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छत्तीसगढ़ में ‘ढाई आखर प्रेम’ सांस्कृतिक यात्रा : लोक कलाकारों और साहित्यकारों का सान्निध्य

छत्तीसगढ़ में ‘ढाई आखर प्रेम’ सांस्कृतिक यात्रा : लोक कलाकारों और साहित्यकारों का सान्निध्य

(‘ढाई आखर प्रेम’ राष्ट्रीय सांस्कृतिक यात्रा का छत्तीसगढ़ पड़ाव 07 जनवरी से 12 जनवरी 2024 तक संपन्न हुआ। छत्तीसगढ़ के अनेक लोक कलाकारों तथा कलाकारों को राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों से नवाज़ा गया है। इसलिए यात्रा का फोकस ऐसे ही कलाकारों की कला एवं उनके घरों/गाँवों को जानने-समझने पर रखा गया था। पहले दो दिन पद्मश्री पंडवानी गायिका तीजन बाई, पद्मश्री मूर्तिकार जे.एम. नेल्सन, काष्ठकार श्रवण चोपकर, छत्तीसगढ़ी लोक नाट्य नाचा-गम्मत के अद्भुत चितेरे दाऊ रामचंद्र देशमुख आदि के जीवन और कला से यात्री रूबरू हुए। तीसरे और चौथे दिन छत्तीसगढ़ी नाचा-गम्मत के पुरोधा दाऊ मंदराजी और दाऊ खुमान साव के गाँवों में जाकर उनके परिजनों से यात्रियों ने भेंट की। इसके अलावा हबीब तनवीर के साथ अनेक वर्षों तक काम करने वाली अद्भुत लोक गायिका और अभिनेत्री पूनम विराट से उनके अनुभव सुने और कई नाटकों के गीत सुनकर रिकॉर्ड किये। राजनांदगाँव के साहित्यकारों गजानन माधव मुक्तिबोध, पदुमलाल पुन्नालाल बक्शी तथा बलदेव प्रसाद मिश्र के त्रिमूर्ति स्मारक पर जाकर उन्हें याद किया। इसी तरह अन्य प्रसिद्ध साहित्यकारों के परिजनों से मुलाकात की।

तीसरे दिन की रिपोर्ट चारु और साक्षी द्वारा तथा चौथे दिन की रिपोर्ट प्रगतिशील लेखक संघ के वरिष्ठ साथी थानसिंह वर्मा द्वारा लिखी गयी है। फोटो तथा वीडियो लिए हैं साक्षी, हर्ष, कनिष्क तथा चित्रांश ने।)

09 जनवरी 2024 मंगलवार, तीसरा दिन

‘ढाई आखर प्रेम’ राष्ट्रीय सांस्कृतिक यात्रा के छत्तीसगढ़ राज्य के पड़ाव के तीसरे दिन यह यात्रा भिलाई से तकरीबन 20 किलोमीटर दूर थनौद गांव के लिए रवाना हुई | थनौद गांव मूर्तिकारों का गांव है । इस गांव के हर घर की आजीविका का मुख्य स्रोत मूर्तियां बनाना ही है। गणेश पूजा और नवरात्रि के समय यहां से बड़ी से बड़ी और छोटी से छोटी मूर्तियों के लिए सिर्फ छत्तीसगढ़ से ही नहीं, अपितु महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, झारखंड, उड़ीसा, उत्तर प्रदेश आदि राज्यों से भी ग्राहक आते हैं। यहां से 22 – 25 फीट तक की मूर्तियां अन्य राज्यों में भेजी जाती हैं।

जैसा की यात्रा की पूर्व तैयारी के समय हमने तय कर रखा था कि जब हम यात्रा में यहां आएंगे तो एक सुनिश्चित स्थान पर सभी मूर्तिकारों को इकट्ठा करके उनसे बातचीत करेंगे और साथ ही वह हमें मिट्टी की कुछ चीजें बनाना भी सिखाएंगे। किंतु जब यात्रा गांव पहुंची तो वहां एक भी मूर्तिकार नहीं था। पूछताछ करने पर पता चला कि गाँव में किसी का देहांत हो गया है, जिसके कारण सभी मूर्तिकार उनके अंतिम संस्कार में गए हैं। फिर बहुत खोजबीन करने के बाद मूर्तिकार राधेश्याम जी से मुलाकात हुई । राधेश्याम जी ने बताया कि बड़ी मूर्तियां आस्था का नहीं बल्कि दिखावे का प्रतीक हैं | उन्होंने बताया कि जब से दो नंबरी धंधे का पैसा धर्म से जुड़ा, तब से बड़ी मूर्तियों का प्रचलन आरंभ हुआ | अब एक दूसरे से प्रतिस्पर्धा के लिए समितियां बड़ी मूर्तियां बनवाती हैं ।

