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जम्मू की ‘ढाई आखर प्रेम’ यात्रा में विविधता में एकता का जश्न

जम्मू की ‘ढाई आखर प्रेम’ यात्रा में विविधता में एकता का जश्न

(28 सितम्बर 2023 से राजस्थान के अलवर से शुरू हुई ‘ढाई आखर प्रेम’ राष्ट्रीय सांस्कृतिक पदयात्रा छठवीं पायदान पर जम्मू में संपन्न हुई। 15-16 नवम्बर 2023 को दो दिवसीय सांस्कृतिक जत्थे में जम्मू के गंगा-जमुनी ताने-बाने को देखने-समझने का मौका पदयात्रियों को मिला। हरेक प्रदेश की पदयात्रा में अन्य राज्यों के अनेक संगठनों के कलाकार, साहित्यकार और सामाजिक कार्यकर्ता सम्मिलित हो रहे हैं। जम्मू में इप्टा के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं प्रसिद्ध रंग-निर्देशक प्रसन्ना, इप्टा के राष्ट्रीय महासचिव तनवीर अख्तर तथा पटना इप्टा के कलाकार दोनों दिन शामिल हुए। जम्मू पदयात्रा की रिपोर्ट, फोटो एवं वीडियो ‘रंगयुग’ नाट्य संस्था के निदेशक दीपक कुमार एवं तनवीर अख्तर द्वारा भेजे गये हैं ।)

‘ढाई आखर प्रेम’ राष्ट्रीय सांस्कृतिक जत्था की पदयात्रा जम्मू में 15 नवंबर 2023 को आरम्भ हुई। सांस्कृतिक कार्यक्रमों से यात्रा का आरम्भ हुआ, जिससे प्रेम, शांति और सद्भाव का माहौल बना। पहले दिन इप्टा के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रसन्ना के नेतृत्व ने सांस्कृतिक एकता के उत्सव में कलाकारों, बुद्धिजीवियों और उत्साही लोगों को एक साथ लाया।

दिन की शुरुआत पंजबख्तर महादेव मंदिर से पीर मीठा साहिब दरगाह तक एक आकर्षक जुलूस के साथ हुई। प्रेम और सांस्कृतिक संवर्द्धन की यात्रा की रंगारंग परेड पूरे शहर में घूमी।

‘पंजभक्त महादेव मंदिर’, जिसे ‘रुपये वाला मंदिर’ के नाम से भी जाना जाता है, जम्मू शहर के सबसे पुराने मंदिर के रूप में एक अद्वितीय और समृद्ध इतिहास का प्रतीक माना जाता है। मंदिर के रिसीवर सुरेश शर्मा ने राष्ट्रीय सांस्कृतिक जत्थे के पदयात्रियों को इसकी विशिष्टताओं की जानकारी साझा की। ब्रिटिश काल के सिक्कों से सजे अपने फर्श के लिए उल्लेखनीय यह मंदिर ऐतिहासिक और सांस्कृतिक सम्मिश्रण को दर्शाता है। एक सांस्कृतिक केन्द्र के रूप में यह ऐतिहासिक स्थल अपनी रंगभूमि पर सावन महोत्सव, शरद महोत्सव में नृत्य-प्रदर्शन, शास्त्रीय संगीत जैसे कार्यक्रमों की मेजबानी करता है। जम्मू के केन्द्र में स्थित यह प्रतिष्ठित स्थल शहर के हृदय में दुर्लभ प्राचीनता, आध्यात्मिक महत्व और सांस्कृतिक समृद्धि का सामंजस्य स्थापित करता है।

जियारत पीर मिट्ठा दरबार सद्भाव का एक कालातीत प्रतीक है, जो सदियों से सभी धर्मों के लोगों का स्वागत करता है।

जैसे जैसे ‘ढाई आखर प्रेम राष्ट्रीय सांस्कृतिक जत्था’ जम्मू में परेड कर रहा था, यह एकता के लोकाचार को प्रतिध्वनित कर रहा था। प्रसन्ना के नेतृत्व में जत्थे की सांस्कृतिक यात्रा ज़ियारत की भावना के अनुरूप प्रेम, शांति और सहअस्तित्व को प्रेरित कर रही थी। प्रसन्ना द्वारा रास्ते में आने वाले दुकानदारों से आर्थिक सहयोग भी लिया जा रहा था।

दोपहर में यात्रा महाराजा हरि सिंह पार्क से शुरु होकर ज्वेल चौक होते हुए अभिनव थियेटर तक पहुँची। रास्ते के दोनों ओर दर्शक यात्रा को अभिभूत होकर देख रहे थे। सांस्कृतिक जत्था अभिनव थियेटर कॉम्प्लेक्स में सहगल हॉल में पहुँचा। वहाँ जम्मू के स्वतंत्रता सेनानी कॉमरेड धन्वंतरी के जीवन और उनकी भूमिका पर चर्चा हुई। धन्वंतरी भगत सिंह की विचारधारा से बहुत प्रभावित थे। कॉमरेड धन्वंतरी के समग्र जीवन और कार्यों पर डॉ. ललित मगोत्रा, अध्यक्ष डोगरी संस्था जम्मू द्वारा आलेख पढ़ा गया। प्रसन्ना और तनवीर अख्तर ने दर्शकों से गहन बातचीत की। उसके बाद एक सजग प्रश्नोत्तर सत्र सम्पन्न हुआ। सीमा अनिल सहगल ने एक भावपूर्ण गीत प्रस्तुत किया। कार्यक्रम का समापन इप्टा पटना के प्रतिभाशाली कलाकारों के मनमोहक कार्यक्रम से हुआ, जिसकी दर्शकों ने भरपूर सराहना की।

