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बिहार पदयात्रा की कहानी : पदयात्रियों की ज़बानी

बिहार पदयात्रा की कहानी : पदयात्रियों की ज़बानी

‘ढाई आखर प्रेम’ राष्ट्रीय सांस्कृतिक पदयात्रा, जो 28 सितम्बर 2023 से 30 जनवरी 2024 तक चल रही है; यह पदयात्रियों और यात्रा के पड़ावों के स्थानीय लोगों के बीच संवाद का निरंतर सिलसिला है। इस पदयात्रा में शुरू से यह बात केंद्र में रखी गयी है कि प्रेम और सद्भाव, आत्मीयता और परस्पर विश्वास की बातें हम लोगों को सिखाने नहीं जा रहे हैं, बल्कि उनसे सीखने भी जा रहे हैं। संवाद के परस्पर आदान-प्रदान को फिर नए सिरे से शुरू करने की यह यात्रा है।

इन्हीं सब बातों को लेकर बिहार के विभिन्न हिस्सों के लगभग 35 कलाकार, साहित्यकार, पत्रकार, युवक-युवतियाँ और बुजुर्ग इस पदयात्रा में 07 अक्टूबर से 14 अक्टूबर तक सम्मिलित रहे। इन्होंने न केवल स्थानीय लोगों से बातचीत की, बल्कि परस्पर बातचीत कर ‘ढाई आखर प्रेम पदयात्रा’ के आपसी अनुभवों को भी साथियों ने रिकॉर्ड किया। साथी निसार अली, रितेश रंजन, शाकिब खान ने कुछ स्थायी पदयात्रियों और ग्रामवासियों की बातों को हम तक पहुँचाया है, जिसके चुनिंदा अंश शब्दों, विचारों, भावनाओं के माध्यम से वीडियो-श्रृंखला के रूप में प्रस्तुत हैं। वीडियोग्राफी की है साथी दिनेश शर्मा ने।

हमारी पीढ़ी बचपन से रेडियो पर ‘गीतों भरी कहानी’ सुनने की आदी रही है। इसकी रोचकता और आत्मीयता दिल-दिमाग़ को बाँधे रखती थी। ‘ढाई आखर प्रेम’ बिहार जत्थे की पदयात्रा में शामिल सभी पदयात्रियों के परिचय और उनके अनुभवों को ‘वीडियो रिपोर्ट’ की शक्ल में तीन कड़ियों में प्रस्तुत करने की कोशिश की जा रही है। पहली दो कड़ियाँ पदयात्रियों पर केंद्रित होंगी और तीसरी कड़ी पड़ावों पर जिन ग्रामवासियों से बातचीत रिकॉर्ड हुई, उनके वीडिओज़ पर केंद्रित होगी।

उल्लेखनीय है कि, बिहार राज्य की पदयात्रा में चार युवा महिला साथी भी स्थाई यात्री के रूप में पूरे आठ दिन सम्मिलित रहीं। सबसे पहले सुतिहर इप्टा की शिवानी गुप्ता के अनुभव सुनते हैं। शिवानी पटना इप्टा से जुडी अहम गायिका हैं। वे 2022 में संपन्न हुई ‘ढाई आखर प्रेम’ यात्रा में भी शामिल थीं।

मधुबनी शहर में रहने वाली इप्टा की युवा साथी माया कुमारी ने अपना अनुभव रोचक ढंग से साझा करते हुए कहा,

मधुबनी इप्टा की ही अन्य साथी नृत्यांगना तन्नू कुमारी ने महिला पदयात्री होने के अपने अनुभव को साझा करते हुए कहा,

वहीं मधुबनी इप्टा की साथी पूजा कुमारी ने अपनी बातें कुछ इस तरह रखीं,

बिहार के सांस्कृतिक जत्थे में नवादा इप्टा के एक विशिष्ट कलाकार भी सम्मिलित थे, जादुगर मनोज कुमार। जादू में कोई चमत्कार नहीं, हाथ की सफाई होती है और दर्शक का मनोरंजन होता है – मनोज कुमार इसे स्पष्टता के साथ बताते हैं।

