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डाल्टनगंज में पंद्रहवाँ राष्ट्रीय सम्मेलन सम्पन्न : पहला दिन : कला का हाथ से रिश्ता ज़रूरी : प्रसन्ना

डाल्टनगंज में पंद्रहवाँ राष्ट्रीय सम्मेलन सम्पन्न : पहला दिन : कला का हाथ से रिश्ता ज़रूरी : प्रसन्ना

उषा वैरागकर आठले

(17, 18 व 19 मार्च 2023 को डालटनगंज में आयोजित इप्टा के पन्द्रहवें राष्ट्रीय सम्मेलन की रिपोर्ट तीन किश्तों में प्रस्तुत है। साथी मृगेंद्र सिंह, अर्पिता श्रीवास्तव तथा रवि शंकर की सहायता से रिपोर्ट बनाई गई है। फोटो रजनीश साहिल तथा अजय धाबरडे के सौजन्य से। प्रस्तुत है प्रथम किश्त)

25 मई 1943 को अपने स्थापना सम्मेलन के बाद इप्टा चौदह राष्ट्रीय सम्मेलनों का आयोजन कर चुकी है। देश भर में फैली अपनी सैकड़ों इकाइयों से जुड़े विभिन्न भाषा-संस्कृति के कलाकारों-सदस्यों का एक स्थान पर इकट्ठा होकर समसामयिक परिप्रेक्ष्य में विचार-विमर्श करना, एकदूसरे की सांस्कृतिक प्रस्तुतियों को देखना-सुनना तथा बड़े पैमाने पर आपस में मेलजोल करना सम्मेलनों में होता आया है। साथ ही अगले कुछ वर्षों तक राष्ट्रीय पदाधिकारियों का चुनाव और उनके द्वारा नीतियों का निर्धारण भी सम्मेलन का लक्ष्य होता है। इसी कड़ी में 2016 में इंदौर में आयोजित 14 वें राष्ट्रीय सम्मेलन के बाद कोविड-काल की चुनौतियों से निपटता हुआ 15 वाँ राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित किया गया।

17, 18 व 19 मार्च 2023 को झारखंड के पलामू जिले के डाल्टनगंज (मेदिनी नगर) शहर में इप्टा का पंद्रहवाँ राष्ट्रीय सम्मेलन सह जन-सांस्कृतिक महोत्सव सफलतापूर्वक सम्पन्न हुआ। इप्टा के दिवंगत राष्ट्रीय अध्यक्ष रणबीर सिंह के नाम पर मेदिनी नगर का नाम रणबीर सिंह नगर रखा गया है।

सम्मेलन के कर्टन रेज़र के रूप में 16 मार्च की शाम 4 बजे राष्ट्रीय महासचिव राकेश, उपाध्यक्ष तनवीर अख्तर, हिमांशु राय, सचिव उषा आठले, संयुक्त सचिव शैलेन्द्र कुमार तथा आयोजन समिति के अध्यक्ष डॉ. अरूण शुक्ला तथा कार्यकारी अध्यक्ष प्रेम भसीन द्वारा प्रेस कान्फ्रेन्स आयोजित की गई, जिसमें आगामी तीन दिनों में आयोजित सम्मेलन के बारे में राकेश ने विस्तृत जानकारी दी तथा पत्रकार साथियों द्वारा पूछे गए अनेक सवालों के जवाब दिये। जुलाई 2022 में डाल्टनगंज के साथियों द्वारा सम्पन्न किये गये युवा कार्यशाला के सफल आयोजन से आश्वस्त होकर इप्टा की राष्ट्रीय समिति ने 15 वें राष्ट्रीय सम्मेलन की ज़िम्मेदारी भी झारखंड इप्टा को सौंपी, जो सीमित संसाधनों के बाद भी उन्होंने स्वीकार की।

