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झारखण्ड में ‘ढाई आखर प्रेम’ सांस्कृतिक यात्रा का पूर्वरंग और पहला दिन

झारखण्ड में ‘ढाई आखर प्रेम’ सांस्कृतिक यात्रा का पूर्वरंग और पहला दिन

(‘ढाई आखर प्रेम’ राष्ट्रीय सांस्कृतिक पदयात्रा विभिन्न प्रदेशों की बहुरंगी बहुढंगी संस्कृति से रूबरू होते हुए अपने नववें राज्य झारखण्ड में शुरू हो चुकी है। इससे पहले पदयात्रा राजस्थान, बिहार, ओडिशा, पंजाब, उत्तराखंड, जम्मू, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक में सम्बंधित राज्य का चरण पूरा कर चुकी है।

झारखण्ड एक आदिवासीबहुल राज्य होने के कारण यहाँ की पांच दिनी यात्रा के लिए आदिवासी गाँवों से गुज़रने वाला रास्ता चुना गया है। घाटशिला से जमशेदपुर (टाटानगर) तक की जाने वाली यह यात्रा 08 दिसंबर से 13 दिसंबर 2023 तक चलने वाली है। इस यात्रा के बहुत खूबसूरत रंगीन फोटो और वीडियो देखकर एक अनोखा अहसास होता है कि झारखण्ड के साथियों ने कितने ही समुदायों और संगठनों के लोगों को ‘ढाई आखर प्रेम’ अभियान में जोड़कर एक बहुरंगी चादर बना ली है। सांस्कृतिक संगठनों के साथी पदयात्री झारखण्ड के आदिवासी साथियों के साथ मिलकर उनके जीवन-रस को जीने की कोशिश कर रहे हैं।

इस कड़ी में अर्पिता, शेखर मल्लिक द्वारा भेजी गयी तथा शशांक शेखर और द न्यूज़ फ्रेम में छपी टिप्पणियों/रिपोर्ट्स के आधार पर विस्तृत विवरण प्रस्तुत किया गया है। फोटो और वीडियो अर्पिता ने भेजे हैं।)

07 दिसंबर 2023 गुरूवार

झूठ, नफरत और हिंसा के विरुद्ध ‘ढाई आखर प्रेम’ की झारखण्ड राज्य की पदयात्रा लोकप्रिय उपन्यासकार विभूतिभूषण बंदोपाध्याय की कर्मभूमि से 08 दिसंबर को आरम्भ होने की पूर्वसंध्या पर ‘पूर्वरंग’ कार्यक्रम का आयोजन किया गया। ढाई आखर प्रेम पदयात्रा आयोजन समिति द्वारा इस कार्यक्रम का आयोजन घाटशिला स्थित गौरीकुंज के तारादास मंच पर किया गया था। बारिश के बावजूद घाटशिला में साथियों का उत्साह बरकरार रहा।

पूर्वरंग कार्यक्रम की शुरुआत विभूतिभूषण बंदोपाध्याय की प्रतिमा पर माल्यार्पण से हुई। माल्यार्पण साइंस फॉर सोसाइटी झारखण्ड के प्रांतीय अध्यक्ष डॉ अली इमाम खान, महासचिव डॉ डी एन एस आनंद, गौरीकुंज के अध्यक्ष तापस चटर्जी, जनवादी लेखक संघ जमशेदपुर के जिला अध्यक्ष अशोक शुभदर्शी, प्रगतिशील लेखक संघ के शशि कुमार, छत्तीसगढ़ इप्टा के सदस्य निसार अली तथा राष्ट्रीय सचिव शैलेन्द्र कुमार ने सामूहिक रूप से किया।

इस मौके पर डॉ अली इमाम खान कहा कि बराबरी संघर्ष की धरती रही है। इस यात्रा से सन्देश नीचे तक जायेगा। हम ‘हम और वे’ की बाउंड्री को तोड़ेंगे। ये मामला एक-दो-चार का नहीं बल्कि हम सबका है। सभी लोगों के समान हक़ व आज़ादी की बात करेगी हमारी यात्रा।

