(25 मई 1943 को इप्टा का पहला राष्ट्रीय सम्मेलन मुंबई में संपन्न हुआ था। इप्टा ही सांस्कृतिक आंदोलन से जुड़ा एकमात्र संगठन था, जिसकी शाखाएँ विभिन्न प्रदेशों के विभिन्न शहरों में स्थापित हुईं। 1942-43 से 1959-60 तक इप्टा की सक्रियता का पहला दौर माना जाता है, जो राष्ट्रीय संगठन के स्तर पर कार्यरत था। इसमें भी इप्टा की स्थापना के साथ जो अनेक नामीग़रामी कलाकार जुड़े थे, उनमें से कुछ कलाकार विभिन्न कारणों से 1949-50 में इप्टा से अलग हो गए। फिर भी राष्ट्रीय स्तर पर संगठन की समग्र गतिविधियाँ निरंतर चलती रहीं और 1943 से 1958 तक कुल आठ राष्ट्रीय सम्मेलन विभिन्न स्थानों पर सम्पन्न हुए।
1958 से 1985 तक इप्टा की विभिन्न राज्यों या शहरों में इकाइयाँ अपने-अपने स्तर पर कार्यरत थीं, मगर इन सत्ताईस सालों में कोई राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित नहीं हो पाया। 1985 में राष्ट्रीय स्तर पर दोबारा पुनर्गठन किया गया। 1986 में नववाँ राष्ट्रीय सम्मेलन हैदराबाद में हुआ, जिसके बाद आज तक इप्टा बतौर सांस्कृतिक संगठन राष्ट्रीय स्तर पर निरंतर काम कर रही है।
25 मई 1943 को पहले राष्ट्रीय सम्मेलन के बाद दूसरा राष्ट्रीय सम्मेलन भी मुंबई में 1944 के दिसंबर महीने में पाँच दिनों का आयोजित हुआ। तीसरा राष्ट्रीय सम्मेलन सितंबर 1945 में मुंबई में ही हुआ, जिसमें पहली बार इप्टा का संविधान बनाकर पारित किया गया था। चौथा राष्ट्रीय सम्मेलन 1946 में कलकत्ते में हुआ। दिसंबर 1947 में आज़ादी मिलने के बाद पाँचवाँ राष्ट्रीय सम्मेलन अहमदाबाद में आयोजित किया गया। उसके बाद 04 से 09 फ़रवरी 1949 तक छठवाँ सम्मेलन इलाहाबाद में संपन्न हुआ। चार साल बाद सातवाँ राष्ट्रीय सम्मेलन 06 से 12 अप्रैल 1953 तक मुंबई में और आठवाँ राष्ट्रीय सम्मेलन दिल्ली में आयोजित किया गया। यहाँ प्रस्तुत है इसी आठवें सम्मेलन की रिपोर्ट। इस सम्मेलन के उद्घाटन भाषण पिछली कड़ी में साझा किए गए हैं।
यह रिपोर्ट मराठी में रमेशचन्द्र पाटकर द्वारा लिखित एवं संपादित पुस्तक ‘इप्टा : एक सांस्कृतिक चळवळ’ (इप्टा : एक सांस्कृतिक आंदोलन) में प्रकाशित है, जिसका हिन्दी अनुवाद इप्टा के दस्तावेज़ीकरण अभियान के अंतर्गत किया जा रहा है।
सभी फोटो गूगल से साभार)
इप्टा का आठवाँ राष्ट्रीय सम्मेलन 23 दिसंबर 1957 से 01 जनवरी 1958 तक दिल्ली में आयोजित किया गया था। 1953 में मुंबई में आयोजित हुए सातवें राष्ट्रीय सम्मेलन के चार सालों के बाद यह सम्मेलन हो रहा था। उत्तर प्रदेश इप्टा की राज्य इकाई के सहयोग से दिल्ली इप्टा ने इस राष्ट्रीय सम्मेलन तथा सांस्कृतिक महोत्सव का आयोजन किया था। दिल्ली विश्वविद्यालय के उपकुलपति डॉ. वी. के. राव स्वागत समिति के अध्यक्ष थे। दिल्ली के अन्य प्रतिष्ठित व्यक्ति इस समिति के सदस्य-मण्डल में सम्मिलित थे। तत्कालीन उपराष्ट्रपति डॉ. राधाकृष्णन ने इस सम्मेलन का उद्घाटन किया था तथा तत्कालीन केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री राजकुमारी अमृत कौर ने प्रदर्शनी का उद्घाटन किया था। इस प्रदर्शनी में देश में व्याप्त आंदोलन का अविभाज्य हिस्सा रहे दिल्ली इप्टा का विकास प्रस्तुत करने वाले चित्र-छायाचित्र प्रदर्शित किए गए थे।


