Now Reading
अवसर और स्पेस मिले तो बच्चों में भरपूर संभावनाएँ हैं : अपर्णा

अवसर और स्पेस मिले तो बच्चों में भरपूर संभावनाएँ हैं : अपर्णा

(इप्टा की अन्य इकाईयों के साथ साथ रायगढ़ में भी 03 मई से 25 मई 2023 तक बच्चों की नाट्य-प्रशिक्षण कार्यशाला चल रही थी। रायगढ़ इप्टा की पुरानी साथी और बच्चों की कई कार्यशालाओं का संचालन-निर्देशन करने वाली अपर्णा, जो आजकल वाराणसी में ज़मीनी पत्रकारिता से जुडी हुई है, रायगढ़ आई हुई हैं। कार्यशाला के संचालकों एवं अन्य साथियों से चर्चा के बाद अपर्णा ने ये रिपोर्ट जारी की है।)

22 मई को जब मैं बनारस से रायगढ़ पहुंची तो यहाँ पिछले तीन मई से बाईस दिवसीय इप्टा का ग्रीष्मकालीन बाल रंग शिविर चल रहा था. हालांकि इसकी जानकारी इप्टा रायगढ़ के व्हाट्सअप ग्रुप में लगातार मिल रही थी, जिसमें पता चला कि तीन जगह बाल रंग शिविर संचालित हो रहे हैं। जिसमें मालीडीपा और सिद्धि विनायक का शिविर सुबह 7.30 से 10.30 बजे तक संचालित हो रहा था। मालीडीपा का शिविर कृष्ण कुमार साव, शोभा और प्रेरणा ले रहे थे और दूसरा सिद्धि विनायक का शिविर श्याम देवकर एवं दीपक यादव के निर्देशन में संचालित हो रहा था। तीसरा शिविर विनोद बोहिदार भैया द्वारा उनकी कॉलोनी कृष्णा डायमंड हिल में शाम 7 बजे से 10 बजे तक लिया जा रहा था। इन तीनों शिविर में हर उम्र के कुल मिलाकर 75 से 80 बच्चे भाग ले रहे थे। इतनी जानकारी तो व्हाट्सअप ग्रुप में मिल ही गई थी।  

25 मई को भारतीय जन नाट्य संघ (इप्टा) की स्थापना के 80 वर्ष होने के अवसर पर इन शिविरों में तैयार किए गए नाटकों का मंचन होना था। उषा दीदी को जब यह मालूम हुआ कि मैं इस आयोजन में उपस्थित रहूँगी तो मुझे शिविर और मंचन की एक विस्तृत रिपोर्ट लिखने के लिए कहा। मैंने सहर्ष स्वीकार किया लेकिन इस शर्त पर कि शिविर में हुई गतिविधियों की विस्तृत जानकारी शिविर निर्देशक लिखकर देंगे। लेकिन शिविर निर्देशक समापन के बाद लगातार अपनी रोजी-रोजगार की जिम्मेदारियों के निर्वहन में लगे होने के कारण समय से शिविर की विस्तृत रिपोर्ट देने में असमर्थ रहे और साथ ही मैं भी तबीयत सही न होने की वजह से सही समय पर तैयार नहीं कर पाई. अब जब यह जानकारी मुझ तक पहुँची तब यह रिपोर्ट तैयार हो पा रही है।

हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी ग्रीष्मकालीन अवकाश में इप्टा रायगढ़ ने बाल रंग शिविर का आयोजन किया। एक समय था कि कई वर्षों तक पूरे शहर के लिए एक ही स्थान टाउन हॉल परिसर में इसे चलाया जाता था लेकिन यह देखा गया कि दूरदराज के बच्चों का इसमें शामिल होना मुश्किल होता था। जबकि इप्टा रायगढ़ इसमें हर तरह के बच्चों को शामिल करना चाहती थी, इस वजह से शहर में तीन-चार स्थानों पर इप्टा के रंगकर्मी बाल रंग शिविर का आयोजन करने लगे। इस वर्ष भी शहर के तीन स्थानों पर शिविर लगाया गया। एक मालीडीपा में, दूसरा सिद्धिविनायक कालोनी में और तीसरा कृष्णा डायमंड हिल में।

पिछले 6-7 वर्षों से मेरी नाट्य गतिविधियाँ अपने काम के सिलसिले में लगभग बंद हैं लेकिन जब कभी रायगढ़ आती हूँ तो इप्टा में चल रही गतिविधियों में ज़रूर शामिल होती हूँ। इस बार भी 23 मई की सुबह सिद्धि विनायक में चल रहे शिविर में शामिल हुई, जहाँ श्याम देवकर और दीपक यादव बच्चों को रायगढ़ की वरिष्ठ रंगकर्मी कल्याणी मुखर्जी लिखित विज्ञान आधारित नाटक साइनो तुम कहाँ हो? को मंचन के लिए तैयार करवा रहे थे। श्याम और दीपक दोनों इप्टा के बाल रंग शिविर से तैयार हुए कलाकार हैं और आज स्वयं हर गर्मी की छुट्टियों में बच्चों के साथ काम कर उन्हें प्रशिक्षित करने का जिम्मा उठाए हुए हैं। विज्ञान आधारित थीम पर शिविर को केंद्रित करने की योजना तय हुई और तीनों शिविर में विज्ञान से संबंधित नाटक ही तैयार कराए गए

