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मलयालम फिल्म में नाटक, नाटक में नाटक ‘आट्टम’ (द प्ले)

मलयालम फिल्म में नाटक, नाटक में नाटक ‘आट्टम’ (द प्ले)

2015 में मैंने पहली बार मामी फिल्म फेस्टिवल का नाम सुना था। अनादि और उसके दोस्तों द्वारा रायगढ़ छत्तीसगढ़ में स्थानीय कलाकारों को लेकर बनाई गयी छत्तीसगढ़ी फिल्म ‘मोर मन के भरम’ को इस फेस्टिवल में स्पेशल जूरी अवॉर्ड मिला था। इप्टा रायगढ़ के अनेक साथी, इस फिल्म के कलाकार अपने जीवन की पहली फिल्म की, किसी फिल्म फेस्टिवल में होने वाली स्क्रीनिंग में शामिल होने आये थे। मैं नहीं आयी थी, मगर उस समय अजय ने इस फेस्टिवल में देखी हुई ईरानी फिल्म ‘टैक्सी’ की इतनी तारीफ की थी कि मुझमें भी इस फिल्म फेस्टिवल की फ़िल्में देखने की उत्सुकता जाग गई थी। अपनी शासकीय नौकरी से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेना तय करने के बाद 2017 में हमने मुंबई आकर पूरे आठ दिन तक अनेक देशी-विदेशी फ़िल्में देखीं और फिल्मों की इस ‘दावत’ के प्रति मेरा आकर्षण बढ़ता गया। कोरोना के कारण मामी फिल्म फेस्टिवल पिछले वर्षों नहीं हो पाया। इस वर्ष की तारीखों की ओर मैं टकटकी लगाए हुए थी।

मुंबई में ‘मुंबई एकेडमी ऑफ मूविंग इमेजेस’ (मामी) का फिल्म फेस्टिवल फिल्मप्रेमियों के लिए एक शानदार तोहफा होता है। इस साल यह फेस्टिवल 27 अक्टूबर से 05 नवम्बर 2023 तक अनेक स्थानों में आयोजित था। इसमें अनेक श्रेणियों में अनेक देशों और भारत के अनेक प्रदेशों की चुनी हुई फिक्शन, नॉन फिक्शन, शॉर्ट, डॉक्युमेंटरी आदि अनेक प्रकार की फिल्में प्रदर्शित होती हैं। फिल्मप्रेमी पूरे फेस्टिवल का पंजीयन करते हैं और एक दिन पहले निर्धारित शिड्यूल के अनुसार अगले दिन की अपनी पसंदीदा फिल्मों का सुबह 08 बजे आरक्षण कर लेते हैं। यह सारा खेल 5-10 मिनट में खत्म हो जाता है। फिल्म के प्रदर्शन के पहले आरक्षित पंजीयकों के लिए 60 प्रतिशत सीटें पहले भरी जाती हैं, जो फिल्म के समय से आधे घंटे पहले प्रवेश कर सकते हैं। जो एक दिन पहले आरक्षण करने से चूक जाते हैं, उन्हें काफी पहले से आकर कतार में लगना पड़ता है। कई अवॉर्ड प्राप्त और प्रसिद्ध फिल्मों के लिए बहुत मारामारी मची होती है। यह सारा अनुभव काफी थ्रिलिंग होता है। मेरे जैसे सीनियर सिटिज़न्स उंगलियों पर गिनने लायक ही होते हैं और उनके लिए सबसे पहले प्रवेश की सुविधा मिल जाती है।

बहरहाल, इस वर्ष मैंने लगभग पंद्रह फिल्में देखीं। चूँकि मेरा गहरा संबंध रंगमंच से है इसलिए सबसे पहले ज़िक्र करना चाहती हूँ मलयालम फिल्म ‘आट्टम’ (The Play) की। इस फिल्म ने लॉस एंजेल्स के भारतीय फिल्म फेस्टिवल में ग्रैंड ज्यूरी अवॉर्ड प्राप्त किया है। अन्य कुछ फेस्टिवल्स के अलावा मामी फिल्म फेस्टिवल में इसका साउथ एशियाई प्रीमियर हुआ।

