(‘ढाई आखर प्रेम’ राष्ट्रीय सांस्कृतिक यात्रा की विभिन्न राज्यों में संपन्न होने वाली अंतिम कड़ियों में महाराष्ट्र पड़ाव की पदयात्रा 19 जनवरी 2024 से आरम्भ हुई है। भारत विविधताओं का देश है। यहाँ के हरेक राज्य की अपनी-अपनी संस्कृति है। 28 सितम्बर 2023 से राजस्थान से आरम्भ हुई ‘ढाई आखर प्रेम’ की सांस्कृतिक यात्रा इसी विविधता के साथ की जा रही है। महाराष्ट्र की पदयात्रा की बड़ी विशेषता है अधिकांश पदयात्रियों का युवा होना। शिवाजी महाराज के स्वराज्य और डॉ बाबासाहेब आम्बेडकर के जातिभेद के ख़िलाफ़ आंदोलन के प्रतीक – क्रमशः रायगड और महाड को जोड़ने वाली इस यात्रा में युवा पदयात्री सुदूर गाँवों में जाकर ग्रामीण स्त्री-पुरुष-बच्चों-बूढ़ों से मिलकर कुछ अपनी सुना रहे हैं, कुछ उनकी सुन रहे हैं। इस तरह संस्कृति का, विचारों का, प्रेम का आदान-प्रदान करते हुए स्नेह के धागे बुनते हुए यात्रा आगे बढ़ रही है। शुरुआती दो दिन 19 और 20 जनवरी की गतिविधियों की झलकनुमा रिपोर्ट उपलब्ध करवाई है महाराष्ट्र पड़ाव के समन्वयक तल्हा शेख ने तथा फोटो और वीडियो साझा किये हैं साक्षी, विक्रम, निसार अली, फ़रीद और विजय ने।)
19 जनवरी 2024 शुक्रवार : प्रथम दिन
‘ढाई आखर प्रेम’ सांस्कृतिक पदयात्रा महाराष्ट्र पडाव की शुरुआत 19 जनवरी 2024 हुई। इसकी पूर्व संध्या पर 18 जनवरी को पाचाड में अनेक सामाजिक-सांस्कृतिक संगठनों के पदयात्री पहुँच चुके थे। रात को आयोजक समिति की बैठक और रात्रि का प्रथम सहभोज संपन्न हुआ।
19 जनवरी से 24 जनवरी 2024 तक रायगड से महाड तक आयोजित इस छः दिवसीय पदयात्रा के कार्यक्रम पर चर्चा हुई। पदयात्रा के लिए इकठ्ठा हुए सहभागी साथी संविधान प्रचारक सभा, इप्टा नाशिक, रायपुर, भिलाई (छत्तीसगढ), मुंबई, आगरा, मथुरा उत्तर प्रदेश से जुड़े हुए हैं।
महाराष्ट्र ‘ढाई आखर प्रेम’ आयोजन समिति के संयोजन में रायगड से लेकर महाड़ तक एक सांस्कृतिक पदयात्रा की शुरूआत रायगड जिले के पाचाड गांव से हुई, जो 19 जनवरी से 24 जनवरी 2024 तक चलेगी। संविधान प्रचारक चळवळ, संविधान सांस्कृतिक जलसा, नव सांस्कृतिक पर्याय, प्रगतिशील लेखक संघ, ऑल इंडिया स्टूडेंट फेडरेशन और इंडियन पीपल्स थिएटर असोसिएशन के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित इस सांस्कृतिक पदयात्रा में उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र के अलग-अलग जिलों से सांस्कृतिक कार्यकर्ता शामिल हुए।
प्रातः सात बजे छत्रपति शिवाजी महाराज की समाधि से प्रभात फेरी निकालते हुए सभी कलाकार मां जिजा बाई की समाधि पर आकर एकत्रित हुए, जहां यह एक सांस्कृतिक सभा में परिवर्तित हो गई।
इस सभा में 6 दिवसीय यात्रा का उद्घाटन शेतकरी कामगार पार्टी के पूर्व विधायक सुभाष पाटिल, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राष्ट्रीय सचिव डॉ भालचंद कानगो और वरिष्ठ रंगकर्मी और नाचा कलाकार निसार अली ने किया । सभा में राज्य सचिव भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के कॉ सुभाष लांडे, महाड़ सत्याग्रह के अगुआ सुरवा नाना टिपनिस के पौत्र श्री मिलिंद टिपनिस, सर्वहारा जनांदोलन की प्रमुख उल्का महाजन और कोंकण मराठी साहित्य परिषद के अध्यक्ष सुधीर सेठ ने अपनी सहभागिता की और यात्रा को प्रेम, सद्भाव और एकजुटता जैसे सामाजिक मूल्यों के लिए आवश्यक बताया।
कार्यक्रम में इप्टा और संविधान जलसा के प्रियपाल, सोनू, अभिजीत, कृष्णा, आमिर और साक्षी आदि साथियों ने शिवाजी महाराज, डॉ आंबडेकर, सावित्री बाई फुले, ज्योतिबा और रमाबाई को समर्पित जनगीत गाए।
इप्टा मुंबई के साथियों कॉ चारुल जोशी, निवेदिता और विकास ने जनगीत और कबीर के गीत गाए। अतिथियों ने अपने उद्बोधन में यात्रा के प्रारंभ को युवाओं के युग-बोध का प्रतीक बताया।