जब मैं सुबह नौ बजे वहाँ पहुंची तब दो बार रन थ्रू हो चुका था और अब समय था आधी छुट्टी का। यहाँ बच्चे अपने-अपने साथ लाए टिफिन खा रहे थे। किसी भी कार्यशाला का यह एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा होता है कि सभी बच्चे अपने साथ लाए टिफिन को मिल-बांटकर मस्ती करते हुए खाते हैं। देखकर जहाँ मजा आता है वहीं सुकून मिलता है कि इनमें अपने क्लास और जाति को लेकर कोई भेद नहीं है। यह बच्चे केवल और केवल अपने हमउम्र के साथ खेलना, बतियाना और दिए गए काम को करना चाहते हैं। बहरहाल खाने के बाद श्याम और दीपक ने बच्चों को बताया कि अपर्णा दीदी के सामने तुम लोगों को साइनो तुम कहाँ हो? का एक रन थ्रू करना है। बच्चे तैयार थे लेकिन यह जगह स्कूल की कक्षा तो है नहीं कि जैसे टीचर ने कहा तो सब अनुशासित हो काम शुरू कर दिए ! यहाँ 7-8 वर्ष के बच्चे से लेकर 16-17 वर्ष तक बच्चे थे सो आपसी बातचीत, शोर-शराबा, मस्ती और एक-दूसरे को निर्देश देते काम करने को तैयार हुए। नाटक शुरू हुआ और 13 से 14 मिनट में उनका नाटक पूरा हुआ। इस बीच नाटक करते हुए बीच-बीच में श्याम उन्हें अपने संवादों को ज़ोर से कहने और एक-दूसरे को सुनने और आराम से ठहर ठहर कर करने के लिए निर्देश दे रहा था।

इस बीच श्याम और दीपक ने इस बाल रंग शिविर में बच्चों के साथ किस तरह नाटक में काम किया, अपने अनुभव भी साझा किये और बताया कि बच्चों को हमने कल्याणी-शिबानी दीदी लिखित नाटक साइनो! तुम कहाँ हो? और सुमित मित्तल का लिखा हुआ नाटक अंदर का बाहर : एक रोमांचक सफर  ये दोनों स्क्रिप्ट दीं और बच्चों को घर से पढ़कर आने के लिए कहा और बताया कि पढ़कर आने के बाद आप लोग यहाँ बताएंगे कि दोनों नाटक में क्या नया लगा और कौन सा नाटक हम खेलेंगे। साथ ही पढ़ने के बाद अपने पैरेंट्स से भी इस पर विचार विमर्श करें ताकि उनके नज़रिए को भी जाना जा सके। बच्चे पढ़कर आए। शिविर में भी ग्रुप में सभी लोगों के साथ दोनों नाटक की 2-2 बार रीडिंग हुई। उसके बाद सभी ने साइनो तुम कहाँ हो करने के लिए प्रस्ताव रखा क्योंकि उसमें दी गई जानकारी बड़े बच्चों के पाठ्यक्रम में थी जिससे उन्हें जल्द समझ आ गया।

जैसा कि श्याम देवकर ने बताया

श्याम ने बताया कि इप्टा के संरक्षक मुमताज भारती याने हम सबके पापा जी को नाटक के बारे में जानकारी देते हुए पढ़ने के लिए स्क्रिप्ट दी। अगले दिन पापाजी ने बच्चों के बीच आकर साइनो तुम कहाँ हो? नाटक पर तथ्यात्मक ढंग से बातें की और बच्चों ने खूब मजे के साथ पापा जी को सुना और उनसे बहुत सारे सवाल किए। चूँकि इस बार शिविर विज्ञान से संबंधित था और पापा जी से बातचीत के बाद बहुत से बच्चों ने अलग-अलग सवाल भी किए; एक बच्चे ने सवाल किया कि अगर विज्ञान शुरू से था तो रामायण और महाभारत कहाँ है से आये ? एक ने सवाल किया कि सभी कहते हैं कि ब्रह्मा ने पृथ्वी का निर्माण किया, क्या यह सच है? उनका सवाल वाजिब था। बच्चे जिस माहौल में रहते हैं, उसी में वे ढल जाते हैं। लेकिन पापा ने बच्चों को बताया कि लोगों की कल्पनाशीलता की अपनी दुनिया है। शिविर के एक साथी दीपक यादव और प्रेरणा देवंगन ने भी बताया कि लोग कल्पना में तैयार किए गए पात्रों को कैसे पूजते हुए भगवान का दर्जा दे देते हैं। प्रेरणा देवांगन और दीपक यादव ने हर दिन शिविर की शुरुआत बॉडी एक्सरसाइज, थिएटर गेम्स, चलने और बोलने के बीच सामंजस्य के लिए होने वाले एक्सरसाइज, डांस के जरिए की। रीडिंग के समय पात्रों के बारे में बातचीत की। बच्चों ने सवाल जवाब और डांस का खूब मजा लिया और इससे हमें रास्ता मिला कि हमें आगे बच्चों के साथ कैसे कार्यशाला लेनी है।

