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ढाई आखर प्रेम पदयात्रा पहुँची बिहार के गाँव-गाँव में चौथे-पाँचवें दिन

ढाई आखर प्रेम पदयात्रा पहुँची बिहार के गाँव-गाँव में चौथे-पाँचवें दिन

(28 सितम्बर से 02 अक्टूबर 2023 तक राजस्थान के अलवर जिले के अनेक गाँवों का दौरा करते हुए, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, झारखण्ड और उत्तर प्रदेश की एक-एक दिनी पदयात्रा पूरी कर 07 अक्टूबर से ‘ढाई आखर प्रेम’ सांस्कृतिक जत्था बिहार के गाँवों में जन-संवाद कर रहा है। पिछली कड़ियों में हमने क्रमशः 07 अक्टूबर और 08-09 अक्टूबर की पदयात्रा का विवरण दो कड़ियों में पढ़ा। इस कड़ी में प्रस्तुत है, बिहार पदयात्रा की तीसरी कड़ी के अंतर्गत दि. 10 और 11 अक्टूबर 2023 को संपन्न हुई तमाम गतिविधियों की रिपोर्ट। यह आँखों देखा हाल जत्थे के साथ चलने वाले साथी सत्येंद्र कुमार प्रतिदिन लिखकर भेज रहे हैं, उसी तरह जत्थे में शामिल साथी दिनेश शर्मा हरेक घटना के फोटो और वीडियो लेकर अपडेट कर रहें हैं। इस दौरान अनेक गाँवों के अनेक व्यक्तियों से हुई बातचीत के अंश भी साझा किये जा रहे हैं। बिहार जत्थे के साथियों की लगन, मेहनत और प्रतिबद्धता को सलाम!)

10 अक्टूबर 2023 सोमवार

झखरा बलुआ में झखरा पट्टी है जहां 9 अक्टूबर की रात्रि को जत्था रुका था। सुबह साढ़े नौ बजे झखरा बलुआ से जत्था गांव में भ्रमण के लिए निकला। “गंगा की कसम यमुना की कसम“ जैसे गीत गाते हुए लगभग 10ः15 पर झखरा चौक पर रुक कर जत्थे ने लोगों से संपर्क किया। उसके बाद राष्ट्रीय उच्च मध्य विद्यालय झखरा सर्व शिक्षा अभियान के भवन पर बच्चों से मुलाकात की गई। वहां 500 बच्चे पढ़ते हैं। सतेंद्र कुमार शिक्षक हैं और चतुर्भुज बैठा प्रधानाध्यापक, उनसे बात हुई। उन्होंने बताया, आज भी काफी ग़रीबी है। उनके पास जमीन नहीं है, बाथरूम वगैरह भी नहीं है। अभी भी लोगों को काफी कष्ट झेलना पड़ रहा है।

वहां से पदयात्री सूर्यपुर पहुंचे। फर्नीचर की दुकान वाले मनोज कुमार से बातचीत हुई। यह भी एक टोला है, काफी गरीब है। यहां के लोगों से बातचीत की। उसके बाद सूर्यपुर अंबेडकर टोला जाकर लोगों से मिले। 11ः00 बजे दिन में राजकीय मध्य विद्यालय सूर्यपुर पिपरा कोठी प्रखंड पहुंचकर वहां के शिक्षकों और विद्यार्थियों से बातचीत की गई। जत्था के साथ चलने वाले साथियों ने उन्हें कुछ गीत सुनाए। शिक्षक, प्रधानाध्यापक व विद्यार्थियों को जत्था का उद्देश्य बताया गया। प्रमोद सिंह इस विद्यालय के प्रधानाध्यापक हैं। विद्यालय में 550 विद्यार्थी पढ़ते हैं। शिक्षकों की संख्या 13 है। विनोद राम स्टीफन शिक्षक हैं। उन्हें बातचीत के दौरान जत्थे का मकसद बताया गया कि, हमें समता और समानता मूलक समाज बनाना है। हम बाबासाहेब आंबेडकर, जोतिबा फुले, गांधीजी, भगत सिंह आदि महापुरुषों के विचारों को लेकर गांव-गांव जा रहे हैं। यह हम सब के लिए बहुत जरूरी है। बाबा साहब ने समाज सुधार के लिए जो शिक्षा की अनिवार्यता बताई है, उसे आगे बढ़ाना है। विषमता मूलक संस्कृति को हटाना है। समता मूलक संस्कृति को लाना है। गांधी जी, भगत सिंह ने कहा था कि सबको साथ लेकर ही एक बेहतर समाज बनेगा।

