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राजस्थान में अलवर से ढाई आखर प्रेम पदयात्रा आरम्भ

राजस्थान में अलवर से ढाई आखर प्रेम पदयात्रा आरम्भ

(ढाई आखर प्रेम सांस्कृतिक जत्थे की पदयात्रा का पहला राज्य राजस्थान है। यहाँ 28 सितम्बर से 02 अक्टूबर 2023 तक पदयात्रा की जानी है। इस यात्रा की समूची रिपोर्ट इप्टा की राष्ट्रीय संयुक्त सचिव अर्पिता श्रीवास्तव द्वारा लिखी गयी एवं अखबारों में प्रकाशित रिपोर्ट पर आधारित और संकलित है।और फोटो तथा वीडियो ढाई आखर प्रेम अभियान के लिए गठित सोशल मीडिया टीम द्वारा संकलित हैं। जनवादी लेखक संघ राजस्थान के अध्यक्ष जीवन सिंह मानवी की टिप्पणी इप्टा के कार्यकारी अध्यक्ष राकेश के सौजन्य से प्राप्त हुई है।

इस यात्रा की यह विशेषता है कि यात्रा के व्यवस्थित कवरेज के लिए युवाओं की सोशल मीडिया टीम सक्रिय है, जो यात्रा के उद्देश्यों के प्रचार-प्रसार से लेकर रिपोर्ट्स, फोटो, वीडियोज़, पोस्टर्स, विभिन्न क्षेत्रों और स्थानों के कलाकारों, लोक कलाकारों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और बेहतर दुनिया चाहने वालों के सन्देश सोशल मीडिया के सभी मंचों तक प्रसारित कर रहे हैं। विनोद, रजनीश, अनादि, अवध, प्रियंका, रश्मि, वर्षा, अर्पिता और साक्षी की टीम को सलाम। – उषा वैरागकर आठले)

28 सितम्बर 2023 से 30 जनवरी 2024 तक ढाई आखर प्रेम सांस्कृतिक पदयात्रा राजस्थान से दिल्ली तक आरम्भ हो चुकी है। इसमें देश के विभिन्न प्रगतिशील-जनवादी संगठन, साहित्यकार, रंगकर्मी, संगीतकार, कलाकार, बुद्धिजीवी, मानवाधिकार कार्यकर्ता तथा सभी गंगा-जमुनी संस्कृति के वाहक और पक्षधर लोग शामिल हो रहे हैं। इस यात्रा के माध्यम से आपसी प्रेम, भाईचारा, सौहार्द्र, सामाजिक न्याय, शांति का सन्देश देते हुए स्थानीय लोगों से बातचीत की जाएगी। यह यात्रा देश की गंगा-जमुनी तहज़ीब, स्वतंत्रता, समता, और एकजुटता को समाज में फिर से स्थापित करने की कोशिश कर रही है।

28 सितम्बर 2023 गुरुवार : अलवर में आरम्भ हुई पदयात्रा की एक झलकी प्रस्तुत है :

पहले पड़ाव अलवर में पहले दिन 28 सितम्बर को पदयात्रा में सम्मिलित संगठन ‘जन नाट्य मंच’ (जनम) ने अपने नुक्कड़ नाटक ‘सांझी रे चदरिया’ के तीन प्रदर्शन तीन अलग-अलग स्थानों पर किये। मलयश्री हाशमी और उनकी टीम ने अलवर के विवेकानंद चौक, होप सर्कस तथा कंपनी बाग़ में दोपहर 2 बजे से 5 बजे तक अपने नुक्कड़ नाटक में गीतों और चुटीले संवादों के माध्यम से समाज के बहु-सांस्कृतिक ताने-बाने को ऐतिहासिक तथ्यों के छोटे-छोटे कथा-प्रसंगों में गूँथकर प्रस्तुत किया। देश की साझा संस्कृति, कोरोना की मानवीय पीड़ा, संत कवि तुलसीदास और कवि रहीम की दोस्ती का ज़िक्र उल्लेखनीय है। दोस्ती की चदरिया ओढ़कर जीवन की अनेक समस्याओं का समाधान किया जा सकता है। ‘ढाई आखर प्रेम’ सांस्कृतिक यात्रा में जिस तरह हाथ के श्रम और प्यार-मोहब्बत को रूपायित करने वाले ‘गमछे’ को प्रतीक की तरह प्रयुक्त किया जा रहा है, उसको नाट्य-प्रस्तुति के दौरान प्रदर्शन-स्थल पर साकार होते हुए देखा गया। एक अभिनेत्री एक चौखट के प्रतीकात्मक करघे पर रंगीन ताने-बाने बुन रही थी। प्रस्तुत नाटक निम्नांकित लिंक पर देखा जा सकता है :

