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इप्टा रायगढ़ का सत्ताइसवाँ राष्ट्रीय नाट्य समारोह : प्रथम किश्त

इप्टा रायगढ़ का सत्ताइसवाँ राष्ट्रीय नाट्य समारोह : प्रथम किश्त

उषा वैरागकर आठले

‘सहयात्री’ की पिछली किश्तों में मुंबई इप्टा के 80 वें वर्ष पर आयोजित नाट्योत्सव के बारे में लिखा था। इस बार मेरी अपनी इकाई रायगढ़ इप्टा के नाट्योत्सव पर लिखने जा रही हूँ। इप्टा रायगढ़ की स्थापना 1982 में हुई। नाट्य मंचन, जनगीत-गायन, बच्चों और युवाओं के लिए नाट्य प्रशिक्षण कार्यशालाओं, विभिन्न विषयों पर व्याख्यानों, संगोष्ठियों का आयोजन, फिल्म-निर्माण, राजनीतिक-सामाजिक तथा सांस्कृतिक विषमताओं के प्रतिरोध में रैलियों व धरने के आयोजन में अन्य समविचारी संस्थाओं के साथ साझा कार्यक्रमों के अलावा रायगढ़ इप्टा का सबसे नियमित तथा लोकप्रिय आयोजन रहा – पाँच दिवसीय राष्ट्रीय नाट्य समारोह। इप्टा के स्वर्ण जयंती वर्ष 1994 से शुरु हुआ यह सिलसिला आज भी बदस्तूर जारी है।

इस वर्ष 11 जनवरी से 15 जनवरी 2023 तक रायगढ़ इप्टा का सत्ताइसवाँ नाट्य समारोह ‘रंग अजय’ सम्पन्न हुआ। 1994 से 2019 तक सम्पन्न हुए छब्बीस नाट्य समारोहों के हर पल में शामिल रहना मेरा जुनून था। 2020 से 2022 तक लॉकडाउन तथा कोरोना के प्रकोप के कारण इस गतिविधि में अंतराल आया। इस बीच रायगढ़ इप्टा के निर्देशक, प्रबंधक और सभी गतिविधियों की धुरी रहे अजय आठले कोरोना से कारण काल-कवलित हो गये और कुछ ही महीनों में मुझे भी अनादि के साथ मुंबई शिफ्ट होना पड़ा। अजय के न रहने के कारण हमारी समूची टीम बुरीतरह हिल गई।

2020 में तो कोरोना प्रतिबंधों के कारण जैसे-तैसे अजय की स्मृति में 5 दिवसीय ऑनलाइन नाट्य और फिल्म समारोह किया गया, जिसमें अजय आठले द्वारा अभिनीत नाटक ‘मोंगरा जियत हावे’, ‘गगन दमामा बाज्यो’ तथा ‘दलदल’ के साथ फिल्म ‘मोर मन के भरम’ तथा अजय द्वारा निर्देशित लघु फिल्म ‘टुम्पा’ रायगढ़ इप्टा के यूट्यूब चैनल पर 27 जनवरी से 31 जनवरी 2021 तक प्रसारित किये गये।

रायगढ़ इप्टा का पाँच दिवसीय राष्ट्रीय नाट्य समारोह प्रति वर्ष जन-सहयोग से ही आयोजित हुआ करता है। इन नाट्य समारोहों की विशेषता यह रही है कि निर्धारित तारीख से एक-डेढ़ महीने पहले पूरी टीम मोहल्लों-बाज़ारों में रोज़ शाम को दो घंटे जन-जम्पर्क कर बाकायदा रसीद देकर आर्थिक सहयोग इकट्ठा करती रही है। इप्टा के दानदाताओं का तथा टीम के सदस्यों का इस नियमित सिलसिले के कारण काफी आत्मीय संबंध बन गया है। अजय के जाने के बाद रायगढ़ के इन दानदाताओं और दर्शकों ने इप्टा के सदस्यों को हिम्मत बँधाना शुरु किया कि ‘जो भी हो, अजय भाऊ के काम को आगे बढ़ाना है। हम सब सहयोग करेंगे।’’ इप्टा के राष्ट्रीय तथा राज्य के तमाम पदाधिकारियों तथा साथियों ने रायगढ़ इप्टा को हर तरह की सहायता देने का वचन दिया। कोरोना के प्रतिबंध शिथिल होने के बाद 2021 के नवंबर महीने से रायगढ़ इप्टा के सदस्यों ने फिर कमर कसी और छत्तीसगढ़ इप्टा की टीमों के साथ ही 27 वें नाट्य समारोह की योजना बनाकर आर्थिक सहयोग तथा अन्य तैयारियों का सिलसिला शुरु किया। मगर दुर्योग से जनवरी 2022 में फिर कोरोना की तीसरी लहर का आगाज़ हुआ और काफी पसोपेश के साथ समारोह स्थगित करना पड़ा। 2022 की अंतिम तिमाही में स्थितियाँ सामान्य होने के कारण रायगढ़ इप्टा की टीम ने फिर से कमर कसी और अंततः 11 से 15 जनवरी 2023 को 27 वाँ नाट्य समारोह सफलतापूर्वक सम्पन्न हुआ। इसमें सभी नाट्य दलों तथा रायगढ़ के लोगों के भरपूर प्रोत्साहन और सहयोग से टीम के सदस्यों का आत्मविश्वास लौट आया है।