आनंद एकार्शी द्वारा लिखित एवं निर्देशित 140 मिनट की यह फिल्म एक थियेटर ग्रुप ‘अरंगु’ (मंच) के रंगकर्मियों के जेंडर बायस्ड पाखंड, परस्पर प्रतियोगी और षड्यंत्रकारी होने तथा अनेक परस्परसम्बद्ध घटनाओं के उलझते चले जाने की कहानी बयान करती है। फिल्म की शुरुआत होती है गिरीश कर्नाड लिखित नाटक ‘हयवदन’ के देवदत्त और कपिल वाले दृश्य से, जिसमें दोनों के सिर बदल जाने के कारण पद्मिनी तय नहीं कर पाती कि उसे किसका चयन करना चाहिए। इस प्रभावशाली दृश्य के बाद फिल्म में चलने वाले नाटक का तो पर्दा गिर जाता है परंतु इस थियेटर ग्रुप के कलाकारों के चरित्रों की अनेक परतें अनेक दृश्यों के माध्यम से पहले तो उलझती जाती हैं और फिल्म के अंत में इन परतों का यथार्थ सामने आता है।

फिल्म का मुख्य विषय है कि पुरुष का वर्चस्ववादी चरित्र किसतरह प्रगतिशीलता के मुखौटे लगाए रखता है, जो विपरीत स्थितियों में उतर जाते हैं। कोई थियेटर ग्रुप जैसी जगह भी किसी स्त्री कलाकार के लिए कितनी ही मित्रतापूर्ण दिखाई दे, मगर जब उसके साथ एक दुर्घटना घटती है, तो सभी पुरुष धीरे-धीरे उसके खिलाफ खड़े हो जाते हैं। अक्सर लोग हरेक सामने वाले व्यक्ति को ‘जज’ करते हैं और उसके आधार पर व्यवहार करते हैं। जबकि अक्सर इस तरह के ‘जजमेंट’ गलत साबित होते हैं, क्योंकि उनका आधार अक्सर जाति, धर्म, लिंग, उम्र या इसी तरह की विषमताएँ होती हैं। इस तरह के ‘पूर्वाग्रह’ को भी फिल्म जबर्दस्त झटका देती है।

‘हयवदन’ में देवदत्त की भूमिका एक फिल्मी हीरो हरी दो सालों से निभा रहा है, जबकि दस साल से थियेटर ग्रुप के नियमित सदस्य विनय को उसके कारण कपिल की भूमिका निभानी पड़ती है। इससे विनय बहुत नाराज़ रहता है। वह थियेटर के डाइरेक्टर से इस बाबत बात करता है, परंतु डाइरेक्टर उसे समझाता है कि हीरो के आने से उनके ग्रुप को काफी ज़्यादा शो मिलने लगे हैं। विनय का अहंकार इस बात से और आहत हो जाता है। (दूसरी बात यह भी है कि ग्रुप में काम करने वाली एकमात्र अभिनेत्री अंजलि और विनय परस्पर प्यार करते हैं मगर विनय शादीशुदा है और अपनी पत्नी से तलाक लेने वाला है)

कहानी आगे बढ़ती है। फिल्म अभिनेता हरी ग्रुप को सूचना देता है कि उसके दो विदेशी मित्र भी नाटक देखने आएंगे और नाटक उन्हें पसंद आने पर वे ‘बाहर’ शो भी लगवा सकते हैं। नाटक समाप्त होने के बाद विदेशी लोगों द्वारा पूरे थियेटर ग्रुप को अपने रिसॉर्ट में रात बिताने और पार्टी के लिए आमंत्रित किया जाता है। सभी लोग खुशी-खुशी रिसॉर्ट पहुँचते हैं। सभी जमकर शराब पीते हैं। एक अन्य कलाकार की बीवी और बेटी भी ग्रुप के साथ हैं । अंजलि उनके साथ एक कमरे में सोती है। एसी बंद होने के कारण वह खिड़की खुली रखकर सोती है। रात को अढ़ाई बजे उसे अहसास होता है कि किसी ने खिड़की से आकर उसके साथ यौन छेड़छाड़ की है। अपने पुराने ग्रुप के, पुराने साथियों के बीच इस घटना से वह बहुत आहत होती है और सबके उठने से पहले ही घर लौट जाती है।

दो दिनों तक वह किसी से नहीं मिलती। उसके बाद वह विनय को उस रात को हुए अपने बुरे अनुभव के बारे में बताती है। वह बहुत आहत है। विनय उसे उस समय कुछ नहीं कहता, परंतु ग्रुप के सबसे सीनियर और सम्पन्न सदस्य को जाकर घटना की जानकारी देता है और फिल्मी अभिनेता हरि का नाम इससे जोड़ देता है। यह बात छिपा ली जाती है कि अंजलि ने यह बात सीनियर की बजाय विनय को बताई थी। विनय सीनियर को इस बात के लिए पटा लेता है कि सामूहिक निर्णय लेकर हरि को ग्रुप से निकाल दिया जाए। यहीं से शुरु हो जाती है फिल्म में एक बहस और घटनाओं के उठापटक का सिलसिला। सीनियर के घर में घटा यह ड्रामा ‘एक रूका हुआ फैसला’ फिल्म की याद दिलाता है।

