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बच्चों की गतिविधियाँ और इप्टा रायगढ़

बच्चों की गतिविधियाँ और इप्टा रायगढ़

उषा वैरागकर आठले

इप्टा में बच्चों के लिए रंगकर्म की परम्परा संभवतः आगरा इप्टा से हुई थी। इप्टा के रंगकर्मियों, शहर के साहित्यकारों और उनके परिचितों के बच्चों को लेकर ‘लिटिल इप्टा’ की सांस्कृतिक गतिविधियाँ बीसवीं सदी के छठवें-सातवें दशक से राजेन्द्र रघुवंशी जी के नेतृत्व में शुरु हुई थीं। ज्योत्स्ना रघुवंशी तथा अचला सचदेव ने अपने संस्मरणों में इस बात का उल्लेख किया है। मध्य प्रदेश में जबलपुर, होशंगाबाद आदि इकाइयों में अस्सी के दशक में बच्चों की नाट्य-कार्यशालाओं की सूचना मिलती है। पिछले कई वर्षों में रायगढ़ के अलावा भिलाई, अंबिकापुर (छत्तीसगढ़), अशोक नगर, गुना (मध्यप्रदेश) लखनऊ, उरई, आगरा (उत्तर प्रदेश) के अलावा केरल में लगातार बच्चों के साथ इप्टा की इकाइयाँ काम कर रही हैं।

इस वर्ष भिलाई, अशोक नगर, गुना और रायगढ़ में कार्यशालाओं के आयोजन की खबरें हैं।

1994 में इप्टा रायगढ़ के पुनर्गठन के बाद अचानक 1996 की गर्मियों में उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र, इलाहाबाद से बच्चों की नाट्य-कार्यशाला के लिए स्वीकृति-पत्र आ गया, जबकि हमने युवाओं की नाट्य-कार्यशाला के लिए आवेदन किया था। स्वीकृति-पत्र आने के बाद अस्वीकृत करने का तो सवाल ही नहीं था इसलिए स्वीकृति भेज दी गई परंतु हमारी इकाई में किसी को भी बच्चों के साथ नाट्य-कार्यशाला का अनुभव न होने के कारण हमने विवेचना जबलपुर के निर्देशक साथी अरूण पाण्डे से सलाह-मशविरा किया। वे इस मामले में अनुभवी थे, सो उन्होंने आने का वचन दे दिया। अब समस्या थी, बच्चों को जुटाने की; तो इस काम में अर्पिता श्रीवास्तव ने पहल करके चक्रधर नगर इलाके में घर-घर जाकर लगभग 60 बच्चों को तैयार किया, 20 बच्चे अन्य इलाकों से आए। पॉलिटेक्निक के बड़े हॉल और छत पर कार्यशाला करने की अनुमति तत्कालीन प्राचार्य डी.एन.ठाकुर ने सहृदयता से प्रदान की।

बच्चों की नाट्य-कार्यशाला आरम्भ हुई। अरूण पाण्डेय ने बच्चों की संख्या और उम्र के आधार पर पाँच समूह बनाए और युवा साथियों को एक-एक समूह का समन्वयक सह निर्देशक बनाया। बच्चों के प्रशिक्षण के साथ-साथ युवाओं का भी प्रशिक्षण हो रहा था कि बच्चों की कार्यशाला कैसे ली जाए! इस नाट्य-कार्यशाला में पाँच नाटक – बॉबी, चावल की रोटियाँ, पतंग, नन्हा नकलची और अंधे-काने के अलावा दो समूह नृत्य तथा दो समूह गीत भी तैयार हुए। अंतिम दिन इनकी प्रस्तुति हुई, जिसका संचालन भी बच्चों ने ही किया था। साथ ही आमंत्रण पत्र क्राफ्ट और चित्रकला के प्रशिक्षण के दौरान बच्चों से ही तैयार कर बँटवाए गए। बच्चों की प्रस्तुतियों को रंगारंग बनाने के लिए दोपहर भर क्राफ्ट और कॉस्टयूम का प्रशिक्षण चलता था। कुल मिलाकर 1996 में आयोजित इस पहली बाल नाट्य-कार्यशाला का प्रशिक्षण पूरी टीम को मिला और इसके बाद तो प्रत्येक गर्मी की छुट्टियों में बच्चों की नाट्य-कार्यशाला या बाल-रंग-प्रशिक्षण शिविर आयोजन का सिलसिला चल पड़ा।

