(इस रिपोर्टनुमा लेख में कुल तीन हिस्से हैं। पहली रिपोर्ट ‘यूनिटी’ के नवम्बर 1952 के अंक में प्रकाशित है। दूसरी रिपोर्ट शौक़त क़ैफ़ी की आत्मकथा ‘याद की रहगुज़र’ के आधार पर लिखी गई है तथा तीसरी रिपोर्ट पृथ्वीराज कपूर की जन्म-शताब्दी के अवसर पर मुंबई इप्टा द्वारा आयोजित अंतरमहाविद्यालयीन नाट्य-प्रतियोगिता के 35 वर्ष पूरे होने पर प्रकाशित विशेष स्मारिका से ली गई है।
इप्टा के दस्तावेज़ीकरण के अन्तर्गत रमेशचन्द्र पाटकर की मराठी भाषा में प्रकाशित किताब ‘इप्टा : एक सांस्कृतिक चळवळ’ (आंदोलन) में अनेक ऐतिहासिक महत्त्व के लेख एवं रिपोर्ट्स संकलित हैं। अधिकांश सामग्री के स्रोतों का उल्लेख लेखक ने किया है। इस हिंदी में अनूदित सामग्री को और विस्तृत आयाम देने के लिए कोई भी संस्कृतिकर्मी साथी तथ्यात्मक प्रकाशित/अप्रकाशित सामग्री को भेज सकता है, जिसे संबंधित आलेख में आवश्यकतानुसार जोड़ दिया जाएगा।
सभी फोटो गूगल से साभार।)
एक :
बृहन्मुंबई (मुंबई के सभी उपनगरों का समग्र) के विभिन्न स्थानों पर विभिन्न भाषाओं के, ख़ासकर सोद्देश्य नाटक करने वाली अनेक स्वयंसेवी (अव्यावसायिक) सांस्कृतिक संस्थाएँ गठित की गई हैं। यह बात काफ़ी उम्मीद दिलाने वाली है। अंग्रेज़ी, हिन्दी, गुजराती, मराठी, तमिल, तेलुगू, कन्नड़, कोंकणी, यहाँ तक कि फ़्रेंच भाषा में कोई न कोई प्रस्तुति सप्ताह में एक बार अवश्य होती है। अख़बारों के विज्ञापन इस बात की पुष्टि करते हैं। (वर्तमान में भी मुंबई के अख़बारों में विभिन्न भाषाओं के व्यावसायिक तथा प्रायोगिक नाटकों के विज्ञापन आधे से लेकर एक-डेढ़ पन्नों पर नियमित छपते हैं। 50 से लेकर 1500 तक की आसन-क्षमता वाले नाट्यगृहों तथा स्टूडियो थिएटर्स में ये नाटक कभी एक शो तो कभी दो-तीन शो तक होते हैं और प्रायः प्रत्येक शो हाउसफ़ुल होता है।- अनुवादक) नाट्य-संस्थाओं के लिए नाट्यगृह में तारीख़ हासिल कर बुकिंग करना दिन प्रति दिन कठिन होता जा रहा है। इसके लिए कई महीनों पहले से तैयारी में जुटना पड़ता है।

यहाँ मुंबई की इप्टा के अलावा कुछ प्रगतिशील नाटक खेलने वाली नाट्य-संस्थाओं की जानकारी दी जा रही है :
जुहू आर्ट थिएटर

