(‘ढाई आखर प्रेम’ राष्ट्रीय सांस्कृतिक यात्रा के तहत विभिन्न राज्यों में उस-उस राज्य के सामाजिक-सांस्कृतिक ताने-बाने को जानने-समझने के लिए एक से सात दिनों की यात्रा की जा रही है। 28 सितम्बर से 02 अक्टूबर 2023 तक राजस्थान में, 03, 04, 05 व 06 अक्टूबर को क्रमशः छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, झारखण्ड और उत्तर प्रदेश में एक-एक दिन, 07 अक्टूबर से 14 अक्टूबर तक बिहार, 27 अक्टूबर से 01 नवम्बर तक पंजाब, 31 अक्टूबर से 03 नवम्बर तक उत्तराखंड, 04 नवम्बर ओडिशा, 18 नवम्बर से 23 नवम्बर तक उत्तर प्रदेश की यात्राओं के बाद 01 से 07 दिसंबर 2023 तक कर्नाटक में यात्रा संपन्न हुई।
कर्नाटक में यात्रा दो हिस्सों में की गयी – पहले हिस्से में बंगलुरु के समुदाय और रागी काना समूहों ने 01 से 03 दिसंबर तक बंगलुरु के विभिन्न हिस्सों में पदयात्रा की, तो दूसरे हिस्से में इप्टा ने अन्य संस्थाओं के साथ मिलकर 02 से 07 दिसंबर 2023 तक दक्षिण कन्नड़ क्षेत्र में सांस्कृतिक यात्रा संपन्न की। इस कड़ी में दक्षिण कन्नड़ क्षेत्र की यात्रा की रिपोर्ट प्रस्तुत है, जिसे अंग्रेज़ी में उपलब्ध कराया है मंगलुरु कर्नाटक के साथी डॉ बी श्रीनिवास कक्किलाया ने। फोटो और वीडियो भी उन्होंने ही भेजे हैं। हिंदी अनुवाद किया है उषा वैरागकर आठले ने।)
‘ढाई आखर प्रेम’ के नारे के तहत राष्ट्रीय सांस्कृतिक जत्थे का कर्नाटक राज्य का चरण 02 दिसम्बर से 07 दिसम्बर 2023 तक सम्पन्न हुआ। इस जत्थे ने दक्षिण कन्नड़ जिले के मुख्यालय मंगलुरु से केरल राज्य के कासरगोड जिले की सीमा पार कर मंजेश्वर तक यात्रा की। इसकी योजना बनाते वक्त जो सोचा गया था, उससे कहीं बेहतर सफलता जत्थे ने प्राप्त की। इसमें राजनीतिक, धार्मिक, सामाजिक आदि सभी स्तरों और वर्गों के लोगों ने उत्साह से भागीदारी की और ‘ढाई आखर प्रेम’ के आदर्श वाक्य का अक्षरशः पालन करते हुए शांतिपूर्ण तरीके से यात्रा पूरी की।
वर्तमान दक्षिण कन्नड़ जिला दक्षिण कैनरा जिले से बना है, जो ब्रिटिश शासन के दौरान मद्रास रेसिडेंसी के अधीन था। यह पयस्विनी नदी से, जो अब केरल राज्य के कासरगोड में है, कुंडापुर तक फैला हुआ है। हालाँकि अब यह उडुपी जिले का एक हिस्सा है, जो कर्नाटक राज्य में दक्षिण कन्नड़ जिले के उत्तर में स्थित है। दक्षिण कैनरा क्षेत्र में आने वाले क्षेत्र हमेशा कन्नड़, तुलु, मलयालम और कोंकणी भाषाओं का संगम और इन भाषाओं को बोलने वाले लोगों की बहुत समृद्ध परम्पराओं, रीति-रिवाज़ों और व्यंजनों के लिए जाने जाते हैं। पूर्ववर्ती दक्षिण कैनरा, जो अब दक्षिण कन्नड़ और उडुपी जिला है, हमेशा ‘बुद्धिमान लोगों का जिला’ होने का गौरव रखता रहा है। स्वतंत्रतापूर्व काल से लेकर आज तक शिक्षा, बैंकिंग, सामाजिक-आर्थिक विकास और औद्योगीकरण में यह क्षेत्र आगे रहा है। इसमें अनेक संस्कृतियों, भाषाओं और समुदायों का समन्वित और सामंजस्यपूर्ण जीवन मिलता है। लेकिन दुख की बात है कि पिछले दो दशकों से इन जिलों में साम्प्रदायिक राजनीति के उदय ने जिलों की छवि खराब कर दी है। ‘नैतिक पुलिसिंग’ की आड़ में युवाओं पर लगातार हमले, अल्पसंख्यकों के खिलाफ नफरत फैलाने और साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण और बढ़ते कट्टरवाद के कारण, सभी प्रकार के पेशेवरों तथा मीडिया के बीच सभी प्रगतिशील और धर्मनिरपेक्ष गतिविधियों की जगह सीमित कर दी है।
इस पृष्ठभूमि पर दक्षिण कन्नड़ जिले में ‘ढाई आखर प्रेम’ सांस्कृतिक जत्था के कर्नाटक चरण को आयोजित करने के निर्णय ने निश्चित रूप से सम्मान के साथ-साथ चिंता की भावना को भी जगाया कि अपने इतिहास की समृद्ध विरासत को ध्यान में रखते हुए उसके प्रति सम्मान जागृत किया जाए। उपर्युक्त कारणों से कार्यकर्ताओं की सिकुड़ती संख्या से हम चिंतित थे, परंतु जत्था का अनुभव बहुत ही संतोषजनक और उत्साहवर्द्धक रहा। हम जिन पर भरोसा करते थे, वे सभी इस अवसर पर साथ-साथ खड़े हुए और सभी का अपेक्षा से ज़्यादा सहयोग मिला। इसलिए जत्था एक बहुत ही सफल, पूर्ण और ऐतिहासिक आयोजन बन सका।
