इप्टा की स्थापना के पूर्व से की गयी सांस्कृतिक यात्राओं की विरासत को उत्तर प्रदेश इप्टा ने 1989 से 1999 के बीच अनेक चरणों में आगे बढ़ाया। प्रत्येक यात्रा को किसी न किसी उद्देश्य पर केंद्रित किया गया था। पहली यात्रा थी 1993 में ‘पदचीन्ह कबीर’, जो काशी से मगहर तक की गयी। दूसरी यात्रा थी – 1995 में ‘नज़ीर पहचान यात्रा’, जो आगरा से दिल्ली तक संपन्न हुई थी। उसके बाद ‘स्त्री-अधिकारों’ पर केंद्रित ‘आधी आबादी का सफरनामा’ के पहले चरण के अंतर्गत चार यात्राओं का सफर पूरा किया गया । उसके बाद नवम्बर 1998 से मार्च 1999 तक ‘आधी आबादी का सफरनामा’ के दूसरे चरण में तीन यात्राएँ संपन्न की गयीं। इस कड़ी में प्रस्तुत है दूसरे चरण की दूसरी यात्रा की रिपोर्ट। यह रिपोर्ट इप्टा के कार्यकारी अध्यक्ष राकेश ने उपलब्ध करवाई है , इसे तैयार किया था अखिलेश दीक्षित ने। उम्मीद है कि ये सांस्कृतिक यात्राएँ आगामी 28 सितम्बर 2023 से अलवर राजस्थान से आरम्भ होने वाली ‘ढाई आखर प्रेम’ सांस्कृतिक पदयात्रा के लिए वर्तमान परिस्थितियों के अनुसार नई दिशाएँ तलाशने की प्रेरणा देंगी। – उषा वैरागकर आठले। सभी फोटो गूगल से साभार।)
11 फरवरी 1999
‘बेगम हज़रतमहल जन-जागरण यात्रा’ की पूर्व संध्या पर 11 फरवरी को जयशंकर प्रसाद सभागार, कैसर बाग लखनऊ में ‘सामाजिक बदलाव में स्त्रियों की भूमिका’ विषय पर संगोष्ठी आयोजित की गई, जिसकी अध्यक्षता लखनऊ विश्वविद्यालय की दर्शनशास्त्र विभाग की अध्यक्ष डॉ. रूपरेखा वर्मा ने की। गोष्ठी में सुरक्षा की सचिव शालिनी माथुर, उत्तर प्रदेश महिला फेडरेशन की सचिव आशा मिश्रा, वयोवृद्ध संस्कृतिकर्मी कृष्ण नारायण कक्कड़ आदि ने अपने विचार रखे। गोष्ठी का संचालन उत्तर प्रदेश के महामंत्री राकेश ने किया।
12 फरवरी 1999
यात्रा का पहला कार्यक्रम लखनऊ जिले की मलिहाबाद तहसील के जेहटा गाँव से हुआ, जहाँ ग्राम प्रधान होरीलाल ने यात्रा का स्वागत किया। गीतों के बाद नाटक ‘औरत’ का मंचन हुआ। दर्शकों में लगभग तीन-चार सौ पुरुषों के साथ लगभग सौ महिलाएँ भी थीं लेकिन वे पीछे खड़ी रहीं। यात्रा के उद्देश्य की चर्चा करते हुए नाटक की निर्देशक व अभिनेत्री वेदा राकेश ने औरतों से बातचीत की तो धीरे-धीरे उन्होंने अपनी स्थिति का बयान करना शुरु किया। लगभग सभी औरतों का मत था कि, उनकी स्थितियों में सुधार के लिए उनकी एकता आवश्यक है।
अगला कार्यक्रम कुसमौरा के प्राइमरी स्कूल के प्रांगण में हुआ, जहाँ इप्टा के महामंत्री मुख्तार अहमद ने स्त्रियों की बराबरी और उनकी भागीदारी की बात की। स्कूल के प्रांगण में कुसमौरा के अलावा आसपास के गाँवों के भी सैकड़ों पुरुष-महिलाएँ व बच्चे उपस्थित थे। यहाँ गीतों के अतिरिक्त नाटक ‘औरत’ का प्रदर्शन हुआ। औरतों ने पूछने पर अपना नाम तक नहीं बताया। औरतों ने कहा, देहात में पढ़ाई-लिखाई का कोई इंतज़ाम नहीं, खुरपा लेके खेते में झोंक दिये जाते हैं। अकेले जाने पर डर लगता है। गुण्डागर्दी की रिपोर्ट पुलिस नहीं लिखती।
अगला कार्यक्रम बाजनगर (अमेढिया) में हुआ, जहाँ गीतों के बाद नाटक ‘औरत’ का मंचन हुआ। सैकड़ों पुरुषों-स्त्रियों के सामने वेदा राकेश ने यात्रा के उद्देश्य पर प्रकाश डाला। यात्रा के अगले पड़ाव सिकरौरी (अंधे की चौकी) पर कार्यक्रम के लिए पहले से ही सैकड़ों लोग एकत्र थे। यहाँ रवि नागर ने विशेष रूप से बेगम हज़रतमहल की नज़्म ‘हुकूमत जो अपनी थी अब है पराई’ पेश की। नाटक ‘हिंसा परमो धर्म’ का प्रदर्शन किया गया। अगले पड़ाव दुग्गा पर बारी थी गीत और नाटक ‘गिरगिट’ की प्रस्तुति की। यद्यपि यह आज की यात्रा का अंतिम कार्यक्रम था, पर स्थानीय लोगों ने पास के गाँव फरीदपुर में भी कार्यक्रम करने का आग्रह किया। फरीदपुर में गीतों के बाद ‘औरत’ नाटक का प्रदर्शन किया गया।