विनोद राम स्टीफन ने बताया कि, यह इलाका दलित अति पिछड़ों का रहा है। मैं मुशहरों के टोले में पढ़ता था, तब शिक्षा नाम मात्र की भी नहीं थी। बोलना नहीं आता था। वहां सब लोगों ने मिलकर शिक्षा को बढ़ाने का प्रयास किया। आज हम कुछ आगे बढ़े हैं।

यहाँ से जत्थे ने आगे की ओर प्रस्थान किया। सूर्यपुर में ही कालेश्वर चौरसिया जी से मिलने पर उन्होंने कहा कि आप लोग बहुत महत्वपूर्ण कार्य कर रहे हैं। आज देश को ऐसे संदेश की जरूरत है। आगे चलकर जत्था जीवधरा पहुंचा। इस रास्ते में गांव थोड़े हैं। एक ही गांव तीन-चार किलोमीटर तक फैला हुआ है। दोपहर को जीवधारा में मुख्य मार्ग के किनारे चौराहे पर जत्था के साथियों ने कार्यक्रम पेश किया गया। ‘ढाई अक्षर प्रेम के हम जानते हैं बहुलता में एकता पहचानते हैं’ – इस गीत से कार्यक्रम की शुरुआत हुई। हिमांशु ने गीतों के बाद लोगों को संबोधित किया कि हम प्रेम की बात करने आए हैं। अपने यात्रा के उद्देश्यों को आप तक पहुंचाना चाहते हैं।

रितेश ने लोगों को बताया कि हमारा यह ‘ढाई आखर प्रेम’ पदयात्रा अभियान 28 सितंबर को राजस्थान के अलवर से शुरू हुआ। यह दिन भगत सिंह का जन्मदिन है। इसका समापन 30 जनवरी 2024 को गांधी के शहादत दिवस पर दिल्ली में संपन्न होगा। इस बीच हम देश के 22 राज्यों से गुजरते हुए प्रेम, समानता, भाईचारे के सूत्र को और मजबूत करने आपके पास आए हैं। आपसे सीख कर, आपसे बातें कर के हम इस जत्था के उद्देश्य को पूरा कर पाएंगे। फिर साथियों ने गीत की अगली प्रस्तुति की – ‘गंगा की कसम यमुना की कसम, यह ताना-बाना बदलेगा, तू खुद को बदल, तब तो यह जमाना बदलेगा’।

इस यात्रा में विभिन्न राज्यों के जिलों के तथा विभिन्न संगठनों के साथी भी शरीक हुए हैं। पंकज श्रीवास्तव पलामू प्रलेस के अध्यक्ष तथा झारखंड प्रलेस उपाध्यक्ष ने अपनी बातें रखते हुए गांधी जी के चंपारण आगमन की कहानी को व्यवस्थित तरीके से उपस्थित लोगों के सामने रखा। उन्होंने बताया कि कैसे किसानों के साथ मिलकर गांधी जी ने निलहों के खिलाफ एक जबरदस्त आंदोलन खड़ा किया और चंपारण का आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक मील का पत्थर बना। इस आंदोलन ने किसानों और मजदूर की ताकत को अंग्रेजों के खिलाफ एकजुट किया, जो देश के अन्य आंदोलनों की नज़ीर बनी। हम लोग जहां भी इस जत्था के साथ जा रहे हैं, वहां लोगों का पूरा समर्थन मिल रहा है। लोगों ने जत्थे का स्वागत किया। साथ ही साथ इस जत्थे को मजबूती प्रदान की। यहाँ के कार्यक्रम में अंतिम गीत रितेश, हिमांशु और जत्थे में चल रहे अन्य साथियों ने गाया – ‘तू जिंदा है तो जिंदगी की जीत में यकीन कर, अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला जमीन पर’। अंत में रितेश ने धन्यवाद ज्ञापित किया। उसके बाद जीवधारा मलाई टोला के मुखिया पासवान जी के यहां जत्थे के लोगों ने भोजन किया।