दक्षिण कन्नड़ में जत्थे की परिकल्पना उस समृद्ध इतिहास, विरासत, संस्कृति, रीति-रिवाज़ों, व्यंजनों व सुंदर इलाकों के अनुभवों को शामिल करने के लिए की गई थी, जिसके लिए यह जिला जाना जाता है। अक्क महादेवी महिला विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति और महिलाओं तथा प्रगतिशील मुद्दों की लेखिका, विचारक और कार्यकर्ता डॉ. सबिहा भूमिगौड़ा की अध्यक्षता में एक स्वागत समिति का गठन किया गया। समिति में लगभग 45 बुद्धिजीवी, शिक्षाविद, विद्वान, लेखक, विचारक, कलाकार और कार्यकर्ता शामिल थे, जिसमें मंगलुरु के चिकित्सक डॉ. श्रीनिवास कक्किलाया को समन्वयक और प्रकाशक, लेखक और कार्यकर्ता नागेश कल्लूर को बतौर सचिव मनोनीत किया गया।
कर्नाटक सांस्कृतिक जत्थे का आदर्श वाक्य ‘ढाई आखर प्रेम’ के साथ स्थानीय देवताओं द्वारा कहे गए शब्द ‘पटाप्पे जोकुलु ओन्जे मेटेल्ड’ को जोड़ा गया, जिसका अनुवाद है – दस माताओं के बच्चो, एक गोद में आ जाओ। यह एक प्रकार से सभी धर्म-सम्प्रदायों और भाषाओं के सभी लोगों को एकजुट करने और उनकी रक्षा करने के लिए देवताओं का आवाहन है। यात्रा के चिह्न के लिए स्वागत समिति द्वारा भगत सिंह, महात्मा गांधी और कबीर के साथ-साथ प्रसिद्ध संत, दार्शनिक कवि श्री नारायण गुरु की तस्वीर भी जोड़ी गई, जिन्होंने महात्मा गांधी और रविंद्रनाथ टैगोर को प्रेरित किया था।
यात्रा की योजना बनाते समय रास्ते पर एकल कार्यक्रम विकसित होते गए। स्वागत समिति के सदस्यों ने उत्साहपूर्वक अपने निकट या सम्बद्ध स्थलों पर कार्यक्रम आयोजित करने की जिम्मेदारी ली। स्थानीय और अन्य लोगों की प्रतिक्रिया ऐसी थी कि अंतिम समय तक मेहमानों और वक्ताओं की सूची में बढ़ोतरी होती रही। इन सभी कार्यक्रमों की व्यवस्था और आर्थिक प्रबंधन स्थानीय आयोजकों द्वारा स्वयं किया गया था इसलिए स्वागत समिति को धन जुटाने के लिए कोई अतिरिक्त प्रयास नहीं करना पड़ा और न ही किसी नए बैंक खाते को खोलना पड़ा, न ही किसी अन्य बैंक खाते का उपयोग करना पड़ा। संगीत के कार्यक्रमों के लिए अधिकांश कलाकारों ने बिना किसी शुल्क के स्वेच्छा से कार्यक्रम प्रस्तुत करने की पेशकश की। उनके उपकरणों का खर्च कुछ स्थानीय शुभचिंतकों द्वारा वहन किया गया। इसी तरह स्थानीय आयोजकों द्वारा आवास एवं भोजन की व्यवस्था भी की गई थी।
यात्रा के आयोजन के ई-ब्रोशर पर भी किसी संगठन या स्वागत समिति के नाम का उल्लेख नहीं किया गया था। इस प्रकार यह बिना किसी संगठन या व्यक्ति के नाम पर आयोजित की जाने वाली यात्रा थी, लेकिन अनेक संगठन और व्यक्ति इसमें सहभागी थे। कोई धन-संग्रहण नहीं हुआ, फिर भी कार्यक्रमों पर, आवास व भोजन पर स्थानीय स्तर पर पर्याप्त धन खर्च हुआ। सचमुच, इसमें सहभागी यात्रियों के लिए यह एक बहुत ही यादगार अनुभव बन गया।
प्रथम दिन 02 दिसम्बर 2023, शनिवार
सुबह 09 बजे – श्री कुदमूल रंगा राव मेमोरियल बाबूगुड्डे, मंगलुरु में उद्घाटन :
‘ढाई आखर प्रेम’ राष्ट्रीय सांस्कृतिक जत्थे के कर्नाटक चरण का उद्घाटन ब्रह्म समाज कब्रिस्तान में श्री कुदमूल रंगाराव समाधि स्थल मंगलुरु में सुबह 09 बजे किया गया। श्री कुदमूल रंगाराव (1859-1928), जिन्हें महात्मा गांधी ने अछूतों के उत्थान के लिए एक शिक्षक के रूप में स्वीकार किया था, एक दलितोद्धारक के रूप में भी उन्हें जाना जाता था। उन्होंने सबसे पिछड़े बच्चों के लिए कई स्कूल और छात्रावास खोले थे, उन्हें मध्याह्न भोजन उपलब्ध करवाया था। लड़कियों की शिक्षा तथा विधवा विवाह को प्रोत्साहन देकर सामाजिक सुधारों का बीड़ा भी उठाया था।
