Now Reading
ढाई आखर प्रेम का संदेश लेकर सांस्कृतिक पदयात्रा बिहार के पूर्वी चम्पारण पहुँची

ढाई आखर प्रेम का संदेश लेकर सांस्कृतिक पदयात्रा बिहार के पूर्वी चम्पारण पहुँची

(07 अक्टूबर 2023 से बिहार राज्य के पटना से शुरू हुई ‘ढाई आखर प्रेम’ सांस्कृतिक यात्रा क्रमशः आगे बढ़ती जा रही है। इससे पूर्व 07 और 08 अक्टूबर शाम की रिपोर्ट यहाँ प्रस्तुत हो चुकी है। इस कड़ी में 08 के जसौली पट्टी गाँव में हुए रात्रिकालीन सांस्कृतिक कार्यक्रम से लेकर 09 अक्टूबर की रात के ग्राम झखरा बलुआ में हुए कार्यक्रम तक की रिपोर्ट प्रस्तुत है। बिहार की इन तीन दिनों की पदयात्रा में एक बात लक्षणीय है कि बच्चे काफी उत्साह के साथ जुड़ रहे हैं। उन्हें रंगबिरंगी पताकाएँ लगे डंडे पकड़ने में, गाना गाने में या पदयात्रा में पदयात्रियों के साथ घूमने में बहुत मज़ा आ रहा था। यह मज़ा सामूहिक गतिविधि में तमाम भेदभाव को ताक पर रखने का मज़ा था और परस्पर प्रेम करने का मज़ा भी था। ग्राउंड जीरो रिपोर्ट भेजी है ढाई आखर प्रेम सांस्कृतिक जत्था के बिहार मीडिया प्रभारी सत्येंद्र कुमार ने, वहीं फोटो और वीडियो साथी दिनेश शर्मा से प्राप्त हुए हैं।)

08 अक्टूबर 2023 की रात्रि को जत्था जसौली पट्टी गाँव के एक हिस्से से गुज़रता हुआ राष्ट्रीय मध्य विद्यालय, जसौली पट्टी (प्रखण्ड कोटवा, पूर्वी चम्पारण) पहुँचा, जहाँ जत्थे के लोगों ने रात्रि विश्राम किया। उसके पहले गाँव में सांस्कृतिक कार्यक्रम भी यहीं के बड़े मैदान में हुआ। गाँव में पहुँचने पर जत्थे के साथियों का ग्रामीणों द्वारा स्वागत किया गया। लोग घर से बाहर निकलकर जत्थे का स्वागत कर रहे थे। हर मोड़ पर गीत-संगीत के साथ-साथ यात्रा की महत्ता भी लोगों को बताई जा रही थी। राज्य के कार्यवाह महासचिव फिरोज अशरफ खान ने बतलाया कि, प्रेम के संदेश को जन-जन तक पहुँचाने के लिए यह जत्था देश के 22 राज्यों से गुज़रेगा। समाज में प्रेम हमारे जीवन का आधार बने, यही इस जत्थे का संदेश है।

गाँव के निवासी विनय कुमार, जो पर्यावरण के क्षेत्र में काम करते हैं, उन्होंने पूरी टीम का स्वागत ही नहीं किया, बल्कि स्कूल प्रांगण में होने वाले रात्रिकालीन कार्यक्रम में शामिल होने के लिए लोगों को प्रेरित भी किया। गाँव में घूमकर जत्थे ने स्कूल पहुँचकर सांस्कृतिक कार्यक्रम किया, जिसमें ग्रामीण बड़ी संख्या में भाग लेने पहुँचे। सबसे ज़्यादा भीड़ बच्चों और महिलाओं की थी। ढाई घंटे तक गीत-संगीत, नाटक, संवाद का कार्यक्रम होता रहा। सबसे महत्वपूर्ण थी बच्चों की भागीदारी, जो जत्थे के साथियों के साथ मिलकर मंच के कार्यक्रमों का हिस्सा बन रहे थे।