उस जगह हमने बहुत सी खूबसूरत मूर्तियों को देखा और साथ ही उसे बनाने की प्रक्रिया को भी समझने की कोशिश की | उनसे थोड़ी और बातचीत करके हम जैसे ही आगे बढ़े, तो एक छोटी सी झोपड़ी में एक वृद्ध कुम्हार कलश व दिए बना रहे थे, तो हम वहीं ठहर गए | उन्होंने दस मिनट के अंदर हमें मिटटी के दिये, कलश और गुल्लक बनाकर दिखाया, साथ ही छोटी मटकी कैसे बनाई जाती है, यह भी दिखाया ।

उन्होंने बताया कि यह कला उनके गाँव में पीढ़ियों से चली आ रही है | पहले के ज़माने में कमाई अच्छी हो जाती थी लेकिन अब शहरों में मिटटी के बर्तनों का चलन बंद हो गया है जिसके कारण अब कमाई काफी कम हो गयी है | इसलिए वो लोग जो मूर्तियां नहीं बनाते और सिर्फ छोटे बर्तन बनाते हैं, उनका कारोबार घाटे में चल रहा है | अब गाँव की नयी पीढ़ी शहरों में जाकर दूसरा काम खोज रही है | शहरों में बढ़ती बेरोज़गारी के साथ इन कुम्हारों के परिवारों में आर्थिक स्थिति ख़राब होने के कारण और शिक्षा की कमी के कारण शहरों में भी काम खोजना अब आसान नहीं रहा |

इसके बाद हम आगे बढे और गाँव की एक महिला से हमने बात की, जो मिटटी के दीयों और बर्तनों में चित्रकारी करके उसे सजाती हैं | उनसे बात करते समय उन्होंने बहुत ही सहजता से कहा कि “इस गाँव में हिन्दू-मुस्लिम बहुत प्यार और एकता से रहते हैं | पता नहीं ये न्यूज़ चैनल वाले ऐसा नफरत फ़ैलाने वाला न्यूज़ क्यों दिखाते हैं ? हमारे गाँव में तो सब बहुत अच्छे हैं | हमारे घर के बगल में मुस्लिम परिवार रहता है | वह मूर्तिकार ही हैं और हमारे साथ भगवान की मूर्तियां भी बनाते हैं और सभी त्यौहार भी मानते हैं” | उन्होंने सोशल मीडिया में बढ़ते नफरत के प्रति चिंता ज़ाहिर की |

बाद में हम मूर्तिकार मजीद मोहम्मद के घर पहुंचे। उनसे बातचीत में जब यह पूछा गया कि वह तो अलग धर्म के हैं और फिर दूसरे धर्म की मूर्तियां बनाने में उनको कोई तकलीफ नहीं होती, तो उन्होंने बताया कि एक बार उनके धर्म के वरिष्ठ लोगों ने उन्हें मस्जिद में बुलाया, जहां उनको पता चला कि उनके ही धर्म के किसी व्यक्ति ने उनके खिलाफ शिकायत दर्ज की थी कि वह खुद मुस्लिम होकर हिंदू भगवानों की मूर्तियां बनाते हैं | उन्हें तुरंत इस काम को बंद करने का आदेश दिया गया। इस पर उन्होंने कहा कि “ठीक है ! मैं मूर्तियां बनाना बंद कर दूंगा। बस मेरी इतनी गुजारिश है कि जो भी हमारे धर्म के ड्राइवर हैं, वह सिर्फ अपने धर्म के ही लोगों को अपनी गाड़ी में बैठाएं और जो चूड़ियां बनाते और बेचते हैं, वह सिर्फ अपने ही धर्म की औरतों को चूड़ियां बेचें।” उनकी इस बात की गहराई को समझते हुए उन्हें यह काम बिना रुकावट करने की इजाज़त मिल गई और जिसने उनके खिलाफ शिकायत की थी, उल्टा उस पर ही जुर्माना लगाया गया। इसके बाद गांव में ही थोड़ी देर घूमने के बाद एक-दो और मूर्तिकारों से थोड़ी बातचीत करके हम वहां से खाना खाने के लिए रवाना हो गए।

दोपहर के भोजन के पश्चात हम अगले गांव रीसामा के लिए रवाना हुए, जो वहां से तकरीबन 20 से 22 किलोमीटर दूर था | यह गांव प्रसिद्ध है रामलीला के लोक कलाकारों के लिए |

हमे पूर्व में यह सूचना मिली थी कि अब रामलीला की वह परंपरा खत्म हो चुकी है, बस एक-दो कलाकार ही शेष रह गए हैं। तो हम उनसे ही मिलने चले गए। लेकिन वहां जाकर हमे पता लगा कि उस गांव में रामलीला की परंपरा आज भी चल रही है और अब नई पीढ़ी भी इस परंपरा से धीरे-धीरे जुड़ रही है।

