Now Reading
उत्तर प्रदेश की सांस्कृतिक यात्राएँ : पाँच : आधी आबादी का सफ़रनामा : एक : सरोजनी नायडू जन-जागरण सांस्कृतिक यात्रा (24 से 27 अप्रेल 1997 आगरा से अलीगढ़)

उत्तर प्रदेश की सांस्कृतिक यात्राएँ : पाँच : आधी आबादी का सफ़रनामा : एक : सरोजनी नायडू जन-जागरण सांस्कृतिक यात्रा (24 से 27 अप्रेल 1997 आगरा से अलीगढ़)

इप्टा की स्थापना के पूर्व से की गयी सांस्कृतिक यात्राओं की विरासत को उत्तर प्रदेश इप्टा ने 1989 से 1999 के बीच अनेक चरणों में आगे बढ़ाया। प्रत्येक यात्रा को किसी न किसी उद्देश्य पर केंद्रित किया गया था। पूर्व की दो कड़ियों में हम पहली दो यात्राओं के बारे में जान चुके हैं, जो ‘पदचीन्ह कबीर’ और ‘पहचान नज़ीर’ शीर्षक के अंतर्गत प्रस्तुत हुई हैं। तीसरी यात्रा महिला-प्रश्नों पर केंद्रित ‘आधी आबादी का सफरनामा’ के पहले चरण की पहली यात्रा ‘प्रेमचंद जन-जागरण सांस्कृतिक यात्रा तथा इसी चरण की दूसरी यात्रा ‘सुभद्रा कुमारी चौहान जन-जागरण सांस्कृतिक यात्रा’ थी। उसी के तारतम्य में इस कड़ी में महिला-प्रश्नों पर केंद्रित ‘आधी आबादी का सफरनामा’ के पहले चरण की तीसरी यात्रा सरोजनी नायडू जन-जागरण सांस्कृतिक यात्रा’ की रिपोर्ट प्रस्तुत है। यह रिपोर्ट इप्टा के कार्यकारी अध्यक्ष राकेश ने उपलब्ध करवाई है , इसे तैयार किया था अखिलेश दीक्षित ने। उम्मीद है कि ये सांस्कृतिक यात्राएँ आगामी 28 सितम्बर 2023 से अलवर राजस्थान से आरम्भ होने वाली ‘ढाई आखर प्रेम’ सांस्कृतिक पदयात्रा के लिए वर्तमान परिस्थितियों के अनुसार नई दिशाएँ तलाशने की प्रेरणा देंगी। – उषा वैरागकर आठले )

बची अकेली मैं सखियों की टोली में

सरोजनी नायडू जन-जागरण सांस्कृतिक यात्रा का आरम्भ 24 अप्रेल 1997 को यूथ हॉस्टल आगरा में एक गोष्ठी के आयोजन से हुआ। गोष्ठी का विषय था, ‘बदलता समाज एवं परिवार’। संयोजिका ज्योत्स्ना सिंह, सह संयोजिका रश्मि श्रीवास्तव के कठिन परिश्रम और प्रयासों से संगोष्ठी में भाग लेने वाले वक्ताओं को संगोष्ठी की विषयवस्तु बहुत स्पष्ट थी और जिससे सभी वक्ता, जिनमें मुख्यतया महिलाएँ थीं, भटकाव का शिकार होने से बचे रहे।

आगरा के यूथ हॉस्टल में आयोजित इस संगोष्ठी की अध्यक्षता मीडियाकर्मी शहीरा नईम ने की और मुख्य अतिथि थीं लेखिका व नाट्यकर्मी वेदा राकेश। आगरा इप्टा के अध्यक्ष धर्मपाल शाहनी, महामंत्री बी एन शुक्ला और सह संयोजिका रश्मि श्रीवास्तव ने अतिथि कलाकारों का स्वागत किया।

गोष्ठी के पूर्व बसंत वर्मा ने सरोजनी नायडू के जितेन्द्र रघुवंशी द्वारा हिंदी में अनुवादित दो गीत ‘समय की चिड़िया’ और ‘गोंवंदा’ की प्रभावशाली प्रस्तुति की। आगरा इप्टा के साथी और राष्ट्रीय इप्टा के महामंत्री जितेन्द्र रघुवंशी ने इन गीतों का बड़ा ही गर्भित भावानुवाद किया है। इसमें ‘समय की चिड़िया’ विशेष रूप से उल्लेखित है।

