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फोरम थियेटर : बरास्ते नाशिक इप्टा

फोरम थियेटर : बरास्ते नाशिक इप्टा

(‘सहयात्री’ ब्लॉग के माध्यम से सांस्कृतिक स्तर पर काम करनेवाले, समता, समानता, बराबरी, सामाजिक न्याय और परस्पर भाईचारा स्थापित करने के लिए प्रयासरत लोगों के संगठित रचनात्मक गतिविधियों को साझा किया जाता है। अनेक विषयों और गतिविधियों से परिचित होते हुए आज हम इप्टा की एक युवा इकाई के नए अभियान को सलाम करते हुए ‘फोरम थिएटर’ से परिचित होते हैं। सभी फोटो नाशिक इप्टा के सोशल मीडिया मंचों से लिए गए हैं और कुछ गूगल से। )

लगभग तीन साल पहले इप्टा की अपेक्षाकृत नई और युवा साथियों की बहुतायत वाली इकाई महाराष्ट्र के नाशिक जिले में गठित हुई। बहुत सृजनशील और विभिन्न सामाजिक-सांस्कृतिक क्षेत्रों में कार्यरत ये युवा साथी निरंतर नए प्रयोग कर रहे हैं। इस वर्ष इन साथियों ने रंगकर्म का सीधे जनसामान्य से जुड़ा अभियान ‘फोरम थियेटर’ शुरु किया है।

इसके बारे में पढ़ते ही मुझे दस-ग्यारह वर्ष पुरानी घटनाएँ याद आने लगीं। संयोगवश मेरे कॉलेज में मुझे एक प्रपत्र मिला। ‘इंडियन सोसाइटी फॉर थियेटर रिसर्च’ नामक संस्था रंगकर्म संबंधी विभिन्न शिक्षाशास्त्रीय प्रविधियों पर केन्द्रित अंतरराष्ट्रीय शोध सम्मेलन करने जा रही थी। मुझे उत्सुकता हुई और मैंने जमशेदपुर में रहने वाली इप्टा की अपनी जोशीली मित्र अर्पिता से उसमें शामिल होने के लिए पूछा। अर्पिता तैयार हुई और उसी ने रिसर्च कर मुझे ऑगस्टो बोल के ‘थियेटर ऑफ दी ऑप्रेस्ड’ संबंधी सामग्री भेजी। यह अवधारणा पाउलो फ्रेयरे की ‘पेडागॉजी ऑफ़ दी ऑप्रेस्ड’ पर विकसित की गयी है।

मेरे लिए यह एकदम नई थियेटर पेडागॉजी थी। हमने आपस में चर्चा की और तय किया कि हम भारतीय और पाश्चात्य शिक्षाशास्त्र से संबंधित कुछ वरिष्ठ रंगकर्मियों के सिद्धांत और उनके द्वारा किये जाने वाले रंगकर्म पर शोधपत्र लिखेंगे। हमने मिलकर लिखा और पुणे जाकर अपना यह संयुक्त शोधपत्र शोध सम्मेलन में प्रस्तुत भी किया। (यह शोधपत्र ‘सहयात्री’ की अगली किसी कड़ी में साझा करूँगी।) उस समय ‘थियेटर ऑफ दी ऑप्रेस्ड’ के बारे में तथा उससे संबंधित अनेक व्यावहारिक रंगकर्म करने वाले लोगों के बारे में खोज-खोजकर पढ़ा, जो मेरे दिल-दिमाग में बहुत गहरे तक पैठ गया था। बंगाल में संजय गांगुली तथा अन्य कुछ रंगकर्मी भी इस प्रविधि के साथ निरंतर गाँवों-शहरों में काम कर रहे हैं, जानकारी मिलती रही। उसी समय से मेरे दिमाग में यह बात उमड़ती-घुमड़ती रही कि इप्टा को ‘थियेटर ऑफ दी ऑप्रेस्ड’ के तमाम प्रकारों और प्रयोगों को आधार बनाकर जनसाधारण के साथ रंगकर्म करना चाहिए। यह सामाजिक जागरूकता पैदा करने और सीधे जनता से जुड़ने का बेहतरीन माध्यम है।

