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यादों के झरोखों से : पंद्रह

यादों के झरोखों से : पंद्रह

(अजय इप्टा और मैं और यादों के झरोखों से – मेरे और अजय के संस्मरण एक साथ इप्टा रायगढ़ के क्रमिक इतिहास के रूप में यहाँ साझा किये जा रहे हैं। अजय ने अपना दीर्घ संस्मरणात्मक लेख रायगढ़ इकाई के इतिहास के रूप में लिखा था, जो 2017 के छत्तीसगढ़ इप्टा के इतिहास पर केंद्रित रंगकर्म के विशेष अंक में छपा था। उसे ही किश्तों में पहले साझा कर रही हूँ। पिछली कड़ी में 2012 के नाट्य समारोह से लेकर 2014 के इक्कीसवें नाट्य समारोह का विवरण प्रस्तुत किया गया था। इस कड़ी में 2015 के आरम्भ से लेकर 2017 नवम्बर तक की समूची गतिविधियों का उल्लेख किया गया है। गतिविधियां नए-नए आयामों में फैलती जा रही थीं। हम गाँवों के साथ शहर के अलग-अलग हिस्सों में जाकर नाटक के साथ जनगीत और अन्य कार्यक्रम करने लगे थे, साथ ही खुद को अपडेट करने के लिए निरंतर वर्कशॉप्स करते थे। अपने साथ अन्य संगठनों को भी जोड़ने लगे थे। अनेक आन्दोलनों में सड़क पर भी उतरने लगे थे। अजय द्वारा लिखे हुए इतिहास में, जो 2017 में छत्तीसगढ़ इप्टा के दस्तावेज़ीकरण अंक में प्रकाशित हुआ है, यहीं तक का विवरण अंकित है । चूंकि इसका हिंदी टाइपिंग और संपादन मुझे करना था, तो मुझे अजय पर जल्दी-जल्दी लिखकर पूरा करने का दबाव डालना पड़ा और अजय को मजबूरन काफी संक्षेप में इसे पूरा करना पड़ा। वर्ना उसकी तेज़ याददाश्त के चलते और बेहतर दस्तावेज़ तैयार हो सकता था। इसलिए हमेशा की तरह छूट गयी महत्वपूर्ण गतिविधियों का उल्लेख मैंने कोष्ठक में जोड़ दिया है। – उषा वैरागकर आठले )

2014 के इक्कीसवें नाट्य समारोह के पश्चात ‘मोंगरा जियत हावे’ की रिहर्सल जारी थी। इस बीच 23 मार्च 2015 को शहीद दिवस पर शासकीय जिला ग्रंथालय में एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसमें मुख्य वक्ता के रूप में इलाहाबाद से पधारे ट्रेड यूनियन के साथी जी.पी.मिश्रा जी थे। उन्होंने ‘वर्तमान समय में भगतसिंह’ विषय पर अपना व्याख्यान दिया। उपस्थित अन्य लोगों ने भी अपने विचार व्यक्त किये। इससे पूर्व इसी ग्रंथालय में कबीर जयंती और प्रेमचंद जयंती पर भी इप्टा ने संगोष्ठी आयोजित की थी।(इप्टा रायगढ़ ने शहर की सांस्कृतिक संस्थाओं के साथ निरंतर सम्बन्ध विकसित करने के लिए अनेक कार्यक्रम आयोजित करने की पहल की थी। खोडियार सर और मैं शासकीय ग्रंथालय की वर्किंग कमिटी में होने के कारण तथा जिला प्रशासन के प्रोत्साहन के कारण ग्रंथपाल महोदय से मिलकर हम साहित्यिक संगोष्ठियों का आयोजन करने लगे थे।)

28 मार्च को बेगुसराय के बीहट में नाट्य समारोह में हमें ‘मोंगरा जीयत हावे’ के मंचन के लिए आमंत्रित किया गया था। यह बेहद मैराथन यात्रा थी। सुबह पहुँचने वाली गाड़ी शाम को सात बजे पहुँची। हमने थोड़ा नाश्ता किया और नहा-धोकर सीधे मंच पर पहुँचे क्योंकि वापसी की गाड़ी रात बारह बजे की थी। इसलिए द्रुत गति से नाटक खत्म कर हम लोग लौट पड़े।

