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अजय, इप्टा और मैं : पाँच

अजय, इप्टा और मैं : पाँच

(अजय इप्टा और मैं और यादों के झरोखों से – मेरे और अजय के संस्मरण एक साथ इप्टा रायगढ़ के क्रमिक इतिहास के रूप में यहाँ साझा किये जा रहे हैं। अजय ने अपना दीर्घ संस्मरणात्मक लेख रायगढ़ इकाई के इतिहास के रूप में लिखा था, जो 2017 के छत्तीसगढ़ इप्टा के इतिहास पर केंद्रित रंगकर्म के विशेष अंक में छपा था। पिछली कड़ी में मेरे द्वारा 2017 के चौबीसवें नाट्य समारोह से लेकर अक्टूबर 2018 में आयोजित पटना में इप्टा के प्लैटिनम जुबली समारोह तक की समूची गतिविधियों का उल्लेख किया गया। इस कड़ी में पच्चीसवें नाट्य समारोह से लेकर अक्टूबर 2019 तक की गतिविधियों का विवरण है । गतिविधियां नए-नए आयामों में फैलती जा रही थीं। हम खुद को अपडेट करने के लिए निरंतर वर्कशॉप्स कर रहे थे। अपने साथ अन्य संगठनों को भी जोड़ने लगे थे। उनके साथ अनेक आन्दोलनों में सड़क पर भी उतरने लगे थे। इस दौर में हमने बच्चों के साथ साल भर काम करना शुरू किया और लिटिल इप्टा की स्थापना की ओर बढे। – उषा वैरागकर आठले )

मिर्ज़ा मसूद

इप्टा के प्लैटिनम जुबली समारोह में शिरकत के बाद लौटकर 25 वें रजत जयंती नाट्य समारोह की तैयारियों ने ज़ोर पकड़ा। पटना जाने के पहले ही 10 वें शरदचंद्र वैरागकर स्मृति रंगकर्मी सम्मान के लिए हमने रायपुर के वरिष्ठ रंग-निर्देशक मिर्ज़ा मसूद का नाम घोषित कर दिया था।

हम धीरे-धीरे थकने लगे थे। युवा साथी भी अपने-अपने काम-धंधों में व्यस्त हो जाने के कारण समय कम निकाल पाते थे। हर वर्ष नाट्य समारोह के लिए आर्थिक सहायता इकट्ठा करने के लिए हमें एक-डेढ़ महीना रोज़ शाम को गली-मोहल्लों में जाना होता था। पिछले वर्ष ही मैंने अजय से चर्चा के बाद प्रस्ताव दिया था कि अब पहले जैसा समय साथी नहीं दे पाते तो हमें नाट्य-समारोह का स्वरूप बदलना चाहिए। पच्चीसवें नाट्योत्सव के बाद इसे विराम देना चाहिए। हालाँकि इसके लिए अधिकाँश साथी तैयार नहीं थे।

खर्च कम करने के लिए हमने पहला प्रयोग यह करना तय किया कि पाँच दिन के नाट्य समारोह में तीन दिन नाटक और दो दिन फिल्में दिखाई जाएँ। मैंने अगस्त 2018 में स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली थी। मुझे दो-तीन वर्षों से महसूस होने लगा था कि इकाई में अब अजय और मुझे अपना कार्यभार कम करते हुए कमान युवा साथियों को सौंप देनी चाहिए। भरत निषाद को इकाई का सचिव बनाए जाने के बाद उसने कुछ काम अपने कंधों पर ले भी लिये थे। उसके साथ श्याम देवकर, सुमित मित्तल, संदीप स्वर्णकार, प्रशांत शर्मा, कुलदीप दास, टोनी चावडा, मयंक श्रीवास्तव, आलोक बेरिया, मनोज नायक, सुरेंद्र बरेठ की टीम थी, स्वप्निल नामदेव तथा प्रियंका बेरिया भी पुराने हो चुके थे। नए साथी वासुदेव निषाद, अजय नामदेव, सुरेन्द्र राणा, बलराम पटेल, दीपक यादव, अभिषेक सोनी, कमलकांत डनसेना, पवन भी तैयार हो रहे थे। विनोद बोहिदार इनका अगुवा था ही। अपर्णा वाराणसी जाकर अपने प्रकाशन-व्यवसाय में व्यस्त हो गई थी।

