डॉ. ज्योत्सना रघुवंशी
(इप्टा के दस्तावेज़ीकरण के अभियान में आरंभिक दौर के साथियों में आगरा के राजेंद्र रघुवंशी का नाम संस्थापक सदस्यों में सम्मिलित है। उत्तर प्रदेश इप्टा की सबसे पुरानी इकाई आगरा की स्थापना और विकास के बारे में जानने के लिए राजेंद्र रघुवंशी की बेटी डॉ.ज्योत्सना रघुवंशी, जो बचपन से ही इप्टा का हिस्सा रहीं, से आग्रह किया गया था कि वे आगरा इप्टा में महिला साथियों की हिस्सेदारी पर संस्मरण लिखें। उन्होंने इस लेख में विशेष उल्लेख किया है कि आगरा इप्टा में किस तरह आरंभ से ही महिला साथी भी जुड़ी रहीं और विभिन्न प्रकार की ज़िम्मेदारी का निर्वाह करती रहीं।
डॉ. ज्योत्सना रघुवंशी ने इप्टा के संस्थापक सदस्य तथा पूर्व राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राजेंद्र रघुवंशी के समूचे लेखन को उनकी आत्मकथा ‘स्वगत कथन’ के रूप में संपादित किया है। इस पुस्तक का विमोचन तथा लोकार्पण आगामी 19 जुलाई 2025 को आगरा में आयोजित है। ज्योत्सना जी ने लिखा है, “पुस्तक में आज़ादी के संघर्ष से पूर्व, दौरान और आज़ादी के बाद की स्थितियों का विश्लेषण अपने राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और साहित्यिक सरोकारों के मद्देनज़र लेखक ने किया है, जिसमें भारत की महत्त्वपूर्ण संस्थाओं इप्टा, प्रलेस, ब्रज कला केंद्र आदि की विवेचना है।” हमें उम्मीद है कि इस आत्मकथा में इप्टा के राष्ट्रीय आंदोलन का प्रारंभिक दौर, बीच का बिखराव वाला दौर, जब विभिन्न प्रदेशों में अनेक इकाइयाँ अपने-अपने स्तर पर लगातार सक्रिय थीं, तथा 1985 में राष्ट्रीय स्तर पर पुनर्गठन से लेकर राजेंद्र रघुवंशी के जीवन-काल तक के दीर्घ समय का लेखा-जोखा प्राप्त होगा। उम्मीद है, इप्टा के दस्तावेज़ीकरण में यह पुस्तक ‘मील का पत्थर’ साबित होगी। इस पुस्तक के लोकार्पण की पृष्ठभूमि के रूप में ज्योत्सना जी का यह लेख प्रस्तुत है। फोटो डॉ. ज्योत्सना रघुवंशी से साभार।)

आगरा इप्टा की स्थापना 1942 में विनय रॉय के सेंट्रल ग्रुप ‘बंगाल कल्चरल स्क्वाड’ के आगरा आने और उनके शो से प्रभावित होकर आगरा के उत्साही युवकों श्री राजेंद्र रघवुंशी, श्री बिशन खन्ना और उनके साथियों ने ‘आगरा कल्चरल स्क्वाड’ के नाम से की थी। ये युवक सामाजिक, राजनीतिक गतिविधियों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते रहे थे। सीमित संसाधनों में इसकी शुरुआत आगरा के बेकर पार्क (अब सुभाष पार्क) में दर्जियों की हड़ताल (जो सैनिकों के कपड़े सिया करते थे) के समय प्रस्तुत नाटक ‘आज का सवाल’ (लेखक : राजेन्द्र रघुवंशी) से हुई थी। नाट्य-नृत्य गीतों की प्रस्तुति की निरन्तरता समय और स्थिति के अनुरूप निरंतर चलती रही। ये प्रस्तुतियाँ अपनी प्रतिबद्धता से जुड़ी, कथ्य में मजबूत, स्थानीय परिस्थितियों के बरअक्स होने से दर्शक-समूह से जुड़ जाती थीं। प्रारंभ में महिला पात्रों का अभिनय पुरुष ही करते थे। “कामता प्रसाद ने बकेवर (इटावा) किसान सम्मेलन में अपने लिखे रसिया (गीत) – ‘चलो बकेवर चले, सभी में मिलकर करें पुकार’ महिला बन लंबे घूँघट में साड़ी पहन लहरा-लहरा कर नृत्य किया था।” (स्वगत कथन से : लेखक राजेन्द्र रघुवंशी)

