(‘ढाई आखर प्रेम’ की सांस्कृतिक यात्रा 22 से 27 दिसंबर 2023 तक मध्य प्रदेश में संपन्न हुई। पिछली कड़ी में 22 और 23 दिसंबर की यात्रा का विवरण पढ़ा। इस कड़ी में प्रस्तुत है दि. 24 और 25 दिसंबर का विवरण। दो दिन की ये यात्रा समर्पित रही नर्मदा सरोवर बाँध के डूब से प्रभावित क्षेत्र को जानने-समझने में। यात्रियों ने अनेक गाँवों का दौरा किया, अनेक डूब प्रभावित लोगों से मिले तथा नर्मदा बचाओ आंदोलन के कार्यालय जाकर वहाँ के साथियों से भी मिले। सबने मिलकर गीत-संगीत के माध्यम से, बातचीत के माध्यम से एकजुटता महसूस की। दोनों दिन की रिपोर्ट हरनाम सिंह की लेखनी से प्राप्त हुई है तथा फोटो व वीडियो दिनेश बसेर, निसार अली, सीमा राजोरिया के सौजन्य से साझा किये जा रहे हैं।)
24 दिसंबर 2023 रविवार
“ढाई आखर प्रेम” यात्रा के तीसरे दिन का प्रारंभ गांधी जी के समाधि स्थल राजघाट पर पुष्पांजलि अर्पित करने के साथ हुआ। वहां नर्मदा बचाओ आंदोलन के श्री मुकेश भगोरिया ने बताया कि सरकार द्वारा किस तरह से नर्मदा तट पर स्थित गांधी जी की समाधि को बुलडोजर के माध्यम से हटाकर अपमानित किया गया।
मुकेश जी के अनुसार नर्मदा तट पर कस्तूरबा गांधी, महात्मा गांधी एवं उनके सचिव महादेव भाई देसाई के अस्थि कलश समाधि में रखे गए थे। 27 जुलाई 2017 को सरकार ने जबरन समाधि को उखाड़ दिया। ग्रामवासियों एवं नर्मदा बचाओ आंदोलन के प्रतिरोध के चलते नए समाधि स्थल का निर्माण राजघाट के नाम से किया गया है। उन्होंने बताया कि नर्मदा बचाओ आंदोलन विगत 38 वर्षों से जारी है। नर्मदा परियोजना में डूबे गांवों के हजारों परिवार अब भी पर्याप्त मुआवजे का इंतजार कर रहे हैं और सरकार द्वारा बसाए गए नये गांव में अमानवीय परिस्थितियों में जीवन यापन करने पर विवश हैं ।
राजघाट पर मंदसौर के साथियों ने गांधी जी के प्रिय भजन “रघुपति राघव राजा राम” का गायन किया। अशोक नगर के कलाकारों ने “ढाई आखर प्रेम के पढ़ ले जरा, दोस्ती का एतराम कर ले जरा” की प्रस्तुति दी। मुकेश जी ने नर्मदा बचाओ आंदोलन की अगुवा मेधा पाटकर द्वारा रचित गीत
”कहां राम है, क्या रहीम है/ यह प्रकृति जीवन मेरा/ मेरी ही नदी, यह जमीन और जंगल मेरा/ मैं मानता इंसान को,/ मैं मानता ईमान को/ समता ही मेरा विचार है/ और स्वावलंबन से प्यार है/ मैं आदिवासी दलित हूं/ मैं शोषितों के साथ हूं/ हर गरीब में सांस हूं/ संघर्षों से निर्मित हूं/ सहना नहीं अन्याय को/ हिंसा लूट विनाश को/ मेरा बल उनका भी हो/ जो दुर्बलों का आधार है/ मैं कौन हूं, तुम कौन हो/ हम तुम मिले जीते रहे/ विकास की सही सोच हो/ उसमें ही राम रहीम हो” का गायन किया।
