

भारतीय जन नाट्य संघ (इप्टा) ने अपनी तमाम सांस्कृतिक गतिविधियों के साथ-साथ रंगमंच संबंधी लेखों और देश भर में फैली इप्टा की इकाइयों की गतिविधियों से परस्पर परिचित होते रहने के लिए वक्त-वक्त पर पत्रिका, बुलेटिन, पैम्फ़ेट, सर्कुलर्स आदि भी प्रकाशित किए। शायद इनका व्यवस्थित दस्तावेज़ीकरण नहीं किया गया है। सुधी प्रधान द्वारा अंग्रेज़ी में संपादित किताब ‘Marxist Cultural Movement In India’ के तीन खंडों में 1943 से 1964 तक की अधिकांश गतिविधियों को सम्मिलित किया गया है। इसी तरह कुछ अन्य किताबों, लेखों एवं शोधपत्रों में कुछ विशेष बातों का विवरण दर्ज है। ‘जन-संस्कृति’ की खबरों को दूरदराज़ के संस्कृतिकर्मियों तक पहुँचाने के इप्टा के इस रचनात्मक प्रयास को हिन्दी पाठकों के लिए परिचयात्मक लेख के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है।


इप्टा के सांस्कृतिक आंदोलन की सक्रियता के पहले दौर में 1951 से 1954 तक कलकत्ते से इप्टा का मुखपत्र कही जा सकने वाली अंग्रेज़ी मासिक पत्रिका ‘यूनिटी’ का लगभग चार वर्षों तक नियमित प्रकाशन किया गया था। जून 1951 के प्रथम अंक से इसके संपादक थे डेविड कोहेन, उसके बाद अप्रैल 1954 से पत्रिका बंद होने तक इप्टा के तत्कालीन राष्ट्रीय महासचिव निरंजन सेन ने इसका संपादकीय कार्यभार सम्हाला।

साथी विनीत तिवारी और साथी मित्रा सेन मजूमदार के सौजन्य से मुझे ‘यूनिटी’ के लगभग 19 अंकों के मुखपृष्ठ और हरेक अंक में प्रकाशित सामग्री का विवरण देने वाली अनुक्रमणिका के फोटो प्राप्त हुए हैं। साथी मित्रा जी के निजी संग्रह में तथा अजय भवन नई दिल्ली (शायद और भी कहीं हों) में ये अंक संग्रहित हैं। इन्हें पढ़कर इनमें से समसामयिक विषयों की सामग्री का हिन्दी एवं अन्य भाषाओं में अनुवाद किया जाना चाहिए। ये न केवल इप्टा के लिए ऐतिहासिक महत्व के दस्तावेज़ हैं, बल्कि तत्कालीन राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक-सांस्कृतिक परिवेश तथा गतिविधियों के जीवंत प्रमाण हैं।


फ़िलहाल इनके आधार पर ही हम ‘यूनिटी’ का परिचय प्राप्त करते हैं।
उपर्युक्त उल्लिखित साथियों से जिन अंकों की मुझे जानकारी मिली, वे हैं – 1951 के जून, जुलाई, अगस्त, नवम्बर और दिसंबर महीने के अंक। 1952 के जनवरी, फ़रवरी-मार्च (संयुक्तांक), जुलाई, अगस्त, सितंबर, अक्तूबर, नवम्बर के बाद दिसंबर 1952 – जनवरी 1953 (संयुक्तांक)। 1954 के जनवरी, अप्रैल, मई-जून (संयुक्तांक), जुलाई, अगस्त और दिसंबर के अंक। कुछ फोटो जिज्ञासुओं के लिए यहाँ साझा किए जा रहे हैं।


यहाँ इस बात को रेखांकित करना ज़रूरी है कि 1951 में अखिल भारतीय शांति एकता परिषद (AIPSO) का प्रथम सम्मेलन आयोजित किया गया था और सभी प्रगतिशील संगठन ‘विश्व-शांति’ की स्थापना हेतु दृढ़ संकल्पित होकर सृजनात्मक स्तर पर सक्रिय हो उठे थे। इसका प्रभाव जून 1951 के ‘यूनिटी’ के प्रथम अंक में भी स्पष्ट दिखाई देता है। इस अंक का संपादकीय ही ‘ऑल इंडिया पीस कन्वेंशन’ पर केंद्रित था। साथ ही न केवल अपने देश की सभी सांस्कृतिक गतिविधियों का इसमें जायज़ा लिया जा रहा था, बल्कि अन्य देशों के कला-सृजन पर भी लिखा जा रहा था। अनेक देशों के साथ मैत्री संबंध स्थापित करने के लिए ‘मैत्री संगठन’ स्थापित किए गए थे, जिनके अनेक शहरों में कार्यक्रम आयोजित होते थे, साथ ही अन्य देशों की कला-गतिविधियों की जानकारी देने वाली साहित्य-सामग्री भी पढ़ी जाती थी।


