इप्टा की स्थापना के पूर्व से की गयी सांस्कृतिक यात्राओं की विरासत को उत्तर प्रदेश इप्टा ने 1989 से 1999 के बीच अनेक चरणों में आगे बढ़ाया। प्रत्येक यात्रा को किसी न किसी उद्देश्य पर केंद्रित किया गया था। पहले हम दो यात्राओं के बारे में जान चुके हैं, जो ‘पदचीन्ह कबीर’ और ‘पहचान नज़ीर’ शीर्षक के अंतर्गत की गयी थीं। इस कड़ी में प्रस्तुत है, उत्तर प्रदेश इप्टा की महिला-प्रश्नों पर केंद्रित सुभद्रा कुमारी चौहान जन-जागरण सांस्कृतिक यात्रा। यह रिपोर्ट इप्टा के कार्यकारी अध्यक्ष राकेश ने उपलब्ध करवाई है , इसे तैयार किया था अखिलेश दीक्षित ने। ये सांस्कृतिक यात्रायें आगामी 28 सितम्बर 2023 से अलवर राजस्थान से आरम्भ होने वाली ‘ढाई आखर प्रेम’ सांस्कृतिक पदयात्रा के लिए वर्तमान परिस्थितियों के अनुसार नई दिशाएँ तलाशने की प्रेरणा देंगी। – उषा वैरागकर आठले )
मैं जननी मोरा बरसे नयनवा
20 अप्रेल 1997 दोपहर को लखनऊ इप्टा के कलाकार रंगकर्मी पोस्टरों-बैनरों तथा परचों से लैस होकर लगभग 30 की संख्या में फर्रूखाबाद के लिए रवाना हुए और शाम साढ़े सात बजे तिरवा पहुँचे। तिरवा से लगभग 20 किलोमीटर मुख्य मार्ग से हटकर इंदरगढ़ में पहला कार्यक्रम प्रस्तुत करना था। रास्ता उबड़ खाबड़ होने के कारण और बिजली गायब होने के कारण वहाँ पहुँचने में कुछ विलम्ब हुआ। इंदरगढ़ के तिराहे पर पहुँचते ही रोशनी और चहलपहल दिखाई दी। बाजार के चबूतरे को स्टेज में बदल दिया गया। कन्नौज के कलसन गाँव की प्रधान धनदेवी अपनी महिला कार्यकर्ताओं के साथ व्यवस्था में जुटी थीं। दूरदराज से आई हुई महिलाएँ शाम से ही प्रतीक्षा में बैठी थीं। इसलिए अविलंब ही कार्यक्रम प्रारम्भ कर दिया गया। श्रीमती धनदेवी, श्री रामबाबू भूतपूर्व अध्यापक राजकीय विद्यालय इंदरगढ़ और राकेश, महामंत्री इप्टा ने सांस्कृतिक यात्रा के उद्देश्यों के बारे में बताया।
स्थानीय लोगों का मत था कि देश की सांस्कृतिक धरोहर को बचाने, स्त्री को शोषणमुक्त कराने तथा समाज में मानवीय मूल्यों की स्थापना में इस तरह की यात्राएँ बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं। सांस्कृतिक कार्यक्रम की शुरुआत हुई जनगीत ‘औरतें उट्ठी नहीं तो जुल्म बढ़ता जाएगा’ से। इस गीत के समाप्त होते-होते इंदरगढ़ का मैदान खचाखच भर गया। आगे की लगभग 10 पंक्तियों में केवल महिलाएँ एवं बच्चे ही थे। जनगीतों के बाद जन नाट्य मंच रचित नुक्कड़ नाटक ‘औरत’ का मंचन किया गया। नाटक में विभिन्न सामाजिक परिवेश से आने वाली महिलाओं की दुर्दशा और उनके संघर्ष की कहानी कही गई है। दर्शकों ने, विशेष कर महिलाओं ने इस नाटक को बहुत सराहा। यात्राओं या अन्य अवसरों पर कार्यक्रम करते हुए न जाने कितने ऐसे अनुभव हैं, जब दर्शकों में कुछ उत्साही महिलाएँ आगे आती हैं। कलाकारों को भी लगता है कि उन्हें भी कुछ सफलता मिली अपने उद्देश्यों में। परंतु कभी-कभी यह उत्साह श्मशान का बैराग जैसा लगता है या यह भी विचार आता है कि, जो आगे आई हैं, वो नारों से प्रेरित होकर या आंदोलन की आत्मा को समझकर…