माल्यार्पण कार्यक्रम के बाद मंच पर उपस्थित कलाकारों ने कार्यक्रम प्रस्तुत किये। सलिल चौधरी द्वारा इप्टा के लिए लिखा गीत “पोथेर एबार नामो साथी” गाया गया, जिसे दाहिगोड़ा में स्थित गौरी कुंज के आसपास रहने वाली किशोरियों और बच्चों ने प्रस्तुत किया। ये कलाकार साथी थे – स्वीटी बारीक, संजना मंडल, रिया मंडल, बबीता प्रधान, शुभाशीष मंडल और नृत्य सिखाया था घाटशिला इप्टा की साथी ज्योति मल्लिक ने।

इसके अलावा ढाई आखर प्रेम गीत, संथाली गीत तथा छत्तीसगढ़ी नाचा शैली में ‘ढाई आखर प्रेम’ नाटक प्रस्तुत किया गया।

इस मौके पर पद्मश्री मधु मंसूरी ने ‘गाँव छोड़ब नाहीं’ गीत की प्रस्तुति के साथ जीवन के लिए प्रेम को आवश्यक बताया। लोकप्रिय कथाकार रणेन्द्र ने कहा कि वर्त्तमान समय में सिर्फ मानव से ही प्रेम नहीं, बल्कि तमाम प्राणी जगत और वनस्पति जगत से प्रेम की आवश्यकता है। तभी हमारा जीवन खुशहाल हो सकता है। प्रगतिशील लेखक संघ के महासचिव मिथिलेश सिंह एवं अन्य साथियों ने भी आयोजन समिति के साथ अपनी एकजुटता जाहिर की।

इस अवसर पर तारादास मंच पर आयोजन समिति द्वारा पद्मश्री मधु मंसूरी हंसमुख, ट्राइबल रिसर्च इंस्टीट्यूट के निदेशक कथाकार रणेन्द्र, चित्रकार भारती, झारखंड प्रलेस के महासचिव मिथिलेश, डॉक्यूमेंट्री फिल्म मेकर बीजू टोप्पो, डॉ अली इमाम खान, डॉ डी एन एस आनंद, अशोक शुभदर्शी को प्रेम और श्रम का प्रतीक गमछा देकर सम्मानित किया गया।

ढाई आखर प्रेम पदयात्रा के पूर्व रंग के रात्रि भोजन के लिए इप्टा घाटशिला के अध्यक्ष गणेश मुर्मू के घर पर लिट्टी चोखा घर की महिला सदस्यों द्वारा बनाकर खिलाया गया।

08 दिसंबर 2023 शुक्रवार

‘ढाई आखर प्रेम’ पदयात्रा की शुरुआत 08 दिसंबर 2023 से हुई। पदयात्रा का आगाज़ मऊभंडार आई सी सी मज़दूर यूनियन ऑफिस के बासुकि मंच से छत्तीसगढ़ के साथी निसार अली की प्रस्तुति के साथ किया गया। पलामू इप्टा के जनगीत के साथ कारवाँ आगे बढ़ा।

कॉम ओमप्रकाश सिंह, बीरेंद्र सिंहदेव, महमूद अली, सुशांत सीट, रवि प्रकाश सिंह, कॉम विक्रम कुमार सहित अनेक लोगों ने यात्रा की शुरुआत में अपनी भागीदारी की और अगले पड़ाव तक साथ चले।

पहला पड़ाव चुनूडीह धरमबहाल में हुआ। ढाई आखर प्रेम का संथाली गीत गाते हुए गणेश मुर्मू :

मुखिया बनाव मुर्मू और माझी मुकेश मुर्मू आदि ने जत्थे के कलाकारों का स्वागत किया। पद्मश्री मधु मंसूरी ने गीत गाया। घाटशिला इप्टा के साथियों के साथ ग्रामीणों ने धमसा-तुमदा बजाकर और लोकगीत के साथ नृत्य प्रदर्शन किया। ग्रामीण भी अगले पड़ाव तक साथ चलकर गए।

