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इप्टा रायगढ़ का सत्ताइसवाँ राष्ट्रीय नाट्य समारोह : तृतीय किश्त

इप्टा रायगढ़ का सत्ताइसवाँ राष्ट्रीय नाट्य समारोह : तृतीय किश्त

उषा वैरागकर आठले

पिछली किश्त में हमने इप्टा रायगढ़ के सत्ताइसवें नाट्य समारोह के तीसरे दिन संपन्न हुए बारहवें शरदचंद्र वैरागकर स्मृति रंगकर्मी सम्मान समारोह और उसी दिन रात में मंचित हुए नाटक ‘अँधेरे में’ की रिपोर्ट पढ़ी। इस अंतिम किश्त में हम चौथे और पाँचवें दिन खेले गए नाटकों के बारे में पढ़ेंगे। इस नाट्य समारोह की एक विशेषता यह भी रही कि इस बार नाट्य मंचनों के अलावा युवाओं की साहित्यिक प्रतिभा को मंच प्रदान करने के लिए अंतिम दिन 15 जनवरी 2023 को सुबह 11 बजे से पॉलिटेक्निक ऑडिटोरियम के सामने ‘चौपाल’ कार्यक्रम आयोजित किया गया। इसमें वरिष्ठ रचनाकारों के साथ-साथ युवा रचनाकारों ने भी अपनी रचनाओं का पाठ किया। युवा रचनाकारों में अनुराधा शर्मा, ऊर्जा जैन, सिद्धांत शर्मा, एल एन सिंह, निर्मल छाबरा, सोनू बरेठ, सौरभ शर्मा, शोभा सिंह, भरत निषाद, श्याम देवकर के अलावा वरिष्ठ रचनाकारों विनोद बोहिदार, हर्ष सिंह, रविंद्र चौबे ने रचना-पाठ किया। कई रचनाकारों ने पहली बार मंच पर कविता-पाठ किया था। इससे उन्हें मंच पर सबके सामने आने और पढ़ने के लिए काफी हिम्मत और प्रोत्साहन मिला।

इस किश्त की विशेषता यह है कि प्रस्तुत दोनों नाटकों की रिपोर्ट रायगढ़ इप्टा की पुरानी रंगकर्मी और वर्तमान में जमशेदपुर इप्टा में बच्चों के साथ बेमिसाल रंगकर्म करने वाली बहुत समर्पित साथी अर्पिता ने लिखी है। अर्पिता प्रति वर्ष रायगढ़ इप्टा के नाट्य समारोह में अनिवार्य रूप से पहुँचती ही है और उस दौरान हर छोटेमोटे काम में हाथ बँटाती है। इस वर्ष अर्पिता श्रीवास्तव अंतिम दो दिन के लिए पहुँची और दोनों दिन के नाटक देखकर उसने जो रिपोर्ट/समीक्षा लिखी, वही इस किश्त में जोड़ रही हूँ। उल्लेखनीय है कि रायगढ़ इप्टा की पूर्व सचिव अपर्णा इन दिनों वाराणसी में रहती है, मगर वह भी नाट्य समारोह के दौरान आकर मदद करती है।

‘रंग अजय’ रायगढ़ इप्टा के सत्ताइसवें नाट्य समारोह के चौथे दिन भिलाई इप्टा की प्रस्तुति हुई।

पहले ‘आप किस चीज़ के डायरेक्टर हो’ नाटक की संक्षेप में कथा। नाटक में महाभारत काल के भीम को आज के आम आदमी का प्रतिनिधि बनाया गया है, जो दुर्लभ है। वहीं नाटक में दुर्योधन अराजकता, लूट-मार और भ्रष्टाचार का प्रतीक है, सत्ताधारी शक्तिशाली व्यक्ति है। महाभारत में तो भीम दुर्योधन को पटकने में सफल होता है, लेकिन आज के माहौल में दुर्योधन ही भीम पर हावी है। नाटक का छत्तीसगढ़ी रूपांतरण किया है युवा साथी चंद्र किशोर ने।मंच पार्श्व के सहयोगी हैं, वस्त्र-सज्जा – कविता पटेल, संगीत – भारत भूषन परगनिहा का, सहयोग है – राजेश श्रीवास्तव, मणिमय मुखर्जी, सुचिता मुखर्जी, रोशन घडेकर, शैलेश कोडापे, संदीप गोखले, चित्रांश तथा अमिताभ का।

