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ओडिशा के कटक में एक दिवसीय ‘ढाई आखर प्रेम’ पदयात्रा सम्पन्न हुई

ओडिशा के कटक में एक दिवसीय ‘ढाई आखर प्रेम’ पदयात्रा सम्पन्न हुई

(देश के सांस्कृतिक-सामाजिक संगठन राज्य-दर-राज्य ‘ढाई आखर प्रेम’ का सन्देश परस्पर संवाद तथा अपने सांस्कृतिक आदान-प्रदान के माध्यम से देने की मुहिम में लगे हुए हैं। इस परिप्रेक्ष्य में कहीं पढ़ी हुई एक लोक कथा याद आ रही है। एक बार एक जंगल में आग लग गयी। सभी पशु-पक्षी अपने-अपने तरीके से आग बुझाने की जी-जान से कोशिश कर रहे थे। एक नन्हीं-सी चिड़िया भी अपनी नन्हीं-सी चोंच में पानी भर-भरकर आग बुझाने में लगी हुई थी। पास ही एक आदमी इन जीव-जन्तुओं की कोशिश देख रहा था। उससे रहा नहीं गया, उसने चिड़िया से पूछा, ‘तेरी इतनी छोटी-सी चोंच में कितना तो पानी आता होगा, इससे इतनी बड़ी आग कैसे बुझ पायेगी?’ चिड़िया मुस्कुरायी और उसने कहा, ‘मुझे नहीं पता, आग कैसे और किसने लगायी, मगर इस आग में सब जलकर राख हो जायेगा, यह ज़रूर जानती हूँ। मैं यही कोशिश कर रही हूँ कि मैं आग लगाने की बजाय आग बुझाने वालों के साथ शामिल हूँ और अपनी क्षमता भर आग बुझाने की कोशिश कर रही हूँ। तुम खड़े-खड़े देखते रहो, मैं तो चली पानी लाने।’

आज ‘ढाई आखर प्रेम’ जैसे उपक्रम किसी समय में दूरदर्शन के लिए बनाये गए बहुत प्यारे एनिमेटेड वीडियो गीत ‘एक चिड़िया, अनेक चिड़िया’ की तरह चिड़ियों का एक झुण्ड बनाकर शिकारी के जाल जैसी नफ़रत की चादर को लेकर उड़ जाने की तैयारी में लगे हैं।

इस कड़ी में प्रस्तुत है, ओडिशा की एक दिवसीय पदयात्रा का विवरण। रिपोर्ट भेजी है ओडिशा के साथी सुशांत महापात्रा और छत्तीसगढ़ के साथी मणिमय मुखर्जी ने। फोटो और वीडियो मणिमय मुखर्जी से प्राप्त हुए हैं।)

04 नवम्बर 2023 शनिवार

‘ढाई आखर प्रेम’ राष्ट्रीय सांस्कृतिक पदयात्रा की पाँचवी कड़ी थी उड़ीसा या ओडिशा राज्य। 04 नवम्बर 2023 को कटक शहर में एक दिवसीय पदयात्रा का आयोजन किया गया।

इस यात्रा की विशेषता यह थी कि नौ वर्ष के बच्चे से लेकर 92 वर्षीय वयोवृद्ध इप्टा के पुराने सदस्य (इप्टा के 1957 से सदस्य रहे) श्री विवेकानंद दास न सिर्फ शामिल हुए, वरन पैदल यात्रा कर उन्होंने लोगों के बीच भाईचारे का संदेश भी दिया।

यह यात्रा इसलिए भी ऐतिहासिक थी कि कटक बहुत-सी इतिहास से जुड़ी सुनहरी यादों वाला शहर है। पदयात्रा की शुरुआत जहाँ से हुई वह स्थान गांधीजी का प्रिय स्थान रहा, जिसे स्वराज आश्रम कहा जाता है।