1994 से 2023 तक हुए सत्ताईस नाट्य समारोहों में कुल 139 दिनों में 145 नाटकों का मंचन हो चुका है।(कभी-कभी नाट्य समारोह पांच की बजाय छह दिनों का भी हो जाता था) नाट्य दलों की कुल संख्या रही है 51, 09 नुक्कड़ नाटक भी हुए। इसमें इप्टा की रायगढ़, रायपुर, बिलासपुर, भिलाई, बाल्को, डोंगरगढ़, जयपुर, लखनऊ, पटना, जेएनयू दिल्ली तथा विवेचना जबलपुर की इकाइयों ने लगभग 70 नाटक प्रस्तुत किये। इनके अलावा निर्माण कला मंच पटना के 6 नाटक, एक्ट वन ग्रुप दिल्ली के 5 नाटक, रंग विदूषक भोपाल के 7 नाटक, अभिनव रंग मंडल उज्जैन के 5 नाटक, नया थियेटर भोपाल के हबीब तनवीर निर्देशित 5 नाटक (2003 में पाँच दिनों का पूरा नाट्य समारोह ही ‘रंग हबीब’ था), नट बुंदेले भोपाल के 2 नाटक, अवंतिका रायपुर के 2 नाटक, अग्रज नाट्य दल बिलासपुर के 4 नाटक तथा अन्य 33 दलों के 1-1 नाटक मंचित हुए। इनमें एक वर्ष नेपाल की रंग अभियान टीम ने भी आकर अपना नाटक ‘गेने दाय’ प्रस्तुत किया था। इन नाटकों में लोकशैलियों के अलावा, फिज़िकल थियेटर, नुक्कड़ नाटक, वैचारिक, प्रायोगिक, सांगीतिक, यथार्थवादी, सस्पेन्स, कहानी का रंगमंच, कविता का रंगमंच, चित्रकला का रंगमंच जैसे विविध प्रकार प्रस्तुत हुए। नाट्य मंचन के अलावा कुछ नाट्य समारोहों में प्रतिदिन नाटक के पहले एक लघु फिल्म भी दिखाई गई। रायगढ़ इप्टा की इस नियमित गतिविधि का आयोजन-स्थल अनेक कारणों से बदलना भी पड़ा। पॉलिटेक्निक ऑडिटोरियम से आरम्भ कर, टाउन हॉल परिसर, नटवर स्कूल मैदान, श्याम टॉकिज, रामनिवास टॉकिज में स्थानान्तरित होते हुए अंततः पॉलिटेक्निक ऑडिटोरियम में ही पिछले कुछ सालों से आयोजन हो रहा है।

