आज का सांस्कृतिक परिवेश अजीब फिसलनभरी गलियों के बंद मुहाँनों से घिरा हुआ है। मनुष्य-मनुष्य के बीच न जाने कितने प्रकार की विभाजक रेखाएँ रोज़ ही खींची जा रही हैं। अपने तमाम प्रकार के सकारात्मक और नकारात्मक वैचारिक उबाल उगलने के लिए सोशल मीडिया मोबाइल के स्क्रीन पर एक स्पर्श का इंतज़ार कर रहा है। ठहरकर सोचने-समझने, विचार करने और कड़वाहट भरे माहौल में प्यार, मैत्री, सद्भाव, सहानुभूति और सामाजिक न्याय के बीज बोने के लिए कुछ नया रचने की सलाहियत और संयम चुकता जा रहा है। ऐसे समय में इप्टा जैसे सांस्कृतिक आंदोलन को नए औज़ारों की ज़रूरत है। अपनी विरासत में मिले तमाम औज़ारों को फिर से धो-माँजकर, उन्हें वक्त की निहाई पर नई धार चढ़ाने की ज़रूरत है। हमें न केवल अपने नाटकों, नृत्य-गीतों, संगीत और अन्य प्रदर्शनकारी कलाओं को नए संदर्भों में पुनर्रचित करने की ज़रूरत है, बल्कि दुनिया भर के सांस्कृतिक प्रतिरोधों के औज़ारों में नए परिवर्तन करते हुए व्यक्ति और संगठन के स्तर पर उन पर पुनर्विचार करने की ज़रूरत है। अब अपने आप को दोहराना पर्याप्त नहीं है। सांस्कृतिक गतिविधियों को सिर्फ़ उत्सवधर्मिता और ‘इवेंट’ के रूप में दोहराने के ‘बासीपन’ से बाहर लाकर नए-नए प्रयोगों पर काम करना लाज़िमी हो गया है। जन-साधारण के पास और उनके बीच जाने के लिए नई व्यावहारिक सांस्कृतिक-सामाजिक गतिविधियों की खोज करना ज़रूरी है। यह खोज स्थानीय भी हो सकती है, क्षेत्रीय भी या प्रादेशिक-राष्ट्रीय स्तर पर भी। मगर अपना सुनाने-दिखाने की इकतरफ़ा प्रस्तुति के स्थान पर दूसरों को सुनने-समझने और दोतरफ़ा संवाद किए जाने की ज़रूरत है।
25 मई 2025 को इप्टा का 82 वाँ स्थापना दिवस मनाया गया। देश भर की इप्टा की इकाइयाँ अपने स्थापना दिवस पर विभिन्न प्रकार की गतिविधियाँ करती हैं। इस वर्ष मेरी जानकारी के अनुसार नए प्रकार के कार्यक्रम कुछ इकाइयों ने आयोजित किए, जिन्हें साझा करने के लिए तथा अन्य इकाइयों की गतिविधियाँ एक जगह एकत्रित हो जाएँ, इस रिपोर्ट का यही मक़सद है।

जमशेदपुर इप्टा ने पिछले कुछ वर्षों से झारखंड के आदिवासी निवासियों से जुड़ते हुए सांस्कृतिक आदान-प्रदान का सिलसिला शुरू किया है। पिछले दिनों इकाई द्वारा ग्राम बालीजुडी में 20 से 25 मई 2025 तक ‘शोषितों का रंगमंच’ (Theatre of the Oppressed) की छह दिवसीय आवासीय कार्यशाला आयोजित की गई थी। झारखंड इप्टा की महासचिव अर्पिता की रिपोर्ट के अनुसार नाशिक इप्टा के साथी तल्हा शेख़ के प्रस्ताव पर साथी संकेत सीमा विश्वास (नाशिक) और वंशिका (दिल्ली) द्वारा प्रशिक्षण दिया गया। “शोषितों का रंगमंच ऐसा अभ्यास है, जो एक रंगकर्मी को ‘स्व’ के केंद्र से निकालकर परिधि पर बसे समाज की ओर बढ़ाते हुए एक सजग रंगकर्मी और नागरिक बनने की दिशा में अग्रसर करता है। यह मंच और मंच से परे एक रंगकर्मी के व्यक्तित्व की फाँक को मिटाने का अभ्यास है।”