विनय कुमार ने मंच से स्वागत किया तथा गाँव की ऐतिहासिकता से लोगों को अवगत कराया। कार्यक्रम में गाँव के रामश्रेष्ठ बैदा, सुनील दास, दिलीप ठाकुर, उपेन्द्र कुमार, मंकेश्वर पाण्डेय, जुलुम यादव (पैकस अध्यक्ष), रामजी राय, हरेन्द्र कुमार, जितेन्द्र कुमार की मुख्य भूमिका रही।

रात्रिकालीन सांस्कृतिक कार्यक्रम :

सांस्कृतिक कार्यक्रम की शुरुआत लक्ष्मीप्रसाद यादव के गायन से हुई। ‘बढ़े चलो जवान तुम बढ़े चलो’ गीत को काफी सराहना मिली। उसके बाद उन्होंने दूसरा गीत चंद्रशेखर पाठक भारद्वाज द्वारा लिखित ‘कैसे जैबेंगे सजनीआ पहाड़ तोडे़ ला, हमरा अंगुली से खूनवा की धार बहे ला’ प्रस्तुत किया। हारमोनियम पर अमरनाथ संगत कर रहे थे। शिवानी गुप्ता ने गाँव के बच्चों के साथ गाकर दूसरा गीत प्रस्तुत किया – ‘हम हैं इसके मालिक, हिंदुस्तान हमारा है’। दूसरा गीत था – ‘रेलिया बैरन पिया को लिए जाए रे, रेलिया बैरन…’। शिवानी ने कजरिया ‘कैसे खेले जाइबू सावन में कजरिया, बदरिया घिरी आइल ननदी’ गाकर लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया।

इसके बाद राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष राकेश ने लोगों को संबोधित करते हुए इस जत्थे के उद्देश्य पर बातें रखीं। उन्होंने कहा कि दुनिया के मानचित्र पर जो क्रांतिकारी गाँव हैं, उसमें सर्वोच्च स्थान जसौली पट्टी का है। एक प्रसंग में उन्होंने गांधी जी की चार्ली चैप्लिन से हुई भेंट का ज़िक्र करते हुए बताया कि गांधी ने चैप्लिन से पूछा कि ‘कला का क्या मतलब होता है? गीत-संगीत का क्या मतलब होता है?’ चैप्लिन ने जवाब दिया, ‘गीत-संगीत, कविता का मतलब जनता के प्रति प्रेमपत्र है। यह सत्ता के प्रति अभियोग पत्र भी है।’

उसके बाद हिमांशु और साथियों ने गीत प्रस्तुत किया, ‘गंगा की कसम, यमुना की कसम, ये ताना-बाना बदलेगा, तू खुद को बदल, तब तो ये ज़माना बदलेगा।’ अगली प्रस्तुति के रूप में जत्थे के साथी मनोज भाई ने बच्चों के सामने हाथ सफाई दिखलाई और लोगों को संदेश दिया कि जादू वगैरह कुछ भी नहीं होता, सिर्फ हाथ की सफाई होता है। उसके बाद कबीर के दोहों को नृत्य के माध्यम से प्रस्तुत किया गया।

अंतिम प्रस्तुति छत्तीसगढ़ से आए निसार अली एवं साथियों की नाट्य-प्रस्तुति ‘टॉर्च बेचैया’ थी। यह छत्तीसगढ़ की नाचा-गम्मत शैली में थी, जिसके नएपन के कारण वह ग्रामीणों को बहुत पसंद आई।

09 अक्टूबर 2023 सोमवार

09 की सुबह जत्था जसौली पट्टी माध्यमिक विद्यालय से निकलकर गाँव से गुज़रा। चूँकि जसौली पट्टी गाँव 09-10 किलोमीटर तक फैला हुआ बहुत बड़ा गाँव है, जहाँ की जनसंख्या लगभग 10000 है। यहाँ 12 वॉर्ड हैं तथा सभी जातियों के लोग रहते हैं। एक मुस्लिम परिवार भी रहता है। गाँव के सभी लोगों में सहयोग की भावना है। यहाँ जातीय या धार्मिक तनाव नहीं है। मूल आर्थिक आधार कृषि है और लोग बाहर रहकर भी नौकरी पेशे से जुड़े हैं। लोगों में जत्थे को लेकर बहुत उत्साह था। चारों ओर खेत में धान, मक्का, ईख लगे हुए थे। यहाँ सब्जी की खेती भी बहुत बड़े पैमाने पर होती है।