ब्रिजेश लिखित इस नाटक का निर्देशन किया था, आत्मन और कोमिता ने। अभिनय किया था – अशोक, ब्रिजेश, दिस्ता, कोमिता, कृतार्थ, मलयश्री, मुस्तफा, प्रियंका, पूर्बाशा, रिद्धिजीत, साची और विजय ने।

हॉप सर्कस पर छत्तीसगढ़ के साथी निसार अली और उनके साथियों ने नाटक ‘गमछा बेचैया’ प्रस्तुत किया गया। आर्थिक सहायता हेतु चादर भी फैलाई गयी। यहाँ स्थानीय मिठाईवाले ने सभी को अलवर का प्रसिद्ध मिल्क केक खिलाया। कंपनी बाग़ में नाट्य प्रदर्शन के बाद हरिशंकर गोयल ने अलवर के बारे में रोचक जानकारी दी। साथ ही विवेकानंद के राजस्थान प्रवास के बारे में बताया। भगत सिंह चौराहे पर माल्यार्पण के बाद नन्हें बच्चे यश ने कबीर के दोहे सुनाये।

मनुष्य मात्र में समता और भाईचारे की स्थापना के लिए अपनी कम उम्र में शहीद होने वाले भगत सिंह के जन्म दिवस 28 सितम्बर से ‘ढाई आखर प्रेम’ की देशव्यापी यात्रा की शुरुआत की गयी है, ताकि उनके विचारों के इस आयाम पर परस्पर चर्चा हो सके। नाट्य-प्रदर्शन के बाद पैदल यात्रा करते हुए सभी यात्री शहीद भगत सिंह की प्रतिमा के पास पहुँचे। पुष्पांजलि अर्पित करने वाले यात्रियों में इप्टा के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रसन्ना, कार्यकारी अध्यक्ष राकेश, कर्नाटक के राज्य सभा सदस्य अनिल हेगड़े, बापू के लोग संगठन के संयोजक विजय प्रताप, तनवीर आलम, प्रगतिशील लेखक संघ के राष्ट्रीय महासचिव सुखदेव सिंह सिरसा, छत्तीसगढ़ प्रगतिशील लेखक संघ के अध्यक्ष नथमल शर्मा, जनवादी लेखक संघ राजस्थान के अध्यक्ष जीवन सिंह मानवी, नाट्य निर्देशक वेदा राकेश, इप्टा के राष्ट्रीय सचिव शैलेन्द्र कुमार, संयुक्त सचिव अर्पिता श्रीवास्तव तथा वर्षा आनंद, राष्ट्रीय सेवा दल के महासचिव शाहिद कमाल, अवधेश कुमार, जन आंदोलन के राष्ट्रीय समन्वयक कैलाश मीणा, अलवर के हरिशंकर गोयल तथा प्रोफ़ेसर शम्भू गुप्त थे। सभी ने अपने विचार व्यक्त किये।

इस अवसर पर ढाई आखर प्रेम पदयात्रा की राजस्थान संयोजक सर्वेश जैन, एडवा की उपाध्यक्ष रईसा, जनवादी लेखक संघ के जिला उपाध्यक्ष छंगाराम मीणा, घनश्याम शर्मा, भारत परिवार के अध्यक्ष वीरेंद्र क्रांतिकारी, सरिता भारत, इप्टा के जिला अध्यक्ष महेंद्र सिंह, प्रदीप माथुर, देवेंद्र शर्मा, मोहन लाल गुप्ता, एमएमएसवीएस के अनूप दायमा, सृजक संस्थान के रामचरण राग, शहीद भगत सिंह समारोह समिति के जोगेंद्र सिंह कोचर, प्रमोद मलिक, प्रोफ़ेसर रमेश बैरवा, प्रोफ़ेसर मीनेश जैन, अर्थ अग्रवाल तथा प्रगतिशील लेखक संघ दिल्ली के अतिरिक्त सचिव ज्ञानचंद बागड़ी उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संचालन किया डॉ भरत मीणा ने। कार्यक्रम की विशेषता रही कि इसमें काफी संख्या में बच्चे भी उपस्थित थे और उनका उत्साह देखते ही बनता था।