तत्पश्चात निसार अली ने नाचा गम्मत का गीत “प्रेम का बाना बांध लियो बानाजी” गाया। अगला कार्यक्रम बड़वानी शहर के मध्य पुराने कलेक्ट्रेट चौक में हुआ। यहां मुकेश भगोरिया एवं पत्रकार वहीद मंसूरी ने ‘ढाई आखर प्रेम’ यात्रा तथा ‘नर्मदा बचाओ आंदोलन’ के बारे में बताया। विनीत तिवारी ने कहा की बड़वानी “हक हासिल करने वालों” की जमीन है। जिसने विकास की नई परिभाषा दी है। उसी के आधार पर सारी दुनिया में बहस जारी है। विकास केवल भवन, बांध, सड़कें ही नहीं होता, वह व्यक्ति की आकांक्षा पर आधारित होना चाहिए। देश में नफरत के बीज बोए जा रहे हैं। वैश्विक युद्धों और मणिपुर सहित देश के अनेक क्षेत्रों में जाति, धर्म, कबीले के नाम पर हो रही हिंसा और नफरत की आग को बुझाने का काम सांस्कृतिक संगठन कर रहे हैं।
यहां अशोकनगर के साथियों ने कबीर का विख्यात भजन “साधो देखो जग बौराना” तथा ”हर एक घर के लिए” गीत गाए । निसार अली ने भी अपने सुमेरू के साथ हमारे समय के सवालों को हास्य के माध्यम से उठाया। स्थानीय साथी कैलाश ठाकुर ने “जागो जागो निमाड़ की जनता… सीप से मोती बना मोती से निकला नगीना… तथा मां रेवा थारो पानी निर्मल कल कल बहता जाए…” की संगीत मय प्रस्तुति दी।
अगला पड़ाव नर्मदा पर बने बांध से विस्थापितों का मूल गांव जांगरवा था। यहां भोजन पश्चात हुई सार्वजनिक सभा में नर्मदा बचाओ आंदोलन की जुझारू साथी कमला यादव ने बताया कि नर्मदा परियोजना ने क्षेत्र के निवासियों, पशुओं और पर्यावरण को बहुत नुकसान पहुंचाया है। मेधा पाटकर के नेतृत्व में इसके खिलाफ आंदोलन चलाया गया, जिसे कदम- कदम पर सरकार के दमन का सामना करना पड़ा। सरकार विस्थापितों के साथ धोखा कर रही है। लाडली बहनों को प्रचारित कर चुनावी लाभ लिया गया लेकिन सरकार के लिए हम लाडली बहनें नहीं हैं, क्योंकि हम अपना हक मांग रही हैं।
पुनर्स्थापित ग्राम जांगरवा में न सड़के हैं न पीने का पानी। मूल गांव जांगरवा बेहद सुंदर था। नर्मदा बचाओ आंदोलन में पुरुषों के मुकाबले महिलाओं ने बड़ी भूमिका निभाई है। महिलाओं को कमजोर न समझा जाए मेधा जी ने हमें सिखाया है कि “जीना है तो मरना सीखो, कदम-कदम पर लड़ना सीखो।”
ग्राम के युवा सरपंच धर्मेश भाई ने बताया कि गांव में कम लोगों को ही विस्थापन का मुआवजा मिला है। 2019 में भी सरदार सरोवर बांध में पानी भरने के दौरान विस्थापित हुए ग्रामीणों को आज तक मुआवजे के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। मुकेश भगोरिया ने बताया कि मध्य प्रदेश के डूब प्रभावित ग्रामवासियों को गुजरात में जमीनें दी गई हैं, जिसके कारण कई परिवार बंट गए हैं। सरदार सरोवर में पानी भरने से प्रभावित होने वाले गांवों से ग्रामीणों को पुलिस बल के माध्यम से बिना मुआवजा दिये खदेड़ दिया गया। जबरन गांव खाली करवाए गए।
