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पंजाब में ‘ढाई आखर प्रेम’ पदयात्रा के तीन दिन

पंजाब में ‘ढाई आखर प्रेम’ पदयात्रा के तीन दिन

(‘ढाई आखर प्रेम’ राष्ट्रीय सांस्कृतिक पदयात्रा 28 सितम्बर से 02 अक्टूबर 2023 तक राजस्थान में, 03, 04, 05, 06 अक्टूबर को क्रमशः छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, झारखण्ड तथा उत्तर प्रदेश के एक दिवसीय पदयात्रा के बाद 07 अक्टूबर से 14 अक्टूबर तक बिहार में संपन्न हो चुकी है। अब 27 अक्टूबर से पंजाब में सांस्कृतिक जत्थे का भ्रमण आरम्भ हो चुका है। प्रस्तुत है, पंजाब में 27-28-29 अक्टूबर को संपन्न हो चुकी पदयात्रा की तीन दिनों की रिपोर्ट। इसे तैयार किया है दिल्ली इप्टा के साथी संतोष ने। फोटो एवं वीडियो प्राप्त हुए हैं संतोष एवं छत्तीसगढ़ के साथी निसार अली से।)

27 अक्टूबर, 2023 शुक्रवार

आज पहला दिन है पंजाब में “ढाई आखर प्रेम” राष्ट्रीय सांस्कृतिक जत्था की पदयात्रा का। यात्रा का आगाज़ भगत सिंह के पैतृक गांव में स्थित स्मारक खटकड़कलां से हुआ। इप्टा के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रसन्ना, कार्यकारी अध्यक्ष राकेश वेदा, पंजाब इप्टा के महासचिव इंद्रजीत रूपोवाली, दीपक नाहर के साथ स्मारक खटकडकलां के पास स्थित गुरुद्वारा में ‘गुरू का लंगर’ में चाय-पान करते हुए प्रसन्ना ने अकुशल मजदूरों से बात की, जो नेपाल से आकर यहां दिहाड़ी पर मज़दूरी कर रहे हैं।

भगत सिंह स्मृति स्मारक पर माल्यार्पण के बाद प्रसन्ना और राकेश वेदा ने भगत सिंह के सपनों और उनके विचारों पर बोलते हुए इस बात को रेखांकित किया कि “क्रांति की तलवार विचारों की सान पर तेज़ होती है” वे विचार प्रेम, सद्भावना और एकता के हैं और यही हमारे ‘ढाई आखर प्रेम पदयात्रा’ का उद्देश्य है; यानी भगत सिंह के सपनों का भारत! शहीदों के सपनों का भारत!!

शहीद-ए-आज़म भगत सिंह आदर्श विद्यालय के विद्यार्थी “ढाई आखर प्रेम” पदयात्रा में शामिल हुए, जो राकेश वेदा के द्वारा दिए जा रहे नारों को गर्मजोशी से दुहराते हुए क़रीब दो किलोमीटर की पदयात्रा करते हुए भगत सिंह के पूर्वजों के घर तक आए। यहां से कुछ कदम पर स्थित गुरुद्वारा के प्रांगण में आज़ाद रंगमंच के कलाकर्मी और रंगमंच के साथियों ने भगत सिंह के जेल जीवन पर आधारित एक संगीतमय नाटक की प्रस्तुति दी। उसके बाद देश की वर्तमान सांप्रदायिक, धार्मिक रंजिश पर आधारित एक नुक्कड़ नाटक पेश किया गया, जिसके माध्यम से इस बात का संदेश दिया गया कि हिंदू, मुसलमान, सिख, ईसाई आपस में सभी एक हैं। धार्मिक रंजिशें और सांप्रदायिकता देश के हित में नहीं हैं।

दोआबा कहा जाने वाला यह पूरा इलाका बड़ी-बड़ी पक्की इमारतों का इलाका है, जहां के अधिकतर लोग कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और संयुक्त राज्य अमेरिका में अपनी रोजी-रोटी कमा रहे हैं और यहां के खेतों में बिहार, उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों के मज़दूर दिहाड़ी मजदूरी कर रहे हैं। जत्था के यात्रियों ने जब इन मज़दूरों को खेतों में पराली इकठ्ठा करते हुए देखा तो वे ख़ुद को रोक नहीं पाए और तपती धूप में उनके साथ शामिल होकर उनके कामों में तनिक हाथ बँटाने लगे, क्योंकि ‘श्रमदान’ भी जत्थे का एक अभिन्न हिस्सा है।

