(इप्टा के दस्तावेज़ीकरण के अन्तर्गत रमेशचन्द्र पाटकर द्वारा मराठी भाषा में लिखी और संपादित की गई किताब ‘इप्टा : एक सांस्कृतिक चळवळ’ (इप्टा : एक सांस्कृतिक आंदोलन) की सामग्री का हिन्दी अनुवाद यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है। चार हिस्सों में बँटी हुई इस किताब के तीसरे हिस्से में प्रगतिशील सांस्कृतिक आंदोलन संबंधी अनेक रिपोर्ट्स शामिल की गई हैं।
हालाँकि 25 मई 1943 को इप्टा के राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित स्थापना सम्मेलन की रिपोर्ट अनेक स्थानों पर प्रकाशित हो चुकी है। यहाँ सम्मेलन के कुछ प्रमुख बिंदुओं को रेखांकित किया गया है। यह लेख संभवतः सुधि प्रधान द्वारा अंग्रेज़ी में लिखित एवं संपादित किताब में दर्ज़ रिपोर्ट पर आधारित है। स्थापना सम्मेलन में प्रो हीरेन मुखर्जी द्वारा दिया गया उद्घाटन भाषण को https://sahayatri.in/wp-admin/post.php?post=8991&action=edit लिंक पर पढ़ा जा सकता है। इस लेख में 25 मई 1943 को रात्रिकालीन सांस्कृतिक कार्यक्रम की रिपोर्ट सम्मिलित नहीं है। उस विवरण को विभिन्न किताबों से संग्रहित कर पृथक लेख के रूप में प्रस्तुत किया जाएगा।)

मुंबई के मारवाड़ी विद्यालय के सभागार में 25 मई 1943 को पहले सुबह साढ़े आठ बजे और बाद में रात साढ़े आठ बजे परेल के दामोदर सभागार में इप्टा का अखिल भारतीय सम्मेलन आयोजित हुआ। सुबह के सत्र में अच्छी-ख़ासी उपस्थिति थी। जन-नाट्य में रुचि रखने वाले सभी प्रतिनिधि दो दिन पहले इस पर चर्चा करने के लिए इकट्ठा हुए। संगठन की समस्याएँ, जन-नाट्य आंदोलन के लिए किस दृष्टिकोण के किस तरह के नाटक लिखे जाने चाहिए, आंदोलन में अधिक से अधिक मज़दूर-किसानों को जोड़े जाने की ज़रूरत जैसे मुद्दों पर इस अनौपचारिक बैठक में चर्चा की गई। इस अनौपचारिक बैठक में सम्मेलन में पारित करने के लिए प्रस्ताव और राज्य स्तर पर सांगठनिक समितियों की स्थापना जैसे महत्त्वपूर्ण कार्यक्रमों पर औपचारिक चर्चा का आधार तैयार किया गया। प्रो. हीरेन मुखर्जी को इस बैठक में अध्यक्ष के रूप में चुना गया। इसमें राज्यों की रिपोर्ट्स निम्नानुसार प्रस्तुत की गईं :
मुंबई की रिपोर्ट अनिल डिसिल्वा ने पढ़ी।
बंगाल की रिपोर्ट स्नेहांशु आचार्य ने पढ़ी।
पंजाब की रिपोर्ट एरिक साइप्रियन ने पढ़ी।
आंध्र की रिपोर्ट डॉ. गोपालन द्वारा पढ़ी गई।
उत्तर प्रदेश की रिपोर्ट बेगम रशीद जहाँ ने पढ़ी।
अनिल डिसिल्वा द्वारा मुख्य प्रस्ताव रखा गया, जो इस प्रकार है :