मुद्दे बहुत हैं
पर प्रश्न उठाने से पहले
क्या तुमने
आदमी और औरत के संबंधों पर
कभी गौर किया
क्रांति में हिस्सा लेने वाली मेरी साथियों,
तुम केवल जुलूस में सबके पीछे मत चलो
पहले अपनी माँग बिल्कुल अलग से रखो…
किसान कॉलेज तिरवा में वार्षिक परीक्षाएँ चल रही थीं। हम लोगों ने परीक्षा समाप्त होने की प्रतीक्षा की। परीक्षा समाप्त होते ही बरामदे और सामने के आम के बाग में दरियाँ बिछा दी गईं। स्कूल के सारे छात्र और अध्यापक एक जगह जमा हो गए। यहाँ भी यात्रा के दौरान कई अन्य स्थानों की तरह छात्राएँ सामने की पंक्तियों में न बैठकर किनारे के बरामदे में बैठीं…
तेरे माथे का टीका मर्द की किस्मत का तारा है,
अगर तू साज़-ए-बेदारी उठा लेती तो अच्छा था।
- मजाज़
कार्यक्रम का आरम्भ दो नई प्रस्तुतियों से हुआ, जिसमें से एक था नज़ीर अकबराबादी का गीत ‘रीछ का बच्चा’। इसमें एक भालू नचाने वाले और भालू के बच्चे का ज़िक्र है, जिसे बाजार में करतब दिखाने लाया गया है। इस रीछ के बच्चे से इप्टा के साथियों की पहली मुलाकात आगरे से दिल्ली जाते वक्त ‘पहचान नज़ीर’ नव-जागरण सांस्कृतिक यात्रा के दौरान हुई थी। यह नज़ीर अकबराबादी भी बस कमाल के थे। दुनिया की शायद ही कोई शै बची हो, जिस पर इन्होंने कुछ लिखा न हो। आदमीनामा… रोटी… बंजरनामा और न जाने क्या क्या…!
पगड़ी भी आदमी की उतारे है आदमी
चिल्ला के आदमी को पुकारे हैं आदमी
और सुन के दौड़ता है सो है वो भी आदमी।
‘रीछ के बच्चे’ के बाद ओ पी अवस्थी के निर्देशन में चेखव की प्रसिद्ध कहानी पर आधारित नाटक ‘गिरगिट’ हुआ। अंत में मऊ इप्टा के कलाकार हरेन्द्र शर्मा ने अदम गोंडवी की रचना प्रस्तुत की। उन्हीं का एक और शेर जे़हन में उभरने लगा,
जो ग़ज़ल माशूक के जलवों से वाकिफ हो गई
उसको अब बेवा के माथे की शिकन तक ले चलो।
अब सांस्कृतिक कर्मियों का यह दल गुरु सहाय गंज पहुँचा। दर्शकों की भीड़ पहले से ही मौजूद थी। एक ट्रेक्टर ट्रॉली में खचाखच भरी महिलाएँ अपनी उपस्थिति का अहसास बिल्कुल अलग से करा रही थीं। लगा जैसे हमारी यात्रा का उद्देश्य जानकर उसकी सफलता सुनिश्चित कराना चाहती हैं। कार्यक्रम का आरम्भ हुआ कोरस के गीत से ‘जब तक रोटी के प्रश्नों पर…’। कोरस के पश्चात मऊ इप्टा के साथी डॉ. जयप्रकाश ने मौजूदा सामाजिक हालत में महिलाओं और पुरुषों में संवाद बना रहे, इस बात पर बल दिया। इसके बाद बारी थी आजमगढ़ इप्टा के साथी मोतीराम यादव की। मोतीराम यादव का ‘जोगीरा’ लोकगीत पूर्वी उत्तर प्रदेश की यात्रा के दौरान इतना पसंद किया गया कि उन्हें आजमगढ़ से बुलाकर मध्य और पश्चिम उत्तर प्रदेश में प्रसारित और प्रचारित करने को कहा गया। जोगीरा सुनकर श्रोता मंत्रमुग्ध रह गए।