श्रमदान के दरमियान राकेश और प्रसन्ना ने जब मजदूरों से बात की तो पता चला कि काम की प्रकृति के आधार पर ये प्रवासी श्रमिक केवल 300-400 रुपये की दैनिक मजदूरी ही पाते हैं और उन्हें हर दिन काम नहीं मिलता। अपने घर से सैकड़ों किलोमीटर दूर वे तपती धूप में पूरा दिन कड़ी मेहनत करते हैं, उनकी यह मेहनत देश के सभी लोगों को भोजन प्रदान करती है, मगर उन्हें एक अच्छा जीवन देश नहीं दे पाता।

एकजुटता के इस काम के बाद पदयात्री गुरुदास गुरुद्वारा पहुंचे, जहाँ एक साथ बैठकर बड़े चाव से लंगर (गुरूद्वारे में परोसा जाने वाला सामुदायिक भोजन) में ‘गुरु दा प्रसाद रोटी-दाल’ खाया। इसके बाद पदयात्रा रवाना हुई गुणाचौर की ओर। यहाँ पर प्रगतिशील लेखक संघ के राष्ट्रीय सचिव विनीत तिवारी ने अपने वक्तव्य में कहा कि प्रेम ही एकमात्र जरिया है द्वेष, ईर्ष्या पर जीत हासिल करने का। गांधी का संदेश है प्रेम, कबीर की विरासत है प्रेम। नानक से लेकर गुरु गोविंद का संदेश है प्रेम।

पहले दिन की यात्रा ख़त्म होने के बाद प्रसन्ना ने युवा कलाकर्मी और रंगमंच के साथियों के साथ जन नाट्य पर बातचीत की। उन्होंने बताया कि हमारा नाटक, कलाकार का रोल वास्तविक होना जरूरी है, एक्ट पहले होना चाहिए, उसके बाद डायलॉग होना चाहिए। सही एक्शन ज़रूरी है। जैसे कि आप जिसके बारे में एक्ट कर रहे हैं, उसका एक्शन पहले होना चाहिए, फिर डायलॉग।

जत्था में शामिल रहे इप्टा के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रसन्ना, कार्यकारी अध्यक्ष राकेश वेदा, प्रलेस के राष्ट्रीय सचिव विनीत तिवारी के अलावा पंजाब इप्टा के अध्यक्ष संजीवन, स्वास्थ्य ठीक न होने के बावजूद पदयात्रा में शामिल हुए। साथ ही महासचिव इंद्रजीत रूपोवली, कैशियर दीपक नहार, डॉ बलकार सिद्धू (चंडीगढ़ इप्टा अध्यक्ष), के एन एस शेखों (इप्टा चंडीगढ़, महासचिव), प्रगतिशील लेखक संघ पंजाब के अध्यक्ष सुरजीत जज (अंतर्राष्ट्रीय तौर पर विख्यात पंजाबी कवि), प्रगतिशील लेखक संघ पंजाब के महासचिव प्रो कुलदीप सिंह दीप (इप्टा पर पीएच डी), देविंदर दमन (थिएटर कलाकार), जसवंत दमन (फिल्म कलाकार), अमन भोगल, डॉ. हरभजन सिंह, परमिंदर सिंह मदाली, सत्यप्रकाश, रंजीत गमानू, बिब्बा कलवंत, रोशन सिंह, रमेश कुमार, कपन वीर सिंह, विवेक सहित कई थिएटर और फिल्म कलाकार शामिल हुए।