स्वतंत्रता, सांस्कृतिक प्रगति और आर्थिक न्याय के लिए जनता को अभिव्यक्त और संगठित करने के लिए, रंगमंच और पारंपरिक कलाओं में पुनः जोश पैदा करने के साधन के रूप में संपूर्ण भारत में जन-नाट्य आंदोलन संगठित करने की फ़ौरी ज़रूरत है। अखिल भारतीय जन-नाट्य संघ (इप्टा) द्वारा आयोजित यह सम्मेलन इस बात को केंद्र में रखता है।
स्वतंत्रता और संस्कृति का सबसे ख़तरनाक दुश्मन बाह्य फ़ासीवादी शक्तियाँ हैं। अपनी हुकूमत तले हमारी जनता को कुचलने वाली, अपनी मातृभूमि की रक्षा करने में रुकावट पैदा करने वाली विदेशी सरकार देश में दमनकारी नीति अपना रही है। हमारी जनता के सामने फ़ौरी समस्याएँ हैं – जनता के आर्थिक जीवन में तेज़ी से होने वाली गिरावट, ख़ासकर अनाज और अन्य जीवनावश्यक वस्तुओं की कमी के कारण हमारी जनता की नैतिकता और स्वास्थ्य में आने वाली गिरावट के मद्देनज़र साम्राज्यवादियों को परास्त करना, देश की आर्थिक व्यवस्था की अवनति को रोकना और विदेशी शक्तियों को पराजित करना। मगर हमारी जनता में एकता की कमी है।
जनता का अधिकार तथा अपने अधिकारों के प्रति उसे जागृत करना, जनता को त्रस्त करने वाली समस्याओं के स्वरूप से उसे अवगत कराना, उनसे बाहर निकलने के उपाय तलाशने जैसे अनेक महत्त्वपूर्ण मानवीय मुद्दों को रंगमंच तथा अन्य पारंपरिक कलाओं के माध्यम से, विभिन्न प्रकार और अविस्मरणीय पद्धति से चित्रित करने का काम आज भारतीय जन-नाट्य आंदोलन ने अपने कंधों पर ले लिया है। यह आंदोलन दुनिया भर की प्रगतिशील ताक़तों के साथ कंधा से कंधा मिलाकर, साहस और दृढ़ निश्चय के साथ निर्धारित शक्तियों के ख़िलाफ़ संघर्ष के लिए जनता में उत्साह और एकता निर्मित करने का काम करेगा। इस संकट की घड़ी में जनता में दृढ़ विचार और भावना को बनाए रखकर, अपनी एकजुटता के बलबूते पर वह विजयी होगी, इस बात का विश्वास उसमें पैदा करने का काम भी इस आंदोलन के माध्यम से किया जाएगा।
इस उद्देश्य की पूर्त्ति के लिए अपने गीत, पोवाडे, नाटक आदि के विषयों का समुचित चुनाव करना सिर्फ़ आवश्यक ही नहीं, बल्कि उसे जनता के लिए सहज ग्राह्य बनाना भी आवश्यक है। साथ ही इन कलाओं के सृजन और प्रस्तुति में भी जनता सहभागी हो सके, इसलिए उनका सीधा-सरल होना ज़रूरी है। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए लोककला, समूह-गान और खुले रंगमंचीय प्रयोगों को पुनर्जीवित करना होगा।
वर्तमान तनावपूर्ण परिस्थिति में, ख़ासकर विद्रोही किसान-मज़दूर वर्ग में – गीत-संगीत, नृत्य का आंदोलन विकसित हो रहा है। आक्रामक फ़ासीवादियों के, जमाख़ोरों के ख़िलाफ़ तथा राष्ट्रीय नेताओं की मुक्ति के लिए और राष्ट्रीय सरकार की स्थापना हेतु जनता को क्रियाशील करने के लिए प्रेरित किया जा रहा है। इन बातों ने हमें बहुत उत्साहित किया है। स्वतःस्फूर्त रूप से शुरू हुए इस आंदोलन को अखिल भारतीय नाट्य-आंदोलन के रूप में संगठित करना तथा उसके बीच तालमेल स्थापित करना आवश्यक है।