2002 से नाट्य समारोह के अवसर पर एक स्मारिका का प्रकाशन शुरु हुआ, जिसे 2005 से वार्षिक पत्रिका ‘रंगकर्म’ का नाम दिया गया। 2019 तक इसके नियमित अंक निकलते रहे। 2010 से नाट्य समारोह में एक पृथक प्रतिष्ठापूर्ण आयोजन सम्मिलित हुआ – शरदचंद्र वैरागकर स्मृति रंगकर्मी सम्मान। आरम्भ में तीन वर्षों तक रायपुर के रंगकर्मी राजकमल नायक, पटना के निर्देशक संजय उपाध्याय तथा जबलपुर के निर्देशक अरूण पाण्डे का सम्मान नाट्य समारोह के पहले दिन नाट्य मंचन के पहले किया जाता था। (इस सम्मान में इक्कीस हजार की नकद राशि, सम्मान पत्र तथा शाल प्रदान की जाती है।) चौथे वर्ष लखनऊ इप्टा के अभिनेता और निर्देशक जुगल किशोर को सम्मान प्रदान किया गया । इस वर्ष से सम्मान समारोह नाटक के पहले शाम को न करते हुए सुबह 11 बजे से होटल साँईश्रद्धा में किया जाने लगा तथा शहर की अन्य सांस्कृतिक-सामाजिक संस्थाओं को भी सम्मान कार्यक्रम में जोड़ा गया। तब से अब तक शरदचंद्र वैरागकर स्मृति रंगकर्मी सम्मान अकेले इप्टा का न होकर समूचे रायगढ़ शहर का नागरिक सम्मान समारोह बन गया है।

अगले वर्षों में ‘बैंडिट क्वीन’ की अद्भुत अभिनेत्री सीमा बिश्वास, अभिनेता मानव कौल, अभिनेता, निर्देशक-गायक रघुबीर यादव, ‘रंग विदूषक’ के निर्देशक तथा अंतरराष्ट्रीय डिज़ाइनर बंसी कौल, इप्टा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष तथा संगीतकार-गायक सीताराम सिंह, छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ रंग-निर्देशक मिर्ज़ा मसूद तथा हबीब तनवीर के ‘नया थियेटर’ में वर्षों तक अपने अभिनय-गायन का डंका बजाने वाली लोकगायिका और अभिनेत्री पूनम विराट को रंगकर्मी सम्मान प्रदान किया गया। इस अवसर पर प्रायः सम्मानप्राप्त रंगकर्मी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर केन्द्रित संक्षिप्त फिल्म/मोंटाज अनादि आठले द्वारा संपादित कर प्रदर्शित किया जाता था।इस वर्ष बारहवाँ शरदचंद्र वैरागकर स्मृति रंगकर्मी सम्मान अग्रज नाट्य दल बिलासपुर के निर्देशक सुनील चिपडे को तीसरे दिन प्रदान किया गया। इसका विवरण अगली किश्त में दिया जाएगा।

अपने निजी कारणों से मैं नाट्य समारोह में शरीक नहीं हो पाई, मगर साथियों के द्वारा प्रस्तुत की गई रिपोर्ट, ब्रोशर, फोटो और संदेशों के आधार पर यहाँ पाँचों दिन का विवरण प्रस्तुत कर रही हूँ।

11 जनवरी 2023 को सत्ताइसवें राष्ट्रीय नाट्य समारोह का उद्घाटन स्व. नंदकुमार पटेल विश्वविद्यालय, रायगढ़ के कुलपति डॉ. ललित कुमार पटेरिया ने किया। पॉलिटेक्निक ऑडिटोरियम में आयोजित उद्घाटन कार्यक्रम के प्रारम्भ में इप्टा के दिवंगत साथी अजय आठले को उन्होंने श्रद्धांजलि अर्पित की। उद्घाटन वक्तव्य में डॉ. पटेरिया ने कहा कि, नंदकुमार पटेल समय-समय पर इप्टा का भरपूर समर्थन करते थे तथा पहले नाट्य समारोह से बाद तक इप्टा को हर तरह का सहयोग भी प्रदान किया करते थे। उनके नाम पर स्थापित विश्वविद्यालय का कुलपति होने के नाते मैं भी आपको अपने सहयोग का आश्वासन देता हूँ। इप्टा ने नाट्य कला को जीवंत रखा है, आपको बहुत बहुत शुभकामनाएँ।

इप्टा रायगढ़ के संरक्षक मुमताज भारती ने इकाई की रंगयात्रा पर विस्तार से प्रकाश डाला और अपने अनुभव साझा किये। छत्तीसगढ़ इप्टा के कोषाध्यक्ष बालकृष्ण अय्यर ने नाट्य समारोह के आयोजन के लिए रायगढ़ इप्टा के साथियों को सराहा और अपनी शुभकामनाएँ दीं।

उद्घाटन कार्यक्रम के बाद नाट्य समारोह के प्रथम नाटक ‘असमंजस बाबू की आत्मकथा’ का मंचन हुआ। अख्तर अली लिखित, अजय आठले द्वारा निर्देशित तथा युवराज सिंह द्वारा अभिनीत इस एकल नाटक में आज के समय में तेज़ गति से भागती ज़िंदगी में गुम होती इंसानियत का समसामयिक सामाजिक-राजनैतिक-आर्थिक विसंगतियों के परिप्रेक्ष्य में बखूबी चित्रण किया गया है।