एक बात पर मैंने ध्यान दिया कि थिएटर गेम्स और एक्सरसाइज बच्चे बहुत मजे से करते हैं और इसे करने के लिए उत्सुक रहते हैं । जैसे मिरर एक्सरसाइज, आई कांटेक्ट करते हुए वे बहुत इन्जॉय करते। हमने इसे करवाए जाने के कारण बताए। ताल पर चलना, दौड़ना, उठना-बैठना भी कराया। इन बातों की सार्थकता भले ही सब बच्चे महसूस नहीं कर पा रहे हों लेकिन कुछ बड़े बच्चों ने इसकी उपयोगिता को समझा और हमसे शेयर भी किया। साइनो कहाँ हो तुम? नाटक में  तुषार पटेल, जयेश अग्रवाल, जयेश पटेल, कुमकुम भगत, सौम्या भगत, ईशिका गिरी, रुशमा सिंह, अबीर कंटक, वैदेही सिंह राजपूत, सिद्धार्थ स्वर्णकार, स्वस्ति पटेल, आराध्या बेरिया. वैभव अग्रवाल, विशेष मिश्रा, अनोखी यादव, भरत चौधरी, सूरज पटेल, सिद्धान्त मिश्रा, युविका राव, अर्णव गिरी, आदविक राव ने भाग लिया। दिव्य शक्ति संस्थान (कविता बेरीवाल) के द्वारा बच्चों को स्मृति हेतु गिफ्ट प्रदान किया गया। इसके बाद मालीडीपा के रंग शिविर के संयोजक कृष्ण कुमार साव और शोभा ने बताया और तीसरी जगह कृष्णा डायमंड हिल में विनोद बोहिदार और विकास  तिवारी संचालित कर रहे थे।

जैसा कि शोभा सिंह ने बताया

दूसरा शिविर मालीडीपा स्थित प्रज्ञा स्कूल में आयोजित किया गया था। जिसे कृष्णा साव और शोभा सिंह संचालित कर रहे थे। औपचारिक शिविर 10 मई से शुरू हुआ था, लेकिन शोभा ने बताया कि वे लोग अपना शिविर 5 मई से ही शुरू कर चुके थे। चूंकि इस बार बाल रंग शिविर को विज्ञान विषय पर केंद्रित किया गया था इसलिए हमारे लिए चुनौती वाली बात यह थी कि हमें विज्ञान संबंधित नाटक करवाने थे। विज्ञान संबंधित नाटक यूट्यूब, गूगल सभी में सर्च किया पर कुछ अच्छा नहीं मिला। कुछ नाटक व कविताएँ मिलीं पर हम संतुष्ट नहीं हो पा रहे थे। ऐसे ही कार्यशाला के 5 से 6 दिन हमने थिएटर गेम्स, शारीरिक व्यायाम, मिरर एक्सरसाइज और इंप्रोवाइजेशन करवाया। शुरुआत में यह सब करवाने से बच्चे आपस में खुलते हैं, घुल-मिल जाते हैं, उनके अंदर की झिझक खत्म हो जाती है। शुरू में 8-10 बच्चे ही थे लेकिन दिनोंदिन बच्चों की संख्या बढ़ती ही जा रही थी। इसमें से कुछ बच्चे पिछले 2-3 वर्षों से लगातार शिविर में शामिल हो रहे थे इसलिए वे यहाँ की गतिविधियों से परिचित थे, लेकिन कुछ बच्चे एकदम नए थे और पहली बार आये थे। यह तय ही नहीं हो पा रहा था कि कौन सा नाटक किया जाये! हमारे वर्कशॉप में 6-7 से लेकर 16-17 तक की उम्र के 40-45 बच्चे थे। वैसे तो हमने दो नाटक करने की योजना बनाई थी कि उम्र के हिसाब से बच्चों का बँटवारा कर दिया जाएगा लेकिन 15 दिन के शिविर में से 6-7 दिन निकल चुके थे और अब इतना समय नहीं था कि रोज के चार घंटे के शिविर में दो नाटक तैयार करवा सकें । साथ ही हमारे दिमाग में लगातार इस बात को लेकर हलचल मची हुई थी कि विज्ञान केंद्रित कौन सा नाटक तैयार करवाया जाए!