यह प्रस्ताव स्नेहांशु आचार्य ने प्रस्तुत किया तथा इस पर विस्तार से प्रकाश डाला। सम्मेलन के पटल पर यह प्रस्ताव एकमत से स्वीकृत किया गया।
इसके बाद टी. गोदीवाला ने यह प्रस्ताव रखा कि अखिल भारतीय समिति और विभिन्न राज्य स्तरीय समितियों के लिए पदाधिकारियों की नियुक्ति की जाए। इस प्रस्ताव का समर्थन अली सरदार जाफ़री ने किया। सम्मेलन ने निम्नलिखित समितियाँ घोषित कीं।
अखिल भारतीय समिति
अध्यक्ष
एन. एम. जोशी
(ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कॉंग्रेस के महासचिव)
महासचिव : अनिल डिसिल्वा
संयुक्त सचिव : विनय रॉय (बंगाल), के. टी. चाँदी (मुंबई)
कोषाध्यक्ष : के. ए. अब्बास
कार्यकारिणी सदस्य :
मुंबई : मामा वरेरकर
बंगाल : स्नेहांशु आचार्य, मनोरंजन भट्टाचार्य
पंजाब : एरिक साइप्रियन
दिल्ली : सरला गुप्ता
उत्तर प्रदेश : डॉ. रशीद जहाँ
मलबार : के. पी. जी. नंबूद्री
मैसूर : केसरी केशवन
मंगलोर : के. शिवा राव
हैदराबाद : मख़्दूम मोहिउद्दीन
आंध्र : डॉ. राजा राव
सीपी और बरार : एस. सी. जोग
तमिलनाडु : के. रामनाथन
अन्य संगठनों के प्रतिनिधि :
बंकिम मुखर्जी (अध्यक्ष, अखिल भारतीय किसान सभा)
एस. ए. डांगे (अध्यक्ष, ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कॉंग्रेस)
सज्जाद ज़हीर (महासचिव, ऑल इंडिया प्रोग्रेसिव राइटर्स एसोसिएशन)
अरुण बोस (ऑल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन)
सांगठनिक राज्य समिति
बंगाल :
सुनील चटर्जी
दिलीप रॉय
शंभु मित्र
बिजन भट्टाचार्य
सुजाता मुखर्जी
मनोरंजन भट्टाचार्य
विष्णु डे
विनय रॉय
पंजाब :
एरिक साइप्रियन
एन. बजुद्दीन
शीला भाटिया
दिल्ली :
सरला गुप्ता
उत्तर प्रदेश :
डॉ. रशीद जहाँ
राजेंद्र सिंह
मलबार :
के. पी. जी. नंबूद्री
अच्युत कुरूप
कर्नाटक :
केसरी केशवन (मैसूर)
के. शिव राव (कर्नाटक)
एस. सी. जोग
आंध्र :
कृष्ण मूर्ति
डॉ. राजा राव
बी. सी. पिचैया
तमिलनाडु :
के. रामनाथन
वरिष्ठ मराठी नाटककार मामा वरेरकर को सम्मेलन में वक्तव्य देने के लिए आमंत्रित किया गया। उन्होंने तत्कालीन मराठी रंगमंच के बारे में संक्षिप्त जानकारी प्रदान की। साथ ही यह भी बताया कि नाट्यगृह के निर्माण के लिए वे क्या-क्या कोशिश कर रहे हैं! मुंबई महानगरपालिका द्वारा नाट्यगृहों के निर्माण के लिए प्रस्ताव पारित किया जा चुका है, परंतु अब तक कोई सकारात्मक कदम नहीं उठाए गए हैं।
परेल स्थित दामोदर सभागार में रात्रिकालीन सत्र शुरू होने तक सम्मेलन का कामकाज स्थगित किया गया।
बहुत बढ़िया एवं उपयोगी जानकारी