बिहार के जत्थे में रायपुर निवासी छत्तीसगढ़ी नाचा के लोक कलाकार देवनारायण साहू भी पूरे आठ दिनों तक सम्मिलित थे। वे इससे पूर्व राजस्थान के सांस्कृतिक जत्थे में भी पदयात्री रहे हैं। वे गाँवों में किये गए छत्तीसगढ़ी नाटक में अपनी आकर्षक वेशभूषा और शानदार लोक-अभिनय से ग्रामवासियों का मन जीत लेते थे।

इप्टा भागलपुर के वरिष्ठ साथी, जो पदयात्रा में सांस्कृतिक कार्यक्रमों का संचालन करने के साथ साथ पदयात्रियों के बीच समन्वय का काम भी कर रहे थे तथा पड़ावों पर विभिन्न लोगों से बातचीत की पहल कर रहे थे, साथी रितेश रंजन ने पदयात्रा के सन्देश पर स्थानीय लोगों की सहृदय प्रतिक्रिया का वर्णन करते हुए कहा,

लोग किस तरह अपने छोटे-छोटे व्यवहारों से अपने सदाशय को व्यक्त करते हैं, किस तरह सहायता करते हैं, इसका यह प्यारा उदाहरण है। इसी तरह पदयात्रा में स्थायी यात्री बेगूसराय बीहट इप्टा के वरिष्ठ गायक साथी उमेश साह भी लोगों की सहृदयता से अभिभूत हैं,

जत्थे में बिहार के अलग-अलग शहरों से युवा साथी भी उत्साह से जुड़े थे, जो आठों दिन पदयात्रा में सक्रिय रहे। इनकी सहज-सरल अभिव्यक्ति में एक नए अनुभव की झलक, लोगों की भलमनसाहत पर विश्वास तथा इस तरह की यात्राओं के प्रति विश्वास दिखाई दे रहा है। आठ दिन एक परिवार की तरह विभिन्न तरह के साथियों के साथ घूमना, खाना-पीना, सोना-जागना और अपनी दिनचर्या के कामों के अतिरिक्त पड़ाव के लोगों से मिलना-जुलना सांस्कृतिक कार्यक्रमों की प्रस्तुति के अलावा उनके लिए अद्भुत अनुभव रहा। यह है मढ़ौरा इप्टा के युवा साथी धनंजय कुमार के अनुभव,

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कुछ इसी तरह की समझ पटना के उज्ज्वल कुमार में भी दिखाई देती है। नफरत और बाँटने की राजनीति कैसे और किसके द्वारा पैदा की जाती है, पाली-पोसी जाती है, गाँव के लोगों से मिलकर यह बात और अच्छी तरह उजागर हुई।

मधुबनी इप्टा के एक और युवा साथी सुबोध कुमार, जो नृत्य में दिलचस्पी के कारण पदयात्रा में शामिल थे, उन्होंने कहा,

इप्टा से जुड़े कई साथियों के दिल-दिमाग में यह बात थी कि वे गाँवों में जाकर गाँववासियों को प्रेम-मोहब्बत से रहने का सन्देश देंगे, मगर वे यह देखकर आश्चर्यचकित थे कि अधिकांश लोग प्रेम-मोहब्बत के साथ रहते ही हैं। कुछ युवा मुजफ्फरपुर और मोतिहारी जैसे ऐतिहासिक महत्व के स्थानों को भी देख-सुनकर बहुत अभिभूत हुए, वे भागलपुर इप्टा के राहुल कुमार की तरह महसूस कर रहे हैं,

शहर और गाँव में न केवल भौतिक सुख-सुविधाओं का फ़र्क़ होता है, बल्कि लोगों की मानसिकता में भी फ़र्क़ होता है, इसका अहसास सिवान इप्टा के युवा साथी अभिमन्यु कुमार को हुआ,

शेष पदयात्रियों के अनुभव अगली कड़ी में। शायद इस ‘वीडियो-कहानी’ के माध्यम से बिहार राज्य की पदयात्रा में शामिल साथियों के व्यक्त अनुभव पटना-मुजफ्फरपुर-मोतिहारी क्षेत्र की एक ‘इंद्रधनुषी छवि’ देश के विभिन्न राज्यों के लोगों के सामने प्रस्तुत करे… ! (क्रमशः)

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