1997 में एनएसडी से संजय उपाध्याय और सुमन कुमार युवाओं के नाट्य-प्रशिक्षण के लिए आए ही थे तो उन्हीं के साथ पुलिस विभाग के ‘लिटिल स्टार क्लब’ के सहयोग से शहर के अनाथालय ‘चक्रधर बाल सदन’ में वहाँ के बच्चों और अन्य बच्चों की मिश्रित नाट्य-कार्यशाला आयोजित हुई। इसमें लगभग 95 बच्चों ने भाग लिया। भारतेन्दु हरिश्चंद्र का सदाबहार नाटक ‘अंधेर नगरी’ और पंचतंत्र की तीन कथाओं का कोलाज ‘तीन तिलंगे’ के रूप में तैयार हुआ। नाटकों के अलावा कुछ गीत और नृत्य भी तैयार किये गये थे। कार्यशाला के समापन दिवस पर चक्रधर बाल सदन के विशाल प्रांगण में बच्चों की रंगारंग प्रस्तुतियाँ हुईं। इस कार्यशाला में हमारी युवा टीम ने संजय उपाध्याय और सुमन कुमार से और भी नए-नए गुर सीखे।

1998 में बर्टोल्ट ब्रेख्त की जन्मशती पर नाट्य-कार्यशाला आयोजित करनी थी इसलिए बच्चों की पृथक कार्यशाला आयोजित करने की बजाय युवाओं के साथ ही कुछ बच्चे शामिल हुए और उन्होंने ब्रेख्त के ‘थ्री पेनी ऑपेरा’ में छोटी-छोटी भूमिका की।

1999 की गर्मियों में दो अलग-अलग स्थानों पर बच्चों की नाट्य-कार्यशाला इप्टा के युवा साथियों अनुपम पाल तथा टिंकू देवांगन ने क्रमशः म्युनिसिपल स्कूल तथा तिलक विद्या मंदिर में ली। टीम के सभी साथी दोनों की आवश्यकतानुसार मदद करने के लिए उपस्थित रहते थे। अनुपम पाल ने लक्ष्मीनारायण लाल का नाटक ‘जादू की छड़ी’ और रेखा जैन का नाटक ‘पुस्तकों का विद्रोह’ टिंकू देवांगन ने निर्देशित किया।

सन् 2000 में बच्चों की नाट्य-कार्यशाला के आयोजन का न्यौता रायगढ़ जिले की खरसिया तहसील से कल्याणी मुखर्जी ने दिया। लगभग 100 बच्चों के साथ युवा साथियों टिंकू देवांगन, कृष्णा साव, राजेन्द्र तिवारी, सुगीता पड़िहारी और कल्याणी मुखर्जी ने मिलकर दो नाटक ‘अंधेर नगरी’ और ‘नान टिंग टू और परी रानी’ तथा एक नृत्य नाटिका ‘भूमि’ तैयार करवाई। जितेन्द्र चतुर्वेदी और चंद्रदीप ने बच्चों को कुछ गीत सिखाए। खरसिया में ही कार्यशाला के अंतिम दिन नाटक-नृत्य-गीतों का प्रदर्शन हुआ। इप्टा रायगढ़ के युवा साथियों के लिए यह एक नया अनुभव था कि वे रोज़ ट्रेन में आना-जाना कर बच्चों को प्रशिक्षित करते रहे।

2001 में केवड़ाबाड़ी इलाके के साधनहीन बच्चों को लेकर नाट्य-कार्यशाला के आयोजन के लिए सुगीता और मैं मुहल्ले के घर-घर में जाकर अभिभावकों को समझा-बुझाकर बच्चों को लाए। वहीं भूपदेव प्राथमिक शाला में यह कार्यशाला आयोजित हुई। इसमें सुगीता पड़िहारी और उषा आठले ने रेखा जैन का लिखा नाटक ‘गणित देश’ तैयार करवाया।

2001 में ही जुलाई माह में एक अन्य अनुभव से हम रूबरू हुए। रंग विदूषक भोपाल की प्रख्यात गायिका और संगीत निर्देशक अंजना पुरी को एनएसडी ने बच्चों की नाट्य-कार्यशाला के लिए भेजा। उन्होंने दो जगह बच्चों की नाट्य-कार्यशाला ली। स्थानीय जिंदल स्कूल के बच्चों के साथ वहीं जाकर ‘कुहू रानी की चल गई चाल’ अंजना पुरी ने स्वयं लिखकर निर्देशित कर तैयार करवाया तथा शहर के बच्चों को लेकर ज़ब्तशुदा क्रांतिकारी नज़्मों पर आधारित ‘आज़ादी के दीवाने’ किया, जिसमें इप्टा के कुछ किशोर और युवा साथी भी सम्मिलित हुए।

