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उत्तर प्रदेश की सांस्कृतिक यात्राएँ : सात : आधी आबादी का सफरनामा : दो रानी लक्ष्मीबाई जन-जागरण यात्रा (16 से 19 नवम्बर 1998, जालौन, झाँसी, हमीरपुर)

उत्तर प्रदेश की सांस्कृतिक यात्राएँ : सात : आधी आबादी का सफरनामा : दो रानी लक्ष्मीबाई जन-जागरण यात्रा (16 से 19 नवम्बर 1998, जालौन, झाँसी, हमीरपुर)

इप्टा की स्थापना के पूर्व से की गयी सांस्कृतिक यात्राओं की विरासत को उत्तर प्रदेश इप्टा ने 1989 से 1999 के बीच अनेक चरणों में आगे बढ़ाया। प्रत्येक यात्रा को किसी न किसी उद्देश्य पर केंद्रित किया गया था। पहली यात्रा थी 1993 में ‘पदचीन्ह कबीर’, जो काशी से मगहर तक की गयी। दूसरी यात्रा थी – 1995 में ‘नज़ीर पहचान यात्रा’, जो आगरा से दिल्ली तक संपन्न हुई थी उसके बाद ‘स्त्री-अधिकारों’ पर केंद्रित ‘आधी आबादी का सफरनामा’ के पहले चरण के अंतर्गत चार यात्राओं का सफर पूरा किया गया । उसके बाद नवम्बर 1998 से मार्च 1999 तक ‘आधी आबादी का सफरनामा’ के दूसरे चरण में तीन यात्राएँ संपन्न की गयीं। इस कड़ी में प्रस्तुत है दूसरे चरण की पहली यात्रा की रिपोर्ट। यह रिपोर्ट इप्टा के कार्यकारी अध्यक्ष राकेश ने उपलब्ध करवाई है , इसे तैयार किया था अखिलेश दीक्षित ने। उम्मीद है कि ये सांस्कृतिक यात्राएँ आगामी 28 सितम्बर 2023 से अलवर राजस्थान से आरम्भ होने वाली ‘ढाई आखर प्रेम’ सांस्कृतिक पदयात्रा के लिए वर्तमान परिस्थितियों के अनुसार नई दिशाएँ तलाशने की प्रेरणा देंगी। – उषा वैरागकर आठले। सभी फोटो गूगल से साभार।)

सांस्कृतिक जन-जागरण यात्राओं के क्रम में ‘स्त्री-अधिकार’ पर केन्द्रित इप्टा की यात्राओं के पहले चरण में 1997 में ‘प्रेमचंद जन-जागरण यात्रा’ (06 से 09 अप्रेल 1997, गोरखपुर से आजमगढ़), ‘सुभद्राकुमारी चौहान जन-जागरण यात्रा’ (21 से 24 अप्रेल 1997, फर्रूखाबाद, मैनपुरी, फिरोजाबाद), सरोजनी नायडू जन-जागरण यात्रा (24 से 27 अप्रेल 1997, आगरा, मथुरा, अलीगढ़) एवं राहुल सांकृत्यायन जन-जागरण यात्रा (13 से 17 मई 1997, ऋषिकेश, टिहरी, मसूरी, देहरादून, हरिद्वार) अनेक गाँवों-शहरों में हुईं।