इस बीच कृष्णा भैया ने डभरा में रहने वाले अपने गुरु रामनाथ साहू सर से बात कर उन्हें समस्या बताई और उन्हें अपनी परेशानियों का कुछ हल निकालने को कहा; तब रामनाथ सर ने कहा कि मैं आपको पूर्ण रूप से नाटक तो लिखकर नहीं दे सकता पर नाटक की थीम पर थोड़ा थोड़ा लिखकर रूपक जैसा बनाकर दे सकता हूँ। बाकी संवाद-लेखन और इम्प्रोवाइजेशन आपको करना पड़ेगा । रामनाथ सर ने कुछ वैज्ञानिकों और उनके आविष्कारों को लेकर कुछ आवश्यक बिन्दुओं पर केंद्रित कर हमें कुछ लिखकर भेजा। जो हमारे लिए पर्याप्त था क्योंकि इसके बाद हमने भी उन जानकारियों को खोजकर गूगल और किताबों के माध्यम से एकत्रित कर काम शुरू किया। बच्चों के साथ रीडिंग की, कुछ बड़ी कक्षा में पढ़ने वाले बच्चों ने बहुत रुचि दिखाई और इस तरह हम बच्चों के साथ इम्प्रोवाइजेशन करते हुए बातचीत के माध्यम से संवाद लिखवाकर उन्हें पढ़वाते गए। इसी बीच पात्रों का चयन कर रोल बाँट दिया गया और साथ-साथ ब्लॉकिंग भी करवाते गए। शुरू के 7-8 दिन नाटक के चयन को लेकर तनाव और दबाव से गुजरे थे, उसके बाद रास्ता मिलने के बाद काम अच्छी तरह से शुरू हो गया और इस तरह से नाटक की शुरुआत हो गई। नाटक में सभी 40-45 बच्चों को शामिल करना था। इसका तोड़ निकाला गया कि इस 45 मिनट के नाटक में, जो संवाद पर आधारित था, केवल संवाद कहना और सुनाना बहुत मुश्किल होता है। इस वजह से नाटक के सीन ब्रेक करने के लिए गाने और डांस भी उसमें जोड़ें। इसके लिए बचे हुए 6 वर्ष से 10-11 वर्ष के बच्चों उपयोग किया गया। इससे सभी बच्चों को मंच पर आने का स्पेस मिला जो हमें बहुत ही सुकून दे रहा  था कि हमने किसी बच्चे को मौका देने से वंचित नहीं किया। बचपन मे खेल-खेल में गाए जाने वाले गीतों को ही संगीत के माध्यम से लयबद्ध कर सिखाया गया। सामूहिक प्रशिक्षण बच्चों को ज्यादा सक्रिय कर देता है और यह जल्द सीखने का अच्छा माध्यम होता है। यहाँ भी यही हुआ। सभी लोगों ने मस्ती करते हुए सभी गाने और संवादों को याद कर लिया। इस तरह रामनाथ साहू सर का लिखित नाटक ज्ञान का फूल विज्ञान के मंचन की तैयारी शुरू कर दी।

गाने की तैयारी के लिए उग्रसेन पटेल भैया और नृत्य सिखाने के लिए प्रेरणा देवांगन ने पूरी जिम्मेदारी उठाई। चूंकि गाने और बजाने वाले पर्याप्त संख्या में उपलब्ध नहीं थे इसलिए हम लोगों ने रिकॉर्डेड गाने में लोक नृत्य तैयार करवाया।

‘चोला माटी के राम’, ‘उठो सोने वालों’ और ‘बम बम भोले’ गीत उग्रसेन पटेल, राजू देवांगन, अविनाश मिश्रा ने तैयार करवाए।