2002 में भी तीन अलग-अलग जगहों पर नाट्य-कार्यशाला आयोजित की गई। केवड़ाबाड़ी के बच्चों को पिछले साल बहुत मज़ा आया था इसलिए इस बार भी उनके लिए भूपदेव प्राथमिक शाला में ही सुगीता पड़िहारी और साथियों ने मिलकर पंचतंत्र की कहानी पर आधारित ‘अथ मूषको भव’ तैयार करवाया। दूसरी ओर अनुपम पाल ने इप्टा के साथी हर्ष सिंह के विवेकानंद स्कूल में रेल्वे बंगलापारा और आसपास के इलाके के बच्चों के लिए नाट्य-कार्यशाला आयोजित की। इसमें रेखा जैन लिखित नाटक ‘बैलों की जोड़ी’ नाटक तैयार किया गया। तीसरे स्थान नटवर स्कूल में अर्पिता श्रीवास्तव ने ‘कुहू रानी की चल गई चाल’ नाटक निर्देशित किया। कार्यशाला के अंतिम दिन पॉलिटेक्निक ऑडिटोरियम में तीनों नाटकों का मंचन हुआ।

प्रत्येक वर्ष की नाट्य-कार्यशाला में बच्चों को सबसे ज़्यादा मज़ा आता था थियेटर गेम्स और एक्सरसाइज़ेस में। उसके बाद वे इम्प्रोवाइज़ेशन में भी जोश के साथ शामिल होते। कभी कभी हमें उन्हीं बच्चों के बीच ढोलक बजाने वाले, गाने वाले बच्चे मिल जाते थे। हरेक साल लगभग 90 से 100 बच्चे इन नाट्य-कार्यशालाओं में सम्मिलित होते थे। इसमें से 20-30 प्रतिशत बच्चे हर साल आते थे। कुछ बच्चे युवा होने के बाद इप्टा की टीम के सक्रिय सदस्य बन गए हैं।

2003 की गर्मियों में नाट्य-कार्यशाला तीन स्थानों पर आयोजित हुई – विवेकानंद स्कूल, रेल्वे बंगलापारा में विवेक तिवारी द्वारा संचालन, प्रज्ञा विद्या मंदिर बेलादुला में कृष्णा साव द्वारा संचालन और नटवर स्कूल में अजय आठले द्वारा संचालन किया गया। इसमें क्रमशः ‘लाख की नाक’, ‘ईदगाह’ और ‘शेखचिल्ली’ नाटक तैयार किये गये। रायगढ़ के शर्मा टेंट हाउस के उपेन्द्र शर्मा ने ‘शुभम विवाहघर’ नामक एक काफी खुली जगह किराये पर ली थी, जो उन्होंने हमें अंतिम दिन के मंचन के लिए उपलब्ध करवा दी। तीनों नाटकों व कुछ गीतों के मंचन हुए।

2004 में टाउन हॉल में सभी बच्चों को एक साथ एक जगह पर प्रशिक्षण देने की बात सोची गई। इसमें अजय आठले, कल्याणी मुखर्जी और विवेक तिवारी ने तीन समूहों को क्रमशः ‘अंधों में काना राजा’, ‘भूमि’ तथा ‘विचित्र योद्धा’ नाटक तैयार करवाए। पिछले साल से ही अजय ने बच्चों को सिर्फ कहानी सुनाकर उन्हीं से इम्प्रोवाइज़ेशन करवाकर, उन्हीं से गीत लिखवाकर, उन्हीं से धुनें बनवाने का प्रयोग शुरु किया था, जो इस वर्ष भी सफलतापूर्व जारी रहा।

2004 में ही एनएफडीसी मुंबई से एफटीआयआय के संकल्प मेश्राम रायगढ़ से सटे गाँव में बच्चों की फिल्म ‘छुटकन की महाभारत’ का निर्माण करने आए। इस फिल्म में इप्टा के इन बाल नाट्य-कार्यशालाओं के बाल कलाकार तरूणा निषाद, संकल्प महंत, भास्कर यादव को प्रमुख भूमिकाओं के लिए चुना गया और इप्टा के अन्य लगभग बीस कलाकारों को भी विभिन्न भूमिकाएँ दी गईं। उल्लेखनीय है कि इस फिल्म को 2005 का ‘सर्वश्रेष्ठ बाल फिल्म पुरस्कार’ प्राप्त हुआ था।