उद्घाटन समारोह परिवहन कार्यालय के सेवानिवृत्त अधिकारी, कवि और विद्वान डॉ. मुगलवल्ली केशव धरानी के मुख्य आतिथ्य में सम्पन्न हुआ। बेहतरीन व्यवस्थाओं के साथ जलपान भी आयोजित किया गया था। कार्यक्रम की शुरुआत रंगकर्मी कार्यकर्ता प्रभाकर कपिकाड, श्यामसुंदर राव तथा इप्टा कर्नाटक के राज्य सचिव शण्मुखानंद स्वामी के ‘ढाई आखर प्रेम’ के पाठ से हुई। श्री कुदमूल रंगाराव पर राधा टीचर द्वारा लिखित एक भजन कुदमूल रंगाराव मेमोरियल के देवेन्द्र और किरण द्वारा गाया गया। यात्रा का उद्घाटन प्रसिद्ध रंग निर्देशक तथा इप्टा के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रसन्ना के नेतृत्व में सभी प्रतिभागियों द्वारा श्री कुदमूल रंगाराव की समाधि पर पुष्पांजलि अर्पित कर किया गया।
प्रतिभागियों का स्वागत करते हुए डॉ. केशव धरानी ने ‘ढाई आखर प्रेम’ सांस्कृतिक यात्रा के उद्घाटन के लिए श्री कुदमूल रंगाराव स्मारक को उपयुक्त बताते हुए कहा कि श्री कुदमूल रंगाराव द्वारा आरम्भ किये गये दलित वर्ग मिशन के घर को हिंदू, मुस्लिम तथा ईसाई तीन व्यक्तियों द्वारा एकजुट होकर बनाया गया था। उन्होंने राव की महानता को उनकी समाधि पर अंकित शब्दों में दोहराते हुए बताया, ‘‘मेरी स्कूल में पढ़ने वाले एक दलित लड़के को पब्लिक सर्विस में जाना चाहिए तथा हमारे गाँव की सड़कों पर अपनी कार में घूमना चाहिए। जब उस कार से उड़ती धूल मेरे माथे को छुएगी, तब मैं अपने जीवन को सार्थक समझूँगा।’’ 1911 में जब श्री कुदमूल रंगाराव ने अपने इस सपने की बात की थी, उस समय देश भर में सिर्फ तीन कारें थीं।
इप्टा के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रसन्ना ने श्री कुदमूल रंगाराव को श्रद्धांजलि अर्पित की तथा सभी से अनुरोध किया कि अपने प्राकृतिक परिवेश में शांति और सद्भाव बनाए रखें। अल्वा कॉलेज मुदाबिद्री में कन्नड़ के प्रोफेसर डॉ. वेणुगोपाल शेट्टी ने श्री कुदमूल रंगाराव द्वारा दलितों के उन्नयन के लिए महात्मा गांधी और राजगोपालाचारी के साथ अन्य राष्ट्रनेताओं को प्रेरित करने की बात को रेखांकित किया।
सुबह 10 बजे – बेसल मिशन कंपाउंड बालमट्टा :
यात्रा का अगला पड़ाव मुंगलुरु के बालमट्टा में बेसल मिशन कंपाउंड था। यात्रा का स्वागत कर्नाटक थियेलॉजिकल कॉलेज के डॉ. एच एम वाटसन, कर्मचारियों और छात्रों ने किया। डॉ. वाटसन के वक्तव्य के बाद प्रसन्ना, डॉ. सिद्दानगोड़ा पाटिल और डॉ. सबिहा भूमिगौड़ा के नेतृत्व में सभी यात्रियों ने रेव फर्डिनेड किटेल (1832-1903) की प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित की।
प्रसन्ना ने रेव किटेल के अपार योगदान की चर्चा करते हुए बताया कि किस तरह बेसल मिशन के एक पुजारी के रूप में उन्होंने राज्य भर में घूम-घूमकर लोगों की बातचीत को ध्यान से सुनकर कन्नड़ के हज़ारों शब्द संकलित किये और 1894 में 70000 शब्दों का विशाल कन्नड़-अंग्रेज़ी शब्दकोश प्रकाशित किया। इसे आज भी मील का पत्थर माना जाता है। ‘होसाथु’ मासिक के संपादक कन्नड़ विद्वान, लेखक व कार्यकर्ता डॉ. सिद्दानगोड़ा पाटिल ने रेव किटेल द्वारा नागार्जुन लिखित कन्नड व्याकरण की सबसे कठिन पुस्तक ‘शब्द-मणि-दर्पण’ के अंग्रेज़ी अनुवाद के असाधारण काम का उल्लेख किया। इसके बाद कर्नाटक थियासॉफिकल कॉलेज के छात्रों ने रेव किटेल की प्रशंसा में एक गीत गाया।
बाद में डॉ. सबिहा भूमिगौडा, प्रसन्ना और डॉ. सिद्दानगोड़ा ने रेव हरमन मोगलिंग (1811-1881) की प्रतिमा पर भी पुष्पांजलि अर्पित की। रेव हरमन मोगलिंग 1843 में कन्नड़ भाषा के पहले समाचार पत्र ‘मंगलुरु समाचार’ के प्रकाशक थे। बेसल मिशन प्रेस, मंगलुरु समाचार, किटेल के शब्दकोश और प्रेस में प्रयुक्त अन्य सामग्रियों के अभिलेखागार का सभी यात्रियों ने अवलोकन किया। कॉलेज की ओर से यात्रियों को जलपान कराया गया।