सांस्कृतिक जत्था वहां से चंद्रहिया के लिए चल पड़ा। वहां जाकर जत्थे के साथियों ने गांधी स्मारक को देखा और उपस्थित लोगों से बातचीत की।

उसके बाद वहां से सलेमपुर पहुंचे, जहां ग्रामीणों से मिलकर जत्थे के उद्देश्य के बारे में बताया। सलेमपुर के मुकेश जी ने कहा कि ऐसा जत्था देश की एकता और अखंडता तथा प्रेम और विश्वास के लिए बहुत जरूरी है। हम गांववासी आपके इस यात्रा का समर्थन ही नहीं, बल्कि आपके काम की सराहना भी करते हैं। वहां से जत्था रात्रि विश्राम के लिए शंकर सरैया पहुंचा।

रात साढ़े आठ बजे जत्था शंकर सरैया के दिव्य ज्योति पब्लिक स्कूल पहुँचा। इसी स्कूल में जत्थे के भोजन और ठहरने की व्यवस्था थी। काफी बड़ी संख्या में विद्यार्थी और ग्रामीण पहुँचे हुए थे। सांस्कृतिक जत्थे द्वारा प्रस्तुत कार्यक्रम की शुरुआत लक्ष्मीप्रसाद यादव के गीत से हुई – ‘बढ़े चलो, जवान तुम बढ़े चलो’। उसके बाद उन्होंने ‘कैसे जइबइगे सजनिया पहाड़ तोड़े ला’ प्रस्तुत किया। वहाँ उपस्थित दर्शकों ने इन गीतों को खूब पसंद किया। इसके बाद राजेन्द्र प्रसाद ने गाया, ‘लिहले देसवा के अजदिया, खदिया पहिन के जी’। उनकी दूसरी प्रस्तुति थी, ‘हमरा हिरा हेरा गइल कचरे में’। इन गीतों का भी श्रोताओं ने भरपूर रसास्वादन किया।

रंजीत गिरी और स्कूल प्रबंधक रामपुकार जी ने जत्थे के सभी साथियों का बहुत ही प्रेम से स्वागत किया। रंजीत गिरी समाजसेवी हैं। उनकी उपस्थिति और उनका योगदान उल्लेखनीय रहा। रामपुकार जी ने सांस्कृतिक पदयात्रा के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि आज जिस तरह से दुनिया में हिंसा बढ़ती जा रही है, वैसे ही प्रेम का यह प्रचार-प्रसार और गाँव-गाँव जाकर लोगों को जागृत करने का जज़्बा और उनसे सीखने की ललक बहुत महत्वपूर्ण है। आज समाज में भाईचारे के लिए ऐसे कामों की सख्त ज़रूरत है।हिमांशु कुमार एवं साथियों ने फिर एक गीत की प्रस्तुति की, ‘गंगा की कसम, यमुना की कसम, ये ताना-बाना बदलेगा। तू खुद को बदल, तब तो ये ज़माना बदलेगा।’

अगली प्रस्तुति छत्तीसगढ़ के साथी निसार अली और साथियों द्वारा प्रस्तुत नाटक ‘ढाई आखर प्रेम’ था। निसार अली अपने साथियों के साथ छत्तीसगढ़ से आकर बिहार के इस जत्थे के साथ लगातार भ्रमण कर रहे हैं। उनके नाचा-गम्मत शैली के नाटक को बच्चों ने खूब पसंद किया। इस नाटक में कबीर, रहीम, अदम गोंडवी की रचनाओं को भी पिरोया गया था। साथ ही भगत सिंह, महात्मा गांधी, बाबासाहेब आंबेडकर के वक्तव्यों के उद्धरण देकर उसे बहुत शिक्षाप्रद बनाया गया था।