इसी बीच 2018 में एक संयोग हुआ। अज़ीम प्रेमजी फाउंडेशन की रायगढ़ इकाई ने ‘ड्रामा इन एजुकेशन’ पर शिक्षकों के लिए चार दिनों का वर्कशॉप आयोजित किया। मैं भी इस वर्कशॉप का हिस्सा बनी। साथी श्रेया ने इस वर्कशॉप का संचालन किया था। उन्होंने ‘फोरम थियेटर’ की प्रविधि के माध्यम से शिक्षकों तथा विद्यार्थियों में शिक्षा की गहरी समझ तथा सीखने-सिखाने की प्रक्रिया दिलचस्प और जनकेन्द्रित करने के प्रति प्रतिभागियों को प्रशिक्षित किया। इसमें फोरम थियेटर से संबंधित जो एक्सरसाइज़ेस और इम्प्रोवाइज़ेशन हमने किये, उससे मुझे एक रास्ता दिखाई दिया कि हम इप्टा के साथी पिछड़े, शोषित-वंचित लोगों के पास जाकर उनके ही सवालों पर उनके साथ कैसे नाटक कर सकते हैं और इसे माध्यम बनाकर समाज में व्याप्त हरेक प्रकार की विषमता को दूर करने के लिए समाज-परिवर्तन की ओर अग्रसर हो सकते हैं! (इसका विस्तृत विवरण जल्दी ही इसी ब्लॉग में साझा करूँगी।)

बात आगे बढ़े, इससे पहले फोरम थियेटर की अवधारणा पर संक्षिप्त चर्चा की जाए! पाउलो फ्रेरे द्वारा प्रस्तुत ‘उत्पीड़ितों का शिक्षाशास्त्र’ (पेडागॉजी ऑफ दी ऑप्रेस्ड) की मूल अवधारणा पर आधारित ऑगस्टो बोल के ‘थियेटर ऑफ दी ऑप्रेस्ड’ से फोरम थियेटर विकसित हुआ। जब वे दक्षिण अमेरिका में नाट्यकला के साथ उत्पीड़ितों या वंचितों को जोड़ने की कोशिश कर रहे थे, उसी प्रक्रिया में अभिनेता या दर्शक अचानक चलते हुए छोटे दृश्य के प्रदर्शन को रोक देते थे, जिसमें कोई एक पात्र किसी भी प्रकार से प्रताड़ित हो रहा हो। (उदाहरण के लिए, किसी स्त्री को कोई मर्दवादी पुरुष बुरीतरह प्रताड़ित कर रहा हो या कोई मालिक, उच्चाधिकारी अपने मज़दूर या मातहत कर्मचारी से दुर्व्यवहार कर रहा हो)। पहले इस दृश्य को देखकर कोई दर्शक इस समस्या का हल सुझाता था, जिसके अनुसार अभिनेता अपने प्रदर्शन में तदनुसार इम्प्रोवाइज़ेशन कर कथा में परिवर्तन लाता था। इससे अभिनेता और दर्शक के जो पारम्परिक रिश्ते थे, जो फर्क था, उसमें बदलाव आया।दर्शक द्वारा तत्काल दिये गये सुझाव के अनुरुप नाटक किया जाने लगा। इस बदलाव ने ऑगस्टो बोल के रंगमंचीय काम में दर्शक को महत्वपूर्ण कारक बना दिया। दर्शक भी कलाकार के साथ-साथ नाटक का हिस्सा बनने लगे। ऑगस्टो बोल नहीं चाहते थे कि दर्शक को तमाम रंगमंचीय गतिविधियों से पृथक् रखा जाए। इसके अलावा उन्होंने उत्पीड़ित वर्ग को सीधे नाट्यकला से जोड़कर उन्हें भी नाट्य-प्रस्तुति का हिस्सा बनाया और उत्पीड़ितों के वास्तविक जीवन-अनुभव, उनकी इच्छा-आकांक्षाएँ, उनकी समस्याएँ और उनके द्वारा सुझाए गए उनके समाधान तथा साथी कलाकारों और दर्शकों के संयुक्त समाधानों को मिलाकर एक सामूहिक चिंतन-प्रक्रिया को जन्म दिया तथा उत्पीड़ितों को उनकी शोषणपरक स्थितियों से निकलने के रास्तों की खुद पहचान करवाने की प्रक्रिया शुरु की।