28 अक्टूबर 2023 शनिवार

पंजाब में “ढाई आखर प्रेम” राष्ट्रीय सांस्कृतिक पदयात्रा के दूसरे दिन ‘पंजाब दा पराठा’ का लुत्फ़ उठाने के बाद जत्थे के यात्री दस बजे बल्लोवाड़ पहुंचे। ‘ढाई आखर प्रेम’ यात्रा के पहले चरण की याद आ गई जब जत्थे के साथ ‘ढाई आखर प्रेम के पढ़ने और पढ़ाने आए है’ संगीत की मधुर ध्वनि गूंज रही थी। पंजाब में अभी धान की कटनी चल रही है, कटाई के बाद जो समय मिलता है, उस समय ‘झूमर’ का सामूहिक गायन और नृत्य किया जाता है। (यह पुरुषों का ख़ुशी व्यक्त किये जाने सम्बन्धी गीत-नृत्य होता है।) बल्लोवाड़ में इसकी प्रस्तुति आज़ाद कला मंच के साथियों ने दी।

जत्था के उद्देश्य पर आधारित ‘ढाई आखर प्रेम’ नाटक छत्तीसगढ़ी लोक नाट्य नाचा-गम्मत शैली में छत्तीसगढ़ से आये पदयात्री निसार अली, देवनारायण साहू, गंगाराम बघेल और जगनू राम ने जन-संवाद करते हुए प्रस्तुत किया।

धीरे धीरे पदयात्री जत्था के साथ आगे की ओर बढ़ रहे थे। ईख के लहलहाते हुए खेत, धान की कटाई जैसे दृश्यों ने चिलचिलाती धूप का अहसास ही नहीं होने दिया और जत्था बल्लोबाड़ के गुरुद्वारा में पहुंच गया। यहां सभी यात्रियों ने बड़े प्रेम से गुरु का प्रसाद दाल-रोटी खाया और औजला के लिए निकल पड़े। यहां देश में चल रही सांप्रदायिक और धार्मिक नफरत और प्रतिद्वंद्विता पर आधारित एक नुक्कड़ नाटक आज़ाद कला मंच द्वारा प्रस्तुत किया गया।

प्रदर्शन में इस बात पर प्रकाश डाला गया कि धार्मिक झगड़े और सांप्रदायिकता से कभी भी किसी देश का भला नहीं होता। हम सभी भाई-बहन की तरह हैं, चाहे हम किसी भी धर्म को मानते हों। औजला में जत्था पहुंचने से पहले ही बरगद के पेड़ के नीचे बड़ी संख्या में महिलाएं, बच्चे, नौजवान साथी प्रतीक्षा कर रहे थे। अखिल भारतीय प्रगतिशील लेखक संघ के राष्ट्रीय सचिव विनीत तिवारी ने साहिर लुधियानवी की नज़्म प्रस्तुत की। उपस्थित लोगों से संवाद करते हुए कब तीन बज गए, पता ही नहीं चला।

रंग और नस्ल ज़ात और मज़हब जो भी है आदमी से कमतर है,

इस हक़ीक़त को तुम भी मेरी तरह मान जाओ तो कोई बात बने;

नफ़रतों के जहान में हम को प्यार की बस्तियाँ बसानी हैं,

दूर रहना कोई कमाल नहीं पास आओ तो कोई बात बने .

इसके बाद आज़ाद कला मंच के साथियों ने देश में फैल रही सांप्रदायिक व धार्मिक नफरत और प्रतिद्वंद्विता पर आधारित नुक्कड़ नाटक प्रस्तुत किया जिसका मूल संदेश था कि धार्मिक झगड़े और सांप्रदायिकता से कभी भी किसी देश का भला नहीं होता। स्थानीय साथियों ने मोगा से ताल्लुक रखने वाले और लोहार का काम करते हुए अनेक क्रांतिकारी व एकजुटता के गीत रचने वाले महेंद्र साथी के जीवन पर प्रकाश डालते हुए उनकी रचना ‘मशालें लेकर चलना जब तक रात बाक़ी है’ को मूल पंजाबी भाषा में पेश किया।

जत्था अपने अगले पड़ाव फगवाड़ा की ओर बढ़ चला। रास्ते में पड़ने वाले ‘सरहाल मुड़िया’ चौक पर पदयात्रियों ने लोगों से संक्षिप्त संवाद किया और साथी निसार अली ने कारपोरेट लूट को स्पष्ट करने वाला एक गीत ‘दमादम मस्त कलंदर’ प्रस्तुत किया।

