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‘ढाई आखर प्रेम’ सांस्कृतिक पदयात्रा अस्पृश्यता विरोधी आंदोलन के प्रतीक महाड में

‘ढाई आखर प्रेम’ सांस्कृतिक पदयात्रा अस्पृश्यता विरोधी आंदोलन के प्रतीक महाड में

(‘ढाई आखर प्रेम’ राष्ट्रीय सांस्कृतिक पदयात्रा (28 सितम्बर 2023 से 30 जनवरी 2024 तक) का महाराष्ट्र पड़ाव 19 जनवरी से 24 जनवरी 2024 तक संपन्न हुआ। यह छह दिन की पदयात्रा दो महत्वपूर्ण ऐतिहासिक जगहों – रायगड से महाड को जोड़ने वाली थी। खेती और किसानों के हित में अनेक उल्लेखनीय प्रगतिशील योजनाओं को लागू करने वाले छत्रपति शिवाजी महाराज की राजधानी रायगड तथा दलितों के सामाजिक न्याय के लिए पहलेपहल आंदोलन करने वाले डॉ बाबासाहेब आंबेडकर द्वारा चवदार तालाब के पानी को सभी जातियों के मनुष्यों के लिए खुला किया जाने वाले शहर महाड को जोड़ने वाली यह पदयात्रा अंदरूनी गाँवों के आदिवासी, दलित, पिछड़े ग्रामवासियों से प्रेम-संवाद करते हुए, उनकी संस्कृति से परिचित होते हुए की गयी।

महाराष्ट्र जत्थे की सबसे बड़ी विशेषता थी, पदयात्रा में बड़ी संख्या में युवाओं का सम्मिलित होना। इप्टा नाशिक से जुड़े तल्हा शेख के समन्वयन में तथा संविधान प्रचारक चळवळ के साथी नागेश जाधव नेतृत्व में समूची पदयात्रा संपन्न की गयी। इस पदयात्रा में न केवल महाराष्ट्र के अनेक संगठनों के लोग बल्कि उत्तर प्रदेश, झारखण्ड, कर्णाटक, मुंबई से भी अनेक सांस्कृतिक कर्मियों ने सहभागिता निभाई। अनेक लुप्तप्राय लोककलाओं को देखा-रिकॉर्ड किया गया। ऐतिहासिक स्थलों की महत्वपूर्ण जानकारी इकठ्ठा की गयी। स्थानीय लोगों के साथ खानपान, आपसी संवाद, रात्रि विश्राम और सांस्कृतिक आदान-प्रदान किया गया। समूची यात्रा की रिपोर्ट कार्तिक, साक्षी, तल्हा ने उपलब्ध करवाई है तथा फोटो और वीडियो साक्षी, क्रांति, विक्रम, निसार अली द्वारा साझा किये गए हैं।)

23 जनवरी 2024 पाँचवाँ दिन, मंगलवार

‘ढाई आखर प्रेम’ की महाराष्ट्र जत्थे की छह दिनी पदयात्रा के पाँचवें दिन सभी सांस्कृतिक यात्री पीपल्स एजुकेशन सोसाइटी द्वारा संचालित डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर कॉलेज ऑफ आर्ट्स साइंस एंड कॉमर्स, महाड, जिला रायगड में पहुँचे। सुबह कॉलेज परिसर में ‘ढाई आखर प्रेम’ जत्थे की ओर से अनेक कार्यक्रम प्रस्तुत किये गये। आमिर ने ‘आनंदाने नांदत होते हिंदू मुसलमान’ (ख़ुशी-ख़ुशी रहते थे हिन्दू और मुस्लिम) गाने से कार्यक्रम की शुरुआत करते हुए यात्रा का परिचय दिया।

उसके बाद छत्तीसगढ़ के निसार अली ने ‘दमादम मस्त कलंदर’ गाकर दर्शकों का दिल जीत लिया।

इसके साथ ही, ‘हिंदू मुस्लिम एकता’ विषय पर एक फोरम थिएटर नाटक प्रस्तुत किया गया, जिसमें छात्रों ने उत्साहपूर्वक प्रतिक्रिया व्यक्त की और नाटक में सक्रिय भाग लिया। धार्मिक नफरत के स्थान पर एकता की भावना कैसे पैदा की जा सकती है, इस पर विभिन्न समाधान खोजने का प्रयास किया गया ।

निसार अली और नागेश धुर्वे ने छत्तीसगढ़ की नाचा-गम्मत लोक नाट्य शैली और महाराष्ट्र की तमाशा लोक नाट्य शैली को मिलाकर प्रेम के महत्व को दर्शाते नाटक “चालाक शिकारी” की प्रस्तुति की, जिसने दर्शकों का दिल जीत लिया।

कार्यक्रम के अंत में प्रभारी प्राचार्य प्रो. आरती वानखेड़े और प्रो. योगेश बोराले का नागेश जाधव और नेत्राली ने सम्मान किया, जबकि धन्यवाद पत्र कृष्णा ने प्रदान किया । कार्यक्रम का समापन “दोनच राजे इथे गाजले या कोंकण पुण्य भूमी वर’ (यहां कोंकण की भूमि पर दो ही राजाओं ने उल्लेखनीय रूप में राज्य किया है) गीत के गायन के साथ हुआ।