सम्मेलन के कर्टन रेज़र के रूप में शाम 6 बजे से इंदौर इप्टा का नाटक ‘धीरेन्दु मजुमदार की माँ’ मंचित किया गया। ललिताम्बिका अंतर्जनम की मूल मलयालम कहानी का नाट्य रूपान्तरण एवं निर्देशन किया था जया मेहता एवं विनीत तिवारी ने। यह कहानी 1970 के दशक में लिखी गई थी, जब बांग्ला देश का मुक्ति संग्राम हुआ था और एक देश के रूप में पूर्वी पाकिस्तान से उसे बांग्ला देश की नई पहचान हासिल हुई थी। जो लोग पहले अंग्रेज़ों के शोषण के शिकार थे, वे बाद में पश्चिमी पाकिस्तान के शोषण के शिकार हुए थे और शेख मुजीबुर्रहमान के नेतृत्व में उन्हें एक आज़ाद पहचान हासिल हुई। इस मुक्ति संग्राम में बहादुरी के साथ योगदान देने वाले अनेक लोगों में से एक धीरेन्दु भी एक था, जिसके जज़्बे से प्रेरित होकर उसकी माँ भी समूचे मुक्ति संग्राम में अपने बेटे को खोने के बाद भी तन-मन-धन से सहयोग करती हैं। इसकी मुख्य पात्र फ्लोरा बोस 200 से अधिक नाटकों और फिल्मों में अभिनय कर चुकी हैं। नाटक में अन्य भूमिकाओं में थे सारिका श्रीवास्तव, निशा, मनु, उजान, युवराज, लक्ष्य, शॉवलीन और ताहिर सिद्दीकी। निर्देशक जया मेहता ने कहा कि यह नाटक विभाजन की त्रासदी और उसके कारण विस्थापित होने वाले लोगों के साथ समकालीन मुद्दों पर तीखे सवाल खड़े करता है। स्क्रीन पर अनेक दृश्यों, कमेन्ट्री तथा मंच पर अभिनय के कोलाज से यह कथा प्रस्तुत की गई थी।

17 मार्च 2023 को सुबह 10 बजे पहला प्रतिनिधि सत्र आयोजित किया गया। इससे पूर्व 9 बजे इप्टा के उपाध्यक्ष एवं वरिष्ठ रंगकर्मी समिक बंदोपाध्याय द्वारा झंडोत्तोलन किया गया। तत्पश्चात इप्टा की विभिन्न इकाइयों ने जनगीत प्रस्तुत किये। प्रतिनिधि सत्र में सबसे पहले महासचिव राकेश ने पिछले वर्षों में बिछुड़े हुए इप्टा के पदाधिकारियों, सदस्यों, अन्य संस्कृतिकर्मियों के निधन पर दुख व्यक्त करते हुए श्रद्धांजलि अर्पित की तथा उपस्थित प्रतिनिधियों ने एक मिनट का मौन रखा।

प्रख्यात नाट्य निर्देशक प्रसन्ना, इप्टा के उपाध्यक्ष फिल्मकार समिक बंदोपाध्याय, संगीतज्ञ सीताराम सिंह, तनवीर अख्तर, टी.वी. बालन, हिमांशु राय, अमिताब चक्रवर्ती की अध्यक्षता में महासचिव राकेश, सचिव मंडल सदस्य फिरोज अख्तर खान तथा उषा आठले ने महासचिव की रिपोर्ट प्रस्तुत की। राकेश ने कहा कि इप्टा की शानदार विरासत को याद करना ज़रूरी है, लेकिन आज के हालात से भी आँख मिलाना ज़रूरी है। होमी भाभा, ख्वाजा अहमद अब्बास, चित्तोप्रसाद जैसे हजारों नाम हैं, जिन पर हम गर्व कर सकते हैं लेकिन आज के हालात में अपनी ताकत और जनता से रिश्ते को परखना भी ज़रूरी है। साथी राकेश ने अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य में फासीवादी ताकतों के बढ़ने पर प्रकाश डाला।

