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छत्तीसगढ़ में प्रथम दो दिनों की सांस्कृतिक यात्रा कलाकारों एवं लोक कलाकारों के साथ

छत्तीसगढ़ में प्रथम दो दिनों की सांस्कृतिक यात्रा कलाकारों एवं लोक कलाकारों के साथ

(‘ढाई आखर प्रेम’ राष्ट्रीय सांस्कृतिक यात्रा का छत्तीसगढ़ पड़ाव 07 जनवरी से 12 जनवरी 2024 तक संपन्न हुआ। छत्तीसगढ़ के अनेक लोक कलाकारों तथा कलाकारों को राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों से नवाज़ा गया है। इसलिए यात्रा का फोकस ऐसे ही कलाकारों की कला एवं उनके घरों/गाँवों को जानने-समझने पर रखा गया था। पद्मश्री पंडवानी गायिका तीजन बाई, पद्मश्री मूर्तिकार जे.एम. नेल्सन, काष्ठकार श्रवण चोपकर, छत्तीसगढ़ी लोक नाट्य नाचा-गम्मत के अद्भुत चितेरे दाऊ रामचंद्र देशमुख आदि के जीवन और कला से यात्री रूबरू हुए। छत्तीसगढ़ की रिपोर्ट दो कड़ियों में प्रस्तुत की जा रही है।

पहली कड़ी में पहले दिन की रिपोर्ट चारु और साक्षी और दूसरे दिन की रिपोर्ट गोर्की ने लिखी है। फोटो और वीडियो गोर्की, हर्ष, साक्षी ने प्रेषित किये हैं।)

07 जनवरी 2024, रविवार : पहला दिन

भिलाई इस्पात संयंत्र, जिसे नेहरू जी ने आधुनिक भारत का तीर्थ कहा था, से आज 7 जनवरी 2024 से छत्तीसगढ़ की ‘ढाई आखर प्रेम’ की यात्रा आरंभ हुई। यहां से निकलकर यह यात्रा सबसे पहले इक्विपमेंट चौक पहुंची, जहां प्रलेस, जलेस, छत्तीसगढ कला साहित्य अकादमी जैसी अन्य संस्थाओं से आए साथियों ने इस यात्रा के संबंध में अपने विचार व्यक्त किए।

फिर यह यात्रा पद्मश्री जे.एम. नेल्सन (मूर्तिकार) के घर मदर टेरेसा चौक भिलाई पर पहुंची, वहां गमछा पहनाकर श्री नेल्सन जी का अभिनंदन किया गया और उन्होंने इस यात्रा की सफलता हेतु अपना संदेश देते हुए कहा कि चलिए, हम सब मिलकर जो असहाय हैं, दुखी हैं, बीमार हैं, अभावग्रस्त हैं और समाज की मुख्य धारा से काटे हुए हैं, उन्हें समाज की मुख्य धारा में लायें।

इसके बाद यह यात्रा भिलाई से 20 किलोमीटर दूर गांव गनियारी पहुंची, यहां यात्रियों यों ने पद्म विभूषण और मशहूर पंडवानी गायिका तीजन बाई जी से सौजन्य मुलाकात की और उनको गमछा पहनाकर उनके शीघ्र स्वस्थ होने की कामना की।

तीजन बाई जी इन दिनों लकवा से ग्रसित हैं। वहां जाकर उनसे मिलना सभी साथियों के लिए बहुत ही आत्मीय और भावुक अनुभव रहा। एक ज़माने में छत्तीसगढ़ और भारत का नाम पूरी दुनिया में मशहूर करने वाली इतनी बड़ी लोक कलाकार को इस तरह देखना बहुत ही दुखद था। उनके परिवारजनों से पता चला कि पहले तो उन्हें चिकित्सा व्यवस्था मिल जाती थी, लेकिन अब वह भी बंद हो गई है। उनका लगभग पूरा परिवार उन्हीं पर आश्रित हुआ करता था। कुछ महीने पहले तीजन बाई ने अपने बेटे को भी खो दिया है। इसके बाद उन्हें लकवा मार गया। उम्र के कारण अब उन्हें चीज़ें याद नहीं रहतीं और लकवे की वजह से वे साफ़ बोल भी नहीं पातीं। ऐसे में उनके घर की आर्थिक स्थिति काफ़ी डगमगा गई है।

उनके पूरे घर में सर्टिफिकेट, पदक, फ़िल्मी सितारों के साथ तस्वीरें सजी हुई थीं। इतनी बड़ी लोक कलाकार को इस तरह शारीरिक, मानसिक और आर्थिक रूप से इतने कष्ट में देखना बहुत दुखदाई है। हम चाहते हैं कि जिन लोगों तक यह रिपोर्ट पहुँच रही है, वे इस बारे में ज़रूर सोचें कि तीजानबाई की मदद किस तरह की जाए!