यह नाट्य-संस्था जुहू और सांताक्रुज़ इलाक़े के स्थानीय निवासियों द्वारा स्थापित की गई है। इसने ‘मुर्दों की बग़ावत’ नामक अत्यंत प्रभावशाली नाट्य-प्रदर्शन किया है। रशियन नाटककार निकोलाई गोगोल के प्रसिद्ध नाटक ‘द गवर्नमेंट इंस्पेक्टर’ या ‘द इंस्पेक्टर जनरल’ के हिन्दी रूपांतरण की रिहर्सल चल रही है। इस नाटक का निर्देशन बलराज साहनी कर रहे हैं। इप्टा के कई सदस्य इस संस्था के सहायक हैं।
हिन्दी थिएटर्स
इप्टा के सदस्यों की मदद से इस नाट्य-संस्था में कृशन चंदर निर्देशित नाटक ‘अमन’ इस महीने में मंचित किया जाने वाला है। इस नाटक का विषय ‘शांति’ पर केंद्रित है। इस नाटक में रंगमंच और फ़िल्मी दुनिया के नामी कलाकार अभिनय कर रहे हैं।
इंडिया आर्ट ग्रुप
इस नाट्य-संस्था द्वारा कन्नड़ नाटक ‘कवि पुंगव’ की रिहर्सल शुरू की है। इप्टा की तेलुगू इकाई इस नाटक का बेहतरीन मंचन पहले कर चुकी है।
रंगभूमि
यह नाट्य-संस्था ‘अल्लाबेली’ नामक नाटक का प्रदर्शन करने वाली है। गुणवंत आचार्य द्वारा लिखित यह नाटक काफ़ी प्रभावशाली है। इप्टा की मुंबई इकाई ने कुछ सालों पहले इस नाटक का शानदार मंचन किया था। मुंबई के रंगमंच पर प्रस्तुत किया गया यह नाटक अभिनय, निर्देशन और समग्र प्रस्तुति के स्तर पर बेहतरीन साबित हुआ था, जिसे बहुत सराहा गया था। मुंबई में इस नाटक के इससे पहले और भी मंचन किए गए हैं।
जीवन के विभिन्न क्षेत्रों और सांस्कृतिक आयामों पर केंद्रित निश्चित उद्देश्य की प्राप्ति के लिए कलाकार और नाट्यप्रेमी अपने कलात्मक गुणों के साथ अपना समय और अपनी शक्ति का सदुपयोग कर रहे हैं। मगर दूसरी ओर शासकों द्वारा उन पर मनोरंजन कर, नगरपालिका कर जैसे अनेक करों को थोपकर उनकी हिम्मत पस्त की जा रही है। सभी नाट्य-संस्थाओं के सामने यह एक जैसी दिक़्क़त दरपेश है कि, नाटक का हरेक मंचन ‘हाउसफ़ुल’ होने के बावजूद निर्माताओं के हाथ में फूटी कौड़ी तक नहीं बच पाती। वस्तुस्थिति यह है कि रंगमंच के प्रति प्रेम और समर्पण होने के बावजूद नाट्य-संस्थाओं को अपने प्रदर्शनों में लगातार घाटा उठाना पड़ता है, जिसकी भरपाई संस्था-संचालकों तथा कुछ नाट्यप्रेमियों को करनी पड़ती है। (आज भी कमोबेश ये हालात नहीं बदले हैं। व्यावसायिक नाटक इसके अपवाद हो सकते हैं।)
हालाँकि मुंबई सरकार ने घोषित किया था कि, अच्छे नाटकों को प्रोत्साहन देने के लिए मनोरंजन कर से प्राप्त राशि में से कुछ रक़म पृथक रखी जाएगी। मगर इससे यह अर्थ ध्वनित होता है कि पुलिस से सेंसर प्रमाणपत्र हासिल किए हुए तथा कॉंग्रेस की राज-सत्ता का प्रचार करने वाले नाटकों के लिए सरकार उपर्युक्त उल्लिखित रक़म पृथक रखेगी। सामाजिक समस्याओं को उठाने वाला कोई भी ‘सोद्देश्य नाटक’ ‘अच्छा नहीं होगा’, यह खुली बात है।
इप्टा मुंबई इकाई का संगीत-जत्था विभिन्न मज़दूर संगठनों के सहयोग से निरंतर गानों के कार्यक्रम कर रहा है। संगीत-जत्थे का हिन्दी समूह पुनर्गठन के बाद मुंबई में घरों की समस्या पर केंद्रित एक हास्य-व्यंग्यात्मक नाटक खेलने वाला है।