1914 में सरोजनी नायडू इंग्लैण्ड में बीमार पड़ी। गोपाल कृष्ण गोखले भी उन दिनों वहीं थे। उन्होंने सरोजनी नायडू से कहा, ‘तुम्हारी जैसी गाने वाली चिड़िया के पास टूटा पंख होने का क्या मतलब है, मुझे लगता है, तुम्हारी अविजित चमक के पीछे उदासी छिपी हुई है। क्या इसलिए कि, तुम मृत्यु के इतने पास आ गई और उसकी परछाइयाँ छूने लगी हो…’। ‘नहीं नहीं’, श्रीमती नायडू ने जवाब दिया, ‘मैं ज़िंदगी के इतने पास आ गई हूँ कि इसकी लपटों ने मुझे झुलसा दिया है।’

मेरे गीत वहीं जन्मे हैं
जहाँ नीड़ है नव बसंत का
जहाँ आत्म-गौरव ने बढ़कर
जीत लिया है दुर्ग नियति का… समय की चिड़िया
झूमते गाते वन-उपवन में
नई वधू की मुस्कानों में
माँ की अनुनय से जो काँपे
दिनों के ऐसे अवसानों में … समय की चिड़िया
नहीं नहीं कोई मृत्यु नहीं है
मैं जीवन के इतने पास
इसकी अग्नि शिखाएँ लपकीं
झुलसा बैठी मेरे पाँख … समय की चिड़िया
पंख भले ही टूट गया हो
आत्मा लेकिन अजर अमर है
मैं ऊँची उड़ती जाऊँगी
नहीं भाग्य का मुझको डर है… समय की चिड़िया

संयोजिका ज्योत्स्ना सिंह ने कहा कि, सरोजनी नायडू भारत में नारी आंदोलन की जन्मदाता थीं। 13 फरवरी को इनका जन्मदिन भारतीय महिला दिवस के रूप में मनाया जाना चाहिए। उनकी कविता और जीवन देश के लिए था।

गोरखपुर विश्वविद्यालय की पूर्व उपकुलपति डॉ. प्रतिमा अस्थाना ने कहा कि नारी को महिमामंडित करके उसके शोषण का दोहरा-तिहरा चक्र चलता है। उपभोक्ता संस्कृति भी उसी को कमज़ोर कर रही है। विचारणीय प्रश्न यह है कि नारी-मुक्ति किन अर्थों में हो? जनवादी महिला समिति की महामंत्री सरोज कुशवाहा ने चिंता व्यक्त की कि, समाज और परिवार में सकारात्मक बदलाव बहुत धीमी गति से हो रहे हैं।

इस गोष्ठी में सर्वोदयी नेता मनोरमा शर्मा, समाज विज्ञान संस्थान की प्रवक्ता डॉ सुषमा लहरी, महिला उद्यमी एसोसिएशन की अध्यक्ष वीणा गुप्ता, आगरा केन्ट की महिला पार्षद डॉली सचदेवा, अ भा महिला परिषद की अध्यक्ष और आर बी एस कॉलेज में रीडर डॉ सुधा सक्सेना आदि ने अपने विचार रखें।

रात का कार्यक्रम आगरा से लगभग 20 किलोमीटर दूर ग्राम मलपुरा में था, जहाँ सांस्कृतिक प्रस्तुतियाँ देर रात तक चलीं। पीपल के बड़े पेड़ के नीचे कार्यक्रम की शुरुआत ‘जोगीरा’ से हुई। वक्ताओं ने महिला मुक्ति आंदोलन को एक सही दिशा देने के लिए प्रयासरत रहने को कहा। जानी मानी कवयित्री डॉ. शशि तिवारी ने अपने मधुरतम स्वर में सुनाया,

समझो न कोई अबला, सबला हैं नारियाँ
निष्फल न कहो हमको, सफला हैं नारियाँ।

लखनऊ इप्टा के रंगकर्मियों ने ‘औरतें उट्ठी नहीं तो जुल्म बढ़ता जाएगा’ जनगीत और नाटक ‘गिरगिट’ प्रस्तुत किया। आगरा इप्टा के कलाकारों ने ब्रज के लोकगीत गाए और जितेन्द्र रघुवंशी द्वारा लिखित नाटक ‘देवता चौराहे का’ का मंचन किया। रात लगभग 3 बजे सब सोये।

