आज लोकशाहीर अण्णा भाऊ साठे (01 अगस्त 1920 – 18 जुलाई 1969) का 56वाँ स्मृति-दिवस है। न केवल महाराष्ट्र के, बल्कि देश के जनवादी सांस्कृतिक आंदोलन में अण्णा भाऊ साठे का बहुत बड़ा योगदान रहा है। उन्होंने लाल बावटा कला पथक के अंतर्गत अनेक नाटक लिखे और खेले, अनेक गीत रचे और गाए; साथ ही अनेक आंदोलनों में भी नेतृत्वकारी भूमिका निभाई। अण्णा भाऊ साठे भारतीय जन नाट्य संघ (इप्टा) और प्रगतिशील लेखक संघ से भी जुड़े हुए थे। औपचारिक शिक्षा शून्य होने के बावजूद उन्होंने अनेक विधाओं में लेखन किया।
यहाँ मैं सिर्फ़ उनके नाटकों की संक्षिप्त चर्चा कर रही हूँ और उनके एक नाटक ‘सेठजी का इलेक्शन’ का हिन्दी अनुवाद साझा कर रही हूँ। कृपया डाउनलोड कर पढ़ें।
अण्णा भाऊ साठे ने कुल 17 नाटक लिखे, जिनमें तीन पूर्णकालिक नाटक और चौदह एकांकी या लोकनाट्य हैं। उनके तीन पूर्णकालिक नाटक हैं – ‘इनामदार’ (शासन से ईनाम मिली ज़मीन का मालिक), ‘सुलतान’ और ‘पेंग्याचे लगीन’ (पेंग्या की शादी) तथा लोकनाट्य हैं – ‘अकलेची गोष्ट’ (अक़्ल की कथा), ‘खाप चोर’, ‘कलंत्री’, ‘बिलंदर बुड़वे’ (धूर्त दिवालिये), ‘बेकायदेशीर’ (ग़ैरक़ानूनी), ‘शेटजीचे इलेक्शन’ (सेठजी का इलेक्शन), ‘पुढारी मिळाला’ (नेता मिल गया), मूक मिरवणूक (मौन जुलूस)’, ‘माझी मुंबई’ (मेरी मुंबई), ‘देशभक्त घोटाळे’ (देशभक्त घोटालेबाज़), ‘दुष्काळात तेरावा’ (अकाल में तेरहवीं), ‘निवडणुकीतील घोटाळे’ (चुनाव में घोटाले), ‘लोकमंत्र्याचा दौरा’ (लोकमंत्री का दौरा) तथा ‘पेंग्याचे लगीन'(पेंग्या की शादी)। इन नाटकों के कथानक प्रायः राजनीतिक-सामाजिक विषमता, वर्ग-विभाजन तथा मेहनतकश वर्ग की उभरती चेतना के दस्तावेज़ हैं। इन नाटकों में तत्कालीन आंदोलनों की जीवंत हलचल को महसूस किया जा सकता है। इन नाटकों के बहुत लोकप्रिय होने का कारण रहा है इनका लोकनाट्य शैली में होना। चूँकि उन्होंने इन नाटकों में मेहनतकश जनता के शोषण और दमन, तथा सत्ता और पूँजी पर आसन जमाए बैठे वर्ग की चालाकियाँ, क्रूरता, वर्चस्व को रोचक तरीक़े से उजागर किया था, इसलिए आम जनता को ये नाटक अपने महसूस होते थे। साथ ही सत्ताधारी और शोषक वर्ग किस तरह मेहनतकश वर्ग की मेहनत पर आश्रित होता है, इसके भी दिलचस्प विवरण नाटकों में पिरोए गए हैं। उन्होंने महाराष्ट्र के तमाशा, लावणी, पोवाड़ा, वगनाट्य, कवन जैसे पारंपरिक लोकरूपों में नया आशय भरकर उसे पूरी कलात्मकता के साथ जन-सामान्य के बीच प्रस्तुत किया। इनमें समसामयिक घटनाओं, संदर्भों, चरित्रों को हास्य-व्यंग्य और गेय शैली में मारक आशय के साथ प्रस्तुत किया जाता था। अण्णा भाऊ साठे के साथ लोकशाहीर अमर शेख़, द. ना. गवाणकर और अन्य कलाकारों का लोक-अभिनय तथा गायन दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर देता था। इन नाटकों में वर्णित तत्कालीन व्यवस्था की विसंगतियाँ आज और भी ज़्यादा तीखी और अधुनातन हो गई हैं इसीलिए ये सभी नाटक आज भी प्रासंगिक बने हुए हैं। अण्णा भाऊ साठे की विरासत को सलाम!



अच्छी पड़ताल ……
शुक्रिया दीदी 🌹🌹