उसके बाद अनेक देशों में अनेक विद्वानों, रंगकर्मियों तथा कलाकारों ने विभिन्न उत्पीड़ित समूहों के पास जाकर इसकी अनेक तकनीकें विकसित कीं। यहाँ मेरा उद्देश्य इस प्रविधि के सैद्धांतिक विवेचन का नहीं है (इस विषय पर पृथक लेख अगली कड़ी में!) बल्कि नाशिक इप्टा के प्रयोगों को साझा कर उनके इस प्रयास को सलाम करना है, इसलिए यह विवेचन यहीं तक।

नाशिक इप्टा के सोशल मीडिया मंच से मुझे फोरम थियेटर पर केन्द्रित वर्कशॉप के आयोजन की सूचना मिली। तत्पश्चात इप्टा और थियेटर वर्कर्स की एक टीम बनाकर शहर के विभिन्न मुहल्लों, बस्तियों तथा गाँवों में निरंतर इसकी प्रस्तुतियों के समाचार मिले। साथियों ने इस अभियान के अनेक फोटो भी साझा किये थे। चूँकि यह कवरेज मराठी में था इसलिए मुझे ज़रूरी लगा कि नाशिक इप्टा के इस उपक्रम से हिंदी-जगत को भी परिचित कराया जाए।

नाशिक इप्टा के सचिव तल्हा शेख़ ने बताया कि ‘‘इससे पहले 02 से 05 नवम्बर 2022 तक थियेटर वर्कर्स मुंबई के साथ मिलकर ‘थियेटर ऑफ दी ऑप्रेस्ड’ यानी शोषितों का रंगमंच की कार्यशाला का आयोजन किया गया। …इस चार दिवसीय कार्यशाला में रंगकर्मी संकेत सीमा विश्वास तथा प्रियपाल दशंती ने समन्वयक की भूमिका निभाई। …दोनों ने संवैधानिक मूल्यों के साथ ‘थियेटर ऑफ दी ऑप्रेस्ड’ की संकल्पना सहभागियों को समझाई।’’ इसी कार्यशाला में प्रशिक्षित कलाकारों के साथ अब इप्टा नाशिक के कलाकार अलग-अलग मुहल्लों-बस्तियों में जाकर नाटक के माध्यम से जन-जागृति का काम कर रहे हैं।

सबसे पहले 03 जनवरी 2023 को सावित्रीबाई फुले जयंती के अवसर पर फोरम थियेटर की पहली प्रस्तुति मोठा राजवाड़ा परिसर में की गई। विषय चुने गए थे नशा तथा बाल-विवाह। यहाँ उपस्थित लोगों ने काफी जोश के साथ फोरम थियेटर में भाग लिया। नन्हें बच्चों से लेकर बड़े-बूढ़ों तक काफी लोग इकट्ठा हो गए थे। सबसे बड़ी बात बच्चों ने बहुत उत्साह से अपनी बातें कहीं।

12 जनवरी 2023 को राजमाता जिजाऊ तथा स्वामी विवेकानंद जयंती के अवसर पर नाशिक के एक मुहल्ले भीमवाडी में फोरम थियेटर की दूसरी प्रस्तुति हुई। नाशिक इप्टा के साथियों ने नशा-मुक्ति, लड़कियों की शिक्षा, बालविवाह तथा स्थानीय कचरा-संग्रहण के लिए दरवाज़े-दरवाज़े जाने वाली ‘घंटा गाड़ी’ के कर्मचारियों की समस्याओं पर थियेटर वर्कर्स के साथ मिलकर नाटक प्रस्तुत किया। उनकी इंस्टाग्राम पोस्ट के अनुसार, जिस जगह पर यह नाटक करना होता है, वहाँ जाकर सबसे पहले कलाकार वहाँ की जनता से संवाद करती है, उनके बारे में जानकारी एकत्रित करते हैं । इस संवाद से प्राप्त अनुभवों पर चर्चा कर सामूहिक रूप में नाटक का विषय तय किया जाता है तथा सामूहिक इम्प्रोवाइज़ेशन कर नाटक की एक सामान्य रूपरेखा बना ली जाती है। इसमें कोई एक लेखक नहीं होता। इस तरह की तैयारी के बाद नाशिक के इन कलाकारों ने उपर्युक्त विषयों पर 10-10 मिनट के 3 नाटक तैयार किये।