मेडिकल कॉलेज के सांस्कृतिक सचिव डॉ. वरूण सरकार ने इप्टा की प्रस्तुतियों को उत्कृष्ट सांस्कृतिक अनुभव की संज्ञा दी। विद्यार्थियों की ओर से आलोक मित्तल ने यात्रियों का स्वागत किया। उसके बाद जनगीतों और नाटक ‘औरत’ की प्रस्तुति की गई। नूरी दरवाज़े पर शहीद भगतसिंह को माल्यार्पण करने के बाद अगला कार्यक्रम नगलापदी में आयोजित किया गया, जहाँ जनगीतों के अलावा ‘गिरगिट’ नाटक की प्रस्तुति की गई।

See Also

दूसरे दिन सुबह पहला कार्यक्रम लक्ष्मी नगर में हुआ। कार्यक्रम की शुरुआत मोतीराम के ‘जोगीरे’ से हुई। मऊ के साथी शिवमुनि पाण्डे ने जनगीत पेश किया।


इस हादसे में शर्म तो उन जघन्य अपराधियों को आनी चाहिए, जिन्होंने यह कुकर्म किया है। यह लड़की क्यों मुँह छिपाए घर में बैठी रहे?

डहरूवा गाँव के प्राथमिक विद्यालय के मैदान में हमारी साथी रंगकर्मी वेदा की आवाज़ गूँजी, तो चारों ओर सन्नाटा छा गया। गाँव पहुँचते ही पता चला कि अभी दस दिन पहले इस ठाकुर जाटव बहुल गाँव में जहाँ दो मुस्लिम परिवार भी रहते हैं, उन्हीं में से एक की 15-16 वर्षीय बालिका का कुछ लोगों ने अपहरण कर बलात्कार किया। इप्टा के रंगकर्मियों ने उत्पीड़ित परिवार से भेंट की। पता चला कि कानूनी कार्यवाही की जा रही है। अपराध में शामिल कुछ अपराधियों को पुलिस हिरासत में भी लिया जा चुका है। लेकिन परिवार का और उस लड़की का मनोबल धरातल तक पहुँच चुका है। वह घर से बाहर नहीं निकल सकती – शर्म से। इप्टा के सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन गाँव के प्राथमिक विद्यालय में होना था। आधी टीम विद्यालय पहुँच चुकी थी। लेकिन कार्यक्रम तब तक शुरु नहीं किया गया, जब तक उस लड़की को इप्टा के कुछ रंगकर्मी घर से साथ लेकर कार्यक्रम स्थल तक नहीं आए। गाँव के लोग इकट्ठा हो चुके थे। इप्टा की रंगकर्मी वेदा राकेश ने गाँव वालों का आह्वान किया कि न्याय दिलाने में वे इस लड़की का साथ दें। जनगीतों के पश्चात यहाँ पर ‘औरत’ नाटक को इम्प्रोवाइज़ करके सशक्त मंचन किया गया। आगे मुरशान कस्बे में अलीगढ़ इप्टा की टीम पहले से ही मौजूद थी। उन्होंने सांस्कृतिक यात्रियों की अगवानी की। सभी लोग जुलूस बनाकर बाज़ार होते हुए रामलीला मैदान पहुँचे, जहाँ ‘जोगीरा’ और जनगीतों के बाद ‘गिरगिट’ का मंचन हुआ।

दूसरे दिन का पहला कार्यक्रम एक मोहल्ले में हुआ, जो हाथरस की एक दलित बस्ती है। कार्यक्रम का आरम्भ लखनऊ इप्टा द्वारा इब्ने इंशा की नज़्म ‘यह बच्चा कैसा बच्चा है’ से हुआ। इसके बाद दर्शकों की भारी भीड़ को देखते हुए दो नाटक ‘औरत’ और ‘गिरगिट’ का मंचन किया गया। आगे मांटगाँव में जनगीतों का कार्यक्रम हुआ। इसी क्षेत्र में महिलाओं के बीच काम कर रही मिथिलेश शर्मा सामने आईं। उन्होंने महिलाओं को एकजुट करने और खेतिहर मज़दूर महिलाओं को समान मज़दूरी दिलाने के संघर्ष के बारे में चर्चा की।