सुबह 9.30 बजे – महिला सभा, बाबासाहेब आंबेडकर सर्कल, बालमट्टा :
अगला पड़ाव था महिला सभा, बाबासाहेब आंबेडकर सर्कल, बालमट्टा में। महिला सभा मंगलुरु की स्थापना 1911 में देशभक्त कर्नाड सदाशिव राव, उनकी पत्नी शांताबाई, कमलादेवी चट्टोपाध्याय की माँ गिरिजाबाई और अन्य लोगों ने महिलाओं की मुक्ति, खासकर बाल विधवाओं और महिलाओं को व्यावसायिक प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए की थी।
तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने महिला सभा को 1.2 एकड़ ज़मीन दान में दी थी, जहाँ की इमारतें इन स्वतंत्रता सेनानियों और सुधारकों के महान कार्यों की गवाही देती हैं। हालाँकि इन दिनों मुंगलुरु की स्मार्ट सिटी परियोजना के कारण यह परिसर अपने अस्तित्व के लिए खतरे में है।
श्रद्धांजलि अर्पित करने के बाद महिला सभा में आर्ट कनारा ट्रस्ट और इंटेक (INTACH) के मंगलुरु चैप्टर के संयोजक राजेन्द्र कडिगे, नेमिराज शेट्टी और सुभाषचंद्र बसु के नेतृत्व में एक विरासत संरक्षण कला कार्यशाला (Heritage Conservation Art Workshop) का आयोजन किया गया। इसमें कलाकार विलसन सूजा, संतोष एंड्राडे, सुजीत के वी और विवेक ए आर ने भाग लिया। जैसे ही यात्री कार्यक्रम स्थल पर पहुँचे, महिला सभा की अध्यक्ष विजयलक्ष्मी राय के नेतृत्व में अन्य सदस्यों तथा एसीटी और इंटेक के सदस्यों ने उनका स्वागत किया। विजयलक्ष्मी ने महिला सभा की स्थापना और आदर्शों के बारे में जानकारी प्रदान की। कमलादेवी चट्टोपाध्याय को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए उन्होंने बताया कि कमलादेवी ने न केवल स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, बल्कि उसे भारतीय हस्तशिल्प और हथकरघा सहित सभी कलाओं के संस्थान के रूप में पुनर्जीवित और मजबूत करने के लिए अथक प्रयास किये। प्रसन्ना ने इन महान लोगों के बलिदान की सराहना करते हुए अनुरोध किया कि उनके द्वारा स्थापित इन संस्थानों को संरक्षित करने के लिए कटिबद्ध रहें।
सुबह 10 बजे – टैगोर पार्क :
मैंगलुरु के माथे पर झिलमिलाने वाला लाइट हाउस मैसूर के सुल्तान हैदर अली (1761-1782) द्वारा बनाया गया था, जिसे उसके बेटे टीपू सुल्तान ने और विकसित किया। अंग्रेज़ों ने इसे एसिटिलिन लैम्प से सुशोभित किया। यहाँ गुरुदेव रविन्द्रनाथ टैगोर भी आए थे, इसलिए उनके जाने के बाद इसे टैगोर पार्क कहा जाने लगा। यह स्वतंत्रता संग्राम का गवाह रहा है, साथ ही मंगलुरु में विभिन्न संघर्षों और श्रमिकों के जुलूसों का आरम्भ-बिंदु रहा है। इसका संचालन अब महात्मा गांधी शांति प्रतिष्ठान द्वारा किया जा रहा है।
यहाँ कार्यक्रम का आयोजन महात्मा गांधी शांति प्रतिष्ठान के सचिव श्री इस्माइल एन तथा अन्य पदाधिकारियों के नेतृत्व में दक्षिण कन्नड़ गांधी विचार वेदिके के सहयोग से किया गया। कर्नाड सदाशिव राव पर लिखी किताब ‘कबीरानाडा कुबेरा’ (कुबेर जो कबीर बन गया) के लेखक एवं विचारक अरविंद चोक्कड़ी ने कर्नाड सदाशिव राव को भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि के एस राव एक बहुत अमीर वकील थे, जो तत्कालीन आधे मंगलुरु को खरीद सकते थे, परंतु उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान अपने देश और देशवासियों को अपना सब कुछ अर्पित कर दिया। उनकी मृत्यु अत्यंत गरीबी में हुई। उन्होंने यह भी याद दिलाया कि यह के एस राव ही थे, जिन्होंने दक्षिण अफ्रीका से लौटे हुए महात्मा गांधी को भारत की स्वतंत्रता के लिए सत्याग्रह जारी रखने के लिए प्रेरित किया था। वे कांग्रेस पार्टी को दक्षिण केनरा में लाने वाले और सत्याग्रह के लिए याचिका पर हस्ताक्षर करने वाले पहले व्यक्ति थे।