दैनिक भास्कर से चर्चा करते हुए पदयात्रियों ने कहा,

29 सितम्बर 2023 शुक्रवार :

ढाई आखर प्रेम राष्ट्रीय पदयात्रा के राजस्थान राज्य के दूसरे दिन की यात्रा मोती डूँगरी स्थित सैयद बाबा की मज़ार और हनुमान मंदिर से शुरू होकर शहर के नेहरू गार्डन स्थित चंद्रशेखर आज़ाद स्मारक, विवेकानंद स्मारक, भगत सिंह सर्कल, आम्बेडकर सर्कल, तुला राव सर्कल, हसन खाँ मेवाती पेनोरमा होते हुए भर्तृहरि पैनोरमा तक पहुँची। पुष्पांजलि अर्पित कर सांस्कृतिक जत्था धोली दूब पहुँचा।

यहाँ छत्तीसगढ़ के साथी निसार अली की टीम ने नाचा-गम्मत शैली में नाटक प्रस्तुत कर प्रेम और सौहार्द्र का सन्देश दिया। उसके बाद पीपाड़ सिटी (जोधपुर) के जन नाट्य मंच के प्रवीण कुमार शर्मा की टीम ने भ्रष्टाचार, महंगाई और जमाखोरी के खिलाफ जन-चेतना पैदा करने की कोशिश की। इप्टा अलवर के जगदीश शर्मा और उनकी टीम ने लालदास और सूरदास संवाद द्वारा श्रम करने और स्वावलम्बन की भावना जगाये रखने का सन्देश दिया। इस अवसर पर एडवा की उपाध्यक्ष काजल ने लोकनृत्य प्रस्तुत किया।

इससे पूर्व आयोजित सभा में इप्टा के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रसन्ना ने सामाजिक कार्यकर्ताओं व कलाकारों को संगठित संघर्ष करने का आह्वान किया। प्रगतिशील लेखक संघ के राष्ट्रीय महासचिव सुखदेव सिंह सिरसा ने पंजाब की संस्कृति में समाहित प्रेम की भावना और साझा संस्कृति के महत्व को रेखांकित किया। प्रोफेसर शम्भू गुप्त ने जन-आंदोलन में आधुनिक साधनों व विधाओं के इस्तेमाल पर बल दिया। भारत परिवार के राष्ट्रीय अध्यक्ष वीरेंद्र क्रांतिकारी ने यात्रा के विभिन्न पड़ावों की कार्य-योजना प्रस्तुत की। प्रगतिशील लेखक संघ दिल्ली के अध्यक्ष ज्ञानचंद बागड़ी ने ग़ज़ल सुनाई। इस अवसर पर लाइफ सेवर टीम ने मूलचंद जांगिड़ के नेतृत्व में यात्रा के धोली दूब पड़ाव की व्यवस्थाओं और भोजन का प्रबंध किया।

ग्राम धोलीधूप स्थित लालदास मंदिर की मंदिर कमेटी द्वारा नाटक ‘लालदास’ के निर्देशक श्री जगदीश शर्मा, लालदास का अभिनय करने वाले वरिष्ठ रंगकर्मी श्री राजेश महिवाल और सूरदास के चरित्र को साकार करने वाले अभिनय कला में पारंगत वरिष्ठ कलाकार कांति जैन का स्वागत किया गया। यात्रा के इस पड़ाव में इस अवसर पर इप्टा के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रसन्ना सहित अनेक पदाधिकारी और दर्शक उपस्थिति थे।