अप्रेल में तीन स्थानों पर बाल रंग शिविर लगाया गया। अपर्णा के निर्देशन में ‘‘पानी की कहानी नारद की जुबानी’, आलोक बेरिया के निर्देशन में ‘रोजगार महाराज’ और अजेश शुक्ला के निर्देशन में ‘प्रतिशोध’ नाटक तैयार हुए, जिनका मंचन पॉलिटेक्निक में हुआ। इस अवसर पर कथाकार रामजी यादव भी उपस्थित रहे।

मई माह में अनादि अपने साथियों के साथ रायगढ़ पहुँचा। वे लोग यहीं एक छत्तीसगढ़ी फिल्म बनाना चाहते थे। उन्होंने ‘मोंगरा जियत हावे’ की पूरी रिहर्सल देखी, हमारे कलाकारों से बातचीत की और कुछ लोगों का चयन भी किया। 25 मई को इप्टा का स्थापना दिवस मनाया गया और आशीर्वाद में अपर्णा द्वारा निर्देशित बाल नाटक ‘पानी की कहानी, नारद की जुबानी’ तथा हीरामन निर्देशित ‘टुम्पा’ का मंचन हुआ। इसके पश्चात ‘मौजूदा समय और रंगकर्म के समक्ष चुनौतियाँ’ विषय पर परिचर्चा हुई। इसमें इप्टा के सदस्यों के अलावा पुणे फिल्म संस्थान से आए कर्मा टकापा, हीर गंजवाला, अभिषेक वर्मा, अंकुर और अनादि ने भी भाग लिया। इसके बाद अनादि और उसके साथियों ने ‘मोर मन के भरम’ की शूटिंग आरम्भ की । शूटिंग हमारे कैमरे से की गई तथा देसी जुगाड़ से बनाए हमारे ही ट्रेक ट्रॉली का इसमें इस्तेमाल किया गया। यह फिल्म मामी फेस्टिवल में इंडिया गोल्ड कैटेगरी में सिलेक्ट हुई और इसे स्पेशल ज्यूरी अवॉर्ड मिला। छत्तीसगढ़ की यह पहली फिल्म थी, जिसे किसी अंतर्राष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल में पुरस्कार मिला।

इस बीच हीरामन रायपुर चला गया था और वहाँ शिविर ले रहा था। परिस्थितियाँ जटिल होती जा रही थीं। मोदी प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ले चुके थे और दक्षिणपंथ अपने पूरे उभार पर था। दाभोलकर, पानसरे और कलबुर्गी की हत्या हो चुकी थी। यह अपने ढंग का और नई तरह का आपातकाल था। इस देश ने इंदिरा गांधी के समय एक आपातकाल देखा था मगर उस आपातकाल में पुलिस, प्रशासन बेहद सक्रिय होकर राजनैतिक आवाज़ों को दबा रहे थे। मगर इस दौर में पुलिस और प्रशासन निष्क्रिय होकर हुडदंगियों को सक्रिय होने दे रहे हैं। उस दौर में प्रेस और मीडिया पर दबाव था, इस बार इन्हें कार्पोरेट के द्वारा खरीदकर सत्ता के भोंपू में बदल दिया गया है। सोशल मीडिया में ट्रोल के जरिए कब्जा किया जा रहा है। फासीवाद अपने नए रूप में उभरा है।

ऐसे में सभी साथियों ने आग्रह किया कि ‘बी थ्री’ को फिर से खेलना चाहिए। आज की परिस्थितियों में यह नाटक बहुत मौजूँ है। तय हुआ कि इस नाटक को खेला जाए और इसतरह बनाया जाए कि कहीं भी खेला जा सके। इस नाटक में बहुत बार दृश्य बदलते हैं, जिसे लाइट ऑन-ऑफ से बदला जाता था। अब यह तय हुआ कि नाटक में बातचीत करते-करते ही सेट बदला जाए। धीरे-धीरे नाटक आकार लेने लगा।