2005 में भी टाउन हॉल में ही स्वप्निल कोत्रीवार और कृष्णा साव ने नाट्य-कार्यशाला के दौरान नाटक ‘हिरण्यकश्यप मर्डर केस’ तथा ‘धोबी अउ पंडित’ तैयार करवाए। नाटकों-गीत-नृत्यों का प्रदर्शन भी टाउन हॉल में ही किया गया था।

इस वर्ष के नाट्य समारोह के दौरान इप्टा रायगढ़ की वार्षिक पत्रिका ‘रंगकर्म’ का अंक बाल रंगकर्म पर केन्द्रित रखा गया था। इसमें बच्चों के तीन नाटक प्रकाशित थे तथा विभिन्न शहरों में बच्चों के साथ लगातार रंगकर्म करने वाले रंगकर्मियों के इंटरव्यू और लेख सम्मिलित थे।

2006 की गर्मियों में पानी की किल्लत के चलते हमें महसूस हुआ कि इस वर्ष नाट्य-कार्यशाला की थीम ‘पानी’ ही रखी जाए। शिविर में काफी बच्चे होने के कारण विभिन्न उम्र एवं विधाओं पर अलग-अलग साथियों ने काम किया।

अजय आठले ने ‘पानी कहाँ रूका है’ तथा अपर्णा ने ‘पानी का खेल’ नाटक तैयार करवाए। इसी के साथ कल्याणी मुखर्जी और उषा आठले ने नन्हेमुन्ने बच्चों को लेकर बालगीत-नृत्य तैयार करवाए। विकास तिवारी ने बच्चों को पानी पर केन्द्रित गीत ‘पानी रोको पानी रोको भाई रे’ और नागपुर से आई मोना शास्त्री ने छत्तीसगढ़ी गीत पर एक लोकनृत्य तैयार करवाया। बच्चों को चित्रकला प्रशिक्षण के तहत पानी पर केन्द्रित चित्र बनाने को कहा गया तथा कविता या गीत लिखने के लिए प्रेरित किया गया। अंतिम दिन टाउन हॉल में ही चित्रकला प्रदर्शनी, बच्चों की रचनाओं पर आधारित ‘जल फुलवारी’ पत्रिका का विमोचन किया गया। इस पत्रिका का मुखपृष्ठ इप्टा के संरक्षक मुमताज भारती ने बनाया था। सभी नाटकों, नृत्य-गीतों का अंतिम दिन प्रदर्शन पॉलिटेक्निक ऑडिटोरियम में किया गया। शहर के अनेक साहित्यकारों, विद्वानों को आमंत्रित कर बच्चों को पर्यावरण संबंधी वैज्ञानिक जानकारी प्रदान की गई।

इस वर्ष बच्चों के लिए कुछ नए उपक्रम शुरु किये गये। बाल श्रम पर आधारित एक शॉर्ट फिल्म बनाई गई ‘मुगरा’, जिसमें केवड़ाबाड़ी कार्यशाला में आए दो बच्चे – लोकेश्वर निषाद और श्याम देवकर ने मुख्य भूमिका निभाई थी।

इसी वर्ष से अगले दो-तीन सालों तक 24 अप्रेल को ‘विश्व पुस्तक दिवस’ के उपलक्ष्य में इप्टा ने विभिन्न स्कूलों में पुस्तक प्रदर्शनी आयोजित की। कार्मेल स्कूल, गार्जियन एण्ड गाइड स्कूल में प्रदर्शनी लगाने की बात मुझे अच्छी तरह याद है। इप्टा के कुछ सदस्यों ने बच्चों की किताबें खरीदने में मदद की थी। अक्सर देखा गया कि, बच्चों को पाठ्यपुस्तकों के अलावा अन्य किताबों की जानकारी ही नहीं होती। इस बीच लगभग 200 किताबें इकट्ठा हो गई थीं। तो हमने योजना बनाई मोबाइल लाइब्रेरी या चलित ग्रंथालय की। म्युनिसिपल स्कूल कार्यशाला के एक बच्चे विष्णु हिमधर ने साइकिल से घर-घर जाकर बच्चों को सदस्य बनाकर किताबें पहुँचानी शुरु की। इसमें उसे सदस्य-संख्या के अनुसार थोड़ा कमिशन दिया जाता था। मोबाइल लाइब्रेरी कुछ सालों तक चली। इसे विष्णु के अलावा चंद्रदीप, राजेश बानी, लोकेश्वर निषाद और देवचरण ने भी संचालित किया। काफी वर्षों बाद बच्चों की तमाम किताबें विवेकानंद स्कूल की लाइब्रेरी के लिए हर्ष सिंह को सौंप दी गईं।

