एवं संचालन जयानदा ने सभी का स्वागत करते हुए किया। इप्टा केरल राज्य इकाई के अध्यक्ष टी बालन ने ‘ढाई आखर प्रेम’ जत्थे की सराहना की। प्रसन्ना ने अपने समापन भाषण में कहा कि कैसे मशीनों और कृत्रिम बुद्धिमत्ता के बढ़ते उपयोग के साथ श्रमिक वर्ग तेजी से गायब हो रहा है, जिससे सामाजिक और पारिवारिक रिश्तों के ताने-बाने को गंभीर चुनौती मिल रही है। इसके साथ ही श्रमिक वर्ग की एकता और आंदोलनों को निरर्थक और अप्रभावी बना दिया गया है। डॉ. सबिहा भूमिगौड़ा ने कणंद कहावत ‘कोशा ओडु, देशा सुत्तु’, जिसका अर्थ है, ‘विश्वकोश पढ़ें, देश भर में घूमें’, का हवाला देते हुए बताया कि कैसे 6 दिवसीय जत्थे ने ज्ञान और अनुभव प्रदान करके प्रत्येक प्रतिभागी के जीवन को समृद्ध किया है, जो कभी भी किसी भी किताब से प्राप्त नहीं किया जा सकता था।

नागेश कल्लूर ने बताया कि पूरा जत्था सभी के सामूहिक प्रयास से आयोजित किया गया था और इसे हर स्थानीय कार्यक्रम के उत्साही आयोजकों द्वारा स्व-वित्तपोषित किया गया। उन्होंने कहा कि इस प्रयास ने यह सिद्ध किया है कि सार्थक और जन-समर्थक गतिविधियों के लिए जनसाधारण द्वारा आसानी से आर्थिक सहायता दी जाती है। इसके लिए बड़े लोगों या कॉरपोरेट्स की कोई ज़रूरत नहीं है।

इसके बाद, 6 और 7 दिसंबर 2023 को गिलिविंदु में प्रसन्ना द्वारा आयोजित थिएटर कार्यशाला में भाग लेने वाले प्रशिक्षुओं ने पृथ्वी नामक एक नाटक प्रस्तुत किया जिसे दर्शकों द्वारा बहुत सराहा गया।

कर्नाटक के मंगलुरु से केरल के मंजेश्वर तक छह दिवसीय ‘ढाई आखर प्रेम’ – ‘पट्टप्पे जोकुलु ओन्जे मैटेल्ड’ राष्ट्रीय सांस्कृतिक जत्थे ने योजनाबद्ध तरीके से यात्रा की और आशा से कहीं अधिक जन-संवाद किया। इसने वास्तव में अपने विषय ‘पट्टप्पे जोकुलु ओन्जे मैटेल्ड’ को सभी वर्गों के लोगों के साथ साकार किया। सभी प्रभाग, बहुत उत्साह से भाग ले रहे थे, खुशी-खुशी भोजन और आवास प्रदान कर रहे थे, खर्च उठा रहे थे। कहीं भी कोई गड़बड़ी नहीं, पुलिस द्वारा कोई सुरक्षा नहीं, कोई अप्रिय घटना या किसी भी तरफ से विरोध की आवाज़ नहीं। सभी प्रतिभागियों के लिए, जत्था हमेशा के लिए संजोया जाने वाला शानदार यादगार अनुभव रहा है और रहेगा। निश्चित रूप से यह जत्था उन सभी लोगों को, उनकी संस्कृतियों, भाषाओं, धर्मों की मिलीजुली विरासत और ज्ञान को सामने लाने के लिए इसी तरह के और अधिक कार्यक्रम आयोजित करने के लिए प्रोत्साहित करेगा।

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