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उनकी प्रस्तुति के उपरांत उपस्थित दर्शकों से नाटक में सहभागिता करने के लिए कहा। चूँकि नाटक में उनकी ही बातें थीं, इसलिए दर्शक बहुत आसानी से सहभागी हुए और उन्होंने नाटक को आगे बढ़ाया। अनेक लड़के-लड़कियों ने सहभागी होकर वास्तविकता पर केन्द्रित अनेक सवाल खड़े किये। उपस्थित महिलाओं ने खुलकर कहा कि, लड़कियों का उनकी इच्छा के बिना तथा कम उम्र में विवाह न किया जाए। समूची बस्ती दारूबंदी के मुद्दे पर एकमत थी। नाटक देखकर एक दादी की आँखों से आँसुओं की झड़ी लग गई। अनेक महिलाओं ने अपने-अपने घर में घटित प्रसंगों को साझा किया। इस तरह कलाकार और बस्ती के लोगों के बीच उनकी समस्याओं पर आदान-प्रदान नाटक के माध्यम से होना, ‘थियेटर ऑफ दी ऑप्रेस्ड’ प्रविधि की सफलता थी। ‘फोरम थियेटर’ के इस प्रयोग में साईप्रसाद शिंदे, वैभव वार्के, कोमल वाघमारे, प्राजक्ता कापडणे, मानसी कावळे, अश्विनी जगताप, जयेश कोळी और तल्हा शेख सम्मिलित थे। भीमवाड़ी के निवासी सुरेश गायकवाड़ नाट्य-प्रस्तुति एवं सहभागिता की व्यवस्था में सहयोगी थे।

इस अवसर पर सचिव तल्हा शेख ने कहा, किसी भी शोषित व्यक्ति को हम तत्काल न्याय या हल नहीं दे सकते, मगर उनमें समझ पैदा कर सकते हैं। साथ ही उनकी समस्या के सही स्वरूप से उन्हें परिचित करवा सकते हैं। नाटक के रूप में उसे देखकर वे ही उस पर उपाय खोज सकते हैं, इसका विश्वास उनमें पैदा हो, हम यह सुनिश्चित करते हैं। फोरम थियेटर के माध्यम से हम यही कर रहे हैं। लोगों की सहभागिता से हम जन-जागृति की कोशिश कर रहे हैं।

फोरम थियेटर की तीसरी प्रस्तुति 17 जनवरी 2023 को दरी नामक गाँव में गोदावरी (राह फाउंडेशन), प्रभाकर वायचळे (लोकनिर्णय सामाजिक संस्था) तथा अक्षय दोंदे की सहायता से आयोजित की गई थी। गाँववालों की भीड़ और उनका उत्साह देखकर कलाकार भी उत्साहित थे। फोरम थियेटर के माध्यम से दर्शक और कलाकार सामाजिक समस्याओं पर एक साथ विचार करते हैं। शायद यही शोषितों द्वारा शोषकों के खिलाफ विचार करने की शुरुआत हो!

29 जनवरी 2023 को फोरम थियेटर की अगली प्रस्तुति संत कबीर नगर में हुई। यहाँ सेफविंग्स ऑर्गेनाइज़ेशन की सहायता से शिक्षा के मुद्दे पर नाटक स्थानीय दर्शकों की सहभागिता के साथ खेला गया। टीम को अलग-अलग बस्तियों में बहुत अलग किस्म के अनुभव मिल रहे हैं और जनसाधारण की समस्याओं और उनकी सोच के बारे में नई जानकारियाँ हासिल हो रही हैं।

नाशिक इप्टा के साथियों के इन अनुभवों से यह दिखाई देता है कि फोरम थियेटर के प्रयोगों के माध्यम से वे अनेक जन संगठनों से जुड़कर विभिन्न स्थानों के लोगों की समस्याओं और उनकी जीवन-स्थितियों को समझने की कोशिश कर रहे हैं। साथ ही विषम परिस्थितियों के तमाम कारणों पर नाटक के माध्यम से चर्चा करते हुए उन्हीं लोगों में चेतना पैदा की जाती है कि सामूहिक प्रयासों से परिस्थितियाँ बदली जा सकती हैं। नाशिक इप्टा के इस नए अभियान में कलाकार साथी भी सीखने की प्रक्रिया में हैं। वर्तमान समय में सीधे जन-संवाद का यह माध्यम निश्चित ही एक उम्मीद जगाता है। नाशिक इप्टा और थियेटर वर्कर्स के साथियों को इस अभियान की निरंतरता बनी रहे, इसके लिए अनेक शुभकामनाएँ।

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