लालदास की समाधि पर बोलते हुए प्रसन्ना ने कहा कि, हमारे देश में एक साथ कई धर्मों का परस्पर मेल भी देखा जाता है। जैसे हिंदू धर्म का इस्लाम से मेल और इस्लाम का ईसाइयत के साथ मेल मिलता है। इनमें भरपूर सहिष्णुता मिलती है और परस्पर मेलजोल के साथ एक ही जगह पर रहते हैं। लालदास पंद्रहवीं सदी के संत थे, जो लकड़हारे थे और शूद्र थे। उन्होंने हिंदू और मुसलमानों में धार्मिकता का प्रसार किया। एक कहानी मिलती है कि औरंगजेब के भाई दारा शिकोह उनके पास सलाह के लिए आए थे। वे उनके प्रशंसक थे। जब दारा शिकोह ने संत लालदास से पूछा कि क्या वे भारत के बादशाह बनेंगे? लालदास ने उन्हें साफ बता दिया कि वे बादशाह नहीं बन सकते। उसने पूछा, क्यों? लालदास ने जवाब दिया कि अगर तुम्हें बादशाह बनना हो तो तुम्हें असहिष्णु होना पड़ेगा, क्रूर होना पड़ेगा। लालदास भी अन्य शूद्र संतों की तरह थे, जिन्होंने अपने श्रम को नहीं छोड़ा और वे उसके साथ लोगों की भलाई के लिए उपदेश भी देते रहे। यह बात आज और भी महत्वपूर्ण है कि श्रम और उपदेश का समन्वय धर्म और आध्यात्मिकता के संदर्भ में किया जाना ज़रूरी है। जब लालदास सूरदास से मिलते हैं और वे उन्हें भीख माँगते देखते हैं तो उन्हें मना करते हैं तो सूरदास कहते हैं, मैं अंधा हूँ, अपनी आजीविका कैसे चला सकता हूँ? लालदास ने सूरदास से कहा कि तुम जिसतरह के गीत रचते हो, तुम जैसे प्रतिभाशाली व्यक्ति के लिए भीख माँगना उचित नहीं है। तो इस तरह होते थे शूद्र संत, जिनमें संवेदनशीलता, परस्पर सम्मान भरा होता था, जिसका सवर्ण लोगों में अभाव दिखाई देता है।

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शाम 5 बजे यहाँ से निकलकर पदयात्रा ठेकडा गाँव पहुँची। सांस्कृतिक कार्यक्रम में निसार अली एवं साथियों द्वारा नाटक ‘गमछा बेचैया’ , जनगीत ‘राहों पर नीलाम हमारी भूख नहीं हो पायेगी, अपनी कोशिश है कि ऐसी सुबह यहाँ पर आएगी’ प्रस्तुत किया गया। मधुबनी से आये हुए सुमन सौरभ ने प्रसिद्द गीत ‘हम होंगे कामयाब’ गया। लिटिल इप्टा पीपाड़ ने ‘मशीन’ नाटक का मंचन किया। इप्टा के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रसन्ना द्वारा सरपंच ताराचंद को गमछा ओढ़ाया गया।

यात्रा में नाट्य निर्देशक वेदा राकेश, इप्टा के राष्ट्रीय सचिव शैलेन्द्र कुमार, संयुक्त सचिव अर्पिता श्रीवास्तव तथा वर्षा आनंद, अवधेश कुमार, जनवादी लेखक संघ राजस्थान के अध्यक्ष जीवन सिंह मानवी, सामाजिक कार्यकर्ता हरिशंकर गोयल, सृजक संस्थान के रामचरण राग, जलेस अलवर के सचिव भरत मीणा, एडवा की उपाध्यक्ष रईसा, भारत परिवार की सरिता भारत, इप्टा के जिला अध्यक्ष महेंद्र सिंह, प्रदीप माथुर, देवेंद्र शर्मा, मोहन लाल गुप्ता, कांति जैन, संदीप शर्मा, मीनेश जैन, किशन खरालिया आदि उपस्थित थे।

जनवादी लेखक संघ राजस्थान के अध्यक्ष जीवन सिंह मानवी ने अलवर के स्थानों का ऐतिहासिक-सांस्कृतिक महत्व प्रतिपादित करते हुए 28 और 29 सितम्बर को की गयी यात्रा पर अपनी टिप्पणी भेजी है,