इप्टा के राष्ट्रीय सचिव साथी फिरोज अशरफ खान ने राष्ट्रीय परिदृश्य पर महासचिव के विचारों को वाणी दी। इसीतरह राष्ट्रीय सचिव उषा आठले ने संगठन के कार्यों का ब्यौरा प्रस्तुत किया। इस सत्र में विशिष्ट अतिथि के रूप में प्रगतिशील लेखक संघ के महासचिव सुखदेव सिंह सिरसा तथा वैज्ञानिक और शायर गौहर रज़ा विशिष्ट अतिथि के रूप में सहभागी थे।

भोजनोपरांत इप्टा के राष्ट्रीय सम्मेलन में पधारे देश भर के कलाकारों, रंगकर्मियों, संस्कृतिकर्मियों ने सांस्कृतिक रैली निकाली। गांधी स्मारक भवन से शुरु होकर नगर के विभिन्न सड़कों-गलियों-चौक-चौराहों से होते हुए रैली शिवाजी मैदान में समाप्त हुई। एकता, समता, शांति, सद्भाव और भाईचारे का संदेश देते हुए इप्टा के सैकड़ों कलाकारों ने भारत की मिलीजुली सांझी संस्कृति की झाँकी प्रस्तुत की।

शहरवासियों को अभिभूत करने वाले इस अभूतपूर्व दृश्य में नगाड़ों की गूँज, मादर-ढोलक की थाप के साथ ही बैंड की धुन पर थिरकते कलाकार लोकनृत्य, लोकगीत, जनगीत गाते हुए लहराते नीले, पीले, हरे, लाल झंडे के साथ दिखाई दे रहे थे। मनुष्यता की आवाज़ बुलंद करते हुए विभिन्न प्रदेश इकाइयों के बैनर थामे संस्कृतिकर्मियों की पाँतें लगभग दो घंटे तक डाल्टनगंज के समाँ को गूँजाती रहीं। इस सांस्कृतिक रैली में भारत के उत्तर से लेकर दक्षिण तक और पूरब से लेकर पश्चिम तक की संस्कृति का नज़ारा देखा जा सकता था। सबसे आगे पारम्परिक परिधान में नगाड़ा वादकों का दल पूरे वातावरण को गुँजायमान कर रहा था। झारखंड इप्टा के साथी पारम्परिक परिधान व वाद्ययंत्रों के साथ संथाली नृत्य प्रस्तुत कर अमन व भाईचारे का संदेश दे रहे थे।

उड़ीसा के साथी ओड़िसी नृत्य करते हुए चल रहे थे। उत्तर प्रदेश का दल ढोलक, झाँझ और घुँघरुओं की झंकार के साथ धोबिया लोकनृत्य प्रस्तुत करते चल रहा था। पंजाब के साथी पारम्परिक परिधानों के साथ पंजाबी लोकनृत्यों की झाँकी प्रस्तुत कर रहे थे। केरल, आंध्रप्रदेश, कर्नाटक, तेलंगाना, बंगाल, राजस्थान, दिल्ली, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, बिहार, चंडीगढ़ सहित सभी राज्यों के कलाकार, रंगकर्मी, साहित्यकार, नौजवान, महिलाओं ने सांस्कृतिक रैली में शामिल होकर इप्टा के 15 वें त्रिदिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन का आगाज किया। रैली तीनकोनिया, छहमुहान, शहीद भगतसिंह चौक, सत्तार सेठ चौक, विष्णु मंदिर रोड़, पचमुहान, जिला स्कूल चौक, प्रधान डाकघर होते हुए शिवाजी मैदान पहुँची।

शहर में जगह-जगह रंगयात्रा का स्वागत ठंडे पानी, शरबत, बिस्किट आदि से किया गया। अंजुमन इस्लाहुल समिति, भारतीय मानवाधिकार संघ, खुला मंच सहित विभिन्न सांस्कृतिक संगठनों ने रैली का आत्मीय स्वागत किया। समूची रंगयात्रा का लाइव प्रसारण साथी आदि केशवन ने किया।

