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गुजरात में कीम के हज़ारों बच्चों के बीच प्रेम का इज़हार

गुजरात में कीम के हज़ारों बच्चों के बीच प्रेम का इज़हार

(‘ढाई आखर प्रेम’ राष्ट्रीय सांस्कृतिक यात्रा, जिसका आयोजन 28 सितम्बर 2023 से देश के अनेक सांस्कृतिक संगठनों ने मिलकर किया था, 30 जनवरी 2024 को दिल्ली में समाप्त हुई।यह यात्रा राजस्थान, बिहार, पंजाब, उत्तराखंड, ओडिशा, जम्मू, उत्तर प्रदेश, झारखण्ड, कर्णाटक, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल के बाद गुजरात राज्य में 03 से 06 जनवरी 2024 तक आयोजित की गयी थी। गुजरात महात्मा गाँधी का पैतृक प्रदेश रहा है। उनके नमक सत्याग्रह का साक्षी रहा है। अतः गुजरात में यात्रा का रुट साबरमती से दांडी तक बनाया गया था। प्रगतिशील लेखक संघ और किम एजुकेशन सोसाइटी का दूसरे दिन के आयोजन में योगदान रहा।

गुजरात यात्रा में मध्य प्रदेश से विनीत तिवारी, छत्तीसगढ़ से निसार अली तथा बिहार से पीयूष, संजय, फ़िरोज और राजन सम्मिलित हुए थे। इसी तरह मुंबई के युवा गायक फ़राज़ खान, तबला वादक रौशन गाइकर और बाँसुरी वादक उत्कर्ष भी शामिल हुए थे। इस चार दिवसीय यात्रा की एक संस्मरणात्मक, रोचक और विस्तृत रिपोर्ट साथी विनीत तिवारी द्वारा बनायी गयी है। साथ ही फोटो एवं वीडियो विनीत, देव देसाई, निसार अली द्वारा यात्रा के दौरान भेजे गए हैं। प्रस्तुत है गुजरात यात्रा रिपोर्ट की दूसरी कड़ी।) 

 किम की यात्रा और बेशक़ीमती उत्तम-अनुभव

04 जनवरी 2024 को सुबह 6:00 बजे ट्रेन थी किम के लिए। हम लोग अलग-अलग ठिकानों से स्टेशन पर पहुँचे और देखा कि सबसे वरिष्ठ साथी कॉमरेड रामसागर सिंह परिहार सबसे पहले से वहाँ मौजूद हैं। ट्रेन में ही हमें जानकारी मिली कि सुरेंद्रनगर और भरूच के इलाक़े की मूँगफली स्वाद में सबसे अच्छी होती है। दो-ढाई घंटे के रास्ते में हम लोगों ने सौ-एक रुपये की मूँगफली खा लीं।  

किम हम लोग करीब 11-11:30 बजे पहुँचे होंगे। एक छोटा-सा स्टेशन था। हमें बहुत सम्मान के साथ स्टेशन पर किम के लोगों ने लिया और हमें लेकर किम एजुकेशनल सोसाइटी के भवन में पहुँचे। वह एक स्कूल का काफ़ी बड़ा प्रांगण था। वहाँ हमारी मुलाक़ात उत्तम भाई से हुई। वे इस स्कूल और कॉलेज को चलाने वाली सोसाइटी के मंत्री हैं। इसके पहले मैं उनसे सिर्फ़ ज़ूम पर ही मिला था। वे मनीषी भाई के परिचित थे। मनीषी भाई एक-दो माह पहले ही कहीं पैर में गंभीर चोट खा गये थे वर्ना पूरी यात्रा में साथ रहते लेकिन वे अहमदाबाद में रहते हुए भी पूरी फ़िक्र से आगे की यात्रा को और हम सबके बंदोबस्त को देख रहे थे।  

उत्तमभाई हमें दरवाज़े पर ही स्वागत करने के लिए मिले। अंदर से गाने की मधुर आवाज़ आ रही थी। हम लोग स्कूल के अंदर पहुँचे तो देखा कि तीन तरफ़ से चार मंज़िला भवन से घिरे बीच के मैदान में क़रीब हज़ार-डेढ़ हज़ार बच्चे बैठे हैं और तीन नौजवान सामने बने मंच पर गीत गा रहे हैं – कबीर के भजन, गांधी जी को पसंद थे, वो भजन और रामायण के कुछ पद। हम लोगों ने बैठकर तन्मयता से गीत सुने। फिर भोजनावकाश में सबसे परिचय हुआ। मुम्बई से आये नौजवान गायक का नाम था फ़राज़ ख़ान। उनके साथ तबले पर रौशन गाइकर और बाँसुरी पर उत्कर्ष थे। यह तीनों नौजवान मुंबई से आये थे लेकिन परिचय होने पर पता चला कि फ़राज़ ख़ान बुनियादी तौर पर लखनऊ से हैं और उनके साथी उत्कर्ष इंदौर से संगीत में शिक्षा-दीक्षा हासिल कर रहे थे। भोजन के बाद फिर हम लोगों के कार्यक्रम शुरू हुए।

