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भिलाई इप्टा की रजत जयंती बाल एवं युवा नाट्य- प्रशिक्षण कार्यशाला : रंगीन केलेडियोस्कोप

भिलाई इप्टा की रजत जयंती बाल एवं युवा नाट्य- प्रशिक्षण कार्यशाला : रंगीन केलेडियोस्कोप

(इस वर्ष भिलाई इप्टा का 25वाँ साल है बच्चों के साथ काम करने का, इसलिए भिलाई इप्टा ने एक नई योजना बनाई, जिसमें भिलाई के स्थानीय विभिन्न विशेषज्ञों के अलावा इप्टा की विभिन्न इकाइयों के युवा साथी, जो अलग-अलग क्षेत्रों में काम कर रहे हैं, उन्हें कार्यशाला के बीच आमंत्रित किया। इसमें बिलासपुर से साक्षी शर्मा, जमशेदपुर से अर्पिता श्रीवास्तव, दिल्ली से वर्षा आनंद, भोपाल से सचिन श्रीवास्तव और मथुरा से विजय शर्मा सम्मिलित हुए। इसके अलावा अशोक नगर के साथी कुश और मृगेंद्र भी आये थे। इन साथियों ने भिलाई की कार्यशाला के अपने-अपने अनुभव साझा किये हैं, जो काफी प्रेरक और नई दिशाओं को खोलने वाले हैं। ये रिपोर्ट्स भावी कार्यशालाओं के लिए एक गाइडलाइन के रूप में भी देखी जा सकती हैं। इसे कुछ कड़ियों में युवा साथियों के अनुभवों के रूप में यहाँ साझा किया जा रहा है। अब तक आप तीन कड़ियाँ पढ़ चुके हैं। इस चौथी और अंतिम कड़ी में इप्टा मथुरा के साथी विजय शर्मा के साथ अभी रायपुर में कार्यरत साथी मृगेंद्र सिंह की रिपोर्ट प्रस्तुत है।)

दोस्ती-यारी ही किसी आंदोलन को मज़बूत बनती है : विजय शर्मा

 अक्सर एक सवाल आता है इप्टा क्यों नाटक करती है और उसको कैसे नाटक करने चाहिए?

तो हमको यह जानना जरूरी हो जाता है कि अपने 80वें साल में जल, जंगल और जमीन के सवाल  लेकर समाज की मानवीय और राजनीतिक विद्रूपता पर उंगली रखना और जनता के बीच जाना इसी देश व्यापी जन आंदोलन का काम है।

पिछले साल मुझे मथुरा इप्टा इकाई द्वारा डाल्टनगंज राष्ट्रीय युवा कार्यशाला में भेजा गया। कार्यशाला की जुझारू समन्वयक अर्पिता श्रीवास्तव के आग्रह पर मैं पहुँचा तो लगा कि अगर न आता तो जीवन में बहुत ज़रूरी अध्याय नही जुड़ पाता। इसी दौरान कमरा साझा हुआ भिलाई इप्टा की इकाई के साथियों से, गोर्की श्रीवास्तव, श्रीकांत, नरेंद्र पटनारे से। ये साझापन राष्ट्रीय सम्मेलन तक आते आते दोस्ती में बदला फिर शुरू हुआ साथ काम करने की योजना का सिलसिला। मेरी उम्मीद से परे डाल्टनगंज में हुए राष्ट्रीय सम्मेलन में दुबारा भिलाई के इन्हीं युवा साथियों मुलाकात हुई, इस बार ये छत्तीसगढ़ी नृत्य की शानदार प्रस्तुति के साथ आए थे। इसी दौरान इप्टा के राष्ट्रीय सचिव राजेश भैया ने साथ काम करने का सुझाव दिया और भिलाई आने का न्यौता दिया। भागमभाग में फिर एक बार अर्पिता और सचिन और वर्षा के साथ योजना बना कर हम जा पहुँचे भिलाई ।

