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ग्रामवासियों की कहानियाँ : बिहार पदयात्रा की झलकियाँ

ग्रामवासियों की कहानियाँ : बिहार पदयात्रा की झलकियाँ

(‘ढाई आखर प्रेम’ सांस्कृतिक पदयात्रा दि. 07 अक्टूबर से 14 अक्टूबर 2023 तक बिहार में संपन्न हुई। लगभग 35 स्थायी पदयात्रियों ने अनेक गाँवों में असंख्य लोगों से मुलाकात की। साथ ही स्थानीय परिस्थितियों पर भी चर्चा की। समूची यात्रा की रिपोर्टिंग, तमाम वीडिओज़ और फोटोग्राफ्स में क्षेत्र का युवा बहुत कम नज़र आया। एक जगह बातचीत में यह पता चलता है कि पढ़े-लिखे युवा प्रायः स्थानीय स्तर पर रोज़गार न मिलने के कारण शहर चले जाते हैं। इसलिए युवा वर्तमान परिस्थितियों में क्या सोच रहा है, उसका अपने क्षेत्र से किस तरह का सम्बन्ध है, यह बात पकड़ से दूर रही। महिलाएँ काफी मुखर हैं और उनकी उपस्थिति भी यात्रा के दौरान अच्छी ख़ासी दर्ज़ हुई है। तमाम वीडिओज़ और फोटोग्राफ्स दिनेश कुमार शर्मा और निसार अली द्वारा भेजे गए थे। उनके कारण ‘आँखों देखा हाल’ की तरह हम पूर्वी चम्पारण के ग्रामीण जन-जीवन को आंशिक रूप से समझ पा रहे हैं। पदयात्रा से सम्बंधित पड़ावों पर ‘प्रेम और भाईचारे’ की अलख जगाने के लिए बिहार जत्थे के समस्त आयोजकों, सभी साथियों की कर्मठता और समस्त ग्रामवासियों को सलाम।)

‘ढाई आखर प्रेम’ सांस्कृतिक पदयात्रा को बिहार के ऐसे क्षेत्र में आयोजित किया गया था, जिसका इतिहास महात्मा गाँधी के सत्याग्रह आंदोलन के आरम्भ से सम्बद्ध है। इसीलिए इस पदयात्रा का नाम ‘बापू के पदचिह्न’ रखा गया। समूचे क्षेत्र के लोग महात्मा गाँधी से अभी भी गहरे तक सम्बद्ध दिखाई दिए। पूर्वी चम्पारण क्षेत्र की इस पदयात्रा के पड़ाव थे,

08 अक्टूबर से गाँवों की पदयात्रा सही मायने में शुरू हुई। जसौली पट्टी गाँव का ऐतिहासिक महत्व बताते हुए पदयात्रा के विशेष सहयोगी सामाजिक कार्यकर्ता विनय कुमार सिंह ने कहा कि चम्पारण आंदोलन में जसौली पट्टी का एक महत्वपूर्ण स्थान है, जहाँ से महात्मा गाँधी ने सत्य के प्रयोग का पहला पाठ शुरू किया था।

जसौली भट्टी और उसके आसपास के गाँवों के अनेक निवासियों से अनेक पदयात्रियों ने अलग-अलग बातचीत की। अक्सर लोग अपने-अपने काम-धंधे में लगे हुए सहज रूप से सवालों का जवाब दे रहे थे। यहाँ विभिन्न पड़ावों पर स्थानीय निवासियों से की गयी चर्चा के कुछ छोटे-छोटे हिस्से दिए जा रहे हैं। झाखरा बलुआ गाँव की एक महिला पलासी देवी ने चारा काटते हुए अपनी बात कही। उनके काम की लय देखते बनती है।

झाखरा निवासी पंचायत समिति सदस्य जोगी माँझी सांस्कृतिक कार्यक्रम को देखकर काफी प्रभावित थे।

रात को सांस्कृतिक कार्यक्रम के बाद जत्थे के विभिन्न कलाकार उपस्थित लोगों से संवाद करने लगे। साथी तन्नू कुमारी के पूछे जाने पर शंकर सरैया में उपस्थित प्रभावती देवी अपनी अभिव्यक्ति कुछ इस तरह प्रकट कर रही थीं,

जत्थे में शामिल शिवानी ने गाँव की महिलाओं से रात को प्रस्तुत किये कार्यक्रम के बारे में पूछा, तो उन्होंने प्रतिप्रश्न किया कि, ‘अच्छी बात बताएँगे तो क्यों नहीं अच्छा लगेगा? लड़ाई-झगड़े से क्या फायदा ?’

