(इप्टा का आठवाँ राष्ट्रीय सम्मेलन 23 दिसंबर 1957 से 01 जनवरी 1958 तक दस दिनों तक नई दिल्ली में आयोजित हुआ था। इप्टा के दस्तावेज़ीकरण के अन्तर्गत रमेशचन्द्र पाटकर द्वारा मराठी में लिखित-संपादित किताब ‘इप्टा : एक सांस्कृतिक चळवळ’ (इप्टा : एक सांस्कृतिक आंदोलन) में ऐतिहासिक महत्त्व के लेखों के साथ अनेक प्रकार के सम्मेलनों की रिपोर्ट संकलित की गई है। मूल अंग्रेज़ी और अन्य भारतीय भाषाओं से मराठी में अनूदित इस सामग्री को हिन्दी में अनूदित कर यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है, ताकि एक स्थान पर इप्टा से संबंधित कुछ जानकारी डिजिटल स्वरूप में उपलब्ध हो सके। इप्टा के आठवें राष्ट्रीय सम्मेलन में तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राधाकृष्णन तथा राजकुमारी अमृत कौर के भाषणों का सार-संक्षेप तथा तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद का शुभकामना संदेश मराठी में अनूदित इस रिपोर्ट में संकलित है।
फोटो गूगल से साभार)

इप्टा के दस दिनी आठवें राष्ट्रीय सम्मेलन के उद्घाटन भाषण में तत्कालीन उपराष्ट्रपति डॉ. राधाकृष्णन ने उपस्थित कलाकारों को सुझाव दिया था कि उन्हें राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मित्रता स्थापित करने के उद्देश्य के तहत काम करना चाहिए। सम्मेलन और कला-महोत्सव में सम्मिलित हुए लगभग 1000 कलाकारों और कलाप्रेमियों को उन्होंने याद दिलाया कि भारत को सिर्फ़ बाहरी शक्तियों के बखेड़ों के कारण ही नहीं, बल्कि अपने दोषों के कारण भी काफ़ी कुछ भुगतना पड़ा है। भारत में पहले इतनी अवरुद्ध करने वाली कल्पनाएँ और अंधश्रद्धा व्याप्त नहीं थी, जो भारतीय मन को इस कदर प्रभावित कर सकें। मगर अब फिर एक बार संकुचित प्रवृत्तियों को त्यागकर और देश की समूची जनता को एकजुट करने का समय आ गया है।
उपराष्ट्रपति ने अपने भाषण में आगे कहा कि, भारत में आई हुई अमेरिका की कृष्णवर्णीय गायिका मैरियन एंडरसन (Marian Anderson), रोमानिया और हंगरी के गायकों ने दिल्ली के श्रोताओं पर गहरा असर पैदा किया है। कला सिर्फ़ राष्ट्रीय एकता स्थापित करने का औज़ार भर नहीं है, बल्कि उससे बढ़कर काम करती है। उन कलाकारों ने इस बात का अहसास करवाया कि कला का असर राष्ट्रीय सीमाओं को लाँघकर समूची दुनिया के लोगों पर एक समान होता है। डॉ. राधाकृष्णन ने इस बात पर ज़ोर देते हुए कहा कि श्रेष्ठ कला का उद्देश्य मनुष्य का अन्य मनुष्यों तथा प्रकृति के साथ-साथ परम शक्ति (Supreme) के साथ समन्वय स्थापित करना होता है। श्रेष्ठ कलाकार दर्शकों में सिर्फ़ गुदगुदाहट पैदा नहीं करते, बल्कि मानव-हृदय की गहराइयों को स्पर्श करते हैं। अगर हमारी चेतना के विकास में करुणा का कोई स्थान न हो तो मनुष्य न तो शारीरिक दृष्टि से सुदृढ़ और न ही बौद्धिक क्षमता के बलबूते परिपूर्ण बन पाता है।


नई दिल्ली में आयोजित इप्टा के आठवें राष्ट्रीय सम्मेलन में तत्कालीन केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री राजकुमारी अमृत कौर भी आई थीं। उन्होंने कहा, मुझे आश्चर्य होता है उन विचारों पर, जो मानते हैं कि दुनिया की जनता बहुत बड़ी मात्रा में विध्वंसकारी शस्त्रास्त्रों पर निर्भर है। इतिहास के प्रवाह में उलटफेर करके अपने इन विचारों और कामों से भविष्य में मानव-जाति में करुणा पैदा होगी, यह सोचना निरर्थक है। वर्तमान संकट आत्मिक है, बौद्धिक नहीं। दुनिया ज्ञान के अभाव के कारण नहीं, बल्कि विवेक और नम्रता के अभाव के कारण यातना से गुज़र रही है। राजनेताओं में अगर थोड़ी भी मनुष्यता और अनुकंपा की भावना होगी तो यही दुनिया काफ़ी अलग आकार ले सकेगी। देश की जनता में एकजुटता स्थापित करने का काम कला को ही करना होगा। उन्होंने अपने भाषण में शांति और एकता स्थापित करने के लिए उचित प्रचार-प्रसार करने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया।

नई दिल्ली के रामलीला मैदान में आयोजित इप्टा के आठवें राष्ट्रीय सम्मेलन में ‘अनंत काल से रंगमंच की अग्रगामिता’ विषय पर केंद्रित कला-प्रदर्शनी का उद्घाटन करते हुए राजकुमारी अमृत कौर ने इप्टा की सराहना करते हुए कहा कि आज़ादी के बाद देश की समृद्ध विरासत की पुनर्स्थापना करने में इप्टा की अग्रगामी भूमिका रही है।

सम्मेलन के लिए तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद द्वारा प्रेषित संदेश
“जनता के सामाजिक विकास और सांस्कृतिक जन-जागरण में रंगमंच का महत्त्वपूर्ण स्थान होता है। इस परिप्रेक्ष्य में इप्टा का क्रमशः सक्षम होते जाना उचित ही है। इप्टा के आठवें राष्ट्रीय सम्मेलन के लिए विभिन्न राज्यों से बड़ी संख्या में आए हुए प्रतिनिधियों और कलाकारों को मैं अपनी शुभकामना प्रेषित करता हूँ।”