2007 की गर्मियों की छुट्टी में अपर्णा और अजय आठले ने टाउन हॉल में नाट्य-कार्यशाला का संचालन किया और कुछ गीतों-नृत्यों के साथ राजस्थानी लोककथा पर आधारित नाटक ‘नंगा राजा’ तथा ‘डिस्को गड़बड़ रामायण’ तैयार करवाए। इप्टा रायगढ़ की इन कार्यशालाओं में संचालन का जिम्मा ज़रूर दो से चार साथी लेते थे, मगर अन्य सभी साथी अपनी-अपनी रूचि एवं विशेषज्ञता के अनुसार कार्यशाला की अन्य गतिविधियों, बैक स्टेज, प्रबंधन आदि सम्हालते थे।

2008 में ग्रीष्मकालीन नाट्य-कार्यशाला के स्थान पर इप्टा ने अभिनय प्रतिभा खोज अभियान के तहत अंतरविद्यालयीन नाट्य प्रतियोगिता का आयोजन किया। इसमें ओ.पी.जिंदल स्कूल, गार्जियन एण्ड गाइड स्कूल, विवेकानंद स्कूल, महर्षि विद्या मंदिर, कार्मेल हिंदी माध्यम स्कूल तथा केन्द्रीय विद्यालय के लगभग 110 बच्चों ने भाग लिया था। इसमें सीनियर और जूनियर दो श्रेणियों में नाट्य प्रतियोगिता को बाँटा गया था और शहर के सम्मानित शिक्षकों/रंगकर्मियों के जजमेंट के अनुसार नाटकों को प्रथम, द्वितीय व तृतीय पुरस्कार तथा सर्वश्रेष्ठ अभिनेता, अभिनेत्री व निर्देशक पुरस्कार व प्रमाणपत्र प्रदान किये गये।

इस बीच बच्चों पर केंद्रित एक और शार्ट फिल्म ‘बच्चे सवाल नहीं करते’ अजय आठले ने बनाई। इसमें इप्टा की बाल नाट्य कार्यशाला के तीन बच्चों भरत निषाद, स्वप्निल स्वर्णकार और संकल्प महंत ने मुख्य भूमिकाएं निभाई थीं।

इसी वर्ष से इप्टा रायगढ़ से आरम्भ से जुड़ी अपर्णा ने कार्मेल हिंदी माध्यम स्कूल में स्कूल मैनेजमेंट से अनुमति लेकर नाटक को एक विषय के रूप में रखवाने में सफलता पाई। वह नियमित कक्षाएँ लेती थी और आवश्यकतानुसार अन्य साथियों को भी आमंत्रित करती थी।

2010 में अंतरविद्यालयीन नाट्य प्रतियोगिता को दिसम्बर-जनवरी में होने वाले नाट्य समारोह के साथ जोड़ा गया। समारोह के एक दिन पहले टाउन हॉल मैदान में लगाए गए ऑडिटोरियमनुमा मंडप में यह आयोजन सम्पन्न किया गया। इस वर्ष 11 स्कूलों ने भाग लिया। सीनियर और जूनियर उम्र व कक्षा के अनुसार दो श्रेणियाँ इस बार भी थीं। इप्टा के ही साथियों ने अपने माता-पिता की स्मृति में विभिन्न पुरस्कार प्रदान करने की परम्परा शुरु की।

2010 की गर्मी की छुट्टी में नाट्य-कार्यशाला अपर्णा ने संचालित की और प्रेमचंद की कहानी ‘पंच परमेश्वर’ का मंचन आशीर्वाद के हॉल में किया गया।

जनवरी 2011 में पिछले वर्ष की तरह नाट्य समारोह के एक दिन पूर्व अंतरविद्यालयीन नाट्य प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। इस बार 8 विद्यालयों ने भाग लिया।