धीरे-धीरे इप्टा से परिवार जुड़ने लगे और नृत्यांगनाएँ, गायिकाएँ और अभिनेत्रियाँ भी। जिनमें प्रमुख परिवार तथा व्यक्ति थे – श्री कृष्ण चंद्र खन्ना, किशन खन्ना, गोपाल सूद, श्री रामगोपाल सिंह चौहान, श्रीमती शर्मा और रघुवंशी परिवार आदि। अक्सर रिहर्सल और यात्राओं में छोटे बच्चों के लिए पिकनिक जैसा माहौल होता। अधिकतर बेटियाँ मंच पर होतीं और बच्चियों की माँएँ मंच के पीछे संगठन के काम, कलाकारों का खान-पान, उनकी पोशाकें और अन्य व्यवस्थाएँ संभालतीं । बच्चों वाली अभिनेत्री अपने रोल के आने पर मंच के पीछे पर्दे बिछाकर बच्चों को सुला देती और अपने अभिनय के बाद बच्चों की देखभाल करतीं। यह सिलसिला इसी तरह काफी समय तक चलता रहा।
सन् 1943 से 1947 तक आगरा इप्टा का यायावर दल हर दिन किसी स्थान, सम्मेलन में (किसान रेलवे यूनियन आदि में) प्रस्तुति के लिए जाता, जिसमें कभी पुरुष सहभागी होते, कभी पूरा दल।
आगरा इप्टा की रंग-यात्रा को जितेन्द्र रघुवंशी ने तीन चरणों में बाँटा था – (1) सन 1942 से 1947 तक (2) 1948 से 1960 तक (3) 1961 से 1985 तक और अब हम 1986 से 2000 तक चौथा चरण व पाँचवाँ चरण 2001 से अब तक तक मान सकते हैं।
8 अक्टूबर, 1949 को प्रगतिशील लेखक संघ के तत्वावधान में प्रेमचंद जयंती में ‘गोदान’ (रूपां.- राजेन्द्र रघुवंशी) नाटक प्रस्तुत किया गया। आगरा में पहली बार मंच पर ‘धनिया’ की नायिका की भूमिका श्रीमती अरुणा रघुवंशी ने की थी। सावित्री नागर, रमा खन्ना की भी भूमिकाएँ इस नाटक में थीं। इसके कई प्रदर्शन लखनऊ, शिमला, कलकत्ता (1957) में हुए। झुनिया की भूमिका श्यामा जैन (कलकत्ता की अभिनेत्री) ने की थी।

रांगेय राघव के रिर्पोताज के आधार पर ‘आधा सेर चावल’ एकांकी में कॉमरेड मुन्नी शुक्ला ने धोबिन का किरदार निभाया था, जो कलफ लगाने को दिये गए चावल को पकाकर बच्चों को खिला देती है। बंगाल दुर्भिक्ष की सहायतार्थ किया गया यह एकांकी काफी सराहा गया। शायद श्रीमती मुन्नी शुक्ला का यह पहला और अंतिम नाटक था। वे आर.एम.पी. डॉक्टर थीं।