इसके बाद रायगड की तलहटी में उपस्थित कलाकारों ने जनगीत गाते हुए विभिन्न समुदायों और सांस्कृतिक अंचल के निवासियों के बीच प्रेम के संदेश का प्रसार किया। निसार अली और कृष्णा ने नाचा और आमिर ने जनगीत की प्रस्तुतियां की।
दोपहर 3.30 बजे पदयात्रा पाचाड से कोंझर के जिजाबाई राजमाता माध्यमिक स्कूल में पहुँची।
यहाँ बच्चों के साथ खेल और गीतों के माध्यम से इंटरेक्शन किया गया तथा गांववालों से संवाद किया गया।
कोंझर में रात नौ बजे सामुदायिक भवन में जनगीत और थिएटर ऑफ ऑप्रेस्ड की प्रस्तुति संकेत सीमा विश्वास के निर्देशन में केतन, डॉ सोनाली, साक्षी और अनाइशा ने की।
कोंझर में सांध्यकालीन सभा में श्री राजेंद्र मायने पुलिस निरीक्षक, सरपंच विजय कदम विशेष रूप से उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन आमिर ने किया।
गांव के सरपंच और पुलिस निरीक्षक का सम्मान विकास, कार्तिक, मुक्ता, नागेश धुर्वे, विजय ने ‘ढाई आखर प्रेम’ यात्रा का प्रतीक चिन्ह टोपी और उपरना (छोटा गमछा) देकर किया।
धन्यवाद ज्ञापन ऑल इंडिया स्टुडंट्स फेडरेशन के राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष विराज देवांग और संविधान प्रचारक चळवळ के नागेश ने संयुक्त रूप से किया।
20 जनवरी 2024 शनिवार, दूसरा दिन
विभिन्न सांस्कृतिक संगठनों द्वारा देश में अमन, प्रेम, सद्भाव के लिए 22 राज्यों में निकाली जा रही ‘ढाई आखर प्रेम’ यात्रा दूसरे दिन महाराष्ट्र रायगड जिले के कोंझर से निकलकर वरेकोंड में पहुंची, जहां गांव में समाज मंदिर में जत्थे के कलाकारों अनाईशा, साक्षी, सोनाली, मुक्ता ने ग्रामवासियों से संवाद किया।
उनके द्वारा सहेज कर रखे गए भावगीतों को सुना। यहां 33 वर्ष से लेकर 78 की उम्र की महिलाएं उपस्थित थीं।
वरंडोली गांव की महिला सरपंच ने गांव में जत्थे का स्वागत किया और दोपहर के भोजन के बाद जिला परिषद के स्कूल के सामने जत्थे ने सावित्री बाई फुले के योगदान पर आधारित गीत गाए।
संकेत सीमा विश्वास ने फोरम थिएटर के जरिए घरेलू हिंसा पर सवाल किया जिसमे गांव की महिला और किशोरी ने भी भाग लिया।
आयोजन समिति ने सरपंच को यात्रा का प्रतीक चिन्ह भेंट किया और गांव के लोगों ने पुनः आने की दावत दी।
यहां से यह यात्रा निवाची वाडी पहुंची जहां आदिवासी कातकरी समाज ने उनका स्वागत किया और फिर जत्थे ने शाम को गांव में सहभोज किया, जिसका आयोजन गांव के प्रमुख लहूजी काटकर साब ने किया था।
भोजन के बाद संविधान सांस्कृतिक जलसा और इप्टा के साथियों ने जन गीत, निसार भाई ने ‘चालाक शिकारी’ शीर्षक का छत्तीसगढ़ी नाचा-गम्मत शैली का लोकनाट्य और नागेश धुर्वे ने तमाशा शैली की प्रस्तुति दी।
यहां 80 वर्षीय महिला लोक कलाकार पार्वती वाघमारे ने एक काठी के ऊपर मोम डालकर उससे घिसकर उसमे से मधुर धुन निकालते हुए आदिवासी भाषा कातकरी में एक परिकथा का गायन किया जो पीढ़ी दर पीढ़ी चलती चली आ रही है।
साथी निसार अली ने अंचल की लोक कलाकार पार्वती वाघमारे द्वारा प्रस्तुत ‘सरबताची काठी’ लोकगाथा-गायन की प्रस्तुति सम्बन्धी जानकारी दी। जंगली पौधे के बारीक तने और एक परातनुमा बर्तन के बीचो-बीच मोम से चिपकाकर तैयार किया गया अद्भुत वाद्य ‘सरबताची काठी’ होता है, इसे बजाते हुए ज़्यादातर परियों, राजकुमारियों तथा आदिवासी लोक कथाओं के विषयों का गायन होता है। आदिवासी ग्राम कोतुरड़े निवासी उम्रदराज़ पार्वती वाघमारे इस वाद्य की अब अकेली वादिका हैं, जिनके पास इस गीत-गाथा-गायन का पुराना अनुभव है। कुछ वर्षों पहले तक गाँव के लोग इन्हें रात-रात भर बैठकर सुनते थे।’
इसके बाद गांव की किशोरियों ने आदिवासी गीतों पर दो समूह नृत्य प्रस्तुत किए जिसे सभी लोगों ने पुनः प्रस्तुति के अनुरोध के साथ दो बार देखा।
आदिवासी समाज प्रमुख ने अपनी कविता में यात्रा को शुभ कामनाएं दी। यहां संविधान प्रचारक लोकचळवळ के सांस्कृतिक जलसे ने जनगीत के द्वारा भीम राव अम्बेडकर और बिरसा मुंडा के गीतों द्वारा बच्चों से उठने-जागने का आव्हान किया।(क्रमशः)