दूसरे दौर की यात्राओं में 16 से 19 नवम्बर 1998 तक जालौन, झाँसी, हमीरपुर में ‘रानी लक्ष्मीबाई जन-जागरण यात्रा’, 11 से 14 फरवरी 1999 तक ‘बेगम हजरत महल जन-जागरण यात्रा’ तथा 08 से 10 मार्च 1999 तक फतेहपुर, इलाहाबाद, जौनुपर जिलों में ‘महादेवी वर्मा जन-जागरण यात्रा’ हुई। इन सभी यात्राओं में निर्धारित स्थलों से कहीं ज़्यादा कार्यक्रम हुए और सभी यात्राएँ तीन दिन की जगह चार दिन करनी पड़ीं। यात्राओं के पूर्व हमेशा की तरह इप्टा के एक-दो साथियों ने यात्रा के निर्धारित जिलों में स्थानीय लोगों के सहयोग से कार्यक्रम की जगहें तय की थीं। इनमें स्कूलों-कॉलेजों, विशेष रूप से लड़कियों की स्कूलों को प्राथमिकता दी गई थी। किन्तु कभी-कभी स्थानीय कारणों से या स्कूलों में परीक्षा के कारण कार्यक्रम की जगहें बदलनी पड़ीं। यात्रा-क्रम में कुछ स्थान छूटे, पर उससे कहीं ज़्यादा जुड़ते रहे। अखबारों के माध्यम से यात्रा का समाचार पाकर किसी जगह विशेष रूप से स्कूल-कॉलेजों में यात्रा को रोककर कार्यक्रम करने के अनुरोध बेहद दिलचस्प और सुखद रहे। हमेशा की तरह इन यात्राओं में इप्टा के गीत और नाटक थे ही, साथ-साथ समाज में स्त्रियों की स्थिति पर चर्चा करने वाले विशेषज्ञ वक्ता भी थे। यात्राओं का उद्देश्य बतलाने के लिए हजारों परिपत्र, जो कार्यक्रम स्थल पर तो दिये ही जाते थे, रास्ते की उन तमाम जगहों पर भी वितरीत होते थे, जहाँ समय की कमी के कारण हम कार्यक्रम करने में असमर्थ थे। इन सभी यात्राओं में इप्टा के कलाकारों ने निर्धारित स्थलों पर कार्यक्रमों के अलावा बड़े कस्बों, शहरों में अपने गीतों के साथ प्रतिदिन कई-कई किलोमीटर का पैदल मार्च किया। सभी यात्राओं में हर दिन कार्यक्रमों का इतना दबाव रहता था कि अपनी ओर से अखबारों को खबर दे पाना कभी संभव नहीं हुआ; किंतु यात्राओं को मीडिया का भरपूर सहयोग मिला, जिससे उनकी व्यापकता बढ़ी।

रानी लक्ष्मीबाई जन-जागरण यात्रा (16 से 19 नवम्बर 1998, जालौन, झाँसी, हमीरपुर)

16 नवम्बर 1998

16 नवम्बर 1998 को हमारा पहला कार्यक्रम निर्धारित था गवर्नमेंट गर्ल्स इंटर कॉलेज उरई में। लेकिन यह जानकर कि, यात्रा का समापन दिवस 19 नवम्बर रानी लक्ष्मीबाई का जन्मदिन है, कॉलेज की प्रधानाचार्या एवं अध्यापिकाओं ने यात्रा के कार्यक्रम को 19 नवम्बर के लिए स्थगित कर दिया। हमारे साथियों ने तत्काल कार्यक्रम का स्वरूप बदला और हम गाते-बजाते हुए जुलूस की शक्ल में चल पड़े अगले पड़ाव रामनगर पीली कोठी की ओर। उरई के लोग इप्टा से भलीभाँति परिचित हैं। एक तो उरई इप्टा की लगातार सक्रियता के कारण, दूसरे 1993 में यहाँ अपने प्रांतीय सम्मेलन के मौके पर इप्टा की 10-12 इकाइयों ने तीन दिन तक लगातार सैकड़ों जगहों पर अपने जनगीतों और नुक्कड़ नाटकों से हज़ारों लोगों के साथ एक अविस्मरणीय सांस्कृतिक तादात्म्य स्थापित किया था। उस दिन यानी कि 16 नवम्बर 1998 को भी सैकड़ों लोग हमारे साथ चले। उरई इप्टा के साथी डॉ. सतीश चंद्र शर्मा, राज पप्पन, संगीतज्ञ व गायक सुरेन्द्र खरे, आर पी श्रीवास्तव, यू के सोनी, विश्व प्रकाश तिवारी आदि। पीली कोठी तक पहुँचते-पहुँचते हमें दो और स्थानों पर अपने नाटक प्रस्तुत करने पड़े। कार्यक्रमों में जनता की व्यापक भागीदारी ने हमारे इस विश्वास को पुख्ता किया कि नाटक जैसी जीवंत विधाएँ अभी भी दर्शकों को आकर्षित करने में सक्षम हैं। पीली कोठी के जिस मैदान में कार्यक्रम आयोजित था, वहाँ चारों तरफ के घरों की छतों और छज्जों पर भी औरतें और बच्चे थे, साथ ही मैदान में सैकड़ों बच्चे और पुरुष जमा थे। हमारे कलाकार दो घण्टे के भीतर तीसरी बार ‘औरत’ नाटक का प्रदर्शन कर रहे थे। व्यापक जन-भागीदारी ने उनकी थकान मिटा दी थी। स्त्रियाँ मैदान में नहीं आईं पर नाटक के बाद पहले महिला कलाकारों के सामने अपनी सार्थक प्रतिक्रियाएँ देते हुए तथा बाद में सभी कलाकारों से उन्होंने देर तक बात की।