रैली का समापन 15 वें राष्ट्रीय सम्मेलन के उद्घाटन समारोह के रूप में शिवाजी मैदान में हुआ। अपने आरम्भिक वक्तव्य में वरिष्ठ रंगकर्मी एक्टिविस्ट प्रसन्ना ने कहा कि आज हम संकट के समय में मिले हैं, जब गरीब और गरीब तथा अमीर और ज़्यादा अमीर होते जा रहे हैं। आज काम का हाथ से, कला से रिश्ता टूट गया है। हमारा काम ही हमारा भगवान है। मंदिर, मस्जिद, चर्च बनाने से ईश्वर, खुदा या गॉड से रिश्ता नहीं बनाया जा सकता, बल्कि काम के जरिए ही ईश्वर से रिश्ता बनता है। यही संतत्व है। संत रविदास को याद करते हुए उन्होंने कहा कि अपनी मिट्टी से रिश्ता ही ईश्वर से रिश्ता है।

उद्घाटन सत्र में वरिष्ठ संस्कृतिकर्मी और शायर गौहर रज़ा ने ‘सच ज़िंदा है’ नज़्म से अपनी बात शुरु की। उन्होंने कहा कि आज के दौर में सच को कहना बेहद ज़रूरी है। आज ये दौर जो शुरु हुआ है, उसमें 70 साल में बना हमारे देश का ढाँचा टूट रहा है। न्यायालय, शिक्षा, मीडिया समेत अन्य सभी क्षेत्रों में जिस तरह के काम हो रहे हैं, उससे संदेह होता है कि आगे गरीब का बेटा पढ़ भी पाएगा या नहीं। आयोजन समिति के अध्यक्ष डॉ. अरूण शुक्ला ने कहा कि समानता, स्वतंत्रता, न्याय और बंधुत्व की हिफाजत के लिए समाज में फैले वैमनस्य को दूर करने के लिए और प्रेम के संदेश को लेकर यह आयोजन किया जा रहा है। यह पलामू जिले के लिए गर्व की बात है कि देश के सबसे बड़े सांस्कृतिक संगठन इप्टा का राष्ट्रीय सम्मेलन डाल्टनगंज शहर में हो रहा है, जिसमें देश भर से 600 से अधिक कलाकार और रंगकर्मी हिस्सा लेंगे और भारत की बहुआयामी लोक परम्परा की विविध साझी सांस्कृतिक विरासत को प्रस्तुत करेंगे।

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प्रगतिशील लेखक संघ के राष्ट्रीय महासचिव सुखदेव सिंह सिरसा ने इप्टा के साथ मिलकर किसान आंदोलन में अढ़ाई घंटा मंच साझा करने की स्मृतियों को साझा किया तथा सांस्कृतिक आंदोलन को साथ-साथ आगे बढ़ाने का संकल्प दोहराया। प्रसिद्ध कथाकार रणेन्द्र ने अपने वक्तव्य में कहा कि हिंसा की संस्कृति बहुत पुरानी है, जो एक ओर जाति-व्यवस्था के कारण और दूसरी ओर पितृसत्ता के कारण बलवती होती रही है। साम्प्रदायिकता की जड़ें भी बहुत गहरी हैं लेकिन ऐसी अनेक कथाएँ बिखरी पड़ी हैं जो मनुष्यता के पक्ष में हैं। इन पर नाटक गढ़े जा सकते हैं। प्रगतिशील लेखक संघ झारखंड के महासचिव मिथिलेश ने भी संबोधित किया तथा इप्टा के राष्ट्रीय सम्मेलन के लिए शुभकामनाएँ प्रेषित कीं।