पहला दिन

स्टेशन पर पहुंचने से पहले भिलाई बाल शिविर कार्यशाला के संयोजक श्रीकांत पाठक का नाम फोन की स्क्रीन पर फ्लैश होने लगा, आगरा विजिट के दौरान गाढ़ी हुई दोस्ती के चलते वो अपनी तमाम व्यस्तता के बावजूद भी बिरादराना आग्रह के साथ मुझे लेने  भिलाई स्टील प्लांट स्टेशन पर लेने आ गए और अब हम जा पहुँचे नेहरू कल्चरल हाउस में चलते 25 वीं लिटिल इप्टा ग्रीष्म कालीन शिविर में।

भारत के प्रथम प्रधान मंत्री जवाहर लाल नेहरू ने कहा था कि ये भारत के नए तीर्थ हैं। सच में भिलाई पॉवर प्लांट के अंदर घुसते ही ऐसा लगा कि एक व्यवस्थित शहर को ऐसा ही होना चाहिए।

स्कूल, अस्पताल, शेडदार बस स्टैंड, फिल्टर वाटर के सार्वजनिक प्लांट, पार्क और साफ-सुथरी सड़कें देख कर लगा कि केवल भिलाई टाउनशिप को ही क्यों, सभी नगरीय सुविधाओं से युक्त एक नगर को ऐसा ही होना चाहिए।

खैर, नेहरू सांस्कृतिक केंद्र के अंदर अमिताभ भाई के बगीचे के आम की खुशबू बिखरी हुई थी। अर्पिता, सचिन, वर्षा और ईश्वर सिंह दोस्त सब सुबह की गुनगुनी धूप में आम के स्वाद से सराबोर थे। शिविर ऑफिस में पहुंचते ही राजेश भैया ने हाथ फैला कर स्वागत किया और मणिमय दा ने अपने अंदाज में जोरदार वाह! कहा।

2011 के बाद में भिलाई के सभी साथियों से मिल रहा था, कुछ के चेहरे बदल गए थे, कुछ नए साथी शामिल हो गए थे। शिविर का पहला घंटा सबसे मुलाकात करते बीता, फिर धीरे धीरे सभी साथियों से परिचय हुआ, रोशन भाई, अमिताभ भाई, परगनिया अंकल, सुचित्रा दी और नए बच्चों से बात करते करते 1 बजे जाने के समय अर्पिता ने आवाज लगाई..

‘ए विजय ! सुन ना! तू साथ चलेगा या  बाद में आएगा।’

बहुत दिन बाद मिले राजेश भैया से बात करने का मोह था या अपना दिल खोल कर सब कुछ कह देने का दिल, पता नहीं, पर 1 घंटे बाद ही सेक्टर चार (अपने रुकने वाली जगह) के लिए निकल पाया। यह राजेश भैया का ही अभी कुछ समय पहले खरीदा गया दूसरा मकान था। कमरे से निकलते समय देखा शिविर के टाइम टेबिल के ठीक ऊपर कॉमरेड जितेंद्र रघुवंशी की गुलाबी शर्ट में एक फोटो लगी है, ये शख्स दुनिया के कोने कोने में ही नहीं, हर किसी के दिल में इतनी गहरी जगह बना कर गया है कि हर नजर में उनकी एक  तस्वीर बनी नजर आती है। ठहरने वाली जगह पहुँच कर एक नया नजारा था। वहाँ ईश्वर पहले से मौजूद थे।और भोपाल से सचिन, उनके बगल में जे एन यू इप्टा से वर्षा और बिलासपुर से साक्षी उनके सामने, और अर्पिता अपने आसन पर गर्मी से त्रस्त कूलर के सामने विराजमान थीं। समूचा “बुद्धि विलास” आसपास बिखरा हुआ था पर उस पर फिर कभी लिखा जायेगा।