अब अर्पिता की रिपोर्ट प्रस्तुत है। ‘आप कौन चीज़ के डायरेक्टर हो’ यह शीर्षक ही आकर्षित करने वाला है और युवा साथियों रोहित, श्रीकांत, नरेंद्र, कनिष्क, आकाश, गोपेश, अंकित, अमित, प्रियांशु और विक्रम की मंचीय प्रस्तुति के साथ इसके निर्देशक भी युवा साथी चारू श्रीवास्तव हैं। इसके नाटककार पलामू के युवा साथी सैकत चटर्जी हैं। जिन्होंने महाभारत के दुर्योधन वध की नौटंकी को नाटक के कथानक के रूप में इस्तेमाल करते हुए नौटंकी को साकार करने की जद्दोजहद में लगे डायरेक्टर और अन्य सभी पात्रों के माध्यम से वर्ग, जाति के जड़ संस्कार का अनुभव कराया है। नौटंकी के मालिक के ताव को किस तरह चाटुकारिता से नौटंकी का डायरेक्टर साधता है, जो दर्शाता है कि अपना उल्लू सीधा करना किस तरह से समाज में हर क्षेत्र में प्रचलित है और सबके जीवन अभ्यास से जुड़ी बात है। इसी तर्ज़ पर नौटंकी के डायरेक्टर का पात्र अभिनीत करने वाला अभिनेता पूरे नाटक में अपने आपको ग्रेट डायरेक्टर कहते हुए बाकी कलाकारों को साधते हुए दिखता है। ‘दुर्योधन वध’ नाम की नौटंकी में पात्र हैं कृष्ण, भीम, दुर्योधन और संगीतकार। हर पात्र की अपनी अपेक्षाएँ हैं और उसे पूरा करने की कोशिश में नौटंकी के डायरेक्टर से संवाद रोचक हैं और हास्य पैदा करते हैं। हास्य की टाइमिंग अच्छी बन पड़ी है। मंच-सज्जा ऐसी है जिसे किसी भी प्रकार के मंच में आसानी से इस्तेमाल किया जा सके। नाटक में सभी अभिनेताओं ने इंवॉल्व होकर काम किया, जिसका प्रतिफल था दर्शकों की सहज और तत्पर प्रतिक्रिया जिसकी प्रतीक्षा में हर कलाकार होता है।

आज की प्रस्तुति में संगीत पक्ष कमज़ोर महसूस हुआ और नाटक में भी थोड़े कसाव की संभावना लगती है। शुरुआत में जब नाटक शुरू हुआ था तो यह समझना मुश्किल था कि नाटक का अंत कहाँ होगा; पर तमाम बातचीत और दृश्यों के साथ अचानक से दर्शक दीर्घा में बैठे दो पात्रों की खीझ उभरती है और उनके मंच पर आते ही हास्य में उभरे और समाज में प्रचलित जीवन अभ्यास को चुनौती मिलती है और एक के बाद एक सवाल तरकश के तीर की तरह निकलते हैं और हम यथार्थ के धरातल पर अपना चेहरा देख रहे होते हैं। नाटक जिस नोट में दर्शकों को छोड़ रहा है, वह नाटककार की सामाजिक प्रतिबद्धता को दर्शाता है। ऐसे हल्के – फुल्के अंदाज़ में खेले हुए नाटक दर्शकों की स्मृति में टँक जाते हैं, ऐसा लगता है।

रायगढ़ इप्टा के सत्ताइसवें नाट्य समारोह के पाँचवें और अंतिम दिन बिलासपुर इप्टा का नाटक ‘जामुन का पेड़’ मंचित हुआ। पढ़िए अर्पिता श्रीवास्तव की समीक्षा।

कृष्णचंदर की प्रसिद्ध रचना जामुन का पेड़ हमारे सरकारी तंत्र का किस्सा सुनाती ऐसी कहानी है जो आज भी मौजूं है। आज़ादी से पहले सिर्फ उर्दू के अफ़सानानिगार रहे कृष्णचंदर के कहने का अंदाज़ हास्य और व्यंग्य का ऐसा कॉम्बिनेशन है जिसे बार-बार पढ़े जाने की चाह पैदा होती है। इसके अलावा हमारे समय, समाज और तंत्र पर पैनी निगाह रखने वाली किसी भी रचना को बरतने का सलीका रखने वाले इसे हमेशा ज़िंदा रखते हैं और इसके माध्यम से जन तक अपनी बात पहुंचाते हैं। इसी कड़ी में बिलासपुर इप्टा द्वारा इसका चयन किया जाना प्रशंसनीय है। आज तक कई कहानियों की प्रस्तुतियाँ हमने देखी हैं। कहानी को समग्रता में मंच पर प्रस्तुत किया गया है। कहानी को जस का तस प्रस्तुत कर देने का अपना अंदाज़ होता है पर उसे प्रस्तुति के रूप में इंप्रोवाइज करना एक ऐसा कौशल है जिसमें कहानी के साथ छेड़छाड़ किए बगैर कहानीकार की बात को रखा जाता है, जिसे बिलासपुर इप्टा के साथियों ने बखूबी निभाया है। कहानी की नाटकीय प्रस्तुति के लिए निर्देशक ने कहन शैली और संवादों की बनावट कहीं हास्य, कहीं व्यंग्य शैली में बुनी है।आज की सामाजिक और राजनीतिक स्थितियों को स्पष्ट बिंबों के माध्यम से कहा गया है जिससे दर्शक सहज ही स्वयं को कनेक्ट कर पा रहे थे और जिसकी प्रतिक्रिया ताली और हँसी के रूप में ऑडिटोरियम में उपस्थित रही, जिसे साथी कलाकारों ने अपने किरदार में जिया।