कपूरथला जिले के फगवाड़ा शहर में आज़ाद कला मंच का भवन है, जिसमें कलाकार नुक्कड़ नाटक और थिएटर की ट्रेनिंग, रिहर्सल और प्रस्तुति करते हैं । शहर की सडकों से होता हुआ जत्था इस भवन में पहुँचा। यहां पर निसार अली और साथियों द्वारा “जब तक रोटी के प्रश्नों पर रखा रहेगा भारी पत्थर, कोई मत ख़्वाब सजाना तुम” जनगीत की प्रस्तुति की गई । आज़ाद कला मंच ने ‘उस्ताद-जमूरे‘ नाटक की पेशकश की।

भगत सिंह की जीवनी पर आधारित “मैं फेर आवांगा’ नाटक की प्रस्तुति हुई।

इस तरह पंजाब में दूसरे दिन की यात्रा समाप्त हुई।

नाट्य-प्रस्तुतियों के बाद प्रसिद्ध नाट्य निर्देशक एवं इप्टा के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रसन्ना ने स्थानीय कलाकारों की प्रशंसा करते हुए उन्हें हर संभव मदद करने का आश्वासन दिया।

प्रसन्ना ने द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद नए सिरे से शुरू किये गए ‘रिवोल्यूशनरी थिएटर’ के बारे में भी बताया,

पंजाब जत्थे में प्रसन्ना (राष्ट्रीय अध्यक्ष इप्टा), संजीवन सिंह (अध्यक्ष, इप्टा पंजाब), इंद्रजीत रूपोवाली (महासचिव, इप्टा पंजाब), दीपक नाहर, बलकार सिंह सिद्धू (अध्यक्ष, इप्टा चंडीगढ़), के एन एस शेखों (महासचिव, इप्टा चंडीगढ़), विनीत तिवारी (राष्ट्रीय सचिव प्रगतिशील लेखक संघ), संतोष कुमार (दिल्ली इप्टा), छत्तीसगढ़ इप्टा से निसार अली, देवनारायण साहू, गंगाराम बघेल, जगनू राम, देविन्दर दमन (थिएटर कलाकार), जसवन्त दमन (फिल्म कलाकार), जसवन्त खटकर, अमन भोगल, डॉ. हरभजन सिंह, परमिंदर सिंह मदाली, सत्यप्रकाश, रणजीत गमानु, बिब्बा कलवंत, रोशन सिंह, रमेश कुमार, कपन वीर सिंह, विवेक सहित कई थिएटर और फिल्म कलाकार शामिल हुए।

29 अक्टूबर 2023 रविवार

पंजाब में ‘ढाई आखर प्रेम’ राष्ट्रीय सांस्कृतिक जत्थे के तीसरे दिन छत्तीसगढ़ के साथी निसार अली ने अदम गोंडवी की ग़ज़ल सुनाते हुए पदयात्रा की शुरुआत की।

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फगवाड़ा से पदयात्रा पलाही पहुंची। दूर तक लहलहाते धान के खेतों ने यात्रियों का मन मोह लिया। ट्यूबवेल से निकलता हुआ मीठा पानी भूमिगत रास्ते से खेतों को सींच रहा था। स्थानीय लोग यात्री में जुड़ते गए और पलाही में अदम गोंडवी की उपरोक्त ग़ज़ल के अलावा ‘दमादम मस्त कलंदर‘ की प्रस्तुति और संक्षिप्त में ‘ढाई आखर प्रेम’ यात्रा के उद्देश्यों पर जत्थे के यात्री निसार अली ने संवाद किया।

उन्होंने कहा कि “यह यात्रा शांति, प्रेम और सद्भाव का संदेश देती हुई देशभर में चल रही है। प्रेम और सद्भाव की शुरुआत अपने घर, परिवार से होती है, वहां से यह आसपास, जिला-जवार तक पहुंचती है, लोग जुड़ते चले जाते हैं और देश बन जाता है। इस यात्रा में कबीर और नानक के संदेश हैं, गांधी की विरासत है।”