जनवरी 2012 में भी नाट्य समारोह के एक दिन पहले अंतरविद्यालयीन नाट्य प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। इसी वर्ष केवड़ावाड़ी बाल नाट्य-कार्यशाला का नियमित कलाकार अजेश शुक्ला बड़ा होकर मध्यप्रदेश नाट्य विद्यालय की पहली बैच से प्रशिक्षण लेकर लौटा था। उसने मई माह में बाल नाट्य-कार्यशाला का संचालन किया और ‘अपना अपना भाग्य’ नाटक तैयार किया। शहर की संगीत अध्यापिका देवकी डनसेना ने कार्यशाला में कुछ गीत तैयार करवाए थे।

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इस कार्यशाला में क्राफ्टवर्क में फालतू सामानों से कलात्मक वस्तुएँ बनाने का प्रशिक्षण इप्टा के नए साथी हितेश पित्रोडा ने दिया। हितेश ने बच्चों के साथ मिलकर बहुत सी कलाकृतियाँ तैयार की थीं, जिनकी प्रदर्शनी भी लगाई गई थी। समूची कार्यशाला टाउन हॉल में संचालित हुई थी और उसका समापन प्रदर्शन भी वहीं किया गया।

2013 में ग्रीष्मकालीन बाल नाट्य-कार्यशाला अपर्णा द्वारा संचालित की गई, जिसका समापन इप्टा के स्थापना दिवस 25 मई को किया गया। अपर्णा के निर्देशन में बच्चों ने नाटक ‘शिक्षा का सर्कस’ की प्रस्तुति दी।

2014 में भी ग्रीष्मकालीन बाल नाट्य-कार्यशाला अपर्णा द्वारा संचालित की गई, जिसमें उसने नाटक ‘राजा की पोशाक’ तैयार करवाया। इसके साथ ही एनएसडी से रायगढ़ आए हुए रायपुर के रंगकर्मी हीरामन मानिकपुरी ने इप्टा के युवा कलाकारों के दो नाटक तैयार करवाए और तीन नाटकों का एक साथ मंचन पॉलिटेक्निक ऑडिटोरियम में किया गया।

इस बीच बच्चों की नियमित ग्रीष्मकालीन बाल नाट्य-कार्यशालाओं में भाग लेने वाले कुछ बच्चे बड़े होकर इप्टा रायगढ़ की नियमित मंडली में शरीक हो चुके थे। उनमें से आलोक बेरिया और अजेश शुक्ला ने अपर्णा के साथ-साथ नाट्य-कार्यशाला का संचालन करने का प्रस्ताव रखा। शुरुआती दौर में जिसतरह गर्मी में बच्चों की सुविधा देखते हुए कार्यशाला अलग-अलग दो-तीन जगहों पर आयोजित की जाती थी, वैसा ही फिर शुरु करने का निर्णय लिया गया और अप्रेल 2015 में विवेकानंद स्कूल रेल्वे बंगलापारा, टाउन हॉल तथा गार्जियन एण्ड गाइड स्कूल में लगभग 80 बच्चों के साथ तीन नाटक तैयार हुए। अपर्णा के निर्देशन में ‘पानी की कहानी नारद की जुबानी’, आलोक बेरिया के निर्देशन में ‘रोजगार महाराज’ तथा अजेश शुक्ला के निर्देशन में ‘प्रतिशोध’ नाटकों का मंचन पॉलिटेक्निक ऑडिटोरियम में किया गया।

2016 तथा 2017 में युवाओं के नाट्य-प्रशिक्षण पर फोकस करने के कारण बच्चों की नाट्य-कार्यशाला आयोजित नहीं हो पाई, जिसकी भरपाई 2018 में की गई। इस बार नाट्य-प्रशिक्षण के साथ-साथ नृत्य प्रशिक्षण शिविर भी आयोजित किया गया। पॉलिटेक्निक में श्याम देवकर और शोभा के अलावा शासकीय विद्यालय रेल्वे बंगलापारा में आलोक बेरिया और प्रियंका बेरिया ने नाट्य कार्यशाला ली और मयंक डांस स्टुडियो में मयंक श्रीवास्तव ने नृत्य कार्यशाला संचालित की। इसमें दो नाटक ‘अहिंसा पर विजय’ तथा ‘तेनालीराम की चतुराई’ तैयार किये गये और तीन नृत्य लड़कियों का फ्यूज़न डांस, लड़कों का थीम डांस और छत्तीसगढ़ी लोकनृत्य तैयार हुए, जिनका 25 मई 2018 को पॉलिटेक्निक ऑडिटोरियम में मंचन हुआ।