इस बीच अगस्त में लघु नाट्य समारोह का आयोजन किया गया, जिसमें पहले दिन 14 अगस्त 2015 को किशोर वैभव लिखित एवं निर्देशित नाटक ‘भटकते सिपाही’ तथा हीरामन निर्देशित नाटक ‘प्रजातंत्र का खेल’ मंचित किया गया। समारोह के दूसरे दिन ‘बी थ्री’ का मंचन किया गया। इसके बाद हम चक्रधर समारोह की तैयारियों में जुट गए। चूँकि ‘बी थ्री’ वहाँ नहीं खेला जा सकता था क्योंकि यह एक पूर्णकालिक नाटक था और इस बार मात्र पैंतालिस मिनट का ही समय मिला था। नाटक ‘गांधी चौक’ का मंचन करना उचित लगा।

अक्टूबर में भारत भवन भोपाल से ‘मोंगरा जियत हावे’ के मंचन का आमंत्रण मिला। इसमें पंडवानी वाला रोल करने वाली प्रियंका बेरिया और जोकर का रोल करने वाले आलोक बेरिया के दादाजी का दो दिन पहले देहान्त हो गया। हम सब चिंतित हुए, मगर उनके घरवालों ने जाने की अनुमति दे दी थी और दाह संस्कार होने पर उसी रात को हम भोपाल रवाना हुए। शो बहुत अच्छा रहा और छत्तीसगढ़ी में होने के बावजूद बहुत अच्छा रिस्पाँस मिला।

लौटने के बाद बाईसवें नाट्योत्सव की तैयारियाँ शुरु हो गईं। चूँकि अब पॉलिटेक्निक ऑडिटोरियम बन चुका था इसलिए आयोजन स्थल की चिंता मिट गई। इस वर्ष सातवाँ शरदचंद्र वैरागकर स्मृति रंगकर्मी सम्मान रघुबीर यादव को दिया जाना तय हुआ, साथ ही उनके द्वारा निर्देशित एवं अभिनीत नाटक ‘पियानो’ का मंचन किया जाना था। नाट्योत्सव 26 से 30 दिसंबर 2015 तक था। चूँकि रघुबीर यादव 26 दिसम्बर को नहीं आ पा रहे थे इसलिए सम्मान समारोह 29 दिसम्बर को रखा गया।

नाट्योत्सव के पहले दिन सुमन कुमार का एकल नाट्य ‘नुगरा का तमाशा’, दूसरे दिन आजमगढ़ से ‘कसाईबाड़ा’,

तीसरे दिन ‘बी थ्री’, चौथे दिन ‘पियानो’ और सम्मान समारोह

तथा अंतिम दिन अग्रज नाट्य दल बिलासपुर द्वारा ‘मुआवजे’ का मंचन हुआ।

इस वर्ष महाराष्ट्र के रंग समीक्षक डॉ. अजय जोशी विशेष रूप से इप्टा रायगढ़ के इस आयोजन को देखने आए थे।

(इस नाट्य समारोह के अंतिम दिन इप्टा रायगढ़ की वार्षिक पत्रिका ‘रंगकर्म’ का विमोचन किया गया। यह अंक महिला रंगकर्मी विशेषांक था।)

(2015 में ही इप्टा के दो बहुत महत्वपूर्ण साथियों का आकस्मिक निधन हुआ था – इप्टा के राष्ट्रीय महासचिव जितेन्द्र रघुवंशी तथा लखनऊ इप्टा के अभिनेता-निर्देशक, चतुर्थ शरदचंद्र वैरागकर स्मृति रंगकर्मी सम्मान से नवाज़े गए जुगल किशोर का; इसलिए दोनों के दिनेश चौधरी द्वारा लिए गए साक्षात्कार श्रद्धांजलि स्वरुप सबसे पहले प्रकाशित किये गए। उसके बाद वरिष्ठ रंगकर्मी उषा गांगुली, त्रिपुरारी शर्मा, नादिरा बब्बर, अचला नागर, सीमा भार्गव, उमा झुनझुनवाला, सुषमा देशपांडे, ज्योत्स्ना रघुवंशी, सीमा आज़मी, सरोज शर्मा, स्वस्तिका चक्रवर्ती, नीति श्रीवास्तव, बिशना चौहान, अर्चना सिंह, रंजना तिवारी, अपर्णा कालेले, प्रगति पाण्डेय, ममता पंडित, सुचिता मुखर्जी, रीना शुक्ल, रोशन ऐहतेशाम के साक्षात्कार सम्मिलित किये गए थे। साथ ही रायगढ़ इप्टा की सभी महिला रंगकर्मियों पर भी एक लेख प्रकाशित किया था। इसका संपादन उषा आठले और अपर्णा ने किया।)