इस अवसर पर प्रभाकर शर्मा, सेवानिवृत्त अतिरिक्त उपायुक्त, अन्ना विनयचंद्र, पूर्व एमएलसी, प्रो. सबिहा भूमिगौड़ा, प्रो. शिवराम शेट्टी, प्रो. जेवियर डिसूजा, गांधी शांति प्रतिष्ठान के अध्यक्ष सदानदा शेट्टी, पूर्व उपाध्यक्ष इब्राहिम कोडिजाल, प्रसन्ना सहित कई अन्य लोग उपस्थित थे। कार्यक्रम का समापन महात्मा गांधी और के सदाशिव राव को माल्यार्पण कर किया गया।
सुबह 11.30 बजे – टेम्पल स्क्वायर, कार स्ट्रीट :
इसके बाद सांस्कृतिक जत्था कार स्ट्रीट के टेम्पल स्क्वायर की ओर रवाना हुआ, जहाँ कोंकणी भाषी सारस्वतों के प्रमुख देवता श्री वेंकटरमण का मंदिर स्थित है। यहाँ प्रति वर्ष पारम्परिक कार उत्सव मनाया जाता है। दक्षिण कन्नड़ जिले में कोंकणीभाषी सारस्वत लोगों का एक बड़ा वर्ग है, जिसने स्वतंत्रता संग्राम और राष्ट्र-निर्माण के दौरान बहुत योगदान दिया है। टेम्पल स्क्वायर पर कार्यक्रम की संकल्पना और आयोजन फेडरेशन ऑफ इंडियन एसोसिएशन ऑफ रेशनलिस्ट एसोसिएशन (एफआईआरए) के राष्ट्रीय अध्यक्ष, विचारक और कार्यकर्ता प्रोफेसर नरेन्द्र नायक द्वारा किया गया था। यात्रा का स्वागत करने के बाद उन्होंने सद्भाव और शांतिपूर्ण सहअस्तित्व की आवश्यकता पर ज़ोर दिया। बैनर पर कुदमुल रंगा राव, राधाबाई कुदमुल, कर्नाड सदाशिव राव, उमाबाई कुंडापुरा, कमलादेवी चट्टोपाध्याय, ए शांताराम पै जैसे सुप्रसिद्ध स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों और सुधारकों की तस्वीरें अंकित थीं।
इन सभी ने सबसे पिछड़े समुदायों और महिलाओं की मुक्ति के लिए अथक प्रयास किया था। ए शांताराम पै, एक स्वतंत्रता सेनानी, प्रसिद्ध ट्रेड यूनियन कार्यकर्ता थे, जिन्होंने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान मुंबई में पीसी जोशी के नेतृत्व में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के भूमिगत नेटवर्क के प्रमुख केंद्र में काम किया था। उल्लाल श्रीनिवास माल्या दक्षिण कन्नड़ से संसद के पहले सदस्य थे। उन्हें आधुनिक मंगलुरु के वास्तुकार के रूप में श्रेय दिया जाता है। केनरा शैक्षणिक संस्थान और केनरा बैंक के संस्थापक अम्मेम्बल सुब्बा राव पै की प्रतिमा इस अवसर पर टेम्पल स्क्वायर पर स्थापित की गई थी। आयोजकों और यात्रियों की ओर से मंजुला नायक ने सभी दिग्गजों को श्रद्धांजलि अर्पित की।
125 से अधिक प्रतिभागियों को मुगा उसली (उबले हरे चने, ताजा नारियल, मिर्च के साथ), चने उपकारी (काले चने, कसा हुआ नारियल, मिर्च और मसाले), फोवा चटनी (चावल के टुकड़े, कसा हुआ नारियल), कनंगा चिप्स (शकरकंद वेफर्स) और पनाका (मसालेदार पेय) जैसे शानदार पारंपरिक कोंकणी व्यंजन खिलाए गए।
दोपहर 02 बजे – ढाक्के मछली पकड़ने का यार्ड :
दोपहर का पहला पड़ाव पुराने बंदरगाह पर मछली पकड़ने के यार्ड, मंगलुरु ढाक्के पर था। ढाक्के और मंगलुरु का बंदर (बंदरगाह) क्षेत्र लंबे समय से भाषाओं, समुदायों, संस्कृतियों और कामगारों के सामंजस्यपूर्ण सह-अस्तित्व का प्रतीक है। ‘ढाई आखर प्रेम’ यात्रा के प्रतिभागियों का नेतृत्व इप्टा कर्नाटक के डॉ. सिद्दनगौड़ा पाटिल, साथी सुंदरेश, अमजद, शण्मुखस्वामी और एनएफआईडब्ल्यू कर्नाटक के सचिव भारती प्रशांत, दक्षिण कन्नड़ इप्टा के सुरेश कुमार बंटवाल, करुणाकर मारिपल्ला, सीताराम बेरिंजा, थिमप्पा के साथ अन्य लोगों ने किया। उन्होंने मछुआरों और महिलाओं के साथ बातचीत की और सद्भाव, प्रेम और सह-अस्तित्व के गीत गाए।
शाम 4.30 बजे – श्री गोकर्णनाथेश्वर मंदिर :