उसी दिन दोपहर बाद “ढाई आखर प्रेम” सांस्कृतिक पदयात्रा गोरेगांव शहर के अंजुमन खैर-उल-इस्लाम कॉलेज ऑफ कॉमर्स आर्ट्स एंड साइंस कॉलेज में पहुँची।

कार्यक्रम की शुरुआत करते हुए आमिर ने “लब पे आती है दुआ बनके तमन्ना मेरी” गाना गाया, वहीं कैवल्य ने “भड़का रहे हैं आग” गीत गाया।

यहाँ भी छत्तीसगढ़ की लोक नाट्य शैली ‘नाचा-गम्मत’ और महाराष्ट्र की तमाशा शैली के सम्मिश्रण से तैयार नाटक ‘चालाक शिकारी’ ने विद्यार्थियों और शिक्षकों का दिल जीत लिया।

पोथी पढ़ि-पढ़ि जग मुवा, पंडित भया न कोय । ढाई आखर प्रेम का, पढ़ै सो पंडित होय ॥

गोरेगांव शहर के ही कुंभारवाड़ा बस्ती में अपने कार्यक्रम की प्रस्तुति के दौरान “ढाई आखर प्रेम” सांस्कृतिक पदयात्रा के सभी पदयात्रियों को यहां की स्नेहमयी शख्सियत समीना उरनकर ने चाय-नाश्ते के लिए अपने घर आमंत्रित किया। उन्होंने कोंकण की पहचान ‘पोपटी’, कोकम का शरबत, अपने हाथों से विशेष रूप से हमारे लिए बनाये गए मीठे ‘रोट’ तथा सेवई पेटभर खिलाई ।

समीना जी एक बहुत ही स्नेही और मिलनसार व्यक्ति हैं। उन्होंने हमारे सामने विवाह के अवसर पर गाए जाने वाले कुछ पारम्परिक गीत प्रस्तुत किये। वे पाक कला में भी बहुत निपुण हैं। ‘ढाई आखर प्रेम’ सांस्कृतिक पदयात्रा के बारे में और अधिक जानने के दौरान उन्होंने बहुत अभिभूत होकर कहा कि, ”समानता, भाईचारे और न्याय का आपका यह अभियान हमें प्रेरित करता रहेगा और जब भी आप लोग हमारे शहर में आएं तो मेरे घर ज़रूर आएं।” सभी पदयात्री उनके आतिथ्य से अभिभूत थे और उन्होंने महसूस किया कि हम सही दिशा में जा रहे हैं। प्रेम ही वह रास्ता है, जिससे मनुष्य परस्पर जुड़ता है।

इसके बाद, गाँव के मुख्य मार्ग पर एक पैदल भ्रमण करते हुए शहर के मुख्य चौराहे पर गीत-गायन और लोक नाट्य का प्रदर्शन किया गया और पुलिस ठाणे के सामने गीत गाकर पाँचवें दिन की यात्रा का समापन किया गया।

24 जनवरी 2024 बुधवार, छठवाँ और अंतिम दिन

24 जनवरी की सुबह-सुबह जनता प्रगतिशील संघ, मुंबई संचालित कामरेड आर. बी मोरे प्रिपरेटरी सेकेंडरी स्कूल दासगांव के छात्रों और शिक्षकों के साथ “ढाई आखर प्रेम” सांस्कृतिक पदयात्रा के प्रतिभागी गांव से प्रभात फेरी निकालते हुए दासगांव बंदरगाह से होते हुए दासगांव नाका तक पहुँचे।

यहाँ दासगांव के डाक बंगले के पास ट्रोफर्ड कुआँ और ऐतिहासिक तालाब के बारे में ऐतिहासिक तथ्यों की जानकारी देते हुए स्मृतियों को ताज़ा करते हुए संस्था के अध्यक्ष मा. शिरीष हाटे एवं उपाध्यक्ष कामरेड सुबोध मोरे ने अनेक बातें साझा कीं । इस अवसर पर महाविद्यालय की ओर से मध्याह्न भोजन की व्यवस्था की गयी थी।

दासगांव की इस यात्रा का समापन आर.बी. मोरे महाविद्यालय के प्रांगण में आयोजकों की ओर से प्राध्यापकों, संस्था के संचालकों द्वारा किया गया।

इस दिन यात्रा में शामिल हुए इप्टा के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रसन्ना, राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष राकेश, राष्ट्रीय सहसचिव अर्पिता, लोकगीतकार शिवा स्वामी। इनका टोपी-उपरणे (टोपी और गमछे) देकर सम्मान किया गया। अंत में आयोजकों को महाराष्ट्र ‘ढाई आखर प्रेम’ जत्थे की ओर से धन्यवाद पत्र प्रदान कर आभार व्यक्त किया गया।