जत्था सबेरे स्कूल से निकला तो निसार अली साथियों के साथ गाते हुए निकले, ‘मशालें लेकर चलना है कि जब तक रात बाकी है’। गाँव के बच्चे भी साथ-साथ गा रहे थे। राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष राकेश भी साथियों के साथ चल रहे थे। साथ में स्थानीय विनय कुमार, सुनील कुमार दास भी अन्य ग्रामीणों के साथ चल रहे थे। थोड़ी-थोड़ी दूरी पर रूककर जत्थे के साथी ग्रामीणों से संवाद स्थापित करते, उनकी बातें सुनते, उनसे खुद की बातें भी बता रहे थे। उन्हें न सिर्फ जत्थे के महत्व की जानकारी दे रहे थे, बल्कि उनसे भी, कार्यक्रम के उनके ऊपर पड़े प्रभाव को सुन रहे थे। गाँव बहुत बड़ा होने के कारण घर दूर-दूर हैं। खेतों की पगडंडियों और मुख्य सड़क से होता हुआ जत्था आगे बढ़ता गया।

जसौली पट्टी के ही दूसरे क्षेत्र में जत्था पहुँचा, एक लोहे के पुल को पार कर पट्टी गाँव पहुँचा, जो जसौली पट्टी का ही हिस्सा है। यहाँ से होते हुए बिशुनपुर ननकार के लोगों से बातें करते हुए आगे 03 किलोमीटर चलकर महात्मा गांधी राष्ट्रीय मध्य विद्यालय पट्टी (प्रखण्ड कोटवा) पहुँचा। यहाँ छात्र-छात्राओं के साथ शिक्षकों की टोली अपने प्रधानाध्यापक के साथ जत्थे के स्वागत में खड़ी थी। स्कूल के भीतर के प्रांगण में स्थित गांधी जी की मूर्ति पर सभी ने फूलमालाएँ चढ़ाईं। विद्यार्थियों से बातचीत करते हुए उन्हें जत्थे के उद्देश्य से अवगत कराया गया। स्कूल के पास संगीत का कार्यक्रम हुआ।

लगभग पौने दस बजे जत्था फिर रास्ते पर चल पड़ा और तीन किलोमीटर चलकर, रास्ते में लोगों से मिलते हुए वापस जसौली पट्टी स्कूल के प्रांगण में लौटा। वहाँ पौधारोपण किया गया। यहाँ प्रधानाचार्य अशोक सिंह, शिक्षक जितेन्द्र कुमार, विपिन बिहारी प्रसाद आदि ने जत्थे के साथियों के साथ गुलमोहर और अमलतास के पौधे लगाए।

यहाँ से रवाना होकर लगभग सवा दस बजे स्थानीय निवासी ध्रुव नारायण के घर नाश्ता किया गया। वहाँ से लोमराज सिंह की मूर्ति पर माल्यार्पण कर उनके परिवार के ही सदस्य रघुनाथ सिंह के घर जाकर उन्हें प्रेम और श्रम का प्रतीक चिन्ह गमछा और झोला भेंट किया गया। लगभग 85 वर्ष के बुजुर्ग रघुनाथ सिंह भावविभोर हो उठे। उन्होंने कहा कि आप सब जो कर रहे हैं, वे यहाँ के किसानों द्वारा किये गये संघर्षों को ही सम्मानित कर रहे हैं। आप लोगों ने इस गाँव को जो सम्मान दिया, उसके लिए हम आपके शुक्रगुज़ार हैं। उनकी आँखें भर आई थीं।

See Also

वहाँ से चलकर जत्था सिरसिआ गाँव पहुँचा, जहाँ के मुखिया जितेन्द्र प्रसाद यादव ने अपने ग्रामीणों के साथ जत्थे का स्वागत किया। उस गाँव में जत्था 12 बजे पहुँचा, साढ़े बारह बजे से सांस्कृतिक कार्यक्रम शुरु हुआ। वहाँ के चौक पर काफी संख्या में लोग एकत्रित थे। कार्यक्रम की शुरुआत लक्ष्मीप्रसाद यादव के गीत ‘जवान तुम बढ़े चलो’ से हुई। उसके बाद राजेन्द्र जी ने पहले ‘लेहली देसवा के अजदिया बापू खदिया पहिन के न…’ गाया, उसके बाद ‘तोहर हिरा हेरा गइल कपड़े में’ तथा कबीर के गीत सुनाए, जिन्हें काफी सराहा गया।