डॉ. रशीद जहाँ ने लखनऊ में खूब सहयोग दिया था। साथ ही उन्हें शिकायत रहती थी ‘राजेन्द्र तुम्हारे नाटकों के पात्र हमेशा फटे कपड़ों में क्यों रहते हैं?’। हमने कहा – ‘आपा, अभी हमारे पास फंड नहीं है।’ वे अपने घर ले गईं और असली जरी के लहंगे, दुपट्टे, चोलियाँ, कुरतियाँ यहाँ तक कि अपने पति मुजफ्फर अहमद खाँ की शादी की बहुमूल्य शेरवानी भी दे दी।’ ये कपड़े बहुत दिनों तक हमारे कलाकारों ने पहने और झमाझम प्रस्तुतियाँ भी दीं।
हमारे नर्तक और नृत्य निर्देशक डी.के. राय, जो ग्वालियर से आए थे, ने हमारी लड़कियों को निर्देशित किया और इसमें शास्त्रीय नृत्य (कत्थक) में शोभा-सूद, अब शोभा कौसर (प्राचीन कला केंद्र चंडीगढ़ की चेयरपर्सन हैं), लोकनृत्य में चंद्रलेखा खन्ना, कीर्तिलेखा खन्ना, उमा कपूर, चंद्रप्रभा कपूर आदि प्रतिभाशाली कलाकारों ने भाग लिया था ।
कॉमरेड रुस्तम सैटिन, उनकी धर्मपत्नी मनोरमा सैटिन और उनकी बड़ी बहन ने बनारस के लगभग आधा दर्जन कार्यक्रमों के आयोजनों में बड़ा सहयोग किया। लखनऊ में राजेन्द्र रघुवंशी ने मुस्लिम महिलाओं का नाटक तैयार कराया, पार्क में प्रस्तुति के समय आयोजकों, कलाकारों के आग्रह पर, रघुवंशी जी को बुर्का पहनकर मंच के पीछे प्रस्तुत रहना पड़ा। आगरा इप्टा स्वयं हमेशा प्रस्तुति दे, ऐसा आग्रह न कर, जो रुचिवान महिला समूह या विद्यालय होते थे, वहीं प्रस्तुति तैयार की गईं और वहाँ कला-मर्मज्ञ महिला अध्यापिकाओं का सक्रिय सहयोग लिया गया।
‘जहाँ जनता है वहाँ हम हैं।’ इस नारे के अनुपालन में आगरा इप्टा ने एक दर्जन से अधिक बालिका विद्यालयों, विभिन्न भाषा-भाषी मराठी, कन्नड़, बंगाली, सिंधी, पंजाबी आदि संगठनों, सनातन धर्म-सभा, क्षत्रिय, खत्री, मैथिली सभा आदि में अपनी प्रगतिवादी रचनाओं को लोक-कलाओं के साथ प्रस्तुत किया, जिसमें वहाँ की प्रबुद्ध शिक्षिकाओं-महिलाओं – श्रीमती मिथलेश शर्मा जौहरी, मंजू अस्थाना, गायत्री शर्मा, आभा मेहरा, श्रीमती सुमन सोबानी, व्यवहारे बहनें, जयश्री हरिदाश, प्रेरणा तलेगांवकर आदि का सहयोग लिया गया।