लोक कलाकारों की इस मुलाकात में जहां एक तरफ गांव के वरिष्ठ लोक कलाकार जैसे लक्ष्मीनारायण सेन, लेखू राम साहू, सहदेव देशमुख, जोऊसराम चौहान, गंगा प्रसाद शर्मा आदि थे, तो वही युवा लोक कलाकार नीरज कुमार साहू, खिलेंद्र साहू और चंद्रकांत सेन इत्यादि से बातचीत करने का अवसर प्राप्त हुआ। राम की भूमिका निभाने वाला युवा कलाकार भौतिक शास्त्र में एम.एससी. कर चुका है और आगे नौकरी कर के अपनी जीविका के प्रबंध की तयारी में है। लेकिन उसका कहना है कि कला से उसे बहुत ज़्यादा प्रेम है और वह नाटक करना और तबला बजाना कभी नहीं छोड़ना चाहेगा | हमारे साथ एक पत्रकार साथी सहदेव देशमुख भी चर्चा में शामिल थे। उन्होंने ‘ढाई आखर प्रेम’ यात्रा के महत्त्व को बताते हुए इस प्रयास की सराहना की और कहा कि यह यात्रा 30 जनवरी 2024 को समाप्त तो हो जाएगी, लेकिन आगे भी यह प्रयास जारी रहेगा | हमें लगातार गावों और कस्बों में जाकर लोगों से बात करने की ज़रूरत है |

ग्राम रीसामा में यात्रा का संयोजन किया दुर्ग के लोक कलाकार पुन्नू यादव और उनकी पत्नी रामेश्वरी यादव ने। पुन्नू यादव जी का अपना एक लोक कला समूह है जिसका नाम है लोक मंजरी। रामेश्वरी यादव भी बचपन से ही लोक कला के प्रदर्शन में लगी हुई हैं | उनका कहना था कि आज के ज़माने में लोक कलाकारों की हालत बहुत ख़राब है | उन्होंने पुरानी लोक शैलियों में काम करना बंद कर दिया हैं क्योकि उन्हें लगता है कि आज के टीवी और सिनेमा के बढ़ते चलन के कारण लोक कलाकारों को ज़्यादा लोग देखना नहीं चाहते और इसलिए वे अपनी शैलियों में परिवर्तन कर रहे हैं ताकि उन्हें दर्शक मिल सकें। पर असल बात है कि अपने पुराने स्वरुप में जाकर ही उन्हें अच्छे दर्शक मिलेंगे |

वहां केला बाई जी के घर में सभी लोगों ने बैठ कर ‘ढाई आखर प्रेम’ यात्रा पर चर्चा की और सभी ने स्वीकार किया कि आज के समय में ‘ढाई आखर प्रेम’ यात्रा एक ज़रूरी पहल है | उस घर में संवाद के बाद सभी यात्रियों ने उस गाँव में पदयात्रा की और जनगीत गाते हुए वापसी के लिए निकले |

तीसरे दिन की इस यात्रा में छत्तीसगढ़ कला एवं साहित्य अकादमी से शक्तिपद चक्रवर्ती और बबलू विश्वास, प्रगतिशील लेखक संघ से लोक बाबू, वरिष्ठ पत्रकार सहदेव देशमुख, नाचा गम्मत इप्टा के वरिष्ठ कलाकार निसार अली, बिलासपुर इप्टा से सचिन शर्मा, सुमन शर्मा और साक्षी शर्मा, भिलाई इप्टा से राजेश श्रीवास्तव, मणिमय मुखर्जी, देवनारायण, चारु, चित्रांश, पलक कुमारी, हर्ष, कनिष्क और नीरज शामिल थे।

10 जनवरी 2024 बुधवार, चौथा दिन

छत्तीसगढ़ राज्य की यात्रा के चौथे दिन “परस्पर प्रेम और सद्भाव से ही देश आगे बढ़ेगा” के सन्देश का प्रसार करते हुए दुर्ग-भिलाई से यह यात्रा 10 जनवरी को प्रदेश की साहित्यिक राजधानी राजनांदगांव पहुँची। राजनांदगांव में पुराने बस स्टैण्ड में गाँधी जी की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर नमन किया गया ।