शाम होते होते खाना खा कर फिर शिविर की दूसरी शिफ्ट की तैयारी शुरू हुई। वर्षा ने पहुँच कर गिटार संभाल लिया था और कुछ युवा साथियों से घिरी फ़ैज़ की एक नज़्म को नई धुन पर पिरोने की कोशिश में लगी थीं।अर्पिता दी छोटे छोटे बच्चों से कुछ नई किताबों के बारे में बात कर रहीं थीं और सचिन पाँच-दस किशोर साथियों के साथ शिविर के दौरान एक बाल रंग अखबार  निकालने की तैयारी में लग गए। साक्षी कुछ थियेटर के सीन वर्क करने में लगी थीं। दरअसल ये साथी मेरे से पहले यहाँ आये थे, तो इन्होंने अपने अपने काम की रणनीति तय कर उसे कार्यरूप देना शुरू कर दिया था। जो मैं देख रहा था वो पिछले तीन दिनों में हुई तैयारी का आगे बढ़ता हुआ हिस्सा था। मैं पशोपेश में था कि इतनी ऊर्जा से सराबोर इस कौतूहल पूर्ण शिविर में मैं क्या करूँ, हालांकि मैं शिविर संचालक श्रीकांत और गोर्की को कुछ स्क्रिप्ट पहले भेज चुका था पर अभी कुछ तय नहीं था कि मैं करूं तो क्या? खैर इसी सब को देखते-बरतते शाम गुजर गई और उसी शाम कुछ नए दोस्त और बने ।

दूसरा दिन

अगली सुबह साक्षी ने मुझसे पूछा कि आप क्या कराएंगे तो मैंने अपनी भेजी हुई स्क्रिप्ट का हवाला देते हुए  कहा कि उस पर कुछ काम करना है। साक्षी ने गहरी साँस भर कर कहा, “ठीक है, करते हैं,” मैं समझ गया मामला कुछ अधिक गाढ़ा हो गया है। अपनी आदत के मुताबिक मैं कुछ राजनैतिक मुद्दों वाली स्क्रिप्ट पर काम करने की सोच रहा था और अंदेशा था कि बच्चों और किशोरों की इस कार्यशाला में ये कैसे संभव होगा। अगले दिन वर्षा ने पूछा और कहा कि हम पहले आयु के अनुसार कुछ किशोर और युवा साथियों का चयन कर लेते हैं और फिर उसको अलग अलग टीम में बांट लेंगे। वर्षा की मदद से 10 से 15 साथी साथ आए और फिर उनको लेकर हम साथ बैठे। सोचा, पहले इनके अंदर झाँक कर देखें क्या है! साथियों से अपने परिचय के साथ धीरे धीरे जेंडर, समलैंगिकता, स्त्री-विमर्श और राजनीति पर बातें होती हुईं धीरे धीरे व्यक्तिगत अनुभवों तक पहुँच गईं और किशोर मन की तह से उनकी चेतना का विस्तार झाँकने लगा। मुझे लगने लगा कि यही जिज्ञासा इनको इनके ज्ञान के हथियार बनाना सिखाएगी और फिर यही लोग दुनिया को वर्गहीन, विषमताविहीन शोषणमुक्त समाज में बदलेंगे।

खैर, उस शाम को इसी बातचीत के दौरान मन ही मन अपने पात्रों का चयन कर चुका था। मैंने उसी रात कात्यायनी की कविता ‘सात भाइयों की बहन चंपा’ को एक स्क्रिप्ट में बदल दिया और उसको गीति नाटय में करने का निर्णय लिया। अगले दिन सुबह हम ग्राउंड की सीढियों पर बैठे कुछ व्यावहारिक आदतों पर बात कर रहे थे जैसे, स्त्री बोधक गालियों की पहचान और उन का निषेध। कपड़ों के आधार पर जेंडर को तय करने की मानसिक आदत को बदलने की बात हुई।

रात को सचिन को मैंने अपनी एक स्क्रिप्ट, जो कि निर्दोष कैदियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं की जेल यातना पर लिखी थी, का जिक्र किया और कहा कि यहाँ कुछ युवा साथियों के साथ मैं करना चाहता हूँ। सचिन श्रीवास्तव ने, जो कि एक निर्भीक पत्रकार होने के साथ साथ एक संवेदनशील लेखक भी हैं और भोपाल में जेंडर-विविधता पर बहुत प्रेरक काम कर रहे हैं, कहा कि तुमको यह जरूर करना चाहिए और एक फ्रेम ऐसा बनाओ कि इसको हर जगह किया जा सके क्योंकि यह केवल एक जगह की नहीं, पूरी दुनिया का मुद्दा है।