कहानी शुरू होती है सरकारी प्रांगण में जामुन के पेड़ के नीचे दबे एक व्यक्ति को बाहर निकालने की कवायद से, जिसे शुरू करता है वहाँ का तृतीय वर्ग कर्मचारी अपने अधिकारी को सूचना देकर। और बस यहीं से सरकारी महकमे में एक सामान्य जन की फाइल का एक विभाग से दूसरे विभाग में आवाजाही का सिलसिला शुरू होता है जिसके इर्दगिर्द नियमों का तानाबाना रचा जाता है। सरकारी नियमों को बस सामान्यजन के लिए ही दोहराया जाता है और पालन किया जाता है जिसकी बानगी इस कहानी में है। सही दिशा में सोच रहे कर्मचारी भी अफसरों की अकर्मण्यता, नौकरशाही और अगले पर थोपने की दुष्प्रवृत्ति से उनके बहकावे में आकर आमजन को त्रस्त करने को मजबूर होते हैं और फाइल के मुकम्मल होने की खबर आने से पहले ही जामुन के पेड़ के नीचे दबे शख़्स की ज़िन्दगी मुकम्मल हो जाती है। इस कहानी के इर्दगिर्द ही पूरा तानाबाना रचा गया है। नाट्य प्रस्तुति में कुछ संवादों के चुटीलेपन जेहन में अंकित हो गए जैसे –

  • जामुन का पेड़ गिरा है सरकार नहीं
  • पेड़ गिरा है न पैसा तो नहीं
  • फाइल राफेल बन जाएगी
  • पेड़ ही तो हटाना है मंदिर – मस्जिद थोड़े हटाना है
  • रिपोर्टर द्वारा पेड़ के नीचे दबे व्यक्ति से यह सवाल – पेड़ के नीचे दबे रहने से कैसा लग रहा है?

इसी तरह के और भी कई संवादों ने कहानी को मंच पर जीवंत कर दिया।
सेंटर स्टेज में पेड़ के नीचे दबे व्यक्ति का अभिनय कर रहे अमित शुक्ला का अभिनय जीवन्त रहा। उसने एक क्षण के लिए भी अपने आप को उस पीड़ा से मुक्त नहीं किया और हर बार किसी भी सरकारी/ग़ैर-सरकारी व्यक्ति के उसके ऊपर चढ़कर मुआयना करते समय यही महसूस हुआ कि वह सचमुच में पेड़ के नीचे दबा है।

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सरकारी ऑफिस में किसी निर्णय के लिए उच्च से उच्चतर अफसर के बीच अभिनीत दृश्य, मीडियाकर्मी द्वारा टी वी में आमंत्रित लोगों में पक्ष, विपक्ष और धर्म-गुरु से संवाद वाला दृश्य भी अच्छा बन पड़ा है। डॉक्टर का अभिनय कर रहे कलाकार साथी संदीप ने अपनी बॉडी लेंग्वेज और अभिनय से प्रभावित किया। पूरे नाटक में तीन पात्रों का अभिनय एक स्त्री कलाकार साथी साक्षी ने निभाया जिसकी तारीफ़ की जानी चाहिए पर यह सवाल भी आना चाहिए कि थियेटर देखने वाली दर्शक-दीर्घा में तो सभी शामिल रहते हैं पर मंच के लिए लड़कियों की संख्या उंगली में गिनी जा सकती है जो एक चुनौती है और वो भी इप्टा जैसे संगठन के साथ, जहाँ नाटक करने के पीछे सिर्फ मनोरंजन शामिल नहीं रहता बल्कि रंग-यात्रा के साथ एक ज़िम्मेदार नागरिक बनने की भी प्रक्रिया चलती है। इस नाटक के निर्देशक मोबिन अहमद हैं साथी कलाकार हैं- अमित शुक्ला, वैभव त्रिवेदी, सचिन शर्मा, रितेश तिवारी, सोनू महन्त, संदीप नायक, साक्षी शर्मा, मोबिन अहमद, जितेन्द्र पांडे, घनश्याम सिंह, सी एस ओंटेन, आदित्य सोनी, डॉ.छेदी ओठे। किसी भी प्रस्तुति में जब युवा या बाल कलाकार दिखते हैं तो हौसलों को पंख मिलते हैं और लगता है कि इप्टा की विरासत को आगे ले जाने वाले नए साथी सफ़र में जुड़ रहे हैं।