कार्यक्रम के अंत में हिमांशु और साथियों ने ‘तू ज़िंदा है तो ज़िंदगी की जीत में यकीन कर, अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर’ प्रस्तुत किया। रितेश ने धन्यवाद ज्ञापन किया।

10 अक्टूबर को शंकर सरैया गाँव में एक महिला से किया गया संवाद :

11 अक्टूबर 2023 बुधवार

शंकर सरैया में रात्रि विश्राम के बाद सुबह 06 बजे जत्थे ने दिव्य ज्योति पब्लिक स्कूल से आगे की यात्रा की ओर प्रस्थान किया। साथियों ने गाते हुए यात्रा की शुरुआत की। हरदियाँ गाँव के रंजीत गिरी, गिरिन्दर मोहन ठाकुर जत्थे के साथ आगे-आगे चल रहे थे। लगभग साढ़े सात बजे जत्था टिकैती गाँव पहुँचा। थोड़ी देर बार गोपाल चौक माधोपुर पहुँचकर जत्थे के साथियों ने स्थानीय लोगों से मुलाकात की। रितेश ने कहा कि हम जन-जन तक प्रेम पहुँचाने के लिए इस जत्थे के साथ गाँव-गाँव घूम रहे हैं। नफरत, घृणा से भरे समाज में प्रेम और बराबरी कैसे स्थापित हो, यही बताना इस जत्थे का उद्देश्य है।

उसके बाद साथी निसार अली ने जत्थे के बारे में जानकारी देते हुए गीत सुनाया, ‘राहों पर नीलाम हमारी भूख नहीं हो पाएगी, अपनी कोशिश है कि ऐसी सुबह यहाँ पर आएगी।’ गीत सुनकर गोपाल चौक पर हुजूम उमड़ पड़ा। ‘कभी न अपना एका टूटे बटमारों की साजिश में’ जैसी पंक्तियों पर लोग झूम उठे। रंजीत गिरी ने अपने वक्तव्य में कहा, यह जो जत्था चल रहा है, जिसमें सभी साथी जुड़े हैं, वे जिन उद्देश्यों को लेकर, जिस सपने को लेकर देश में गाँव-गाँव में घूम रहे हैं, उनके साथ हम सब गाँव-गाँव के लोग जुड़कर इनकी ताक़त बनेंगे। हम प्रेम से रहेंगे, शिक्षित बनेंगे, संगठित बनेंगे और समता-समानता पर आधारित नए विश्व के लिए संघर्ष करेंगे। घृणा का जो वातावरण तैयार किया जा रहा है, उसमें जत्थे के साथियों का यह संदेश देश को समृद्ध बनाएगा, एकजुट बनाएगा। साथ ही सभी देशवासियों को एक सूत्र में बाँधकर रखेगा। सभी जाति-धर्म के लोग इस जत्थे के साथ सिर्फ जुड़ ही नहीं रहे हैं, बल्कि उसे पूरा सहयोग भी कर रहे हैं।

‘गंगा की कसम, यमुना की कसम, ये ताना बाना बदलेगा, तू खुद को बदल, तब तो ये ज़माना बदलेगा।’, हिमांशु और साथियों ने इस गीत के अलावा एक अन्य गीत भी प्रस्तुत किया – ‘ढाई आखर प्रेम के पढ़ने और पढ़ाने आए हैं, हम भारत से नफरत का हर दाग मिटाने आए हैं।’ गीतों की प्रस्तुति के बाद वहाँ उपस्थित ग्रामीणों ने आर्थिक सहयोग भी किया। विजय शाह, उवस राम रंजीत गिरी, गिरिन्दर ठाकुर लगातार जत्थे के साथ-साथ चल रहे थे। इन लोगों का सहयोग प्रशंसनीय रहा।