जत्थे का अगला पड़ाव रानीपुर होने वाला था। यात्री चल पड़े। जब यात्री आगे बढ़ रहे थे तो स्थानीय साथियों ने बताया कि रानीपुर में क़रीब पांच गुरुद्वारे हैं और यहां का लगभग हर स्थानीय दुकानदार रस्क बनाता है। संवाद का यह सिलसिला चल ही रहा था, तब तक रानीपुर चौक आ गया। वृक्षों की छांव में संवाद जारी रखने से पहले इप्टा के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रसन्ना ने श्रमदान शुरू कर दिया और देखते ही देखते सभी स्थानीय लोगों ने जत्थे का हिस्सा बनते हुए श्रमदान करना शुरू कर दिया।

रानीपुर में श्रमदान के बाद पेड़ों की छांव में कुछ नज़्मों और कुछ कविताओं का पाठ निसार अली और विनीत तिवारी ने किया जिसमें फ़ैज़ की नज़्म “ऐ ख़ाकनशीनों उठ बैठो वो वक़्त क़रीब आ पहुंचा है”, अदम गोंडवी की ग़ज़ल और कबीर के दोहे शामिल थे जिन्हें सभी ने साथ मिलकर गुनगुनाया।

क़रीब दो बजने को थे और कुछ दूरी पर गुरु हरगोविंद का रामसर गुरुद्वारा था। इस गुरुद्वारे के बारे में कहा जाता है कि यहां छठवें गुरु, गुरु हरगोविंद सहित आठवें एवं नौवें गुरु भी आए थे। स्थानीय यात्रियों के साथ जत्था गुरुद्वारा पहुंचा और बड़े उत्साह के साथ गुरु दा प्रसाद – लंगर (गुरुद्वारों में परोसा जाने वाला एक सामुदायिक भोजन) खाया।

जत्थे के साथी खटकड़कलां पहुंचे। शहीद भगत सिंह नगर जिले में स्थित खटकड़कलां को भगत सिंह का पैतृक गांव कहा जाता है जहां जत्थे के साथी भगत सिंह के घर और उनकी सहेजी हुई विरासत से रूबरू हुए।

पैतृक गांव को देखने स्थानीय कॉलेज के कुछ छात्र-छात्राओं का एक दल भी आया था। निसार अली ने उनसे नाचा गम्मत पर एक संक्षिप्त संवाद किया। जिसके क्रम में विद्याथियों के अनुरोध पर उन्होंने नाचा गम्मत “ढाई आखर प्रेम” की प्रस्तुति दी।

कार्यक्रम के बाद कॉलेज के शिक्षकों से भी बातचीत की गयी।

इस प्रकार संवाद और सांस्कृतिक कार्यक्रम के साथ पंजाब में जत्थे का तीसरा दिन पूरा हुआ। पड़ावों पर जत्थे के साथियों द्वारा उपस्थित लोगों से आर्थिक सहायता भी ली।

रात को जालंधर के देश भगत यादगार मेमोरियल हॉल में रंगकर्मियों और साहित्यकारों के साथ एक रंगचर्चा आयोजित थी,

जत्थे में प्रसन्ना (राष्ट्रीय अध्यक्ष, इप्टा), सुखदेव सिंह सिरसा (राष्ट्रीय महासचिव, अखिल भारतीय प्रगतिशील लेखक संघ), विनीत तिवारी (राष्ट्रीय सचिव, प्रगतिशील लेखक संघ), इंद्रजीत रूपोवाली (महासचिव, इप्टा पंजाब), सुरजीत जज्ज (अध्यक्ष, प्रगतिशील लेखक संघ, पंजाब), दीपक नाहर, छत्तीसगढ़ से निसार अली, देवनारायण साहू, गंगाराम बघेल और जगनू राम के साथ ही बड़ी संख्या में स्थानीय लोग सहयात्री के रूप में जुड़े जैसे देविन्दर दमन (थिएटर कलाकार), जसवन्त दमन (फिल्म कलाकार), जसवन्त खटकर, अमन भोगल, डॉ. हरभजन सिंह, परमिंदर सिंह मदाली, सत्यप्रकाश, रणजीत गमानु, बिब्बा कलवंत, रोशन सिंह, रमेश कुमार, कपन वीर सिंह, विवेक, सरबजीत रूपोवाली, अन्नू रुपोवाली, आंचल नाहर, वैष्णवी नाहर, रेणुका आज़ाद, वैष्णवी रूपोवाली, कलविदर कौर, चाहतप्रीत कौर आदि।

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