अगले दिन से काम शुरू हुआ ही था और तभी अर्पिता के जमशेदपुर जाने का समय पास आ गया, उनको वहाँ जाकर बाल रंग शिविर आयोजित करना था और उसकी तैयारियाँ करनी थी तो उनका जाना आवश्यक था। 

उस रात हमने खूब मज़े किये। सचिन जब एक बार अपनी बतकही शुरू करते हैं तो किस्सों को एक के बाद एक धागे में पिरो-पिरो के पेश करते हैं और तब ईश्वर सिंह दोस्त जैसे घोर गंभीर विद्वान भी हँस पड़ते हैं। उनका विट गजब का है। राजेश भैया, भाभी, मणिमय दा और सुचित्रा भाभी, गोर्की, श्रीकांत, शीनू, किशोर, नरेंद्र सहित सभी ने उस शाम खूब बातें कीं। अगले दिन दोपहर में ईश्वर के रायपुर प्रस्थान का निर्णय फिर  वर्षा और साक्षी का जाने का समय और अगले दिन सचिन के जाने की घोषणा ने मुझे डरा दिया कि अकेला क्या करूँगा मैं? पर अंत में सबको अकेला ही रह जाना होता है, सो हम भी सेक्टर चार के उस मकान में अकेले रह गए।

तीसरादिन

मेरा तीसरा दिन था और अभी बस माइम के लिए बच्चे राजी हुए थे और कुछ शिविर के दोस्तों से  “वार्ड नंबर सिक्स” मोनोलोग की स्क्रिप्ट साझा हुई थी, बाकी चंपा गीति नाटय पर काम होना था। पर जैसे जैसे  “चंपा” नाटक के सीन के फ्रेम बने, और माइम की रिहर्सल शुरू हुई, मेरा अपने साथी अभिनेताओं पर विश्वास जमने लगा था। शाम हुई, फिर से एक एक किरदार पर काम करना शुरू किया। इसी बीच एक खूबसीरत दोस्त अपराजित से मुलाकात हुई। क्या ही इंसान, कुशल स्क्रिप्ट लेखक, मुंबई से लेकर रायपुर तक धाक जमा चुका ये इंसान विनम्रता की मूरत बने रिहर्सल देखता रहता और विभोर होता रहता। इस कार्यशाला से मुझे अपराजित के रूप में एक अच्छा दोस्त मिल चुका था। शाम को हम भिलाई पवार प्लांट देखने गए। शहर के उस पार से रोशनी में डूबा बीएसपी भारत के श्रमशील सपनों का सुंदर संसार, लौट कर आते समय अब अंधेरा होने लगा था।

मैंने राजेश भैया और भाभी के साथ अब बड़े स्नेह के घर की रसोई (जोकि संसार की सबसे सुंदर रसोई थी) में बैठ कर भोजन करना शुरू कर दिया था। मैं सच कहूँ तो बचपन के बाद पहली बार इतना सहज हुआ खाते समय…कितने ही छत्तीसगढ़ी व्यंजन के नाम बताते हुए भैया और भाभी कब मन भर खिला देते, ये पता ही नहीं चलता। सुबह शिविर में तरह तरह के नाश्ते, कभी पोहा, कभी दाल, कभी इडली, कभी सत्तू… आप समझ जाओ क्या मजे होंगे मेरे…

चौथा दिन

राजेश भैया कविता-रंगमंच की मेरी राय पर अपनी सहमति व्यक्त कर रहे थे, हम कुछ कविताओं के मंचन की बात कर रहे थे। रोशन, जो शिविर के निर्देशक भी थे, आए और बोले, आपसे कुछ बात करनी है। वो दरअसल ‘वार्ड न. छह’ की कहानी को लेकर कुछ जानना चाहते थे। वे कहानी में लिए गए एक प्रांत विशेष और खास व्यक्ति से जोड़ कर देखने पर मुझसे मेरी राय जानना चाहते थे। धीरे धीरे मैंने उनको इस कहानी का आधार बताना शुरू किया और ये भी बताया कि यह कहानी उन अनगिनत निर्दोष लोगों की है, जो बिना अपराध सिद्ध हुए जेल में बंद हैं। उनको जिस सिस्टम से, जिस व्यवस्था से दो-चार होना पड़ रहा है, जो भ्रष्ट पुलिस और  निकम्मी न्याय-व्यवस्था से बना हुआ है। पहली दो प्रस्तुतियाँ तो लोगों को समझ आ रही थीं, जो स्त्री-विमर्श और उसके संघर्ष की बात कहती हैं, और चंपा तो कात्यायनी की महत्वपूर्ण कविता पर ही आधारित था, पर मोनोलॉग पर थोड़ी हिचक थी।

