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उत्तर प्रदेश के वाराणसी और कानपुर शहर में एक दिनी यात्रायें

उत्तर प्रदेश के वाराणसी और कानपुर शहर में एक दिनी यात्रायें

(उत्तर प्रदेश की निर्धारित सांस्कृतिक यात्रा के अतिरिक्त प्रदेश के संस्कृतिकर्मी विभिन्न जिलों में भी एक-एक दिन की उप प्रादेशिक सांस्कृतिक यात्रा आयोजित कर रहे हैं। पूर्व में 06 अक्टूबर रायबरेली, 21 अक्टूबर लखनऊ, 03 दिसंबर गोरखपुर, 12 दिसंबर लखनऊ, 17 दिसंबर 2023 को बस्ती शहर में, 25 दिसंबर 2023 को मुज़फ़्फ़रनगर तथा 04 जनवरी 2024 को आजमगढ़ , 05 जनवरी 2024 को मेरठ तथा 14 जनवरी 2024 को सहारनपुर में यात्रा की गयी। इस बार प्रस्तुत है वाराणसी और कानपुर में की गयी एक दिनी ‘ढाई आखर प्रेम’ यात्रा के रिपोर्ट। दोनों स्थानों की रिपोर्ट भेजी है राज्य महासचिव शहज़ाद रिज़वी ने तथा वाराणसी के फोटो भेजे हैं और कानपुर के डॉ ओमेंद्र कुमार ने ।)

17 जनवरी 2024 बुधवार, वाराणसी

हिन्दू कहें मोहि राम पियारा, तुर्क कहें रहमाना, आपस में दोउ लड़ी-लड़ी मुए, मरम न कोउ जाना।

– कबीर दास

देश में नफरत और हिंसा के विरुद्ध प्रेम, मोहब्बत और आपसी सौहार्द का संदेश देने, कबीर की विरासत को आगे ले जाने के उद्देश्य से इप्टा के नेतृत्व में अन्य जन संगठनों के सहयोग से निकाली जा रही देशव्यापी ‘ढाई आखर प्रेम राष्ट्रीय सांस्कृतिक यात्रा के अंर्तगत उत्तर प्रदेश में एक दिवसीय उप प्रादेशिक सांस्कृतिक यात्राओं का सिलसिला जारी है और इसी कड़ी में आज हिस्सेदारी निभाई देश की सांस्कृतिक राजधानी, बुद्ध, कबीर, तुलसीदास की कर्मस्थली बनारस (काशी) ने। प्रदेश में लगातार गिर रहे तापमान, गलन और घने कोहरे मे लिपटी सुबह के बीच बनारस में 17 जनवरी को ‘ढाई आख़र प्रेम’ सांस्कृतिक पदयात्रा की शुरुआत पिपलानी कटरा स्थित ‘संत कबीर की साधु संगत प्रतिमा’ से की गई । सर्वप्रथम जत्थे के सभी पदयात्रियों ने प्रतिमा पर माल्यार्पण कर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की।

इस अवसर पर प्रतिमा स्थल पर उपस्थित लोगों को सम्बोधित करते हुए प्रगतिशील लेखक संघ के राज्य महासचिव डॉ. संजय श्रीवास्तव ने कहा कि इस आंदोलन के आह्वान का सूत्र ही कबीर की बानी में है जो इस यात्रा का स्वर भी है — ‘ढाई आखर प्रेम’ । आज भारतीय समाज को ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया को इस पैगाम की जरूरत है । नफ़रत और हिंसा को सत्ता के संरक्षण में पोसा जा रहा है । इसकी वजह से इंसानियत शर्मसार हो रही है । हाशिए पर पड़े हुए लोगों को गुमराह करके उन्हें वोटो में तब्दील किया जा रहा है । ऐसे हालात में समाज में सहअस्तित्व और सद्भाव की ज़रूरत है, जिसके लिए मुहब्बत ही सिर्फ एक रास्ता है इस रास्ते पर चल कर हम हिंदुस्तान की तहजीब को उसके मुकाम तक ले जा सकते हैं ।

