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झारखण्ड में पदयात्रा का दूसरा दिन नृत्य-गान के साथ

झारखण्ड में पदयात्रा का दूसरा दिन नृत्य-गान के साथ

(झारखण्ड में ‘ढाई आखर प्रेम’ की पदयात्रा 08 दिसंबर से 13 दिसंबर 2023 तक चल रही है। झारखण्ड की पदयात्रा इस मायने में बहुत विशिष्ट है क्योंकि इस यात्रा में न केवल अनेक सांस्कृतिक-सामाजिक संगठनों के साथी शामिल हैं, बल्कि इसमें हरेक पड़ाव के स्थानीय निवासी भी पूरी शिद्दत के साथ शामिल हो रहे हैं। उनके साथ जिस तरह से पदयात्रियों का सांस्कृतिक आदान-प्रदान हो रहा है, भागीदारिता हो रही है, वह प्रेम और वैविध्य के धागों को भी अच्छी तरह एकदूसरे के साथ गूंथने में सहायक है। झारखण्ड राज्य की पदयात्रा इस बात का सबूत है कि राज्य के संस्कृतिकर्मी अपने राज्य के चुने हुए क्षेत्र की संस्कृति से न केवल भलीभाँति परिचित हैं, बल्कि यात्रा के पहले से उनमें आपसी संवाद बना हुआ है। हरेक गाँव के लोगों का पदयात्रियों से सहज रूप से घुलना-मिलना ‘ढाई आखर प्रेम’ अभियान को सार्थक बना रहा है। प्रस्तुत रिपोर्ट , फोटो और वीडियो अर्पिता श्रीवास्तव और शेखर मल्लिक द्वारा भेजे गए हैं।)

09 दिसंबर 2023 शनिवार

‘ढाई आखर प्रेम’ पदयात्रा के दूसरे दिन की यात्रा कालाझोर उत्क्रमित मध्य विद्यालय से सुबह 8:00 बजे प्रारंभ हुई। 9:30 बजे यात्रा राजाबासा पहुँची, जहां दुलाल चन्द्र हांसदा, सिद्धो मुर्मू ने जत्थे का स्वागत किया। इन्हें ‘ढाई आखर प्रेम गमछा’ ओढ़ाकर सम्मानित किया गया। अंग्रेजों के समय में यहां से लगान देने के लिए गाँव का राजा अंग्रेज़ों के पास नहीं जाता था, बल्कि अंग्रेज़ अधिकारी खुद आते थे और कुछ दिन यहांँ रहकर आगे जाते थे इसलिए इस गांव का नाम राजाबासा पड़ा।

पदयात्री राजाबासा की गलियों में गाते-बजाते हुए राजाबासा अखड़ा में पहुँचे, जहाँ सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की शुरुआत जमशेदपुर इप्टा के बाल कलाकारों के द्वारा ‘ढाई आखर प्रेम रे साधो’ गीत से हुई।

इसके बाद छत्तीसगढ़ इप्टा के कलाकारों ने निसार अली के नेतृत्व में ‘ढाई आखर प्रेम’ नामक नाटक पेश किया गया। नाटक के बाद पलामू इप्टा के कलाकारों के द्वारा एकता, समानता और शांति के लिए गीत प्रस्तुत किया गया।

कार्यक्रम के बीच सिद्धराम मुर्मू, दुलाल हादसा, मंगल मुर्मू को प्रेम और श्रम का प्रतीक गमछा भेंटकर सम्मानित किया गया। घाटशिला इप्टा के द्वारा संथाली गीत प्रस्तुत हुए। स्थानीय आदिवासी महिलाओं सोमवारी हेंब्रम , रायमनी टुडू और चंपा मुर्मू ने पारंपरिक संथाली गीत पेश किए। अपने गीत के माध्यम से उन्होंने माता-पिता के प्रति अगाध प्रेम को प्रतिबिंबित करते हुए बताया कि जिन माँ-बाप ने हम लोगों को जन्म दिया, आज जब उनके सेवा का वक्त आया तो वे हम सब को छोड़कर विदा हो गए।

ग्रामीण महिलाओं ने ‘ढाई आखर प्रेम’ यात्रा के पदयात्रियों के साथ उत्साह के साथ नृत्य किया।

कार्यक्रम के अंत में शैलेंद्र कुमार ने ग्रामीणों को संबोधित करते हुए कहा कि आज पूरी दुनिया में हिंसा का माहौल है। सत्ता के लोग आपस में फूट पैदा कर अपने वर्चस्व को बरकरार रखना चाहते हैं। समाज को आज प्रेम की जरूरत है। हम प्रेम का संदेश अपने गीतों में लेकर आए हुए हैं। हमारे गीत प्रेम के गीत हैं, भूख के विरुद्ध भात के गीत हैं। शैलेन्द्र ने आगे कहा कि घृणा सबसे पहले खुद को मारती है फिर दूसरे को मारती है। कार्यक्रम का संचालन शेखर मलिक ने किया।