प्रसन्ना के मार्गदर्शन और नेतृत्व ने दिन के कार्यक्रमों को व्यवस्थित करने, उनमें कलात्मक अभिव्यक्ति और सांस्कृतिक समझ की भावना भरने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

जम्मू में ‘ढाई आखर प्रेम’ सांस्कृतिक पदयात्रा के दूसरे दिन का समापन भारतीय रंगमंच के दिग्गज रंग निर्देशक प्रसन्ना द्वारा संचालित एक विशेष अभिनय कार्यशाला से हुआ। प्रसिद्ध शख्सियत की अंतर्दृष्टि और विशेषज्ञता से ज्ञान हासिल करने के लिए 30 से अधिक स्थानीय कलाकार और उत्साही लोग ‘रंगयुग’ में एकत्र हुए थे। इनमें आशीष शर्मा, राजकुमार बहरूपिया, सीमा अनिल सहगल, प्रिया दत्ता आदि कई प्रसिद्ध कलाकार भी मौजूद थे।

प्रसन्ना के मार्गदर्शन में प्रतिभागियों को थियेटर की बारीकियों को समझने, अपनी कला को निखारने और अपनी कलात्मक संवेदनाओं को समृद्ध करने का एक अनूठा अवसर प्रदान किया। प्रसन्ना भारतीय रंगमंच के परिदृश्य की एक जीवंत किंवदन्ती हैं, जिन्हें दशकों से उनके विपुल योगदान के लिए माना जाता रहा है। वे एक बेहतरीन निर्देशक, अभिनेता और नाटककार हैं, जिन्होंने प्रदर्शन कला की दुनिया पर एक अमिट छाप छोड़ी है।

‘रंगयुग’ के निदेशक दीपक कुमार ने प्रसन्ना का हृदय से आभार व्यक्त किया। उन्होंने प्रसन्ना को अपनी उपस्थिति से कार्यक्रम की शोभा बढ़ाने तथा जम्मू के कलात्मक समुदाय के साथ अपने ज्ञान के भंडार को साझा करने के लिए धन्यवाद दिया।

इससे पहले राष्ट्रीय सांस्कृतिक जत्थे ने भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के बहादुर सेनानी कॉमरेड धन्वंतरी की विरासत और प्रेरणा का सम्मान करते हुए उन्हें पुष्पांजलि अर्पित की। त्रिकुटा नगर के धन्वंतरी पार्क में आयोजित यह समारोह ऐतिहासिक महत्व से जुड़ा था और इसमें जत्थे के प्रतिभागियों और अन्य नागरिकों ने हिस्सा लिया। यह कार्यक्रम इस वीर स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के प्रति सामूहिक सम्मान का प्रतीक दिखाई दे रहा था।

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उसके बाद मल्टीप्लाजा कॉम्प्लेक्स और पद्मश्री पद्मा सचदेव महिला कॉलेज, गांधी नगर में इप्टा पटना द्वारा आकर्षक नुक्कड़ नाटक प्रदर्शन के साथ सांस्कृतिक उत्सव जारी रहा। यहाँ लगभग 400 छात्राओं ने नाटक देखा। नाटक की विचारोत्तेजक प्रस्तुति ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। सभी ने प्रेम, एकता और सामाजिक चेतना के संदेशों से ओतप्रोत सांस्कृतिक कहानियों की सराहना की।

सांस्कृतिक आदान-प्रदान, सार्वजनिक संवाद और कलात्मक सहयोग से चिह्नित जत्था की परिवर्तनकामी यात्रा ने जम्मू के सांस्कृतिक परिदृश्य पर एक अमिट छाप छोड़ी। यह जत्था जैसे-जैसे आगे बढ़ा, वैसे-वैसे ‘ढाई आखर प्रेम’ की भावना को मूर्त रूप देता हुआ प्रेम, शांति और सद्भाव का संदेश फैलाता जा रहा था।

‘ढाई आखर प्रेम’ की इन दो दिवसीय सांस्कृतिक पदयात्रा में रचनात्मकता, जुनून और सामूहिक भावना का सैलाब देखने को मिला। कलात्मक समुदाय, साहित्यिक दिग्गज, सामाजिक संगठन और विविध व्यक्ति इस यात्रा को सफल बनाने के लिए एकजुट हुए। उनकी भागीदारी ने जत्थे के परिप्रेक्ष्य की बहुरूपता से परिचित कराया, जिससे जम्मू की सांस्कृतिक छवि समृद्ध हुई।

राष्ट्रीय सांस्कृतिक जत्थे के जम्मू चैप्टर के आयोजकों ने कहा, ‘‘राष्ट्रीय सांस्कृतिक जत्थे ने अपने व्यापक सांस्कृतिक आंदोलन के माध्यम से परस्पर समझदारी, प्रशंसा और एकजुटता के बीज बोये हैं।’’ यात्रा समाप्त हो सकती है, लेकिन कलात्मक अभिव्यक्ति की गूँज लंबे समय तक गूँजती रहेगी। राष्ट्रीय सांस्कृतिक जत्थे का जम्मू में प्रवेश न केवल एक सांस्कृतिक दस्तक थी, बल्कि सकारात्मक बदलाव को बढ़ावा देने के लिए कला की शक्ति का प्रमाण भी प्रस्तुत कर रही थी। आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेम, शांति और समृद्ध सांस्कृतिक ताने-बाने की विरासत को इस यात्रा ने पीछे छोड़ा है।

अगली कड़ी में प्रस्तुत की जाएगी 18 नवम्बर से उत्तर प्रदेश में आरम्भ होने वाली ‘ढाई आखर प्रेम’ पदयात्रा की रिपोर्ट।

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