गनियारी से निकलकर यह यात्रा वापस भिलाई पहुंची, जहां त्रिमूर्ति चौक पर भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु की प्रतिमाओं पर माल्यार्पण किया गया और जनगीत गाये गए | दिल्ली में जामिया यूनिवर्सिटी की छात्र समीक्षा ने ‘दस्तूर’ जनगीत गाया। उसके बाद सुचिता मुखर्जी, मणिमय मुखर्जी, राजेश श्रीवास्तव सहित वहाँ मौजूद छत्तीसगढ़ इप्टा के सभी साथियों ने मिलकर ‘एक हमारी एक उनकी मुल्क में आवाज़ हैं दो’ गीत गाया। साथ ही आसपास खड़े हुए लोगों के साथ संवाद भी किया गया | एक दुकानदार ने बहुत ही सहजता से पहले पूछा कि आप लोग किसी राजनैतिक दल से हैं? जैसे ही हमने कहा कि नहीं, हम सभी बस कलाकार हैं। उसके बाद उन्हें ‘ढाई अखर प्रेम’ यात्रा का उद्देश्य बताने लगे तो वे बहुत प्रभावित हुए और कहने लगे कि देश को ऐसे लोगों की और ऐसी यात्राओं की बहुत ज़्यादा ज़रूरत है।

यहां से फिर यह यात्रा गांधी चौक रवाना हुई, जहां पर गांधी जी की मूर्ति पर बिलासपुर इप्टा के सचिन शर्मा और सुमन शर्मा ने माल्यार्पण किया और अंबिकापुर इप्टा के साथी कृष्णानंद तिवारी ने लोगों को सम्बोधित कर यात्रा के सन्देश को साझा किया। ‘ढाई आखर प्रेम’ का संदेश देने के लिए साथियों के द्वारा जनगीत की प्रस्तुति की गई।

इसके बाद कुछ देर के विश्राम के लिए यह यात्रा नेहरू सांस्कृतिक भवन पहुंची, जहां पर साथियों ने दोपहर का भोजन किया इसके बाद यह यात्रा अपने प्रथम दिन के अंतिम पड़ाव के लिए काष्ठ कला के कलाकार श्री श्रवण चोपकर जी के घर पहुंची। यहां पर श्री श्रवण चोपकर जी को गमछा पहनाकर उनका अभिवादन किया गया।

इसके बाद सभी साथियों ने चोपकर जी द्वारा बनाई गई अलग-अलग कलाकृतियां और उनकी विशेषताओं को अच्छे से देखा और उनको समझा। एक ही शिल्प में सभी देवस्थानों को उन्होंने अद्भुत कलात्मकता और कौशल के साथ बनाया है।

मंदिर, मस्जिद , गिरिजाघर और गुरूद्वारे को अपने काष्टकला में एक ही साथ दर्शाकर उन्होंने ‘ढाई आखर प्रेम’ यात्रा के उद्देश्य को बखूबी समझा दिया |

उन्होंने बिना जोड़ वाली लकड़ी की एक लम्बी संकली 535 कड़ियों वाली बनायीं है, जिसके बारे में उन्होंने बताया कि वह कारगिल के युद्ध के शहीदों को समर्पित है | साथ ही एक माँ और बच्चे की गतिशील काष्ठ प्रतिमा के विविध रूपों का प्रदर्शन किया।