इसी अवसर पर वरिष्ठ कवि एवं मूर्ति शिल्प कार नरोत्तम शिल्पी ने कहा कि समाज में आज भाईचारे की जरूरत है । इसके बिना हमारे देश की कोई तस्वीर नहीं उभरती । बनारस ने तो बुद्ध, कबीर और प्रेमचंद के माध्यम से पूरी दुनिया को सद्भाव का संदेश दिया था, इसलिए हम उम्मीद करते हैं कि यह यात्रा टूटे हुए दिलों को जोड़ेगी और मुहब्बत का पैग़ाम देगी । इसके उपरांत बनारस इप्टा के साथियों ने पूरे देश में चर्चित मशहूर शायर / कवि ओम प्रकाश नदीम द्वारा रचित यात्रा का आवाह्न गीत ‘ढाई आखर प्रेम के हम पढ़ने और पढ़ाने आए हैं, हम भारत से नफ़रत का हर दाग़ मिटाने आए हैं’ की प्रस्तुति की गई । तदोपरांत पदयात्रियों का ये जत्था जनगीतों को गाते-बजाते पिपलानी कटरा, घोड़ा अस्पताल, राम कटोरा, धूपचण्डी, जगतगंज होते हुए अपने अंतिम पड़ाव लहुराबीर स्थित कथासम्राट प्रेमचंद प्रतिमा स्थल पहुॅंचा। जत्थे के साथियों ने प्रेमचंद की प्रतिमा पर ने मार्ल्यापण कर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की ।

इप्टा बनारस के संरक्षक एवं अशोक मिशन जन नाट्यशाला के प्रबंधक अशोक आनंद ने इस अवसर पर अपने सम्बोधन में कहा कि बदलते हुए समाज में हमें रूढ़ि और नफरत से लोगों को बचाना होगा। हमें हर तरह की गैरबराबरी और भेदभाव से आज मुक्त होना होगा, ऐसा करने से ही समतामूलक समाज का सपना साकार होगा। आइए, हम पूरे समाज को प्रेम और सद्भाव का संदेश दें ताकि साझा संस्कृति वाला यह देश अपनी गौरवशाली परंपरा को सभ्यता के लक्ष्य तक ले जा सके। इसी क्रम में इप्टा के कलाकारों / साथियों ने ‘इंसान का इंसान से हो भाईचारा, यही पैग़ाम हमारा यही पैग़ाम हमारा’ गीत गाए, जिसकी लोगों ने खूब प्रशंसा की। यात्रा के समापन पर स्थानीय यात्रा संयोजक एवं बनारस इप्टा के सचिव सलीम राजा ने सभी के प्रति आभार व्यक्त किया।

यात्रा में प्रगतिशील लेखक संघ उ० प्र० के राज्य महासचिव एवं वर्तमान साहित्य पत्रिका के सम्पादक डा. संजय श्रीवास्तव, बनारस इप्टा के संरक्षक अशोक आनंद, स्थानीय यात्रा संयोजक एवं बनारस इप्टा के सचिव / नाट्य निर्देशक सलीम राजा, मूर्ति शिल्पकार व कवि नरोत्तम शिल्पी, वरिष्ठ रंगकर्मी राजलक्ष्मी, ट्विंकल गुप्ता, आशीष त्रिवेदी, मोहम्मद अख्तर, सत्येंद्र यादव और अनुराग सहित अनके स्थानीय नागरिक मौजूद रहे। रिपोर्ट – *शहज़ाद रिज़वी* राज्य महासचिव इप्टा – उत्तर प्रदेश चित्र – *सलीम राजा*

21 जनवरी 2024 रविवार, कानपुर

दिल ओ जान ओ जिगर
सब्र ओ ख़िरद
जो कुछ है पास अपने
ये सब कर देंगे
हम उन पर निसार
अहिस्ता आहिस्ता

– हसरत मोहानी

समाज में दिन-ब-दिन बढ़ता हुआ नफ़रत और घृणा का माहौल, मुल्क में सदियों से चली आ रही गंगा जमुनी तहज़ीब और सामाजिक ताने बाने पर आसन्न ख़तरे के ख़िलाफ़ इप्टा के नेतृत्व में अन्य जन संगठनों के सहयोग से देश के लगभग सभी प्रांतों सहित केंद्र शासित प्रदेशों में प्रेम और आपसी भाईचारा के संदेश को जन जन तक पहुंचाने के मक़सद से निकाली जा रही ढाई आखर प्रेम राष्ट्रीय सांस्कृतिक यात्रा (28 सितंबर 2023 से 30 जनवरी 2024 तक) के अंर्तगत उत्तर प्रदेश में लगातार एक दिवसीय उप प्रादेशिक सांस्कृतिक यात्राओं का सिलसिला जारी है ।