खैर, मैं एक बार फिर कहानी को लेकर अपने किशोर दोस्तों के बीच बैठा, संवाद और देह-भंगिमा को लेकर लंबी बात हुई। रिया, कुसुम और प्रशस्ति के कविता पाठ से मैं आश्वस्त था, अंशुमन और सिद्धार्थ और ऋषभ पर काम करना बाकी था। धीरे धीरे बात उनके मन में बैठने लगी और ये भी कि ये मोनोलॉग साधारण कहानी नहीं, एक ज़रुरी दस्तावेज़  है जिसे हम सबको करना है।

पाँचवा दिन 

मेरे भिलाई से विदा लेने और आगरा जाने का दिन आ ही गया था। अमिताभ ने एक दिन पहले शाम को मेरी टिकट बुक कर दी और मणिमय दा आज सुबह से मुझे दोपहर के खाने के लिए ले जाने का आग्रह कर रहे थे। मन उदास था पर चारू और गोर्की के साथ हम दोपहर के खाने के लिए निकल गए। भिलाई शहर टाउनशिप के बाहर आम मध्यवर्गीय शहरों की तरह ही बदल रहा है, वो अब आधुनिक भारत का तीर्थ नहीं, बाजार बन गया है, टाउनशिप के अंदर ही मुझे इसके संकेत मिल चुके थे। भिलाई स्टील प्लांट प्रबंधन (सेल) ने स्कूल्स को गैर फायदेमंद कह कर बंद कर दिया है। साप्ताहिक बाजार से अधिक लोग अब मॉल और डिपार्टमेंटल स्टोर्स पर जाना पसंद करते हैं। 

हम भी एक सुव्यवस्थित रेस्तरां में थे। आज दोपहर का खाना मणिमय दा की तरफ से था और फिर हम लौट कर मणिमय दा के घर पहुँचे, जहाँ सुचित्रा भाभी ने अपने हाथों से बना खाना यात्रा के लिए रखा। इतना स्नेह लेकर मैं भारी मन वापसी की गाड़ी का टाइम मोबाइल में देखते हुए राजेश भैया के घर आ गया। अंदर घुसते ही पूरी युवाओं की शिविर प्रभारी टीम मुझे विदा करने के लिए वहाँ मौजूद थी। कुछ देर आराम किया, फिर सभी ने अपने हाथों से बनाया इप्टा के लोगो से सजा एक सेरेमिक ग्लास मोजाइक एक स्मृति चिन्ह के रूप में दिया। 