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मूलतः यह एक रंग कोलाज है, जिसमें अमृता प्रीतम, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की कहानियों, कविताओं एवं आचार्य रजनीश ‘ओशो’ की टिप्पणियों का आधार लिया गया है। मंच पर युवराज सिंह ने असमंजस बाबू के चरित्र को बखूबी निभाया। प्रकाश संचालन किया श्याम देवकर ने तथा प्रकाश व्यवस्था थी रवि शर्मा की।

12 जनवरी को नाट्य समारोह ‘रंग अजय’ के दूसरे दिन इप्टा रायगढ़ के नाटक ‘संक्रमण’ का मंचन हुआ। ‘संक्रमण’ पारिवारिक संबंधों के ताने बाने से बुनी हुई प्रसिद्ध कथाकार कामतानाथ की इसी नाम की कहानी का नाट्य रूपान्तरण है। दुनिया में प्रेम और इसके संक्रमण की कथा एक जैसी होती है। कालांतर में संयुक्त परिवार से एकल परिवार में विघटित होने का सुख-दुख भी एक जैसा है। संक्रमण सिर्फ बीमारियों का नहीं हुआ करता, वह संस्कारों और ज़िम्मेदारियों का भी होता है। कहते हैं, इतिहास अपनेआप को दुहराता-सा प्रतीत होता है, पर उसके पात्र, परिस्थितियाँ और समय अलग-अलग होते हैं। इस नाटक में पिता-पुत्र के द्वंद्वात्मक रिश्ते को बखूबी दर्शाया गया है। पुत्र अपने पिता के रवैये से नाखुश रहता है और पिता मानते हैं कि उनका पुत्र उनके जीवन मूल्यों की कसौटी पर खरा नहीं उतरता। पिता का यह कथन, कि ‘ये घर बर्बाद होकर रहेगा’, पिता की चेतावनी है। वहीं बदले हुए माहौल में बेटे को पिता की चिंता गैरज़रूरी लगती है। ‘पिताजी सठिया गए हैं’, ये उसका प्राथमिक और अंतिम निष्कर्ष है।

पिता की मृत्यु के बाद माँ का आत्मगत कथन कि, बेटा जो कभी पिता का मज़ाक उड़ाता था, उनके जाने के बाद कितना बदल गया है! वह उनकी मृत्यु के समाचार को बर्दाश्त नहीं कर पा रहा था और हिंसा पर उतारू हो गया था। उसने पिता के इलाज के लिए कोई कसर बाकी नहीं रखी। माँ का स्वयं से यह कहना कि बेटे को क्या हो गया है, वह तो अब एकदम अपने पिता जैसा व्यवहार करने लगा है। मध्यवर्गीय दिनचर्या में रोज़मर्रा के काम में बेटे का पिता की तरह व्यवहार करना एक प्रकार का संक्रमण ही तो है। रविन्द्र चौबे द्वारा निर्देशित इस नाटक में पिता की भूमिका में रविन्द्र चौबे, पुत्र के किरदार में विवेक तिवारी और माँ के किरदार में शिबानी मुखर्जी ने शानदार प्रदर्शन किया। ध्वनि-संयोजन विकास तिवारी का तथा प्रकाश-संचालन श्याम देवकर का था।

नाट्य समारोह में प्रवेश निःशुल्क होता है। ‘पहले आओ, पहले पाओ’ की तर्ज़ पर दर्शक आकर बैठते हैं। कोई सीट किसी के लिए रिज़र्व नहीं होती। मगर पांचों दिन ऑडिटोरियम के बाहर किताबों के स्टॉल के साथ इप्टा के साथी जन-सहयोग की रसीद बुक लेकर बैठते हैं और उल्लेखनीय आर्थिक सहायता मिल जाती है।

इस तरह सत्ताइसवें नाट्य समारोह के प्रथम दो दिन इप्टा रायगढ़ ने अपने ही नाटक प्रस्तुत किये। अगले तीन दिनों में बिलासपुर तथा भिलाई के नाटक प्रस्तुत किये गये, जिनका ज़िक्र अगली किश्तों में किया जाएगा। (क्रमशः)

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