 बच्चे उमंग और उत्साह के साथ सारी चीजों को सीखते गए। अपने स्वाभाविक स्वभाव के साथ बच्चे मस्ती और शैतानी तो कर ही रहे थे पर उसके साथ ही उन्होंने अपनी जिम्मेदारी भी बखूबी निभाते हुए अपना काम किया। इतने सारे बच्चों को संभालना थोड़ा मुश्किल था पर इनके साथ काम करके हम लोगों को भी बहुत मजा आया, हमने इनको सिखाया जरूर पर हम लोगों ने भी हमसे बहुत सारी चीजें सीखीं । बच्चों ने नाटक में उपयोग की जाने वाली सारी प्रॉपर्टी खुद अपने हाथों से बनाई, जो हमारे लिए अविश्वसनीय और अद्भुत थी। इस शिविर में संगीत सिखाने में उग्रसेन पटेल के साथ ढोलक पर राजू देवांगन ने सहयोग किया और लोकनृत्य प्रेरणा देवांगन ने तैयार करवाया। शिविर में और नाटक तैयार करवाने में अविनाश मिश्रा और इंद्राणी साव ने सहयोग किया। नाटक के निर्देशक थे कृष्ण कुमार साव और सहायक निर्देशक शोभा सिंह। इस शिविर में लक्ष्मी नारायण चौहान, राखी चौहान, अयान पटेल, देवांश राउल, आर्या मिश्रा, अंशिका पटेल, आयुष दुबे, अनंतनंदे, योगिता देवांगन, हनी डनसेना, पूर्वा डनसेना, मुस्कान पटेल, हेमानी पटेल, पर्ल मोटवां, प्रियंका निषाद, अलका निषाद, नंदिनी निषाद, योगिता निषाद,रेशम देवांगन, विद्या निषाद, प्रियाँशु साहू,  मानसी साहू, मानसी साहू, संस्कृति सिंह श्रीवास्तव, हिमानी साहू, शिवानी साहू, पूर्णिमा नायक, विनय नायक, तेजल निषाद, साक्षी सीदार, विश्वजीत साहू, सुदीक्षा साहू,मुस्कान साव, सोनल साव, कृतिका साव, रिहान पटेल, शिवम पटेल,सृष्टि पटेल, तृषा चौधरी, वंश झरिया, मयंक दास महंत और प्राची साहू। 

जैसा कि विनोद बोहिदार भैया ने बताया

इसी तरह तीसरा शिविर कृष्णा डायमंड हिल में इप्टा के वरिष्ठ साथी विनोद बोहिदार और विकास तिवारी संचालित कर रहे थे। इस जगह पर पहली बार बाल रंग शिविर का आयोजन हुआ था, जिसमें दस बच्चों ने हिस्सा लिया। शिविर का समय शाम 7 बजे से रात 10 बजे तक तय हुआ। यहाँ कोई ऐसी जगह नहीं थी जिसमें दिन की धूप से बचते हुए शिविर लगा पाते इसलिए कृष्णा डायमंड हिल कालोनी परिसर में ही रात के समय इसे संचालित किया गया। जैसा कि विनोद भैया ने बताया कि बच्चों की झिझक दूर करने के लिए खेल सबसे अच्छा माध्यम होता है और यहाँ भी बच्चों को थिएटर गेम खिलाने से शुरुआत हुई। जिसके बाद बच्चों ने खुलकर एक-दूसरे से बातचीत की, बच्चों में आपसी सामंजस्य देखने को मिला। मंच पर बिना माइक के उपयोग के कैसे अपनी आवाज दूर तक फेंकी जा सकती है, इसका अभ्यास कराया गया। साथ ही सुर, ताल और लय के बारे में जानकारी दी गई।

इस बार इप्टा ने विज्ञान आधारित नाटक करने का निर्णय लिया था। इसलिए मैंने बच्चों को खोडियार सर लिखित कविता रूपी नाटक पानी करवाने का तय किया। जिसमें पानी के बनने की कहानी को बच्चों ने बहुत ही सरल तरीके से नाटक के माध्यम से दिखाया। पानी को वैज्ञानिक भाषा में H2O कहते हैं और हाइड्रोजन के दो अणु ऑक्सीजन के एक अणु से क्रिया करने के बाद ही पानी के रूप में हमारे सामने आता है। पानी क्यों बहुत जरूरी है? नहीं रहने पर क्या दुर्गति होगी धरती की। कैसे इसे बचाया जा सकता है, सभी बातें नाटक के माध्यम से बताई। पहली बार नाटक करने वाले इन बच्चों ने पानी नाटक के इस गाने को बहुत आसानी से याद कर लिया।  यहाँ बच्चों से एक 5 मिनट का एक माइम नाटक एकता में ही बल है तैयार करवाया गया। जिसे 14-15 वर्ष के पाँच बच्चों द्वारा मंचित किया गया। पानी रोको..पानी रोको..पानी रोको भाई रे एक समूह गीत तैयार किया गया जिसमें पानी के महत्व को बताया गया है जिसे सभी बच्चों ने मगन होकर गाया। इस शिविर में नैतिक टांक, श्रीजीत रॉय, किंशुक पटेल, शिया नाग, अंशिका सांडेल, काव्याजली बरेठ, ईंवंशी भगत, अदिति वैष्णव,एश्नी वर्माऔर नाटक की सूत्रधार वेदिका बोहिदार ने हिस्सा लिया।