17 नवम्बर 1998

17 नवम्बर की सुबह सुबह लगभग 100 किलोमीटर की यात्रा करके निर्धारित समय पर यात्री दल बड़ागाँव पहुँचा। यहाँ इंटर कॉलेज के प्रांगण में सैकड़ों लड़कों-लड़कियों के समूह के सामने कई जनगीत तथा नाटक ‘औरत’ प्रस्तुत किया गया। कॉलेज के प्रधानाचार्य रामबाबू सोनी और उनके सहयोगी शिक्षकों ने कलाकारों का भरपूर स्वागत किया। इप्टा के प्रांतीय महामंत्री जितेन्द्र रघुवंशी ने यात्रा का उद्देश्य बताते हुए कहा कि, देश की आधी आबादी को शामिल किये बिना विकास और सामाजिक परिवर्तन आधा और अधूरा ही रहेगा। हमारे गीतों के स्वर जब हवा में गूँज रहे थे, तभी हमें एक निमंत्रण मिला कन्या जूनियर हाईस्कूल की प्रधानाध्यापिका का। लगभग 5 से 12-15 साल की सैकड़ों लड़कियाँ टाटपट्टी बिछा कर बहुत अनुशासित रूप से बैठी थीं। स्कूल की बालिकाओं ने यात्रा के स्वागत में एक गीत प्रस्तुत किया,

बालिकाओं देश की विजयी बनो
सूर्य-सी प्रखर बनो
चंद्र-सी मधुर बनो…

इस गीत को बालिकाओं ने खुद ही रचा था। गीत का संगीत पक्ष कमज़ोर था, बालिकाओं में स्वाभाविक कस्बाई झिझक थी पर उनमें कहीं भीतर रचनात्मकता से जुड़ने की अदम्य ललक थी। इप्टा के कलाकारों ने इब्ने इंशा का गीत ‘ये बच्चा कैसा बच्चा है’ प्रस्तुत किया। मज़ेदार बात यह हुई कि अन्य स्कूल के अध्यापक जब अपने बच्चों को लेकर कार्यक्रम स्थल पर पहुँचे, नाटक खत्म हो चुका था। उन बच्चों के लिए हमें अपने गीतों का सिलसिला फिर शुरु करना पड़ा। रवि नागर के गीत ‘आज़ादी ही आज़ादी’ के साथ हज़ारों बच्चों ने अपना स्वर मिलाया। उसके बाद हमें अपना दूसरा नाटक ‘गिरगिट’ भी करना पड़ा। इस बीच इंटर कॉलेज के बच्चों ने यात्रा के कलाकारों के लिए प्रतीक चिह्न की व्यवस्था कर ली थी।

यात्रा बड़ागाँव से पहुँची चिरगाँव, जहाँ सरदार पटेल इंटर कॉलेज में हमारा कार्यक्रम था। यात्रा को यहाँ पहुँचने में काफी विलंब हो गया था। कॉलेज में छुट्टी हो चुकी थी। पर कार्यक्रम की प्रत्याशा में लड़के इधर-उधर घूम रहे थे। कार्यक्रम शुरु होते ही सैकड़ों लड़के-लड़कियाँ आ पहुँचे। गीतों के बाद नाटक ‘गिरगिट’ हुआ। चिरगाँव प्रख्यात कवि मैथिलीशरण गुप्त की जन्मस्थली है। कलाकारों ने उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की। चिरगाँव से हम पहुँचे बरल, जहाँ जूनियर हाईस्कूल प्रांगण में नाटक ‘औरत’ का मंचन हुआ। लगातार कार्यक्रमों के कारण कलाकारों के गले जवाब दे रहे थे और इस बीच पता चला कि स्थानीय स्तर पर बरल से 45 किलोमीटर दूर एक जगह पर हमारा कार्यक्रम पहले ही निर्धारित किया जा चुका है। बंगरी बंगरा में पूरा गाँव और आसपास के गाँवों के लोग भी उपस्थित थे। पंचायत घर के सामने मेले जैसा दृश्य था। कई गीतों के बाद नाटक ‘रंगा सियार’ का प्रदर्शन हुआ। वापसी में बारिश शुरु हो गई थी, मजबूरन मांड का कार्यक्रम रद्द करना पड़ा। अलबत्ता, ऐटा में सैकड़ों लोग हमारी प्रतीक्षा में थे। हल्की बारिश हो रही थी और बिजली गायब थी। नाटक की फरमाइश थी, पर करना संभव नहीं था। गायब बिजली के बीच ही कलाकारों ने गीतों से अपनी बात कही। रात्रि विश्राम उरई में हुआ।