गर्मियों में अचानक कॉमरेड बख्शी जी का संदेश आया कि दुमका झारखंड में आदिवासी राष्ट्रीय सम्मेलन होने जा रहा है, वहाँ एक नाटक हम लेकर आएँ। हमने ‘मोगरा जियत हावे’ ले जाना तय किया। चार-पाँच दिन रिहर्सल होने के बाद अचानक हीरामन ने बताया कि उसे स्कूल से छुट्टी नहीं मिल रही है। इतनी जल्दी कोई और तैयार नहीं कर सकता था, रिजर्वेशन भी नहीं मिल रहा था। मगर बख्शी जी के बार बार आग्रह किये जाने के कारण अंततः हमने ‘बी थ्री’ ले जाना तय किया। हालाँकि हमारे हिसाब से यह नाटक वहाँ के लिए उचित नहीं था, फिर भी हमने तैयार किया। (मुमताज भारती ‘पापा’ दुमका दो दिन पहले ही चले गए थे पोस्टर्स वगैरह बनाने के लिए, पर वहां वे बीमार पड़ गए इसलिए उन्हें भी हम टीम के साथ ही वापस ले आये।) सड़क मार्ग से दुमका गए, शो किया और सड़क मार्ग से ही वापस हुए।

2016 में सभी युवा साथी व्यस्त होने के कारण किसी ने बच्चों के साथ शिविर करने में रूचि नहीं दिखाई इसलिए युवाओं को अभिनय की बारीकियों से अवगत कराने के लिए ‘माइम एण्ड मूवमेंट्स तथा स्पीच’ पर सात दिवसीय वर्कशॉप आयोजित किया गया। (चूंकि हम अपने टीम की इस कमज़ोरी से अवगत थे और अक्सर यह बात होती थी कि हमें स्पीच पर केंद्रित प्रशिक्षण लेना चाहिए। अजय ने संजय उपाध्याय से बात की। उन्होंने ही रानावि के स्नातक वरिष्ठ अभिनेता और प्रशिक्षक अमित बनर्जी को बुलाने का सुझाव दिया।साथ ही यह भी सुझाव दिया कि अगर प्रोडक्शन बेस्ड वर्कशॉप न हो, तो बेहतर होगा। अमित दादा से अजय की बात हुई। उन्होंने सुझाव दिया कि उनके लिए तो तीन घंटे काफी होंगे, इसलिए हम अगर माइम एन्ड मूवमेंट का भी प्रशिक्षण चाहते हैं तो वे अपने साथ देवकुमार पॉल को भी लाएंगे, जो कोलकाता के माइम इंस्टिट्यूट से प्रशिक्षित हैं। सभी साथी सहर्ष तैयार हुए। ये एक ऐसा वर्कशॉप साबित हुआ, जिसमें हरेक कलाकार को अपनेआप को डेवलप करने का पूरा अवसर मिला। होटल आशीर्वाद, जिसके मालिक इप्टा के प्रशंसक थे, उन्होंने काफी काम किराये पर अपना हॉल दे दिया। )

कोलकाता से श्री अमित बैनर्जी और श्री देवकुमार पॉल आए थे, 14 से 21 अप्रेल 2016 तक सम्पन्न इस वर्कशॉप में सुबह और शाम तीन-तीन घंटे के लिए प्रशिक्षण चला। जहाँ देवकुमार जी ने सुबह आंगिक गतिविधियों का सैद्धांतिक और व्यावहारिक प्रशिक्षण दिया, वहीं अमित दादा ने स्पीच और अभिनय की बारीकियों का अभ्यास शाम के सत्र में कराया। चूँकि यह वर्कशॉप प्रोडक्शन बेस्ड नहीं था इसलिए सभी ने पूरा ध्यान सीखने पर केन्द्रित किया। इस वर्कशॉप में पच्चीस साथियों ने भाग लिया।