इस गांव में सभी बांग्ला भाषी मिले। लेकिन आपसी प्रेम के कारण भाषा की कोई समस्या नहीं रही।

दर्जनों संस्कृतिकर्मियों के साथ डॉक्टर अली इमाम खान, डीएस आनंद, भावी पीढ़ी के संपादक ओम प्रकाश सिंह, रायगढ़ से आए रविंद्र चौबे, अहमद बद्र, अंजना, सहेंद्र यात्रा में साथ चल रहे हैं। दूसरे दिन की यात्रा में विशेष रूप से जमशेदपुर इप्टा की बाल टीम आकर्षण का केंद्र रही। बाल टीम में रोशनी, वर्षा, सुजल, करण शामिल थे।

सांस्कृतिक कार्यक्रम के दौरान राजाबासा के ग्रामीणों से बातचीत के क्रम में यह पता चला कि इस गाँव में दो भाषाएँ बोली जाती हैं, पहली संथाली और दूसरी बांग्ला। बांग्ला में उद्घोषणा करते हुए तापस जी,

बातचीत के बाद यात्रा गाते-बजाते वृंदावनपुरी चौक पहुँची वहाँ दो गीतों की प्रस्तुति के बाद एआईएसएफ चाकुलिया के साथी सरकार किस्कू और ज्योति ने ग्रामीणों से बांग्ला में संवाद किया। वहाँ नाश्ता कर और सत्तू पीकर यात्रा आगे बढ़ी।

दोपहर एक बजे यात्रा खडियाडीह पहुँची। खड़ियाडीह गाँव में पहुँचते ही देखा कि एक मैदान में सजी-सजाई कुर्सियाँ लगी हुई थीं। इस मैदान में पदयात्रा में शामिल लोगों का वीणापाणी क्लब के द्वारा स्वागत किया गया। उस मैदान में एक मकान दिखा। वह मकान वीणापाणी क्लब का कार्यालय था। मैदान में वीणापाणी क्लब के द्वारा ‘ढाई आखर प्रेम’ के पदयात्रियों में शामिल कलाकारों का सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किया गया था।

यहाँ निखिल महतो और शिवनाथ सिंह ने पदयात्रियों का स्वागत किया। यहाँ संगीत की शिक्षा प्राप्त कर रही छात्राओं भारती, ममता, झूमा, जानकी ने स्वागत गीत पेश किए। लिटिल इप्टा जमशेदपुर के कलाकारों ने ‘ढाई अक्षर प्रेम’ गीत प्रस्तुत किया और उसके बाद घाटशिला के बाल कलाकारों के साथ मिलकर “डारा डिरी डा” गाया। निसार अली ने अपनी टीम में शामिल देवनारायण साहू, जुगनू राम, हर्ष सेन के साथ ऊर्जावान ‘दमादम मस्त कलंदर’ गीत और नाच पेश किया। गीत की प्रस्तुति के बाद निसार अली के निर्देशन में नाचा थिएटर शैली के माध्यम से ‘चालक शिकारी’ गम्मत का प्रदर्शन किया गया।

साथ ही नाचा गम्मत लोक कला के बारे में गांव वालों को बताया गया । दुलाल चन्द्र हांसदा जी ने स्थान के बारे में बताया। परवेज़ आलम और अली इमाम खान ने भी संबोधित किया। अली इमाम खान ने यात्रा के उद्देश्यों की चर्चा करते हुए कहा कि वर्तमान समय में पूरी दुनिया हिंसा के दौर से गुजर रही है। इस हिंसा के दौर में हमारा जीवन समस्याओं से घिर चुका है। ऐसे में यह यात्रा जरूरी है। शेखर मल्लिक ने बांग्ला में संबोधित कर गांव वालों को यात्रा की जानकारी दी।

कार्यक्रम के अंत में पदयात्रियों के द्वारा प्रभात खबर के पत्रकार मोहम्मद परवेज को प्रेम और श्रम का प्रतीक गमछा भेंट कर सम्मानित किया गया। इस अवसर पर मोहम्मद परवेज ने कहा कि प्रेम के संवाद को गाँव-गाँव तक ले जाने के लिए इस तरह की पहल ज़रूरी है। पद यात्रियों की जितनी भी सराहना की जाए, कम है। इसके बाद मनोरंजन महतो ने बांग्ला भाषा में झूमर प्रस्तुत किया।

