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बाँकीपुर जंक्शन (वर्तमान पटना स्टेशन) से बिहार राज्य की ‘ढाई आखर प्रेम’ सांस्कृतिक पदयात्रा शुरू

बाँकीपुर जंक्शन (वर्तमान पटना स्टेशन) से बिहार राज्य की ‘ढाई आखर प्रेम’ सांस्कृतिक पदयात्रा शुरू

(ढाई आखर प्रेम राष्ट्रीय सांस्कृतिक जत्थे के तीसरे चरण के अंतर्गत बिहार में 07 से 14 अक्टूबर 2023 तक पदयात्रा शुरू हो चुकी है। इसकी पूर्व तैयारी के रूप में कबीर के पदों के साथ पदयात्रियों का यह अंदाज़ देखिये।

महात्मा गाँधी ने जन-साधारण से जुड़कर काम करना बिहार से शुरू किया था, इसीलिए बिहार में पदयात्रा के पड़ाव गाँधी जी से सम्बद्ध चुने गए हैं। यहाँ प्रस्तुत है प्रथम दो दिनों 07 एवं 08 अक्टूबर की रिपोर्ट।)

07 अक्टूबर 2023 शनिवार

ढाई आखर प्रेम की पदयात्रा बापू, कबीर, रहीम, रसखान के पद चिह्न और चीन्ह की यात्रा : राकेश

ढाई आखर प्रेम : राष्ट्रीय सांस्कृतिक जत्थे का पहला चरण दिनांक 28 सितंबर 2023 को भगत सिंह के जन्म दिवस से अलवर (राजस्थान) से शुरू होकर 02 अक्टूबर 2023 को महात्मा गांधी के जन्म दिवस पर अलवर में समाप्त हुआ। उसी क्रम में 03 से 06 अक्टूबर तक क्रमशः छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, झारखंड और उत्तर प्रदेश में एक-एक दिन की पदयात्रा के पश्चात तीसरे चरण के अंतर्गत पदयात्रा बिहार में 07 अक्टूबर 2023 को पटना में शुरू हुई।

“ढाई आखर प्रेम: राष्ट्रीय सांस्कृतिक जत्था” देश के राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में प्रेम, बंधुत्व, समानता न्याय और मानवता की संदेश की यात्रा है। इस यात्रा में हम बापू के चम्पारण सत्याग्रह के पदचिह्न पर चलने की कोशिश कर रहे हैं। क्योंकि देश को चम्पारण और गांधी दोनों की तलाश है। डर का माहौल बना कर अपनी बात मनवाने की जबरदस्ती के प्रेम और बंधुत्व के अभियान में हम उसी गांधी को तलाश रहे हैं, जिसने अंग्रेज़ों के नील उगाने के तीन कठिया परंपरा को तोड़ दिया। उस साम्राज्य को झुका दिया, जिसका सूरज कभी नहीं डूबता था।

बिहार में ढाई आखर प्रेम राष्ट्रीय सांस्कृतिक जत्थे की शुरुआत पर गांधी मैदान में दर्शकों को संबोधित करते हुए इप्टा के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष राकेश ने उक्त बातें कहीं। उन्होंने कहा कि इस यात्रा से हम बापू, कबीर, रहीम, रसखान के पद चिह्न और चीन्ह की यात्रा कर रहे हैं।

ढाई आखर प्रेम पदयात्रा की शुरुआत बांकीपुर जंक्शन (पटना जंक्शन) से हुई। अप्रैल 1911 में बापू इसी स्थान पर पहली बार बिहार आए और मुजफ्फरपुर होते हुए चम्पारण पहुंचे। चम्पारण में ही उन्होंने आज़ादी की राह खोल दी।

पटना जंक्शन से शुरू हुई पदयात्रा पटना यूथ हॉस्टल होते हुए भगत सिंह और महात्मा गांधी की प्रतिमाओं पर माल्यार्पण करती हुई, भिखारी ठाकुर रंगभूमि पहुंची और भव्य सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किए।