इस बीच मैंने ‘टुम्पा’ कहानी पर शॉर्ट फिल्म बनाने की सोची। स्क्रिप्ट तैयार कर ही रहा था कि अनादि और उसके साथियों ने रायगढ़ के कलाकारों और दर्शकों के लिए यहीं बनी हुई छत्तीसगढ़ी फिल्म ‘मोर मन के भरम’ की स्क्रीनिग रायगढ़ में करने की योजना बनाई। कर्मा, हीर, सोनू और अनादि रायगढ़ पहुँचे। आर.के.मॉल में इसके दो शो रायगढ़ के लोगों के लिए रखे गये।

मैंने कर्मा और हीर को प्रेमानंद गज्वी के नाटक ‘व्याकरण’ की स्क्रिप्ट सुनाई। कर्मा को बहुत पसंद आई। वे लोग इस पर फिल्म बनाने के लिए तैयार भी हो गए हैं। उन्होंने कुछ लोकेशन भी घूमकर देखे। ‘टुम्पा’ पर भी उनसे लम्बी बातचीत हुई। बहुत से इनपुट मिले।

मार्च में ‘टुम्पा’ की शूटिंग शुरु हुई थी और दो दिन की शूटिंग के बाद ठहर गई क्योंकि मुख्य रोल करने वाली लड़की अचानक वापस अंबिकापुर चली गई। बीच-बीच में वह आती और फिर गायब हो जाती। जिस फिल्म को दस दिन में पूरा होना था, उसे एक साल लग गया मगर अंततः हम लोगों ने बनाकर ही दम लिया।

जुलाई में तय हुआ कि एक नाटक चक्रधर समारोह को ध्यान में रखकर शुरु किया जाए। विनोद बोहिदार ने जिम्मेदारी ली कि वह फणीश्वरनाथ रेणु की कहानी ‘पंचलैट’ को छत्तीसगढ़ी में तैयार करवाएगा।(इस कहानी का हिंदी नाट्य रूपांतरण भिलाई इप्टा के साथी शरीफ अहमद ने किया था, जिसे ‘रंगकर्म’ में प्रकाशित भी किया गया था। उसी स्क्रिप्ट को आधार बनाकर छत्तीसगढ़ी में इम्प्रोवाइजेशन विनोद ने करवाया।) रिहर्सल शुरु हो गई। इसका पहला मंचन टाउन हॉल में किया गया। इस वर्ष हमें चक्रधर समारोह में मौका ही नहीं दिया गया।(नवम्बर 2016 में प्रगतिशील लेखन संघ का राष्ट्रीय अधिवेशन बिलासपुर में आयोजित किया गया था। इसमें रायगढ़ इप्टा को ‘पंचलैट’ के मंचन का आमंत्रण मिला। अजय और विनोद सड़क मार्ग से ही बस में टीम लेकर पहुँचे थे और मंचन के बाद रात में ही लौट गए थे। यह प्रस्तुति देश भर से आये साहित्यकारों ने देखी, जिसकी काफी सराहना हुई।)

बहरूप आर्ट ग्रुप, नई दिल्ली शाहिद अनवर की स्मृति में ‘ज़िक्र-ए-यार चले’ कार्यक्रम कर रहा था, जिसमें स्व. शाहिद अनवर के तीन नाटकों का मंचन होना था। इसमें ‘बी थ्री’ करने का हमें आमंत्रण मिला। यह आमंत्रण हिमांशु राय के सौजन्य से मिला था। इसमें पहले दिन बहरूप का नाटक ‘हमारे समय में’, दूसरे दिन इप्टा पटना का ‘सुपनवा का सपना’, तीसरे दिन 18 सितम्बर को इप्टा रायगढ़ के ‘बी थ्री’ का मंचन था। यह जे.एन.यू. में होना था। हम सब बेहद उत्साहित थे क्योंकि इसमें जो रेफरेन्सेस थे और इतिहास की जो बारीक जानकारियाँ थीं, इसे जे.एन.यू. के विद्यार्थी ज़्यादा अच्छीतरह समझते थे। हमारी यह धारणा सच साबित हुई। इस नाटक को जितना अच्छा रिस्पाँस यहाँ मिला अन्यत्र कहीं नहीं मिला। (इस नाटक में प्रोफेसर की भूमिका सुमित मित्तल करता था। किसी वजह से वह उन तारीखों में दिल्ली नहीं जा सकता था इसलिए अजय ने ही प्रोफेसर की भूमिका की।)