अब फिर जो हज़ारेक बच्चे सुन रहे थे, वो अलग थे। शिक्षक भी अलग थे। यह दूसरी शिफ़्ट के थे। बिहार के साथी साथ होने से हम लोगों के गीतों के कार्यक्रम काफी अच्छे हो गए थे। नाचा-गम्मत करने के लिए निसार अली को भी अब साथी कलाकार सोमारू की कमी नहीं थी। हमारी मुलाकात वहीं किम में ही पारुल बहन से हुई जिनसे उत्तमभाई ने मिलवाया। वे बड़ौदा से आयीं थीं और वहाँ से निकलने वाली एक सर्वोदयी गांधीवादी पत्रिका “भूमिपुत्र” के संपादक मण्डल का हिस्सा थीं। शाम को भी वहाँ कार्यक्रम हुआ। शाम के कार्यक्रम में वो बच्चे अपने पालकों को लेकर आये थे जिन्हें दिन के कार्यक्रम अच्छे लगे थे। मतलब एक ही दिन में हमने क़रीब दो हज़ार से ज़्यादा दर्शकों तक अपनी बात पहुँचाई थी।

शाम को यूँ तो दर्शक और श्रोता कम थे लेकिन जो थे, वो 10 बजने पर भी हिलने को तैयार नहीं थे। एक और, एक और की फ़रमाइश चल पड़ती। इस तरह एक दिन में हम लोगों ने किम में तीन कार्यक्रमों की प्रस्तुतियाँ दीं। जगह एक ही थी, लेकिन दर्शक अलग-अलग। कार्यक्रम भी लगभग एक ही थे बस संबोधन अलग-अलग थे। मैंने तो हर जगह यात्रा के उद्देश्य और यात्रा के अब तक के पड़ावों को लेकर ही बात की थी। कहीं ज़रूरत होती तो गाने में साथ दे देता था। फिर भी कोशिश यह करता था कि हर बार कोई नयी बात कह सकूँ और जो दिलचस्प भी हो। किम में ये प्रयोग बहुत सफल रहा। बच्चों के साथ बच्चों की तरह बातें करते हुए उन्हें धीरे-धीरे प्रेम और इंसानियत के मर्म तक पहुँचाया और अपने दोस्तों-पड़ोसियों से लेकर फ़िलिस्तीन और रूस-यूक्रेन युद्ध के बारे में भी समझाया। 

हालाँकि कहने के लिए हम किम में कुल 24 घंटे ही रुके लेकिन उत्तमभाई, उनके परिवारजनों और उनके साथियों से ऐसी गहरी दोस्ती हो गई मानो हम सब एक-दूसरे को पहले से जानते हों। किम में उत्तमभाई के साथ दो दिलचस्प क़िस्से हुए। शाम को जब अंतिम कार्यक्रम हुआ तो बिहार के साथियों ने नाटक खेलने की इच्छा ज़ाहिर की। इप्टा के राष्ट्रीय महासचिव तनवीर अख़्तर का निर्देशित और समरेष बसु की कहानी पर आधारित नाटक था – ‘ख़ुदा हाफ़िज़’। वह नाटक मेरा पहले से देखा हुआ नहीं था।  

साधारण रूप से मैंने पूछा कि किस विषय पर है तो उन्होंने कहा कि सांप्रदायिक सद्भाव पर। अब सांप्रदायिक सद्भाव पर नाटक है लेकिन सांप्रदायिक सद्भाव के अंतिम संदेश तक पर पहुँचने के पहले नाटक सांप्रदायिक विद्वेष की घटनाओं से होकर भी गुजरेगा ही। और जब वे घटनाएँ आती हैं तो जो नाटक में हंगामा मचता है। एक दंगे के दृश्य को दर्शाने के लिए पार्श्व से तेज़ आवाज़ में नारे आते हैं – “अल्लाहो अकबर”, “नारा-ए-तकबीर” और “हर हर महादेव” “जय श्री राम” इत्यादि। माइक पर इतनी तेज़ आवाज़ में नारे सुनकर मेरे होश थोड़े-थोड़े उड़ने को तैयार थे। मुझे लग रहा था कि कहीं नाटक के नारे सुनकर बाहर के लोग ये न सोचें कि दंगा हो गया है, और फिर वाक़ई ही दंगा शुरू हो जाएया वैसा न भी हो तो भी कोई पुलिस को ख़बर दे दे और हमारी यात्रा ऐसी ही हालत में समाप्त करनी पड़ जाए, और ये भी मुमकिन है कि कुछ दिन तक जेल की हवा खिला दी जाए। 