देश के कुछ संस्कृतिकर्मियों ने, खासतौर से राष्ट्रीय भारतीय जन नाट्य संघ इप्टा ने एक सांस्कृतिक अभियान के तौर पर पूरे देश के विभिन्न अंचलों में “ढाई आखर प्रेम” शीर्षक से एक सांस्कृतिक सद्भाव यात्रा की शुरुआत की है। इसी क्रम में कल शहीद-ए-आजम भगतसिंह के जन्मदिन 28 सितंबर से राजस्थान के पूर्वी द्वार अलवर से इसकी शुरुआत हुई । उल्लेखनीय है कि अलवर आज से नहीं, पिछली पांच सदियों से भी अधिक समय से एक मिलीजुली संस्कृति का अंचल रहा है।आज भी है। मध्यकाल में यह खूब फली फूली।भक्ति आंदोलन ने इसको व्यापकता और गहराई दोनों दीं। जिससे यहां एक मेव परिवार में लालदास जैसा संत पैदा हुआ, जिसने हिंदू-मुस्लिम धर्मों से अलग एक इंसानियत प्रधान धर्म चलाया – उन्होंने कहा – दोनू दीनन सू जायगौ, लालदास कौ साध।

आधुनिक काल में भी इसका एक शुरुआती लोकतांत्रिक संस्कृति की तरह विकास हुआ लेकिन धीरे-धीरे पिछले कुछ सालों से देश की जनता को धार्मिक तौर पर विभाजित कर उन संकीर्ण एवं संकुचित विषाणुओं ने इस पर हमला किया है, जो सत्ता हासिल करने के लिए इस तरह के हथकंडों को काम में लाता है।इस तरह की नफ़रत पर आधारित राजनीति को सद्भाव की गांधीवादी संस्कृति से ही दूर किया जा सकता है। इसी क्रम में आज अलवर में दूसरे दिन की यात्रा की शुरुआत मोती डूंगरी पर स्थित सैय्यद बाबा की मज़ार और हनुमान मंदिर जैसे संयुक्त परिसर से सुबह सात बजे हुई। उल्लेखनीय है कि इसमें यहां के स्थानीय सांस्कृतिक मंच जैसे जनवादी महिला समिति, जनवादी लेखक संघ, सृजक संस्थान, भारत परिवार आदि अलवर इप्टा के साथ सहयोग करते हुए इसमें भागीदारी कर रहे हैं।

आज यह यात्रा शहीद चन्द्रशेखर, विवेकानंद स्मारक , अंबेडकर चौराहा, राव तुलाराम पर स्थित प्रतिमाओं पर माल्यार्पण करती हुई हसनखां मेवाती पेनोरमा और राजर्षि भर्तृहरि पेनोरमा से होती हुई धौली दूब गांव स्थित संंत लालदास के मंदिर तक पहुंची। यहां छत्तीसगढ़ नाचा के कलाकारों ने एक नाटक का मंचन किया।इस यात्रा का नेतृत्व राष्ट्रीय इप्टा अध्यक्ष और कर्नाटक निवासी श्री प्रसन्ना कर रहे हैं। इस जत्थे में महिलाओं की भागीदारी बेहद उत्साहवर्धक है। जोधपुर के पीपाड़ कस्बे के बाल नाटककारों की टीम का उत्साह देखने लायक है। जोधपुर, जयपुर के कलाकारों का भी इसको पूरा सहयोग मिल रहा है। अलवर में इसका संयोजन और संचालन अलवर इप्टा सचिव डा सर्वेश जैन, जनवादी महिला समिति की नेता रईसा,और अलवर जलेस इकाई के सचिव डा भरत मीना कर रहे हैं।यह यात्रा तीन दिनों तक आसपास के गांवों में सद्भाव वार्ता और नाट्य-मंचन तथा वहीं रात्रि विश्राम कर 2 अक्टूबर को अलवर वापस आयेगी।

अगली कड़ी में राजस्थान में अन्य स्थानों पर आगे बढ़ने वाली शेष यात्रा की रिपोर्ट प्रस्तुत की जाएगी।

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