(इप्टा के दस्तावेज़ीकरण के अन्तर्गत रमेशचन्द्र पाटकर द्वारा लिखित-संपादित किताब ‘इप्टा : एक सांस्कृतिक चळवळ’ (इप्टा : एक सांस्कृतिक आंदोलन) में संकलित लेखों और रिपोर्ट्स का हिन्दी अनुवाद यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है। अधिकांश लेख बीसवीं सदी के पाँचवें-छठवें दशक में लिखे और प्रकाशित हुए हैं। इस बार जसवंत ठक्कर के एक लेख का अनुवाद प्रस्तुत है, जो गुजरात की एक नाट्य-संस्था के बहाने इप्टा के उद्देश्यों और मूल्यों पर प्रकाश डाल रहा है। इप्टा और अन्य नाट्य-संस्थाओं में अंतर स्पष्ट करना भी इस लेख का उद्देश्य प्रतीत होता है।
जसवंत ठक्कर इप्टा के शुरुआती दौर से ही जुड़े हुए थे। उन्होंने 1949-50 में गुजरात में इप्टा की इकाई स्थापित की थी। वे गुजराती रंगमंच के एक प्रसिद्ध अभिनेता, नाटककार और निर्देशक थे।
फोटो गूगल से साभार)
इप्टा न तो व्यावसायिक और न ही शौक़िया नाट्य-संस्था है। महाराष्ट्र और गुजरात की जनता की सांस्कृतिक प्यास बुझाना और प्रतिभाशाली कलाकारों को प्रोत्साहन देना उसका उद्देश्य है। इप्टा बाज़ारू और पतनशील नाट्य-व्यवसाय के स्थान पर प्रगतिशील और यथार्थवादी मूल्यों पर ज़ोर देने वाले रंगमंच की स्थापना करने की कोशिश कर रही है; जी-जान से लगी हुई है।

इसके लिए धैर्यपूर्वक काम किए जाने की आवश्यकता है। किसी जादू की छड़ी का दावा करने या उससे अपनी तुलना करने वाली जो नाटक कंपनियाँ हज़ारों रुपये के टिकट बेचती हैं, वे इप्टा के काम में सम्मिलित नहीं हो सकतीं; या यूँ कहें तो उन्हें इस तरह की छूट भी नहीं दी जा सकती। अन्य क्रांतिकारी कामों की तरह इस आंदोलन में भी उत्साही और प्रतिबद्ध कार्यकर्ता हैं। यह आंदोलन युवाओं, वृद्ध स्त्री-पुरुषों को यथार्थवादी सृजन के पथ पर अग्रसर करता है। प्रेरित करने वाली अपनी प्रस्तुतियों के माध्यम से यह आंदोलन सफलता की संभावना व्यक्त करता है, साथ ही आंदोलन को अपनी रोज़मर्रा की ज़िंदगी का एक हिस्सा बनाने की कोशिश भी करता है। … इस आंदोलन की स्पष्ट समझ है कि अपने नाटकों में उसे क्या दिखाना है। हालाँकि नाटक में क्या और किस तरह दिखाया जाना है, यह प्रयोग और विकास पर निर्भर करता है। नाटक का कथ्य जहाँ भी लोगों के जीवन और उसकी समस्याओं से संबद्ध होता है, वहाँ कथ्य और रूप का विरोध समाप्त हो जाता है। नाटकीयता और रंगमंच के तत्वों की एकता जन-नाट्य में आसानी से स्थापित हो सकती है और होती भी है …