इसी श्रृंखला में आज यात्रा का स्थल बना पूरब का मैनचेस्टर कहा जाने वाला,1857 की क्रांति का गवाह, देश की साझा संस्कृति और विरासत के लिए कुर्बान हो जाने वाले शहीद भगत सिंह और चंद्रशेखर के अभिन्न मित्र हिंदी पत्रकारिता के महान स्तम्भ अमर शहीद पत्रकार गणेश शंकर विद्यार्थी, स्वतंत्रता सेनानी, भारतीय संविधान सभा के सदस्य, इंकलाब ज़िंदाबाद नारे के जनक फ़ज़लुल हसन हसरत मोहानी की कर्मस्थली कानपुर से यात्रा की शुरुआत हुई। फ़ीलख़ाना स्थित सन् 1913 में स्वतन्त्रता सेनानी, शिक्षक एवं पत्रकार अमर शहीद गणेश शंकर विद्यार्थी द्वारा स्थापित स्वतन्त्रता संग्राम के दौरान स्वतंत्रता आंदोलन एवं राजनैतिक परिवेश का मुखपत्र ‘प्रताप’ का प्रताप प्रेस, जो स्वतंत्रता सेनानियों यथा भगत सिंह, फणींद्र नाथ घोष, बटुकेश्वर दत्त, चंद्रशेखर आज़ाद आदि का पनाहगाह भी रहा, क्रांतिकारियों की जंग-ए-आज़ादी के दौरान रणनीति और गतिविधियों का गवाह भी रहा। यहीं ‘प्रताप’ अख़बार मे भगत सिंह ने छदम् नाम से न जाने कितने लेख लिखे और जंग ए आज़ादी को धार दी।

‘प्रताप’ प्रेस से यह यात्रा ‘इंसान का इंसान से हो भाईचारा, यही पैग़ाम हमारा, यही पैग़ाम हमारा’ और ‘ढाई आखर प्रेम के हम पढ़ने और पढ़ाने आएं हैं, हम भारत से नफ़रत का हर दाग़ मिटाने आएं हैं’ गीतों को फ़ीलख़ाना, बिरहाना रोड, माल रोड के रिहाइशी इलाकों में पूर्व निर्धारित पड़ावों पर गाते-बजाते प्रेम और मुहब्बत का संदेश देते हुए अपने अंतिम पड़ाव फूलबाग़ पहुंची। जहाँ सर्वप्रथम जत्थे के सभी साथियों ने फूलबाग़ परिसर में स्थापित स्वतन्त्रता सेनानी, शिक्षक एवं पत्रकार गणेश शंकर विद्यार्थी तथा सत्य और अहिंसा के पुजारी राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की प्रतिमा पर माल्यार्पण एवं पुष्प अर्पित कर उन्हें श्रद्धांजलि दी । यात्रा का समापन समारोह पूर्वक मनाया गया ।

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प्रतिमा स्थल पर आयोजित विचार गोष्ठी में उपस्थित शहर के बुद्धिजीवियों, सांस्कृतिक कर्मियों, पत्रकारों व गणमान्य नागरिकों के समक्ष अपने विचार व्यक्त करते हुए प्रसिद्ध आलोचक एवं प्रगतिशील लेखक संघ उ.प्र. के प्रांतीय उप महासचिव प्रो. आनंद शुक्ला ने देशव्यापी ‘ढाई आखर प्रेम’ राष्ट्रीय सांस्कृतिक यात्रा की महत्ता और उद्देश्यों पर विस्तार से जानकारी देते हुए कहा कि ढाई आखर प्रेम की यह यात्रा पूर्व में गत वर्ष 9 अप्रेल 23 से 22 मई 23 तक देश के पाँच राज्यों छत्तीसगढ़, झारखंड, बिहार, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में निकाली गयी यात्रा का विस्तार है। देश में आज अराजकता का माहौल व्याप्त है। सत्ता की लालच में सांप्रदायिक शक्तियां देश की साझी संस्कृति, आपसी सौहार्द और भाईचारे को न सिर्फ़ कमज़ोर करने अपितु सदियों से चले आ रहे देश के आंतरिक सामाजिक ढांचे को विभाजित करने पर तुली हुई हैं I ऐसा पहले कभी नहीं हुआ। देश में प्रेम, बंधुत्व, आपसी मेलजोल एवं पुनः विश्वास की भावना को जागृत करना ही इस सांस्कृतिक यात्रा का उद्देश्य है।

जलेस कानपुर के वरिष्ठ साथी प्रताप साहनी ने अपने संबोधन में कहा कि भीषण ठंड और कोहरे के बावजूद आप लोगों की बड़ी संख्या में मौजूदगी इस यात्रा की सफलता का विराट संदेश देती है। उन्होंने आगे कहा कि कॉरपोरेट सेक्टर के हाथों गिरवी हो चुका लोकतंत्र का चौथा स्तंभ अपने मूल उद्देश्य से भटक गया है । सच्ची पत्रकारिता को ब्लैक आउट कर दिया गया है। वरिष्ठ समाजसेवी सुरेश गुप्ता ने देश में व्याप्त उन्माद को समाप्त करने के लिए इस प्रकार की सांस्कृतिक यात्राओं को बार-बार किए जाने की आवश्यकता पर बल दिया ।