नुक्कड़ नाटकों एवं जनगीतों का कार्यक्रम पेश करते हुए सरोजनी नायडू जन-जागरण सांस्कृतिक कार्यक्रम देखने आई आसपास के गाँवों की भारी भीड़ को व्यवस्थित करना मुश्किल हो रहा था। ‘औरत’ नाटक के मंचन के बाद बहुत सारी महिलाओं ने महिला रंगकर्मियों को घेर लिया और उन्हें अपनी दुखभरी कहानियाँ सुनाने लगीं। बहुत सी दर्शक महिलाओं ने नाटक के पात्रों को अपनेआप के समीप पाया और महसूस किया कि उसमें उनकी ही दुर्दशा दर्शायी गई है। एक-एक करके चार ऐसी महिलाएँ सामने आईं, जिनके पतियों ने उन्हें अपने घर से मारपीट कर निकाल दिया था। सबके बच्चे थे। सब अपने मायके में थीं। एक ही गाँव की थीं – बेसहारा। इन्हें आवश्यकता थी आर्थिक, सामाजिक और न्यायिक सहायता की।

इप्टा के रंगकर्मियों ने स्थानीय समाज सेवक और कुछ वकीलों के साथ मिलकर यह तय किया कि, स्थानीय लोग उनकी आर्थिक, सामाजिक और न्यायिक मामलों में मदद करेंगे और उन्हें न्याय दिलवाएंगे। रंगकर्मियों, पत्रकारों, साहित्यकारों के अलावा मीडियाकर्मी शाहिद और उनके सहयोगी भी लगातार इन यात्राओं में चल रहे थे। बाकी सभी की आवाज़ तो सुनाई दे जाती थी, पर इनकी आवाज़ सुनना ज़रा मुश्किल काम था – क्योंकि लगातार इनकी आँख कैमरे के लेंस पर और हाथ अपरचर पर ही रहता था। तभी यात्राओं की तमाम गतिविधियों का गवाह रहा इनका कैमरा।

मशहूर सिकन्दराराऊ और उसका बाजार सरोजनी नायडू जन-जागरण सांस्कृतिक यात्रा का अंतिम पड़ाव था। हमारी यात्रा शाम के लगभग 7 बजे जब वहाँ पहुँची, तो आसमान में बिजली चमक रही थी। देखते-देखते पूरा आसमान घने बादलों से घिर गया। एक स्थान पर जनगीत और नाटक का कार्यक्रम तो सफलतापूर्वक सम्पन्न हो गया, पर अंतिम कार्यक्रम, जो गल्ला मण्डी के मैदान में आयोजित था। वहाँ पर कार्यक्रम शुरु होते ही ढोलक की थाप बादलों की गरज से मिलकर जब वापस लौटी, तो साथ तेज़ आँधी और पानी लेकर आई। चारों तरफ अंधेरा हो गया। सभी कलाकारों ने पास की एक दालान में शरण ली, जहाँ पेट्रोमैक्स जल रही थी। कुछ उत्सुक लोग आँधी-पानी के बीच भी वहाँ टिके रहे। उन्होंने यात्रा के उद्देश्यों और ऐसी गतिविधियों की सार्थकता के बारे में तमाम प्रश्न किये। उनकी जिज्ञासाओं को राकेश, शाहिद व अन्य लोगों ने शांत किया। उपस्थित लोगों ने कार्यक्रम की भी फ़र्माइश की। गरजते बादलों, कड़कती बिजली, तेज़ हवा और बारिश के समवेत स्वरों में इप्टा के कलाकारों ने अपनी आवाज़ मिला दी। याद हो आई ‘पदचीन्ह कबीर’ की समापन संध्या, जब मगहर में आमी नदी के किनारे बने मंच पर कार्यक्रम चल ही रहा था कि आँधी से सारा शामियाना गिर पड़ा था। वहाँ से निकलकर हम सभी लोगों ने कबीर की समाधि के बरामदे में शरण ली थी और जहाँ से सिलसिला टूट गया था, वहीं से फिर शुरु हुआ, जो सुबह होने से पहले नहीं रूका। (क्रमशः)

Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments
Scroll To Top
0
Would love your thoughts, please comment.x
()
x