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वर्ष 2002 में गुजरात नरसंहार के समय मुझे कितने ही लोगों ने सगर्व बताया था कि कैसे वे ख़ुद ही हिन्दू बस्तियों में “मारो-कापो-बालो” (मारो-काटो-जलाओ) और “अल्लाहो-अकबर” “नारा-ए-तकबीर” के नारों से भरी हुई कैसेट माइक पर चला देते थे जिससे हिन्दू आबादी को लगे कि मुसलमानों का झुंड हमला करने आ रहा है और दंगाइयों के ज़रा से उकसावे पर वो आत्मरक्षा में पास की मुस्लिम बस्ती पर हमला बोल देते थे। इसी तरह मुस्लिम बस्तियों के पास वो “जय श्री राम” और अन्य नारे लगवाते थे जिससे मुस्लिम समुदाय भी उत्तेजित होकर कुछ करे जिसका बहाना बना कर उन पर पुलिस की कार्रवाई करवायी जा सके।

मैं तो जेल जाने की आशंका के साथ तैयार होकर गुजरात आया था लेकिन मुझे लगा कि उत्तम भाई और बिहार से आये युवा साथी इसके लिए तैयार हैं या नहीं। मैंने उत्तमभाई की ओर देखा कि अगर वे इशारा करें तो मैं नाटक के साथियों को रोकने या नारे वग़ैरह की आवाज़ कम करने को कहूँ लेकिन उत्तमभाई बिल्कुल अविचलित, चेहरे पर सौम्य शांति लिए नाटक देखे जा रहे थे। बाद में रात के खाने के वक़्त मैंने उनसे पूछा भी कि आपको बाद में कोई दिक्कत तो नहीं होगी तो बोले कि किम में 2002 में भी कोई दंगा-फ़साद नहीं हुआ था। आप चिंता न करें। इस स्कूल और कॉलेज को मिलाकर यहाँ 2000 से ज़्यादा विद्यार्थी हैं और उनमें सब मिले-जुले हैं। बच्चों के माँ-बाप भी मेरे विचार को अच्छी तरह जानते हैं कि मेरे जीवन का उद्देश्य लैंगिक, जातिगत, धार्मिक और आर्थिक भेदभाव को समाप्त करना है।

दूसरी बात ये थी कि किम एजुकेशनल सोसाइटी के भवन के प्रवेश द्वार पर ही डॉ नरेंद्र दाभोलकर, कॉमरेड गोविन्द पानसरे, प्रोफ़ेसर एम. एम. कलबुर्गी और गौरी लंकेश के चित्र लगे हैं। मैं जब उत्तमभाई का इंटरव्यू ले रहा था तो उन्होंने कहा कि वैसे तो मेरी कोई महत्त्वाकांक्षा नहीं है लेकिन फिर भी मेरी इच्छा है कि इन चारों के साथ मेरा फोटो भी टँगे। बोले कि गांधी जी और अन्य महान क्रांतिकारियों और स्वतंत्रता सेनानियों के कारण हमें 1947 में स्वतंत्रता मिल तो गई लेकिन हमारी जनता उस आज़ादी का सही-सही महत्त्व नहीं समझती थी। हममें जातिवाद, धर्मांधता, अशिक्षा, पितृसत्ता, सामंतवाद, आदि अनेक बुराइयाँ थीं और अभी भी हैं। इसी वजह से गांधी जी को शहादत देनी पड़ी। हमारे देश की जनता को हमें इतना समझदार बनाना होगा कि उसे कोई जाति या धर्म या भाषा या क्षेत्रीय विभिन्नता को मुद्दा बनाकर भड़का न सके। हमें अपने देशवासियों को अधिक जिम्मेदार, क़ाबिल और परिपक्व बनाना होगा। तो ऐसे में अनेक लोगों को अपनी जान देकर जनता की मानसिकता को सुधारने के लिए तैयार रहना होगा। मैं तैयार हूँ। उन्होंने कहा कि गुजरात ने दो महान लोग इस देश को दिये हैं और दो बेकार लोग। हम लोग देश को इन बेकार लोगों से ज़रूर मुक्त कराएँगे। कुल मिलाकर उत्तमभाई से मिलना, और वो भी उन जैसे शख़्स से गुजरात में मिलना एक अविस्मरणीय अनुभव तो बना ही, साथ ही लगा कि एक बहुत समझदार और लंबे वक़्त साथ चलने वाले साथी से मुलाक़ात हुई हो।

जब हम किम क़स्बे में टहलने गए तो देखा कि अनेक दुपहिया वाहनों पर, यहाँ तक कि साइकिलों पर भी आगे एक सवारी के बराबर क़द की ऊँची उलटे वी आकार की एक मुड़ी हुई पतली सी छड़ लगी हुई है।  हमने पूछा कि ये क्या है तो पता चला कि पतंग उड़ाने के मामले में गुजरात अव्वल है। और आजकल चीनी माँजे से जो पतंग उड़ायी जाती है वो बहुत बारीक होता है और उस पर बारीक काँच की पर्त चढ़ी होती है। वो अक्सर लोगों को दिखता नहीं है और दुपहिया वालों के गले में माँजा उलझ जाता है और उससे गला भी कट जाता है। एक अनुमान के मुताबिक ऐसे हादसों में सैकड़ों लोगों की जानें जा चुकी हैं। ये ‘वी’ आकार की छड़ उस माँजे को गले तक पहुँचने से रोकने का काम करती है। (क्रमशः)      

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