25 मई को इप्टा का स्थापना दिवस मनाया गया

25 मई 2023 को भारतीय जन नाट्य संघ (इप्टा) की स्थापना के 80 वर्ष पूरे हुए। 1943 में स्थापित इस वैचारिक सांस्कृतिक संस्था की स्थापना बंगाल के भीषण अकाल के दौरान अकाल पीड़ितों की सहायता के लिए की गयी थी, लेकिन जितनी जरूरत उन दिनों थी, बदलती हुई परिस्थिति में उतनी ही सख्त जरूरत आज भी है। और यही कारण है कि नई पीढ़ी में इसके बीज अंकुरित करने के लिए हर वर्ष देश के अनेक हिस्सों में ग्रीष्मकालीन बाल रंग शिविर का आयोजन किया जाता है ताकि आज के बच्चे जिनकी दुनिया मोबाइल और टीवी तक सीमित रह गई है उससे बाहर निकल अपने विजन को विस्तार दे सके। अपनी सोच-समझ से अपनी एक अलग रचनात्मक दुनिया गढ़ सके। इप्टा यह जिम्मेदारी पिछले अनेक वर्षों से महसूस कर रही है और इसके लिए इप्टा की अधिकतर इकाइयाँ ग्रीष्मकालीन बाल रंग शिविर आयोजित करती है। रायगढ़ इप्टा बाल रंग शिविर का आयोजन पिछले 25-26 वर्षों से कर रही है। इसी का परिणाम है कि रायगढ़ इप्टा में अगली लाइन बाल रंग शिविर से आये हुए बच्चे संभाल रहे हैं और अब यही बड़े हुए बच्चे अपनी अगली लाइन तैयार कर रहे हैं।

 इस वर्ष आयोजित बाल रंग शिविर का समापन, 25 मई को शाम 7.30 बजे पॉलीटेक्नीक ऑडिटोरीयम में रंगारंग कार्यक्रम से शुरू हुआ। भीषण गर्मी के बावजूद हाल पूरा भरा हुआ था इसके दो कारण थे एक तो कोरोना के बाद लगातार दूसरी बार बालरंग शिविर का आयोजन हुआ, जिसे देखने के लिए लोग उत्सुक थे और दूसरा बाल रंग शिविर में हिस्सा लिए बच्चों के माता-पिता अपने बच्चों को मंच पर नाटक खेलते हुए देखने आये थे। लेकिन यह अच्छा था कि हाल भरा हुआ था। बच्चे कास्टयूम पहने हुए ग्रीन रूम के बाहर उत्सुकता से आने वालों में अपने लोगों को खोज रहे थे। शाम चार बजे से आये हुए बच्चों को रिफ्रेश्मेन्ट के लिए नाश्ता और ठंडा पेय दिया गया। माइक लाइट की व्यवस्था तो दिन से ही थी लेकिन एक बार ट्रायल के लिए उसे जलाकर व बोलकर चेक किया गया।

इसके बाद बाड़, राजस्थान से आमंत्रित इप्टा के साथी खगोल शास्त्री और वैज्ञानिक अमिताभ पांडे और मुमताज़ भारती उर्फ पापा को मंच पर आमंत्रित किया गया. मंच पर उनका स्वागत इप्टा के सचिव भरत निषाद और संदीप स्वर्णकार ने किया। औपचारिक उद्घाटन के बाद अमिताभ पांडे को दो शब्द कहने के बुलाया गया। अमिताभ पांडे ने बहुत ही संक्षिप्त वक्तव्य दिया, जिसमें उन्होंने कहा कि आज हर काम को वैज्ञानिक दृष्टिकोण की जरूरत है क्योंकि जो धार्मिक उन्माद आज देश में जहर की तरह फैला हुआ है उसे दूर करने और धर्मनिरपेक्षता को बनाए रखने के यह जरूरी है। आज के समय को लेकर उन्होंने चिंता जाहिर की और कहा कि आने वाली पीढ़ी की मानसिकता को विज्ञान की तरफ मोड़ना पहला काम होना चाहिए।

कार्यक्रम में उग्रसेन पटेल और कृष्ण कुमार साव द्वारा तैयार गाना गाने बच्चे आये। उठे सोने वालों  सवेरा हुआ है, वतन के फकीरों का मेला हुआ है गाने के लिए 40 बच्चे मंच पर आये और पूरे उत्साह के साथ बच्चों ने इस गाने को गाया। इसके बाद एकता में ही बल है का मंचन हुआ, जिसे विनोद बोहिदार भैया ने तैयार करवाया था। मूक अभिनीत इस नाटक में बच्चों ने दिखाया कि एकता की शक्ति कैसे काम करती है। 5 मिनट के इस छोटे से नाटक में बच्चों ने बड़ा संदेश दिया और मजे लेते हुए इसका प्रदर्शन किया।

प्रेरणा देवांगन और शोभा सिंह द्वारा तैयार लोकनृत्य का प्रदर्शन हुआ, जिसमें देश के अनेक राज्यों के लोकनृत्य को कम्पाइल कर एक नृत्य के रूप में प्रस्तुत किया गया। पूरी ऊर्जा और ताकत के साथ बच्चों ने नृत्य किया। रंगबिरंगी ड्रेस और लाइट ने इस नृत्य को और अधिक आकर्षक बना दिया। इन लोकनृत्यों में महाराष्ट्र, आसाम, गुजरात, ओड़िशा, छतीसगड़ी राज्य के नृत्यों को शामिल किया गया था।