नियमित छपने वाले स्तंभों में संपादकीय के अलावा कविता, कहानी, नाटक, पुस्तक-समीक्षा, रंगमंच और अन्य कला-विधाओं पर विचार-आलेख, विभिन्न विद्वानों के साक्षात्कार, विभिन्न स्थानों पर इप्टा एवं अन्य सांस्कृतिक संगठनों के कार्यक्रमों की रिपोर्ट्स प्रकाशित होती थीं। नमूने के तौर पर जून 1951 के अंक में प्रकाशित सामग्री का विवरण इस प्रकार है – ‘न्यू फॉर्म्स इन द इण्डियन थिएटर’ शीर्षक से मुल्कराज आनंद का साक्षात्कार पहले अंक में प्रकाशित हुआ। लेखों के विषय थे – ‘प्रोडक्शंस ऑफ़ प्रोग्रेसिव थिएटर’ (क्रिटिक), ‘द क्लासिकल चाइनीज़ थिएटर इज़ चेंजिंग’ (पी. सी. यू.), ‘मॉडर्न बंगाली थिएटर इन क्राइसिस’ (सलिल चौधरी)। रिपोर्ट्स थीं – ‘द बर्लिन यूथ फेस्टिवल’, ‘शेक्सपियर सोसाइटी’, ‘इंडिया-चाइना फ्रेंडशिप एसोसिएशन’, ‘द चाइनीज़ आर्ट एक्ज़ीबिशन’ तथा ‘रि-ऑर्गेनाइज़ेशन ऑफ़ इप्टा’। इनके अलावा देशी-विदेशी पुस्तकों की समीक्षाएँ, ‘छेनरा तार’ नाटक की नाट्य समीक्षा, अण्णा भाऊ साठे की कहानी ‘बड़बड़िया कंजारी’ तथा डी. एन. नदीम की कविता ‘आई शैल नॉट सिंग’ सम्मिलित थी। सभी अंकों में इसी तरह की विविधता विद्यमान थी।

प्राप्त 19 अंकों की अनुक्रमणिका के आधार पर श्रेणीकरण इस प्रकार हो सकता है – संपादकीय, लेख, समीक्षा, कविता/कहानी/नाट्यालेख, साक्षात्कार तथा रिपोर्ट्स।

(i) संपादकीय (Editorial) : संपादकीय के विषय थे- द ऑल इंडिया पीस कन्वेंशन, फॉर ए पैक्ट ऑफ़ पीस बिटविन इंडिया एंड पाकिस्तान, द मेड द कार्पेंटर किंग, एन अपील, 1952 विल सी ग्रेट कल्चरल अपसर्ज, फेमिन, पीस इन एशिया, होप फ़्लटर्स ओवर पेकिंग, लाँग लिव न्यू चाइना, ट्वेंटी फाइव ईयर्स ऑफ़ द यूएसएसआर, यूनाइट द फ़ोर्सेज़ ऑफ़ इण्डियन कल्चर, नाइनटिन फिफ्टी थ्री (उपर्युक्त तस्वीर में पढ़ा जा सकता है), मनोरंजन भट्टाचार्य, संदीप सान्याल, द मैडमैन मस्ट बी स्टॉप्ड, रबीन्द्रनाथ टैगोर, कल्चरल एक्सचेंज एण्ड इप्टा, इप्टा एण्ड डिफेंस ऑफ़ नेशनल कल्चर। इसमें से कुछ विषय, ख़ासकर भारत के पड़ोसी देशों पर लिखे संपादकीय आज के संदर्भ में काफ़ी उत्सुकता जगाते हैं।