रात को शंकर सरैया में कार्यक्रम के बाद पदयात्रियों ने कुछ लोगों से बातचीत की। ग्राम सलेमपुर के रहने वाले छट्ठू महतो ने अपनी किशोरावस्था में महात्मा गाँधी को देखा था और वे आंदोलन में उनके साथ कूद पड़े थे। साथी निसार अली के पूछते ही वे उस समय के नारों को याद कर नब्बे वर्ष की उम्र में जोश से भर उठे,

माधोपुर गाँव के अनेक लोग ‘ढाई आखर प्रेम’ पदयात्रा के बारे में जानकर काफी खुश और उत्साहित हुए। संदीप पासवान यह जानकर ज़्यादा खुश हुए कि यह किसी राजनीतिक पार्टी का अभियान नहीं है। वहीं राजेश कुमार अपने युवा संगठन के साथ यात्रा में जुड़ने की इच्छा प्रकट करने लगे।

राजकीय विद्यालय सूर्यपुर के शिक्षक विनोद राम ने जत्थे के उद्देश्यों की सराहना करते हुए कहा,

साथी सत्येंद्र कुमार और रितेश रंजन ने माधोपुर के शब्बीर अहमद और दिनेश मिसिर से बातचीत करते हुए गाँव में रोज़गार की स्थिति पर चर्चा की। इस क्षेत्र में गेहूं और धान की खेती होती है, कुछ लोग खेती करते हैं, तो कई युवा रोज़गार की तलाश में मोतिहारी और अन्य शहरों में चले जाते हैं। ‘ढाई आखर प्रेम’ के कार्यक्रम का शब्बीर अहमद ने पुरज़ोर समर्थन किया।

इसी तरह माधोपुर के पुश्तैनी रहिवासी सुखोदी अहमद को ढाई आखर प्रेम अभियान की ज़रुरत का बयान करने के लिए शब्द नहीं मिल रहे थे। यहाँ इस बात का उल्लेख किया जाना चाहिए कि जिस तरह ‘ढाई आखर प्रेम’ सांस्कृतिक पदयात्रा के अंतर्गत ‘बापू के पदचिह्न’ शीर्षक से बिहार के संस्कृतिकर्मी, सामाजिक कार्यकर्ता पूर्वी चम्पारण के लगभग 30 गाँवों के लोगों से मिले, उनसे सहज बातचीत की, स्थानीय विशेषताओं के बारे में उनसे जानकारियाँ लीं, उससे वहाँ के लोगों में काफी उत्साह का संचार हुआ।

पदयात्रा क्षेत्र की कुछ आंचलिक तस्वीरें साथी निसार अली द्वारा ली गई थीं, जो उनके फेसबुक वॉल से साभार साझा की जा रहीं हैं,

एक वीडियो में गाँव का रचनात्मक जुगाड़ दिखा – दो टूटी कुर्सियों से एक बैठने लायक कुर्सी …

इस क्षेत्र का सामाजिक सांस्कृतिक वातावरण सौहार्द्रपूर्ण होने के बावजूद अहमद साहब ने इस अभियान को देश के हित में बताते हुए पदयात्रियों की भूरि-भूरि प्रशंसा की। वे देश में अब बदलाव चाहते हैं।

माधोपुर के ही कोचिंग सेंटर चलाने वाले विजय कुमार उपाध्याय से साथी निसार अली ने लम्बी बातचीत करते हुए उस क्षेत्र के धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व पर जानकारी हासिल की। सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल कहलाने वाले समाधि स्थल के बारे में विजय जी ने बताया,

इसी तरह उन्होंने महात्मा गाँधी की जान बचाने वाले क्षेत्र के बावर्ची बतख़ मियाँ वाला किस्सा भी बखान किया। यह किस्सा क्षेत्र के हरेक निवासी की ज़बान पर मिल जाता है। विजय जी ने यह जानकारी भी दी कि बतख़ मियां के बारे में पहले किसी को इतना विस्तार से नहीं पता था, मगर जब भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद मोतिहारी आये, उस समय उन्होंने अपने भाषण में इस पूरी घटना का ज़िक्र करते हुए बताया कि महात्मा गाँधी ने अपनी आत्मकथा में बतख़ मियाँ वाली घटना का उल्लेख किया है।

