(उन्नीसवीं सदी के चौथे, पाँचवें और छठवें दशक में जन-सांस्कृतिक आंदोलन ने अनेक नए-नए आयाम गढ़े तथा समूचे देश में अनेक प्रकार के सामूहिक प्रयत्न हुए, जो भाषा, संस्कृति, क्षेत्र में जाति-धर्म-संप्रदाय से ऊपर उठकर संस्कृतिकर्मियों द्वारा विविध कलाओं के माध्यम से किए गए। इप्टा के दस्तावेज़ीकरण के निरंतर प्रयासों के अन्तर्गत रमेशचन्द्र पाटकर की मराठी में लिखी और संपादित पुस्तक ‘इप्टा : एक सांस्कृतिक चळवळ’ (इप्टा : एक सांस्कृतिक आंदोलन) में संकलित रिपोर्ट्स में से एक ऐसी रिपोर्ट का हिन्दी अनुवाद इस कड़ी में प्रकाशित किया जा रहा है, जिसमें बंगाल इप्टा की कलकत्ता शहर की विभिन्न इकाइयों द्वारा 1952 के दौरान प्रस्तुत किए जाने वाले नाटकों, नृत्य-नाटिकाओं और गीतों के विवरण दर्ज किए गए हैं। यह रिपोर्ट इप्टा के मुखपत्र ‘यूनिटी’ के जुलाई 1952 के अंक में प्रकाशित है।
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जूलियस फ़ुचिक (Julius Fuchik) के ‘Notes from the Gallows’ (फाँसी के तख्ते से कुछ टिप्पणियाँ) नामक प्रसिद्ध पुस्तक का बांग्ला नाट्य-रूपांतरण कलकत्ता के केंद्रीय जत्थे द्वारा मंचित किया गया था। यह प्रस्तुति उमानाथ भट्टाचार्य द्वारा की गई थी। वर्तमान (जुलाई 1952) में वे ‘अग्नि’ नाटक की रिहर्सल कर रहे हैं। वर्तमान खाद्यान्न-समस्या पर केंद्रित नाटक ‘अन्न’ नामक पोस्टर नाटक (Poster Drama) के प्रदर्शन विभिन्न स्थानों पर किए गए हैं।

इसी वर्ष में निर्वासितों की समस्या पर ऋत्विक घटक द्वारा लिखित नाटक ‘दलील’ (Documents) के मंचन दक्षिण कलकत्ता में इप्टा के नाट्य-दल ने किए। इसी नाट्य-दल ने ‘अबद’ (Abad) नामक नाटक के प्रदर्शन भी किए। यह नाटक गोविंद चक्रवर्ती ने लिखा था। नाटक की कहानी बंगाल-विभाजन के बाद पैदा हुई किसानों की समस्याओं और जातीय दंगों पर आधारित है। बीरू मुखर्जी द्वारा लिखा गया ‘नाटक नाह’ (नाटक नहीं) का प्रदर्शन भी इस नाट्य-दल ने किया। इसकी कथा शहरी मध्यवर्गीय समाज की समस्याओं पर केंद्रित थी।

नोनी मजूमदार ने मध्यवर्गीय समाज में व्याप्त बेरोज़गारी की समस्या पर ‘नागपाश’ नाटक लिखा, जिसका इप्टा के उत्तरी कलकत्ता नाट्य-दल ने मंचन किया। इसके अलावा अभी अन्य तीन नाटकों की रिहर्सल चल रही है। इनमें से एक नाटक निर्मल घोष ने और दूसरा नाटक ज्योति रॉय ने लिखा है। निर्मल घोष द्वारा लिखित ‘आरती’ मैक्सिम गोर्की के नाटक ‘एनिमीज़’ (शत्रु) का बांग्ला रूपांतरण है। रॉय द्वारा लिखित नाटक ‘मुक्ति-युद्ध’ (Liberation War) में मलेशिया की जनता का संघर्ष और साम्राज्यवादियों के बीच की अनबन का वर्णन किया गया है। ज्योति रॉय के अन्य नाटक का नाम है ‘अगुनेर फूल’ (अग्निफूल), जिसमें 1930 के काल की क्रांतिकारी चेतना का चित्रण मिलता है। देश के लिए जान न्यौछावर करने वाले क्रांतिकारियों की देश-भक्ति की कथा इसमें प्रस्तुत की गई है।

अकाल तथा जनता की वर्तमान सामाजिक परिस्थितियों को व्यक्त करने वाले गीतों को इप्टा के उत्तर कलकत्ता तथा सेंट्रल स्क्वाड के सदस्यों द्वारा संगीतबद्ध कर गाया जा रहा है। इसी तरह उत्तर कलकत्ता में एक बैले ग्रुप का गठन किया गया है, जो परेश धर द्वारा लिखित और समर चटर्जी के मार्गदर्शन में दो नृत्य-नाटिकाएँ तैयार कर रहा है। इप्टा के अखिल भारतीय सम्मेलन तथा सांस्कृतिक उत्सव के लिए केंद्रीय जत्थे द्वारा ‘द एटम एंड मैन’ नाम की नृत्य-नाटिका तैयार की गई है। साथ ही अकाल पर आधारित एक अन्य नृत्य-नाटिका ‘शपथ’ का अभ्यास चल रहा है। शंभु भट्टाचार्य तथा शक्ति नाग इस नृत्य-नाटिका का निर्देशन कर रहे हैं और केस्टो बोस व सलिल रॉय इसके संगीत-निर्देशक हैं। ‘अहल्या’ शीर्षक की नृत्य-नाटिका आज भी बहुत लोकप्रिय है, जिसके लगातार प्रदर्शन हो रहे हैं। इसकी कथा एक गर्भवती किसान स्त्री ‘अहल्या’ के किसान आंदोलन में पुलिस द्वारा मारे जाने की घटना के इर्दगिर्द बुनी गई है। अन्य दो नाटक ‘रनर’ तथा ‘स्वोर्ड’ भी तैयार किए जा रहे हैं।

बज बज (कोलकाता का एक उपनगर) इप्टा की स्थानीय इकाई के सचिव हरन चंद्र दलुई ने एक पूर्णकालिक नाटक लिखा है, जो जूट और पेट्रोलियम मज़दूरों के आंदोलन से प्रेरित है। ‘द स्टैण्डर्ड वैक्यूम ऑइल कं.’ के श्रमिकों के वास्तविक संघर्ष पर यह नाटक आधारित है।
पिछले पाँच महीनों में शहर और आसपास के उपनगरों के लगभग दो लाख दर्शकों के सामने कलकत्ता इप्टा ने विभिन्न नाटकों के 84 प्रदर्शन किए हैं। इप्टा के अंग्रेज़ी और हिन्दीभाषी नाट्य-दल भी पुनर्गठित किए जा रहे हैं।