पच्चीसवें नाट्य समारोह की तारीखें फिर एक बार दिसम्बर की जगह 27 से 31 जनवरी 2019 रखी गईं। 27 को सुबह होटल साँईश्रद्धा में मिर्ज़ा मसूद का सम्मान कार्यक्रम आयोजित किया गया। हर वर्ष की तरह इसमें नगर की अनेक सामाजिक-सांस्कृतिक संस्थाओं ने भी मिर्ज़ाभाई का सम्मान किया। छत्तीसगढ़ इप्टा के अध्यक्ष मणिमय मुखर्जी तथा राष्ट्रीय सचिव राजेश श्रीवास्तव भी विशेष रूप से आए हुए थे। उन्होंने भी मिर्ज़ाभाई को राज्य इकाई की ओर से सम्मानित किया। उल्लेखनीय है कि मिर्ज़ा मसूद ने छत्तीसगढ़ इप्टा की लगभग सभी इकाइयों में कोई न कोई नाटक तैयार करवाया था। मुझे तो अपने नाट्य-जीवन का पहला प्रशिक्षण उनके द्वारा 1984 में बिलासपुर में आयोजित पूर्णकालिक वर्कशॉप में मिला था। उसी दिन शाम को मिर्ज़ा मसूद लिखित-निर्देशित नाटक ‘सुबह होने वाली है’ का मंचन हुआ।

नाट्य समारोह के दूसरे दिन रायपुर इप्टा का मिनहाज असद निर्देशित नाटक ‘बोल कि लब आज़ाद हैं तेरे’ का मंचन हुआ। चूँकि यह नाटक पैंतालिस मिनट का था इसलिए इप्टा रायगढ़ का ‘गांधी चौक’ भी उसके बाद खेला गया।

तीसरे दिन इप्टा रायगढ़ का नया तैयार नाटक ‘अजब मदारी गजब तमाशा’ का मंचन हुआ।

चौथे और पाँचवें दिन फिल्मों के प्रदर्शन के लिए पॉलिटेक्निक ऑडिटोरियम के मंच पर सफेद स्क्रीन लगाई गई। हमने दो फिल्में चुनी थीं – एकतारा कलेक्टिव भोपाल की ‘तुरुप’ और छत्तीसगढ़ के फिल्मकार मनोज वर्मा की संजीव बक्शी के उपन्यास ‘भूलन कांदा’ पर आधारित छत्तीसगढ़ी फिल्म ‘भूलन द मेज़’।

दोनों फिल्मों के निर्देशक एवं कलाकारों को भी आमंत्रित किया गया था। फिल्म दिखाने के बाद दर्शकों की फिल्मकारों से चर्चा आयोजित की गई थी। एकतारा कलेक्टिव की ओर से मधु और गीता आए थे। उन्होंने बताया कि ‘तुरुप’ सामूहिक निर्देशन में बनी है। मात्र अढ़ाई लाख की क्राउड फंडिंग के द्वारा यह फिल्म बनाई गई। इसमें सभी काम सामूहिक रूप से किये गये। एक घंटा दस मिनट की फिल्म में भोपाल के चक्की चौराहे पर बिछी शतरंज की बिसात के माध्यम से समाज में घट रही सामाजिक-राजनैतिक-सांस्कृतिक उथलपुथल को दर्शाया गया है। इस फिल्म की उल्लेखनीय बात यह थी कि इसमें समाज के दमित वर्ग – स्त्री और दलित – जो, हाशिये पर धकेल दिये गए हैं, उनमें उठने वाली चेतना की लहरें तथा उनका अपने अधिकारों के प्रति सचेत प्रयास है।