सीनियर घटना पर निर्णय लेने के लिए पूरे ग्रुप की मीटिंग बुलाता है। उसमें सिर्फ हरि को नहीं बुलाया जाता क्योंकि वही एकमात्र व्यक्ति ऐसा है, जो ग्रुप में नया है, साथ ही आरोपी वही व्यक्ति है। सब कलाकारों को घटना बताई जाती है और लगभग सभी सहमत हो जाते हैं कि ग्रुप की पुरानी और एकमात्र अभिनेत्री अंजलि के साथ दुर्व्यवहार के लिए हरि को ग्रुप से बाहर कर दिया जाए। एक-दो लोग कुछ संदेहों के कारण असहमत होते हैं इसलिए यह तय किया जाता है कि अंजलि को भी मीटिंग में बुलाकर इस निर्णय से अवगत कराया जाए, ताकि उसका विश्वास अपने ग्रुप के प्रति बना रहे। वे नाटक के डाइरेक्टर के लिए एक पत्र तैयार करते हैं और उनसे रात को मिलकर ग्रुप के सामूहिक निर्णय से उन्हें अवगत करने की योजना बनाते हैं।

विनय को अंजलि को लाने के लिए भेजा जाता है और इस बीच एक बहुत नाटकीय घटना घटती है। जिस हरि को ग्रुप से बाहर निकालने का निर्णय लिया जाने वाला है, वह अचानक सीनियर के घर पहुँचकर सूचना देता है कि उसके विदेशी मित्रों ने नाटक के शो तीन महीने के लिए चार-पाँच देशों में लगवा दिये हैं, साथ ही थियेटर ग्रुप को बहुत आकर्षक मानदेय भी मिलेगा।

इस खबर से अचानक पाँसा पलट जाता है। जैसा कि शौकिया थिएटर ग्रुप में होता है, ग्रुप के सभी कलाकार अपनी आजीविका के रूप में अन्य काम करते हैं तथा शौकिया तौर पर नाटक करते हैं। लगभग सबकी आर्थिक स्थिति ख़राब ही होती है। अतः इस खबर से सभी को बड़ा आर्थिक लाभ और विदेश जाने के अवसर का लालच हो जाता है। वे आननफानन में निर्णय बदल देते हैं। विनय और अंजलि के आने के बाद विनय को अलग ले जाकर विदेश टूर के बारे में बताया जाता है। उसका ईमान भी डोल जाता है। जब सभी लोग अंजलि से बात करने के लिए डाइनिंग टेबल के इर्दगिर्द इकट्ठा होते हैं तो अधिकांश लोगों के सुर बदले होते हैं। वे सीधे अंजलि के साथ हुए दुर्व्यवहार के प्रति अनेक शंकाएँ उपस्थित करते हैं।

अब तक जो कलाकार अंजलि के विश्वास को न टूटने बाबत बात कर रहे थे, वे अचानक अंजलि के शराब पीने, नशे में रहने और उसके कपड़ों पर टिप्पणी करने लगते हैं। विनय के और उसके संबंधों की बात भी उठती है, परंतु विनय अपने शादीशुदा होने की बात कहकर मुकरने लगता है। अंजलि काफी देर तक सभी बारह मर्दों की चर्चाओं को सुनती रहती है, मगर जब सीनियर द्वारा उसके साथ हुए यौन दुर्व्यवहार को ही उसका स्पर्श-भ्रम (Tactile Hallucination) कहता है, तब अंजलि के सब्र का बाँध टूट जाता है। सबके चेहरे के मुखौटे हट जाते हैं। अंजलि ग्रुप को छोड़ने का निर्णय लेती है।

हालाँकि बाद में इस बात की पोल भी खुल जाती है कि हरि द्वारा सीनियर से किसी बात का बदला लेने के लिए उसे बेवकूफ बनाया गया था, पूरे ग्रुप में ही हलचल मच जाती है। पूरी पटकथा बहुस्तरीय है, संवाद आधारित है, अनेक विमर्शों को उठाती है, परन्तु फिल्म का अंत बहुत प्रभावशाली है। अंजलि अपना पृथक थियेटर ग्रुप बना लेती है और अपने इसी अनुभव को नाट्य-प्रस्तुति में ढालकर मंचित करती है। उस नाटक का एक पात्र अंत में अपनेआप की पहचान उजागर करना चाहता है, परंतु अंजलि उसे मना करती है। उसका यह कहना कि, मुझे सबके असली चेहरे दिख चुके हैं और तुम सबके सब एक जैसे ही हो, इसलिए मुझे इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि असली अपराधी कौन था!! पुरुष कलाकारों का समूचा समूह अंजलि को न्याय मिलने के मामले में असंवेदनशील साबित होता है। दर्शकों में उसके पुराने थियेटर ग्रुप के अभिनेता समूची भूतकालिक घटना को घटित होते हुए देखकर चुपचाप एक-एक कर खिसक लेते हैं। फिल्म और फिल्म में प्रस्तुत किये जाने वाले नाटक का अंतिम दृश्य पुरुष वर्चस्ववादी जेंडर बायस्ड समाज को आईना दिखा रहा है।