हमेशा सब अच्छा और तारीफ़ वाला रहा हो यह ज़रूरी भी नहीं। कई दफा संकट, ख़ास तौर से आर्थिक संकट के समय मेरी माँ अरुणा रघुवंशी और श्रीमती वत्सला कुंटे आदि ही काम आईं । तीन दिवसीय ‘रवीन्द्र जयंती’ में अंतिम दिन शंभू चटर्जी के कार्यक्रम के बाद बस का किराया और स्मारिका प्रिंट आदि का क़र्ज़ पटाने के लिए माँ ने अपने जेवर गिरवीं रखने के लिए दिये, जो कभी छूट ना पाए।
लगभग 75 पूर्णकालिक नाटक, 70 एकांकी, 15 गीति नाट्य, आशु नाटक और शैडो प्ले (एक-एक दर्जन से अधिक) में सैकडों महिला कलाकारों ने भाग लिया। जिसका निर्देशन राजेन्द्र रघुवंशी, शैलेन्द्र रघुवंशी, अहमद अली (पाकिस्तान), रेखा जैन, जितेन्द्र रघुवंशी, गिर्राज प्रसाद (नौटंकी), राजू बारोट, राजू रायडू, कुमार अमृत, श्रीकांत, अजय कार्तिक, ज्योत्स्ना रघुवंशी और दिलीप रघुवंशी आदि ने किया।
इन प्रस्तुतियों में भाग लेने वाली महिला कलाकार थीं – श्रीमती अरुणा रघुवंशी, डॉ. अचला नागर, श्रीमती विमला चौहान, विनीता सूद, उषा बनौदा, दयाल प्यारी शर्मा, प्रीति जैन, श्रुति जैन, डॉ. ज्योत्स्ना रघुवंशी, संध्या गोयल, निशा गोयल, अलका गोयल, भावना रघुवंशी, नीतू दीक्षित, स्वर्णिमा रघुवंशी, सौम्या रघुवंशी श्रीवास्तव, रेखा चौहान पतसारिया, मयूरी देसाई, सुजाता देसाई, सुचित्रा, सुप्रिया देसाई, नयना गांधी, चेतना फौजदार, ज्योति शिंदे, नृत्या राणा, यशोदा कुमकुम रघुवंशी, डॉ. शशि तिवारी, श्रीमती काजल शर्मा (कत्थक गुरु, चेस्टर, इंगलैंड), डॉ. निर्मला सूदन चोपड़ा, (महिला चिकित्सक, आगरा), इंदु जैन, सुनीता सूदन, बीना कपूर, कु. प्रमिला संतार, पूनम गोस्वामी, पूनम शर्मा, उर्वशी वर्मा, सुनीता धाकड़ (लोक गायिका) अलका धाकड़, कीर्ति अग्रवाल, भुवनेश धाकड़, स्नेहलता अग्रवाल, कृष्णा कुलश्रेष्ठ, श्रीमती स्वदेश सूद, मीरा चतुर्वेदी (शिक्षक), आभा चतुर्वेदी, इला कमलेश, साधना पुरी, रेनु बंसल, नीता शिंदे, शिवानी मजूमदार, सोनाली दवे, श्रद्धा दवे, मीता देसाई, आनंदी बेन जोशी, मीनू शर्मा, श्रीमती ममता दास, श्रीमती सुमन शर्मा, सविता, सुनीता, प्रतिभा लहरी, नीना कपूर, सुनीता शर्मा, जयंती कृष्णन, रश्मि श्रीवास्तव, गौरी सिंह, धारणा लवानियाँ, ब्रजेश्वरी, प्रतिभा सूद, वंदना जसूजा, रेनु गोयल, रक्षा गोयल सूद, आयशा चौहान, राजबाला शर्मा, नेहा बंसल, स्वीकृति सेठी, आकांक्षी खन्ना, हिमानी चक, चित्रा कुलश्रेष्ठ, पूजा, मनीषा कुलश्रेष्ठ, सुमन भटनागर, मेधा, रीता भटनागर, किरण यादव, शिश जौरी, ऋचा जौहरी सहाय, ऋतु जौहरी, रंजना, संजना शर्मा, रिद्म, रायम किंकर आदि।

इन महिला कलाकारों में से लगभग 12 की मृत्यु हो चुकी है, कुछेक ने पूर्ण आयु प्राप्त की, कुछ जल्दी बीमारी की वजह से नहीं रहीं। जिनके बिछुड़ने का अपार दुख है। कुछ शादी के उपरांत दूसरे शहरों या विदेशों में बस गईं, पर वे आगरा आने पर मिलने आती हैं और इप्टा में बिताए दिनों को याद करने के साथ अपनी सांस्कृतिक सक्रियता की सूचना देकर उत्साहित करती हैं। कुछ महिला कलाकार लिटिल इप्टा में आईं और धीरे-धीरे सह-निर्देशन एवं अभिनय में सक्रिय रहीं। इप्टा की गतिविधियाँ जिस तरह से व्यक्ति को मानसिक, सामाजिक और समझ से परिपूर्ण करती हैं, उसके कारण महिलाएँ इप्टा से जाने के बाद भी पारिवारिक और व्यवसायगत चुनौतियों का दृढ़ता से मुकाबला करती रही हैं।