यहां के कार्यक्रम में अशोकनगर के कलाकारों ने सामंतवाद को पराजित कर देने वाले पूंजीवाद के छद्म को उजागर करने वाला गीत “समझो- समझो भाई, ये पूंजी की है भाषा…” तथा कबीर का भजन “पानी विच मीन पियासी …” का गायन किया।
इप्टा इंदौर इकाई के कलाकारों ने “सदाचार का ताबीज” एवं निसार भाई ने अपनी नाट्य प्रस्तुति दी। सभा स्थल पर एकलव्य द्वारा पुस्तक प्रदर्शनी लगाई गई थी जो बच्चों के आकर्षण का केंद्र बनी।
स्थानीय महिलाओं ने ‘श्याम तेरी बंसी पागल कर जाती’ गीत गाया। यहां से जत्थे में शामिल यात्री डूब वाले मूल जांगरवा गांव पहुंचे, जहां नर्मदा का पानी उतर चुका था ग्रामीण अपने घरों में पहुंचकर खेती करने का प्रयास कर रहे थे। उनकी तकलीफों को समझने का प्रयास किया।
25 दिसंबर 2023 सोमवार
‘ढाई आखर प्रेम’ यात्रा के अंतर्गत चौथे दिन यात्रा का प्रारंभ अहिंसक आंदोलन के प्रेरणा केंद्र तथा बड़े बांधों के दुष्प्रभाव पर सारी दुनिया को सजग करने वाले “नर्मदा बचाओ आंदोलन” के कार्यालय में पहुंच कर हुआ।
यहां सादगी और मानवीय गरिमा के इस केंद्र के हर कक्ष में मेधा पाटकर की छाप देखी गई। आंदोलन के प्रमुख मुकेश भगोरिया ने बताया कि जन-सहयोग से बने इस भवन में प्रार्थना कक्ष, प्रशिक्षण कक्ष, कंप्यूटर कक्ष आदि हैं, जिन्हें विख्यात चित्रकार विमल भाई ने सजाया है। भवन के लिए भूमि एक जैन परिवार तथा रेती, लकड़ी सहित अन्य निर्माण सामग्री स्थानीय ग्रामीणों और आदिवासियों ने जुटाई थी। यहां मौजूद विस्थापित आदिवासियों, पीड़ित किसानों के मुकदमों की हजारों फाइलें शासन की बेरुखी बदनियती की अनेक कहानियों को समेटे है।
आंदोलन के इस तीर्थ स्थल से प्रेरित होकर यात्री अपने अगले पड़ाव नर्मदा नगर के उस क्षेत्र में पहुंचे जहां नर्मदा की पंचकोशी परिक्रमा में शामिल तीर्थ यात्री विश्राम कर रहे थे।
बड़ी तादाद में मौजूद यात्रियों को ‘ढाई आखर प्रेम’ यात्रा के बारे में आंदोलन के कार्यकर्ता वहीद मंसूरी ने जानकारी दी। अपने संबोधन में हरनाम सिंह ने सभी यात्रियों की मनोकामनाएं पूरी होने की शुभकामनाएं व्यक्त करते हुए कहा कि हम सभी यात्री चाहते हैं कि समाज और देश में अमन- चैन, भाईचारा, बहानापा बना रहे। हमारे लक्ष्य समान हैं ।
पड़ाव स्थल पर निसार अली सहित अनेक कलाकारों ने अपनी प्रस्तुति दी। विलास बुंबरु ने आदिवासी संघर्ष की पहचान का गीत “गांव छोड़ब नाही, जंगल छोड़ब नाहीं, माय माटी छोड़ब नाहीं, लड़ाई छोड़ब नाहीं ” गाया।
यात्रियों का अगला पड़ाव ग्राम कवठी था यहां यात्रा के कलाकारों के अलावा स्थानीय गायक पन्नालाल पाटीदार, अमर सिंह रावत, मुकेश पाटीदार, धन्नालाल पाटीदार, धर्मेंद्र पनवेल, श्रीराम पाटीदार, मधु वर्मा ने “तेरा जीवन सफल हो जाए रे रेवा मैया…” का गायन किया।