लगभग पूरी फिल्म संवाद-आधारित है, जो किसी गंभीर मंचीय नाटक की ही याद दिलाती है। लगातार पात्रों के बदलते चरित्र और अप्रत्याशित घटना-क्रम उत्सुकता बनाए रखते हैं। शुरूआती दृश्यों में ‘हयवदन’ के निर्देशक से एक महिला पत्रकार सवाल करती है कि आपका ग्रुप इतना पुराण है, फिर भी इसमें एक ही लड़की क्यों है? साथ ही अधिकांश नाटकों में महिला पत्रों की संख्या क्यों काम होती है? इन सवालों का जवाब फिल्म में अनेक प्रकार से दिया गया है। फिल्म के निर्देशक ने समाज की पुरुष वर्चस्व वाली सामूहिक मानसिकता की एक-एक परत को क्रमशः खोला है। पता चला कि लेखक-निर्देशक आनंद एकार्शी मनोविज्ञान में स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त व्यक्ति हैं। यह फिल्म इस तरह की अनेक घटनाओं की याद दिलाती है, चाहे वह महिला खिलाड़ियों के साथ किया गया यौन दुर्व्यवहार हो या मणिपुर की अनेक शर्मनाक घटनाएँ हों, अभी-अभी सांसद महुआ मोइत्रा को संसद के एथिकल कमिटी में पूछे गए सवाल हों या फिर पुरानी घटी हुई न जाने कितनी ही घटनाएँ क्यों न हों, स्त्रियों के साथ किया जाने वाला दुर्व्यवहार प्रायः अनिर्णित ही रखा जाता है और उन्हें ही दोषी करार देने की पूरी कोशिश की जाती है क्योंकि समूची सामाजिक-सांस्कृतिक-न्यायिक व्यवस्था का नियमन पुरुष-केन्द्रित रहा है। कोई भी, किसी भी क्षेत्र की संस्था या संगठन इस जेंडर वर्चस्व से अछूता नहीं है।

यह फिल्म नाट्य जगत को समझने में भी काफी सहायता करती है। लेखक-निर्देशक इस फिल्म के माध्यम से थियेटर कर्मियों की आर्थिक, सामाजिक और व्यवसायमूलक समस्याओं को भी रेखांकित करता है। कलाकारों की सामाजिक-आर्थिक सुरक्षा, उनके परस्पर आर्थिक संबंध और प्रतियोगिता, कला-जगत के असमान अवसर और ग्लैमर – जैसे अनेक पहलुओं को छोटी-बड़ी चर्चाओं के माध्यम से रोचक परंतु सूक्ष्म रूप से फिल्माया गया है। मोबाइल और ब्लूटुथ जैसे तकनीकी उपकरणों का उपयोग किस तरह मानव-जीवन के अनेक अंतरंग स्तरों को प्रभावित करता है, इसको भी काफी बारीकी के साथ दृश्यों में गूँथा गया है। निर्देशक किसी भी पात्र के चरित्र के प्रति दर्शक को एक राय स्थापित नहीं करने देता। हम अपने आसपास के लोगों के प्रति जो तुरतफुरत ‘जजमेंटल’ हो जाते हैं, उसे यह फिल्म ज़बर्दस्त धक्का देती है। वाकई मनुष्य ऐसा ही तो होता है! वह ‘ब्लैक एण्ड व्हाइट’ नहीं होता, अनेकरंगी होता है।

‘आट्टम’ में प्रमुख भूमिकाएं थीं – अंजलि (ज़रीन शिहाब), विनय (विनय फोर्ट), हरि (कलाभवन शाजान) की और अन्य सहकलाकार थे, नंदिनी गोपालकृष्णन, सुधीर बाबू, अट्टी कुरियन, सनोश मुरलीधरन, सिजिन सिजिश, अजी थिरूवंकुलुम आदि। संगीत है बेसिल सी जे का, सिनेमेटोग्राफी है अनुरुद्ध अनीश की, एडिट की है महेश भुवनेन्द ने।

(सभी फोटो एवं वीडियो गूगल से साभार)

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