प्रतिनिधि सत्र में संपन्न चर्चा के बाद इप्टा का संविधान, घोषणा-पत्र तथा अन्य प्रस्ताव मंज़ूर किए गए।
प्रत्येक दिन शाम छह बजे से आठ बजे तक और आधे घंटे के मध्यांतर के बाद पुनः रात साढ़े आठ बजे से 11.30 बजे तक सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किए जा रहे थे। मध्यांतर के पहले अनेक प्रकार के गीत (समूहगान, किसी गायक/गायिका का एकल गान, लोकगीत, सुगम संगीत, शास्त्रीय संगीत आदि), संगीत-नाटक (Opera), नृत्यनाटिका जैसे कार्यक्रम होते थे और मध्यांतर के बाद भारतीय भाषाओं के महत्त्वपूर्ण नाटकों का मंचन होता था। प्रत्येक दिन होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रम का उद्घाटन विभिन्न प्रसिद्ध और प्रतिष्ठित व्यक्तियों द्वारा किया गया।
आंध्र, असम, बिहार, मुंबई, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, हैदराबाद, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, मणिपुर, ओड़िशा, पंजाब, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल आदि राज्यों और शहरों से लगभग 1000 प्रतिनिधि और कलाकार सम्मेलन में शामिल होने के लिए आए थे।



‘एक पैसे की बाँसुरी’ (बंगाल), संगीत नाटक ‘भगतसिंह’ (पंजाब), छाऊ नृत्य (बिहार), जलारी नृत्य (आंध्र), डाक की थैली लेकर दौड़ने वाले इंसान का नृत्य ‘रनर’ (पश्चिम बंगाल), नागा नृत्य (असम), मणिपुरी नृत्य (मणिपुर) के अलावा हेमंत मुखर्जी, अनिल बिस्वास, देवव्रत बिस्वास, सुचित्रा मित्र तथा असम के गायकों द्वारा प्रस्तुत गीत-गायन जैसे शानदार कार्यक्रम उल्लेखनीय रहे थे। इन कार्यक्रमों के अतिरिक्त अचला सचदेव का काव्य-पाठ (Recitation), जात्रा नाटक ‘राहुमुक्त’ तथा ‘नील दर्पण’ (पश्चिम बंगाल), ‘पीर अली’ नाटक (बिहार), उत्तर प्रदेश का नाटक ‘प्लानिंग’, आंध्र का नाटक ‘भयम’ आदि प्रस्तुत किये गये। शंभु महाराज तथा मद्रास के गुरु गोपीनाथ के नृत्य-दलों के कार्यक्रम, बलराज साहनी का पंजाबी नाटक भी उल्लेखनीय हैं। सम्मेलन की प्रतिनिधि सभा में बलराज साहनी ने भाषण भी दिया।