इसके बाद यात्रा कुद्रोली में श्री गोकर्णनाथेश्वर मंदिर के लिए रवाना हुई। यह 1912 में निर्मित, संत, सुधारक और कवि श्री नारायण गुरु द्वारा प्रतिष्ठित, इस क्षेत्र के सबसे पुराने मंदिरों में से एक है, जहां श्री नारायण गुरु के सच्चे आदर्शों को व्यवहार में लाया जाता है। यहाँ महिलाएं और विधवाएं भी ‘अर्चक’ के रूप में कार्य करती हैं। मंदिर द्वारा प्रति वर्ष आयोजित प्रसिद्ध मंगलुरु दशहरा के दौरान सभी समुदायों, धर्मों और वर्गों के लोग यहाँ अपनी सेवा प्रदान करते हैं।
मंदिर में ‘ढाई आखर प्रेम’ राष्ट्रीय सांस्कृतिक जत्थे के हिस्से के रूप में, कर्नाटक के प्रसिद्ध गायक इम्तियाज सुल्तान द्वारा भक्ति संगीत का एक कार्यक्रम एक शुभचिंतक दानकर्ता की मदद से आयोजित किया गया था। भक्ति संगीत ने उपस्थित दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया और इप्टा के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रसन्ना इसमें पूरी तरह से डूबे हुए नजर आये। मंदिर प्रबंधन ट्रस्ट के प्रमुख सदस्य पद्मराज ने प्रतिभागियों का स्वागत किया और बाद में कलाकारों को सम्मानित किया। इस आयोजन में इप्टा के प्रेमनाथ एवं जगत पाल ने सहयोग किया।
शाम 5.30 बजे – सुल्तान बाथेरी :
यात्रा शाम को सुल्तान बाथेरी पहुँची। 1784 में टीपू सुल्तान द्वारा निर्मित यह वॉच टावर, अरब सागर के साथ नेत्रावती और गुरुपुर नदियों के संगम पर खड़ा है, जो ताकत, साहस और संस्कृतियों तथा परंपराओं के सामंजस्यपूर्ण संगम का प्रमाण है। सुल्तान बाथेरी में कार्यक्रम का आयोजन करावली लेखाकियारा वाचकियारा (लेखक और पाठक) संघ द्वारा मोगावीरा महासभा व बोलार (मछुआरे संघ) के सहयोग से किया गया था।
जत्थे का स्वागत करावली लेखाकियारा वाचकियारा संघ और मोगावीरा महासभा के पदाधिकारियों और सदस्यों ने ज्योति चेल्यारू और मोगावीरा महासभा के अध्यक्ष यशवन्त मेंडन के नेतृत्व में किया। डॉ. शैला यू ने उल्लाल की रानी (1525-1570) रानी अब्बक्का को श्रद्धांजलि अर्पित की, जिन्होंने लोगों को एकजुट करने का काम किया था और बहादुरी से लड़ते हुए पुर्तगाली आक्रमणकारियों को हरा दिया था। फेल्सी लोबो और विलिता लोबो ने कोंकणी कविता गाई और रत्नावती बैकाडी ने तुलु गीत प्रस्तुत किए।
यशवन्त मेंडन ने मछुआरों की जीवन शैली और धार्मिक विभाजन से परे श्रमिक वर्ग के सामंजस्यपूर्ण सह-अस्तित्व, संघर्ष और श्रम के बारे में बताया। प्रसन्ना और डॉ. सबिहा भूमिगौड़ा ने भी इस अवसर पर बात की। कलाकार प्रदीप ने आयोजन-स्थल को सजाकर सुपारी के पत्तों में तख्तियां तैयार की थीं। मोगावीरा महासभा के सहयोग से जगदीश बोलर ने इस आयोजन की व्यवस्था की थी।
शाम 6.30 बजे – तन्नीरभावी समुद्र तट :
सुल्तान बाथरी में कार्यक्रम के बाद, जत्था के प्रतिभागी मोगावीरा महासभा द्वारा प्रदान की गई नावों पर सवार होकर नेत्रावती नदी के पार तन्नीरभावी समुद्र तट पर पहुंचे, जहां हुसैन कटिपल्ला और यूएच खालिद उजिरे के नेतृत्व में करावली ब्यारी आर्टिस्ट एसोसिएशन द्वारा प्रसिद्ध गायक मुहम्मद इकबाल कटियाप्पल्ला के सहयोग से सूर्यास्त के समय एक संगीतमय संध्या का आयोजन किया गया था। इसकी व्यवस्था शुभचिंतकों द्वारा की गई थी।
इस आयोजन में मंगलुरु के सहायक पुलिस आयुक्त (अपराध, कानून और व्यवस्था) श्री महेश कुमार मुख्य अतिथि थे। उन्होंने जत्था और उसके आदर्शों की सराहना करते हुए एकता, भाईचारे और शांति को मजबूत करने का आह्वान किया और इन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए और अधिक कार्यक्रम आयोजित करने का सुझाव दिया। प्रसन्ना, डॉ. सिदानगौड़ा पाटिल, डॉ. सबीहा भूमिगौड़ा, ब्यारी वेलफेयर फोरम, अबू धाबी के अध्यक्ष मोहम्मद अली उचिल, डॉ. जाकिर यूसुफ हुसैन, अयाज कैकम्बा, बशीर बायकम्पाडी, पूर्व उप महापौर, केपी पणिक्कर, पूर्व नगरसेवक ने इस अवसर की शोभा बढ़ाई और भाषण दिया। गणेश, रोनी क्रस्टा, रिशाल क्रस्टा, मुहम्मद इकबाल, अशफाक कटिपल्ला, फैज कटिपल्ला, खालिद, मनोहर, अज़हर दाजिन ने कन्नड़, तुलु, कोंकणी, बयारी, मलयालम और हिंदी में सद्भाव के गीत गाए। कार्यक्रम का संचालन प्रसिद्ध कलाकार समद कटिपल्ला ने किया। यह 3 घंटे का यादगार कार्यक्रम मंगलुरु में यात्रा के बहुत ही शानदार पहले दिन के लिए उपयुक्त समापन था।