आगे बढ़कर यह यात्रा छिबरामऊ, नबीगढ़ होते हुए कन्नौज से साठ किलोमीटर दूर बसे कस्बे बेवर में पहुँची। बेवर की जनता का ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ में विशेष योगदान रहा है। 15 अगस्त 1942 को भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान बेवर के नौजवानों और छात्रों ने एक दिन के लिए ब्रिटिश राज से बेवर को मुक्त करा लिया था। इसी दिन थाने के सामने बेवर के लोगों पर पचास रायफलों से फायर किया गया। इसमें शहीद होने वालों में कक्षा सात का विद्यार्थी कृष्ण कुमार, जमुना प्रसाद त्रिपाठी और सीताराम गुप्ता थे। इन शहीदों की याद में बेवर थाने के ठीक सामने शहीद स्मारक बनाया गया है, जिसमें शहीदों की मूर्तियाँ स्थापित की गई हैं। बेवर में यात्रा की अगवानी स्वतंत्रता सेनानी जे एन त्रिपाठी ने की, जो स्वयं इस ऐतिहासिक घटना में भागीदार थे। इप्टा की पूरी टीम ने इन शहीदों का क्रांतिकारी अभिवादन किया और माल्यार्पण करके उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की। इस अवसर पर स्वतंत्रता संग्राम सेनानी त्रिपाठी जी ने शहीदों की मूर्ति के समक्ष खड़े सभी रंगकर्मियों का इन शहीदों से परिचय करवाया और स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास के उस दिन का ब्यौरा दिया, जब बेवर को मुक्त करा लिया गया था। उन्होंने यात्रा की सफलता की कामना की और कहा कि आज की सामाजिक परिस्थितियों में सांस्कृतिक कार्य द्वारा ही आम जनता के दुखों और उनकी समस्याओं का समाधान ढूँढ़ा जा सकता है। उत्तर प्रदेश इप्टा के महामंत्री राकेश ने कहा कि, इतिहास के इस रोमांचकारी क्षण को नौजवानों को याद रखना चाहिए, जिससे उन्हें प्रेरणा मिलेगी कि आज़ादी की लड़ाई के समय 13-14 वर्ष के छात्रों और नौजवानों ने अपनी जान की बाजी लगा दी, किसी और के हित के लिए नहीं, बल्कि देश के लिए। आज़ादी के इस स्वर्ण जयंती वर्ष में आज की युवा पीढ़ी को इस पर विचार करना चाहिए।
मुख्य सांस्कृतिक कार्यक्रम साढ़े आठ बजे बेवर के मुख्य बाजार में होना था। शाम को जलपान और चाय के बाद सारे रंगकर्मी फिर से रात के कार्यक्रम के लिए तैयार थे। बिजली न आने से मुख्य बाजार में अंधेरा था। पेट्रोमैक्स की व्यवस्था की गई। कुछ दुकानदारों ने अपनी दुकान के बाहर जनरेटर द्वारा चल रही ट्यूबलाइट को बाहर लगाया और कार्यक्रम के आयोजन से पूर्व कलाकारों को माल्यार्पण कर उनका स्वागत किया। स्थानीय निवासियों ने सभी व्यवस्थाएँ बड़ी लगन से कीं। कार्यक्रम का आरम्भ सशक्त कोरस ‘आज़ादी ही आज़ादी’ से हुआ, जिसे गाया प्रसिद्ध गायक रवि नागर और इप्टा के साथियों ने। इस गीत में दर्शक-श्रोता भी बराबरी से भागीदारी करते हैं। हज़ारों की संख्या में जब लोग धर्मान्धता, मज़हबी वैमनस्य व रूढ़िवादिता के खिलाफ आज़ादी का नारा बुलंद करते हैं, तब सारा आकाश गूँज उठता है। बेवर का मुख्य बाजार दर्शकों से खचाखच भर चुका था। कोरस के बाद प्रेमचंद की कहानी पर आधारित नाटक ‘हिंसा परमो धर्म’ का सफल मंचन हुआ। कार्यक्रम के समापन के बाद दर्शकों ने आपस में और इप्टा के रंगकर्मियों से चर्चा-परिचर्चा की।