18 नवम्बर 1998

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उरई से लगभग 85 किलोमीटर दूर हमीरपुर जिले के ग्राम कुरारा में हमारा पहला कार्यक्रम निर्धारित था। कुरारा बालिका विद्यालय में बालिकाएँ, शिक्षिकाएँ और स्थानीय नागरिक पहले से ही यात्रा के स्वागत और कार्यक्रम के लिए तैयार बैठे थे। सैकड़ों छात्राओं और संभ्रांत नागरिकों के सामने गीत प्रस्तुत हुए तथा ‘औरत’ नाटक का प्रदर्शन हुआ। विद्यालय की प्रधानाध्यापिका गीता गुप्ता ने नाटक की सराहना की और इस तरह के कार्यक्रमों को जल्दी-जल्दी करने पर बल दिया। इसके तत्काल बाद राजकीय महिला महाविद्यालय के प्रांगण में नाटक ‘ब्रह्म का स्वांग’ मंचित किया गया। नाटक में जिस तरह समाज के ठेकेदारों के दोहरे मानदण्ड और महिलाओं की स्थिति को रेखांकित किया है, उसे छात्राओं और शिक्षिकाओं द्वारा बेहद सराहा गया। कड़ी धूप में भी लगभग 500 छात्राओं ने पूरे मनोयोग से नाटक देखा।

अगला कार्यक्रम था हमीरपुर की जिला कचहरी के प्रांगण में, जहाँ बार एसोसिएशन की तरफ से यात्रा का स्वागत हुआ। हजारों दर्शकों के सामने गीतों और नाटक ‘गिरगिट’ की प्रस्तुति हुई। यहाँ से यात्रा पहुँची सुमेरपुर, जहाँ गीतों की प्रस्तुति के बाद मौदहा में रहमनियाँ इंटर कॉलेज में बिजली की आँखमिचौली के बीच गीतों और नाटकों का कार्यक्रम हुआ। इसके बाद हमीरपुर मेहर बाबा मंदिर के अंतिम पड़ाव पर गीतों की प्रस्तुति हुई।

19 नवम्बर 1998

रानी लक्ष्मीबाई के जन्मदिवस पर यात्रा का समापन होना था।

हमीरपुर से यात्रा 10 बजे कदौरा पहुँची। यहाँ पहला कार्यक्रम ‘टाउन एरिया मैदान’ में हुआ। इसके फौरन बाद कालपी में आर्य कन्या इंटर कॉलेज में सैकड़ों बालिकाओं के सामने गीतों की प्रस्तुति के बाद नाटक ‘औरत’ का प्रदर्शन हुआ। इस बीच पास के बच्चों के स्कूल ‘बाल विद्या मंदिर’ में भी कार्यक्रम का आगाज़ किया जा चुका था। यहाँ इप्टा के साथियों ने बच्चों के गीत पेश किये। साथ ही नाटक ‘गिरगिट’ का प्रदर्शन किया गया। कार्यक्रम के फौरन बाद हम रवाना हुए यात्रा के पहले दिन के स्थगित हुए कार्यक्रम स्थल गवर्नमेंट गर्ल्स इंटर कॉलेज उरई की ओर, जहाँ कॉलेज का सभागार छात्राओं से खचाखच भरा हुआ था। पहले यहाँ ‘सामाजिक बदलाव और परिवार’ विषय पर संगोष्ठी हुई, जिसमें कॉलेज की प्रधानाध्यापिका और अन्य कई प्रवक्ताओं सहित छात्राओं ने भी हिस्सेदारी की। संगोष्ठी के बाद इप्टा के बहुचर्चित नाटक ‘ब्रह्म का स्वांग’ का प्रदर्शन हुआ। यहाँ से जालौन, बघौरा और अथाई में लगातार गीतों और नाटक के कार्यक्रमों के बाद यात्री दल कोंच पहुँचा, जहाँ लगभग 5-6 किलोमीटर पैदल यात्रा के दौरान तीन जगहों पर हजारों दर्शकों के सामने गीत और नाटकों की प्रस्तुतियाँ की गईं। यात्रा के सहभागी सभी कलाकार अत्यंत उत्साह के साथ अगली यात्रा की प्रतीक्षा करने लगे। (क्रमशः)

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