दूसरा दिन, 3 दिसंबर 2023 रविवार
सुबह 09 बजे – ब्रह्म बैदरकला गराडी, नागोरी :
यात्रा का दूसरा दिन मंगलुरु के नागोरी में श्री ब्रह्मा बैदरकला गरडी क्षेत्र से शुरू हुआ। इस क्षेत्र में तुलु नाडु क्षेत्र के जुड़वां सांस्कृतिक नायकों, कोटि और चेन्नय्या (1556-1591) को समर्पित एक मंदिर है। परिसर में महात्मा गांधी को समर्पित एक अनोखा मंदिर भी है, जहां उनकी मूर्ति की प्रतिदिन पूजा की जाती है।
कार्यक्रम का आयोजन श्री चितरंजन, श्री किशोर कुमार और श्री हेमन्त कुमार के नेतृत्व में क्षेत्र की प्रबंध समिति द्वारा स्थानीय युवाओं की सक्रिय भागीदारी के साथ किया गया। जत्था में शामिल यात्रियों का प्रबंधन समिति की ओर से भावभीना स्वागत किया गया। यात्रियों के लिए गांधी प्रतिमा के विशेष दर्शन की व्यवस्था की गई थी। मुख्य पुजारी ने मंदिर परिसर और वहां होने वाले अनुष्ठानों के महत्व के बारे में बताया। प्रवीण कुमार और ममता ने गांधी-भजन गाए। थिएटर और मानव अधिकार कार्यकर्ता वाणी पेरियोडी ने गांधी कथा प्रस्तुत की।
सुबह 10 बजे – श्री वैद्यनाथ दैवस्थान कर्मिस्तान :
धान के खेतों से होते हुए जत्था श्री वैद्यनाथ दैवस्थान कर्मिस्तान पहुंचा। रास्ते में प्रतिभागियों द्वारा प्रेम, सद्भाव और देशभक्ति के गीत गाए गए। जेप्पिनमोगारू और कर्मिस्तान ऐसी भूमि है, जहां पचास और साठ के दशक में मजदूरों और किसानों के आंदोलन बहुत प्रसिद्ध थे। रास्ते में लिंगापोआ सुवर्णा, सिम्पसन सोन्स, नारायण मैसूर, मोनप्पा शेट्टी जैसे पुराने नेताओं को श्रद्धांजलि अर्पित की गई। श्री वैद्यनाथ दैवस्थान में कार्यक्रम का आयोजन प्रबंध समिति द्वारा जेप्पिनामोगारू युवक मंडल के श्री प्रभाकर श्रीयान, श्री नागेद्र, नगरसेवक, श्री एमजी हेगड़े, और श्री प्रेमचंद, पूर्व नगरसेवक के सहयोग से किया गया था।
श्री वैद्यनाथ दैवस्थान में मंदिर के बुजुर्ग श्री भुजंगा शेट्टी ने दैवस्थान की परंपराओं को समझाते हुए नाथ संप्रदाय के साथ इसके संबंधों की जानकारी दी। उन्होंने बताया कि अनुष्ठान कृषि-संस्कृति के साथ गहराई से जुड़े हुए हैं और आज भी स्थानीय देवता क्षेत्र में बहुत महत्व रखते हैं। प्रसन्ना ने इस अवसर पर ग्रामीण परंपराओं और श्रम के अंतर्सम्बन्धों को समझाते हुए इन्हें संरक्षित करने पर ज़ोर दिया। साथ ही अधिक सामंजस्यपूर्ण वातावरण के लिए इन स्थानीय रीति-रिवाजों को समझने और उनके साथ मिलकर काम करने की आवश्यकता की याद दिलाई। प्रबंधन समिति द्वारा जलपान की व्यवस्था की गई थी।
उसके बाद जत्थे के प्रतिभागियों ने जेप्पिनामोगारू युवक मंडल के दशकों पुराने कार्यालय का दौरा किया। स्वागत समिति के सदस्य श्री एमजी हेगड़े, जिन्होंने जेप्पिनामोगारू में कार्यक्रम आयोजित करने के लिए स्वेच्छा से काम किया था, ने युवक मंडल के पदाधिकारियों का परिचय दिया और उनकी मदद के लिए धन्यवाद देते हुए क्षेत्र में उनकी गतिविधियों के बारे में संक्षेप में बताया।
सुबह 11.20 बजे – स्वर्गीय श्री जेप्पू रामप्पा स्मारक :
स्वर्गीय श्री जे. रामप्पा एक परोपकारी व्यक्ति थे, जो गरीबों को खाना खिलाते थे और उनकी मदद करते थे। वे शहर में कई धार्मिक और सांस्कृतिक गतिविधियों से जुड़े हुए थे। श्री नागेंद्र और श्री सोनी के नेतृत्व में श्री रामप्पा के परिवार के सदस्यों ने जत्थे का स्वागत किया। श्री सुरेश कुमार और श्री सोनी के मार्गदर्शन में यात्रा के लिए स्मारक को सजाया और संवारा गया था। प्रसन्ना, डॉ. सिद्दानगौड़ा पाटिल और डॉ. सबीहा भूमिगौड़ा के नेतृत्व में यात्रियों ने स्मारक पर पुष्पांजलि अर्पित की। प्रतिभागियों को परिवार के सदस्यों द्वारा स्वर्गीय श्री रामप्पा के पुराने, भव्य, पारंपरिक गाँव के घर में ले जाया गया।