मंच पर देश के विभिन्न हिस्सों से आए हुए अतिथि तथा प्रतिनिधियों ने सभा को संबोधित किया। इनमें प्रगतिशील लेखक संघ के राष्ट्रीय महासचिव सुखदेव सिंह सिरसा (पंजाब), इप्टा के राष्ट्रीय महासचिव राकेश (उत्तर प्रदेश), टी.वी.बालन तथा एन. बालचंद्रन (केरल), हिमांशु राय (मध्यप्रदेश), पद्मश्री मधु मंसूरी तथा लेखक द्वय रणेन्द्र तथा मिथिलेश (झारखंड), सीताराम सिंह, तनवीर अख्तर तथा फिरोज अशरफ खान (बिहार), ज्योत्सना रघुवंशी, वेदा राकेश (उत्तर प्रदेश), राजेश श्रीवास्तव (छत्तीसगढ़), उषा आठले (महाराष्ट्र) तथा ऑल इंडिया स्टूडेन्ट फेडरेशन के राष्ट्रीय महासचिव विकी माहेश्वरी (पंजाब) उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन इप्टा के राष्ट्रीय संयुक्त सचिव शैलेन्द्र कुमार ने किया।

उद्घाटन अवसर पर चार पुस्तकों का विमोचन किया गया। लोकमित्र प्रकाशन से निरंजन सेन द्वारा अंग्रेज़ी में लिखित तथा मित्रा सेन मजूमदार, जाहिद खान द्वारा अनूदित ‘इप्टा की अनकही कहानियाँ’, इप्टा के लोगो ‘नगाड़ा बजाता हुआ वादक’ के चित्रकार चित्तोप्रसाद के समूचे अवदान पर केन्द्रित अशोक भौमिक लिखित पुस्तक ‘चित्तोप्रसाद’, सचिन श्रीवास्तव एवं एड. नवीन गौतम द्वारा लिखित ‘हमारा संविधान और न्यायिक अधिकार’ तथा मानक प्रकाशन से अवधेश सिंह के संपादन में प्रकाशित ‘जन संस्कृति के नायक राजबली यादव’ किताबों का विमोचन मंचस्थ अतिथियों द्वारा किया गया।

नीलाम्बर-पीताम्बर लोक महोत्सव के अंतर्गत शाम को सांस्कृतिक संध्या का आयोजन हुआ। इसकी शुरुआत झारखंड के आदिवासी कलाकारों द्वारा नगाड़ा वादन से हुई। उसके बाद बिहार इप्टा के कलाकारों ने लक्ष्मीप्रसाद यादव के नेतृत्व में ‘अइले नगाड़ा ले के इप्टा मैदान में’ जनगीत प्रस्तुत किया। छत्तीसगढ़ इप्टा के साथियों ने मणिमय मुखर्जी के नेतृत्व में सलिल चौधरी की धुन पर जनगीतों की प्रस्तुति दी।

झारखंड के सोनाहातू राँची के कलाकारों ने सुचांत महतो के नेतृत्व में पाईका लोकनृत्य की शानदार प्रस्तुति दी। बिहार इप्टा के कलाकारों ने श्वेता भारती के नृत्य संयोजन में झिझिया लोकनृत्य तथा उड़ीसा इप्टा ने ओड़िया नृत्य प्रस्तुत किया।

पद्मश्री मधु मंसूरी हसमुख ने जल-जंगल-ज़मीन से उजाड़े जा रहे आदिवासी समूहों की व्यथा को व्यक्त करते अपने प्रसिद्ध गीत ‘गाँव छोड़ब नाहीं’ तथा विनय-चारुल लिखित गीत ‘मेरे लिए काम तो नहीं’ सुनाए।

कार्यक्रम के अंत में अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त सूफी गायक मीर मुख्तियार अली ने अपने सूफी गायन से समा बाँधा। उन्होंने नफरत के खिलाफ प्रेम की अलख जगाते हुए अमीर खुसरो, कबीर, गुलाम फरीद, बुल्ले शाह जैसे प्रेम और सद्भाव को तरजीह देने वाले सूफियों के कलाम प्रस्तुत किये। सांस्कृतिक संध्या के दौरान देश भर से आए इप्टा के प्रतिनिधियों के अलावा डाल्टनगंज शहर के सैकड़ों दर्शक मौजूद रहे।

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