पच्चीसवें नाट्य और फिल्म समारोह के अंतिम दिन ‘भूलन द मेज़’ में मुख्य अतिथि के रूप में शिक्षाविद् शरदचंद्र बेहार उपस्थित थे। फिल्म-निर्देशक मनोज वर्मा के साथ अभिनय पक्ष से जुड़े पुष्पेन्द्र सिंह, डॉ. अनुराधा दुबे तथा सुमित गांगुली ने भी चर्चा में भाग लिया। यह प्रयोग काफी सफल रहा, मगर रायगढ़ के दर्शकों ने फीडबैक यही दिया कि फिल्म समारोह और नाट्य समारोह अलग-अलग ही किया जाए। दर्शकों का नाटकों के प्रति अधिक झुकाव दिखाई दिया।

नाट्य समारोह के पच्चीस वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में हमने इप्टा के साथ आरम्भिक काल से जुड़े, मगर किन्हीं कारणों से वर्तमान में इप्टा में सक्रिय न रह पाने वाले कलाकारों का सम्मान करने की योजना बनाई थी। सम्मान पाने वाले साथियों में थे – वृंदावन यादव, जिन्होंने सबसे पहले नाट्योत्सव में सबसे पहले दिन नाटक ‘उसकी जात’ का मंचन कर, उस नाटक में अभिनय करने वाले सभी कलाकारों को इप्टा को सौंप दिया था; पहले नाट्य समारोह का संचालन करने वाले महत्वपूर्ण साथी प्रमोद सराफ तथा देवेन्द्र श्रीवास्तव; रमेश पाणि, अनुपम पाल, टिंकू देवांगन, राजेन्द्र तिवारी, युवराज सिंह आज़ाद, शिबानी मुखर्जी, कल्याणी मुखर्जी, कृष्णाकुमार साव, अविनाश मिश्रा, प्रशांत गुप्ता, सुगीता पड़िहारी, राजेंद्र तिवारी तथा दिवाकर वासनिक। सभी साथियों को स्मृतिचिह्न और ‘रंगकर्म’ के अंकों के सेट प्रदान कर सम्मानित किया गया। यह बेहद उत्साहवर्द्धक बात है कि, इसमें से अधिकाँश साथी अभी भी इप्टा की मदद करते रहते हैं।

(ऊपर बाएं से) दिवाकर वासनिक, पापाजी, रमेश पाणि, टिंकू देवांगन, विनोद बोहिदार, अपर्णा, अजय
(दूसरी पंक्ति बाएं से) स्वप्निल नामदेव, उषा, सुगीता, शिबानीदी, युवराज, प्रमोद सराफ, वृन्दावन यादव, अख्तर अली, कल्याणीदी, देवेंद्र श्रीवास्तव, कृष्णा साव, (नीचे दाएं से) योगेश, अनादि, वासुदेव, मयंक, टोनी और व्योम, अर्पिता, श्याम, अजेश, दीपक, अभिषेक, बलराम।

इस अवसर पर अनादि ने पच्चीस नाट्य समारोहों के फोटोग्राफ्स का एक मोंटाज बनाया था, जिसे पॉलिटेक्निक के बाहरी बरामदे में नाटक शुरु होने तक लगातार दिखाया जाता था। इसके अलावा 1994 से लेकर 2017 तक के तमाम फोटोग्राफ्स की प्रदर्शनी भी लगाई गई थी।

अजय और मैं 2015 में आईएसटीआर (इंडियन सोसाइटी फॉर थियेटर रिसर्च) की नेशनल कॉन्फ्रेन्स में गोआ गए थे। डॉ. अजय जोशी से हमारी अच्छीखासी दोस्ती हो चुकी थी। हम उनके साथ उनके एक दोस्त के घर गए, जिन्होंने अपनी छत पर ही चारों ओर कलात्मक तरीके से घेर कर रिहर्सल स्पेस बनाया था। हम उस पूरी संकल्पना से बहुत प्रभावित हुए। वहाँ से लौटकर हम दोनों के ही दिमाग में यह आइडिया घर कर गया था कि हम भी अपने सिद्धि विनायक कॉलोनी के घर की छत पर वैसा बना सकते हैं। अजय ने उस आयडिया पर काम करना शुरु किया मगर उसे पूरा होने में 2019 के मार्च माह का इंतज़ार करना पड़ा। हमने खुले स्पेस के बजाय उसे स्टुडियो थियेटर का रूप दिया क्योंकि अजय वीडियो शूटिंग और फिल्म स्क्रीनिंग के लिए भी उसका इस्तेमाल करना चाहता था। उसने बेहतर कैमरा भी ले लिया था। मार्च में हॉल बनकर तैयार हुआ। उसका इंटीरियर बाकी था। मगर हम उसे आजमाना चाहते थे और उसका उपयोग भी जल्दी शुरु करना चाहते थे।