See Also

सिद्धि विनायक कॉलोनी में तैयार नाटक साइनो तुम कहाँ हो? का मंचन हुआ। इस नाटक को वरिष्ठ रंगकर्मी कल्याणी मुख़र्जी और शिबानी मुखर्जी ने लिखा। नाटक में पृथ्वी पर जीवों की उत्पत्ति कैसे हुई बताया गया है। एक कोशीय जीव कैसे अपना विकास कर पाए, इसके बारे में एक दूसरे से बातचीत है। किसी भी बड़ी क्लास के बच्चे के लिए भले ही यह नाटक आसानी से समझ आने वाला हो लेकिन 10-12 वर्ष के बच्चों के लिए इसे समझना वास्तव में मुश्किल काम है। लेकिन बच्चों ने कुछ समझते और कुछ न समझते हुए इसका मंचन किया और नाटक की ठीकठाक प्रस्तुति हुई। इस नाटक को श्याम देवकर और दीपक यादव ने निर्देशित किया था।

बम बम भोले गीत पर छोटे-छोटे बच्चों ने शानदार प्रस्तुति दी, शानदार इस वजह से कि सभी बच्चों को अपने बोल और एक्शन याद थे, सभी मिलाकर कर रहे थे। तैयार करवाने वाली प्रेरणा देवांगन वास्तव में तारीफ की हकदार है। क्योंकि घर पर एक या दो बच्चे नहीं संभलते हैं और यहाँ 25-30 बच्चों को अनुशासित तरीके से मंच पर प्रस्तुत करना बड़ी बात है।

इसके तुरंत बाद जीवन-मृत्यु के दर्शन का बखान करते हुए छतीसगढ़ का प्रसिद्ध लोकगीत चोला माटी के राम, एकर का भरोसा का सामूहिक गान हुआ, जिसे पंथी धुन में उग्रसेन पटेल ने तैयार करवाया था। बच्चों ने अच्छा गाया और उनकी ही आवाज सुनाई दे ऐसी मंशा गाना गाते हुए दिखाई दे रही थी।

इसके बाद खोडियार सर का लिखा हुआ कवितानुमा नाटक पानी हुआ। खोडियार सर लगातार बच्चों के बीच और बच्चों के लिए काम करते रहे हैं, इस वजह से वे बच्चों के मनोविज्ञान को इतना समझते हैं कि कितनी सरल भाषा में इसे लिखा जाए कि बच्चे समझते हुए अच्छे से खेल लें। लेकिन अपनी तरफ से एक जोड़ना चाहूँगी कि इस नाटक का नाम पानी के जगह एच टू ओ होता तो ज्यादा बेहतर होता। इस नाटक में पानी का निर्माण कैसे होता है और पानी क्यों जरूरी है इसे कविता के गाते हुए खेला गया। कुछ पात्र  हाइड्रोजन बने और कुछ ऑक्सीजन बने। बच्चों ने बहुत ही स्पष्ट रूप से अपने संवाद बोले। इस नाटक मे दो-तीन बच्चों ने बहुत ही अच्छा काम किया।

इसी नाटक के बच्चों ने पानी रोको..पानी रोको..पानी रोको भाई रे गाने की प्रस्तुति दी । इस गाने में पानी के अभाव में किसान, पशु-पक्षी, खेत-खलिहान, जानवर और प्रकृति से जुड़ा हर तन्तु किस तरह परेशान हो जाएगा का वर्णन है। मंच पर कृष्णा डायमंड हिल बाल रंग शिविर के बच्चों ने लय के साथ प्रस्तुति दी। सिद्धि विनायक बाल रंग शिविर के बच्चों ने गाँव छोड़ब नाहीं की प्रस्तुति की। इस गाने का अभ्यास आलोक बेरिया ने करवाया था।

गाने के बाद एक फिर नाटक ज्ञान का फूल विज्ञान का मंचन हुआ। 45 मिनट के इस नाटक में दुनिया भर में हुए आविष्कार कैसे हुए और किन वैज्ञानिकों ने किये, इसे छोटे-छोटे दृश्यों के माध्यम से नाटक को आगे ले जाया गया। एक खासियत यह थी कि इस नाटक के निर्देशक कृष्णा और शोभा ने पूरे के पूरे 45 बच्चों को मंच पर आने की जगह बनाई। दृश्य ब्रेक करने के लिए बीच-बीच में छोटे-छोटे बच्चों को गाते हुए प्रवेश करवाना और अगला दृश्य उसके बाद सामने आना अच्छा बन पड़ा था। इस नाटक में आर्किमिडीज (उत्प्लावन बल), सुश्रुत (फादर ऑफ कॉस्मेटिक सर्जरी), गणितज्ञ पाइथागोरस, चरक, नागार्जुन, आर्यभट्ट, गैलीलियो, न्यूटन, सी वी रमन (रमन प्रभाव), फैराडे, मैडम मेरी क्यूरी, जेम्स वाट, अल्बर्ट आइंस्टीन, मार्टिन कूपर, जगदीश चंद्र बसु जैसे महान वैज्ञानिकों की खोज पर आधारित बातचीत और आविष्कारों को नाटक में बच्चों ने बहुत ही अच्छे तरीके से दिखाया।