2018 में मेरे द्वारा स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेने के बाद और सिद्धि विनायक कालोनी में इप्टा रायगढ़ का सर्वसुविधायुक्त स्टुडियो बनने के बाद हमने बच्चों के साथ नियमित गतिविधियों की योजना बनाई, जिसमें ‘लिटिल इप्टा’ का गठन कर बच्चों को नियमित फिल्में दिखाना, ड्रामा क्लब, पेंटिंग प्रशिक्षण, लाइब्रेरी जैसी कई योजनाएँ शामिल थीं। उसके पहले चरण के रूप में 2019 की गर्मियों में दो स्थानों पर नाट्य-नृत्य प्रशिक्षण कार्यशाला आयोजित की गई।

पहली कार्यशाला सिद्धि विनायक के इप्टा के स्टुडियो में उषा आठले, अजय आठले, रामप्रसाद श्रीवास, टिंकू देवांगन, मयंक श्रीवास्तव और मुमताज भारती ‘पापा’ ने क्रमशः नाटक, संगीत, क्राफ्ट, नृत्य और चित्रकला का प्रशिक्षण और दूसरी कार्यशाला प्रज्ञा विद्या मंदिर मालीडीपा में पुराने साथी कृष्णा साव, शोभा तथा उग्रसेन पटेल ने नाटक, नृत्य, कराटे, संगीत का प्रशिक्षण दिया। कार्यशाला में ‘स्टोरी टेलिंग’ का प्रशिक्षण देने डॉ. शिल्पा दीक्षित भी आईं। इस कार्यशाला में दो नाटक ‘चोर पुराण’ तथा ‘उपसंहार’ तथा छत्तीसगढ़ी लोकनृत्य, राजस्थानी कालबेलिया लोकनृत्य व वेस्टर्न शैली पर आधारित ‘फ्यूचर रोबोटिक्स’ डांस के अलावा चार समूह गीत तैयार किये गये। इस बार 1996 की तरह कार्यशाला की एक बाल कलाकार प्रतीचि पटेल ने पूरे कार्यक्रम का संचालन रोचक तरीके से किया।

कार्यशाला समाप्ति के बाद सभी बच्चों को बुलाकर ‘आई एम कलाम’ बाल फिल्म दिखाकर पार्टी की गई। अगले सप्ताह से सेटरडे क्लब के रूप में हमने कार्यशाला के जो भी बच्चे आ सकते हैं, उन्हें लेकर अन्य गतिविधियाँ आरम्भ कीं। इसी कड़ी में 31 जुलाई 2019 को प्रेमचंद जयंती पर बच्चों ने प्रेमचंद की तीन कहानियों को इम्प्रोवाइज़ कर खुद ही नाटक प्रस्तुत किये, जिसे अजय आठले ने सिर्फ व्यवस्थित किया था। ये नाटक थे – बड़े भाई साहब, सैलानी बंदर, तथा नादान दोस्त।

हरेक शनिवार को लगभग दो घंटे अनेक प्रकार की गतिविधियाँ करके बच्चों को इम्प्रोवाइज़ेशन का चस्का लग गया था। गांधी जयंती के अवसर पर बच्चे अज़ीम प्रेमजी फाउंडेशन के कार्यालय की गतिविधियों में शामिल हुए और उन्होंने वहीं पर दस मिनट की तैयारी में गांधी पर एक छोटा नाटक खेल दिया। बाद में इसी नाटक को और बढ़ाकर तथा स्वतंत्रता संग्राम की घटनाओं पर एक नृत्य मयंक श्रीवास्तव ने तैयार करवाया, जिसका मंचन बच्चों ने गांधी जी की एक सौ पचासवीं वर्षगाँठ के अवसर पर आयोजित ‘अहिंसा पर्व’ नामक छब्बीसवें नाट्य समारोह के अवसर पर पहले दिन किया।


बच्चों को ‘सेटरडे क्लब’ में अनेक बाल फिल्में दिखाई गईं और फिल्म-प्रदर्शन के बाद उन पर बच्चों को चर्चा करने के लिए उकसाया गया। इन फिल्मों में ‘विद्या कसम’, ‘निधि’ज़ लंचबॉक्स’, ‘गट्टू’, ‘फ्रॉक’, ‘धनक’, ‘लिटिल टेररिस्ट’ प्रमुख हैं।

कोविड लॉकडाउन के कारण और अजय आठले के अचानक बिछुड़ने के कारण इप्टा रायगढ़ की गतिविधियाँ शिथिल ज़रूर हुईं, मगर अब नए-पुराने साथी मिलकर फिर से नियमित गतिविधियाँ आरम्भ कर चुके हैं।