कुछ जगहों पर स्थानीय नाट्य-मंडली के लोग यह कार्य करने के लिए ख़ुद आगे आ सकते हैं और स्थानीय नाट्य-आंदोलन को अपने पाँवों पर खड़े होने का रास्ता खोज सकते हैं। तो कुछ जगहों पर स्थानीय नाट्य-मंडलियों में पूरा बदलाव हो जाएगा। इसी तरह कुछ जगहों पर एकदम नए उदयोन्मुख कलाकार मिलकर रंगमंच की नई-पुरानी प्रवृत्तियों को समझते हुए ‘नाट्य-आंदोलन’ शुरू करने के लिए पुराने, मँजे हुए कलाकारों के साथ चर्चा करते हुए भी नज़र आने लगे हैं। जहाँ इस तरह की नई नाट्य-मंडलियाँ शुरू करने की संभावना नहीं है, वहाँ संगीत-पथक तैयार किए जा सकते हैं। गाने वाले चार-पाँच कलाकार अपने गीत लेकर लोगों के पास जाएँगे। स्थानीय जन-संगठनों के माध्यम से अपनी गायन-कला जनता के सामने प्रस्तुत करेंगे और बताएँगे कि विकास के रास्ते पर कैसे अग्रसर हुआ जाए …
इप्टा सिर्फ़ नाटक-मंडली ही नहीं है, बल्कि नाट्य-कला का विकास करने के लिए प्रतिबद्ध एक संगठन भी है। कोई बड़ा नाटक, बहुत बड़ा रंगमंच, बड़ा प्रेक्षागृह और लाभ-हानि पर ध्यान रखते हुए टिकट-बिक्री जैसी बातें इस नवागत आंदोलन के लिए नुक़सानदेह हैं। कलाकारों में व्यक्तिगत बौद्धिक मतभेद होने के बावजूद जनता की सेवा करने का उनका जज़्बा इप्टा के कार्यों को उचित निष्कर्षों तक पहुँचाएगा। कलाकारों को भी इस नाट्य-आंदोलन को गंभीरता के साथ आगे बढ़ाना चाहिए …

बंगाल में महज़ एक संगीत-पथक से शुरू हुई इप्टा की देश में आज सैकड़ों इकाइयाँ हैं, जो नाटकों के प्रदर्शन भी करती हैं। नाटक-मंडली, भवाई-मंडली, भजन-गायक और विभिन्न समुदायों के इस तरह के कलाकारों को जन-आंदोलन के लिए एकजुट किया जाना चाहिए। उनके सांस्कृतिक कार्य को आंदोलन के साथ जोड़ा जाना चाहिए।
मज़दूर और किसान आंदोलन, प्रगतिशील राजनीतिक और राष्ट्रीय आंदोलन जैसे जीवंत आंदोलनों द्वारा लोक-कलाकारों को इस सांस्कृतिक आंदोलन में सम्मिलित करना उनका कर्तव्य है …
क्या इप्टा एक व्यावसायिक या शौक़िया नाट्य-संस्था है? यह सवाल कई बार किया जाता है। अहमदाबाद में जब से ‘नटमंडल’ नाम की अर्धव्यावसायिक नाट्य-संस्था स्थापित हुई है, तब से यह सवाल ज़्यादा महत्त्वपूर्ण हो उठा है। ‘नटमंडल’ का नाट्य-विषयक आधार क्या है? इस पर चर्चा करना हमारा उद्देश्य नहीं है। प्रत्येक नाट्य या सांस्कृतिक संगठन की तरह इस नाट्य-संस्था के विकास के प्रति भी हम आश्वस्त हैं। लेकिन जो चमकता है वह सब सोना नहीं होता। इप्टा का ध्येय और उसके कार्य की व्याप्ति का, किसी भी व्यावसायिक नाटक-मंडली या अन्य नाट्य-मंडली से मूलभूत अंतर है। इसलिए पैसा कमाना या ‘बॉक्स ऑफिस’ पर भीड़ इकट्ठा होने जैसी कसौटी पर इप्टा के आंदोलन को नहीं कसा जा सकता, उसका मूल्यांकन नहीं किया जा सकता।
‘शौक़िया’ जैसा लेबल लगाने पर भी इस अंतर को हटाया नहीं जा सकता। इप्टा नए क्रांतिकारी रंगमंच के निर्माण हेतु मार्गदर्शन करने वाला एक नाट्य-आंदोलन है। जनता के जीवन में होने वाली क्रांति ही इस आंदोलन की सफलता-असफलता का जवाब प्रस्तुत करेगी। जनता की लड़ाई के लिए संघर्षरत अन्य संगठनों के साथ आगे बढ़ते हुए इप्टा को अपने कलात्मक सृजन द्वारा जनता में नई सांस्कृतिक अभिरुचि का निर्माण करना होगा। यथार्थ के प्रति ईमान बरतते हुए, सत्यनिष्ठ रहते हुए इप्टा को कला-निर्मिति करनी होगी।