उपर्युक्त सारे नाम मैंने बड़े परिश्रम से पुराने ब्रोशर और पिता जी के ‘स्वगत-कथन’ से जुटाए हैं। हर एक की अपनी कहानी है, वो सारे चेहरे, उन सब के साथ बिताए पल, यात्राएँ और बातें मेरे दिमाग में घुमड़ रही हैं। चाहे तो हर एक पर अलग से बोल सकती हूँ और उनकी यादों, बातों को सहेजे हुए हूँ। कुछ बहुत खिलंदड़, अलमस्त, कुछ बहुत नाजुक-नर्म, संजीदा स्वभाव वाली, कुछ खूब चुस्त-दुरुस्त, आत्मविश्वासी और दृढ़ (वे जानती हैं उन्हें क्या करना है), कुछ अत्यंत संकोची, शर्मीली और डरी हुईं। पर धीरे-धीरे इप्टा में सब ऐसी रच-बस जातीं कि उनके इप्टा में आमद की शक्ल ही बदल जाती।
इन कलाकारों में से कुछ ने लगभग एक दर्जन से अधिक प्रस्तुतियों में केंद्रीय भूमिका निभाई थी और वे आज तक जुड़ी हुई हैं। इप्टा के उपजाऊ बीजों में मैं स्वयं, नीतू दीक्षित, सुनीता धाकड़, विनीता सूद, ततहीर चौहान आदि हैं। कुछ ने आधा दर्जन नाटकों में भागीदारी की पूनम शर्मा, प्रीति जैन, श्रुति जैन, आभा चतुर्वेदी, उषा बनौदा, आनंदी बेन जोशी आदि। कुछ ने संगीत और गायन पक्ष को बेहतर संभाला – डॉ. शशि तिवारी, अलका, भुवनेश, रक्षा, यशोदा आदि। कुछ ने अभिनय के साथ पार्श्व-मंच को भी जिम्मेदारी से संभाला – भावना रघुवंशी, कुमकुम रघवुंशी, नीतू दीक्षित आदि। कुछ ने सिर्फ़ एक या दो प्रस्तुतियों में भाग लिया – जैसे – गुजराती, बंगाली, सिंधी, पंजाबी आदि भाषाओं के नाटकों, नृत्य, गीतों आदि में। अब ये बताना दुष्कर है कि किस महिला कलाकार ने किस नाट्य-प्रस्तुति में भाग लिया। जबकि ये विवरण मौजूद है पर उसे खोजकर पुनः लिखना और भी श्रमसाध्य है।


आगरा इप्टा की प्रशिक्षण कार्यशालाओं में डॉ0 शशि तिवारी, ज्योत्स्ना रघुवंशी, ज्योति खंडेलवाल, सुनीता, भुवनेश, नीतू दीक्षित, यशोदा आदि आज भी सक्रिय रहती हैं। तीन वर्ष पूर्व श्रीमती काजल शर्मा (यू.के.) ने आकर आगरा में कत्थक के बेसिक सिखाने के लिए उपयोगी कार्यशाला, केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा के सभागार में की थी। लगभग 100 छात्र-कलाकारों ने सुरुचिपूर्ण कत्थक के सरल व्यावहारिक रूपों का सफल अभ्यास किया था।

कई महिला कलाकार इप्टा के बाद आकाशवाणी, म्यूज़िक-वीडियो एलबम, दूरदर्शन और फिल्मों में भी गईं, फिल्म स्टूडियो भी बनाये, कुछ बहुत सफल हुईं और कुछ ने शौक पूरा किया।
आगरा इप्टा इन सभी के लिए एक ऐसा स्थान बनी, जहाँ वे न केवल अपनी प्रतिभा को निखार सकीं बल्कि इप्टा के सांस्कृतिक आंदोलन की मजबूत कड़ी के रूप में पहचान बना सकीं।
शुभकामनाएँ आने वाली बच्चियों, महिलाओं के लिए, आइए! अब आप इस सांस्कृतिक आंदोलन का, हिस्सा बनिए। इप्टा का परचम लहराइए और समाज में व्याप्त चुनौतियों का दृढ़ता से मुकाबला कीजिए।