दासगांव से निकलकर यात्री महाड शहर पहुंचे। यहां शिवाजी चौक पर छत्रपति शिवाजी महाराज की प्रतिमा को अभिवादन कर पदयात्रा की शुरुआत की गयी। यात्रा मुख्य बाजार से होते हुए समानता और प्रेम के गीत गाती हुई क्रांति-भूमि पर जा पहुंची, जहां डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर ने अपने सहयोगियों के साथ 25 दिसंबर 1927 को मनुस्मृति का दहन किया था। इस ऐतिहासिक घटना को याद करते हुए यात्रा चवदार तालाब पहुंची।

यहां सबसे पहले बाबा साहेब की मूर्ति को अभिवादन करने के बाद ‘ढाई आखर प्रेम’ महाराष्ट्र जत्थे की पदयात्रा का छोटा-सा अनौपचारिक समापन कार्यक्रम आयोजित किया गया।

इस कार्यक्रम में भारतीय जन नाट्य संघ (इप्टा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रसन्ना, कार्यकारी अध्यक्ष राकेश वेदा, कर्णाटक के लोकगीतकार शिवा स्वामी, इप्टा की राष्ट्रीय सहसचिव और ‘ढाई आखर प्रेम’ महाराष्ट्र की प्रभारी अर्पिता श्रीवास्तव, सर्वहारा जन आंदोलन की उल्का महाजन, कामरेड आर. बी मोरे प्रिपरेटरी सेकेंडरी स्कूल दासगांव के अध्यक्ष शिरीष हाटे, उपाध्यक्ष कामरेड सुबोध मोरे, मिलिंद टिपनिस, राहुल साल्वी, प्रोफेसर एवं प्राचार्य जीवन हाटे विशेष रूप से उपस्थित थे।

‘ढाई आखर प्रेम’ राष्ट्रीय सांस्कृतिक पदयात्रा के महाराष्ट्र जत्थे की छह दिवसीय पदयात्रा का समापन ‘संविधान ओवी’ (ओवी महाराष्ट्र का एक लोकगीत का प्रकार है, जिसे महिलाएँ सुबह जाँते पर अनाज पीसते हुए अपनी मनोभावनाएँ व्यक्त करते हुए गाती हैं। यह संविधान की ‘ओवी’ देशवासियों का संविधान में वर्णित मूल्यों के प्रति विश्वास व्यक्त करते हुए गायी जाती है) के सामूहिक गायन के साथ हुआ।

‘ढाई आखर प्रेम’ राष्ट्रीय सांस्कृतिक पदयात्रा के महाराष्ट्र जत्थे की आयोजन समिति में संविधान प्रचारक लोक चळवळ, संविधान सांस्कृतिक जलसा (औरंगाबाद), नव सांस्कृतिक पर्याय (पुणे), राष्ट्र सेवा दल (इचलकरंजी), ऑल इंडिया स्टूडेंट फेडरेशन, प्रगतिशील लेखक संघ, इंडियन पीपल्स थिएटर एसोसिएशन (इप्टा) सम्मिलित थे। स्थानीय सहभाग था, प्राइड इंडिया, इकोनेट फाउंडेशन, साने गुरूजी राष्ट्रीय स्मारक (माणगांव), सर्वहारा जान आंदोलन, कोंकण मराठी साहित्य परिषद, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, आर बी मोरे प्रगतिशील संघ (दासगांव) का।

19 से 24 जनवरी 2024 तक लगातार पदयात्रा में भाग लेने वाले साथी थे – छत्तीसगढ़ से निसार अली, श्रीकांत पाठक, उत्तर प्रदेश से डॉ विजय शर्मा, महाराष्ट्र से अभिजीत बांगर, आमिर काज़ी, अनैशा, केतन चव्हाण, कृष्णा कांगणे, नागेश धुर्वे, नागेश जाधव, प्राजक्ता कापडणे, प्रियपाल दशांती, साक्षी काकडे, संकेत सीमा विश्वास, रखमाजी गायकवाड, डॉ सोनाली ठक्कर, सुमित प्रतिभा संजय, विक्रम सोनवणे, फरीद खान, कार्तिक कदम, प्रसाद गोरे, अंजली, विराज देवांग, कैवल्य चंद्रात्रे, अमन गाड़े, ऋतुराज शिंदे, नेत्राली शारदा यशवंत, चेतन सुशीर, मुक्ता, तल्हा, मयूर चव्हाण, रोहित शिंदे, हेरंब माळी, आकाश सुनके, सुजित जाधव, शिवकुमार हेगणे, पार्थ हेगाने, ऋषिकेश मोळके, धनश्री तनंगे, सोनाली शिंदे। इसी तरह एक-दो दिन के लिए यात्रा में सम्मिलित होने वाले यात्री थे – प्रसन्ना (कर्णाटक), राकेश वेदा (उत्तर प्रदेश), अर्पिता श्रीवास्तव (झारखण्ड), मुंबई से चारुल जोशी, निवेदिता बौंठियाल, विकास यादव, विकास रावत, उल्का महाजन, सुबोध मोरे तथा अन्य स्थानीय निवासी।

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