(ii) लेख (articles) : विभिन्न अंकों में प्रकाशित लेखों के विषय थे – मैक्सिम गोर्की : चैंपियन ऑफ़ पीस, मॉडर्न बंगाली म्यूजिक इन क्राइसिस (सुभाष मुखोपाध्याय), टास्क्स ऑफ़ मॉडर्न बंगाली कंपोज़र्स (परेश धर), द सॉइल ऑन व्हिच सोवियत कल्चर फ़्लॉवर्स, सोशलिस्ट कल्चर मीन्स पीस एंड अपबिल्डिंग, एजुकेशन एंड साइंस इन यूएसएसआर, कल्चर एंड द इलेक्शंस, प्रेमचंद, हेनरी डिरोज़ियो एंड द बंगाली रेनेसाँ, कल्चरल रेवोलुशन इन वियतनाम, डेवलपमेंट ऑफ़ कल्चरल रिलेशंस अमंग नेशंस, पिकासो ऐट सेवेंटी, इण्डियन कल्चर इन द फाइट फॉर पीस, ऑल आर्ट बिलांग्स टू द कॉमन मैन, तमाशा – ए पॉपुलर फोक फॉर्म (निरंजन सेन), एन्शिएंट चाइनीज़ पोएट्री एंड पीस, ‘आई ड्रॉप्ड जर्म बॉम्ब्स ऑन कोरिया’ (जॉन क्वीन), द पीस ट्रेडिशंस इन इण्डियन कल्चर, लिटरेचर एंड लाइफ (एहतेशाम हुसैन), लिविंग कंडीशंस ऑफ़ कल्चरल वर्कर्स, द न्यू कल्चर ऑफ़ तेलुगू पीपल, क़ाज़ी नज़रुल इस्लाम, इंडियंस एंड पाकिस्तानीज़ मस्ट स्टैंड टुगेदर, प्रमोट इंडिया-चाइना फ्रेंडशिप, द इण्डियन फ़िल्म इंडस्ट्री, हाऊ आई डांस्ड इन द स्ट्रीट्स ऑफ़ पेकिंग, पीपल्स राइटर्स : सरदार गुरुबक्ष सिंह, पेजेस फ्रॉम ए पेकिंग डायरी, पीपल्स थिएटर इन इंडिया, हिन्दी राइटर्स स्टैंड फॉर पीस, पीपल्स राइटर्स : अण्णा भाऊ साठे, डांस : द आर्ट ऑफ़ उदय शंकर, व्हाई दे हेट चार्ली चैपलिन, पीपल्स आर्टिस्ट्स : मनोरंजन भट्टाचार्य, हंगेरियन फोक डांस रिवाइव्ड, द एनिमीज़ ऑफ़ कल्चर एंड एजुकेशन, शंकरदेव ऑफ़ असम, थिएटर फॉर द डीफ एंड डम्ब, पीपल्स आर्टिस्ट : ज्योति प्रसाद अग्रवाल, सम रिफ्लेक्शंस ऑन शेक्सपियर, ऑन इक़बाल, फोक साँग्स ऑफ़ पंजाब एंड पीस, सोशियोलॉजिकल आसपेक्ट्स ऑफ़ टैगोर्स ड्रामा, यूएस अटैक ऑन इंटेलैक्चुअल्स, चार्ली चैपलिन, इण्डियन मानसून, एंटोन चेखोव, फ्लड रिलीफ एंड इप्टा, म्युज़िक प्रमोट्स पीस (अनिल बिस्वास), इन मेमोरियम : शांति बर्धन, ऐक्टर्स बेन्ड फ्रॉम स्टेज, पपेट शो ऑफ़ तंजोर। कितनी विविधता है इन लेखों में! वाक़ई इप्टा के रंगकर्मी को इसी तरह के ज्ञानात्मक विस्तार की आवश्यकता होती है।


(iii) समीक्षा (Reviews) : ‘यूनिटी’ के हरेक अंक में कई कलात्मक विधाओं की समीक्षा प्रकाशित है। फ़िल्म-समीक्षा के अन्तर्गत देशी-विदेशी दोनों तरह की फ़िल्में तथा फ़िल्म फ़ेस्टिवल्स शामिल थे – मुन्ना, फ़ैरी, अनहोनी, केसरो, आर्म्स एंड द मैन, द रशियन क्वेश्चन नामक फ़िल्में तथा कई इंटरनेशनल फ़िल्म फ़ेस्टिवल्स; नाटकों की समीक्षा में थे – यात्रा, बंगलार माटी, धरती, डेथ ऑफ़ ए सेल्समैन के अलावा अनेक पुस्तकों की समीक्षाएँ, अनेक देशों की कला-प्रदर्शनियों की समीक्षा भी शामिल थी।
श्रेणी चार में विभिन्न लेखकों-कवियों की रचनाएँ हैं। श्रेणी पाँच में मुल्कराज आनंद, प्रो. धुर्जटी मुखर्जी, पाब्लो नेरुदा के साक्षात्कार हैं।


सबसे दिलचस्प श्रेणी है विभिन्न रिपोर्ट्स की। इसमें न केवल इप्टा की गतिविधियों की, विभिन्न प्रकार के शांति और सांस्कृतिक कार्यकर्ताओं के सम्मेलनों, संगठनों, संस्थाओं के कामकाज तथा समस्याओं, चीन, सोवियत संघ आदि देशों से आए संदेशों, अनेक प्रकार के संयुक्त प्रस्तावों (उदाहरण – इंडिया-पाकिस्तान पीस डिक्लेरेशन) की बहुत लम्बी श्रृंखला है।


मुझे लगता है कि ‘यूनिटी’ के सभी अंकों को स्कैन करके सुरक्षित रखा जाना चाहिए तथा इप्टा की अधिकृत वेबसाइट (जिसे पुनर्जीवित किए जाने की सख़्त ज़रूरत है) पर डालकर सभी जिज्ञासुओं के लिए उपलब्ध किया जाना चाहिए। इप्टा के दस्तावेज़ीकरण के अभियान में ‘यूनिटी’ में प्रकाशित सामग्री महत्त्वपूर्ण है।
उषा जी को हार्दिक अभिनन्दन. आपने इप्टा के इतिहास से संबंधित विषयों पर जो कार्य किए है वे विद्यार्थियों,शोधार्थियों और .नाटककारों,नाट्य संस्थाओं के लिए बहुत उपयोगी सा
बित होगा.