यात्रा में प्रगतिशील लेखक संघ झारखण्ड के अध्यक्ष रणेन्द्र, महासचिव मिथिलेश सिंह, पद्मश्री मधु मंसूरी, छत्तीसगढ़ी नाचा के कलाकार निसार अली के नेतृत्व में देवनारायण साहू, जगनू राम, हर्ष सेन, कैमरे के साथ बीजू टोप्पो और डालटनगंज इप्टा के कलाकार गीत-संगीत के साथ चल रहे थे।

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एदेलबेडा गाँव होते हुए जत्था दोपहर को झांपड़ीशोल गाँव में पहुंचा। यहाँ गाँव के माझी पीताम्बर जी के नेतृत्व में ग्रामीणों ने पारम्परिक रूप से स्वागत किया।

मधु मंसूरी ने झारखण्ड के कोरा गाकर सबको झुमा दिया। साथ ही सिंग सिंगराया, सुन्दर हेम्ब्रम, बुधन सोरेन ने सेंदरा गीत सुनाया तथा महिलाओं ने संथाली नृत्य किया। ये झापड़ीशोल गांव के ग्रामीण थे, जिन्होंने यात्रा की आमद और गीत-नृत्य देख स्कूल में पहुँचकर कहा कि हमें भी गीत गाना है। लगभग 50-52 की उम्र के दोनों पुरुष कलाकार साथी तैयार होने लगे – एक केंदरी बजाने के लिए, तो दूसरा साड़ी, नकली नथ और बाल – चोटी लगाकर । उन्हें लेकर अखड़ा आए तो उन्होंने गीत गया। गीत के बाद मधु मंसूरी ने उठकर उनसे बात की और युवाओं में आदिवासी वाद्य यंत्रों के प्रति अरुचि पर चिंता ज़ाहिर की।

घाटशिला इप्टा के कलाकारों ने संथाली गीत ‘बेरेद मेसे हो…’ गाया। गाँव के स्कूल में निसार अली के नाचा दल ने बच्चों के सामने ‘चिड़िया और शिकारी’ की मोहक प्रस्तुति दी।

गाँव के लोक कलाकारों ने पारम्परिक गीत गाए। उर्मिला हांसदा ने सुन्दर गीत सुनाया। गाँव में जत्थे को भोजन कराया गया।

इसके बाद यह पदयात्रा बनकाटी से होते हुए हेंदलजुड़ी पहुँची। यहाँ स्थानीय निवासियों के बीच और उनके साथ सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किये गए। जनगीत की ताल से ताल मिलाता हुआ बच्चा

हेंदलजुड़ी से पदयात्रा कालाझोर पहुँची, जहाँ रात को सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किये गए। रात को खाना खाकर उत्क्रमित मध्य विद्यालय में रात्रि विश्राम किया गया। इसमें स्थानीय निवासी फुदान सोरेन ने वायलिन वादन करते हुए पारम्परिक संथाली गीत प्रस्तुत किया।

साथ ही निसार अली, देवनारायण साहू, जगनू राम ध्रुव तथा हर्ष सेन ने छत्तीसगढ़ी नाचा शैली में नाटक प्रस्तुत किया।

प्रथम दिन की पदयात्रा में पंकज श्रीवास्तव, प्रेम प्रकाश, भोला, संजू, शशि, अनुभव, रवि, स्नेहज मल्लिक, ज्योति मल्लिक, गणेश मुर्मू, शेखर मल्लिक, उर्मिला हांसदा, रामचंद्र मार्डी, डॉ देवदूत सोरेन, शशि कुमार, अंकुर, अर्पिता, उपेंद्र मिश्रा, शैलेन्द्र कुमार, मृदुला मिश्रा, अहमद बद्र, अशोक शुभदर्शी, रणेन्द्र, मिथिलेश, डॉ अली इमाम खान, गीता, मल्लिका, मानव (पवित्रो), अरविन्द अंजुम और राकेश सम्मिलित थे।

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