प्रातः बेवर से निकलकर कुछ ही दूरी पर आदि ऋषि कपिल मुनि के आश्रम करपिया पहुँचे। यहाँ कनौज और भनपुरी की यात्रा करने वाले यात्री अवश्य ही रूकते हैं। आज के दिन की शुरुआत भजन और जनगीतों से हुई। दूसरा बहुत प्रभावशाली कार्यक्रम बनकिया गाँव के श्री गुरु तेग बहादुर जूनियर हाईस्कूल में हुआ, जहाँ परीक्षाएँ चल रही थीं। यह गाँव हमारे पूर्व निश्चित स्थलों में नहीं था और हम लोगों के अनुरोध पर कार्यक्रम करवाया गया। यहाँ लगभग चार सौ विद्यार्थी अलग-अलग समूहों में आम के बड़े बाग में परीक्षाएँ दे रहे थे। स्कूल के सारे छात्र-छात्राएँ और शिक्षक एकत्र हो गए। कार्यक्रम प्रारम्भ होने ही वाला था कि एक शिक्षिका भागी हुई आई और उन्होंने कहा, एक मिनट रूक जाइये, कार्यक्रम से पूर्व हम आपका स्वागत करना चाहते हैं। आठ-दस वर्ष की दो लड़कियों ने सरस्वती-वंदना और स्वागत-गीत गाया। बच्चों के निश्छल स्वर में सरस्वती-वंदना ने ‘पदचीन्ह कबीर’ यात्रा के दौरान जंगीपुर के बच्चों द्वारा गाये गये एक गीत – ‘पनिया आवत है मांझी तैयार’ की याद ताज़ा कर दी। वेदा राकेश और अन्य साथियों ने मिलकर सुभद्रा कुमारी चौहान का गीत ‘मेरा नया बचपन’ प्रस्तुत किया।
पाया मैंने बचपन फिर से
बचपन बेटी बन आया
जिसे खोजती थी बरसो से
अब जाकर उसको पाया।
रवि नागर और साथियों ने ‘बच्चियाँ उठी नहीं तो जुल्म बढ़ता जाएगा’ और नज़ीर अकबराबादी का गीत ‘रीछ का बच्चा’ प्रस्तुत किया। सबसे अधिक जो कार्यक्रम उन छात्र-छात्राओं को पसंद आया, वह था अन्तोन चेखव का नाटक ‘गिरगिट’, विनोद उपाध्याय बड़े अफसर की भूमिका में बहुत पसंद किये गये। स्थानीय ग्रामीण गायकों और इप्टा कलाकारों ने इस गीत को मिलकर गाया…
सास ससुर मेरे बैरी हो गए कर कमरे में बंद,
दौड़ी गयी तेल ले आई मेरी छोटी ननद
हाथ में दियासलाई… बलम ने आग लगाई।
सभी कलाकारों और सहयात्रियों ने गुड़ खाया, ठंडा पानी पिया और चल दिये पीपल मंडी, भोगाँव की ओर। भोगाँव में कार्यक्रम का प्रारम्भ मोतीराम यादव के ‘जोगीरा’ से हुआ। उसके बाद साथी रवि नागर ने शलभ श्रीराम सिंह का आवाहन गीत ‘नफ़स-नफ़स क़दम-क़दम’ प्रस्तुत किया। ओ पी अवस्थी द्वारा निर्देशित नाटक ‘गिरगिट’ का भी मंचन हुआ। जाने-माने सामाजिक कार्यकर्ता श्री लल्लूसिंह चौहान ने जन-जागरण सांस्कृतिक यात्रा की सार्थकता पर अपने विचार व्यक्त कर श्रोताओं का ध्यान आकर्षित कराया। अगले दिन सुबह दीवानी कचहरी में जनगीत और नाटक का एक बड़ा कार्यक्रम हुआ। दर्शकों में एक बुजुर्ग सज्जन ने कहा, ‘आप लोग सर्चलाइट जैसे हैं।’ उनका यह आशीर्वचन भारत की आम जनता के भोलपन, संवेदनाओं, मूल्यों और निष्कपट अभिव्यक्ति का सशक्त उदाहरण-सा लगा। यह बुजुर्ग तो प्रतिनिधि थे उस जन-शक्ति के, जो लगातार इस आयोजन, इस यात्रा और इसके उद्देश्यों में ऊर्जा प्रवाहित कर रही थी। यही ऊर्जा, यही प्रोत्साहन लेकर कलाकारों का जत्था अब चल पड़ा था आगरा की ओर, जहाँ पहुँचकर शुरु होना था अगला अभियान ‘सरोजनी नायडू जन-जागरण सांस्कृतिक यात्रा…’