गोपाल चौक पर दुकानें साढ़े सात बजे तक खुल गई थीं। यह क्षेत्र पूरी तरह किसानों-मज़दूरों का है। उपस्थित लोगों ने कहा कि इस तरह के कार्यक्रमों से हम साथ-साथ जीने की ताक़त पाते हैं। उवस राम ने अंत में अपनी बातें रखीं और जत्थे को बधाई दी। गोपाल चौक में लगभग एक घंटे का कार्यक्रम कर तथा लोगों से विचारों का आदान-प्रदान करते हुए जत्था आगे बढ़ा।

लगभग साढ़े आठ बजे जत्था माधोपुर मधुमालत पहुँचा। वहाँ के दिनेश मिश्र एवं सतबीर अहमद साहब ने कहा, यह जत्था भाईचारा जोड़ने वाला है। आपसी सद्भाव बना रहे, यही इस जत्थे का संदेश है। इस गाँव में हरेक प्रकार का मेलमिलाप रहता है, किसी तरह का जातीय वैमनस्य नहीं है। हमें मिलकर एक सुंदर दुनिया के निर्माण की कोशिश करते रहनी चाहिए। यह जत्था देश-दुनिया में इस भाईचारे का संदेश लेकर घूम रहा है। हम सब ग्रामवासी इस जत्थे का स्वागत करते हैं।

गाँव की समस्याएँ बताते हुए उन्होंने आगे कहा कि, यहाँ रोज़गार नाम की चीज़ नहीं है। चारों ओर बेरोज़गारी है। किसी तरह जिया जा रहा है। बहुत खराब स्थिति है। जो युवक बेरोज़गार हैं, वे किसी तरह यहाँ रहकर अपनी जीविका चलाते हैं। वे खेती-किसानी, स्थानीय छोटे-छोटे दुकानों में काम कर जीवनयापन करते हैं। यहाँ की खूबसूरती यह है कि, यहाँ कोई जातीय या धार्मिक वैमनस्य नहीं है। सभी लोग एकदूसरे के पर्वों-उत्सवों में आते-जाते हैं, एकदूसरे से मिलते जुलते हैं। अभी देश की जो स्थिति है, जिस तरह भेदभाव उत्पन्न किया जा रहा है, उस समय यह जत्था एक नई उम्मीद जगाता है। हम चाहते हैं कि हमारी एकजुटता कायम रहे। हम जिस तरह अपने गाँव-घर में निश्चिन्त रहते हैं, वह प्रेम देश में भी बना रहे।

यहाँ से चलकर जत्था विनय उपाध्याय के कोचिंग सेंटर के पास रूका, जहाँ काफी छात्र-छात्राओं ने हिस्सा लिया। वहाँ हिमांशु, शिवानी, विजय और अन्य साथियों ने गीत प्रस्तुत किया, ‘गंगा की कसम, यमुना की कसम, ये ताना बाना बदलेगा, तू खुद को बदल, तब तो ये ज़माना बदलेगा।’ हिमांशु, शिवानी, अमन, संजय, पूजा ने दूसरा गीत प्रस्तुत किया, ‘ढाई आखर प्रेम के पढ़ने और पढ़ाने आए हैं, हम भारत से नफरत का हर दाग मिटाने आए हैं।’

विजय कुमार उपाध्याय ने बातचीत करते हुए कहा कि हम सब एहसानमंद हैं कि आप हम गाँव में रहने वालों के पास प्रेम, सौहार्द्र को लेकर आए हैं। हम अगर अपनी एकजुटता बनाकर नहीं रखेंगे, तो प्रतिक्रियावादी ताकतें हमें कमज़ोर करके खत्म कर देंगी। ‘दिल से दिल का नाता जोड़ो। भारत जोड़ो, भारत जोड़ो।’ उन्होंने अपने विद्यार्थियों और उपस्थित लोगों से नारे लगवाए – ‘नफरत छोड़ो, दिल से दिल का नाता जोड़ो।’ यह हमारा मूल सूत्र होगा जीने का। हमने बहुत बलिदान के बाद आज़ादी हासिल की है। हमें इसे सुरक्षित रखना होगा। ऐसा हम मिलकर ही, प्यार के साथ ही कर सकते हैं।