प्रशिक्षकों ने कार्यशाला को इंटरैक्टिव बनाते हुए आपस में तालमेल और संवाद स्थापित करने का अवसर दिया, जिससे प्रतिभागियों की झिझक धीरे-धीरे कम हुई। कार्यशाला में शहर और गाँव दोनों जगह के लगभग 30 प्रतिभागी शामिल हुए। विभिन्न पृष्ठभूमि के कारण प्रशिक्षकों एवं प्रतिभागियों के बीच बहुआयामी सोद्देश्य संवाद संपन्न हुआ। विभिन्न समुदायों के गंभीर मुद्दों तक पहुँचने के लिए खेल को टूल की तरह इस्तेमाल किया गया, जिससे दिमाग़ी रूढ़ि की चट्टान में दरारें आने की संभावना बनी। पूरी कार्यशाला का स्पेस, सबका स्पेस बन गया था, जिससे सामूहिकता की ताक़त का अनुभव हो रहा था, इसीलिए सभी साथी उत्साह और ऊर्जा से भरे हुए थे। कार्यशाला में तैयार नाटकों और नृत्य-गीतों की प्रस्तुति 25 मई को कार्यशाला-समापन के अवसर पर गाँव के ‘अखरा’ में की गई। स्थानीय पंचायत गुरु तथा माँझी बाबा ने पारंपरिक तरीक़े से जामुन का पौधा लगाकर कार्यशाला का औपचारिक उद्घाटन किया था। आवासीय कार्यशाला के आयोजन में रामचंद्र मार्डी तथा उर्मिला हांसदा का प्रमुख सहयोग रहा। समापन अवसर पर झारखंड इप्टा के अध्यक्ष उपेन्द्र मिश्रा, साहित्यकार रणेन्द्र, मिथिलेश, शेखर मलिक सहित अन्य साथी तथा स्थानीय निवासी बड़ी संख्या में उपस्थित थे। आयोजन में जमशेदपुर तथा घाटशिला इप्टा के अतिरिक्त गोमहेड तथा पथ संस्था के सदस्यों का योगदान रहा। जमशेदपुर इप्टा द्वारा आयोजित इस लोकोन्मुख गतिविधि के लिए साथियों को सलाम! निम्नलिखित यूट्यूब की लिंक पर आयोजन की विस्तृत जानकारी ली जा सकती है।
नाशिक (महाराष्ट्र) इप्टा की संपूर्ण युवा टीम ने स्थापना दिवस काफ़ी ख़ास तरीक़े से मनाया। नाशिक इप्टा के अध्यक्ष तल्हा शेख़ की रिपोर्ट के अनुसार पंडित विष्णु दिगम्बर पलुस्कर सांस्कृतिक भवन का निर्माण पूरा होने के बाद भी स्थानीय महानगरपालिका के ग़ैर ज़िम्मेदार रवैये के कारण वहाँ तीन वर्षों तक बिजली नहीं जोड़ी गई थी, जिसके कारण सांस्कृतिक कार्यक्रम नहीं हो पा रहे थे। इप्टा के सदस्यों ने इसके लिए पहले आंदोलन किया।

जब पालिका-प्रशासन के कान पर जूँ नहीं रेंगी, तो इप्टा ने दो सप्ताह का अल्टीमेटम देते हुए 25 मई 2025 के कार्यक्रम के लिए आवेदन लगा दिया था। प्रशासन द्वारा जनरेटर लगाकर कार्यक्रम करने की सलाह दी गई, जिसके प्रतिरोध में इप्टा नाशिक के साथियों ने चार्जिंग बल्ब एवं मोबाइल के टॉर्च की अपर्याप्त रोशनी में ‘क़िस्सा पलुस्कर का’ नामक छत्तीसगढ़ी नाचा शैली पर आधारित नाटक तथा ‘शब्दाखातर’ (शाब्दिक तौर पर) शीर्षक का काव्य-पाठ प्रस्तुत किया। दर्शकों ने भी शांतिपूर्वक समूचा कार्यक्रम देखा और बाद में आव्हान करने पर बिजली जोड़ने के लिए आपस में चंदा कर जन-सहयोग और जनता की आकांक्षा का उदाहरण प्रस्तुत किया। नाशिक इप्टा के सृजनात्मक प्रतिरोध को सलाम!