काफ़ी समय बाद ‘पृथ्वी थिएटर’ द्वारा अपने प्रदर्शन-दौरे पुनः शुरू किए गए हैं।
मैसूर एसोसिएशन, आंध्र महासभा जैसे अन्य संगठन अपने-अपने सांस्कृतिक समूहों को प्रोत्साहित कर कन्नड़ और तेलुगू नाटकों के प्रदर्शन करने वाले हैं।
शौक़िया नाट्य-संस्थाओं को मनोरंजन कर जैसे करों के कारण होने वाली दिक़्क़तों के अलावा अन्य कई दिक़्क़तों का लगातार सामना करना पड़ रहा है। नाटकों के प्रदर्शन के लिए समुचित नाट्यगृहों का अभाव भी एक प्रमुख अड़चन है। यह बात मुंबई जैसे विकसित शहर के लिए शर्मनाक है कि इस तरह के सांस्कृतिक संगठनों की सहायता करने वाले तथा न्यूनतम किराए पर जगह उपलब्ध करवाने के लिए नगरपालिका के पास एक भी नाट्यगृह नहीं है।
जो उपलब्ध निजी नाट्यगृह हैं, उनमें किसी प्रकार के नेपथ्य या प्रकाश-संचालन की व्यवस्था नहीं है और वे एक मंचन के लिए 400 रुपये किराया लेते हैं। इस अवस्था में समुचित मंच-सज्जा और तमाम तकनीकी सुविधाओं के साथ बेहतर मंचन करने में कोई नाट्य-संस्था सफल नहीं हो सकती; क्योंकि निजी नाट्यगृह अनेक शर्तें भी लादते हैं। हरेक मंचन के लिए 400 रुपये लेने वाले कई नाट्यगृह इस हालत में हैं कि उनके पास एक सामान्य नेपथ्य या सेट तक उपलब्ध नहीं है। अगर नाट्य-संस्थाएँ अपना सेट बनाना चाहती हैं, तो उन्हें दीवालों को छूने या उन पर एक कील ठोंकने की अनुमति मिलना तक मुश्किल होता है।
‘यूनिटी’ ने इस मुद्दे पर सभी स्वयंसेवी सांस्कृतिक संगठनों से अपील की है कि उन्हें जनता की सहानुभूति अर्जित करने के लिए तथा तमाम बाधाओं का सामना करने के लिए एक ‘महासंगठन’ या किसी फेडरेशन की छत्रछाया में एकजुट होकर आगे बढ़ना चाहिए।
अगर ये सांस्कृतिक संगठन एकजुट होते हैं, तभी वे अपना अस्तित्व बचा सकते हैं, वरना उनके बँटे रहने की स्थिति में एकेक कर उनका नामोनिशान मिटता चला जाएगा।
(यह रिपोर्ट ‘यूनिटी’ के नवम्बर 1952 के अंक में प्रकाशित है।)
दो :
प्रसिद्ध अभिनेता पृथ्वीराज कपूर ‘पृथ्वी थिएटर्स’ के कर्ताधर्ता थे। प्रसिद्ध नाट्य-निर्देशक अलेक पदमसी ने ‘थिएटर ग्रुप’ नाम की नाट्य-संस्था स्थापित की थी। यह नाट्य-संस्था प्रायः अंग्रेज़ी नाटक करती थी। इस नाट्य-संस्था द्वारा ‘नौकरानी की क़मीज़’ नामक एकांकी तैयार किया गया था। अमीन सयानी ने इस एकांकी का निर्देशन किया था। अमेरिकी नाटककार टेनिसी विलियम्स के प्रसिद्ध नाटक ‘द ग्लास मैनेजिरी’ (The Glass Menagerie) का हिन्दी रूपांतरण रिअफ़त शमीम ने किया था, जिसका हिन्दी शीर्षक था ‘शीशों के खिलौने’। अंग्रेज़ी नाटक के निर्देशक थे अलेक पदमसी। एक अन्य नाटक ‘All my songs’ का रिअफ़त शमीम ने ही हिन्दी रूपांतर किया था। ‘थिएटर ग्रुप’ इसका मंचन करने वाला था।
सज्जन द्वारा ‘त्रिवेणी रंगमंच’ नामक नाट्य-संस्था गठित की गई थी। इसके अंतर्गत उन्हीं के द्वारा लिखित नाटक ‘पगली’ का मंचन किया गया।

‘पृथ्वी थिएटर्स’ तथा ‘त्रिवेणी रंगमंच’ द्वारा प्रस्तुत नाटकों में शौक़त क़ैफ़ी ने अभिनय किया था।
(शौक़त क़ैफ़ी की आत्मकथा ‘याद की रहगुज़र’ पर आधारित।)
तीन :
पृथ्वीराज कपूर ने नाटक में गहरी दिलचस्पी होने के कारण 1944 में नाट्य-संस्था ‘पृथ्वी थिएटर्स’ की स्थापना की। ‘शकुंतला’ नामक नाटक की प्रस्तुति के माध्यम से इसका काम शुरू हुआ। समूचे देश में घूम-घूमकर दौरा करने वाली हमारे देश की यह पहली नाट्य-संस्था रही है। इससे पहले देश भर में इस प्रकार नाट्य-प्रस्तुतियाँ किसी भी नाट्य-संस्था ने नहीं की थी। भारत के नाट्य-आंदोलन में ‘पृथ्वी थिएटर्स’ मील का पत्थर साबित हुई …

… अनेक बाधाओं का सामना करते हुए और अपने स्वास्थ्य के प्रति बेपरवाह पृथ्वीराज कपूर ने धीरे-धीरे एक नाट्य-आंदोलन छेड़ दिया। वे ख़ुद अपने नाटकों में अभिनय के साथ-साथ निर्देशन भी किया करते थे। ‘दीवार’ (1945), ‘पठान’ (1952), पैसा (1954), ‘किसान’ (1956) जैसे उनके नाटक बहुत लोकप्रिय हुए। ये सभी नाटक सोद्देश्य थे तथा वे सामाजिक जीवन को प्रतिबिंबित करते थे …

… पृथ्वीराज कपूर कुछ वर्षों तक मुंबई इप्टा के अध्यक्ष भी रहे हैं …
(यह जानकारी पृथ्वीराज कपूर की जन्म-शताब्दी के अवसर पर मुंबई इप्टा द्वारा आयोजित अंतरमहाविद्यालयीन नाट्य-प्रतियोगिता के 35 वर्ष पूरे होने पर प्रकाशित विशेष स्मारिका से ली गई है।)