पदयात्रा में शामिल पदयात्री ‘तू खुद को बदल, तो ज़माना बदलेगा’ गाते हुए चल रहे थे। ढाई आखर प्रेम का नारा लगा रहे थे। सांस्कृतिक संवाद में प्रख्यात चिकित्सक डॉ सत्यजीत, प्रगीतशील लेखक संघ के सुनील सिंह, लोक परिषद् के रूपेश और बिहार इप्टा के कार्यवाह महासचिव फीरोज अशरफ खां ने भी संबोधित किया।

छत्तीसगढ़ से आए नाचा लोक नाट्य शैली के कलाकारों ने गम्मत नाटक की प्रस्तुति की। युवा पदयात्रियों ने कबीर के पदों पर आधारित भावनृत्य प्रस्तुत किया। कल जत्था मुजफ्फरपुर के लिए प्रस्थान करेगा।

08 अक्टूबर 2023 रविवार

प्रेम की अनवरत धारा को हम सूखने नहीं देंगे : राकेश

08 अक्टूबर को मुज़फ़्फ़रपुर में लोकनायक जयप्रकाश नारायण पार्क होते हुए, छाता चौक पर रुक कर वहाँ पदयात्रियों ने पुष्पांजलि अर्पित की गई। जत्थे में शामिल रंगकर्मियों ने गीतों की प्रस्तुति भी दी।

उसके बाद जत्था पैदल चलता हुआ लंगट सिंह कॉलेज पहुँचा। वहाँ से गांधी स्मारक कूप तक जाकर फूल चढ़ाए गए। यही वह जगह है, जहाँ गांधी जी चम्पारण जाने के क्रम में रुके थे। इस कूप का महत्व यह है कि, यहीं गांधी जी ने स्नान आदि क्रियाएँ सम्पन्न की थीं।

प्रेम, बंधुत्व, न्याय, समानता, मानवता के संदेश के साथ बिहार का यह सांस्कृतिक जत्था अन्य साहित्यिक सांस्कृतिक साथियों के साथ लोगों से मिलते, उनसे सीखते, गाते-बजाते हुए जगह-जगह भ्रमण कर रहा है। जत्था के साथी एक गीत गाते बढ़ रहे हैं, जिसे काफ़ी सराहा जा रहा है – “ढाई आखर प्रेम के पढ़ने और पढ़ाने आए हैं, हम भारत से नफ़रत का हर दाग़ मिटाने आए हैं”।

यह जत्था देश में नफ़रत के खि़लाफ़ प्रेम को बाँटने के लिए देश के अनेक राज्यों से गुज़र रहा है। बिहार के जत्थे में शामिल साथी गांधी, कबीर, रैदास, अम्बेडकर, भगत सिंह, तथा सूफ़ी और संत कवियों के प्रेम की जो हमारी विरासत है, उसे लोगों तक लेकर जा रहे हैं। रास्ते में जत्थे के साथियों को प्रेम मिल रहा है, सहयोग मिल रहा है। इस यात्रा का उद्देश्य प्रेम के साथ श्रम के गीत गाना भी है। कबीर के ताने-बाने से बनी यह चादर और गमछा हमारे श्रमिकों की पहचान है। श्रम में भी प्रेम का बीज तत्व छुपा होता है। हमारे देश की एक पुरानी सांस्कृतिक सामाजिक पहचान है, उसी को जन-जन तक पहुँचाना इस जत्थे का उद्देश्य है।

जत्था मुजफ्फरपुर से चल कर जमालाबाद आश्रम (मूसहरी प्रखण्ड) पहुँचा, जहां जय प्रकाश प्रभावती मुसहरी प्रवास स्वर्ण जयंती संवाद पदयात्रा का समापन हो रहा था। वहाँ जत्थे के साथियों ने उनसे मिलकर आपसी बातचीत के माध्यम से अपने-अपने उद्देश्यों का आदान-प्रदान किया। इस ‘ढाई आखर प्रेम’ के जत्थे में इप्टा के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष राकेश नेतृत्व कर रहे थे। फिरोज अशरफ खान, बिहार इप्टा के कार्यवाह महासचिव और इप्टा के दूसरे साथी नेतृत्वकारी भूमिका अदा कर रहे हैं। प्रगतिशील लेखक संघ की ओर से सत्येंद्र कुमार इस जत्थे के साथ हैं, क्योंकि इस जत्थे में इप्टा के साथ-साथ प्रलेस, जलेस, जसम, नट नाट्य मंच आदि संगठनों के साथियों का सहयोग है।