मंच पार्श्व में सहयोगी कलाकार थे – संगीत मंडली में सरजू साहू, बजरंग भोई, रामसहाय निसाद, मोबिन अहमद, साक्षी शर्मा, नेहा कश्यप। मंच-सज्जा की थी – मोबिन अहमद ने, वेशभूषा और रूपसज्जा – सुमन शर्मा तथा मोबिन अहमद, प्रकाश व्यवस्था – सचिन शर्मा ने की थी। संगीत पक्ष अपनी बात कहने में सफल रहा पर अभिनय की तुलना में उन्नीस ही रहा। मुझे लगता है कि हर नाट्य समूह को इसकी गंभीरता पर विचार किए जाने की आवश्यकता है। हम अपने साथी कलाकारों में ही रंग-संगीत को सीखने और आगे ले जाने के लिए प्रोत्साहित करें। एक बात नाट्य प्रदर्शन के बाद ध्यान में आई कि जब हम किसी प्रदर्शन में अपने पुरखे कवियों, शायरों की रचनाएँ लेते हैं तो उनका ज़िक्र ब्रोशर में कर देने का सिलसिला शुरु करना चाहिए या मंच से जब साथी कलाकारों में नाटककार, संगीतकार और गीतकार का ज़िक्र हम करते हैं, उनका नाम लेते हैं तो दर्शकों को नाटक में प्रयोग की गई कविताओं, नज़्मों के रचनाकारों से भी परिचित कराएँ। यह ख़्याल आया जब इस नाटक के आख़िर में शायर साहिर लुधियानवी की नज़्म का इस्तेमाल किया गया – ‘ये सुबह ज़रूर आएगी, ये सुबह हमीं से आएगी’। कम से कम इसी बहाने दर्शकों के कान में हमारे पुरखों के नाम जाएँ जो कि अब किताबों की दुनिया से दूर हो चुके हैं।


रायगढ़ जैसी छोटी-सी जगह में एक समय था जब गिने-चुने आयोजन होते थे और दर्शक बेसब्री से हर तरह के आयोजन का इंतज़ार करते थे पर आज के समय में आयोजन के अलग तरह के रूपों ने भी यहां प्रवेश किया है जिसकी वजह से हम सोच रहे थे कि दर्शक कम आयेंगे। पर शहर में होने वाले अन्य आयोजनों के होने के बाद भी नियमित दर्शक नाट्य समारोह में आए और कुछ नए दर्शक भी रोज़ जुड़े। रायगढ़ नाट्य समारोह के अंतिम दिन मोबिन अहमद के निर्देशन में जामुन का पेड़ की प्रस्तुति ने दर्शकों के बीच अगले नाट्य समारोह की प्रतीक्षा को चिंगारी लगा दी है।

‘रंग अजय’ नाट्य समारोह के समापन समारोह में बतौर मुख्य अतिथि छत्तीसगढ़ी के प्रसिद्ध कलाकार दिलीप षडंगी सम्मिलित हुए। नाटक देखकर उन्होंने समारोह के बेहतरीन आयोजन के लिए रायगढ़ इप्टा को सराहा। रायगढ़ इप्टा के अध्यक्ष रविंद्र चौबे इप्टा के सभी साथियों को उनकी लगन और मेहनत के लिए धन्यवाद दिया। सचिव भरत निषाद ने सभी दानदाताओं, टेंट हाउस, पॉलिटेक्निक ऑडिटोरियम, होटल मिडटाउन, सभी अतिथियों तथा दर्शकों के प्रति आभार व्यक्त किया।

समारोह को संपन्न करने में मुमताज भारती, रविंद्र चौबे, विनोद बोहिदार, भरत निषाद, श्याम देवकर, सुमित मित्तल, टोनी चावड़ा, युवराज सिंह, वासुदेव निषाद, आलोक बेरिया, प्रियंका बेरिया, प्रेरणा देवांगन, शोभा सिंह, दीपक यादव, जिज्ञासा चावड़ा, अपर्णा, देवयानी श्रीवास्तव, हर्ष सिंह, संदीप स्वर्णकार, टिंकू देवांगन , योगेश, आकाश एवं अन्य सहयोगियों का महत्वपूर्ण योगदान रहा।

जैसा कि पहले भी उल्लेख किया था कि, प्रति दिन मंचन के बाद आमंत्रित टीम के साथियों के साथ रायगढ़ इप्टा के साथियों का आत्मीय संवाद होता है। बिलासपुर इप्टा की टीम के साथ भी यही हुआ। दोनों टीमों के साथियों ने परस्पर दोस्ती कायम करते हुए ग्रुप फोटो खिंचवाया।

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