सांस्कृतिक कार्यक्रम के समापन के बाद वीणापाणी क्लब के द्वारा पदयात्रा में शामिल लोगों को भोजन कराकर विदा किया गया। बातचीत के बाद यह पता चला कि वीणापाणी क्लब इस गाँव का लगभग 100 वर्ष पुराना क्लब है। इस क्लब में शिवनाथ सिंह अपना पूरा समय देते हैं और बच्चों को शास्त्रीय संगीत सिखाते हैं। शिवनाथ सिंह शास्त्रीय संगीत के शिक्षक तो हैं ही, साथ ही एक किसान भी हैं। शिवनाथ सिंह के साथ निखिल रंजन महतो और गाँव के लोग मिलकर क्लब की देखरेख करते हैं।

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गाते-बजाते हुए ‘ढाई आखर प्रेम’ की यात्रा स्थानीय निवासी तापस जी के निमंत्रण पर खड़ियाडीह गांव से बड़बिल गाँव पहुँची। बड़बिल के हरि मंदिर के पास पदयात्रियों द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित कर ग्रामीणों से संवाद स्थापित किया गया। कार्यक्रम के प्रारंभ में अहमद बद्र ने कहा कि पोथी पढ़कर एटम बम तो बना सकते हैं, लेकिन प्रेम नहीं कर सकते। प्रेम अपने घर और अपने आसपास से शुरू होता है। प्रेम सीखने और सिखाने की ज़रुरत है। प्रेम के बगैर ज्ञान अधूरा होता है। जिस ज्ञान में प्रेम का समावेश होता है वही ज्ञान मानव की सुरक्षा की बात कर सकता है।

ज्योति मल्लिक ने यात्रा के उद्देश्य को बांग्ला में समझाया। ज्योति ने ग्रामीण महिलाओं से भी संवाद किया, उन्होंने भी अपना दुःख-दर्द साझा किया। साथ ही ज्योति ने गाँव वालों को अगले पड़ाव तक साथ चलने का अनुरोध किया, जो उन्होंने मान लिया।

इसके बाद सांस्कृतिक कार्यक्रम में निसार अली के नेतृत्व में ‘अफवाह’ नमक गम्मत प्रस्तुत किया गया। गम्मत के बाद एकता, समानता और शांति के लिए सामूहिक गीत प्रस्तुत किया गया। विकास भगत ने जत्थे को धन्यवाद दिया। पदयात्रियों के द्वारा प्रस्तुत कार्यक्रमों को स्थानीय लोगों ने काफी सराहा और आगे की यात्रा के लिए आर्थिक सहयोग भी प्रदान किया।

इसके बाद ‘ढाई आखर प्रेम’ की यात्रा ने गालूडीह के लिए प्रस्थान किया। यात्रा शाम छह बजे गालूडीह के आंचलिक मैदान में पहुंची, जहाँ सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किया गया। यहाँ लिटिल इप्टा जमशेदपुर के बच्चों ने ‘पढ़के हम तो इंकलाब लाएंगे’ गाकर कार्यक्रम की शुरुआत की। उसके बाद ‘ढाई आखर प्रेम के पढ़ लें ज़रा, दोस्ती का एहतराम कर लें ज़रा’ गीत पेश किया।

नाचा कलाकारों ने भी प्रस्तुति दी। सांस्कृतिक कार्यक्रम की प्रस्तुति के बाद दर्शकों ने आग्रह किया कि आप लोग सुबह भी कार्यक्रम कीजिए। इसके बाद जत्थे ने विश्राम किया।

जत्थे में अर्पिता, प्रशांत श्रीवास्तव, उपेंद्र, शैलेंद्र, भोला, संजू, रवि, शशि, अनुभव, बीजू टोप्पो, डी एन एस आनंद, अहमद्र बद्र, अंजना, वर्षा, सुजल, करण, रौशनी, सयेंद्र, रविंद्र चौबे, अंकुर, शादाब, हीरा मानिकपुरी, डॉ शमीम, मृदुला मिश्रा, प्रो बी एन प्रसाद, प्रभात खबर के प्रतिनिधि परवेज़ आलम, मल्लिका, स्नेहज, गीता, मानव, मनोरंजन महतो, सरकार किस्कू, दुलाल चन्द्र हांसदा, डी डी लोहरा, ज्योति मल्लिक, शेखर मल्लिक आदि शामिल रहे। आज जत्था में बरेली के साथी गार्गी सिंह और अंजना भी जुड़े। बड़ी संख्या में ग्रामीण महिलाएँ , बच्चे-बच्चियाँ और अन्य लोग मौजूद रहे।

आदिवासी समुदायों द्वारा अतिथियों का पारम्परिक तालबद्ध लयदार रंगारंग स्वागत का तरीका अद्भुत है, यह वीडियो झापड़ीशोल गाँव का है, जहाँ कल पदयात्रा पहुँची हुई थी।

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