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यात्रा दल द्वारा स्थानीय लेखकों, कलाकारों के स्वागत के पश्चात प्रो थानसिंह वर्मा ने यात्रा के उद्देश्य पर संक्षेप में प्रकाश डाला।इस अवसर पर यात्रा में शामिल मजदूर नेता कामरेड गजेन्द्र झा ने अपने संक्षिप्त उद्बोधन में कहा – बुद्ध से लेकर कबीर तक प्रेम और सद्भाव का जो ताना-बाना बुना गया था, वह खतरे में है। आज समाज में घृणा तथा नफरत फैलाई जा रही है, जिससे परस्पर प्रेम तथा विश्वास का संकट पैदा हो गया है। इसी प्रेम और विश्वास को बढ़ाने की आवश्यकता है ।हम इस यात्रा में सम्मिलित कलाकारों का स्वागत करते हैं।

इससे पूर्व यात्रा दल ने ग्राम ठेकवा में संगीत नाटक अकादमी सम्मान से सम्मानित स्व श्री खुमान साव तथा ग्राम रवेली में नाचा के पुरोधा स्व दाऊ मंदराजी को नमन किया। उनके परिजनों से भेंट-मुलाकात की तथा गमछा भेंट कर सम्मानित किया ।

यात्रा गाँधी प्रतिमा से होकर भरका पारा में डाॅ भीमराव आम्बेडकर, कामठी लाईन में नेता सुभाष चंद्र बोस को नमन कर सिनेमा लाइन, मानव मंदिर चौक होते हुए मुक्तिबोध स्मारक – त्रिवेणी परिसर पहुँची, जहाँ साहित्य मनीषी पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी, गजानन माधव मुक्तिबोध एवं डाॅ बल्देव प्रसाद मिश्र की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर नमन किया।

यहां प्रभात तिवारी, कहानीकार कुबेर सिंह साहू एवं संजय अग्रवाल ने यात्रा के महत्व पर प्रकाश डाला । मणिमय मुखर्जी, निसार अली एवं अन्य कलाकारों ने जनगीत प्रस्तुत किये। निसार अली एवं भारत भूषण परघनिया ने ‘चालाक शिकारी’ छत्तीसगढ़ी गम्मत प्रस्तुत किया ।

यात्रा के दौरान कामठी लाइन में ‘सबेरा संकेत’ के संपादक एवं सुप्रसिद्ध लेखक स्व शरद कोठारी, भारत माता चौक में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्व श्री कन्हैयालाल अग्रवाल जी, स्टेशनपारा में तेभागा आंदोलन के नेता कामरेड प्रकाश राय और जन कवि डॉ नन्दूलाल चोटिया और तुलसीपुर में सुप्रसिद्ध कलाकार स्व दीपक विराट के निवास पर पहुँच कर उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित किये। राजनांदगांव की साहित्यिक त्रयी शरद कोठरी, रमेश याज्ञिक और नंदुलाल चोटिया को याद करते हुए,

साथ ही उनके परिवारजनों को प्रेम के धागे के प्रतीक रूप में गमछा भेंट कर सम्मानित किया गया और उनसे उनसे बातचीत भी की गयी।

हबीब तनवीर के ‘नया थिएटर’ में दीपक विराट के साथ दीर्घ अवधि तक नाटक करने वाली लोक अभिनेत्री व गायिका पूनम विराट ने अपने कलाकारों के साथ ‘चोला माटी के हे राम’ निर्गुण भजन के साथ हबीब साहब के ‘चरणदास चोर’, ‘सड़क’ आदि नाटकों के अनेक गीत सुनाये। ‘एक चोर ने रंग जमाया जी सच बोल के’ गीत सुनिए,

इस तरह यह यात्रा प्रेम एवं सद्भाव के संदेश के समाप्त हुई । इस यात्रा में राष्ट्रीय इप्टा के सचिव राजेश श्रीवास्तव, छत्तीसगढ़ इप्टा के अध्यक्ष मणिमय मुखर्जी, भारत भूषण परगनिया, रायपुर नाचा थियेटर के निसार अली, डोंगरगढ इप्टा के साथी राधेश्याम तराने एवं मनोज गुप्ता के साथ प्रगतिशील लेखक संघ राजनांदगांव के अध्यक्ष प्रभात तिवारी, सचिव पोषण वर्मा, साहित्यकार संजय अग्रवाल, कुबेर साहू, प्रो थानसिंह वर्मा, के के श्रीवास्तव, गिरीश ठक्कर, मुन्ना बाबू, हरेन्द्र कंवर, काॅ गजेन्द्र झा, शरद अग्रवाल, गोपीकृष्ण चोटिया, यश तारक, मोहनलाल साहू, डी सी जैन, अमलेन्दु हाजरा सम्मिलित हुए । यात्रा में भिलाई इप्टा के हर्ष रमानी, कनिष्क मिश्रा, निकिता कुमारी, पलक, वाणी, नीरज भी शामिल थे। आभार प्रदर्शन पोषण वर्मा ने किया।

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