यहाँ एक दर्ज़न से भी ज़्यादा मस्जिदें हैं और बहुत से मंदिर हैं। सभी लोग मिलकर रहते हैं। एकदूसरे के सुख-दुख में शामिल रहते हैं। ये मंदिर-मस्जिद हमारी एकता की पहचान हैं। लोगों को अपने-अपने विश्वासों के साथ जीने का हक है। यह गाँव हमारा है। ये मंदिर-मस्जिद हमारे हैं। इन्हें पाक़ रखना, साथ में प्रेम रखना यही हमारे जीवन का सूत्र है।

जत्थे के कलाकार साथियों ने उसके बाद एक और गीत प्रस्तुत किया – ‘तू ज़िंदा है, तू ज़िंदगी की जीत पर यकीन कर, अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर’। माया ने एक कविता सुनाई, ‘हम बेटी हैं, अभिशाप नहीं।’ अंत में रितेश ने ग्रामीणों से आग्रह किया कि आप हमारे साथ मिलकर चलें, गीत गाएँ, कविताएँ सुनाएँ। उपस्थित छात्राओं ने कहा कि, यह यात्रा हमें बहुत अच्छी लग रही है। यह सब कुछ हमारे लिए, हमारे देश के लिए हो रहा है। यह स्वागत योग्य है।

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जत्थे ने लगभग साढ़े नौ बजे अगले पड़ाव के लिए प्रस्थान किया। पौन घंटे में जत्था राजकीय मध्य विद्यालय माधोपुर मठ (तुरकौलिया) में पहुँचा। वहाँ स्कूल के प्रांगण में जत्थे के साथियों का स्वागत वहाँ के प्रधानाध्यापक और शिक्षकों द्वारा किया गया। करीब छैः सौ छात्र-छात्राएँ स्कूल में थे। उनके भीतर बहुत उत्साह दिख रहा था। हिमांशु ने अपने साथियों के साथ गीत प्रस्तुत किया।

जत्था सवा चार बजे तुरकौलिया से खाना खाकर आगे बढ़ा। लगभग 45 मिनट चलने के पश्चात पदयात्रा बैरिया बाजार पहुँची। वहाँ पहुँचकर परचे बाँटे गए। लोगों से सम्पर्क कर इस जत्थे के उद्देश्य के बारे में बातें की गईं। उसके बाद जत्था पहुँचा पिपरिहा। गीत-संगीत के माध्यम से लोगों को अपनी यात्रा के बारे में जानकारी दी गई। एक बात, जो इस इलाके में देखने को मिली, वह थी गरीबी, बेरोज़गारी। फसल अच्छी थी। छोटी-छोटी जोत के किसान हैं। रोज़गार नहीं होने के कारण ज़्यादा युवा राज्य से बाहर जाकर काम करते हैं। शौचालय नहीं हैं। छोटी-छोटी झोंपड़ियाँ हैं। सरकारी सुविधाएँ सभी तक नहीं पहुँच पाती हैं। इस इलाके की एक उल्लेखनीय बात यह है कि ज़्यादातर लोग गांधी जी के बारे में, भगत सिंह और बाबासाहेब के बारे में जानते हैं।

जत्थे के साथ पहले दिन से ही पूर्वी चम्पारण के वीरेन्द्र मोहन ठाकुर साथ चल रहे हैं। वे न केवल चल रहे हैं, अलग-अलग पड़ाव पर पहुँचने में सहायता भी कर रहे हैं।