13 फरवरी 1999
आज का कार्यक्रम बाराबंकी जिले में पूर्वनिर्धारित था परंतु प्रातः 9 बजे बाराबंकी पहुँचने पर पता चला कि स्थानीय सरदार पटेल संस्थान महिला डिग्री कॉलेज की ओर से कार्यक्रम के आमंत्रण के कारण पहले कार्यक्रम का स्थान बदल दिया गया है। कॉलेज के सामने प्रांगण में हमारे साथियों ने गीतों की प्रस्तुति की तथा ‘औरत’ का मंचन किया। कॉलेज की प्रधानाचार्य कृष्णा चौधरी ने ‘स्त्री-अधिकार’ पर की जा रही सांस्कृतिक यात्रा के प्रति अपनी शुभकामनाएँ दीं। अगला कार्यक्रम था भारती विद्या मंदिर मलूकपुर में यहाँ के पुरुषों, महिलाओं के अतिरिक्त कई स्कूलों के सैकड़ों बच्चे जमा थे।
बच्चों से बेगम हज़रतमहल के बारे में सवाल पूछने पर पता लगा कि वे उनके बारे में कुछ नहीं जानते। इप्टा उत्तर प्रदेश के महामंत्री ने बच्चों को 1857 के पहले स्वाधीनता आंदोलन में रानी लक्ष्मीबाई, बेगम हज़रतमहल जैसी वीरांगनाओं की भूमिका पर प्रकाश डालते हुए बालिकाओं की शिक्षा और समाज में उनके बराबरी के हक के लिए की जा रही इन यात्राओं के अनुभव भी सुनाए। यहाँ गीतों के अतिरिक्त नाटक ‘गिरगिट’ का प्रदर्शन हुआ।
अगले पड़ाव मितई से पहले सरसौधी के सरपंच हृदयराम वर्मा के अनुरोध पर कलाकारों को वहाँ भी कार्यक्रम करना पड़ा। मितई पीछे छूट चुका था इसलिए हम पहुँचे माती बाजार, जहाँ जनगीतों के बाद नाटक ‘रंगा सियार’ खेला गया। अगला पड़ाव था कौमी एकता के लिए सुप्रसिद्ध स्थल देवा शरीफ। यहाँ स्थानीय लोगों के साथ कलाकारों ने पूरे बाजार में पैदल मार्च किया और फिर कौमी एकता गेट के पास जनगीतों व नाटक ‘हिंसा परमो धर्म’ की प्रस्तुति की गई। देवा से यात्रा पहुँची मितई, जहाँ जनगीतों के बाद ‘गिरगिट’ नाटक का मंचन हुआ। मितई से बारा पहुँचकर स्थानीय लोगों के सहयोग से कलाकारों ने सांस्कृतिक यात्रा निकाली और छाया टॉकिज़ चौराहे पर कार्यक्रम किया।
14 फरवरी 1999
यात्रा निर्धारित समयानुसार गोंडा जिले में पहुँची। यात्रा में शामिल कलाकार 13 फरवरी की रात को ही कर्नेलगंज (गोंडा) पहुँच चुके थे। पहला कार्यक्रम पसका गाँव के मुख्य चौक में हुआ, जहाँ सुबह 8 बजे से ही सैकड़ों लोग उपस्थित थे। जनगीतों के बाद नाटक ‘औरत’ का प्रदर्शन हुआ। गोंडा के राजा देवी बख्श सिंह ने बेगम हज़रतमहल की नेपाल पहुँचने में मदद की थी। अगला कार्यक्रम भौरीपुर में हुआ, जहाँ गीतों के साथ नाटक ‘सब ठीक है’ का प्रदर्शन हुआ। वेदा राकेश द्वारा लिखित व निर्देशित यह नाटक इस यात्रा के पूर्व ही तैयार किया गया था, जिसमें एक दलित महिला के उत्पीड़न की दास्तान है।
अगले पड़ाव डेहरास में भी गीतों के बाद इसी नाटक का प्रदर्शन हुआ। अगला पड़ाव था सुप्रसिद्ध हिंदी जन कवि अदम गोण्डवी का गाँव, जो कर्नेलगंज से ही यात्रा के साथ थे। यहाँ गीतों के बाद नाटक ‘औरत’ का प्रदर्शन हुआ। अगले पड़ाव बसंतपुर में इप्टा के कलाकारों के गीतों के अतिरिक्त यात्रा के साथ चल रहे गोंडा के सुप्रसिद्ध कवि अदम गोंडवी, सुरेश गोकलपुरी, टीकम दत्त शुक्ल ने भी अपनी कविताएँ सुनाईं। यहाँ नाटक ‘गिरगिट’ का मंचन हुआ। चकरौत में भी जनगीतों के बाद नाटक ‘रंगा सियार’ का प्रदर्शन हुआ। अंतिम कार्यक्रम कर्नेलगंज चौक घण्टाघर पर हुआ, जहाँ कर्नेलगंज नगर पालिका के चेयरमैन ने यात्रा का स्वागत किया। कार्यक्रम के लिए विशेष रूप से तैयार मंच पर लगभग 3 घण्टे कार्यक्रम चला। यहाँ उत्तर प्रदेश इप्टा के महामंत्री राकेश ने यात्रा के उद्देश्यों पर विस्तार से प्रकाश डाला। (क्रमशः)