23 मार्च शहीद दिवस के दिन हमने वहाँ पहला कार्यक्रम किया। यह एक नई शुरुआत भी थी – एक-एक विषय चुनकर युवाओं से पैनल डिस्कशन की शुरुआत! 23 मार्च 2019 को अभिषेक उपाध्याय, बेठियार सिंह साहू, अशोक महापात्र, रामकुमार बंजारे, कौशल गोस्वामी, सुनील पटेल जैसे बुद्धिजीवी युवाओं को आमंत्रित कर ‘हमारी नज़रों में भगतसिंह’ विषय पर युवा परिसंवाद का आयोजन हुआ। शहर के अन्य बुद्धिजीवी इस कार्यक्रम में श्रोता के रूप में उपस्थित थे।

उन दिनों कन्हैया कुमार लोकसभा चुनाव-प्रचार में अपने भाषणों से युवाओं को बहुत आकर्षित कर रहे थे। रायगढ़ के कुछ युवा साथियों द्वारा कन्हैया के चुनाव-प्रचार में जाने संबंधी ज़िद करने के कारण हमें लगा कि पहले उनके विचारों से वाकिफ हुआ जाए और ‘मार्क्सवाद क्या है’ विषय पर एक युवा परिसंवाद आयोजित किया गया, जिसमें युवाओं ने काफी चर्चा की।

पहले 23 मार्च को रायपुर के साहित्यकार, चिंतक महेन्द्र कुमार मिश्र के व्याख्यान की योजना थी, परंतु उनका उस दिन रायपुर में ही कार्यक्रम होने के कारण 27 मार्च को इप्टा और प्रगतिशील लेखक संघ के संयुक्त आयोजन के रूप में महेन्द्र कुमार मिश्र का व्याख्यान ‘भगतसिंह का वैचारिक परिप्रेक्ष्य’ हुआ। सब उनके ज्ञानात्मक विस्तार और रोचक वक्तृत्व-शैली से बहुत प्रभावित हुए थे।

इस बीच हमारा यह अहसास गहराता जा रहा था कि नाटक की अपेक्षा फिल्म ज़्यादा लोगों तक पहुँच सकती है।

हम फिल्म-प्रदर्शन के उद्देश्य से पहले ही प्रोजेक्टर खरीद चुके थे। 1 मई मज़दूर दिवस पर पुष्पवाटिका समिति के साथ मिलकर दो लघु फिल्मों के प्रदर्शन की योजना बनी। वहीं पार्क में स्क्रीन लगाकर ‘अनुकूल’ और ‘कार्बन’ फिल्में देखी गईं और उन पर चर्चा भी की गई।

मैंने रिटायरमेंट लेने के पहले ही यह तय किया था कि अब बच्चों के साथ काम करना है। पहले हम मिलजुलकर बच्चों के वर्कशॉप लेते थे, उसके बाद अपर्णा ने बच्चों के साथ लगातार काम किया। लिटिल इप्टा का गठन मुझे काफी महत्वपूर्ण लगता था। इसीलिए इप्टा के थियेटर स्टुडियो में बच्चों की नियमित गतिविधि जारी रखने के उद्देश्य से हमने 1 मई से 25 मई 2019 तक बाल नाट्य प्रशिक्षण शिविर आयोजित किया।

पुराने साथी कृष्णाकुमार साव और पोष्णेश्वरी सिंह दाऊ उर्फ शोभा ने भी मालीडीपा के बच्चों के लिए शिविर का संचालन करने का जिम्मा लिया।

इप्टा के थियेटर स्टुडियो में गीत-संगीत प्रशिक्षण के लिए रामप्रसाद श्रीवास उर्फ पूनम नियमित आने लगा, मुमताज भारती ‘पापा’ ने चित्रकला प्रशिक्षण तथा नाटक में प्रयुक्त क्राफ्ट का प्रशिक्षण देने टिंकू देवांगन नियमित आने लगे।