सोवियत यूनियन और चीन से आए हुए साथी प्रतिनिधि भी सम्मेलन और सांस्कृतिक महोत्सव में उपस्थित थे। उन्होंने भी अपने वक्तव्य दिये।
सम्मेलन और सांस्कृतिक महोत्सव की भारी सफलता से इप्टा के सदस्यों और समर्थकों में उत्साह व्याप्त था। इस सम्मेलन और महोत्सव से इप्टा की आगामी गतिविधियों को बल प्राप्त हुआ।
सम्मेलन में इप्टा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी समिति भी चुनी गई। अध्यक्ष के रूप में सचिन सेनगुप्ता तथा महासचिव निरंजन सेन चुने गए। इप्टा के संविधान के अनुसार सम्मेलन में सर्वसम्मति से देश के चार क्षेत्रों से चार उपाध्यक्ष और चार संयुक्त सचिव और अन्य समिति सदस्य चुने गए।
दिल्ली में आयोजित इस सम्मेलन और महोत्सव ने इप्टा की प्रतिष्ठा में चार चाँद लगा दिए और भारत की आधुनिक संस्कृति के इतिहास में उसे सम्माननीय स्थान प्रदान किया। इप्टा के संविधान में संगठन का नाम, प्रतीक-चिह्न, झंडा, नारा, उद्देश्य और लक्ष्य, सदस्यता, राज्य इकाइयाँ, अखिल भारतीय सम्मेलन तथा विशेष सम्मेलन, राष्ट्रीय कार्यकारिणी, आर्थिक कोष, संबद्ध सदस्य (Associate Members), संविधान में संशोधन आदि के बारे में विस्तृत जानकारी दर्ज़ की गई।
भारत में सुदृढ़ संस्कृति-प्रेम की परंपरा और उसके अत्यंत समृद्ध और नए रूप देखने की इच्छा रखने वाले, भारतीय जनता को ग़रीबी और पिछड़ेपन से मुक्त करने और उसकी प्रगति की चाह रखने वाले, उसके सुख-समृद्धि के लिए संघर्ष करने के लिए चार मुद्दों को घोषणा-पत्र में शामिल किया गया था – कलाओं का स्वतंत्र विकास, कलात्मक अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, कलाकारों और तकनीशियनों के लिए प्रशिक्षण तथा कलाकारों और तकनीशियनों की पूर्ण सुरक्षा।
संगठन का नाम ‘द इंडियन पीपल्स थिएटर एसोसिएशन’ होगा, जिसे संक्षेप में ‘इप्टा’ के नाम से पुकारा जाएगा। झंडे के लिए गाढ़े नीले रंग की पृष्ठभूमि पर चित्तप्रसाद द्वारा बनाया गया सुनहरे रंग में ‘ढोल-वादक’ का चित्र अंकित होगा। संविधान में इस निर्णय का स्पष्ट उल्लेख किया गया कि चित्तप्रसाद द्वारा बनाया गया चित्र इप्टा का प्रतीक-चिह्न होगा।