2022 की गर्मियों में पूर्व परम्परा के अनुसार बच्चों की नाट्य-नृत्य-संगीत प्रशिक्षण कार्यशाला आयोजित की गई। इसे दो स्थानों पर आयोजित किया गया। इप्टा कार्यालय में विनोद बोहिदार, युवराजसिंह आज़ाद और भरत निषाद के संरक्षण में आलोक बेरिया, प्रियंका बेरिया, वासुदेव निषाद तथा देवसिंह परिहार मोनू ने कार्यशाला का संचालन किया और प्रज्ञा विद्या मंदिर मालीडीपा में रविन्द्र चौबे व श्याम देवकर के संरक्षण में कृष्णा साव, शोभा सिंह तथा उग्रसेन पटेल द्वारा संचालन किया गया। 25 मई 2022 को तीन नाटक ‘हम सब एक हैं’ (निर्देशन शोभा सिंह और श्याम देवकर), ‘जादू का सूट’ (निर्देशन आलोक बेरिया, प्रियंका बेरिया) और ‘रजनी’ (निर्देशन कृष्णा साव व शोभा सिंह) मंचित किये गए। नृत्यों में सुआ लोकनृत्य, सैलारिना और बस्तरिहा आदिवासी नृत्य प्रस्तुत किये गये। तीन समूह गीत ‘हो गे गोधूलि बेला’, ‘हम जो दीपक हैं’ और ‘जब तक बेटी के प्रश्नों पर’ उग्रसेन पटेल द्वारा तैयार करवाए गए।

इस वर्ष 2023 में भी इप्टा रायगढ़ के साथियों द्वारा 03 मई से 25 मई तक तीन स्थानों पर बच्चों की नाट्य-नृत्य-संगीत प्रशिक्षण कार्यशाला चल रही है। इस वर्ष यह कार्यशाला विज्ञान तथा वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर आधारित है। इप्टा कार्यालय सिद्धि विनायक कालोनी में श्याम देवकर और दीपक यादव लगभग 40 बच्चों के साथ काम कर रहे हैं, प्रज्ञा विद्या मंदिर मालीडीपा में कृष्णा साव, शोभा सिंह व प्रेरणा देवांगन लगभग 30 बच्चों के साथ और डायमंड हिल कालोनी में विनोद बोहिदार और विकास तिवारी कार्यशाला का संचालन कर रहे हैं। समापन अवसर पर 25 मई को कार्यशालाओं में तैयार कार्यक्रमों की प्रस्तुति पॉलिटेक्निक ऑडिटोरियम में की जाएगी।

इस तरह बच्चों की नाट्य-नृत्य-संगीत प्रशिक्षण कार्यशालाओं के आयोजन की यह तेइसवीं कड़ी है। अब तक सैकड़ों बच्चे इप्टा की इन कार्यशालाओं में कभी एक बार, दो बार या अनेक बार सम्मिलित होकर मधुर और ऊर्जाभरी स्मृतियाँ लेकर गए हैं। कुछ बच्चे बड़े होकर इप्टा में ही सृजनात्मक गतिविधियों के साथ संगठन की ज़िम्मेदारी सम्हाल रहे हैं, तो कई बच्चे देश के विभिन्न संस्थानों में अपना हुनर प्रदर्शित कर रहे हैं। अनेक कलाकार, निर्देशकों की लंबी सूची है, जिन्होंने बच्चों की इन कार्यशालाओं का निर्देशन करते हुए अपने हुनर को माँजा है और बच्चों के साथ मिलकर सीखने-सिखाने का उपक्रम किया है। न केवल बच्चे, बल्कि युवा कलाकार भी इन कार्यशालाओं के मार्फत आत्मविश्वास, बेहतर संवाद-क्षमता, टीम वर्क, सामूहिक आनंद लेने का मज़ा, कलात्मक और वैचारिक क्षमता का परस्पर आदान-प्रदान, लेखन, अध्ययन, चित्रकारी, संगीत, नृत्य, अभिनय, क्राफ्ट और बैक स्टेज के तमाम काम सीखते रहे हैं। बच्चों के साथ-साथ उनके अभिभावकों से संबंध भी महत्वपूर्ण स्थान रखता है। इप्टा रायगढ़ के विकास में बच्चों की इन तमाम कार्यशालाओं का बहुत बड़ा योगदान रहा है।

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