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मेरी स्मृति में न जाने कितने नाम तैर रहे थे। हर समय खयाल रखते राजेश भैया, हारमोनियम लिए मणिमय मुखर्जी व बी.बी. परगनिहा जी, प्यारा  श्रीकांत, जो मेरे साथ ही रहा कि मुझे किसी चीज के लिए परेशान न होना पड़े, गोर्की जो हर समय मेरे आसपास रहा। तनिष्क, जिसमें ग़ज़ल और गीत की इतनी ललक, कि वर्षा के सिखाए गीत की धुन को प्रस्तुत भी किया। श्रीनू एक बेहद प्यारा बच्चा, जो अपनी पार्लर की जिम्मेदारियों के बीच भी शिविर के लिए समय निकाल लेता अपनी हँसी से मुझे खुश रखता। हर्ष, जो दो दिन तक खुद को किसी प्रस्तुति में लिए जाने की प्रतिक्षा कर रहा था और फिर मौका मिला तो माइम में शानदार अभिनय किया। आदर्श, अंशुमन, संकेत, जो अगंभीर लगते थे पर इन्होंने सिद्ध किया कि दोस्तों पर विश्वास करना कितना ज़रूरी है। अदिबा को उसकी हाजिरजवाबी के लिए मैं हमेशा याद रखूँगा। किशोर, अदिति व निकिता, प्रतिष्ठा, रोहित व गौरी ने निर्देशन में बहुत मेहनत की। स्वरा, नैन्सी, दर्शन, नीतिज्ञ, तान्या और नरेंद्र पटनारे जिन्होंने मेरे वहाँ से आ जाने के बाद माइम और चंपा की प्रस्तुतियों को संभाला । आस्था, जो हमारी माइम में मुख्य किरदार थी, अपनी पूरी ताकत के साथ काम करती रहीं। कुमकुम, जो कविताओं को लेकर बहुत उत्साहित थी। चारू, गोर्की, श्रीकांत, नरेंद्र, श्रीनू, किशोर सब मुझे स्टेशन तक छोड़ने आए । गाड़ी समय से थी और मैं सोच रहा था कि न जाने कब फिर वापसी हो !

वर्षा , विनोद, सचिन, साक्षी और अर्पिता ने इस बार फिर ये सिखाया कि यह दोस्ती-यारी ही किसी आंदोलन को मज़बूत बनाती है, हमको साथ लड़ना और जूझना सिखाती है। शुक्रिया राजेश भैया और मणिमय दा, श्रीकांत, चारू, चित्रांश, नरेंद्र, किशोर, आभार रोशन अपराजित और मेरे सारे प्यारे दोस्त। फिर मिलेंगे।

मृगेन्द्र की रिपोर्ट

26 मई को भिलाई इप्टा की कार्यशाला के समापन समारोह के आखिरी दिन शामिल होने का अवसर प्राप्त हुआ। आयोजन शाम को खुले परिसर में था। जैसे ही हम लोग रायपुर से (ईश्वर सिंह दोस्त, मिनहाज असद, अमिताभ पांडे, मृगेन्द्र) आयोजन स्थल पर पहुँचे, एक रंगीन नज़ारा देखने को मिला। रंगीन परिधानों में सजे-धजे छोटे-छोटे बच्चों से लेकर बड़े तक एक उत्सव का माहौल बना रहे थे। भिलाई इप्टा के सभी साथी गर्मजोशी के साथ मिले। 

सबसे पहली नजर गोर्की पर पड़ी सफेद लुंगी पहने हुए, लगा कि किसी नाटक में किरदार निभा रहे हों इसलिये ऐसी ड्रेस पहनी है। लेकिन देखा कि कई पुराने युवा साथी लुंगी लपेटे हुए थे। पूछने पर गोर्की ने बोला कि साजू (केरला इप्टा के साथी) भाई को देखे थे डाल्टनगंज में, तो तभी सोचा था कि हम लोग भी पहनेंगे और आज अचानक हमने तय किया और जिसको जो भी सफेद, लाल, पीली लुंगी मिली पहन लिया। कुछ देर बाद देखा कि सभी लुंगीधारी साथी लुंगी सम्हाल कर चल रहे हैं। गोर्की से राजेश जी बोले कि अच्छे से बाँध लिया है कि नहीं। गोर्की ने आत्मविश्वास के साथ कहा कि अन्दर जीन्स पहन रखी है, कोई टेंशन नहीं है। राजेश जी ने कहा फ़िर ठीक है। लगभग सभी साथी जींस के भरोसे लुंगी पहने हुए थे, पर यह मज़ेदार था।

राजेश जी, मणिमय दादा, गोर्की, चारू, चार्ली, श्रीकांत, रोशन घड़ेकर सहित कई साथी मिले। कुछ साथियों के नाम भूल रहा हूँ और साथ ही कई नये साथियों से भी राजेश जी ने परिचय कराया। 