सदन के सामने बोलते हुए, श्री एमजी हेगड़े ने बताया कि कैसे श्री रामप्पा ने हजारों लोगों को बहुत ही उचित मूल्य पर असीमित मात्रा में भोजन खिलाया और इस तरह मेहनतकश लोगों का समर्थन किया। डॉ. उदय कुमार इरवाथुर ने स्मरण करते हुए कताया कि उनके बैच के कई गरीब साथियों को श्री रामप्पा ने उनकी शिक्षा जारी रखने में भी मदद की थी। प्रसन्ना ने रामप्पा जैसे व्यक्तियों के बारे में बताया, जिन्होंने पूरी ईमानदारी से लोगों की सेवा की, फिर भी सरल बने रहे और किसी भी प्रकार के महिमा-मंडन से दूर रहे। यात्रियों को सज्जिगे-बाजिल, जिसे स्थानीय भाषा में ’कंक्रीट’ कहा जाता है, खिलाया गया और चाय पिलाई गई। उपमा और मसालेदार पीटा चावल का यह मिश्रण श्रमिक वर्ग का पारंपरिक नाश्ता है, जो ‘अनेकता में एकता की मजबूती’ का प्रतीक कहा जा सकता है।
दोपहर 12.30 बजे – हर्बर्ट डी सूजा का फार्म :
हर्बर्ट डी सूजा एक प्रगतिशील किसान हैं, जो ईसाई समुदाय के नई फसल के उत्सव के साथ-साथ मंगलुरु और उसके आसपास के विभिन्न मंदिरों में भी त्योहारों के लिए स्वेच्छा से चावल की बालियां प्रदान करते हैं, इसके माध्यम से वे समुदायों के बीच पारंपरिक बंधन और साझा विरासत को बरकरार रख रहे हैं। जत्था प्रतिभागियों ने श्री डिसूजा से बातचीत की और उनकी उदारता की सराहना की।
दोपहर 2.30 बजे – हरेकाला को पार करना :
जत्था काडेकर-जेप्पिनामोगारू में नेत्रावती नदी के तट पर ग्रेगरी डिसूजा द्वारा तैयार की गई नाव में चढ़ गया। इसके लगभग एक किलोमीटर लंबे पुल के नीचे बैनर और तख्तियां थामे, गीत गाते हुए, यात्रियों ने नदी के उस पार मैंग्रोव वाले टापुओं के चारों ओर से गुजरते हुए, दूसरी तरफ हरेकला तक पहुंचने के लिए एक यादगार नाव-यात्रा की।
दोपहर 3.30 बजे – मैमुना डेयरी, हरेकाला :
यात्रियों का मैमुना डेयरी में श्रीमती मैमुना, उनके परिवार के सदस्यों और कर्मचारियों द्वारा गर्मजोशी से स्वागत किया गया। उन्हें शानदार भोजन कराया गया। इसके बाद, श्रीमती मैमुना और बेटी मेर्गिन ने डेयरी की उत्पत्ति और विकास के बारे में बताते हुए कहा कि, उन्होंने किस तरह गरीबी के दौरान बीड़ी बनाकर अपना जीवनयापन किया था!
मैमुना के पति के निधन के बाद, उन्होंने उनके इस सपने को साकार करने के लिए पिछले 4 वर्षों से मेहनत की। मवेशी पालने का उनका सपना कड़ी मेहनत और समर्पण के कारण फार्म का निर्माण कर सका, जिसमें अब 62 गायें हैं। यह ग्रामीण उद्यमिता का एक मॉडल बन गया है, जिससे कई युवाओं के लिए रोजगार पैदा हुआ है। वे अपने मुनाफे का लगभग आधा हिस्सा सामाजिक कार्यों, गरीबों को खाना खिलाने और शिक्षित करने के लिए दान कर रहे हैं। उनकी कोशिश है कि जल्द ही मवेशियों की संख्या 100 तक बढ़ जाए। वे और ज़्यादा ज़रूरतमंदों की मदद के लिए संस्थान स्थापित करने की योजना बना रहे हैं। प्रसन्ना, डॉ. सिद्दानगौड़ा पाटिल, डॉ. सबिहा, अमजद और अन्य प्रतिभागियों ने बातचीत में भाग लिया।
शाम 05 बजे : न्यू पद्पू स्कूल :
हरेकला पंचायत कार्यालय से गुजरने के बाद यात्रियों ने अक्षरा सांता (साहित्य के संत) पद्मश्री हरेकला हजब्बा द्वारा निर्मित न्यू पद्पू स्कूल का दौरा किया। एक अनपढ़ फल विक्रेता होने के बावजूद, श्री हरेकला हजब्बा ने वहां के बच्चों के लिए शिक्षा सुनिश्चित करने के लिए अपने गांव में स्कूल का निर्माण किया। सभी यात्रियों के लिए इस स्कूल का दौरा करना वास्तव में एक समृद्ध अनुभव था। यात्रियों के लिए रात भर ठहरने और भोजन की व्यवस्था नाटेकल के एक शुभचिंतक द्वारा की गई थी।