मोतिहारी के व्याख्याता हरिश्चंद्र चौधरी ने लोगों को संबोधित किया। उल्लेखनीय है कि चौधरी जी ने चम्पारण आंदोलन पर महत्वपूर्ण पुस्तकें लिखीं हैं। उन्होंने इस जत्थे की ज़रूरत को रेखांकित करते हुए कहा कि, आज के नफरत और घृणा के समय में गांधी जी, भगत सिंह, कबीर जैसे लोगों से प्रेरणा लेकर ही नया समाज बनाया जा सकता है, जो प्रेम और समानता पर टिका होगा। फिर इप्टा के कार्यकारी अध्यक्ष राकेश ने सभा को संबोधित किया। उन्होंने कहा कि, हम आपसे सीखने आए हैं। बिना जनता के जुड़ाव और अपनी सामासिक संस्कृति के साथ जुड़े हम नया समाज नहीं बना सकते, जो प्रेम पर निर्भर होगा, जहाँ जात-पाँत, छुआछूत का भेदभाव नहीं होगा।

खाना खाकर सभी लोग रास्ते में मिलते जुलते हुए कोटवा बाजार पहुँचे। उपस्थित लोगों से संवाद स्थापित करते हुए गीत-संगीत की प्रस्तुति हुई। इसमें जत्थे में शामिल हिमांशु कुमार, संजय, शिवानी गुप्ता, तन्नू कुमारी, अभिषेक कुमार, माया कुमारी, पूजा कुमारी, सुबोध कुमार, राहुल कुमार आदि साथियों ने गीत प्रस्तुत किये। वहाँ से जत्था रात्रि के 08 बजे झखरा बलुआ गाँव पहुँचा, जहाँ स्थानीय साथी जोगी मांझी ने अन्य ग्रामीणों के साथ जत्थे का स्वागत किया।

साढ़े आठ बजे से ग्रामीणों के साथ बातचीत के साथ गीत-संगीत-नाटक की प्रस्तुति की गई। जिसमें राजेन्द्र प्रसाद राय, लक्ष्मी प्रसाद यादव और साथी शामिल थे। यह गाँव मज़दूरों का गाँव था, लेकिन रात के कार्यक्रम में उनकी उपस्थिति बहुत उत्साह प्रदान करने वाली थी।

गाँव की महिलाएँ, बच्चे, युवा सभी ग्रामीण 03 घंटे तक हुए कार्यक्रम से जुड़े रहे और उन्होंने जत्थे की जानकारी लेते हुए प्रेम और समता वाले समाज पर अपना विश्वास जताया। रात्रि विश्राम इसी गाँव में हुआ। जोगी मांझी को भी कबीर गमछा पहनाकर उनका सम्मान किया गया।

इस यात्रा की सहयोगी संस्थाओं में भारतीय जन नाट्य संघ (इप्टा) बिहार, भारतीय जन विकलांग संघ मोतिहारी, बिहार महिला समाज, दलित अधिकार मंच पटना, आइडिया मोतिहारी, जन संस्कृति मंच बिहार, जनवादी लेखक संघ बिहार, कृषक विकास समिति मोतिहारी, लोक परिषद, महात्मा गांधी लोमराज सिंह पुस्तकालय पट्टी जसौली, प्रगतिशील लेखक संघ बिहार, सीताराम आश्रम बिहटा पटना तथा प्रेरणा (जनवादी सांस्कृतिक मोर्चा) प्रमुख हैं।

सत्येन्द्र कुमार
मीडिया प्रभारी, प्रभारी ढाई आखर प्रेम (बिहार)

What's Your Reaction?
Excited
0
Happy
0
In Love
0
Not Sure
0
Silly
0
Scroll To Top