जनगीतों की प्रस्तुति देखकर अशोकनगर इप्टा की याद ताज़ा हो गई, जिसमें हर उम्र के साथी समूह में गाते हैं। भिलाई इप्टा के साथियों ने इप्टा का एक नया गीत तैयार किया है। इसी के साथ कार्यक्रम की शुरुआत हुई। जनगीतों की प्रस्तुति के बाद नाटकों का मंचन हुआ। चारू के निर्देशन में ‘अंधेर नगरी चौपट राजा’ नाटक का मंचन हुआ। इसमें छोटे-छोटे बच्चों की भूमिका सराहनीय रही। राजा का मज़ेदार रोल नन्हीं बालिका श्रेया ने निभाया। सभी नाटकों में लड़कियों की भूमिका पर्याप्त देखने को मिली। यहाँ तक कि कुल मिलाकर लड़कों से ज्यादा लड़कियों ने अभिनय किया। महिला पात्रों के रूप में तो है ही, साथ ही पुरुष पात्रों का रोल भी निभाया। 

प्रसिद्ध लेखक लोक बाबू की उपस्थिति में उनकी लिखी कहानी ‘स्कूटर’ का मंचन अपराजित के निर्देशन में हुआ। ‘स्कूटर’ कहानी का पहली बार नाट्य रूपांतरण कर मंचन किया गया। जिसे दर्शकों ने काफी पसंद किया। बाद में चर्चा में भिलाई के ही नाटक प्रेमियों से यह भी कहते सुना गया कि हम लोग इस कहानी पर नाटक करना चाहते थे पर नाट्य रूपांतरण नहीं कर पाये।

मथुरा इप्टा के साथी विजय शर्मा के निर्देशन में जालसाजी व्यवस्था पर प्रहार करते हुए मोनोलाग देखने को मिला। जिसमें पुलिसिया अत्याचार के साथ ही न्याय की अन्यायी व्यवस्था और तंत्र जालसाजी तंत्र की क्रूरता देखने को मिली। इस नाटक की प्रस्तुति प्रभावपूर्ण रही। जनता के मन में व्यवस्था को लेकर सवाल पैदा करने वाली साहसिक प्रस्तुति का मंचन भिलाई इप्टा के साथियों के हौसले को व्यक्त करता है। 

वैसे कहा जाय तो कार्यशाला आयोजित करना ही अपने आप में साहस का काम है। वो भी भरी गर्मी में और यह काम बखूबी तरीके से इप्टा की कई इकाईयाँ विभिन्न राज्यों में स्वस्फूर्त तरीके से कर रही हैं।

 इसमें भी 100 के आसपास प्रतिभागी थे। भिलाई इप्टा की परंपरा का अंग बन चुकी कार्यशाला के लिए बच्चों की तलाश नहीं करनी पड़ती बल्कि संख्या ज्यादा होने के चलते मना करना पड़ता है। 

इस आयोजन में इप्टा की महिला साथियों की महत्वपूर्ण भूमिका को भी याद करने की जरूरत है जो भिलाई इप्टा की शुरुआत से ही लगातार सक्रिय हैं। एक तो सुचित्रा मुखर्जी जी हैं जिनसे लगभग सभी परिचित हैं तो दूसरी तरफ पर्दे के पीछे रहकर काम करने वाली रचना श्रीवास्तव जी हैं जिनका घर एक तरह से इप्टा का घर है। घर में एक बड़ा सा किचेन और डायनिंग हॉल इस बात की गवाही देता है। रचना जी के बारे में मणिमय जी ने समारोह के दौरान बोला भी कि कैसे कार्यशाला के दौरान बच्चों के लिये नाश्ता तैयार करना, सभी का ध्यान रखना, इसका निर्वहन वो इस तरह से करती हैं जैसे ये उनके हिस्से की जिम्मेदारी हो। और एक पूरी टीम है ही जो समर्पित भाव से काम करती है तभी यह आयोजन इतने लंबे समय से लगातार चल रहा है।

भिलाई इप्टा की 25वीं कार्यशाला का समापन समारोह दो दिवसीय (25-26 मई) था। जिसमें जनगीत, नृत्य, नाटक की विभिन्न विधाओं जैसे सामूहिक, एकल, माईम आदि को प्रस्तुत किया गया।

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