मैं थियेटर गेम्स-एक्सरसाइज़ेस के साथ संचालन कर रही थी और अजय नाटक के निर्देशन के लिए आने लगा। डॉ. शिल्पा दीक्षित ने बहुत कुशलता से ‘स्टोरी टेलिंग’ के ज़रिए बच्चों को चार कहानियाँ सुनाईं।

उधर शोभा और कृष्णा लोकगीत-लोकनृत्य और कराटे का प्रशिक्षण भी दे रहे थे। मयंक श्रीवास्तव नृत्य-प्रशिक्षण दे रहा था। इसतरह लगभग 80 बच्चों को लेकर बाल नाट्य-नृत्य प्रशिक्षण शिविर 25 दिनों तक चला। 25 मई को इप्टा के स्थापना दिवस पर अजय आठले निर्देशित नाटक ‘चोर पुराण’, कृष्णाकुमार साव तथा शोभा निर्देर्शित नाटक ‘उपसंहार’ तथा छत्तीसगढ़ी लोकनृत्य एवं दो समूह-गान के अलावा मयंक श्रीवास्तव के नृत्य निर्देशन में राजस्थान का कालबेलिया नृत्य तथा वेस्टर्न शैली के नृत्य पर आधारित ‘फ्यूचर रोबोटिक्स’ प्रस्तुत किया गया।

रामप्रसाद श्रीवास के संगीत निर्देशन में दो समूह गीत प्रस्तुत हुए। रामप्रसाद श्रीवास के अलावा संगीत मंडली में उग्रसेन पटेल तथा चंद्रशेखर कुलदीप थे।

इस कार्यक्रम की विशेषता थी कि समूचे कार्यक्रम का संचालन भी एक प्रतिभागी प्रतीचि पटेल ने शानदार तरीके से किया।

इस बार अनादि ने बच्चों के लिए बेहद आकर्षक सर्टिफिकेट डिज़ाइन किया था। दूसरे दिन सभी प्रतिभागी बच्चों को बुलाकर ‘आई एम कलाम’ फिल्म दिखाने के बाद बच्चों को पार्टी दी गई।

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‘मोंगरा जियत हावे’ नाटक पर छत्तीसगढ़ी फीचर फिल्म बनाने की योजना बनाकर अजय ने काम शुरु कर दिया था। मूल मराठी लेखक प्रल्हाद जाधव से अनुमति मिल चुकी थी। अजय ने पटकथा लिखना शुरु किया। अजय ने कोशिश की कि, फिल्म में अभिनय और अन्य बातों के प्रशिक्षण के लिए किसी विशेषज्ञ को बुलाया जाए। मगर सभी परिचित उन दिनों व्यस्त थे। साथियों ने सुझाव दिया कि अजय ही एक प्रारम्भिक प्रशिक्षण शिविर ले ले तथा कुछ कलाकारों का चयन कर ले। इस सुझाव के अनुरूप 15 जून से 6 जुलाई 2019 तक स्टुडियो थियेटर में ही वर्कशॉप आयोजित हुआ। काफी नए लोग जुड़े। चूँकि फिल्म छत्तीसगढ़ी में बनाई जानी थी इसलिए वर्कशॉप में छत्तीसगढ़ी में ‘बकासुर’ ही तैयार किया गया। यह चौथा संस्करण था। इसका एक ही मंचन हो पाया क्योंकि इसमें मुख्य भूमिका करने वाले कुछ कलाकार बाहर चले गए।

इस वर्कशॉप में एक दिन ऑगस्टो बोल का विशिष्ट नाट्य-प्रकार ‘थियेटर ऑफ द ऑप्रेस्ड’ संबंधी कुछ गेम्स और एक्सरसाइज़ेस का एक सत्र अज़ीम प्रेमजी फाउंडेशन की साथी श्रेया ने लिया। मुझे हमेशा ही यह लगता रहा है कि इप्टा को लोगों के बीच जाकर इस नाट्य-प्रकार के अनुसार नाटक तैयार करने चाहिए।