गांधी जी ने कई बार यहाँ आकर स्वराज आंदोलन के लिए लोगों के बीच जन-जागरण किया था। उनकी अनेक यात्राओं के बारे में आश्रम में समूचे विवरण चित्रों सहित प्रदर्शित किये गए हैं।

आश्रम से लगा हुआ एक विशाल मैदान है, जिसमें लाखों की संख्या में लोग गांधी जी को सुना करते थे। यात्रा की शुरुआत वहीं से की गई। इसमें आईएससीओएफ, गांधी शांति प्रतिष्ठान, उत्कल सर्वोदय मंडल तथा उत्कल गांधी मेमोरियल फंड से सहयोग प्राप्त हुआ।

दो वयोवृद्ध साथियों ने बांसुरी की धुन पर ‘सारे जहाँ से अच्छा, हिंदोस्ताँ हमारा’, ‘वैष्णव जन तो तेने कहिये पीर पराई जाने रे’ तथा गांधी जी का प्रिय भजन ‘रघुपति राघव राजा राम’ गाकर शुभारम्भ किया। उसके बाद इप्टा की राष्ट्रीय समिति के सदस्य तथा छत्तीसगढ़ इप्टा के अध्यक्ष मणिमय मुखर्जी ने कहा, विभिन्न लोक कला प्रदर्शनों के माध्यम से एकता, शांति, एकजुटता और मानवता का संदेश फैलाने के लिए देश के अनेक सांस्कृतिक संगठनों के लोग देश भर में 28 सितम्बर 2023 से 30 जनवरी 2024 तक पदयात्रा कर रहे हैं। संगीत, नाटक और लोक कलाओं ने भारतीय संस्कृति को जीवित रखा है। भारतीय संस्कृति हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई जैसे कई धर्मों और समुदायों के संयोजन से समृद्ध है। इसे संरक्षित करना प्रत्येक भारतीय का कर्तव्य है।

पदयात्रा भाषाकोश लेन से होती हुई निमचुड़ी, बालू बाजार, नया सड़क होते हुए अपने अगले पडाव गौरीशंकर राय पार्क पहुँची, जहाँ स्वतंत्रता संग्राम सेनानी एवं ओडिशा के सुप्रसिद्ध साहित्यकार गौरीशंकर राय, जिन्होंने बांग्ला भाषी होने के वावजूद ओडिया भाषा को राजकीय भाषा दिलाने के लिए संघर्ष किया, उनकी प्रतिमा पर माल्यार्पण किया गया।

स्कूली बालिकाओं ने देशभक्ति गीत पर नृत्य प्रस्तुत किया। उसका अगला पड़ाव था, दरघा बाजार स्थित ओडिशा के सबसे लोकप्रिय स्वतंत्रता संग्राम सेनानी गोपबंधु चौधरी स्मारक का, जिन्होंने अंग्रेजी शासन की खि़लाफ़त में आई सी एस की नौकरी छोड़ स्वतंत्रता आंदोलन में अपनेआप को समर्पित कर दिया। उनको श्रद्धासुमन अर्पित कर वहाँ उपस्थित आम जन को ‘ढाई आखर प्रेम’ पदयात्रा के उद्देश्य की जानकारी दी गई। यहाँ से पदयात्रा कदम-ए-रसूल की ओर बढ़ी। यह एक पुरानी मस्जिद है, जिसमें सभी समुदायों की आस्था है।

यहाँ से सांस्कृतिक पदयात्रा का जत्था नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जन्मस्थली पर पहुँचा। वे यहीं पले-बढ़े़ और यहीं उन्होंने मैट्रिक तक की शिक्षा प्राप्त की। सुभाष चंद्र बोस की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर उन्हें याद किया गया। वहाँ परिमोहन आचार्य की प्रतिमा पर भी पुष्पांजलि अर्पित की गई। सोसायटी कार्यालय जाकर उत्कलमणि गोपबंधु और उत्कल गुरुम मधुसूदन की प्रतिमा के सामने श्रद्धांजलि अर्पित की गई। जत्था बारबती किला पहुँचा।