दो सूत्रधारों की मदद से टाइम मशीन के द्वारा पिछले काल-समय में पहुँचकर हो चुके आविष्कारों के वैज्ञानिकों से मिलना और  बात करना एक अच्छा प्रयोग था। इस नाटक में जितनी प्रॉपर्टी और विज्ञान मॉडल मंच पर दिखाए थे, सभी इन बच्चों ने बनाए थे। जो उनकी समझ और रचनात्मकता की एक बेहतरीन कोशिश दिखी। हालांकि नाटक कुछ लंबा था और समयाभाव के कारण कम हुई रिहर्सल दिख रही थी। लेकिन फिर भी तारीफ की जानी चाहिए।

सबसे अंत में एक समूह नृत्य हुआ मैथ्स में डिब्बा गुल। जिसमें मैथ्स से डरने और घबराने वाले बच्चों के लिए नसीहत थी। इसमें गणित में उपयोग होने वाले सभी साइन को प्रॉपर्टी के रूप में प्रयोग किया गया था। जो अच्छा लग रहा था। इस नृत्य के नृत्य निर्देशक थे युवा साथी अभिनन्दन दुबे।

इस बीच रायगढ़ इप्टा ने तीन दिन के लिए देश के प्रख्यात खगोल शास्त्री और वैज्ञानिक एवं इप्टा के वरिष्ठ सदस्य अमिताभ पांडे को वैज्ञानिक दृष्टिकोण और जीवन के बारे में बातचीत करने के आमंत्रित किया गया था। 23 मई को शाम को सिद्धिविनायक कॉलोनी में अमिताभ पांडे जी आये और बच्चों से बहुत बातचीत की। बच्चों ने उनसे आमने-सामने बात की और बहुत से सवाल किए जिसका उन्होंने वैज्ञानिक तरीके से जवाब भी दिया। बच्चे लगातार उनसे सवाल कर रहे थे और वे भी बच्चों की जिज्ञासाओं को शांत करने की कोशिश कर रहे थे।   

इप्टा के बाल रंग शिविर के समापन के अवसर पर मंच संचालन मंजुला चौबे ने किया। साथ बच्चों के उत्साह के बनाए रखने के लिए दिव्य शक्ति संस्थान की संचालिका कविता बेरिवाल ने सभी बच्चों को कार्यक्रम के बाद उपहार दिया। बच्चों का मेकअप संदीप स्वर्णकार, रमेश पाणि, अविनाश मिश्रा, प्रेरणा देवांगन, शोभा सिंह, प्रियंका बेरिया, आलोक बेरिया ने किया। इस शिविर को आयोजित करने और व्यवस्थित करने की जिम्मेदारी इप्टा के साथी रवींद्र चौबे, संदीप स्वर्णकार, टोनी चावडा, सुमित मित्तल, भरत निषाद, वासुदेव निषाद, हर्ष सिंह, सुरेन्द्र राणा, रमेश पाणि, स्वप्निल नामदेव ने की। 

पूरे कार्यक्रम में एक ही बात खटक रही थी जैसा कि अक्सर होता है कि बाल रंग शिविर में बच्चों को मंच, लाइट और माइक के उपयोग की समझ नहीं आ पाती है क्योंकि वे अभ्यास कहीं और करते हैं और फाइनल प्रदर्शन पूरे प्रॉपर्टी, लाइट, माइक के साथ होती है जिसके कारण वे इनसे सामंजस्य या तालमेल नहीं बिठा पाते । इसके बाद भी हम उनके काम और मेहनत को नकार नहीं सकते। इसमें आयोजक और निर्देशक भी कहीं से दोषी नहीं है बल्कि हमारे समाज और तंत्र में इस तरह की प्रदर्शनकारी या अन्य कलाओं को कभी गंभीरता से स्वीकार ही नहीं किया गया बल्कि पूरी तरह से मनोरंजन का एक साधन मात्र माना गया है। जबकि किसी बच्चे के व्यक्तित्व के निर्माण में नाटक जैसे सामूहिक कर्म की महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है।

समापन कार्यक्रम में प्रतिभागी बच्चों को दिया गया प्रमाणपत्र

What's Your Reaction?
Excited
0
Happy
0
In Love
0
Not Sure
0
Silly
0
Scroll To Top