इप्टा के साथ अज़ीम प्रेमजी फाउंडेशन के रायगढ़ चैप्टर का भी दोस्ताना संबंध रहा है । फाउंडेशन के साथी गुरुप्रसाद इप्टा के सभी प्रकार के कार्यक्रमों में आते थे। 2019 का वर्ष महात्मा गांधी का डेढ़ सौवाँ जयंती वर्ष था। इसी अवसर पर दोनों संगठनों ने मिलकर थियेटर स्टुडियो में ‘वर्तमान परिप्रेक्ष्य में महात्मा गांधी के प्रति युवाओं के विचार’ विषय पर 6 जुलाई को संगोष्ठी आयोजित की। मुख्य वक्ता थे शरदचंद्र बेहार।

उनके व्याख्यान के बाद अनेक सवाल किये गये। इसीतरह मुमताज भारती ‘पापा’ की पहल पर महात्मा गांधी के ‘हिंदी स्वराज्य’ किताब के एक-एक अध्याय पर श्रृंखलाबद्ध विचार-सत्र आयोजित हुए। चूँकि इप्टा का एक बेहतरीन हॉल अब पूरा हो गया था इसलिए सभी समविचारी संगठनों और व्यक्तियों को वैचारिक कार्यक्रम आयोजित करने के लिए हॉल उपलब्ध करने की घोषणा अजय ने कर दी थी।

बच्चों के वर्कशॉप के बाद प्रत्येक शनिवार को मैंने बच्चों की विविध गतिविधियाँ आयोजित करने का जिम्मा उठा लिया था। 31 जुलाई को हम प्रति वर्ष प्रेमचंद जयंती का आयोजन भी किसी न किसी रूप में करते ही थे। इस वर्ष बच्चों को इस आयोजन में शामिल किया। प्रेमचंद की तीन कहानियाँ उन्हें दी गईं – ‘बड़े भाईसाहब’, ‘नादान दोस्त’ और ‘सैलानी बंदर’। मूल कहानियाँ उन्हें दी गईं और कहा गया कि वर्कशॉप में सीखे हुए इम्प्रोवाइज़ेशन के अनुसार वे इन कहानियों को तैयार करें और हरेक शनिवार को दिखाएँ। बच्चों के क्षेत्रों के अनुसार उनके समूह बन गए थे। दो सप्ताह में उनके नाटक का ढाँचा तैयार था। फिर अजय ने उन नाटकों को तराश दिया और 31 जुलाई 2019 को अनेक दर्शकों के बीच उनके नाटकों का मंचन हुआ।

बच्चों को काफी प्रशंसा मिली। हमने उन्हें किताबों का उपहार दिया। उसके बाद ये सिलसिला शुरु हो गया। आज़ादी के आंदोलन और गांधी की भूमिका पर हमने काम शुरु किया, जिसकी परिणति उनके एक नाटक में हुई, जिसका मंचन उन्होंने अज़ीम प्रेमजी फाउंडेशन के गांधी जयंती पर आयोजित कार्यक्रम में किया। इस नाटक में उन्होंने हमारी खास मदद नहीं ली थी। उन्होंने खुद नाटक बनाने का ‘सुख’ चख लिया था।

3 और 4 अगस्त 2019 को अंबिकापुर में प्रगतिशील लेखक संघ का छत्तीसगढ़ राज्य सम्मेलन आयोजित हुआ। पापा के साथ अजय, रविन्द्र चौबे, भरत निषाद, प्रशांत शर्मा और मैं गए थे। हम सबने संगोष्ठियों में भाग लिया।

पटना में इप्टा के प्लैटिनम जुबली समारोह में ही तय हुआ था कि इप्टा को अपनी सांगठनिक कार्यशालाएँ आयोजित करनी चाहिए। इप्टा की देशभर की राज्य इकाइयों को कुछ क्षेत्रों में भाषिक नज़दीकियों के मद्देनज़र विभाजित किया गया। बंगाल, असम, उड़ीसा एक साथ, कर्नाटक, आंध्र, तमिलनाडु, केरल एक साथ, हिंदी भाषी प्रदेशों की कार्यशाला एक साथ हो, तय किया गया। हिंदीभाषी क्षेत्र की कार्यशाला आयोजन की ज़िम्मेदारी छत्तीसगढ़ को दी गई, जिसका महासचिव अजय था तथा समन्वय का जिम्मा मेरे ऊपर था। कार्यशाला रायपुर में 24-25 अगस्त 2019 को आयेजित की गई। साथी अरुण काठोटे, मिनहास असद और उनकी टीम ने सफल मेज़बानी की।