आज प्रथम दिन की इस यात्रा में प्रगतिशील लेखक संघ के राज्य महासचिव परमेश्वर वैष्णव तथा अध्यक्ष मंडल से लोकबाबू, पत्रकार विमल शंकर झा, जनवादी लेखक संघ से शायर मुमताज, छत्तीसगढ़ कला साहित्य अकादमी से अध्यक्ष शक्तिपद चक्रवर्ती, सचिव बबलू विश्वास और सुमिता पाटील, विजय शर्मा, श्रमिक नेता जयप्रकाश नायर, जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी की छात्रा समीक्षा नायर, खैरागढ़ संगीत कला विश्वविद्यालय के छात्र सर्वज्ञ नायर उपस्थित रहे। इन साथियों के अलावा डोंगरगढ़ इप्टा से साथी मनोज गुप्ता और साथी राधेश्याम तराने, अंबिकापुर इप्टा से साथी कृष्णानंद तिवारी, बिलासपुर इप्टा से साथी सचिन शर्मा, मोबिन अहमद, सुमन शर्मा एवं साक्षी शर्मा और भिलाई इप्टा से राजेश श्रीवास्तव, मणिमय मुखर्जी, सुचिता मुखर्जी, भारत भूषण परगनिहा, रोशन घड़ेकर, रणदीप अधिकारी, रचना श्रीवास्तव, पूनम श्रीवास्तव, देवनारायण साहू, चारू श्रीवास्तव, पोषण लाल साहू, चित्रांश श्रीवास्तव, निकिता, गौरी, वाणी, पलक, श्रीनू, हर्ष, कनिष्क, गोपेश, विक्रम, रमाकांत वर्मा, ममता वर्मा, नीरज और शुभम श्रीवास्तव, जनार्दन सिंह आदि साथी मौजूद रहे।

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08 जनवरी 2024, सोमवार : दूसरा दिन

‘ढाई आखर प्रेम’ की छत्तीसगढ़ सांस्कृतिक यात्रा के दूसरे दिन सफदर हाशमी चौक दुर्ग से गोपाल शर्मा, शरद कोकास, विनायक अग्रवाल, नकुल महलवार, जय कसेर, राकेश बम्बार्डे, लक्ष्मी नारायण कुंभलकर, किशोर जाटव, जितेन्द्र टेंभेकर, योगेश पांडे, जय राम भगवानी, राजेश श्रीवास्तव, मणिमय मुखर्जी, चित्रांश श्रीवास्तव, कनिष्क, पलक, नीरज, भारत भूषण परगनिहा, हर्ष, मनोज गुप्ता, राधेश्याम तराने रैली के रूप में महात्मा गांधी स्कूल पहुंचे, वहां मणिमय मुखर्जी ने बच्चों से संवाद किया।

साथ ही पंचतंत्र की कहानी का उदाहरण देते हुए अपनी यात्रा का उद्देश स्पष्ट किया। साथ ही बिंदु चौधरी का गीत ‘भिन्न बुनाई, भिन्न बुनाई’ गाकर सुनाया।

उसके बाद कवि शरद कोकास ने बच्चों से संवाद स्थपित किया। साथ ही भारत भूषण परगनिहा के निर्देशन में छत्तीसगढ़ी गीत ‘हमर सुग्घर छत्तीसगढ़’ एवं स्कूल की एक बच्ची ने देशभक्ति गीत प्रस्तुत किया। कार्यक्रम की समाप्ति पर रंगकर्मी नकुल महलवार ने स्कूल प्रबंधन का आभार व्यक्त किया। इसके बाद दूसरा पड़ाव लालबहादुर शास्त्री स्कूल था, यहां पूर्व वक्ताओं के अलावा जनगीत तथा कलादास डहेरिया का संबोधन हुआ।

दूसरे दिन का तीसरा और अंतिम पड़ाव कला साधक दाऊ रामचन्द्र देशमुख का गांव बघेरा था, यहां सारे कलाकारों एवं स्कूल स्टाफ ने दाऊ रामचन्द्र देशमुख के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित की।

साथ ही शरद कोकास, मणिमय मुखर्जी के अलावा जलेस के साथी राकेश बम्बार्डे ने छात्रों से संवाद स्थापित किया। डोंगरगढ़ के साथी मनोज गुप्ता और भिलाई के साथियों ने जनगीत प्रस्तुत किया और प्राचार्य जी ने आभार व्यक्त किया।

आज की यात्रा क्षीतिज रंग शिविर दुर्ग के गोपाल शर्मा, जय कसेर, किशोर जाटव एवं जय भगवानी, नकुल महलवार के सहयोग से संपन्न हुई। (क्रमशः)

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