विनीत तिवारी ने “जिंदगी ने एक दिन कहा कि तुम लड़ो, तुम लड़ो, तुम लड़ो…” गीत गाया। जत्थे में शामिल अन्य कलाकारों के अलावा बड़ी तादाद में उपस्थित महिलाओं ने भी भजन गाए।
जन्मदिन की खुशी ले डूबी गांव
प्रधानमंत्री के जन्मदिन पर नर्मदा पूजन के लिए सरदार सरोवर बांध में रोके गए पानी को बिना पूर्व सूचना के छोड़े जाने से श्रेत्र के 193 गांव डूब गए।इन गांवों में बड़ी तेजी से नर्मदा का जल भरने लगा। ग्रामवासी अपने प्राण बचाकर भागने पर विवश हुए। ऐसे ही एक गांव में तबाही का मंजर देखने के लिए ढाई आखर प्रेम का जत्था एकलवारा मूल गांव पहुंचा।
यहां अनेक घर उजड़ चुके हैं। ग्रामीणों की संग्रहित फसल नष्ट हो गई, पशु मारे गए। ग्रामवासी गंगाराम ने बताया कि इस अमानवीयता के चलते पांच लोगों की मौत हो गई। उनकी 200 क्विंटल सोयाबीन नष्ट हो गई। अनेक पशु मारे गए हैं। नर्मदा बचाओ आंदोलन के कार्यकर्ता अधिकारियों से मिले। डिप्टी कलेक्टर ने निरीक्षण किया लेकिन आज तक किसी को मुआवजा नहीं मिला है। सरदार सरोवर बांध परियोजना अंतर्गत वर्षा काल में बांध भरने के दौरान कितने गांव किस लेवल तक डूबेंगे इसका आकलन किया जाता है। देवी सिंह तोमर, जगदीश सिंह मंडलोई ने बताया कि सरकार का 99 प्रतिशत आकलन गलत है।
डूब क्षेत्र में आने वाले घर, गांव में लगाए निशान बेमानी साबित हो चुके हैं। केंद्रीय जल आयोग द्वारा नियुक्त कमेटी के रिपोर्ट फर्जी है। सरकार प्रभावित किसानों को पुनर्वास नीति के तहत मुआवजा बांट रही है जो नुकसान के मुकाबले बेहद कम है। जबकि किसान अधिक मुआवजे की हकदार हैं।
यहां से यात्रा आंदोलन के सक्रिय कार्यकर्ता वकील योगेंद्र सिंह तोमर के आतिथ्य को स्वीकार करते हुए सेमल्दा गांव पहुंची। यहां एकत्र ग्रामीणों को संबोधित करते हुए विनीत तिवारी ने कहा कि नर्मदा बचाओ आंदोलन नर्मदा के साथ मानव को बचाने का काम कर रहा है। हम कलमकार और कलाकार आपके संघर्षों को समर्थन देने के लिए संतों की प्रेम की वाणी को लेकर आए हैं। यहां अन्य कलाकारों के अलावा छत्तीसगढ़ रायपुर से आए नाचा गम्मत शैली के कलाकार निसार अली ने जीवन यदु का गीत “जब तक रोटी के प्रश्नों पर रखा रहेगा भारी पत्थर” गीत गाया।
चौथे दिन के अंतिम पड़ाव धर्मपुरी (यह शहर भी डूबा था) में यात्री बस स्टैंड पर आयोजित सभा में शामिल हुए विनीत तिवारी ने यात्रा की जानकारी देते हुए कहा कि जल, जंगल, जमीन पर कब्जा करने की होड़ लगी है। आम लोगों की सोच को भ्रष्ट किया जा रहा है। पहले यह काम टेलीविजन करता था अब उसमें मोबाइल भी जुड़ गया है। डूब में आने वाले परिवारों की पीड़ा को महसूस किया जाना चाहिए। मंच पर विराजित एडवोकेट दीदार खान और विक्रम वर्मा ने कहा कि विश्व तो मुट्ठी में है। लेकिन समाज में दूरियां बढ़ गई है। यहां भी जत्थे के कलाकारों ने अपनी प्रस्तुति दी। संचालन मुकेश भाई ने किया।