जत्था पिपरिहा होते हुए रात्रि विश्राम के लिए लगभग साढ़े छै: बजे सपही पहुँचा, जहाँ के पंचायत भवन में जत्थे के रूकने की व्यवस्था की गई थी। वहीं साढ़े छैः बजे से सांस्कृतिक कार्यक्रम में सबसे पहले निसार अली और देवनारायण साहू ने मिलकर छत्तीसगढ़ की नाचा-गम्मत शैली का नाटक ‘ढाई आखर प्रेम’ प्रस्तुत किया। यह शैली चूँकि छत्तीसगढ़ की लोकनाट्य शैली है, इसलिए इसके नएपन ने दर्शकों का काफी मनोरंजन किया। यह नाटक पूरी यात्रा में बहुत लोकप्रिय हो रहा है। जिस भी इलाके से जत्था गुज़रता है, वहाँ छत्तीसगढ़ के दोनों कलाकार इसकी प्रस्तुति करते हैं। इसके साथ ही साथी निसार अली कबीर, रहीम, अदम गोंडवी आदि के दोहे, ग़ज़ल आदि भी पढ़ते हैं और नाटक के मूल संदेश को जनता तक पहुँचाते हैं।

पोथी पढि पढि जग मुआ, पंडित भया न कोय।
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।।

रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय।
टूटे से फिर न जुड़े, जुड़े गाँठ पर जाए।।

इसी तरह अदम गोंडवी का शेर है :

सौ में सत्तर आदमी फिलहाल जब नाशाद हैं
दिल पर रखकर हाथ कहिए, देश क्या आज़ाद है?

रितेश ने जत्थे के संदेश के बारे में ग्रामीणों को विस्तार से बताया। उन्होंने कहा कि, ढाई आखर प्रेम सांस्कृतिक जत्था देश में प्रेम, न्याय, समानता आदि मूल्यों पर जो हमले हो रहे हैं, उसके खिलाफ हम लोग इस जत्थे के माध्यम से उन मूल्यों की रक्षा करने के लिए गाँव-गाँव जा रहे हैं। हमारा देश अनेक रंगों, विचारों से मिलकर बना है। हमारा उद्देश्य देश में गांधी जी, भगत सिंह, बाबासाहेब आंबेडकर द्वारा स्थापित मूल्यों की रक्षा करना है, उन्हें मजबूत बनाना है। यह तभी संभव है, जब यह संदेश गाँव-गाँव तक पहुँचे। सभी जाति-धर्म के लोग एक दूसरे का सम्मान करें। प्रेम हमारा पहला और अंतिम सत्य हो। इसलिए हम कबीर-रहीम की वाणी को, उनके पदों को आपके बीच गाते चल रहे हैं। हम युद्ध के खिलाफ हैं, हम शांति चाहते हैं, प्रेम चाहते हैं।

इसके बाद फिर गीत प्रस्तुत किये गये। हिमांशु, शिवानी, तन्नू, माया, पूजा आदि साथियों ने अपने गीतों से लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया। पहला गीत था, ‘गंगा की कसम, यमुना की कसम, ये ताना बाना बदलेगा, तू खुद को बदल, तब तो ये ज़माना बदलेगा।’ दूसरी प्रस्तुति थी, ‘ढाई आखर प्रेम के पढ़ने और पढ़ाने आए हैं, हम भारत से नफरत का हर दाग़ मिटाने आए हैं।’

इस तरह सिपहा बाजार में लोगों से संवाद करते कार्यक्रम समाप्त हो गया। हालाँकि कार्यक्रम के बाद काफी देर बिजली गुल थी, परंतु ग्रामवासियों का खाना बनाना, तमाम व्यवस्थाएँ करना, जत्थे के साथियों का गीत-संगीत की रिहर्सल करना और रिपोर्ट लिखने का काम कई टॉर्चों की मदद से जारी रहा। हर तरह से ऊर्जा से भरे जत्थे के साथी गाते-बजाते हुए पैदल यात्रा कर रहे हैं। एक नया अनुभव उन्हें भी हो रहा है। सिपहा बाजार में काफी भीड़ थी। लोगों ने काफी उत्साह से कार्यक्रम में शिरकत की। कई तरह से संवाद किये गये। सभी लोगों ने इस तरह के कार्यक्रमों की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि आप लोग बेहतर काम कर रहे हैं। यह पैदल यात्रा निश्चित रूप से नए प्रेम से भरे भारत का निर्माण करेगी।

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