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रात को दोनों टीमें बैठीं, आपस में सबका परिचय हुआ। कुछ उन्होंने सुनाया, कुछ हम लोगों ने सुनाया और अंत में हमने उन्हें अपने नाट्योत्सव में ‘हमारे समय में’ के मंचन के लिए आमंत्रित कर लिया। ‘बी थ्री’ का एक शो हमने बिलासपुर में और एक शो राउरकेला में भी किया था लेकिन दिल्ली जैसा रिस्पाँस कहीं नहीं मिला।

इस वर्ष तेईसवाँ नाट्य समारोह 25 से 30 दिसंबर 2016 तक आयोजित हुआ। आठवाँ शरदचंद्र वैरागकर स्मृति रंगकर्मी सम्मान बंसी कौल को दिया जाना था। बंसी दादा उस समय दिल्ली में ही थे। मगर उनकी तबियत ठीक नहीं होने के कारण वे अस्पताल में थे और मुलाकात नहीं हो पाई। बाद में हम भोपाल गए और रंग विदूषक के फरीद बज़्मी से बंसी दादा से संबंधित सामग्री ले आए ताकि उन पर मोंटाज़ तैयार हो सके।

इस बार भी हमेशा की तरह सम्मान समारोह धूमधाम से हुआ। इस बार पच्चीस संस्थाओं ने दादा का सम्मान किया। इस अवसर पर इसी सामूहिकता को लेकर दादा ने बात शुरु की और बहुत सारगर्भित उद्बोधन किया। इस कार्यक्रम में संजय उपाध्याय ने भी बंसी दादा के साथ गुजारे अपने पलों को शेयर किया। बंसी दादा ने सम्मान तो स्वीकार किया मगर सम्मान राशि यह कहकर लौटा दी कि इप्टा इसे अपनी गतिविधियाँ बढ़ाने में खर्च करे।

पहले दो दिन बंसी कौल निर्देशित नाटक ‘सीढ़ी दर सीढ़ी उर्फ तुक्के पे तुक्का’

और ‘जिंदगी और जोंक’ का मंचन हुआ। दोनों नाटकों के सेट्स, कॉस्ट्यूम्स आकर्षक थे और प्रस्तुति भी प्रभावशाली थी।

तीसरे दिन लोकेश जैन का एकल नाटक ‘अक्करमाशी’ का मंचन हुआ, चौथे दिन बहरूप आर्ट ग्रुप दिल्ली का नाटक ‘हमारे समय में’

और पाँचवें दिन गौरव गणेश के निर्देशन में ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते’ का मंचन हुआ।

इस बार नाट्योत्सव छै दिन का हुआ। छठवें और अंतिम दिन ‘पंचलैट’ की प्रस्तुति हुई, जिसे देखने भारी भीड़ उमड़ी। यह नाट्योत्सव हर दिन हाउसफुल रहा।

इस नाट्योत्सव के बाद हम ‘टुम्पा’ को पूरा करने में जुट गए। फिल्म पूरी कर 25 मई को इप्टा के स्थापना दिवस पर इसका पहला स्क्रीनिंग किया गया, जो बहुत सफल नहीं कहा जा सकता। इस बीच पटना इप्टा के साथी विनोद कुमार सिन्हा, जो रायगढ़ में स्टेट बैंक के मैनेजर हैं, उनसे बातचीत हुई, उन्होंने बहुत उत्साह और प्रतिबद्धता के साथ सुबह की रिहर्सल में कुछ जनगीत हमसे तैयार करवा लिए।

हमारी टीम का एक लड़का मयंक श्रीवास्तव डांसर है, उसने और विजेता षडंगी ने भी एक लोकनृत्य तैयार कर लिया। 25 मई 2017 फिल्म के बाद जनगीतों और लोकनृत्य की भी प्रस्तुति हुई।

अगले महीने में ‘टुम्पा’ की दूसरी स्क्रीनिंग इला मॉल के मल्टीप्लेक्स में की गई तथा तीसरी स्क्रीनिंग रायपुर के वृंदावन हॉल में हुई। पटना में इप्टा की राष्ट्रीय सचिव मंडल की विस्तारित बैठक में भी ‘टुम्पा’ दिखाई गई। अभी रायपुर इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में इसका प्रदर्शन 15 दिसम्बर को तय हुआ है।

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