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जत्था अगले पड़ाव मोतिहारी (पूर्वी चम्पारण) के जसौली पट्टी ग्राम के लिए रवाना हुआ। समूचे गाँव की पदयात्रा करते हुए, स्थानीय लोगों से मेल-मुलाकात, बातचीत करते हुए सभी पदयात्रियों ने जसौली पट्टी के एक विद्यालय में सांस्कृतिक संध्या के लिए विराम लिया। यह वही गाँव है, जहाँ से अप्रेल 1917 में बापू को निलहे किसानों को सुनना था, लेकिन कुछ किलोमीटर पहले ही चंद्रहइया गाँव में गाँधी जी को जिला छोड़ने का नोटिस मिल गया और उन्हें लौटना पड़ा था।

इप्टा के कार्यकारी अध्यक्ष राकेश ने ग्राम जसौली पट्टी पहुँचने के बाद लिखा,

‘ढाई आखर प्रेम’ सांस्कृतिक पदयात्रा के साथ आज शाम चम्पारण के ऐतिहासिक गाँव जसौली पट्टी में हूँ। बिजली आ-जा रही है, चारों ओर घुप्प अँधेरा है। कार्यक्रम के स्थानीय संयोजकों ने जनरेटर की व्यवस्था की है पर अभी व्यवस्था पूरी नहीं हो पाई है। यह वही गाँव है, जहाँ 106 साल पहले 16 अप्रेल 1917 को गाँधी राजकुमार शुक्ल के निमंत्रण पर निलहे गोरों और स्थानीय ज़मींदारों द्वारा सताए जा रहे किसानों का दुःख-दर्द जानने पहुंचे थे। इसी जगह से मोहनदास कर्मचंद गाँधी की महात्मा गाँधी बनने की यात्रा शुरू हुई थी और भारत के स्वाधीनता आंदोलन का ताना बाना रचा गया था। एक तरह से यहीं से सत्याग्रह की शुरुआत हुई थी। सांस्कृतिक दल के साथियों ने गांव में पदयात्रा की और अभी थोड़ी देर में शुरू होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रम में भागीदारी का आह्वान किया है। गांव के स्कूल में ज़मीन पर बिस्तर लगे हैं। दिक्कतें हैं लेकिन यह सोच कर रोमांचित हुआ जा सकता है कि गांधी ने इससे भी कठिन परिस्थितियों में एक सफल आंदोलन की शुरुआत की थी, जिसके मूल में था किसानों के मन से “भय” निकालना। आज जब नफ़रत और भय का वातावरण बनाया जा रहा है, यह यात्रा एक बड़े आत्मबल का काम करे।’

राकेश जी ने रास्ते में इस जत्थे के उद्देश्य पर प्रकाश डाला। यह जत्था जमालाबाद में लोकनायक जयप्रकाश जी की यात्रा के समापन पर मिल रहा था, तो एक ऐतिहासिक वातावरण पैदा कर रहा था। इप्टा के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष ने कहा कि ‘एक यात्रा का समापन और दूसरी यात्रा की शुरुआत एक ऐसा बिंदु है जो हमें यह सीख देता है कि हम अपनी परंपरा, संस्कृति की शृंखला से इस तरह जुड़े हैं कि यह लगातार उस सामासिक संस्कृति को ज़िंदा ही नहीं रखता, उसे मज़बूत भी बनाता है। यह अनवरत चलने वाली प्रेम की धारा है, जो कहीं नहीं सूखती और न हम इसे सूखने देंगे; क्योंकि इसका सूख जाना आत्महत्या करना होगा किसी भी देश के लिए। हमारा संकल्प है कि हम गाँव के मज़दूरों, किसानों, महिलाओं आदि के संघर्षों, उनके गीतों से मिलकर एक समता, समानता, भाईचारे पर टिके समाज का निर्माण करेंगे। हम लोगों से सीखते हुए इस यात्रा को आगे बढ़ाएँगे।’

(यह रिपोर्ट सत्येन्द्र कुमार, मीडिया प्रभारी ढाई आखर प्रेम (बिहार) से प्राप्त हुई है तथा फोटो साथी नसीरुद्दीन सौजन्य से प्राप्त हुए हैं।)

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