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इसके बाद पदयात्रा पहुँची कटक से प्रकाशित होने वाले ऐतिहासिक ‘समाज अखबार’ के कार्यालय में। यह वही जगह है, जहाँ से स्वतंत्रता संग्राम के दौरान ऐसा अखबार निकलता रहा, जो लोगों को जागरूक करता रहा। गांधीजी भी इस कार्यालय आये थे। आज भी वहाँ ‘समाज अखबार’ का कार्यालय है, जिसका सारा मुनाफा आमजन की सहायता के लिए खर्च किया जाता है और इसका श्रेय पूरी तरह स्वतंत्रता संग्राम सेनानी गोपबंधु चौधरी को जाता है, जिन्होंने इसकी स्थापना की थी। उनकी प्रतिमा पर माल्यार्पण कर वहाँ सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किया गया।

यात्रा के अंतिम पड़ाव में यात्रा पहुँच ऐतिहासिक वारावटी फोर्ट में, जो मुगलों और अंग्रेज़ी शासन की कई यादों को समेटे हुए है। वहाँ इस्कस के वयोवृद्ध साथी ने बांसुरी पर गांधीजी का प्रिय भजन ‘वैष्णव जन तो तेने कहिये’ तथा रामधुन बजाकर कार्यक्रम की शुरुआत की।

फिर बच्चों द्वारा देशभक्ति और लोक धुन पर नृत्य प्रस्तुत किया गया। गांधीजी पर एक नाटिका भी प्रस्तुत की गई।

अंत में ‘ढाई आखर प्रेम’ राष्ट्रीय सांस्कृतिक पदयात्रा के ओडिशा राज्य के संयोजक सुशांत महापात्रा ने देश में चल रही यात्रा की जानकारी के अलावा उसके उद्देश्य की जानकारी भी दी एवं सभी साथियों का, कलाकारों का, पुलिस प्रशासन का, लोकल प्रशासन का, प्रेस के साथियों का, छत्तीसगढ़ से आये राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य मणिमय मुखर्जी का आभार व्यक्त किया। उन्होंने आश्वस्त किया कि, देश की एकता और अखंडता के लिए यह ‘ढाई आखर प्रेम’ की पदयात्रा आने वाले दिनों में ओडिशा के विभिन्न हिस्सों में आयोजित की जाएगी।

इस यात्रा में कटक के मेयर सुभाष सिंह, इप्टा के राज्य महासचिव सुशांत महापात्रा, राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य, इस्कस के विजय पडिहारी, गांधीवादी जस्टिस मनोरंजन मोहंती, डॉक्टर विश्वजीत, जयंत कुमार दास, सीपीआई के राज्य सचिव अभय साहू, एटक नेता किशोर जेना, चितरंजन पात्र, प्रसन्ना बेहरा, बैंक कर्मचारी नेता प्रफुल्ल त्रिपाठी, बिपीन बिहारी पाढ़ी, सुबासचंद्र बोस, भ्रमरबर साहू, अमरेंदु मोहंती, विद्याप्रसन्न महापात्रा, शिक्षक नेता विवेकानंद दास, अशोक ता, इंद्रजीत घोष, अनिमा रे, विश्वजीत सूर्यवंशी, बसंत राउत, डॉ रबिरंजन साहू, सानंद सेठी, सुकांत बारीक, तपन कुमार स्वाई के अलावा यात्रा का नेतृत्व किया था डॉ. शेख कलीमुल्ला, विजय कुमार मोहंती, अख्तर हुसैन, विजय महापात्र, संपोज सामंत राय, विनोद बेहरा, प्रियोब्रत पटनायक मेजर ने। बैंक यूनियन, शिक्षक यूनियन, सभी प्रगतिशील जन संगठन, इस्कस, गांधी शांति प्रतिष्ठान, एप्सो एवं कई नृत्य की संस्थायें साथ रही।

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