इप्टा की राष्ट्रीय समिति ने आगामी वर्ष की गतिविधियाँ ‘सद्भाव’ पर केंद्रित किए जाने की अपील की है। इस परिप्रेक्ष्य में लखनऊ इप्टा ने इसकी शुरुआत करते हुए 24 मई 2025 की रात दीप जलाए तथा 25 मई की शाम सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए, जिसमें लिटिल इप्टा तथा अन्य साथियों द्वारा जनगीत प्रस्तुत किए गए। यह उल्लेखनीय है कि जब सभी जगह प्रेक्षागारों की कमी तथा उनके बढ़ते किराए की समस्या हावी है, उसका हल निकालने के लिए लखनऊ इप्टा ने जन-सहयोग से ‘बलराज साहनी सभागार’ का निर्माण किया है। इसका औपचारिक उद्घाटन स्थापना दिवस के दिन किया गया। इस पहल के लिए लखनऊ इप्टा को बधाई।

उत्तरप्रदेश में उरई की लिटिल इप्टा इकाई ने साथी राज पप्पन के नेतृत्व में 24 मई की रात सामूहिक रूप से सद्भाव दीप जलाए।

आगरा इप्टा ने अनेक जनगीतों की प्रस्तुति के साथ-साथ एकल नाटक ‘अखिल भारतीय चोर सम्मेलन’ प्रस्तुत किया।

चाइबासा (झारखंड) इप्टा ने नुक्कड़ नाटक ‘डरा हुआ आदमी’ प्रस्तुत किया। साथी तरुण मोहम्मद की रिपोर्ट के अनुसार जनगीतों के अलावा ओमप्रकाश नदीम लिखित ‘दीप-यात्रा गीत’ ‘प्यार-मोहब्बत से हर दिल में हम अलख जगाने आए हैं’ प्रस्तुत किया गया।

मेदिनी नगर (झारखंड) में इप्टा के स्थापना दिवस की पूर्व संध्या पर समृद्धि मिशन द्वारा संचालित पाठशाला के बच्चों के साथ सद्भाव दीप-यात्रा इप्टा के सदस्यों द्वारा कचरवा बस्ती से शुरू की गई। साथी रवि ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि, इससे पूर्व 14 दिवसीय बाल नाट्य कार्यशाला का आयोजन किया गया था, जिसका समापन स्थापना दिवस पर किया गया। पटना इप्टा ने जनगीतों की प्रस्तुति की।
अमृतसर (पंजाब) इप्टा द्वारा महाराजा रणजीत सिंह के जीवन की कहानियों पर आधारित ‘शेर-ए-पंजाब’ नाटक, ‘अंधेर नगरी’ तथा ‘जूठ’ एकल नाटक के अलावा कविता-नाटक ‘पंघूड़ा’ की प्रस्तुति की।


कपूरथला (पंजाब) इप्टा ने नाटक ‘जंजीरें’ का प्रदर्शन किया तथा भारत-पाकिस्तान के बीच उत्पन्न तनावपूर्ण परिस्थिति के मद्देनज़र ‘युद्ध नहीं, शांति चाहिए’ का संदेश दिया। मोगा (पंजाब) इप्टा के साथियों ने आगामी कार्यशालाओं की योजना बनाते हुए कुछ कहानियों, गीतों पर चर्चा की।
दावणगेरे (कर्नाटक) ने भी स्थापना दिवस मनाया।

जोरहाट (असम) तथा कटक (ओड़िशा) में भी इप्टा का स्थापना दिवस मनाया गया।


भिलाई (छत्तीसगढ़) इप्टा ने अपने बाल नाट्य प्रशिक्षण शिविर का समापन किया। 05 से 25 मई 2025 तक आयोजित बाल एवं तरुण नाट्य-प्रशिक्षण शिविर में लगभग 80 बच्चों, किशोरों एवं युवाओं ने भाग लिया। समापन दिवस पर ‘थाड़ दुवारे नंगा’ नाटक, फ़ौजियों को समर्पित नृत्य, घूमर लोकनृत्य, छत्तीसगढ़ी लोकनृत्य और जनगीतों की प्रस्तुति की गई।


रायगढ़ (छत्तीसगढ़) इप्टा द्वारा शहर के तीन स्थानों पर ग्रीष्मकालीन बाल नाट्य प्रशिक्षण कार्यशाला का 25 मई को शुभारंभ किया गया।
इस वर्ष एक खेदजनक घटना भी घटित हुई कि अशोक नगर (मध्य प्रदेश) इप्टा की प्रति वर्ष आयोजित होने वाली बाल एवं किशोर नाट्य कार्यशाला, जो 01 से 25 मई 2025 तक आयोजित थी, इस बार सत्ता के दबाव के कारण महज़ ‘अनुमति’ लेने के नाम पर पूर्व निर्धारित स्थान नहीं दिये जाने पर स्थगित करनी पड़ी।
देश में इप्टा की अनेक इकाइयों ने स्थानीय स्तर पर कोई न कोई गतिविधि संपन्न की। यहाँ जिन इकाइयों ने इप्टा के व्हाट्सअप समूह पर अपनी रिपोर्ट या फोटो साझा किए, उनका ज़िक्र किया गया है।