जलेस कानपुर की सचिव अनीता मिश्र ने अपने संबोधन में कहा की खराब मौसम के बावजूद इस कँपकँपाती ठंड और गलन में आप सब की अच्छी तादात में शिरकत, इस बात की गवाह है कि नफरत को, प्रेम-मोहब्बत और भाईचारे से ही मिटाया जा सकता है । जसम के कवि प्रो.पंकज चतुर्वेदी ने प्रख्यात कथाकार सआदत हसन मंटो के कथन “बिका हुआ पत्रकार और कोठे की तवायफ” पर चर्चा करते हुए कहा कि आज के इस कठिन और भयावह दौर में सच से सामना कराने वाले बहुत थोड़े पत्रकार बचे हैं । मीडिया धर्म के नाम पर अराजकता फैला रही है । उन्होंने इस अवसर पर अपनी चर्चित कविता ‘राम ! तुम्हे उपहार है या’ का पाठ भी किया, जिसको लोगों द्वारा खूब सराहा गया।

प्रलेस की राष्ट्रीय समिति के सदस्य ख़ान अहमद फ़ारूख़ ने संगोष्ठी में ‘ढाई आखर प्रेम’ सांस्कृतिक यात्रा को एक ऐतिहासिक यात्रा बताते हुए कहा कि देश में उन्माद का दायरा दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है । अब तो सरकारी सर्कुलर जारी कर दफ्तरों, स्कूलों, महाविद्यालयों में भी सरकारी उन्माद को बढ़ावा दिया जा रहा है ।जर्मनी में भी बहुत पहले ऐसा ही सब कुछ हुआ था, नतीजा सबको पता है । उन्होंने अपनी बात पर जोर देते हुए कहा की प्रेम में गज़ब की शक्ति है। प्रेम और मोहब्बत के रास्ते चलकर, कबीर, नानक और रैदास के मार्गो का अनुसरण कर ही इस क्रूर समय मे शांति और सद्भाव की पताका फहराई जा सकती है ।

विचार गोष्ठी में ज्ञान प्रकाश, राजेश अरोड़ा ने भी अपने विचार व्यक्त किए । अंत में स्थानीय यात्रा संयोजक एवं इप्टा कानपुर के सचिव डॉ. ओमेन्द्र कुमार ने सभी के प्रति आभार व्यक्त किया।

यात्रा में प्रसिद्ध कवि, विभागाध्यक्ष हिन्दी विभाग, वी एस एस डी महाविद्यालय एवं जन संकृति मंच के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रो. पंकज चतुर्वेदी , वरिष्ठ आलोचक एवं प्रगतिशील लेखक संघ उत्तर प्रदेश के प्रांतीय उप महासचिव प्रो. आनंद शुक्ला, मशहूर तनक़ीद निगार, विभागाध्यक्ष उर्दू विभाग, हलीम मुस्लिम डिग्री कालेज एवं प्रगतिशील लेखक संघ के राष्ट्रीय समिति के सदस्य प्रो० ख़ान अहमद फ़ारूख़, स्तंभकार / पत्रकार व जनवादी लेखक संघ कानपुर की सचिव व स्तम्भकार अनिता मिश्र, वरिष्ठ ट्रेड यूनियन कर्मी/ जलेस कानपुर के वरिष्ठ साथी प्रताप साहनी, वरिष्ठ समाजसेवी सुरेश गुप्ता, ज्ञान प्रकाश, राजेश अरोड़ा, स्थानीय यात्रा संयोजक एवं इप्टा कानपुर के सचिव डॉ. ओमेन्द्र कुमार, उपाध्यक्ष राम प्रसाद कन्नौजिया, कोषाध्यक्ष सम्राट यादव, संयुक्त सचिव विजय भान सिंह, राज कुमार अग्निहोत्री, अब्दुल्लाह फ़ैज़, अश्वनी कुमार, विश्वजीत सोनकर, विमल कुमार, अमरजीत, देवेंद्र श्रीवास्तव, धनपति यादव, शत्रुध्न प्रसाद, कुमार शलभ एवं विनय अवस्थी आदि सहित बड़ी संख्या में लोग शामिल रहे।

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