इसमें अलग-अलग सत्रों में ‘इप्टा और संगठन’, ‘संगठन और युवा पीढ़ी’, ‘सांस्कृतिक राजनीति’, ‘युवा एवं महिलाओं की सहभागिता’ विषय पर भरपूर चर्चा हुई। इसके अलावा प्रतिभागियों को छै समूहों में बाँटकर एक सत्र में समूह चर्चा की गई। विषय थे – संगठन और लोकतंत्र, संगठन और प्रबंधन (मानविकी और आर्थिक), संगठन और सृजनात्मकता, संगठन का सांस्कृतिक नज़रिया तथा आम जनता के सवाल, संगठन का अन्य सांस्कृतिक दलों से संबंध तथा संगठन की राजनीति। कार्यशाला में बिहार, झारखंड, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, दिल्ली और छत्तीसगढ़ के लगभग 95 साथी उपस्थित थे।

इसकी समूची रिपोर्ट भी इप्टा रायगढ़ ने प्रकाशित कर सभी इकाइयों को भेजीं। रायगढ़ से अजय और मेरे अलावा विनोद बोहिदार, अपर्णा, भरत निषाद, वासुदेव निषाद तथा अजय नामदेव ने भागीदारी की। समूचे कार्यक्रम की ऑडियो रिकॉर्डिंग भरत ने की। इस कार्यशाला में बहुत बड़ी संख्या में युवा और महिला साथियों की उपस्थिति उल्लेखनीय रही।

इप्टा अपने अन्य सहयोगी संगठनों के साथ लगातार काम करती रही है। अखिल भारतीय शांति एवं एकजुटता संगठन (एप्सो) 1951 से काम कर रहा था। एप्सो की रायगढ़ इकाई कुछ वर्षों से निष्क्रिय थी इसलिए इसे सक्रिय करने के लिए इसका पहला जिला सम्मेलन 09 अक्टूबर 2019 को आयोजित किया गया, जिसमें पदाधिकारियों के चयन के साथ एक विचार सत्र भी आयोजित था, जिसमें डॉ. राजू पाण्डेय ने ‘शांति, एकजुटता और महात्मा गांधी’ विषय पर सारगर्भित शोधपरक आलेख पढ़ा तथा तदुपरांत चर्चा हुई। एप्सो के लिए अध्यक्ष परिवेश मिश्रा तथा सचिव भरत निषाद चुने गए।

देश में जिसतरह की राजनीतिक-सामाजिक परिस्थितियाँ विकसित हो रही थीं। 2014 में नरेन्द्र मोदी के सत्ता सम्हालने के बाद क्रमशः जनविरोधी निर्णयों, अंधराष्ट्रवाद, हिंदुत्ववादी कट्टरता और साम्प्रदायिक हिंसा फैल रही थी, इसके प्रतिरोध में हमें अपने टीम की वैचारिक समझ और साफ करने की ज़रूरत तीव्रता से महसूस हो रही थी। भोपाल के साथी ईश्वरसिंह दोस्त से चर्चा के उपरांत 18, 19 और 20 अक्टूबर 2019 को एक कार्यशाला आयोजित की गई – ‘मैं, हम और वे : विवेकशीलता की राह पर।

इस कार्यशाला में लगभग 20 साथियों ने भाग लिया, जिसमें अनेक प्रकार की एक्सरसाइज़ेस के माध्यम से साथी ईश्वर ने विषय की अवधारणा तथा हरेक प्रतिभागी को अपने परिवेश के प्रति चिंतनशील बनाया। इस कार्यशाला के बाद इसतरह की एक श्रृंखला तैयार करने की बात ईश्वरसिंह दोस्त से हुई।

इसी के साथ छब्बीसवें नाट्य समारोह की तैयारी भी शुरु हो चुकी थी, जिसकी चर्चा अगली कड़ी में की जाएगी। (क्रमशः)

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