सम्मेलन के घोषणा-पत्र में दृढ़ संकल्प व्यक्त किया गया कि, अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और रंगमंच की परंपरा का बेहतरीन तरीक़े से गुणात्मक विकास किया जाएगा; उसमें जनता की आशा-आकांक्षाओं का प्रतिबिंब उकेरा जाएगा। जनता का जीवन, उसका संघर्ष, उसके सपने, शांति के प्रति उसका झुकाव, बेहतर जीवनयापन की उसकी इच्छा, सभी प्रकार के अन्यायों से मुक्ति – इन विषयों का चित्रण करने के लिए कला-सृजन किया जाएगा; देश के विभिन्न प्रदेशों की विविध भाषाएँ, संस्कृति, रंगमंच, लोककला और साहित्य को संपूर्ण और समान अवसर प्रदान करने के लिए इप्टा जी-जान से कोशिश करेगी। लोककला तथा आदिवासी कलाओं की उमंग और सामर्थ्य को लोकप्रिय तरीक़े से बरक़रार रखने की कोशिश करते हुए भारतीय रंगमंच का हरसंभव विकास करने का प्रयास किया जाएगा।
यह संगठन कालबाह्य और नुक़सानदेह विचारों का नकारात्मक प्रभाव, युद्धपिपासा, अश्लील कला, साहित्य और सिनेमा का पुरज़ोर विरोध करेगा। प्राचीन श्रेष्ठ महाकाव्यों और नाटकों से प्रेरणा लेकर तथा प्रगतिशील देशों के कला-अनुभवों को सीखते हुए समूची दुनिया के आंदोलनों से इप्टा अपनेआप को जोड़ने का प्रयास करेगा। लेखक, कलाकार तथा तकनीशियनों के जीवन-स्तर को बेहतर बनाने के लिए यह संगठन संघर्ष करता रहेगा। रंगमंच की प्रगति के लिए नाट्य-प्रस्तुति अधिनियम 1876 जैसे क़ानून, सेन्सरशिप क़ानून जैसी जो बाधाएँ दिखाई दे रही हैं, उन्हें दूर करने के लिए आंदोलन सक्रिय रहेगा। होनहार कलाकारों को उनकी कल्पना को रचनात्मक अभिव्यक्ति का अवसर प्रदान करने के लिए नाट्यगृहों का निर्माण, ग्रंथालय का संचालन, शालाओं में नाट्य-प्रशिक्षण दिया जाना तथा शोध-केंद्र शुरू करने जैसी बातों पर भी ध्यान दिया जाएगा। इप्टा सभी रंगकर्मी और कामगारों, संगठनों और लेखकों को साथ लेकर भारतीय रंगमंच का मौलिक विकास करते हुए देश के असल जन-नाट्य की स्थापना करने के लिए संकल्पबद्ध है।
राष्ट्रीय कार्यकारिणी समिति के पदाधिकारी तथा सदस्य के रूप में निम्नलिखित व्यक्तियों को चुना गया :



अध्यक्ष : सचिन सेनगुप्ता (कलकत्ता)
उपाध्यक्ष : विष्णु प्रसाद राव (गोहाटी, असम), राजेंद्र सिंह रघुवंशी (आगरा), बलराज साहनी (मुंबई),
सुब्रमणियम (मद्रास)
महासचिव : निरंजन सेन (कलकत्ता)
संयुक्त सचिव : निर्मल घोष (कलकत्ता), राधेश्याम सिन्हा (पटना), राजा राव (राजामुंद्री, आंध्र), मुहानी
अब्बासी (मुंबई)
कोषाध्यक्ष : सजल रॉय चौधरी (कलकत्ता)
कार्यालयीन सचिव : टीपू दासगुप्ता (इप्टा कार्यालय, कलकत्ता)



सदस्य : बिमल रॉय (मुंबई), बेनी मोहंता (असम), बलदेव शर्मा (मणिपुर), डॉ. ए. के. सेन (पटना),
गोपाल घोष (कलकत्ता), सुजाता डेविस (दिल्ली), तेरा सिंह चन्न (पंजाब), गय्यूर क़ुरैशी (मध्य
प्रदेश), महावीर स्वामी (उत्तर प्रदेश), पी. कलिंगराव (मैसूर), गजानंद वर्मा (राजस्थान), ए. के.
हंगल (मुंबई), जसवंत ठक्कर (बड़ौदा, गुजरात), मुगमा राजमणिक्कम (मद्रास), रामा राव,
दिगिन बनर्जी (कलकत्ता), (महाराष्ट्र और केरल के सदस्यों का समावेश बाद में किया जाएगा)



विशेष आमंत्रित सदस्य : कमलादेवी चट्टोपाध्याय (नई दिल्ली), अहिन्द्र चौधरी (कलकत्ता), सी. सी. मेहता
(मुंबई), रुक्मिणी अरुण्डेल (पटना), डॉ. एस. एम. घोषाल (पटना), ई. अल्क्विज़ी
हसन (मुंबई), वृंदावनलाल (झाँसी), तुलसी लाहिड़ी (कलकत्ता), गुरु गोपीनाथ
(मद्रास), अरुणा आसफ़ अली (नई दिल्ली), प्र. के. अत्रे (मुंबई), विष्णु प्रभाकर
(दिल्ली), हेमांगो बिस्वास (असम)।