बिहार राज्य की ‘ढाई आखर प्रेम’ पदयात्रा में शुरुआती तीन दिन वीरेंद्र मोहन ठाकुर जुड़े रहे, जो इस जत्थे के उद्देश्य के बारे में सुनकर स्वेच्छा से आये थे, जिन्होंने जत्थे को अलग-अलग पड़ावों पर ले जाने में सहायता की। अपने जुड़ाव के बारे में बताते हुए उन्होंने जत्थे के पदयात्रियों की तारीफ़ की,

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जत्थे के पदयात्रियों ने गाँवों के स्कूलों में भी गीत, नृत्य और नाटक प्रस्तुत किये, वे शिक्षकों और बच्चों को काफी पसंद आये। माधोपुर मधुमालत की सहायक शिक्षिका गीता कुमारी ने कहा,

मझरिया सपही बाजार के निवासी विजय सिंह ने महात्मा गाँधी की शिक्षा और जनता की समझदारी के प्रति विश्वास व्यक्त करते हुए अपनी प्रतिक्रिया कुछ इस तरह प्रकट की,

पदयात्री यात्रा के दौरान अनेक गाँवों से गुजर रहे थे, जहाँ उनका पड़ाव नहीं था, मगर अक्सर लोग उत्सुक होकर जत्थे को देखकर पूछते और चर्चा चल निकलती। चेलहा पंचायत बंजरिया से आगे बढ़ते हुए पपरिहा गाँव में कपिल देव भगत से बातचीत हुई।

12 अक्टूबर 2023 की सुबह सपही पंचायत से आगे बढ़ने के दौरान रास्ते में संगीता देवी और अन्य महिलाएं दिख गयीं, साथी राजेंद्र प्रसाद राय और शाकीब खान ने उनसे पिछली रात के नाटक आदि पर उनकी प्रतिक्रिया जाननी चाही,

सुबह जत्थे के पदयात्री जब चाय पीने के लिए किसी दूकान पर जाते थे, उस समय भी वहाँ उपस्थित लोगों से बातचीत करते थे। लगभग सभी लोग जत्थे के आगमन, सांस्कृतिक कार्यक्रम तथा उनके द्वारा की जाने वाली बातचीत से खुश दिखाई देते थे। परन्तु माईक देखकर अच्छे ख़ासे लोग भी बोल नहीं पाते, तो पहली बार मिलने वाले इन ग्रामवासियों से किसी बड़ी टिप्पणी की अपेक्षा नहीं की जा सकती। मोहम्मद खुर्शीद और रमजान अंसारी की अभिव्यक्ति यही कहती है।

मगर एक बात साफ़ थी कि इस क्षेत्र की बस्तियों में हिन्दू-मुस्लिम समाज के लोग मिलजुलकर ही रहते हैं और इस एकजुटता का महत्व भी समझते हैं। जीवन में प्यार-मोहब्बत की अहमियत की बात पर सभी ग्रामवासी एकमत दिखाई दिये। फरहा खातून ने 13 अक्टूबर की शाम को कचहरियां टोला सिसवा में हुए सांस्कृतिक कार्यक्रम के प्रति अपनी संक्षिप्त ख़ुशी प्रदर्शित की।

जत्थे के आगमन से संतुष्ट होकर प्रायः गाँव के लोग जत्थे के साथियों को चाय या अन्य चीज़ों का पैसा भी नहीं देने देते थे। ग्रामवासियों की इस आत्मीयता से जत्थे में शामिल शहरी साथी बहुत अभिभूत हुए। (पिछली कड़ियों में पदयात्रियों के वीडिओज़ में इस बात का उल्लेख हुआ है।)

इस तरह 08 अक्टूबर से 13 अक्टूबर 2023 तक मुजफ्फरपुर और मोतिहारी जिले के अनेक गाँवों में ‘ढाई आखर प्रेम’ के बिहार सांस्कृतिक जत्थे ने सैकड़ों लोगों से संवाद स्थापित करते हुए 14 अक्टूबर को मोतिहारी शहर में समापन कार्यक्रम संपन्न किया। दि. 07 और 14 अक्टूबर क्रमशः पटना और मोतिहारी शहर में अभियान का प्रारम्भ और समापन हुआ।

दि. 27 अक्टूबर से 01 नवम्बर तक ‘ढाई आखर प्रेम’ की सांस्कृतिक पदयात्रा पंजाब के खटकड़कलां, फगवाड़ा, सुल्तानपुर लोधी, कपूरथला और जालंधर में होगी।

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